अंतरराष्ट्रीय
मोहम्मद ज़ुबैर
इस दर्दनाक कहानी की शुरुआत 17 साल पहले पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के सेक्टर जी-10 की एक सड़क से हुई थी.
10 साल की किरन बारिश के दौरान आइसक्रीम की तलाश में अपने घर से निकली थी.
उस वक़्त किरन को आइसक्रीम तो मिल गई लेकिन उनका बचपन और उनके माँ-बाप उनसे बहुत दूर चले गए.
किरन पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के ज़िला क़सूर के एक छोटे से गांव की रहने वाली हैं.
उन्होंने अपनी ज़िंदगी के कई बसंत अपने माँ-बाप, बहन-भाइयों और रिश्तेदारों से दूर कराची के ईधी सेंटर में गुज़ारे हैं.
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कई बार किरन के माँ-बाप और बहन-भाइयों को तलाशने की कोशिश की गई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.
किरन की वापसी की उम्मीद तो जैसे ख़ुद उनके माता-पिता और बहन-भाई भी खो बैठे थे.
लेकिन यह मायूसी उस वक़्त ख़ुशी में बदल गई, जब 17 साल बाद पंजाब पुलिस के सेफ़ सिटी प्रोजेक्ट के तहत काम करने वाले लोगों को किरन का सुराग़ मिला.
किरन अपने माँ-बाप तक कैसे पहुँचीं?
किरन के पिता अब्दुल मजीद और दूसरे घरवालों ने इस बारे में कोई बात नहीं की, अलबत्ता उनके परिवार से जुड़े एक बुज़ुर्ग असद मुनीर ने इस बारे में बहुत सी जानकारी दी.
असद मुनीर रिश्ते में किरन के ताया लगते हैं. असद मुनीर ज़िला क़सूर के गाँव बागरी के रहने वाले हैं.
वह बताते हैं, "17 साल पहले जब किरन की उम्र केवल 10 साल थी, उस वक़्त वह मेरी बहन यानी उनकी फूफी के घर इस्लामाबाद के इलाक़े जी-10 में रह रही थीं. घर के ठीक सामने जी-10 का सेंटर है, जहाँ वह आइसक्रीम लेने गई थीं. यह 2008 की बात है. उस वक़्त भारी बारिश हो रही थी."
असद मुनीर का कहना था कि जब बहुत देर तक किरन घर वापस नहीं लौटी, तो उन्हें खोजा गया लेकिन वह नहीं मिली.
"उस वक़्त उन्हें हर जगह और हर कोने में खोजा गया लेकिन किरन का कोई अता-पता नहीं चला."
किरन का कहना है कि वह घर से आइसक्रीम लेने निकली थी, लेकिन भारी बारिश में वह रास्ता भूल गईं.
उनके मुताबिक़ वह काफ़ी देर तक सड़कों पर घूमती रहीं और अपना घर तलाश करती रहीं लेकिन जब उन्हें घर नहीं मिला, तो किसी ने उन्हें ईधी सेंटर, इस्लामाबाद पहुँचा दिया.
किरन ने बताया, "पहले मुझे ईधी सेंटर, इस्लामाबाद में रखा गया लेकिन कुछ अरसे बाद बिलक़ीस ईधी मुझे ईधी सेंटर, कराची ले गईं और मैं 17 साल तक वहीं रही."
ईधी सेंटर, कराची की शबाना फ़ैसल का कहना था कि 17 साल पहले किरन इस्लामाबाद के ईधी सेंटर में आई थीं. उन्होंने बताया कि उन्हें कोई शख़्स ईधी सेंटर छोड़ गया था, शायद वह रास्ता भूल गई थीं.
वो बताती हैं, "कुछ अरसे तक वह ईधी सेंटर, इस्लामाबाद में रहीं. इसी दौरान बिलक़ीस ईधी ने इस्लामाबाद ईधी सेंटर का दौरा किया, जहाँ उन्होंने देखा कि किरन की तबीयत ठीक नहीं रहती तो वह उन्हें ईधी सेंटर, कराची ले गईं."
शबाना फ़ैसल ने बताया कि कुछ समय पहले पंजाब पुलिस के सेफ़ सिटी प्रोजेक्ट से जुड़ी 'मेरा प्यारा' की एक टीम ने ईधी सेंटर, कराची का दौरा किया, जिसने किरन का इंटरव्यू किया और उनके रिश्तेदारों की तलाश का बीड़ा उठाया.
सिद्रा इकराम लाहौर में प्रोग्राम 'मेरा प्यारा' में सीनियर पुलिस कम्युनिकेशन ऑफ़िसर हैं.
वह बताती हैं कि 'मेरा प्यारा' प्रोजेक्ट पंजाब पुलिस के सेफ़ सिटी प्रोग्राम के तहत शुरू किया गया है, जिसका मक़सद बिछड़े हुए बच्चों को उनके रिश्तेदारों से मिलाना है.
यह प्रोजेक्ट एक साल पहले शुरू किया गया था. उन्होंने दावा किया कि इस प्रोजेक्ट के तहत अब तक 51 हज़ार बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाया जा चुका है.
सिद्रा इकराम का कहना था कि इस मक़सद के लिए डिजिटल साधनों के अलावा पुलिस सूत्रों का भी इस्तेमाल किया जाता है.
उन्होंने बताया, "हमारी टीमें अलग-अलग संस्थानों में, जहाँ लावारिस बच्चों को रखा जाता है, बच्चों का इंटरव्यू करती हैं और फिर उस इंटरव्यू से मिली जानकारी की मदद से बच्चे के रिश्तेदारों को तलाश किया जाता है."
उनका कहना था कि किरन के मामले में भी यही हुआ.
सिद्रा इकराम ने बताया, "हमारी एक टीम ने ईधी सेंटर कराची का दौरा किया, जिसमें दूसरे लावारिस लोगों के अलावा किरन का भी इंटरव्यू किया गया और जानकारी ली गई."
"किरन को ज़्यादा कुछ याद नहीं था. वह असल में ज़िला क़सूर की रहने वाली थीं. इस्लामाबाद में वह अपने रिश्तेदारों के यहाँ रह रही थीं."
सिद्रा इकराम का कहना था कि किरन को अपने वालिद का नाम अब्दुल मजीद और अपने गाँव का नाम भी याद था.
"यह जानकारी हमने अपने क़सूर ऑफ़िस को दी और उनसे गुज़ारिश की गई कि किरन के रिश्तेदारों की तलाश में मदद की जाए."
मुबश्शिर फ़ैयाज़ क़सूर के पुलिस कम्युनिकेशन ऑफ़िसर हैं. वह बताते हैं कि जब किरन की जानकारी उन तक पहुँची, तो उसमें गाँव का नाम और पिता का नाम मौजूद था, जो उनके लिए मददगार साबित हुआ.
"एक ही दिन में माँ-बाप को तलाश करने में कामयाब हो गए"
मुबश्शिर फ़ैयाज़ कहते हैं, "सबसे पहले हमने इलाक़े के नंबरदार और इलाक़े के पुराने लोगों से संपर्क किया. उनसे अब्दुल मजीद का पता किया तो मालूम हुआ कि उधर तो कई अब्दुल मजीद हैं. हमने कुछ लोगों को किरन की बचपन की तस्वीरें दिखाईं लेकिन वह शिनाख़्त नहीं कर पा रहे थे."
उनका कहना था कि अब इतने सारे अब्दुल मजीद नाम के लोगों से संपर्क करना मुमकिन नहीं था.
कुछ मामलों में पुराने पुलिस अधिकारी और पुलिस चौकियों के साथ थानों के सिपाही भी बड़ी मददगार साबित होते हैं.
उनके मुताबिक़, "इस मामले में भी जब हमने इलाक़े की चौकी के पुराने अधिकारियों से संपर्क किया तो उनमें से एक ने बताया कि कुछ साल पहले किरन नाम की बच्ची लापता हुई थी और उनकी बहुत तलाश की गई थी."
मुबश्शिर फ़ैयाज़ कहते हैं कि उस अधिकारी ने "हमें बताया कि इस बारे में सनहा भी दर्ज किया गया था."
"इस तरह उस अधिकारी से हमें किरन के इलाक़े तक पहुँचने में मदद मिली, जहाँ हमने मस्जिदों में ऐलान करवाए. हम वहाँ के पुराने लोगों से मिले. वहाँ से हमें पता चला कि एक अब्दुल मजीद की बच्ची 17 साल पहले लापता हुई थी."
उनका कहना था, "सारे दिन की मेहनत रंग ला रही थी और हम अब्दुल मजीद के क़रीब पहुँच चुके थे. जब उनके इलाक़े में पहुँचे, तो वहाँ के बहुत लोगों को किरन के खोने की बात ताज़ा हो गई, जिन्होंने हमें अब्दुल मजीद के घर पहुँचा दिया."
"पिता के आँसू सूख नहीं रहे थे"
मुबश्शिर फ़ैयाज़ कहते हैं कि उन्होंने अब्दुल मजीद को उनकी बेटी की तस्वीरें दिखाईं, जिनमें बचपन की तस्वीरें भी शामिल थीं.
"उन्होंने हमें ख़ानदान के साथ ली गई ग्रुप फ़ोटो दिखाई और साथ में फ़ॉर्म-बी भी दिखाया, जिसमें किरन की ज़रूरी जानकारी दर्ज थी."
फ़ॉर्म बी को पाकिस्तान में चाइल्ड रजिस्ट्रेशन सर्टिफ़िकेट भी कहा जाता है.
उनका कहना था कि इसमें कोई शक नहीं रह गया था कि यही अब्दुल मजीद किरन के पिता हैं. जिसके बाद वीडियो कॉल हुई, बाप, बेटी और दूसरे रिश्तेदारों ने किरन से बात की और फिर वह कराची चले गए.
यहाँ सभी क़ानूनी कार्रवाई के बाद किरन को उनके पिता के हवाले कर दिया गया और वह 25 नवंबर को ही अपने घर वापस पहुँची हैं.
किरन के ताया असद मुनीर अपनी भतीजी की गुमशुदगी की चर्चा करते हुए कहते हैं, "किरन अब्दुल मजीद की सबसे बड़ी बेटी हैं. अब किरन समेत उनके पाँच बच्चे हैं. लेकिन जब से वह लापता हुई थीं, उस वक़्त से अब तक मैंने हमेशा अब्दुल मजीद की आँखों में आँसू ही देखे हैं."
उनके मुताबिक़, "जब भी वह अपनी बेटी का ज़िक्र करते, तो यही कहते थे कि वह ज़िंदा भी है या नहीं. हमेशा यही बात करते थे कि उनकी बेटी किस हाल में होगी."
उनका कहना था कि बेटी के लापता होने के दुख ने उन्हें वक़्त से पहले बूढ़ा कर दिया.
उन्होंने बताया, "जब अब्दुल मजीद ने अपनी बेटी की शिनाख़्त की तो सबसे पहले मुझे बताया और मैंने देखा कि पहले उनकी आँखों में दुख के आँसू होते थे और अब ख़ुशी के आँसू हैं."
किरन ने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए बताया कि उन्हें अपने वालिद और बहन-भाइयों से मिलकर बहुत ख़ुशी हुई है. उन्होंने बताया कि वह ईधी सेंटर से खाना पकाने के गुर, सिलाई के तरीक़े सीख कर और पढ़-लिखकर घर लौटी हैं.
उन्होंने कहा, "सबसे बड़ी बात यह है कि मुश्किल वक़्त में उन्होंने मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया, मेरी हिम्मत बढ़ाई." (bbc.com/hindi)


