संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पूरी तरह असफल-लोकतंत्र पाकिस्तान के पड़ोस में रहने के खतरे कम नहीं हैं...
12-Mar-2025 5:57 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : पूरी तरह असफल-लोकतंत्र पाकिस्तान के पड़ोस में रहने के खतरे कम नहीं हैं...

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में एक मुसाफिर ट्रेन पर कब्जा करके फौजियों सहित आम मुसाफिरों को बंधक बनाने वाले विद्रोही संगठन बलोच लिबरेशन आर्मी ने कई लोगों को मार भी डाला है। ट्रेन के एक सुरंग से निकलते ही  फिल्मी अंदाज में बीएलए के हथियारबंद लोगों ने ट्रेन पर कब्जा कर लिया, और जेलों से अपने लोगों की रिहाई की मांग करते हुए सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि 48 घंटों में रिहाई न हुई तो फौजी बंधकों को मार डाला जाएगा। दूसरी तरफ सरकार भी लोगों को बचाने की कार्रवाई में कामयाबी का दावा कर रही है, और कह रही है कि 16 उग्रवादी मारे गए हैं, और सौ मुसाफिरों को छुड़वा लिया गया है। पाकिस्तानी फौज ने यह माना है कि इस ट्रेन से सौ फौजी भी सफर कर रहे थे। इस पूरे इलाके में न इंटरनेट है, न मोबाइल-नेटवर्क है, इसलिए वहां की पुख्ता जानकारी बाहर कम निकल पा रही है। फिर भी यह बात तो जाहिर है कि जिस बलूचिस्तान में स्थानीय हथियारबंद लोग वहां पर चीन और पाक सरकार के प्रोजेक्ट के खिलाफ हैं, वहां पर पाकिस्तान की राष्ट्रीय सरकार का काबू बड़ा कमजोर रह गया है। पाकिस्तान में बलूचिस्तान के अलावा खैबरपख्तूनख्वाह एक और ऐसा राज्य है जहां स्थानीय संगठनों का केन्द्र सरकार से टकराव चल रहा है। इसके अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की जड़ बना हुआ पाक अधिकृत कश्मीर तो है ही जहां बेचैनी बढ़ती चल रही है। भारत के कश्मीर में केन्द्र सरकार के संवैधानिक फैसले के बाद जो शांति कायम हुई है, उससे भी पाकिस्तान की तरफ वाले कश्मीर के हिस्से के लोगों को उस देश की सरकार से निराशा बढ़ रही है। ऐसे माहौल में बलूचिस्तान में हथियारबंद उग्रवादियों का यह बड़ा हमला बताता है कि देश वहां की सरकार के हाथों से किस तरह फिसलते चल रहा है। इस ट्रेन और इसके मुसाफिरों को छुड़ाने के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने वहां के सेना प्रमुख को जिम्मेदारी दी है, जाहिर है कि फौज से नीचे अब कोई एजेंसी किसी काम की नहीं दिख रही है।

पाकिस्तान की कुल जमा हालत अगर देखें तो कर्ज में डूबा हुआ वह एक ऐसा देश है जो कि पड़ोस के अफगानिस्तान के साथ एक हथियारबंद संघर्ष में लगा हुआ है, जो दशकों से भारत के साथ तरह-तरह के टकराव लेते आया है, और हर जंग में पाकिस्तान ने बड़ा नुकसान झेलकर शिकस्त पाई है। आज वह हर बात के लिए चीन पर मोहताज है, और चीन की दिलचस्पी उसमें जाहिर तौर पर दो वजहों से है, एक तो पड़ोसी देश भारत से चल रही तनातनी के बीच वह भारत को एक और फौजी मोर्चे पर उलझाकर रखने की ताकत चाहता है, जो कि उसे पाकिस्तान की शक्ल में हासिल है, और बाकी किनारों के लिए वह श्रीलंका से लेकर बांग्लादेश तक, और म्यांमार से लेकर भूटान-नेपाल तक अपने प्रभाव को फैलाने की हर कोशिश करता है। ऐसे में पाकिस्तान को बनाए रखने की चीनी मजबूरी को अगर हटा दिया जाए, तो पाकिस्तान आज एक पूरी तरह, और बुरी तरह असफल-लोकतंत्र हो चुका है, असफल अर्थव्यवस्था भी। जिस देश में लोकतंत्र को बार-बार निलंबित कर फौजी तानाशाही की परंपरा रही, जहां पर पार्टियां सत्ता पर आते ही बहुत भ्रष्ट हो गईं, और अधिकतर पार्टियां फौज के हाथों कठपुतली बनी रहीं, तो वहां लोकतंत्र की जड़ें लगातार कमजोर होती चली गई। दूसरी तरफ धार्मिक कट्टरपंथियों ने जिस अंदाज में देश में साम्प्रदायिकता फैलाई, और बहुसंख्यक धर्म का एकाधिकार लाद दिया, उससे भी पाकिस्तानी आवाम में वैज्ञानिक सोच खत्म हुई, और लोग लोकतंत्र को गैरजरूरी समझने लगे।

किसी संघीय ढांचे वाले देश को केन्द्र और राज्यों के बीच जिस तरह शक्ति संतुलन बनाकर रखना चाहिए, किसी प्रांत के बागी या नाकामयाब हो जाने पर वहां पर केन्द्र की ताकत से लोकतंत्र और सत्ता की निरंतरता बनाए रखने की ताकत रखनी चाहिए, वह सब पाकिस्तान में नहीं हो पाया। हमने अपने अखबार के यूट्यूब चैनल ‘इंडिया-आजकल’ के लिए कुछ महीने पहले पाक अधिकृत कश्मीर के एक राजनीतिक कार्यकर्ता का इंटरव्यू किया था कि पीओके सहित तमाम पाकिस्तान की जनता किस तरह निराश है, बदहाल है। पाकिस्तान अपनी घरेलू दिक्कतों में इस बुरी तरह उलझा हुआ है कि उसने हिन्दुस्तान से छेडख़ानी अगर पूरी तरह बंद भी नहीं की है, तो भी उसे रोक रखा है। इसके साथ-साथ यह भी समझना जरूरी है कि पाकिस्तान में निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार के रहते हुए भी फौज का दबदबा इतना अधिक रहता है कि कभी-कभी भारत के खिलाफ किसी छोटे-मोटे हमले, या किसी आतंकी कार्रवाई का फैसला वहां की सरकार के नेताओं से परे फौजी अफसर खुद भी ले लेते हैं। फौज के मुंह फौजी हुकूमत का खून लगा हुआ है, और पाकिस्तानी फौज देश में बहुत सारे गैरफौजी सामानों के उद्योग भी चलाती है, जिसके चलते बड़े अफसरों के बीच भ्रष्टाचार राजनेताओं की टक्कर का रहता है। इन सब बातों को देखते हुए कई बार फौज की दिलचस्पी भी इसमें रहती है कि वहां की सरकार ऐसी मुसीबतों में उलझी रहे जहां उसे फौजी अफसर ही मुक्तिदाता लगें।

पाकिस्तान एक अजीब सा देश हो गया है जो कि रोज की जिंदगी को चलाने के लिए अंतरराष्ट्रीय साहूकार संस्थाओं का मोहताज है, और ऐसी संस्थाएं जिन बड़े देशों की मर्जी से चलती हैं, पाकिस्तान को उन देशों का ख्याल भी रखना पड़ता है। इसके साथ-साथ वह चीन के हाथों पूरी तरह गिरवी रख दिए गए देश जैसा हो गया है, और चीन से परे उसका कुछ सोचना नामुमकिन सा है। अपने सबसे बड़े और सबसे लोकतांत्रिक पड़ोसी देश भारत के साथ पाकिस्तान ने निहायत गैरजरूरी टकराव का एक लंबा इतिहास कायम किया है, और अपना न सिर्फ फौजी खर्च बढ़ाया है, बल्कि कारोबारी फायदे की संभावनाएं भी खो दी हैं। यह सब कुछ उसने अपने देश की आर्थिक परेशानियां खड़ी करने की कीमत पर किया है। एक तरफ पूरा देश खोखला होते चले गया, लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर होती चली गईं, और कुछ राज्य केन्द्र सरकार के काबू से बाहर सरीखे हो गए। बलूचिस्तान का यह ताजा हमला बताता है कि पूरे देश की हिफाजत कर पाना पाकिस्तानी सरकार के बस में नहीं रह गया है। इतना बदहाल और नाकामयाब हो चुका लोकतंत्र भारत के लिए भी एक समस्या की बात है, उसके लिए किसी संभावना की बात नहीं है। भारत के लिए यह बात हमेशा एक सिरदर्द बनी रहेगी कि फौजी तानाशाही, और धार्मिक आतंकियों के असर वाला यह देश परमाणु हथियार से लैस भी है, और इन दोनों तबकों में से कौन सा तबका कब कौन सा आत्मघाती फैसला ले ले, उसका कोई ठिकाना तो है नहीं। पड़ोस के घर में लगी हुई आग से दूसरे भी महफूज नहीं रह जाते।

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