संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एआई से भारी बेरोजगारी का खतरा अनदेखा करना, काल्पनिक दुनिया में जीना
12-Apr-2025 8:07 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : एआई से भारी बेरोजगारी का खतरा अनदेखा करना, काल्पनिक दुनिया में जीना

दुनिया भर में ट्रम्प नाम की सुनामी से आई तबाही के बीच एक खबर अमरीकी कारोबारी दुनिया से भी आई है कि गूगल ने वहां अपनी एंड्राइड, पिक्सेल, और क्रोम टीम में से सैकड़ों लोगों को नौकरी से निकाल दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि कंपनी के भीतर कर्मचारियों को कम करने में एआई का बड़ा योगदान है जो कि इंसानों के किए जाने वाले कई किस्म के काम तेजी से करता है। हालांकि दुनिया में अभी जानकार लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो एआई से बड़े पैमाने पर नौकरियां जाने की बात नहीं मान रहे हैं, लेकिन हम रोज के कामकाज में देखते हैं कि एआई सैकड़ों या हजारों किस्म के काम इंसानों के मुकाबले हजारों-लाखों गुना रफ्तार से कर रहा है, और जाहिर तौर पर वहां लोगों की जरूरत अब कम पड़ेगी।

हम सबसे पहले अखबारनवीसी के अपने कामकाज में देखें, तो आज चार अलग-अलग अखबारों या वेबसाइटों पर किसी एक घटना की छपी हुई रिपोर्ट के टेक्स्ट को कॉपी कर लिया जाए, और उसे एक साथ चैटजीपीटी जैसे किसी एआई टूल पर डाल दिया जाए, और उससे कहा जाए कि इससे फलां भाषा में इतने शब्दों में एक न्यूज रिपोर्ट बना दे, तो इसके पहले कि आप एक घूंट पानी पी सकें, वह रिपोर्ट तैयार रहती है। किसी भाषा से किसी दूसरी भाषा में अनुवाद समस्या नहीं है, चार अलग-अलग रिपोर्ट को मिलाकर एक बनाने में भी कोई दिक्कत नहीं है, एआई की जुबान पसंद न हों, तो उसे लिख दें कि इसे फलां किस्म की भाषा में बनाएं, तो पांच-सात सेकेंड में ही वैसी भाषा में रिपोर्ट तैयार हो जाएगी। एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद तो बड़ा आसान है ही, भारत की बोलियों या लोकभाषाओं से भी अनुवाद आसानी से हो जाता है। किसी लोकगीत, या क्षेत्रीय बोली के आज के प्रचलित गाने को अगर किसी गजल में बदलना है, तो चैटजीपीटी दस सेकेंड में यह काम कर देता है। अभी हमने अपने यूट्यूब चैनल इंडिया-आजकल पर इसका जिक्र किया भी था कि चैटजीपीटी किसी मशहूर गाने की धुन पर भी किसी दूसरे गाने को लिख देता है, या किसी लोकगीत को किसी धुन पर गाने-बजाने के लिए सुर-ताल भी समझा देता है, और उस लोक संगीत के अंदाज के वाद्ययंत्र भी सुझा देता है।

इसी तरह हम अपने अखबार में कई तरह की तस्वीरें इन दिनों चैटजीपीटी, मेटा, या ग्रोक जैसे अलग-अलग एआई औजारों से तैयार करते हैं, और 20-25 शब्दों में तस्वीर की कल्पना को लिख देते हैं, तो एक-दो मिनट में तस्वीर बन जाती है, और फिर उसमें अधिक सलाह देकर, अधिक मांग करके तस्वीर को बदल भी देते हैं। कुल मिलाकर पांच-सात मिनट में ही अपनी कल्पना और जरूरत की तस्वीर मौजूद रहती हैं। ये तो हमने अखबार के बड़े सीमित काम किए हैं, लेकिन लोगों का अनुभव है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के औजारों से किसी कॉलसेंटर पर संदेश भेजने वाले ग्राहकों को जवाब देना, उनकी शिकायत दर्ज करना, जैसे काम एआई बड़ी आसानी से करता है। एआई बड़ी आसानी से प्रूफ रीडिंग करता है, अकाऊंटिंग करता है, हिसाब-किताब की गड़बड़ी को पकड़ लेता है, किसी यात्रा के लिए टिकटें बुक करते हुए एआई सबसे सस्ता, आसान, किसी खास दिन और समय का रास्ता निकाल देता है। और अभी तक तो हम बात सिर्फ एआई टूल्स की कर रहे हैं, आगे चलकर आर्टिफिशियल जनरेटिव इंटेलीजेंस आने जा रहा है, और वह तो अपनी ट्रेनिंग के आधार पर कई तरह की कल्पनाशीलता के फैसले भी लेगा, जो कि और भी सैकड़ों किस्म की नौकरियां खाएंगे।

खुद एआई से पूछने पर वह बताता है कि इसके विकसित हो जाने पर भी जिन लोगों का काम बचे रहेगा, उसमें डॉक्टर, और सर्जन रहेंगे, वकील और कानूनी रणनीति बनाने वाले रहेंगे, शोधकर्ता और वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, और मनोचिकित्सक रहेंगे, नीति-निर्धारक, और राजनयिक रहेंगे। लेकिन इन सबके साथ भी एक संभावना या आशंका यह है कि ये अपने काम में एआई की मदद से इतनी तेजी से इतना सारा काम कर सकेंगे कि उन्हें सहायकों की जरूरत कम पड़ेगी। अब जैसे मिसाल के लिए दुनिया में एक्सरे, सीटीस्कैन, और एमआरआई जांच की फिल्में देखकर किसी बीमारी को तलाशने का काम एआई सबसे माहिर डॉक्टरों के मुकाबले भी हजारों गुना रफ्तार से कर रहा है, और इससे उन डॉक्टरों को सही नतीजों तक पहुंचने में रफ्तार और मदद मिल रही है। मतलब यह कि आखिर में इंसान का दिमाग, और उसका फैसला तो लगना है, लेकिन उसके पहले एआई इतना सारा काम करके इतने बारीक विश्लेषण और अपना अनुमान पेश कर देगा कि विशेषज्ञ डॉक्टर का 90 फीसदी समय बच जाएगा। नतीजा यह होगा कि 90 फीसदी डॉक्टरों की जरूरत घट जाएगी, और उसी अनुपात में उनके सहायकों की भी। यह नौबत अधिक से अधिक एक-दो बरस दूर है।

इसलिए आज जो लोग एआई से बेरोजगारी के खतरों को काल्पनिक मान रहे हैं, उन्हें यह देखना चाहिए कि आज भी एआई कितने लोगों का काम उनसे बेहतर तरीके से कर रहा है, और ये नौकरियां अगर खत्म नहीं भी हुई हैं, तो भी या तो खत्म होने के करीब हैं, या आगे ऐसी नौकरियों के बढऩे की गुंजाइश खत्म हो रही है। खासकर मीडिया से जुड़े हुए कामकाज में मौके पर जाकर रिपोर्टिंग करने जैसे कुछ काम छोड़ दें, तो अधिकतर दूसरे काम एआई से चुटकियां बजाते किए जा सकते हैं, और अब बहुत कम ऐसे मीडिया संस्थान रहेंगे, जहां पर समाचार-विचार के लिए नौकरियां बढ़ेंगी। ऐसा लगता है कि कुछ चुनिंदा गिनी-चुनी बढ़ोत्तरी से परे बड़े पैमाने पर कुर्सियां खाली होने लगेंगी, और उनका अहसास तुरंत नहीं होगा।

और जब एआई के साथ हम आज के मौजूदा औजारों को देखें, तो यह समझ पड़ता है कि स्कूल-कॉलेज के क्लासरूम अब बड़ी-बड़ी डिजिटल स्क्रीनों से लैस हो सकते हैं, और दुनिया के किसी भी कोने में बैठे हुए शिक्षक एक साथ हजारों-लाखों बच्चों को पढ़ा सकते हैं। जाहिर है कि एआई से परे भी टेक्नॉलॉजी दुनिया में रोजगार सीमित करने जा रही है, और लोगों को अपना और अपने बच्चों का भविष्य सोचते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि उनकी पसंद के पेशे पर एआई के हमले की कितनी आशंका है, और विकसित होती हुई टेक्नॉलॉजी उस पेशे से, या कारोबार से इंसानों की जरूरत कितनी घटाएगी। यह बात उन लोगों को खासकर अधिक सोचनी चाहिए जिनके बच्चों को अभी आगे पढ़ाई तय करनी है। 

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