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जानवरों को यूं ही मारता रहा इंसान तो और बीमारियां होंगी
07-Jul-2020 10:19 AM
जानवरों को यूं ही मारता रहा इंसान तो और बीमारियां होंगी

संयुक्त राष्ट्र ने दी चेतावनी 

संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण से जुड़ी एक संस्था का कहना है कि अगर इंसानों ने जंगली जीवों को मारना और उनका उत्पीड़न जारी रखा तो उसे कोरोना वायरस संक्रमण जैसी और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.

यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम ऐंड इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इन्स्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस जैसे ख़तरनाक संक्रमण के लिए पर्यावरण को लगातार पहुंचने वाला नुक़सान, प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन, जलवायु परिवर्तन और जंगली जीवों का उत्पीड़न जैसी वजहें ज़िम्मेदार हैं.

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जानवरों और पक्षियों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां लगातार बढ़ी हैं. विज्ञान की भाषा में ऐसी बीमारियों को ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ कहा जाता है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर इंसानों ने पर्यावरण और जंगली जीवों को नहीं बचाया तो उसे कोरोना जैसी और ख़तरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रोटीन की बढ़ती मांग के लिए जानवरों को मारा जा रहा है और इसका ख़ामियाज़ा आख़िरकार इंसान को ही भुगतना पड़ रहा है.

हर साल लाखों लोगों की मौत

विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों से होने अलग-अलग तरह की बीमारियों के कारण दुनिया भर में हर साल तकरीबन 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

पिछलों कुछ वर्षों में इंसानों में जानवरों से होने वाली बीमारियों यानी ‘ज़ूनोटिक डिज़ीज़’ में इजाफ़ा हुआ है. इबोला, बर्ड फ़्लू और सार्स जैसी बामारियां इसी श्रेणी में आती हैं.

पहले ये बीमारियां जानवरों और पक्षियों में होती हैं और फिर उनके ज़रिए इंसानों को अपना शिकार बना लेती हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़ूनोटिक बीमारियों के बढ़ने की एक बड़ी वजह ख़ुद इंसान और उसके फ़ैसले हैं.

बेतहाशा बढ़ा है मांस का उत्पादन

यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम की एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडर्सन ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में इंसान नए वायरसों की वजह से होने वाले कम से कम छह तरह के ख़तरनाक संक्रमण झेल चुका है.

उन्होंने कहा, “मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में हर साल कम से कम 20 लाख लोगों की मौत गिल्टी रोग, चौपायों से होने वाली टीबी और रेबीज़ जैसी ज़ूनोटिक बीमारियों के कारण हो जाती है. इतना ही नहीं, इन बीमारियों से न जाने कितना आर्थिक नुक़सान भी होता है.”

इंगर एंडर्सन ने कहा, “पिछले 50 वर्षों में मांस का उत्पादन 260% बढ़ गया है. कई ऐसे समुदाय हैं जो काफ़ी हद तक पालतू और जंगली जीव-जंतुओं पर निर्भर हैं. हमने खेती बढ़ा दी है और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बेतहाशा किए जा रहे हैं. हम जंगली जानवरों के रहने की जगहों को नष्ट कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि बांध, सिंचाई के साधन, फ़ैक्ट्रियां और खेत भी इंसानों में होने वाली संक्रामक बीमारियों के लिए 25% तक ज़िम्मेदार हैं.
कैसे हल होगी मुश्किल?

इस रिपोर्ट में सिर्फ़ समस्याएं ही नहीं गिनाई गई हैं, बल्कि सरकारों को ये भी समझाया गया है कि भविष्य में इस तरह की बीमारियों से कैसे बचा जाए.

विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में पर्यावरण को कम नुक़सान पहुंचाने वाली खेती को बढ़ावा देने और जैव विविधता को बचाए रखने के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया है.

एंडर्सन कहती हैं, “विज्ञान साफ़ बताता है कि अगर हम इकोसिस्टम के साथ खिलवाड़ करते रहे, जंगलों और जीव-जंतुओं को नुक़सान पहुंचाते रहे तो आने वाले समय में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां भी बढ़ेंगी.”

उन्होंने कहा कि भविष्य में कोरोना वायरस संक्रमण जैसी ख़तरनाक बीमारियों को रोकने के लिए इंसान को पर्यावरण और जीव-जंतुओं की रक्षा को लेकर और संज़ीदा होना पड़ेगा.  (www.bbc.com)
 

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