संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : शहर, इंसान, और धरती को बचाने का बड़ा रास्ता है पब्लिक ट्रांसपोर्ट...
17-Jan-2025 4:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : शहर, इंसान, और धरती को बचाने का बड़ा रास्ता है पब्लिक ट्रांसपोर्ट...

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री, और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा है कि दिल्ली मेट्रो में छात्रों को रियायत दी जाए। उन्होंने लिखा कि स्कूल-कॉलेज जाने के लिए दिल्ली के छात्र बड़े पैमाने पर मेट्रो पर निर्भर रहते हैं। उन्हें 50 फीसदी की छूट दी जानी चाहिए ताकि उन पर बोझ कम हो। केजरीवाल ने यह भी कहा कि दिल्ली मेट्रो दिल्ली सरकार, और केन्द्र सरकार के आधे-आधे लागत वाली परियोजना है, इसलिए छात्रों को इस प्रस्तावित रियायत को राज्य और केन्द्र सरकार आधा-आधा दें। उन्होंने यह भी लिखा है कि वे छात्रों के लिए बस यात्रा पूरी तरह मुफ्त करने की योजना बना रहे हैं। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में 20 दिनों के भीतर ही, 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव हैं, और 8 फरवरी को नतीजे आएंगे। ऐसे में दस बरस से अधिक से दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी का मतदान के ठीक पहले का यह प्रस्ताव नौजवान वोटरों, और उनके परिवारों के लिए चुनावी रेवड़ी सरीखा भी लग सकता है। लेकिन इस शहर से परे, और इस चुनाव से परे भी इस सोच पर चर्चा होनी चाहिए।

हिन्दुस्तान में दर्जनों ऐसे शहर हैं जिनका विस्तार दस-बीस किलोमीटर से अधिक हो चुका है, और वहां पर लोगों की आवाजाही में बसों का बड़ा इस्तेमाल है। करीब डेढ़ दर्जन शहरों में मेट्रो भी चल रही हैं, और उन शहरों को इसका बड़ा सहारा है। मेट्रो और बस के बिना इन शहरों में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की आवाजाही की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन शहरी योजना में बड़ी खामियां और कमजोरियां हैं, कल्पनाशीलता की कमी है, और आज भी अधिकतर शहरों में आबादी का एक बड़ा हिस्सा निजी गाडिय़ों पर निर्भर करता है क्योंकि सार्वजनिक परिवहन उन्हें सिरे से सिरे तक नहीं पहुंचा पाता। दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली का ही हाल यह है कि साल में कुछ महीने वहां कई तरह के प्रदूषण जीना हराम कर देते हैं, और ऐसे में निजी गाडिय़ों से होने वाला प्रदूषण भी बहुत रहता है। इसलिए दुनिया के दूसरे विकसित देशों की तर्ज पर हिन्दुस्तान के शहरों में भी सार्वजनिक परिवहन को लगातार बढ़ाना जरूरी है, और इसे तेज रफ्तार से बढ़ाना इसलिए चाहिए कि लोग निजी गाडिय़ां खरीद लें, उसके पहले उन्हें अगर सहूलियत का पब्लिक ट्रांसपोर्ट मिल जाए, तो वे खरीदने से रूक सकते हैं।

दुनिया के विकसित देशों से भारत की आबादी की तुलना बहुत आसान नहीं है, और न ही वहां की सरकारों की क्षमता से भारत के देश-प्रदेश की सरकारों की आर्थिक ताकत की तुलना की जा सकती। लेकिन प्रदूषण का खतरा पूरी दुनिया पर मंडरा रहा है, और इसमें वाहनों का प्रदूषण एक बड़ा हिस्सेदार है जो कि कम किया जा सकता है। इसे बिजली और बैटरी से चलने वाली गाडिय़ों के रास्ते भी घटाया जा सकता है, सार्वजनिक परिवहन बढ़ाकर और निजी गाडिय़ों को कम करके भी किया जा सकता है। ऐसे में केजरीवाल का अभी सामने रखा गया प्रस्ताव चाहे एक चुनावी शिगूफा हो, इसे एक मुद्दा मानकर चुनाव के बाद भी देश भर में इस पर चर्चा हो सकती है। बढ़ते हुए प्रदूषण की वजह से जो जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उसके कारण पूरी दुनिया बहुत किस्म के नुकसान झेल रही है। आज की ही एक रिपोर्ट बताती है कि मौसम की मार से हिन्दुस्तान में फसल का कितना नुकसान हुआ है। मोंगाबे-इंडिया की 2022 की एक रिपोर्ट बताती है कि उसके पहले के छह बरसों में मौसम की सबसे बुरी बढ़ चली मार की वजह से करीब 7 करोड़ हेक्टेयर की फसल बर्बाद हुई। अब लोग सडक़ों पर गाडिय़ों के प्रदूषण से गिरती हुई उपज का रिश्ता सीधा नहीं जोड़ पाएंगे, लेकिन जब जलवायु परिवर्तन की बड़ी वजहों को देखेंगे, तो यह साफ-साफ समझ आएगा कि दुनिया को सार्वजनिक परिवहन की तरफ की कितनी जरूरत है। इसके साथ-साथ इस बात को भी समझना होगा कि सडक़ों के प्रदूषण से शहरी इंसानों की सेहत किस हद तक खराब हो रही है, वे किस हद तक सांस की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, और उनमें कैंसर का खतरा कितना बढ़ रहा है। इन सबको भी राष्ट्रीय उत्पादकता के साथ जोडक़र देखने की जरूरत है, और वह बहुत आसान नहीं है। इसलिए धरती और इंसान दोनों की सेहत गाडिय़ों की बढ़ती संख्या और उनके प्रदूषण से बर्बाद हो रही है, और इससे बचाने का फिलहाल तो अकेला जरिया पब्लिक ट्रांसपोर्ट है।

योरप के कुछ संपन्न देशों ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सौ फीसदी मुफ्त कर दिया है। कुछ और जगहों पर इसके साथ-साथ लोगों को जागरूक बनाने के लिए कई मौलिक प्रयोग किए जा रहे हैं। मेट्रो या बस की टिकट मशीन के सामने उठक-बैठक जैसी कसरत करने पर भी टिकट मुफ्त मिल जाती है, या ुकुछ जगहों पर खड़ी हुई साइकिल चलाकर उससे बिजली पैदा करने के एवज में ऐसी टिकट दी जाती है। समझदार देशों में लोग खुद होकर भी निजी गाडिय़ों का इस्तेमाल कम करते हैं, हालांकि अमरीका जैसे बेदिमाग और बददिमाग देश में लोग दानवाकार बड़ी-बड़ी गाडिय़ां रात-दिन दौड़ाते हैं। भारत को चूंकि अपनी आबादी को राशन और बिजली की रियायत सरीखी कई चीजें देनी ही रहती हैं, अलग-अलग पार्टियां, और अलग-अलग राज्य जनता को कई तरह की छूट दे रहे हैं, ऐसे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बड़ी रियायत, या पूरी छूट से शहर, शहरी, फेंफड़े, और पर्यावरण सब कुछ बच सकते हैं। आज निजी गाडिय़ों की बढ़ती भीड़ की वजह से जो महंगे फ्लाईओवर बनाने पड़ते हैं, रिंग रोड बनानी पड़ती हैं, उन सबकी लागत भी तो आती ही है। इसलिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढऩे से शहरी सडक़ों पर भीड़ भी घटेगी, और वैकल्पिक सडक़ें बनाने का अंतहीन सिलसिला भी थमेगा। चाहे आज की यह सलाह केजरीवाल की तरफ से आई हो, लेकिन इस पर दिल्ली का चुनाव निपट जाने के बाद पूरे देश में एक चर्चा होनी चाहिए, और सरकारों को दस-बीस बरस बाद के जलवायु परिवर्तन के खतरों को समझते हुए पब्लिक ट्रांसपोर्ट में, और उसकी रियायतों में पूंजीनिवेश करना चाहिए।

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