-मोहम्मद सुहैब
पाकिस्तान में एक बार फिर गेहूं और आटे की क़ीमतों में इज़ाफ़े का रुझान देखने में आ रहा है. देशभर में क़ीमतें हर दिन बढ़ रही हैं और इससे लोग ख़ासे परेशान हो रहे हैं.
सांख्यिकी संस्थान के अनुसार, दिसंबर के अंतिम सप्ताह में आटे के मूल्य में लगभग तीन फ़ीसदी (2.81) तक की वृद्धि दर्ज की गई जिसका साफ़ मतलब यह है कि इस सप्ताह आटे की 20 किलो की थैली की क़ीमत में कम से कम 200 रुपये तक की वृद्धि हो चुकी है.
जाड़े के मौसम के दौरान कई क्षेत्रों में स्थिति यह है कि अगर घर की गैस का प्रेशर कम हो तो फिर तंदूर का रुख़ करना पड़ता है जबकि तंदूर से एक रोटी 25 रुपये से कम की नहीं मिल रही है.
एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद पिछले दो वर्षों से पाकिस्तान अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए गेहूं आयात करने पर मजबूर हो रहा है.
गेहूं पाकिस्तान में भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और हर पाकिस्तानी औसतन 124 किलोग्राम गेहूं सालाना खा लेता है.
मुसद्दिक़ अब्बास इस्लामाबाद के रिहायशी इलाक़े जी-10 में तंदूर चलाते हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि आटे की क़ीमत में इज़ाफ़े के अलावा बिजली, गैस और दूसरे ज़रूरी सामान का दाम भी बढ़ गया है.
उनके मुताबिक़, "दो कर्मियों के वेतन के अलावा तंदूर का 15 हज़ार मासिक किराया अदा करता हूं जबकि बिजली और गैस का बिल अलग से जमा कराता हूं."
मुसद्दिक़ अब्बास कहते हैं, "आटे की क़ीमत में हर दिन इज़ाफ़ा होता जा रहा है. ऐसे में 25 रुपये की भी रोटी बेचकर सारे ख़र्चों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है."
बिना और समय गंवाए मुसद्दिक़ अब्बास अपने ग्राहकों के लिए तंदूर लगाने में लग गए, मगर मन में यह सवाल तो ज़रूर पैदा होता है कि आख़िर इस सारे संकट का ज़िम्मेदार कौन है या फिर इस संकट का हल कैसे पाया जा सकता है?
केंद्र सरकार ने इस मूल्य वृद्धि का मामला राज्यों पर डाल दिया है. उसके अनुसार यह समस्या या संकट मिल एसोसिएशनों और राज्य सरकारों का पैदा किया हुआ है. सरकार के अनुसार आटे का भंडारण, मिल और आटे का मूल्य निर्धारण राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है.
बीबीसी ने इस मामले पर प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की कैबिनेट में शामिल केंद्रीय मंत्रियों और आटा मिल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से बात की है और इस संकट को समझने की कोशिश की है कि आख़िर इस समस्या से बाहर कैसे निकला जा सकता है.
इस संकट को समझने से पहले यह बात ध्यान में रहे कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की अध्यक्षता में इस साल एक बैठक हुई थी जिसमें देश में गेहूं की पैदावार, वर्तमान भंडार और राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर खपत जैसे मामलों पर विचार किया गया था.
इस बैठक में चालू वर्ष में गेहूं की कुल पैदावार का लक्ष्य दो करोड़ 29 लाख मीट्रिक टन रखा गया था जबकि संभावित पैदावार दो करोड़ 26 लाख मीट्रिक टन तक होने का अनुमान था. गेहूं की राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक खपत का अनुमान तीन करोड़ मीट्रिक टन लगाया गया है.
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में बताया गया कि गेहूं की सरकारी स्तर पर ख़रीदारी के लक्ष्य का पंजाब ने 91.66%, सिंध ने 49.68%, बलूचिस्तान ने 15.29% और 'पासको' (पाकिस्तान एग्रीकल्चर स्टोरेज एंड सर्विसेज़ कॉरपोरेशन लिमिटेड) ने सौ फ़ीसदी प्राप्त कर लिया है.
स्थानीय ज़रूरत की तुलना में गेहूं की कम उपज की वजह से केन्द्रीय कैबिनेट ने देश में 30 लाख टन गेहूं के आयात को मंज़ूरी दी है.
यह भी ध्यान रहे कि पिछले वर्ष देश में दो करोड़ 28 लाख मीट्रिक टन गेहूं की उपज हुई थी, लेकिन यह पैदावार भी देश की ज़रूरत से कम थी और इसलिए पाकिस्तान ने 20 लाख टन गेहूं दूसरे देशों से मंगवाया था.
सियासी खींचतान का असर
अब वर्तमान संकट पर केंद्रीय मंत्रियों से बात करने से पहले आटा मिल एसोसिएशन का पक्ष जानते हैं.
ऑल पाकिस्तान फ़्लावर मिल्स एसोसिएशन के चेयरमैन आसिफ़ रज़ा ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि "सरकार 2300 रुपये प्रति मन पर आटा दे रही है, 20 किलो आटा 1295 का मिल रहा है. सरकारी दर में तो अंतर नहीं है, लेकिन प्राइवेट गेहूं की क़ीमत में इज़ाफ़ा हो रहा है."
आसिफ़ के मुताबिक़, आज से बस 10 दिन पहले गेहूं प्रति मन 3300 रुपये मिल रहा था और आज यह दर 4350 रुपये तक पहुंच चुकी है.
उन्होंने आगे कहा कि "सरकार की ओर से मिलों को जो गेहूं मिल रहा है वह कम है. उदाहरण के लिए बलूचिस्तान गेहूं दे ही नहीं रहा, सिंध सवा दो लाख टन तक मासिक गेहूं दे रहा है हालांकि सिंध को पौने तीन लाख टन जारी करना चाहिए."
उनके अनुसार, पंजाब में इन दिनों में 30 हज़ार टन गेहूं जारी किया जाता रहा है, आज साढ़े इक्कीस हज़ार टन जारी किया जा रहा है. ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में सात हज़ार टन गेहूं जारी होता रहा है, आज पांच हज़ार टन जारी हो रहा है.
आसिफ़ रज़ा के अनुसार, इसलिए अगर सभी राज्यों का अंतर निकालें तो यह 10 हज़ार टन प्रतिदिन है, इसका मतलब है एक लाख बोरी. इसके कारण सारा बोझ ओपन मार्केट पर आता है, यही वजह है कि जिसके पास गेहूं पड़ा है वह अपनी मनमानी रेट मांग रहा है.
वह कहते हैं कि इस समय खींचातानी चल रही है. "राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार है. सिंध में पीपुल्स पार्टी है. ख़ैबर पख़्तूनख़्वा, पंजाब और बलूचिस्तान में तहरीक-ए-इंसाफ़ की सरकार है. खिचड़ी बनी हुई है. सरकारें कहती हैं कि हम क्यों दें, हम क्यों करें."
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि राज्यों को गेहूं दे और फिर बाद में राज्यों के कोटे से उसे निकाल ले. उन्होंने कहा कि अंतरराज्यीय पाबंदी लगाने का कोई फ़ायदा नहीं है बल्कि उल्टा नुक़सान है.
उनका यह भी कहना था कि इस समय केंद्र और राज्यों की ओर से गेहूं बचाने की बजाय उसे जारी करने की ज़रूरत है ताकि मार्केट की स्थिति सामान्य हो जाए.
"इसका दूसरा बड़ा हल यह है कि निजी क्षेत्र को गेहूं आयात करने की अनुमति दें, हमें वह 3300 से 3400 रुपये के बीच पड़ेगा. हम अगर ले आते हैं तो मार्केट ख़ुद-ब-ख़ुद 4300 से 3400 पर आ जाएगा."
केंद्र सरकार क्या कर सकती है
फ़्लावर मिल्स एसोसिएशन, सिंध के चेयरमैन चौधरी मोहम्मद यूसुफ़ का कहना था कि 'केंद्र सरकार के पास स्टॉक मौजूद है, अगर वह आज ही गेहूं जारी कर दे तो आटा 50 रुपये प्रति किलो कम हो सकता है या फिर हमें इजाज़त दें तो हम 30 रुपये किलो कम कर दें.'
उन्होंने कहा कि 'हमज़ा शहबाज़ ने सितंबर में जारी किया जाने वाला गेहूं मई में जारी किया. इसमें स्टॉक और सब्सिडी बर्बाद की गई जिसका नुक़सान आज हमें हो रहा है.'
चौधरी मोहम्मद यूसुफ़ ने कहा कि 'केंद्र ने हमें बांध दिया है, या तो हमें आयात करने की इजाज़त दे दें या फिर ख़ुद जारी कर दें क्योंकि ग़रीब आदमी इस वक़्त बद्दुआएं दे रहा है.'
केंद्रीय खाद्य सुरक्षा मंत्री तारिक़ बशीर चीमा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि केंद्र ने तो गेहूं आयात भी किया है और "हम तो फ़्लावर मिल्स एसोसिएशन से मन्नतें कर रहे हैं कि वह क़ीमत में कमी लाएं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहे हैं."
ध्यान रहे कि सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान ने चालू वर्ष के पहले नौ महीनों में 80 करोड़ डॉलर का गेहूं आयात किया है.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि फ़्लावर मिल्स एसोसिएशन को दिया जाने वाला गेहूं राज्य देते हैं, केंद्र नहीं देता.
अंतरराज्यीय समन्वय के राज्य मंत्री मेहर इरशाद ने बीबीसी को बताया कि गेहूं राज्य का मामला है. इस मामले में केंद्र के हाथ बंधे हुए हैं.
उन्होंने बताया कि पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में तहरीक-ए-इंसाफ़ की सरकार है जहां से गेहूं का संकट पैदा किया जा रहा है.
केंद्र के अधिकारों के बारे में सवाल पर उनका कहना था कि गेहूं की ख़रीदारी तक राज्य करते हैं, गोदाम और स्टोर तक राज्यों के पास हैं.
एक और सवाल के जवाब में उनका कहना था कि 'केंद्र के पास थोड़ी मात्रा 'पासको' के गेहूं की होगी. मगर केंद्र तो समस्या नहीं पैदा कर रहा है, केंद्र भी तो अपने ही देश को यह गेहूं देता है.'
मेहर इरशाद के अनुसार, "यह खाद्य विभाग की समस्या है. केंद्र पूरी तरह से अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा है. हालांकि जमाख़ोरी को रोकना राज्यों की ज़िम्मेदारी है.'
गेहूं के आयात की समस्याएं
सिंध की ओर से कोटे से कम गेहूं देने के सवाल पर राज्यमंत्री का कहना था कि उन्हें अभी इसके आंकड़े की सही जानकारी नहीं है, मगर वह एक बात विश्वास से कह सकते हैं, "सिंध को हमेशा एक साज़िश के तहत बदनाम किया जाता है, उसे आलोचना का शिकार बनाया जाता है."
उनके अनुसार, सिंध कभी हक़दार का हक़ नहीं मारता और यही वजह है कि राज्य में बेहतरीन सुविधाएं हैं जो पूरे पाकिस्तान की जनता को मयस्सर नहीं है.
चालू वित्त वर्ष में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में कहा गया था कि गेहूं की उपज के लक्ष्य और पैदावार में अंतर के कारणों में गेहूं की बुआई में कमी, पानी की क़िल्लत और पिछली सरकार की ओर से खाद वितरण में अव्यवस्था शामिल थी जिससे संकट पैदा हुआ.
इसके अलावा मार्च में गेहूं के समर्थन मूल्य की घोषणा देर से होने के कारण किसानों की ओर से गेहूं की बुवाई में दो फ़ीसदी कमी का रुझान भी देखने में आया था. तेल के मूल्य में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन यानी समय से पहले गर्मी बढ़ने से भी गेहूं के निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में बड़ी रुकावट आई.
गेहूं के विशेषज्ञों के अनुसार, अगर गेहूं की ऊंची क़ीमत और रुपए की कम क़ीमत जारी रही तो आयातित गेहूं पाकिस्तानियों के लिए आटे की क़ीमत को और बढ़ा देगा. ये देश में पहले से मौजूद महंगाई के उच्च स्तर को चरम पर ले जाने के लिए काफ़ी होगा. (bbc.com/hindi)