-कमलेश मठेनी
चीन, 6 मार्च । चीन की संसद नेशनल पीपल्स कांग्रेस की बैठक चल रही है. इस बैठक के साथ ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीनी सरकार और अर्थव्यवस्था पर पकड़ और मज़बूत करने वाले हैं.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसके उद्घाटन सत्र में हिस्सा लिया. एनपीसी की इस 14वीं बैठक में शी जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने पर मुहर लगेगी जिससे उनकी ताक़त और ज़्यादा बढ़ जाएगी.
ये बैठक हफ़्ते भर तक चलेगी. इसमें कुछ सुधारों को मंज़ूरी दी जाएगी और नए मंत्रियों की नियुक्ति होगी.
हालांकि, नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) रबर स्टांप की तरह काम करती है जो केवल कम्युनिस्ट पार्टी के फ़ैसलों पर संवैधानिक मुहर लगाती है.
इस बैठक में नए प्रधानमंत्री का भी चुनाव होगा. फ़िलहाल इस पद पर ली कचियांग हैं.
लगभग एक हफ़्ते चलने वाली इस बैठक को 'टू सेशंस' कहा जाता है जो हर साल होती है. इस बार बैठक ख़ासतौर से अहम है क्योंकि इसमें कम्युनिस्ट पार्टी और कई महत्वपूर्ण संस्थाओं को पुनर्गठित किया जा सकता है.
चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक़ इसमें वित्तीय क्षेत्र, वैज्ञानिक और तकनीकी कार्यों को देखने वाले निकायों पर नियंत्रण और बढ़ाया किया जाएगा. साथ ही निजी व्यवसाय में ''पार्टी-निर्माण कार्य को मज़बूत" करने पर ज़ोर होगा.
इससे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार के बीच का अंतर और कम हो जाएगा. निजी सेक्टर पर पार्टी का नियंत्रण और बढ़ेगा.
हाल के सालों में भी देखा गया है कि भ्रष्टाचार की कार्रवाई में चीन के बड़े कारोबारी अचानक गायब हो जाते हैं. हाल ही में चीन के अरबपति कारोबारी बाओ फ़ैन दिखाई देना बंद हो गए हैं.
चीन का 'टू सेशंस' क्या है
बीजिंग में होने वाला 'टू सेशंस' चीनी संसद (नेशनल पीपल्स कांग्रेस) और शीर्ष राजनीतिक सलाहकार निकाय (सीपीपीसीसी) की वार्षिक बैठक है जिसमें पूरे देश से हज़ारों प्रतिनिधि शामिल होते हैं.
नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) चीन की संसद की तरह है जिसे सैद्धांतिक तौर पर सबसे ताक़तवर माना गया है. हालांकि, ये सिर्फ़ रबर स्टांप की तरह काम करती है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में लिए गए फ़ैसलों को लागू करती है, उन पर क़ानून बनाती है. इसमें क़रीब तीन हज़ार सदस्य होते हैं.
चाइनीज़ पीपल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कांफ्रेंस (सीपीपीसीसी) के पास कोई वास्तविक विधायी शक्ति नहीं है यानी से क़ानून नहीं बना सकती. इसमें सलाहकारी काम होता है और समाज के विभिन्न तबकों के लोग शामिल होते हैं. इसमें उभरते सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होती है.
ये बैठक चार मार्च को शुरू हुई है जो 11 मार्च तक चलेगी.
ताक़तवर होते शी जिनपिंग
शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी पर अपनी पकड़ पिछले साल ही दिखा दी थी. अक्टूबर में उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी ने तीसरे कार्यकाल के लिए अपना सर्वोच्च नेता चुना था.
चीन के पहले सर्वोच्च नेता माओत्से तुंग के बाद ये पहली बार था जब कोई नेता इतने लंबे समय के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष पर रहा हो.
साल 2018 की एनपीसी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल की सीमा को हटा दिया गया था जिसके बाद शी जिनपिंग आजीवन पार्टी के सर्वोच्च पद पर रह सकते हैं.
हालांकि, इस बीच शी जिनपिंग को घरेलू स्तर पर आलोचना भी झेलनी पड़ी है. ज़ीरो कोविड नीति और कारोबार क्षेत्र पर कसते शिकंजे के कारण अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है जिसके विरोध में लोग सड़कों पर भी उतरे.
चीन में कोरोना महामारी से निपटने के लिए सख़्त लॉकडाउन लगाया गया था जिसके चलते लोगों को खाने-पीने का सामान भी नहीं मिल पा रहा था जिसका गुस्सा लोगों में दिखा.
वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो चीन के अमेरिका के साथ रिश्तों में तनाव बढ़ गया है. रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन के रूस की तरफ़ झुकाव और हाल ही में मिले जासूसी ग़ुब्बारों ने इस तनाव को और गहरा किया है.
चीन के नए प्रधानमंत्री
एनपीसी की बैठक में चीन के नए प्रधानमंत्री को भी चुना जाएगा जो देश में आर्थिक और प्रशासनिक काम देखते हैं.
शी जिनपिंग के सबसे वफ़ादार नेता ली चियांग को इस पद पर चुना जा सकता है. शंघाई पार्टी सेक्रेटरी होने के नाते उन्होंने कोरोना लॉकडाउन की ज़िम्मेदारी संभाली थी.
मौजूदा प्रधानमंत्री ली कचियांग इस बैठक में अपने कार्यकाल की रिपोर्ट देंगे. ली कचियांग एक तरह से जिनपिंग के प्रतिस्पर्द्धी ही माने जाते रहे हैं.
ली कचियांग को हु जिंताओ का साथ देते देखा गया था. पिछली बार पार्टी कांग्रेस में हु जिंताओ को शी के आदेश के बाद मंच से उतार दिया गया था.
इसके अलावा बैठक में पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमिटी के अन्य सदस्यों की भी घोषणा की जाएगी. ये कमेटी शी जिनपिंग की कैबिनट के बराबर होती है.
अब इस पर नज़र बनी हुई है कि अहम पदों पर किसे चुना जाता है जैसे वाणिज्य मंत्री, राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग के प्रमुख, प्रोपेगैंडा प्रमुख और स्टेट सिक्योरिटी के प्रमुख.
जानकारों का कहना है कि ये सदस्य चुनते हुए उनकी काबिलियत से ज़्यादा शी जिनपिंग और उनकी पार्टी के प्रति वफ़ादारी को ज़्यादा महत्व दिया जाएगा.
रक्षा बजट बढ़ाया गया
रविवार को चीन के साल 2023 के बजट का मसौदा भी पेश किया गया. इस बार रक्षा बजट में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 224.79 अरब डॉलर दिए गए हैं. लगातार आठ सालों से चीन का रक्षा बजट बढ़ रहा है. पिछले साल रक्षा बजट 7.1 प्रतिशत बढ़ाया गया था.
हालांकि, आठ सालों से ये वृद्धि 10 प्रतिशत से नीचे ही रही है.
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़ चीनी विशेषज्ञों ने वैश्विक तनाव और अन्य देशों के सैन्य खर्चों के बीच इसे पर्याप्त और संयमित बताया है.
प्रधानमंत्री ली कचियांग ने कहा कि चीन को दबाने के लिए बाहर से हो रहे प्रयासों में बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने कहा, ''सैन्य बलों को अपना प्रशिक्षण और तैयारी तेज़ करनी चाहिए. युद्ध की स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षण में और ताक़त झोंकनी ज़रूरी है. साथ ही हर तरह से सेना को मज़बूत करना चाहिए.''
चीन की सेना दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी सेना है. लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के मुताबिक़ पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में दो करोड़ प्रशिक्षित महिला-पुरुष सैनिक हैं जो अलग-अलग तैनात हैं.
सेना में नौ लाख 65 हज़ार सैनिक, नौ सेना में दो लाख 60 हज़ार और वायु सेना में तीन लाख 95 हज़ार सैनिक हैं. इसके अलावा स्ट्रैटेजिक मिसाइल फ़ोर्स में एक लाख 20 हज़ार और अर्धसैनिक बलों में पांच लाख सैनिक हैं.
चीन का रक्षा बजट भले ही बढ़ गया है फिर भी ये अमेरिका के बजट से काफ़ी पीछे है. अमेरिका ने इस साल रक्षा के लिए 800 अरब डॉलर जारी किए हैं.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चीन सेना पर घोषित रक्षा बजट से ज़्यादा खर्च करता है.
पांच प्रतिशत जीडीपी का लक्ष्य
चीनी सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़ चीन ने साल 2023 के लिए पांच प्रतिशत जीडीपी का लक्ष्य रखा है.
इसमें कोविड-19 महामारी को हराने के बाद आर्थिक सुधार को लेकर भरोसा जताया गया है. साथ ही वैश्विक स्तर पर हो रही आर्थिक और भूराजनीतिक उथल-पुथल के बीच संतुलन बनाने की बात कही गई है.
इसके साथ ही अनुमान लगाया गया है कि चीन फिर से दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है और अमेरिका और यूरोप जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंदी का ख़तरा मंडरा रहा है.
ताइवान और हांगकांग का ज़िक्र
एनपीसी की बैठक में वन चाइना पॉलिसी पर बने रहने की बात फिर से दोहराई गई.
बैठक में कहा गया कि चीन ताइवान के मसले को हल करने के लिए सीपीसी की रणनीति पर चलेगा. साथ ही 'वन चाइना पॉलिसी' के सिद्धांत और 1992 में बनी आम सहमति पर सुदृढ़ रहेगा और दृढ़ता से "ताइवान की स्वतंत्रता" का विरोध करेगा और मातृभूमि के शांतिपूर्ण एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हांगकांग, मकाओ, ताइवान से जुड़े मसलों को संभालने में पिछले पांच सालों में प्रगति हुई है. राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लागू करने से हॉन्ग-कॉन्ग में अराजकता को ख़त्म करके सुशासन स्थापित हुआ है.
5जी तकनीक को बढ़ावा
इस दौरान 5जी के साथ-साथ 6जी तकनीक को लेकर भी बात हुई. औद्योगिक एवं सूचना तकनीकी मंत्री जिन झुआंगलॉन्ग ने बताया कि चीन में 5जी के 57 करोड़ 50 लाख से ज़्यादा उपयोगकर्ता हैं. आधी से ज़्यादा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5जी का इस्तेमाल होता है जैसे बंदरगाह, बिजली और बड़े एयरक्राफ्ट.
उन्होंने साल 2023 के अंत तक देशभर में दो करोड़ 90 लाख 5जी बेस स्टेशन बनाने का लक्ष्य भी रखा.
वहीं, एमआईआईटी के प्रमुख ने कहा कि चीन में 6जी के प्रचार के लिए कार्य करने वाला समूह अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अनुसंधान में मज़बूती से जुट गया है.
बैठक में और क्या कहा गया
इस दौरान चीन की पिछले पांच साल की उपलब्धियां भी बताई गईं. बताया गया कि वार्षिक जीडीपी दर 5.2 प्रतिशत तक पहुंची. साथ ही वार्षिक शहरी रोज़गार वृद्धि औसत एक करोड़ 27 लाख रही.
एनपीसी के प्रवक्ता ने चीन और यूरोपीय देशों के संबंधों पर बात की. उन्होंने शनिवार को कहा कि ये दावा ग़लत है कि चीन और यूरोपीय देश प्रतिद्वंद्वी हैं. दोनों पक्षों को सहयोग बढ़ाना चाहिए और वैश्विक शांति और विकास में मिलकर योगदान देना चाहिए.
प्रधानमंत्री ने इस दौरान कोविड महामारी का भी ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि कोविड-19 से तीन साल तक लड़ाई में सीपीसी सेंट्रल कमिटी ने लोगों के जीवन और सेहत को हमेशा प्राथमिकता दी है और उसके अनुसार नीतियां बनाई हैं. इस बीच सभी लोगों ने मुश्किलों का सामना किया और कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जीत हासिल की.
प्रधानमंत्री ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के प्रयासों का भी ज़िक्र किया. उन्होंने बताया कि चीन विदेशी निवेश लाने और उसका अधिक इस्तेमाल करने के प्रयासों को बढ़ा रहा है.
उन्होंने कहा, ''मैं बाज़ार तक पहुंच को विस्तार देना चाहिए और आधुनिक सेवा क्षेत्र को खोलना चाहिए. चीन को कंप्रिहेंसिव प्रोगेसिव एग्रीमेंट फ़ॉर ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) और अन्य आर्थिक और व्यापार समझौतों में शामिल होने के लिए क़दम उठाने चाहिए.'' (bbc.com/hindi)