-श्रुति मेनन
भारत ने साल 2021 के अंत तक अपनी वयस्क आबादी के संपूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य रखा था लेकिन वह अपने इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर सका है.
भारत अपनी 94 करोड़ की पूरी वयस्क आबादी को कोरोना के दोनों डोज़ देने के लक्ष्य से चूक गया है.
भारत में संपूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य की घोषणा सबसे पहले प्रकाश जावड़ेकर ने मई महीने में की थी. उन्होंने कहा था, "भारत में दिसंबर साल 2021 तक टीकाकरण पूरा हो जाएगा."
टीकाकरण की प्रक्रिया कैसी चल रही है?
30 दिसंबर तक भारत की 64 फ़ीसदी वयस्क आबादी को कोरोना वैक्सीन की पूरी ख़ुराक़ यानी दोनों डोज़ लग चुकी हैं. और लगभग 90 फ़ीसद को कोरोना वैक्सीन की एक डोज़ मिल चुकी है.
विशेषज्ञों का मानना है कि संपूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी लंबा समय लगेगा.
महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया कहते हैं कि सरकार ने जो लक्ष्य रखा था वह अवास्तविक था क्योंकि किसी भी स्थिति में 100 फ़ीसद टीकाकरण का लक्ष्य हासिल कर पाना संभव ही नहीं होगा.
वह कहते हैं, "हमेशा कुछ ना कुछ ऐसे लोग होंगे ही जो वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार नहीं होंगे."
भारत के वैक्सीन डैशबोर्ड- कोविन के मुताबिक़, भारत में दिसंबर महीने के पहले सप्ताह के बाद से साप्ताहिक टीकाकरण की दर धीमी हो गयी है.
अक्टूबर के मध्य से, कोरोना की पहली ख़ुराक लेने वालों की तुलना में दूसरी ख़ुराक या डोज़ लेने वालों की संख्या अधिक रही.
17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर सबसे अधिक टीकाकरण हुआ लेकिन बाकी दिनों की बात की जाए तो टीकाकरण की दर ऊपर-नीचे होती रही.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन वाले दिन क़रीब 2.5 करोड़ लोगों को टीके लगाये गए. लेकिन देश में इतनी बड़ी संख्या में टीकाकरण का रिकॉर्ड दोबारा हासिल नहीं किया जा सका. सितंबर महीने का अगर औसत देखें तो लगभग हर रोज़ वैक्सीन की क़रीब 81 लाख ख़ुराक़ दी गईं.
अक्टूबर में यह संख्या कम होकर औसतन 54 लाख और नवंबर में 57 लाख पर आ गयी.
कुछ जानकारों का कहना है कि जिस दर से सितंबर के महीने तक टीके लगाए गए, अगर वही दर बरकरार रह पाती तो हो सकता है कि भारत अपने तय किये लक्ष्य के क़रीब पहुंच जाता, लेकिन टीकाकरण की दर में अचानक से गिरावट आ गई.
बीते साल जनवरी के महीने में शुरू होने वाले टीकाकरण अभियान की प्रक्रिया को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा. पहले कच्चे माल की कमी फिर लॉजिस्टिक्स जैसे मुद्दों के कारण आपूर्ति पर असर पड़ा. इसके अलावा टीके के प्रति लोगों की झिझक भी संपूर्ण टीकाकरण के रास्ते में बाधा बनी, इस लक्ष्य को हासिल करने में ये अब भी बड़ा कांटा बनी हुई है.
साल की दूसरी छमाही तक आपूर्ति को लेकर संकट बना हुआ था. वहीं साल के आख़िर तक चुनौती आपूर्ति की बजाय मांग को लेकर बढ़ी.
डॉक्टर लहरिया के मुताबिक़, "टीकाकरण अभियान में कमी आयी है क्योंकि लोग वैक्सीन लेने में हिचकिचा रहे हैं."
टीकाकरण कार्यक्रम को गति देने के लिए सरकार ने तीन नवंबर को 'हर घर दस्तक अभियान' की शुरुआत की.
इस अभियान की घोषणा के एक महीने बाद भी पहली ख़ुराक़ लेने वालों की संख्या में सिर्फ़ छह फ़ीसद की वृद्धि हुई और दूसरी ख़ुराक़ लेने वालों की संख्या में 12 फ़ीसद की.
कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट के बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से टीकाकरण को बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास करने को कहा है.
यह आश्चर्य की बात है कि बीते कुछ महीनों में स्वास्थ्य मंत्रालय की किसी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार के तय किये गए 100 फ़ीसद टीकाकरण के लक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया है.
बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट के लिए सरकार से इस संबंध में जानकारी भी मांगी लेकिन सरकार की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं दिया गया है.
क्या भारत के पास पर्याप्त टीके हैं?
भारत में फिलहाल स्थानीय रूप से निर्मित दो टीके यानी कोविशील्ड और कोवैक्सीन और एक रूस में तैयार वैक्सीन स्पुतनिक की डोज़ दी जा रही है.
भारत की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने दिसंबर महीने में ऑर्डर की कमी के कारण उत्पादन में कटौती की घोषणा की थी. इसके पहले तक कंपनी हर महीने वैक्सीन की 25 करोड़ डोज़ का उत्पादन कर रही थी. अब कंपनी एक महीने में वैक्सीन की 12.5 से 15.0 करोड़ ख़ुराक़ का उत्पादन करती है.
वहीं कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक हर महीने वैक्सीन की 5 से 6 करोड़ डोज़ का निर्माण करती है.
भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने हाल ही में संसद को बताया था कि 20 दिसंबर तक राज्यों के पास वैक्सीन की 17 करोड़ डोज़ थीं.
उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा था कि आने वाले दो महीनों में वैक्सीन निर्माता कंपनियां अपनी मौजूदा क्षमता को बढ़ाते हुए 31 करोड़ ख़ुराक प्रति माह से 45 करोड़ ख़ुराक़ प्रति माह के उत्पादन तक पहुंच जाएंगी.
इसमें दूसरे वैक्सीन निर्माताओं के टीके भी शामिल हो सकते हैं.
वहीं मंत्री डॉ भारती पवार ने कहा था कि दोनों कंपनियों अपनी उपादन क्षमता का 90 फीसदी तक हासिल कर चुकी हैं.
भारत सरकार ने हाल ही में 15 से 18 साल के किशोरों के लिए वैक्सीन और स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए और साठ साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए वैक्सीन के बूस्टर डोज़ की घोषणा की है.
सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला हालांकि पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर सरकार बूस्टर अभियान की घोषणा करती है तो कंपनी के पास स्टॉक में वैक्सीन के 50 करोड़ डोज़ हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी देते हुए बताया है कि टीकाकरण अभियान की शुरुआत होने के बाद से अभी तक क़रीब 620 लाख वैक्सीन की डोज़ बर्बाद हो चुकी हैं.
हालांकि यह संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के बताए गए आंकड़ों की तुलना में काफी कम है.
बीते साल सितंबर में अमेरिकी दवा कंपनी नोवावैक्स ने पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट के साथ कोरोना वैक्सीन की दो अरब डोज़ बनाने के लिए करार किया था.
सीरम इंस्टीट्यूट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला ने उम्मीद जताई थी कि इस साल सितंबर के महीने तक वो इस वैक्सीन को तैयार कर सकेंगे. सीरम इंस्टीट्यूट, ऑक्सफ़र्ड-एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड का भी उत्पादन कर रहा है.
कंपनी के अनुसार हाल ही में अमेरिका में हुए वैक्सीन के आख़िरी चरण के क्लिनिकल ट्रायल में इसे कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ 90 फ़ीसदी तक कारगर पाया गया है.
डब्ल्यूएचओ ने इसे इमर्जेंसी इस्तेमाल की सूची में रखा है. भारत ने भी इसे मंज़ूरी दे दी है.
सीरम इंस्टीट्यूट ने बीबीसी को बताया कि मौजूदा समय में वह इन वैक्सीन को स्टॉक कर रहा है.
दूसरी ओर भारत बायोटेक ने इंट्रानैसल वैक्सीन के तौर पर बूस्टर डोज़ के परीक्षण के लिए मंज़ूरी मांगी है.
बायोलॉजिकल-ई द्वारा तैयार कॉर्बेवैक्स को भी भारत में मंज़ूरी दे दी गई है.
भारत ने जून महीने में अमेरिका में बनी मॉडर्ना वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंज़ूरी दे दी थी लेकिन अभी तक भारत को इसकी कोई डोज़ नहीं मिली है.
जॉनसन एंड जॉनसन की एक टीके वाली कोरोना वैक्सीन डोज़ को भी अगस्त महीने में मंज़ूरी मिल गयी थी लेकिन अभी तक यह भी नहीं मिली है.
वैक्सीन का निर्यात
भारत में वैक्सीन की कम होती मांग और संक्रमण के मामलों में कमी आने के बाद सीरम इंस्टीट्यूट ने नवंबर महीने में वैश्विक वैक्सीन साझेदारी कार्यक्रम, कोवैक्स के तहत दोबारा से वैक्सीन का निर्यात शुरू कर दिया था.
अप्रैल में वैक्सीन के निर्यात पर रोक से पहले तक कोवैक्स कार्यक्रम मुख्य रूप से सीरम इंस्टीट्यूट के निर्यात पर ही निर्भर रहा था.
कोवैक्स का उद्देश्य दान के माध्यम से 92 कम आय वाले देशों तक कोविड-19 वैक्सीन पहुँचाना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस योजना के तहत वैक्सीन देने का काम फ़रवरी में शुरू किया गया था. (bbc.com)