नई दिल्ली, 2 नवंबर | दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को डीयू से संबद्ध कॉलेजों को स्टूडेंट सोसायटी फंड (एसएसएफ) से शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वेतन देने के निर्देश के लिए राज्य सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने एक कोऑर्डिनेट बेंच द्वारा पारित अंतरिम आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि इन कॉलेजों का रुख महत्वपूर्ण है, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) द्वारा दायर याचिका के लिए पक्षकार नहीं बनाया गया है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील जीवेश तिवारी को निर्देश दिया कि वे सुनवाई के लिए अगली तारीख तक एक आवेदन ले जाएं, ताकि कॉलेजों को उस याचिका का पक्षकार बनाया जा सके।
अदालत ने कहा, "कॉलेजों को एक पक्षकार बनाने के लिए उचित कदम उठाएं और यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो अंतरिम पर रोक लगा दी जाएगी।"
मामले की अगली सुनवाई 5 नवंबर को होगी।
अदालत दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध लेकिन 100 प्रतिशत दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित 12 कॉलेजों के कर्मचारियों को वेतन के भुगतान के लिए छात्र सुरक्षा निधि (एसएसएफ) के उपयोग से संबंधित मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी।
23 अक्टूबर को न्यायमूर्ति नवीन चावला ने बकाया वेतन के भुगतान के लिए निर्देश देने के सरकारी आदेश पर रोक लगा दी थी।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 2 नवंबर | आम आदमी पार्टी ने भाजपा शासित एमसीडी को एक फिर से घेरा। पार्टी के नेता दुर्गेश पाठक ने कहा कि, "केजरीवाल सरकार शिक्षकों को अक्टूबर तक का वेतन देने के लिए एमसीडी को 746 करोड़ रुपए दे चुकी है, लेकिन फिर भी भाजपा ने उन्हें वेतन नहीं दिया और पूरा पैसा खा गई। कई महीने से वेतन नहीं मिलने से नाराज नार्थ एमसीडी के स्कूलों के शिक्षक सोमवार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता के आवास पर धरने पर बैठ गए।" "दिल्ली सरकार ने शिक्षकों को अक्टूबर तक सैलरी देने के लिए ईस्ट एमसीडी को 175, नार्थ एमसीडी को 344 और साउथ एमसीडी को 227 करोड़ रुपए दिए हैं।"
शिक्षकों से अपील करते हुए कहा कि, "दिल्ली सरकार ने आपके अक्टूबर तक के वेतन का पैसा एमसीडी को दे दिया है, लेकिन भाजपा आपको सैलरी नहीं दे रही है।"
उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता से सवाल किया कि, "जब दिल्ली सरकार ने सैलरी का पैसा दे दिया है, तो आज तक शिक्षकों को सैलरी क्यों नहीं दी गई, वो सारा पैसा किसने खाया? दिल्ली की जनता पूछना चाहती है कि जो पैसा दिल्ली सरकार ने एमसीडी को जारी किया था वह किसकी जेब में गया?"
-- आईएएनएस
लखनऊ , 2 नवम्बर | उन्नाव से कांग्रेस की सांसद रहीं अन्नू टंडन ने सोमवार को समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस दौरान कहा कि सपा इस समय अकेले ही भाजपा के साथ बसपा का भी मुकाबला कर रही है। ये दोनों आपस में मिले हैं। उन्होंने कहा कि आज ही बसपा की मुखिया ने इस बारे में सफाई दी है। अखिलेश यादव ने कहा कि, पूर्व कांग्रेस सांसद अनु टंडन के सपा में शामिल होने पर मैं उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं और अभिनंदन करता हूं। इनके साथ बड़ी संख्या में आए साथी सहयोगियों का भी मैं स्वागत करता हूं। समाजवादी पार्टी का प्रदेश में कोई विकल्प नहीं है। पार्टी भाजपा के साथ बसपा का भी मुकाबला कर रही है। यह दोनों आपस में मिले हैं।
अखिलेश यादव ने कहा कि बसपा का मुकाबला समाजवादी पार्टी से है और भाजपा का मुकाबला भी समाजवादी पार्टी से ही है। इससे तो साफ ही पता चल जाता है कि कौन-कौन आपस में मिले हैं और कौन सत्ताधारी दल के साथ मुकाबला कर रहा है।
अखिलेश यादव ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार गरीबों, दलितों और पिछड़ों का जितना नुकसान कर रही है उतना कभी किसी ने नहीं किया। जनता भाजपा से नाराज है और आने वाले उपचुनाव में जनता का गुस्सा नजर आएगा और पता चल जाएगा कि जनता क्या चाहती है।
यादव ने कहा कि हमारी किसी से भी दुश्मनी नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में हमने भाजपा को रोकने के लिए गठबंधन किया था। हमने यहां पर उन्हें कमजोर किया। अब बसपा ये कह रही है कि हमने उन्हें धोखा दिया।
सपा मुखिया ने कहा कि यूपी में 2022 में चुनाव होने हैं लेकिन बसपा व भाजपा, समाजवादी पार्टी को विधान परिषद चुनाव हराना चाहती हैं इसका क्या कारण है, मुझे पता नहीं। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश की कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। जनता भाजपा से परेशान हो चुकी है। मुझे खुशी है कि अन्य दलों से नए साथी आ रहे हैं और सपा को मजबूत कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने कांग्रेस में कारपोरेट कल्चर को लाने वाली अन्नू टंडन को जमीनी नेता बताया। अन्नू टंडन के साथ उन्नाव के उनके समर्थक भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
जब अन्नू टंडन से कांग्रेस के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अब वह समाजवादी पार्टी में हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के बारे में उन्होंने कहा कि उनके साथ काम करने का अधिक मौका नहीं मिला। वह तो पार्टी में दो वर्ष पहले ही आई हैं, इसलिए उनके बारे में अधिक नहीं बता सकती हूं।
उन्होंने कहा कि मेरे सपा में शामिल होने का कारण अखिलेश यादव खुद हैं। उन्होंने अपनी सरकार में जितना काम किया उससे ज्यादा करना संभव नहीं था। अखिलेश फिर से मुख्यमंत्री बनें यही मेरा मकसद है।
कांग्रेस छोड़ने के बारे में उन्होंने कहा कि मैंने करीब 15 वर्ष कांग्रेस में गुजारे हैं और मुझे राहुल गांधी व सोनिया गांधी से भरपूर स्नेह मिला है, लेकिन मैं 2019 के बाद से निराश थी जिसके बाद मैंने तय किया कि अब जनता के लिए काम करना है तो कांग्रेस छोड़ना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूपी में कांग्रेस का संगठन अभी इतना मजबूत नहीं है कि भाजपा का सामना कर सके।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 2 नवंबर | सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र से भगोड़े कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि ब्रिटेन में कुछ कानूनी कार्यवाही अभी भी लंबित है, जिससे माल्या के प्रत्यर्पण में देरी हो रही है।
शीर्ष अदालत ने मामले में एक संक्षिप्त सुनवाई के बाद मामले को जनवरी के तीसरे सप्ताह तक स्थगित कर दिया।
न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि 31 अगस्त के आदेश में विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट का हवाला दिया कि माल्या मामले में कुछ कानूनी कार्यवाही ब्रिटेन में लंबित है। इस पर माल्या के वकील से जवाब मांगा गया। ई.सी. अग्रवाल द्वारा एक आईए दायर किया गया है, माल्या के वकील इस मामले से मुक्त होना चाहते हैं। न्यायाधीश ललित ने आगे कहा कि उनकी अर्जी खारिज कर दी गई है और अग्रवाल ही आरोपी के लिए वकील बने रहेंगे।
न्यायमूर्ति ललित ने मेहता से कहा, "माल्या के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया कब पूरी होगी? इसकी कोई समय सीमा है?"
मेहता ने जवाब दिया कि लंदन में भारतीय उच्चायोग से इस संबंध में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है।
छह अक्टूबर को, गृह मंत्रालय (एमएचए) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ब्रिटेन के गृह कार्यालय ने सूचित किया है कि इस मामले में एक कानूनी मुद्दा है, जिसे विजय माल्या के प्रत्यर्पण से पहले हल करने की जरूरत है।
एक हलफनामे में गृह मंत्रालय ने कहा कि माल्या का भारत में आत्मसमर्पण 28 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। मंत्रालय ने शीर्ष अदालत को बताया कि हालांकि यूके होम ऑफिस ने कहा है कि आगे एक कानूनी मुद्दा है, जिसे प्रत्यर्पण होने से पहले हल करने की जरूरत है।
हलफनामे में कहा गया है, "ब्रिटेन पक्ष ने आगे कहा है कि यह मुद्दा बाहर (आउटसाइड) और प्रत्यर्पण प्रक्रिया से अलग है, लेकिन इसका प्रभाव यह है कि ब्रिटेन के कानून के तहत प्रत्यर्पण तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि इसे हल न किया जाए।"
मंत्रालय ने कहा कि ब्रिटेन ने यह भी सूचित किया है कि यह अलग कानूनी मुद्दा प्रकृति में न्यायिक और गोपनीय है।
इससे पहले, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण का मामला समाप्त हो चुका है, लेकिन ब्रिटेन में इस मामले में कुछ गोपनीय कार्यवाही चल रही है, जिसकी जानकारी भारत को भी नहीं दी गई है। केंद्र ने कहा था कि माल्या के प्रत्यर्पण में देरी की जा रही है।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया था कि ब्रिटेन की शीर्ष अदालत ने प्रत्यर्पण का आदेश दे दिया था, लेकिन इस पर अमल नहीं हो रहा है। कुछ गुप्त कार्यवाही हो रही है, जिसके बारे में भारत सरकार को भी अवगत नहीं कराया गया है। भारत सरकार को न तो कोई जानकारी दी गई है और न उसे पक्षकार बनाया गया है।
पीठ ने माल्या के वकील से कहा कि वे इन गोपनीय कार्यवाहियों की प्रकृति के बारे में अदालत को सूचित करें।
पिछली सुनवाई में अदालत ने माल्या के वकील से पूछा था कि उनके मुवक्किल इस केस में कब पेश हो सकते हैं। अदालत ने पूछा कि लंदन में चल रही प्रत्यर्पण की कार्यवाही कहां तक पहुंची है। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि अभी मामले में क्या-कुछ हो रहा है और प्रत्यर्पण में क्या रुकावट है। इस पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालत दे चुकी है, लेकिन इस पर अमल नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा माल्या के प्रत्यर्पण में कुछ कानून कार्यवाही भी लंबित है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 2 नवंबर | कोविड-19 वैक्सीन की 60 करोड़ खुराकों के प्री-ऑर्डर के लिए भारत ने अपनी विनिर्माण क्षमता का लाभ उठाया है। साथ ही 1 अरब और खुराकों के लिए बातचीत चल रही है। यह बात एडवांस मार्केट कमिटमेंट (एएमसी) के वैश्विक विश्लेषण में कही गई है। यदि इन वैक्सीन को उस समय के दौरान उपयोग करने की मंजूरी मिल जाती है, तो 130 करोड़ की आबादी वाले देश की 50 फीसदी लोगों के लिए इतनी खुराक पर्याप्त होंगी, क्योंकि अभी ज्यादातर कोरोना वैक्सीन उम्मीदवारों के लिए कहा जा रहा है कि हर व्यक्ति को इनकी दो खुराक की जरूरत होगी।
अमेरिका की ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर द्वारा किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि कोवैक्स और अन्य अलायंस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए टीकों का समान आवंटन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण हैं।
मौजूदा मॉडलों के मुताबिक 2024 तक दुनिया की पूरी आबादी को देने के लिए पर्याप्त टीके नहीं होंगे, ऐसे में कम आय वाले देशों को वैक्सीन पाने में मुश्किल होगी। हालांकि, विश्लेषण से पता चला है कि भारत ने संभावित कोविड-19 वैक्सीन की जितनी खुराकों का ऑर्डर दिया है, वह अमेरिका से कम है। क्योंकि उसके 81 करोड़ डोज के लिए सौदे कर लिए हैं और 1.6 अरब खुराकों के लिए बातचीत कर रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत सहित कई मध्यम आय वाले देशों में भी वैक्सीन विकसित करने का काम तेजी से चल रहा है।"
कुल मिलाकर, विश्लेषण से पता चलता है कि भले ही कोई भी वैक्सीन उम्मीदवार बाजार में उतारने के लिए अप्रूव नहीं हुआ है, लेकिन उनकी खरीदी के लिए 3.8 अरब खुराकों के ऑर्डर हो चुके हैं और अन्य 5 अरब खुराकों के लिए बातचीत चल रही है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 2 नवंबर| राजस्थान में गुर्जर आंदोलन मद्देनजर रेलवे ने तीन ट्रेनों को रद्द कर दिया है और 29 ट्रेनों का रूट डायवर्ट कर दिया है। मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, कोटा-हजरत निजामुद्दीन, देहरादून-कोटा और हजरत निजामुद्दीन-कोटा ट्रेनें को रद्द की गई हैं।
गुर्जर समुदाय के सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर राजस्थान में रेलवे पटरियों को अवरुद्ध कर दिया है। वहीं इस विरोध के चलते दिल्ली-मुंबई रूट पर ट्रेनों को रोक दिया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 2 नवंबर| सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और अन्य वकीलों से कहा कि लैंगिक संवेदनशीलता और यौन अपराधों के आरोपियों को जमानत देते समय जिस तरह की शर्तों को निर्धारित करने की जरूरत है, उन्हें सुधारने के तरीकों की सिफारिश करें। शीर्ष अदालत का आदेश ऐसे मामले में आया, जिसमें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक कथित छेड़छाड़ करने वाले को पीड़िता से मिलने और राखी बंधवाने का आदेश दिया था।
मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने एजी और सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे, महिला वकीलों का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट संजय पारिख से ऐसे मामलों में दिशा-निर्देश निर्धारित करने में मदद करने के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे पूछा कि यौन अपराध के मामलों में आरोपी को जमानत देते समय किस तरह की जमानत शर्ते लागू होनी चाहिए।
इससे पहले, वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति ए.एम. खानविल्कर की अध्यक्षता वाली एक पीठ के सामने कहा कि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों और उच्च न्यायालयों को भी लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में समझाने की जरूरत है। उन्होंने ये भी कहा कि शीर्ष अदालत में लैंगिक संवेदनशीलता और शिकायत निवारण समिति भी मौजूद है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, एटॉर्नी जनरल (एजी) ने कहा कि "यह सब नाटक है और इसकी निंदा करने की आवश्यकता है।"
पीठ ने पूछा, "क्या आप अपनी दलील के साथ एक नोट सर्कुलेट कर सकते हैं।"
एजी ने लैंगिक संवेदनशीलता पर कार्यक्रम आयोजित करने वाले राष्ट्रीय और राज्य न्यायिक अकादमियों के अलावा इस मुद्दे पर न्यायाधीशों के लिए भी परीक्षा का सुझाव दिया।
एजी ने कहा, "इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत के फैसले को राज्य सूचना प्रणाली पर रखा जाना चाहिए, जो अधीनस्थ अदालतों में जाएगा।" (आईएएनएस)
कडप्पा (आंध्र प्रदेश), 2 नवंबर| आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले में हुए एक सड़क हादसे में उस वक्त चार लोगों की मौत हो गई, जब इनकी गाड़ी एक डम्पर ट्रक से जा टकराई। इस हादमें चार लोग जलकर मर गए, जबकि दो की हालत नाजुक है। तमिलनाडु के इन निवासियों को लाल चंदन तस्कर गिरोह के सदस्य माना जा रहा है। कडप्पा के पुलिस अधीक्षक केकेएन अन्बुराजन ने आईएएनएस को बताया, "अब तक चार लोगों की मौत हो गई है, जबकि दो अन्य गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं।"
कडप्पा, विजयवाड़ा से 374 किमी दक्षिण पश्चिम में है।
हादसे की चपेट में आए ये सभी लोग दो वाहनों में सवार थे। तड़के साढ़े तीन बजे वल्लूर मंडल अधिकार क्षेत्र में हाईवे पर इनकी गाड़ियां एक ट्रक से जाकर भिड़ गईं।
इस दौरान, एक स्पोर्ट यूटिलिटी व्हीकल के ट्रक के ईंधन टैंक से टकरा जाने के चलते तीनों ही वाहनों में आग लग गई।
अन्बुराजन ने पीड़ितों की पहचान के बारे में कोई खुलासा नहीं किया है, लेकिन पुष्टि की है कि वे तमिलनाडु से थे।
उन्होंने कहा, "हमने कुछ लोगों को राउंड अप किया है। आगे की जांच जारी है।" (आईएएनएस)
-सर्वप्रिया सांगवान
ऐसा ही एक कोचिंग हब मोतिहारी के चांदमारी में देखने को मिला जहां हर दूसरा घर एक कोचिंग संस्थान लगता है. लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद हैं लेकिन कोचिंग चल रही हैं.
वहीं, इस गांव के सरकारी माध्यमिक स्कूल में 1 से 8 कक्षा के लिए सिर्फ़ तीन कमरे हैं और इन्हीं कमरों में सब कक्षाएं ली जाती हैं.
एक स्थानीय व्यक्ति ने स्कूल दिखाते हुए कहा कि यहां दाख़िला लेने वाले 50 फ़ीसद से ज़्यादा बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं. अगर मां-बाप ग़रीब हैं तो पढ़ाई छूट जाएगी, वरना किसी प्राइवेट स्कूल या कोचिंग में एडमिशन दिला देते हैं.
बिहार सरकार ने अब हर पंचायत के एक माध्यमिक विद्यालय को बारहवीं तक किए जाने का फ़ैसला किया है. नीतीश कुमार ऐसे 3300 स्कूलों का उद्घाटन अगस्त महीने में कर चुके हैं. ये स्कूल भी उन्हीं स्कूलों में से एक है जिसे 12वीं तक किया गया है जबकि ये स्कूल अभी आठवीं तक पढ़ाने के लिए भी पर्याप्त नहीं.
शिक्षा के मामले में देखा जाए तो बिहार में लोग कहते हैं कुछ भी पर्याप्त नहीं और इसलिए नीति आयोग ने भी शिक्षा के मामले में बिहार को 20 राज्यों में से 19वां स्थान दिया है.
जो नीतीश कुमार अपने पहले कार्यकाल में शिक्षा सुधारों को लेकर भरोसा पैदा कर रहे थे, आख़िर क्यों उनके तीसरे कार्यकाल के अंत तक शिक्षा व्यवस्था के और बिगड़ने का आरोप लगने लगा?
कब से नहीं बदली बिहार की तस्वीर
बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर जब भी बात होती है तो एक तस्वीर दिमाग़ में उभर कर आती है. तस्वीर जिसमें एक बोर्ड परीक्षा के दौरान स्कूल के कमरे की अलग-अलग खिड़कियों पर लोग चढ़कर नक़ल करवा रहे हैं. ये तस्वीर वैशाली के महनार में एक स्कूल की है जिसे इंडियन एक्सप्रेस के लिए प्रशांत रावी ने खींचा था.
इसी तस्वीर का दूसरा सच ये भी था कि इस स्कूल में 1700 बच्चे पढ़ते थे जिनके लिए पाँच कमरे दिए गए थे और सिर्फ़ दो शिक्षक.
ये तस्वीर थी 2015 की. अब बात करते हैं 2020 की.
किशनगंज के टेढ़ागाछ प्रखंड का मॉडल प्लस टू हाई स्कूल. ये स्कूल बना 1962 में. पहले ये आठवीं तक था. 2013 में इसे बारहवीं तक किया गया.
प्रखंड का ये एकमात्र हाई स्कूल है जबकि इस प्रखंड में तक़रीबन दो लाख लोग रहते हैं.
इसी स्कूल से पढ़े रब्बानी स्कूल दिखाते हुए बताते हैं, "मैं दसवीं क्लास तक यहीं पढ़ा हूं, अब पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा हूं, लेकिन तबसे लेकर अब तक इस स्कूल में कोई बदलाव नहीं आया. इस स्कूल में दो हज़ार छात्र पढ़ते हैं लेकिन सिर्फ़ 15 शिक्षक हैं."
इसी इलक़े में रहने वाले नफ़ीस आलम ने बताया कि वे कोचिंग में ही पढ़ते हैं जिसकी फ़ीस 500 रूपए महीना है.
"टेढ़ागाछ प्रखंड में 40-50 कोचिंग क्लास चलती हैं. यहां बिना कोचिंग कोई पास कर ही नहीं सकता."
कोचिंग क्लास में पढ़ते बच्चे
पूरे टेढ़ागाछ ब्लॉक में सिर्फ़ एक स्कूल है जो बारहवीं तक है. पूरे किशनगंज में ही कुल पाँच सरकारी स्कूल हैं जहां 12वीं की पढ़ाई की जा सकती है.
इसी स्कूल के सामने एक महिला छात्रावास की इमारत चार-पाँच साल पहले ही बनकर तैयार हो चुकी है लेकिन कई सालों से इसका उद्घाटन ही नहीं हो पाया और इसलिए ये अब तक ख़ाली पड़ी है.
किशनगंज के ही बेलवा गांव से गुज़रते हुए एक स्कूल की बिल्डिंग के बाहर कई साइकलें खड़ी दिखीं. लॉकडाउन के बाद स्कूल तो पूरी तरह खोले नहीं गए हैं. लेकिन इस सरकारी स्कूल में दो कोचिंग क्लास चल रही थी.
किशनगंज के बेलवा का सरकारी स्कूल जहां कोचिंग क्लास चलती हैं.
एक क्लास में संस्कृत की कोचिंग दे रहे थे महेश कुमार. दूसरी क्लास में उर्दू की कोचिंग दे रहे थे ज़ाहिद आलम. ये दोनों युवा अपनी पढ़ाई के लिए भी कोचिंग जाते हैं.
ये एक सरकारी स्कूल था जहां कोई पक्का फ़र्श नहीं था और छत मानो कभी भी टूट कर गिर सकती है. लेकिन इन्हीं दो शिक्षकों से पता चला कि लॉकडाउन से पहले ये स्कूल चल रहा था.
इस स्कूल में शौचालय के नाम पर सिर्फ़ एक जगह है जहां कूड़ा-करकट पड़ा है. इतनी बड़ी ज़मीन पर ये सरकारी स्कूल साल 1980 से चल रहा है. 40 सालों से इस स्कूल में मूलभूत सुविधा तक मुहैया नहीं करवाई जा सकी हैं.
संजय कुमार पब्लिक एजुकेशन सिस्टम को दुरूस्त करने के लिए जन शिक्षा अभियान चलाते हैं. वे ख़ुद भी बिहार के सरकारी स्कूल से पढ़े हैं.
संजय कुमार बताते हैं, "जब बिहार के सरकारी स्कूल में पढ़ता था, तब भी शौचालय नहीं थे, आज भी नहीं है. उस वक़्त लाइब्रेरी नहीं होती थी, आज भी नही है. प्लेग्राउंड की स्थिति देखिए. साइंस की पढ़ाई के लिए प्रयोगशालाएं नहीं हैं. जहां मैंने पढ़ाई की है वहां चार साल से आज की तारीख़ में 11वीं-12वीं के लिए सिर्फ़ म्यूज़िक के टीचर हैं. दूसरे हाई स्कूलों में 11-12 के लिए सिर्फ़ संस्कृत के टीचर हैं. बच्चों ने सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए स्कूलों में नाम तो लिखवा लिया है लेकिन वे कोचिंग जाकर पढ़ रहे हैं."
लेकिन क्या इसके पीछे शिक्षकों की उदासीनता है या उनकी कमी होना या दोनों ही?
हर स्तर पर शिक्षकों की कमी
इसी साल सितंबर में लोकसभा में शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने अपने एक जवाब में बताया कि बिहार में तक़रीबन 40 फ़ीसद शिक्षकों के पद ख़ाली पड़े हैं यानी बिहार में पौने तीन लाख शिक्षकों की कमी है.
नियुक्ति के लिए परीक्षाएं भी हुई हैं लेकिन किसी परीक्षा का परिणाम नहीं आया और किसी का परिणाम आने के बावजूद नियुक्ति नहीं हुई.
जैसे 2017 में बिहार शिक्षा विभाग ने शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी टीईटी करवाया. 94 हज़ार लोगों ने परीक्षा दी लेकिन अभी तक नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं.
जनवरी 2020 में माध्यमिक शिक्षा पात्रता परीक्षा यानी एसटीईटी के लिए परीक्षा हुई. लेकिन इस परीक्षा का अभी परिणाम ही नहीं आया है.
जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे तो उस वक़्त 12वीं के नंबरों के आधार पर शिक्षामित्रों की बहाली की गई.
उसके बाद नीतीश सरकार ने 2006 में नियोजित (अस्थायी) शिक्षकों की भर्ती 12वीं और ग्रेजुएशन के आधार पर की. उसके बाद 2009 में भी नियोजित शिक्षक भर्ती किए गए.
बिहार शिक्षा आंदोलन संयोजन समिति के लिए काम करने वाले नवेंदु प्रियदर्शी बताते हैं, "2006 और 2009 में जब बहाली हुई तो न्यूनतम योग्यता के लिए परीक्षा तक नहीं हुई. बहुत से लोग ऐसे बहाल हुए जो सिर्फ़ बीए पास थे. उससे पहले 1990 से लेकर 2005 के बीच में जो परीक्षाओं का हाल रहा, वो देश भर में चर्चा का विषय बना. नक़ल से लोग फ़र्स्ट डिवीज़न ला रहे थे. फिर इन्हीं डिग्रियों के आधार पर नीतीश कुमार ने शिक्षक बहाल किए."
नवेंदु बताते हैं कि जब साल 2014 में शिक्षक भर्ती के लिए परीक्षा ली गई तब फ़िज़िक्स के सात शिक्षक ही पास हो सके. इसलिए फ़िज़िक्स के अध्यापकों की रिक्तियां नहीं भरी जा सकीं.
"कई विद्यालय हैं जहां साइंस की पढ़ाई तो होती है लेकिन गणित और फ़िज़िक्स के शिक्षक ही नहीं है."
15 साल से सिस्टम में हैं अप्रशिक्षित लोग
इन अप्रशिक्षित शिक्षकों की भर्तियों के लिए ट्रेनिंग करना भी अनिवार्य किया गया.
लेकिन इतने बड़े स्तर पर भर्तियां हुई थीं कि लंबे वक़्त तक ट्रेनिंग नहीं मिल सकी.
शिक्षाविद् अभय कुमार कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2019 में अल्टीमेटम दिया था कि सभी शिक्षकों की ट्रेनिंग सुनिश्चित कीजिए. तो आप सोचिए 2005 में जो भर्तियां हुई हैं उनमें से 2020 तक भी सभी की ट्रेनिंग नहीं हुई है. ये सोचने वाली बात है कि अगर 15 साल तक कोई शिक्षक बिना ट्रेनिंग सिस्टम में रहेगा तो क्या होगा."
शिक्षकों को ट्रेनिंग करवाने की बात तो लगातार की जाती रही लेकिन इन ट्रेनिंग कॉलेजों की हालत ऐसी है कि उनकी मान्यता रद्द हो रही है.
हाल ही में बिहार के सहरसा ज़िले में एकमात्र सरकारी टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी गई है.
नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही कॉमन स्कूल सिस्टम कमीशन का गठन किया और इस आयोग ने 2007 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी.
इस आयोग के बहुत से सुझाव 2020 तक भी लागू नहीं हो पाए हैं और उनमें शिक्षकों से संबंधित सुझाव लागू करना अभी दूर की कौड़ी है.
इस आयोग के सुझावों में कहा गया था कि सभी अस्थायी शिक्षकों को स्थायी और प्रशिक्षित शिक्षकों से बदला जाए. शिक्षकों के पदों को तय वक़्त में भरना और किसी भी समय 10 फ़ीसद से ज़्यादा शिक्षकों के पोस्ट ख़ाली नहीं होने चाहिए. शिक्षकों को रिसर्च के लिए बढ़ावा देना चाहिए. सभी शिक्षकों की बेसिक तनख़्वाह इतनी होनी चाहिए कि वे एक गरिमापूर्ण ज़िंदगी जी सकें. महंगाई के साथ उनकी तनख़्वाह भी बढ़ सके.
लेकिन 2009 से ही नियोजित शिक्षक अपने वेतन को लेकर सरकार से लड़ रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें स्थायी शिक्षकों के समान ही वेतन दिया जाए.
ये मामला पटना हाईकोर्ट भी पहुँचा और कोर्ट ने शिक्षकों के हक़ में फ़ैसला दिया. लेकिन बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई और बताया कि क्यों समान वेतन नहीं दिया जा सकता है.
सरकार ने बताया कि शिक्षकों की तनख़्वाह का बजट हर साल 8924 करोड़ रूपए का है. अगर इन नियोजित शिक्षकों की तनख़्वाह राज्य के स्थायी शिक्षकों जितनी कर दी जाएगी तो सरकार का बजट 18,854 करोड़ हो जाएगा. सरकार ने कहा कि इसके अलावा रिक्त पदों को भरने के लिए भी बजट की ज़रूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला बिहार सरकार के हक़ में दिया. अगर पटना हाईकोर्ट का फ़ैसला लागू होता तो नियोजित शिक्षकों का वेतन कम से कम 27 हज़ार रूपए हो जाता. यानी शिक्षक आज की तारीख़ में इससे भी कम वेतन पा रहे हैं.
राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव में वादा किया है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन दिया जाएगा. लेकिन बजट को लेकर जो नीतीश सरकार ने कोर्ट में कहा, उसके मद्देनज़र किस तरह इन वादों को कोई भी पार्टी पूरा कर पाएगी?
विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बिहार सरकार ने नियोजित शिक्षकों की बेसिक तनख़्वाह 15 फ़ीसद बढ़ाने की घोषणा की जो 2006 से नियुक्त हैं. सरकार इनके पीएफ़ में भी योगदान देगी लेकिन ये 1 अप्रैल 2021 से लागू होगा.
एक स्कूल ऐसा भी...
सरकारी शिक्षकों की योग्यता और स्कूलों की बदहाली पर उठ रहे सवालों के बीच कुछ अच्छे उदाहरण भी हैं.
एक ऐसा स्कूल जहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, हर बच्चे के लिए वर्दी अनिवार्य है, शिक्षकों के लिए स्कूल का आई-कार्ड पहनना ज़रूरी है, प्रधानाचार्य के दफ़्तर में सभी शिक्षकों की लिस्ट लगी है, एक डिब्बे में साबुन बैंक बनाया गया है और एक डिब्बे में लड़कियों के लिए पैड बैंक. कुल मिलाकर स्कूल को अच्छी तरह मेंटेन किया गया है.
ये कोई प्राइवेट स्कूल नहीं, बल्कि बिहार के सुपौल ज़िले का एक माध्यमिक विद्यालय है.
यहां प्रधानाचार्य राजेश कुमार तो मौजूद नहीं थे लेकिन उनके पीछे वहां मौजूद सभी शिक्षक उनकी तारीफ़ करते हैं.
साइंस टीचर पूनम कुमारी यहां 2005 से पढ़ा रही हैं और वे कहती हैं कि इस स्कूल में जो भी अच्छा बदलाव है वो दो साल पहले प्रधानाचार्य के आने के बाद हुआ है.
पूनम कुमारी ने अपना एडमिशन रजिस्टर भी दिखाया और कहा कि जुलाई से अक्तूबर के बीच स्कूल के शिक्षकों ने क्षेत्र में जाकर 245 नए छात्रों का एडमिशन किया है और अब प्राइवेट स्कूलों से भी कुछ बच्चे यहां दाख़िला ले रहे हैं.
स्कूल तो लॉकडाउन की वजह से बंद था लेकिन शिक्षक काफ़ी प्रोत्साहित नज़र आ रहे थे. शिक्षकों की 'निष्ठा' ट्रेनिंग हो रही है, स्कूल में बच्चों के एडमिशन करने की मुहिम चलाई जा रही है.
एक ख़ास बात ये भी कि इस स्कूल में शौचालय भी नए प्रधानाचार्य के आने के बाद ही बन पाया है.
2005 से काम कर रहीं इन महिला शिक्षकों से जब पूछा कि वे उससे पहले कैसे मैनेज कर पा रही थीं तो उन्होंने कहा कि बस घर की ओर भागते थे.
मगर इन सबके बीच अब भी बच्चे दरी पर बैठ कर पढ़ते हैं. 800 की क्षमता वाले स्कूल में प्रधानाचार्य को मिलाकर केवल 12 शिक्षक हैं.
ये शिक्षक बताते हैं कि अभिभावक अंग्रेज़ी मीडियम की वजह से अपने बच्चों को प्राइवेट में भेजना पसंद करते हैं और इसलिए सरकार को कुछ स्कूलों को अंग्रेज़ी मीडियम में तब्दील कर देना चाहिए.
हालांकि इन चुनावों में बीजेपी उच्च शिक्षा को भी हिंदी माध्यम में किए जाने का वादा कर रही है.
माध्यमिक विद्यालय बलुआ बाज़ार के प्रधानाचार्य का दफ्तर
नीतीश सरकार ने स्कूलों के लिए कुछ योजनाएं शुरू की हैं जैसे 75 फ़ीसद हाज़िरी पूरी करने वाले छात्र/छात्रा को स्कॉलरशिप मिलती है. पहली से चौथी कक्षा वाले को 600 रुपए, पाँचवी-छठी कक्षा वाले को 1200 रूपए और सातवीं-आठवीं के लिए 1800 रूपए.
इसके अलावा वर्दी और स्टेशनरी के लिए भी खाते में पैसा दिया जाता है.
समग्र विकास योजना के तहत मेंटेनेंस और विकास के लिए हर साल 75000 रूपए भी स्कूलों को दिया जाता है.
जिन छात्र-छात्राओं की हाज़िरी नवीं कक्षा में 75 फ़ीसद रही हो, उन्हें दसवीं में साइकिल दी जाती है. लड़कियों के लिए सेनेटरी नैपकिन के लिए भी हर महीने 150 रुपए दिए जाते हैं.
पटना विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रही डेज़ी नारायण कहती हैं कि नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में लगा कि नीतीश शिक्षा के लिए काम करना चाहते हैं, कई योजनाएं भी लेकर आए हैं. लेकिन अगर क्लास में पढ़ाई ना हो रही हो तो ये योजनाएं बेकार हो जाती हैं.
सहरसा के आरएम कॉलेज में छात्रों की भीड़ लगी थी. कोई दाख़िले के लिए आया था तो कोई अगले दिन होने वाली परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड लेने.
अलका मिश्रा ने बारहवीं में 73 फ़ीसदी नंबर हासिल किए हैं. वह अपनी मां के साथ मधेपुरा के सिंगारपुर गांव में रहती हैं और वहां से 3-4 घंटे दूर पड़ने वाले इस कॉलेज में दाख़िला लेने आई हैं.
सहरसा ज़िले का ये आरएम कॉलेज भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (बीएन मंडल) से जुड़ा है. वो विश्वविद्यालय जिसके लिए कहा जाता है कि यहां डिग्री एक-दो साल देरी से ही मिलती है.
लेकिन इसके बावजूद अलका यहां बीसीए कोर्स में क्यों दाख़िला लेने आई हैं?
वह बताती हैं, "मेरे पास ऑप्शन नहीं है. डिग्री लेट भी मिलती है तो भी यहीं लेना पड़ेगा एडमिशन. प्राइवेट में पढ़ने के लिए पैसे नहीं हैं."
अलका को इसी कॉलेज में रोज़ 3-4 घंटे का सफ़र करके आना होगा या उनके पास विकल्प है कि वह आस-पास कहीं किराए पर घर लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करें.
इसी कॉलेज में बीसीए में पढ़ने वाले छात्र ने बताया कि जून में उनका आख़िरी सत्र ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन आज वह अपने पाँचवे सत्र की परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड लेने आए हैं. लॉक़डाउन से पहले भी उनका सत्र पीछे ही चल रहा था.
वहीं, जब हम बीएन मंडल यूनिवर्सिटी के मुख्य कैंपस पहुँचे तो छात्र कहने लगे कि जबसे ये विश्वविद्यालय बना है तबसे ये भ्रष्टाचार से ही घिरा है.
एक छात्र नीरज कहते हैं, "यहां छात्रों को सही वक़्त पर परिणाम ही नहीं मिलता है. ये पच्चीसवें वाइस चांसलर आ चुके हैं लेकिन आज तक विश्वविद्यालय में अकादमिक कैलेंडर लागू नहीं हो सका है."
एक छात्र सारंग ने बताया कि 2013 के बाद 2019 में यहां पीएचडी के लिए प्रवेश परीक्षा हो सकी है.
कॉलेज के जनसंपर्क अधिकारी सुधांशु शेखर ने बताया, "यहां वर्कफ़ोर्स की बहुत कमी है. प्रोफ़ेसर, लेक्चरर के अलावा बाक़ी ग़ैर-शिक्षक स्टाफ़ की भी कमी है. प्रशासनिक समस्याएं अभी काफ़ी हैं. पेपर चेक करने में ग़लतियां हो जाती हैं और रिज़ल्ट कैंसिल करना पड़ता है."
विश्वविद्यालय के कैंपस में ही एक स्टाफ़ ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि 'साइंस विषय के सरकारी शिक्षकों की अपनी प्राइवेट कोचिंग चलती है. छात्र क्लास में नहीं आते बल्कि कोचिंग में जाते हैं. दूसरी ओर राज्य सरकार फ़ंड भी नहीं देती है. रिज़ल्ट लेट भी शिक्षकों की ग़लती की वजह से होता है क्योंकि ज्यादातर शिक्षक तो कॉपी जाँचने के लिए ही अयोग्य हैं.'
ये ग़ौर करने वाली बात है कि ये विश्वविद्यालय और इसके कॉलेज अब तक इसलिए चल रहे हैं क्योंकि यहां पढ़ने वाले ज़्यादातर छात्र ग़रीब हैं और पिछड़े इलाक़ों से आते हैं जो प्राइवेट कॉलेजों में या दूसरे शहरों में नहीं जा सकते.
लेकिन इसके बावजूद बिहार में 18 से 23 साल के सिर्फ़ 13 फ़ीसद छात्र ही बिहार में उच्च शिक्षा लेते हैं. ये संख्या पूरे देश में सबसे कम है. बिहार के साथ लगते राज्य झारखंड में ये 19 फ़ीसद है. ये बात ख़ुद शिक्षा मंत्रालय के साल 2019 के ऑल इंडिया हायर एजुकेशन सर्वे में सामने आई.
यूजीसी की वेबसाइट पर बिहार में 19 सरकारी विश्वविद्यालय हैं. इसके अलावा सात प्राइवेट विश्वविद्यालय.
उससे बड़ी बात ये है कि इन विश्वविद्यालयों में भी विषय के अनुरूप पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं.
पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नीतीश कुमार भी रहे, लालू प्रसाद यादव भी और रामविलास पासवान भी. लेकिन आज की तारीख़ में पटना विश्वविद्यालय में 50 फ़ीसद शिक्षकों की कमी है.
पटना विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफ़ेसर रह चुकी डेज़ी नारायण कहती हैं कि उनके रिटायर होने के बाद वहां इतिहास पढ़ाने के लिए सिर्फ़ एक ही शिक्षक हैं.
"एक ज़माना था कि नेपाल ये बच्चे यहां पढ़ने आते थे. कभी इतिहास विभाग में 24 शिक्षक हुआ करते थे. लेकिन आज पटना यूनिवर्सिटी में हर विभाग में शिक्षकों की कमी है. गेस्ट फ़ैकल्टी और एडहॉक टीचर लाकर पढ़ाई करवाई जा रही है. इस तरह तो उच्च शिक्षा नहीं चलती है."
वे कहती हैं, "बिहार के बच्चे आईएएस बनते हैं लेकिन वे बाहर जाकर तैयारी करते हैं, सरकार का क्या योगदान है उसमें. हर कोई आईएएस तो नहीं बन सकता है, तो बाक़ी लाखों छात्रों के लिए सरकार के पास क्या योजना है?"
चुनावों से पहले नीतीश सरकार ने 52 विषयों के लिए असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की 4638 वेकेंसी निकाली हैं. पटना कॉलेज से रिटायर हुए नवल किशोर चौधरी पूछते हैं कि ये पद सालों से ख़ाली हैं.
"10-20 साल में नियुक्ति हो रही है. 1996 के बाद 2003 में हुई. उसमें भी गड़बड़ी के आरोप लगे. उसके बाद अब चुनाव से पहले नियुक्ति की बात हो रही है."
नवेंदु प्रियदर्शी कहते हैं, "बिहार में दो दशक पहले सरकारी कॉलेजों के प्रति लोगों का झुकाव था. 5-7 कॉलेज बहुत नामी थे. पटना सांइस कॉलेज, लंगट सिंह कॉलेज, भागलपुर में मारवाड़ी कॉलेज था. उन दिनों इतने छात्र पढ़ने आते थे कि खिड़कियों पर बैठते थे. आज वहां कोई पढ़ाई नहीं होती. अब बस नाम दर्ज होते हैं, परीक्षा के वक़्त छात्र परीक्षा देने आ जाते हैं."
नवेंदु बताते है कि जिस समस्तीपुर कॉलेज में कुल शिक्षक 100 से ज़्यादा थे, आज वहां 15 शिक्षक हैं और विषय पढ़ाए जा रहे हैं 24. बेगुसराय के जीडी कॉलेज में दो साल पहले 22 हज़ार छात्र नामांकित थे लेकिन सिर्फ़ सात शिक्षक थे.
'बिहार की शिक्षा की हालत का ज़िम्मेदार मध्यम वर्ग भी'
इसी साल जनवरी में ही ये ख़बर कई अख़बारों में छपी कि गया ज़िले का एक स्कूल सिर्फ़ एक छात्रा को पढ़ाने के लिए चलता है. इस स्कूल के दो शिक्षक सिर्फ़ उसी को पढ़ाने के लिए आते हैं. देखा जाए तो ये ख़बर ख़ुशी भी देती है और हैरानी भी, लेकिन साथ ही एक सवाल भी खड़ा करती है कि 1972 से बने इस सरकारी स्कूल में बाक़ी बच्चे क्यों पढ़ने नहीं आते.
क्या ये बिहार के सरकारी सिस्टम में लोगों के गिरते विश्वास का एक उदाहरण है?
नवेंदु कहते हैं कि जिन लोगों को अच्छी शिक्षा के लिए माँग करनी चाहिए या आंदोलन करना चाहिए, उन लोगों को लगता है कि उनके बच्चों की व्यवस्था तो प्राइवेट ने कर दी है.
प्राइवेट स्कूल में इतना सुनिश्चित हुआ कि बच्चा नामांकित है, बैठने की व्यवस्था है, हर क्लास के लिए एक शिक्षक है. स्कूल वक़्त पर खुलता है और बंद होता है. इसके अलावा वहां क्या है, वो दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. लेकिन समस्या ये है कि सरकारी स्कूल इतना भी नहीं कर पाएं हैं.
वहीं संजय कुमार शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में आई गिरावट का ज़िम्मेदार मध्यम वर्ग को मानते हैं.
वे कहते हैं, "अर्थव्यवस्था डिमांड और सप्लाई पर चलती है. जैसे ही कोई प्राइवेट स्कूल खुला, मध्यम वर्ग के पास थोड़ा पैसा आने लगा और उसने अपने बच्चे को प्राइवेट में भेजना शुरू कर दिया. हम लोगों के वक़्त में कलेक्टर का बच्चा भी हमारे स्कूल में पढ़ता था. लेकिन धीरे-धीरे मध्यम वर्ग ने अपने आप को सरकारी सिस्टम से निकाला और प्राइवेट में जाना शुरू किया. सरकारी से माँग नहीं की. ये चरमराती व्यवस्था और चरमराती गई. इसलिए आज भी ये प्राथमिकता नहीं है सरकारों की."
कैग की ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि बिहार सरकार 2010-11 से लेकर 2015-16 के बीच 26,500 करोड़ का राइट टू एजुकेशन के तहत दिया बजट ख़र्च ही नहीं कर पाई.
हालांकि बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा कहते हैं कि पिछले पाँच साल में तो बिहार के शिक्षा सेक्टर में बड़ा बदलाव आया है. उन्होंने कहा कि वे शिक्षक, इंफ्रास्ट्रक्चर, साफ़-सफ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं और शिक्षा के बेहतरी के लिए 34, 798 करोड़ भी दिया है.
संजय कुमार कहते हैं कि इस वक़्त बिहार जनसांख्यिकी आपदा से गुज़र रहा है और ये मानव निर्मित है. इस वक़्त सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का जो हाल है उससे बिहार अकुशल वर्कफ़ोर्स ही बना रहा है.
सामाजिक आंदोलन से निकले बिहार के दो बड़े नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने अपने स्तर पर सामाजिक न्याय की राजनीति भी की. लेकिन सवाल ये है कि क्या सामाजिक न्याय बिना शिक्षा पहुँचाए पूरा हो सकता है? (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 2 नवंबर। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही वित्त मंत्रालय से हटाए गए पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शनिवार को कहा कि नई वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने उन्हें वित्त मंत्रालय से बाहर किया।
उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के साथ अच्छे संबंध नहीं थे, और इस कारण एक साल पहले उन्होंने समय से अपने पद से इस्तीफा देते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी।
गर्ग को जुलाई 2019 में वित्त मंत्रालय से बिजली मंत्रालय में स्थानातंरित किया गया था, जिसके बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) के लिए आवेदन किया था और उन्हें 31 अक्टूबर 2019 को कार्यमुक्त कर दिया गया।
वित्त मंत्रालय और सीतारमण के कार्यालय ने गर्ग के ब्लॉग पर टिप्पणी करने से इनकार किया।
गर्ग ने एक ब्लॉग में लिखा, ‘श्रीमती सीतारमण ने वित् मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के एक महीने के भीतर ही जून 2019 में वित्त मंत्रालय से मेरे स्थानांतरण पर जोर देना शुरू कर दिया।’
गर्ग ने लिखा कि वह सामान्य रूप से सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होते, लेकिन उन्हें वीआरएस लेना पड़ा। सामान्य स्थिति में उनका सेवाकाल आज (31 अक्टूबर 2020) समाप्त होता।
उन्होंने आगे कहा, ‘नई वित्तमंत्री के साथ मेरे अच्छे और परिणामदायक संबंध नहीं थे और मैं वित्त मंत्रालय के बाहर कहीं काम करना नहीं चाहता था।’
सीतारमण 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद वित्त मंत्री बनीं। इससे पहले वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली के साथ गर्ग के अच्छे संबंध थे, और गर्ग ने अपने ब्लॉग में उनकी तारीफ भी की है। हालांकि, नई वित्त मंत्री के साथ उनका वैसा तालमेल कायम नहीं रह सका।
गर्ग ने ब्लॉग में लिखा, ‘ऐसा लगा कि उन्हें मुझ पर भरोसा नहीं था। यह बहुत पहले ही साफ हो गया कि उसके साथ काम करना काफी मुश्किल होने वाला थाज् वह मेरे प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त थीं। वह मेरे साथ काम करने में सहज नहीं थीं।’’
गर्ग ने आगे कहा कि आरबीआई के आर्थिक पूंजीगत ढांचे, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की समस्याओं के समाधान के लिए पैकेज, आंशिक क्रेडिट गारंटी योजना और गैर बैंकों के पूंजीकरण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनके साथ गंभीर मतभेद भी सामने आने लगे।
उन्होंने आगे कहा, ‘जल्द ही हमारे व्यक्तिगत संबंधों में खटास आ गई, और साथ ही आधिकारिक कामकाजी संबंध भी काफी अनुत्पादक हो गए।’
गर्ग ने कहा कि ऐसे हालात में उन्होंने काफी पहले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सरकार के बाहर व्यापक आर्थिक सुधार के लिए काम करने का फैसला कर लिया था, हालांकि वह पांच जुलाई 2019 को पेश किए जाने वाले आम बजट की तैयारियों तक रुके रहे।
उन्होंने लिखा कि सीतारमण उन्हें पांच जुलाई 2019 को पेश किए जाने वाले आम बजट से पहले जून 2019 में ही स्थानांतरित करवाना चाहती थीं, हालांकि यह नहीं बताया कि सरकार ने उनकी यह मांग तुरंत क्यों नहीं मानी।
उन्होंने आर्थिक मामलों पर गहरी पकड़ और समझ के लिए पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की तारीफ की।
गर्ग ने यह भी कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय में तत्कालीन अतिरिक्त प्रधान सचिव पी के मिश्रा के साथ सीतारमण से उनके संबंधों के बारे में कुछ अवसरों पर चर्चा की थी।
उन्होंने कहा, ‘हम दोनों इस बात पर सहमत थे कि मेरे लिए सबसे बढिय़ा रास्ता यही होगा कि नई वित्त मंत्री को सुचारु रूप से काम करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाए। मिश्रा ने मुझे सरकार में या सरकार के बाहर किसी नियामक संस्था या कहीं और कोई काम चुनने की पेशकश की।’
पूर्व वित्त सचिव ने हालांकि मिश्रा को बताया कि उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का मन बना लिया है। (भाषा)
लखनऊ, 2 नवंबर| उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में मानव तस्करी रोधी इकाइयों (एएचटीयू) को पुलिस स्टेशनों के रूप में अधिसूचित किया है। राज्य में 35 जिलों में एएचटीयू हैं, जिनमें गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ और लखनऊ शामिल हैं।
पिछले महीने, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने शेष 40 जिलों में एएचटीयू स्थापित करने का आदेश जारी किया था।
इन सभी इकाइयों को अलग-अलग पुलिस स्टेशनों के रूप में विकसित किया जाएगा जो बच्चों और अन्य व्यक्तियों के बचाव और पुनर्वास की सुविधा प्रदान करेगा।
लखनऊ के एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि वर्तमान में, पुलिस और चाइल्डलाइन रेस्क्यू के लोगों को अधिकार क्षेत्र के मुद्दों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी, दो पुलिस स्टेशन क्षेत्राधिकार को लेकर एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करते हैं तो उन मामलों को एएचटीयू में एफआईआर दर्ज करने में सक्षम होगा जो प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाएंगे।
उन्होंने कहा, "इससे प्रक्रिया में आसानी होगी और टीम पीड़ितों की अच्छे से मदद कर सकेगी। अधिकांश जिलों में एएचटीयू में एक इंस्पेक्टर और दो सब-इंस्पेक्टर सहित आठ लोग हैं। हम आशा करते हैं कि टीम का आकार बढ़ेगा और नई पहल के बाद बुनियादी ढांचे को बढ़ाया जाएगा।"
सरकार ने प्रत्येक मौजूदा एएचटीयू के लिए 12 लाख रुपये और राज्य में नई इकाइयों को स्थापित करने के लिए 15 लाख रुपये की मंजूरी दी है।
गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि मनुष्य की तस्करी एक ऐसा अपराध है जो मानव को एक शोषणकारी स्थिति में डाल देता है जिसका उद्देश्य मुनाफा कमाना है। इस तरह के शोषण के कई रूप हो सकते हैं, उदाहरण के लिए वाणिज्यिक, यौन शोषण, बाल श्रम, जबरन श्रम, बंधुआ मजदूरी, आदि। (आईएएनएस)
नवनीत मिश्र
नई दिल्ली, 2 नवंबर | केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी एक बड़े मिशन में जुट गए हैं। यह मिशन है हिंदुस्तान में वल्र्ड क्लास के सौ बड़े टनलिंग कांट्रेक्टर और कंसल्टेंट तैयार करने का। इन कांट्रेक्टर और कंसल्टेंट के जरिए हिंदुस्तान को दुनिया में टनल निर्माण का नंबर वन एक्सपर्ट देश बनाने की तैयारी है। नितिन गडकरी के मुताबिक यह कार्य कठिन जरूर है मगर असंभव नहीं। इससे हिंदुस्तान पूरी दुनिया में टनल निर्माण के मार्केट पर कब्जा कर सकता है। नितिन गडकरी इस अभियान को एक बड़ा मिशन मानते हैं। अच्छे ट्रैक रिकार्ड वाले कांट्रेक्टर को बढ़ावा देने के लिए शर्तों में ढील जैसे कई उपाय भी मंत्रालय में शुरू हुए हैं।
एशिया की सबसे लंबी जोजिला टनल का निर्माण शुरू होने के बाद से उत्साहित केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि आने वाले वक्त में एक लाख करोड़ से अधिक के काम एनएचएआई को मिलने वाला है। देश में करीब 235 किलोमीटर टनल का निर्माण अभी होना है। टनल निर्माण एक बड़ी इंडस्ट्री के तौर पर देश ही नहीं दुनिया में उभर रही है।
गडकरी ने एसोचैम के प्रतिनिधियों से बीते 31 अक्टूबर को वार्ता के दौरान अपने खास प्लान को साझा किया था। उन्होंने कहा था, मैं अच्छा काम करने वाले हिंदुस्तान के सौ वल्र्ड क्लास के टनलिंग कांट्रेक्टर बनाना चाहता हूं। जो सिर्फ नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जाएं और वहां कम लागत में टनल बनाकर दिखाएं। इससे हिंदुस्तान टनल निर्माण सेक्टर में वल्र्ड के मार्केट को कैप्चर कर सकता है। मेरा यह मिशन कठिन है लेकिन असंभव नहीं है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का मानना है कि भारत में अपार इंजीनियरिंग टैलेंट हैं। साफ्टवेयर टेक्नोलॉजी में भी भारत अव्वल है। सबसे खास बात है कि भारत में बेहतर सुरक्षा उपायों का ध्यान रखते हुए भी कम लागत में टनल निर्माण होता है। तमाम खर्चें अन्य देशों के मुकाबले कम हैं। ऐसे में वल्र्ड की बेस्ट प्रैक्टिस को अपनाने हुए हिंदुस्तान, दुनिया का नंबर वन एक्सपर्ट देश बन सकता है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने कार्यकाल में कांट्रेक्टर की शर्तों में ढील देकर बड़े लोगों और कंपनियों का वर्चस्व तोड़ने की भी कोशिश की है। ताकि अच्छा काम करने वाले नए कांट्रेक्टर को बढ़ावा मिल सके। पहले टेक्निकल और फाइनेंशियल क्वालिफिकेशन ऐसी होतीं थीं कि उससे बड़ी कंपनियों को ही टेंडर में फायदा पहुंचता था। मगर शर्तों में ढील से अब सभी के लिए रास्ते खुले हैं। जिससे सभी कांट्रेक्टर को आगे बढ़ने के मौके मिल रहे हैं। (आईएएनएस)
चारु कार्तिकेय
राजस्थान में गुर्जर समुदाय से जुड़े लोगों ने उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग फिर से उठाई है. कई प्रदर्शनकारियों द्वारा ट्रेन की पटरियों पर बैठ जाने से रेल सेवाएं बाधित हो गई हैं.
गुर्जर समाज के लोग 2007 से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. उन्होंने पहले भी कई बार आंदोलन किए हैं, जिनमें कई बार स्थिति अप्रिय भी हो गई थी और हिंसा भी हुई थी. पूर्व में उनके लिए राज्य सरकार ने पांच प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा भी की है लेकिन इसे अदालतों में चुनौती दी गई है क्योंकि उसे लागू करने से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने देश में आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा लगाई हुई है. एक बार फिर प्रदर्शनों की शुरुआत करते हुए गुर्जर नेता विजय बैंसला ने कहा कि पिछले दो सालों में आरक्षण के बारे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनकी चार बार बातचीत हो चुकी है लेकिन अभी तक कुछ भी हुआ नहीं है.
उन्होंने कहा कि इसीलिए इस बार जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं उनका प्रदर्शन चलता रहेगा. बैंसला ने यह भी कहा कि एक तरफ तो बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार बैठे हुए हैं और दूसरी तरफ 25,000 नौकरियां अटकी हुई हैं, जिसकी वजह से युवाओं में बहुत गुस्सा है.
पूर्व में गुर्जर समाज के लिए राजस्थान सरकार ने पांच प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा भी की है लेकिन इसे अदालतों में चुनौती दी गई है क्योंकि उसे लागू करने से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होता है.
प्रदर्शनकारी भरतपुर जिले में पटरियों पर बैठ गए हैं जिससे दिल्ली-मुंबई राजधानी समेत कई विशेष ट्रेनों की सेवाओं पर असर पड़ा है. मीडिया में आई खबरों में यह भी कहा जा रहा है कि इस बार गुर्जर आंदोलन में दो धड़े हैं, जिनमें एक का नेतृत्व बैंसला कर रहे हैं तो दूसरे का हिम्मत सिंह गुर्जर नाम के एक दूसरे गुज्जर नेता.
हिम्मत सिंह वाले धड़े के प्रतिनिधियों की शनिवार को राज्य सरकार से बातचीत हुई. उन्होंने राज्य सरकार की कैबिनेट उप-समिति द्वारा सुझाए गए 14 बिंदुओं से सहमति जताई और आंदोलन स्थगित करने देने का आश्वासन दिलाया. लेकिन बैंसला वाले धड़े ने आंदोलन जारी रखा हुआ है और घोषणा की है कि इस बार आरक्षण लिए बिना आंदोलन खत्म नहीं होगा.
नई दिल्ली, 2 नवंबर। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तथा महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने महंगाई और मंदी को लेकर सरकार पर हमला करते हुए कहा है कि वह पूंजीपतियों को बढ़ावा दे रही है और किसानों तथा गरीबों को नजरअंदाज कर रही है।
श्री गांधी ने एक ट्वीट में तुकबंदी कर सरकार पर तंज करते हुए कहा देश के किसानों ने मांगी मंडी, प्रधानमंत्री ने उन्हें थमा दी भयंकर मंदी।
कांग्रेस नेता ने इस ट्वीट के साथ ही मंडी की एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा कि बिहार में किसानों ने सरकार के कृषि उत्पाद बाजार समिति-एपीएमसी जैसे सुधार वाले कदमो को नकार दिया है।
श्रीमती वाड्रा ने कहा, भाजपा का जनता को दीवाली का गिफ्ट -भयंकर महंगाई। भाजपा का अपने पूंजीपति मित्र को दीवाली गिफ्ट- 6 एयरपोर्ट। पूजीपतियों का साथ, पूंजीपतियों का विकास। (univarta.com )
सीटू तिवारी
सिवान से, 2 नवंबर| 31 मार्च 1997 को सिवान के जेपी चौक पर जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे चन्द्रशेखर के साथ भाकपा (माले) की ज़िला कमिटी के एक सदस्य श्याम नारायण यादव की भी हत्या हुई थी.
बिहार के सिवान ज़िले के जीरादेई के ठेपहां बारी टोला के श्याम नारायण यादव की पत्नी ज्ञानती देवी 23 साल बाद भी वो दिन याद करके सिहर उठती हैं.
दुबली पतली ज्ञानती देवी, अपने ही घर के सोफ़े पर बहुत सिमट पर बैठी थीं.
मैंने उनसे पूछा कि राजद और भाकपा (माले) के गठबंधन को वो किस नज़र से देखती हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, "तकलीफ़ तो बहुत है, लेकिन क्या कर सकते हैं. हत्या के वक़्त रमेश सिंह कुशवाहा (उस वक़्त भाकपा माले के प्रभावी नेता, अभी जेडीयू से मौजूदा विधायक) ने सरकार से मिल रहे दस हज़ार रुपये नहीं लेने दिए. कहा कि हम लोग हत्या का केस लड़ेंगे. लेकिन वो ख़ुद माले छोड़कर दूसरी पार्टी में निकल लिए."
Situ Tiwari
ठेपहां बारी टोला मे श्याम नारायण यादव के घर से तक़रीबन 20 किलोमीटर दूर सिवान शहर के खुरमाबाद इलाक़े में भाकपा (माले) का कार्यालय है. यहाँ 106 'शहीद साथियों' के नाम पर बैनर बना है, तो कुछ 'शहीदों' की तस्वीर दीवार पर लगी है.
ज्ञानती देवी
'सामंती ताकतों ने लड़वाया'
ज्ञानती देवी से इतर 40 साल की माया कुशवाहा के पास अपने तर्क हैं.
वे अमरजीत कुशवाहा की पत्नी हैं जो जीरादेई विधानसभा से भाकपा माले के उम्मीदवार हैं.
इंक़लाबी नौजवान सभा (इनौस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमरजीत कुशवाहा चिलमरवा काण्ड में बीते पाँच साल से जेल में हैं.
ऐसे में उनके प्रचार की कमान माया कुशवाहा ने संभाल रखी है.
माया बीबीसी से कहती हैं, "हमारी पार्टी बड़े लक्ष्य को सामने लेकर चल रही है. हमे रोज़गार, स्वास्थ्य, शिक्षा, राशन-किरासन की व्यवस्था और भूमि-सुधार करना है. वैसे भी राजद और माले के बीच जो लड़ाई थी, वो सामंती ताकतों ने लड़वाई थी. जो सब बीजेपी के लोग थे."
माया कुशवाहा के ठीक पीछे खड़े 'सम्राट अशोक क्लब' के मंटू कहते हैं, "इन दोनों का 'जुरडरार' (छोटा-मोटा) झगड़ा था, कोई राजनीतिक झगड़ा नहीं था."
लेकिन प्रचार के लिए आये वामपंथी नौजवानों में से कई दबी ज़ुबान में कहते हैं, "समझौता ऊपर के स्तर पर हुआ है. हम कैसे भूल जाएं कि कॉमरेड चंदू समेत हमारे लोगों को शहाबुद्दीन ने मरवाया. उनको माफ़ करने का सवाल ही नहीं."
शहाबुद्दीन (फ़ाइल फ़ोटो)
राजद और माले की अदावत
भाकपा (माले) की वेबसाइट पर छपे लेख 'सिवान, शहाबुद्दीन और सीपीआई (एमएल)' के मुताबिक़, "80 के दशक के आख़िरी वर्षों और 90 के दशक के शुरुआती वर्षों में पार्टी का उभार सिवान के दरौली ब्लॉक में शुरू हुआ. पार्टी दलित, पिछड़े भूमिहीनों की लड़ाई सामंती ताकतों के ख़िलाफ़ लड़ रही थी."
1990 के विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन जीरादेई से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते थे. बाद के विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन जहाँ जनता दल के टिकट पर जीरादेई से विधायक बने, वहीं माले के अमरनाथ यादव और सत्यदेव राम, जीरादेई के बगल की ही विधानसभा दरौली और मैरवा से जीते. बाद में शहाबुद्दीन ने 1996 में एमपी का चुनाव लड़ा और उनका संसद जाने का रास्ता साफ़ हो गया.
बिहार अराजपत्रित प्रारंभिक शिक्षक संघ के ज़िला अध्यक्ष और वाम राजनीति से जुड़े राकेश कुमार सिंह बताते हैं कि "सिवान के पश्चिमी क्षेत्र में भाकपा (माले) का जनाधार मज़बूत हो रहा था और शहाबुद्दीन का आतंक बढ़ रहा था जिसकी अवधि 1996 से 2005 तक मानी जा सकती है. शहाबुद्दीन ने डॉक्टर को फ़ीस कम रखने का दबाव बनाकर, ख़ुद दरबार लगाकर उसमें आने वाले 'फ़रियादियों' की समस्या सुलझाकर ख़ुद को 'रॉबिनहुड' के तौर पर स्थापित किया. साथ ही माले के भूमि संघर्ष से परेशान अगड़ी जातियों को भी मदद करके अपना आधार बनाया."
माले और राजद की इसी अदावत में पार्टी कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. यही वजह है कि सिवान में कभी 'कट्टर दुश्मन' रहे इन दोनों दलों की 'नई-नई दोस्ती' को बहुत दिलचस्पी से देखा जा रहा है.
Situ Tiwari
'जिनके यहाँ हत्या हुई, वो हमारे साथ'
कुशवाहा बहुल जीरादेई विधानसभा में अमरजीत कुशवाहा को जेडीयू की कमला कुशवाहा और बीजेपी से लोजपा में गए विनोद तिवारी टक्कर दे रहे हैं. दिलचस्प है कि जेडीयू ने अपने मौजूदा विधायक रमेश सिंह कुशवाहा का टिकट काटकर कमला कुशवाहा को टिकट दिया है.
जेडीयू के प्रखंड अध्यक्ष राजकुमार ठाकुर बीबीसी से कहते हैं, "आरसीपी सर ने शायद ये सोचकर उन्हें टिकट दिया क्योंकि वो शहीद चंद्रशेखर की दूर की रिश्तेदार और उसी गाँव बिंदूसर की हैं. बाकी पूरे बिहार में माले और राजद की दोस्ती और सिवान में दोस्ती दो अलग-अलग ध्रुव हैं."
वहीं बीबीसी से बातचीत में विनोद तिवारी और कमला कुशवाहा, दोनों ने ही राजद-माले गठबंधन पर तंज़ कसा. दोनों ने ही जीत का दावा करते हुए कहा, "जिन परिवार के लोगों की हत्या इन दोनों पार्टियों की दुश्मनी में हुई, वो हमें वोट करेंगे."
Situ Tiwari
अंधेरे में डूबा राजेन्द्र प्रसाद का पैतृक आवास
जीरादेई गाँव: विकास से दूर
जीरादेई भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद का गाँव है. गाँव तक जाने के लिए अच्छी सड़क है, मगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक आवास में दो महीने से बिजली नहीं है.
इस जगह की देखभाल कर रहे स्थानीय निवासी अरविन्द कुमार ने बीबीसी से कहा, "शिक़ायत गई हुई है, पर कुछ हुआ नहीं."
वहीं, इस गाँव के साव टोला जहाँ ज़्यादातर लोग मछली पकड़कर जीवन यापन करते हैं, वो राशन-कार्ड, शौचालय, स्वास्थ्य केन्द्र, पानी की कमी, नाली, स्कूल में पढ़ाई के अभाव की परेशानी झेल रहे हैं.
बीबीसी से बातचीत में साव टोला की कांति देवी, राम रति देवी, सुशीला देवी, टुनटुन साव ने कहा, "वोट आ गया है तो इस घड़ी नेता आ रहे हैं. मोटर गाना बजाते हुए आ रहे हैं. लेकिन हमको किसी तरह की सुविधा नेता लोगों ने नहीं दिलवाया. उलटा कोरोना में तो हमारी स्थिति और ख़राब हो गई."
जीरादेई के ही मुस्लिम बहुल गाँव के आदिल ख़ाँ ने 2014 में अपना ग्रैजुएशन पूरा कर लिया था.
Situ Tiwari
आदिल ख़ाँ
वे कहते हैं, "हमारे मुस्लिम समाज ने अपना नेता शहाबुद्दीन को चुना है. अब वो जहाँ रहेंगे, वोट भी हमारा वहीं जाएगा. बाकी तेजस्वी यादव ने कहा है कि सरकार बनने पर वो रोज़गार देंगे."
जीरादेई विधानसभा समेत पूरे इलाके की एक समस्या स्वास्थ्य सुविधा भी है.
राजद के कार्यकर्ता और रेपुरा गाँव के तस्लीम सिद्दीकी बताते हैं, "ज़्यादा बीमार होने पर या तो हम गोरखपुर मेडिकल कॉलेज जाते हैं या फिर पटना मेडिकल कॉलेज. दोनों ही हालत में मरीज़ जाते-जाते दम तोड़ देता है."
हालांकि सिवान के मैरवा में मेडिकल कॉलेज खुलने को मंजूरी मिल चुकी है.
सिवान ज़िले में आठ विधानसभा सीट हैं, जहाँ तीन नवंबर को चुनाव होना है.
इन आठ सीटों में से चार सीट राजद, तीन माले और एक कांग्रेस के खाते में आई है.
देखना होगा कि साहेब के नाम से इलाके में मशहूर, तिहाड़ जेल में बंद शहाबुद्दीन की अनुपस्थिति में राजद और भाकपा (माले) का ये राजनीतिक गठबंधन चुनावी जीत में तब्दील हो पाता है या नहीं? (bbc.com)
तिरुवनंतपुरम, 2 नवंबर| केरल की प्रियंका राधाकृष्णन ने सोमवार को न्यूजीलैंड में मंत्री के रूप में पद की शपथ ली। वे पहली भारतीय हैं जिन्होंने न्यूजीलैंड के मंत्रिमंडल में जगह पाई है। प्रधानमंत्री जैकिंडा अर्डर्न ने अपना नया मंत्रिमंडल बनाया है जिसमें प्रियंका राधाकृष्णन को शामिल किया है। 41 वर्षीय राधाकृष्णन ने सामुदायिक और स्वैच्छिक क्षेत्र मंत्री के रूप में शपथ ली है। वह चेन्नई में पैदा हुईं और सिंगापुर में पली-बढ़ी। उनके दादा कोच्चि में एक चिकित्सा पेशेवर थे और कम्युनिस्ट भी थे।
वह पढ़ाई करने के लिए न्यूजीलैंड आईं थी और 2004 से लेबर पार्टी के जरिए सक्रिय राजनीति में हैं। वह ऑकलैंड से दो बार सांसद रह चुकी हैं। पिछले ओणम के मौके पर वे अर्डर्न के साथ लाइव आईं और उन्होंने इस त्योहार की शुभकामनाएं दीं, इसके बाद से वे केरल के घर-घर में जानी जाने लगीं थीं।
राधाकृष्णन को मलयालम गीत बेहद पसंद है और उनके पसंदीदा गायक केरल के लोकप्रिय गायक येसुदास हैं। (आईएएनएस)
जयपुर, 2 नवंबर| राजस्थान सरकार ने कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर त्योहारी सीजन के दौरान पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इसने 16 नवंबर तक स्कूल और कॉलेज बंद रहने की भी घोषणा की। राज्य सरकार ने कहा कि पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय कोरोना संक्रमित रोगियों के स्वास्थ्य की रक्षा के साथ-साथ आम लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जो पटाखों से निकलने वाले धुएं से असहज महसूस कर सकते हैं। ।
पटाखों की बिक्री के लिए अस्थायी लाइसेंस पर प्रतिबंध की भी घोषणा की गई है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को कोरोनोवायरस स्थिति की समीक्षा करते हुए कहा कि इस चुनौतीपूर्ण समय में लोगों के जीवन की रक्षा करना सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, "शादियों और अन्य समारोहों में भी आतिशबाजी बंद कर दी जानी चाहिए।" उन्होंने कहा कि फिटनेस सर्टिफिकेट के बिना सड़कों पर चलने वाले वाहनों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
'अनलॉक-6' दिशानिर्देशों पर चर्चा के दौरान, प्रमुख सचिव (गृह) अभय कुमार ने कहा कि 16 नवंबर तक स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर सहित शैक्षणिक संस्थान बंद रहेंगे।
1 नवंबर से 30 नवंबर तक राज्य के लिए जारी किए गए नवीनतम दिशानिर्देशों में, यह तय किया गया है कि स्विमिंग पूल, सिनेमा हॉल, मल्टीप्लेक्स, मनोरंजन पार्क आदि पहले के आदेश के अनुसार 30 नवंबर तक बंद रहेंगे।
विवाह समारोह में मेहमानों की अधिकतम सीमा 100 होगी जबकि अंतिम संस्कार में 20 व्यक्तियों की सीमा लागू रहेगी। (आईएएनएस)
लखनऊ , 2 नवम्बर| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि कांग्रेस व सपा के लोग उनके बयान की गलत व्याख्या कर भ्रम फैला रहे हैं। यूपी में होने वाले एमएलसी चुनावों में बसपा, सपा को हराने के लिए भाजपा या किसी अन्य पार्टी का समर्थन करेगी। उन्होंने कहा कि हमने सपा के दलित विरोधी कार्यों के खिलाफ कड़ा रुख दिखाने के लिए यह निर्णय लिया है। मायावती ने सोमवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में बसपा को भाजपा की 'बी' टीम कहे जाने पर भी सफाई दी। मायावती ने कहा कि हमने भाजपा के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन की बात नहीं कही है। भाजपा के साथ गठबंधन की बात गलत है। उन्होंने कहा, मेरे बयान को गलत प्रचारित किया गया। बसपा की सिर्फ भाजपा के साथ की बात गलत है। हमने कहा था कि समाजवादी पार्टी को हराने वाले किसी भी दल का साथ देंगे। सपा को हराने के लिए भाजपा या किसी भी अन्य दल को समर्थन देंगे।
उन्होंने कहा कि बसपा की विचारधारा सर्वधर्म हिताय सर्वधर्म सुखाय की है। इसी कारण हमने बीते लोकसभा के साथ ही विधानसभा उप चुनाव में भी सभी वर्ग के लोगों के साथ मुस्लिमों को टिकट दिया है।
उन्होंने कहा कि हमने यह फैसला सपा की दलित विरोधी मानसिकता को देखते हुए लिया। मायावती ने कहा कि जब-जब बसपा ने भाजपा का साथ दिया, भाजपा का नुकसान हुआ लेकिन जब-जब सपा सत्ता में आई भाजपा को लाभ हुआ। बसपा सरकार में उत्तर प्रदेश में एक भी हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ जबकि सपा व कांग्रेस राज ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जिसमें जनता को जानमाल का काफी नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने कहा कि बसपा का भाजपा से कोई गठजोड़ नहीं है।
ज्ञात हो कि राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी के नामांकन भरने के बाद बसपा के सात विधायक सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने चले गए थे जिससे नाराज बसपा ने विधायकों को निलंबित कर दिया और सपा पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया।
इस पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि राज्यसभा चुनाव में निर्दलीय प्रकाश बजाज को समर्थन देकर उन्होंने भाजपा-बसपा की साठगांठ की पोल खोल दी। उन्होंने मायावती का नाम लिए बिना कहा कि जो लोग भाजपा से मिले हुए हैं उनका पर्दाफोश जरूरी था। (आईएएनएस)
आगरा, 2 नवंबर | उत्तर प्रदेश सरकार के स्वामित्व वाले आगरा के चिल्ड्रंस होम (बच्चों के आश्रय गृह) में 24 से 26 अक्टूबर के बीच 6 महीने से कम उम्र के 3 शिशुओं की मौत हो गई। इससे एक महीने पहले ही निरीक्षण में पता चला था कि बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं दिया जा रहा था। आधिकारिक तौर पर मिली जानकारी के अनुसार, 4 महीने की सुनीता की मौत 24 अक्टूबर को एसएन मेडिकल कॉलेज ले जाने के दौरान रास्ते में हो गई थी, वहीं 3 महीने की प्रभा और 2 महीने की अवनी की मौत 25 अक्टूबर को अस्पताल में भर्ती होने के कुछ घंटों बाद हो गई थी।
वर्तमान में इस केन्द्र में 2-2 कार्यकर्ता प्रत्येक पारी में 44 बच्चों की देखभाल करते हैं। सितंबर के मध्य में एक अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश ने केन्द्र का निरीक्षण करने के बाद कहा था कि यहां बच्चों को उचित देखभाल और पोषण नहीं मिल रहा है।
हालांकि, केंद्र के अधीक्षक विकास कुमार ने इन मौतों के लिए शहर के मौसम में हुए अचानक बदलाव और शिशुओं के समय से पहले जन्म को जिम्मेदार ठहराया है।
जिला मजिस्ट्रेट प्रभु एन. सिंह ने कहा, "मुझे केंद्र प्रबंधन ने बताया कि दो बच्चे पहले से ही गंभीर हालत में थे, उन्हें उनके माता-पिता ने फेंक दिया था। एक अन्य बच्चे को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें हो रही थीं और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।"
वर्तमान में 10 वर्ष से कम उम्र के 44 ऐसे बच्चों को आगरा में राज्य सरकार की आश्रय सुविधा में रखा गया है, जिनकी देखभाल करने के लिए कोई अभिभावक नहीं है।
सिंह ने कहा, "मैंने मुख्य विकास अधिकारी जे. रीभा को केंद्र में निरीक्षण करने के लिए कहा है। हम यह पता लगाएंगे कि क्या बच्चों की मौत पोषण संबंधी कमी के कारण हुई है या चिकित्सीय स्थितियों के कारण हुई है। मैंने केन्द्र के सभी बच्चों की चिकित्सा जांच के आदेश दिए हैं।"
वहीं 19 सितंबर के अपने पत्र में अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश सर्वजीत कुमार सिंह ने लिखा था, "बच्चों को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में दूध/पौष्टिक पाउडर मिल रहा है। बच्चे बेहद कमजोर दिख रहे हैं। लैक्टोजन पाउडर और खाद्य सामग्री की खरीद के रजिस्टर के बारे में पूछे जाने पर केंद्र प्रभारी संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। बच्चों को मानदंडों के अनुसार दूध और पौष्टिक भोजन नहीं दिया जाता है, जो आपत्तिजनक है।"(आईएएनएस)
जातीय जकड़न से मुक्त मतदान की जो हवा अचानक चुनावी मैदान में रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे ज़रूरी मुद्दों को लेकर ज़ोर पकड़ती हुई-सी दिखने लगी थी, उसका रुख़ 'जंगलराज के युवराज' वाले जुमले से मोड़ देने की सत्ताधारी खेमे की कोशिशें भी परवान चढ़ रही हैं.
इस पर और बातें करने से पहले आइए, बिहार विधानसभा चुनाव संबंधी मतदान के दूसरे दौर में जिन 94 सीटों के लिए आगामी मंगलवार को वोट डाले जाएँगे, उस पर थोड़ी चर्चा कर लें. इस समय इन 94 सीटों में से 50 पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का और 41 पर 'महागठबंधन' का क़ब्ज़ा है.
यहाँ इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि पिछले विधानसभा चुनाव (2015) में लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और कांग्रेस का 'महागठबंधन' 94 में से 70 सीटें जीत कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को कड़ी शिकस्त देने में कामयाब हुआ था.
इस बार जेडीयू के साथ है बीजेपी, और दोनों का यह सत्ताधारी गठबंधन अपनी आंतरिक तनातनी को किसी तरह संभालते हुए 'महागठबंधन' से सीधी टक्कर झेल रहा है.
दूसरे चरण के मतदान वाले क्षेत्रों में आरजेडी ने 56, बीजेपी ने 46, जेडीयू ने 43 और कांग्रेस ने 24 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं. वामपंथी दलों में सीपीआई-एमएल के 6, सीपीआई के 4 और सीपीएम के भी 4 प्रत्याशी इन्हीं क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं.
सबसे बड़ी चुनौती जेडीयू के सामने है, क्योंकि पिछले चुनाव में उसकी जीती हुई 30 सीटों को इस बार बचाने के लिए आरजेडी जैसा मददगार तो उसके साथ अब है नहीं.
साथ ही नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ दिखने लगे जनाक्रोश, चिराग़ पासवान और तेजस्वी यादव की तरफ़ से सीधे नीतीश कुमार पर तेज़ हुए हमले और परोक्ष रूप से बीजेपी से भी अनबन जैसी मुश्किलों का दबाव जेडीयू को झेलना पड़ रहा है.
पहले दौर के मतदान वाले 71 विधानसभा क्षेत्रों में वोटिंग के रुझान से मिले संकेतों को 'महागठबंधन' के अनुकूल और एनडीए के प्रतिकूल बताया जा रहा है.
हालांकि इसे बहुत अचरज भरा इसलिए नहीं माना जा सकता, क्योंकि पहले दौर में जिन इलाक़ों में मतदान हुए उनके ज़्यादातर हिस्से आरजेडी और वामपंथी सीपीआई-एमएल के प्रभाव वाले क्षेत्र रहे हैं.
लेकिन हाँ, पिछले चुनाव में आरजेडी को इस इलाक़े में मिली 38 सीटों की तुलना में इसबार अगर 40 से अधिक सीटें मिल जाने की संभावना प्रेक्षक बता रहे हैं, तो यह महागठबंधन के लिए बड़ी बात है.
बड़ी बात इसलिए, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के सहयोग से आरजेडी को इस क्षेत्र में 38 सीटें मिल पाई थीं. चलिए, अब लौटते हैं उसी 'सत्ताधारी खेमे की कोशिशों' वाली बात पर, जिसका ज़िक्र शुरुआत में किया गया है.
कहते भी हैं कि चुनावी बयार कब किस ओर पलट जाए, कहा नहीं जा सकता. यानी एक नई बात आम चर्चा में तेज़ी से उभर आई है.
दूसरे चरण के मतदान वाले क्षेत्रों की चुनावी हवा कुछ इस तरह बदलती हुई-सी बताई जा रही है, जो पिछले कई दिनों से तेजस्वी यादव को सियासी रफ़्तार दिला रही थी.
दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी, बदहाल शिक्षा/चिकित्सा व्यवस्था में सुधार और भ्रष्टाचार पर कारगर चोट जैसे मुद्दों को केंद्र में रख कर धुआँधार प्रचार अभियान में जुटे तेजस्वी यादव को देख लोगों को लगने लगा जैसे चुनावी मैदान में वही छाए हुए हों.
पहले दौर का मतदान आते-आते जब चुनाव में बीजेपी और जेडीयू के पिछड़ने की सरेआम चर्चा होने लगी, तब दोनों दलों ने, लगता है, अपनी अंदरूनी मार-पछाड़ को दरकिनार कर के अस्तित्व-रक्षा की जुगत भिड़ाने में जुट गए.
सत्तापक्ष में इस कला के मर्मज्ञ और असरदार जुमला गढ़ लेने में सबसे सक्षम सिद्ध हो चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास बिहार एनडीए ने अपना 'त्राहि माम' संदेश पहुँचाया.
फिर क्या था, प्रधानमंत्री ने दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर और पटना की अपनी चुनावी सभाओं में तेजस्वी यादव को सीधे निशाना बना कर 'जंगलराज के युवराज' वाला ऐसा बॉम्बशेल छोड़ा कि लालू राज का ख़ौफ़ दिखाने संबंधी उनकी रणनीति मीडिया में उछल-उछल कर लालू विरोधी जमातों पर असर डालने लगी.
प्रधानमंत्री ने अपने पद का वज़न हल्का हो जाने देने की हद तक जा कर ये भी कह डाला कि अपने परिवार को हज़ारों करोड़ का मालिक बनाने वालों और रंगदारी वसूल करने वाले अराजक तत्वों को फिर सत्ता में आने से रोकिए.
ज़ाहिर है कि जनजीवन से जुड़े बुनियादी सवालों या राज्य में बढ़ते अपराध और भ्रष्टाचार पर कोई जवाब जिस सत्ता के पास नहीं हो, वह अपने वर्तमान को छोड़, औरों के भूतकाल से लोगों को डराने लगता है.
उधर, तेजस्वी ने भी चुनावी भाषण करते हुए अति उत्साह में बाबूसाहब के सामने ग़रीबों के सीना तान कर चलने वाले लालूराज का ज़िक्र कर दिया, जिसे जेडीयू-बीजेपी ने खूब प्रचारित कराया.
बिहार की राजनीति का एक सच ये भी है कि चुनाव के समय जाति और धर्म के आधार पर किसी ध्रुवीकरण का जवाबी ध्रुवीकरण (काउंटर पोलराइज़ेशन) होने लगता है.
ऐसा होते हुए कई बार देखा गया है. इस बार अभी तक तो ऐसा होता नहीं दिखता, महागठबंधन के रणनीतिकार अभी तक असली मुद्दों से भटकने की कोशिशों में उलझने करते रहे हैं. लेकिन अगले दो चरणों के मतदान में ये बरक़रार रहेगा इसकी कोई गारंटी भी नहीं है.
दूसरी तरफ़, बीजेपी और जेडीयू के बीच जो मतभेद से अधिक मनभेद सार्वजनिक होने लगे थे, उन्हें बयानों के पैबंद से फ़िलहाल ढँक दिया गया है.
अपने मुख्यमंत्री पद को और अगले पाँच साल तक सुनिश्चित कराने के लिए नीतीश कुमार ने भाजपाई दिग्गजों को भले ही झुका लिया हो, पर कमल के फूल में तीर के शूल कितने गहरे हैं, इसका जवाब और मरहम दोनों ही आने वाले वक़्त के पास है.(bbc)
वाशिंगटन, 2 नवंबर | एक नए सर्वे में 2020 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर 10 फीसदी की बढ़त मिली है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, बाइडन को देश के पंजीकृत मतदाताओं में से 52 फीसदी का समर्थन मिला है, वहीं ट्रंप को 42 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला है। यह आंकड़े एनबीसी न्यूज और वॉल स्ट्रीट जर्नल के सर्वे के हैं। यह सर्वे 29 से 31 अक्टूबर के बीच किया गया था।
चुनाव से पहले के इस अंतिम सर्वे में पाया गया कि 12 राज्यों एरिजोना, फ्लोरिडा, जॉर्जिया, आयोवा, मैन, मिशिगन, मिनेसोटा, नॉर्थ कैरोलाइना, न्यू हैम्पशायर, नेवाडा, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन में बाइडन (51 फीसदी) ट्रंप (45 फीसदी ) के मुकाबले 6 अंकों से आगे हैं।
इस पोल में यह भी दिखाया कि बाइडन को अश्वेत मतदाताओं के समर्थन का फायदा मिला है। इसके अलावा 18 से 34 वर्ष के बीच के युवा मतदाता, महिलाओं और निर्दलीय मतदाताओं का समर्थन भी ट्रंप की तुलना में बाइडन को कहीं ज्यादा मिला है। हालांकि, ट्रम्प ने श्वेत मतदाताओं के बीच बढ़त बनाए रखी है।
सर्वे में पाया गया कि 57 प्रतिशत मतदाताओं ने ट्रंप को इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि वे कोविड-19 महामारी से निपटने में असफल रहे।
यह सर्वे तब सामने आया है जब उम्मीदवार मतदान से पहले मतदाताओं को रिझाने का आखिरी प्रयास कर रहे हैं। बाइडन ने रविवार को पेंसिल्वेनिया का दौरा किया, वहीं ट्रंप ने 5 राज्यों मिशिगन, आयोवा, उत्तरी कैरोलिना, जॉर्जिया और फ्लोरिडा में 5 रैलियां की।(आईएएनएस)
मुजफ्फरनगर (उप्र), 2 नवंबर | मुजफ्फरनगर के एक गांव में शादी के बारात में पटाखों में विस्फोट होने से पांच बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना रविवार रात की है।
घायलों की पहचान सावन (7), उम्मेद (8), रिहान (9), अंकित (10) और आमिर (10) के रूप में की गई है।
यह घटना शाहपुर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले पालदा गांव में एक बारात के जाने के दौरान हुई।
स*++++++++++++++++++++++++++++र्*ल ऑफिसर विरजा शंकर त्रिपाठी ने कहा कि पटाखों से भरे बैग में आग लग गई थी, जिसके कारण यह घटना हुई।
शादी की बारात देख रहे बच्चे पटाखों के पास ही खड़े थे।
घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
गौरतलब है कि मेरठ पुलिस ने रविवार को मेरठ के एक घर से अवैध पटाखे और विस्फोटक जब्त किए।
स*++++++++++++++++++++++++++++र्*ल ऑफिसर (सीओ) उदय प्रताप के अनुसार, यह छापेमारी एक विशेष सूचना पर की गई थी।
पुलिस अधिकारी ने कहा, "हमें जानकारी मिली थी कि तीन-चार घरों में पटाखे बनाए जा रहे हैं, जहां हमने छापे मारे थे, इस दौरान हमने एक घर से पटाखे और अन्य चीजें बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए विस्फोटक बरामद किए थे।"
उन्होंने आगे कहा, "आरिफ नाम के एक व्यक्ति के पास पटाखे बनाने का लाइसेंस था। जब लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं हो सका, तो उसने अपने चचेरे भाई रिजवान के घर पर ही पटाखे बनाना शुरू कर दिया। जो भी लोग इसमें संलिप्त पाए जाएंगे उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश भाजपा के पूर्व मीडिया सेल प्रभारी अनिल कुमार सौमित्र को नई दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) में प्रोफेसर नियुक्त किया गया है. पिछले साल उन्होंने महात्मा गांधी को ‘पाकिस्तान का राष्ट्रपिता’ कहा था.
यही कारण है कि उनकी नियुक्ति पर विवाद खड़ा हो गया है और आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपिता को अपमानित करने के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से भाजपा और उसके वैचारिक मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) गांधी को भारत के बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराने से बचते रहे हैं. हालांकि, संघ परिवार से जुड़े लोग हमेशा से ऐसा ही विचार रखते रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल मई में जब सौमित्र महात्मा गांधी पर की गई टिप्पणी के कारण निलंबित हुए थे, तब भाजपा ने एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा था कि सौमित्र का सोशल मीडिया पोस्ट पार्टी की नैतिकता, विचार और सिद्धांतों के खिलाफ है और इससे उसकी छवि को नुकसान पहुंचा है.
सौमित्र ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था, ‘वह राष्ट्रपिता थे, लेकिन पाकिस्तान के. देश के पास उनके जैसे करोड़ों बेटे हैं, कुछ लायक और कुछ नालायक हैं.’
मध्य प्रदेश में भाजपा के मुखपत्र चरैवेती के संपादक के पद से 2013 में सौमित्र को तब निलंबित कर दिया गया था जब उन्होंने चर्च के नर्क में नन का जीवन शीर्षक से एक लेख छापा था. लेख में एक अप्रमाणित दावा किया गया था कि कैथोलिक चर्चों में ननों का उत्पीड़न आम है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उस समय सौमित्र ने पूर्व लोकसभा स्पीकर, इंदौर से तत्कालीन भाजपा सांसद और संघ परिवार से जुड़े पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पत्र लिखा था.
पत्र में उन्होंने लिखा था, ‘मेरे साथ एक अपराधी जैसा व्यवहार किया जा रहा है. संपादक के रूप में मेरा चुनाव मेरी आरएसएस की पृष्ठभूमि और वैचारिक प्रतिबद्धता को देखकर किया गया था.’
इस पत्र की प्रतियां आरएसएस नेताओं- मोहन भागवत, सुरेश जोशी और सुरेश सोनी, भाजपा नेताओं- राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित राज्य के अन्य नेताओं को भेजी गई थीं.
60 आवेदकों के साक्षात्कार के बाद आईआईएमसी में उनकी नियुक्ति हुई है. संस्थान ने उन्हें 20 अक्टूबर को दो साल के प्रोबेशन पीरियड के तहत उनकी नियुक्ति के लिए अधिसूचित किया था और 26 अक्टूबर को एक आदेश द्वारा उनकी जॉइनिंग की तारीख की पुष्टि की गई थी.
सौमित्र ने इंडियन एक्सप्रेस के कॉल और मैसेज पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, वहीं आईआईएमसी के महानिदेशक संजय द्विवेदी ने उनकी नियुक्ति पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.(thewire)
नई दिल्ली, 2 नवंबर | केंद्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को जम्मू में मानसर झील विकास योजना का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि आज का दिन मानसर क्षेत्र के लोगों के लिए ऐतिहासिक है। मानसर झील विकास योजना 70 वर्षो के लंबे इंतजार के बाद आज पूरी हो रही है। परियोजना के पूरी होने के बाद हर साल आठ सौ करोड़ रुपये की कमाई होगी। डॉ. जितेंद्र सिंह ने व्यापक मानसर झील कायाकल्प विकास योजना के ई-शिलान्यास समारोह के बाद कहा कि पिछले 6 वर्षो के दौरान इस क्षेत्र में शुरू की गई राष्ट्रीय परियोजनाओं की संख्या पिछले सात दशकों में इस तरह की परियोजनाओं की संख्या से अधिक है। यहां का विकास स्पष्ट रूप से किसी का भी ध्यान आकर्षित किए बिना नहीं रह सकता।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस परियोजना के लागू होने के बाद, मानसर क्षेत्र में प्रति वर्ष पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की संख्या मौजूदा 10 लाख से बढ़कर 20 लाख हो जाएगी। डॉ. सिंह ने कहा कि मानसर कायाकल्प योजना से लगभग 1.15 करोड़ मानव-दिन रोजगार सृजित होंगे और प्रति वर्ष 800 करोड़ रुपये से अधिक की आय होगी।(आईएएनएस)
बैतूल, 2 नवंबर | मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैतूल जिले में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास बनवाने वाले जिस सुभाष विश्वकर्मा के घर चाय पीने का वादा किया था, उसने कर्ज के चलते कीटनाशक पी लिया। उसकी हालत गंभीर है और अस्पताल में इलाज जारी है। बताया गया है कि जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर फोरलेन के किनारे बसे ग्राम उड़दन में पीएम आवास के हितग्राही सुभाष विश्वकर्मा (26) ने पिछले दिनों ही आवास बनाया है।
दरअसल, सुभाष को पीएम आवास बनाने के लिए महज एक लाख 20 हजार रुपये ही मिले थे, जबकि उसने मकान बनाने में कर्ज लेकर करीब तीन लाख रुपये खर्च कर दो मंजिला मकान बना लिया था। अब कर्ज देने वाले उस पर राशि वापस करने के लिए दबाव बना रहे थे, इसलिए उसने कीटनाशक पी लिया।
पुलिस अधीक्षक सिमाला प्रसाद ने बताया कि ग्राम उड़दन गांव के सुभाष विश्वकर्मा ने जहरीला पदार्थ खा लिया था, जिसका इलाज जिला अस्पताल में चल रहा है। कर्ज की बात भी सामने आई है, जो जांच का विषय है। पीड़ित के मजिस्ट्रेट बयान होना बाकी है।
बताया गया है कि 12 सितंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीएम आवास का वर्चुअल गृह प्रवेश कराया था। उड़दन गांव में सुभाष के घर प्रशासनिक अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों का जमावड़ा लगा था। बड़े धूमधाम के साथ सुभाष व उसके परिवार का गृह प्रवेश कराया गया था।
पुलिस अधीक्षक बैतूल सिमाला प्रसाद ने बताया कि सुभाष की पत्नी सुशीला विश्वकर्मा ने बताया कि उसके पति ने कर्ज से परेशान होकर जहर खा लिया है। मकान बनाने के लिए करीब ढाई लाख रुपये रिश्तेदारों व बैंक से कर्जा लिया था, अब वे परेशान कर रहे हैं।
सुशीला ने संवाददाताओं से कहा है कि गृह प्रवेश के दिन तमाम बड़े अधिकारी से लेकर बहुत से लोग उनके घर आए थे। इस दौरान बताया गया था कि यह मकान कर्ज लेकर बनाया गया, जिस पर अधिकारियों ने कहा था कि कर्ज लेकर मकान बनाया है, ऐसा किसी को नहीं कहना यह बोलना की मेहनत मजदूरी कर मकान बनाया है।
वहीं जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एम.एल. त्यागी ने संवाददाताओं से कहा, "हितग्राही ने कर्ज लिया है, यह उसका व्यक्तिगत मामला है, हमें तो उसका आवास अच्छा लगा था, इसलिए उसका चयन किया गया था। हितग्राही ने कर्ज लेने की बात हमसे साझा नहीं की।"(आईएएनएस)