विचार / लेख
दरअसल एलजेपी को एक राज्यसभा सीट देने का फै़सला लोकसभा चुनाव के दौरान ‘सीट शेयरिंग फॉर्मूले’ के तहत तय हुआ था।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू दोनों 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और एलजेपी ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। साथ ही राज्यसभा की एक सीट एलजेपी के खाते में देने के लिए बीजेपी-जेडीयू तैयार हुए थे।
अगर आने वाले दिनों में रामविलास पासवान वाली ख़ाली राज्य सभा सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी एलजेपी के उम्मीदवार को नहीं उतारेगी तो ये उस फॉर्मूले का उल्लंघन होगा।
बिहार चुनाव के नतीजों के बाद, दिल्ली के 12 जनपथ वाले बंगले की चर्चा राजनीतिक गलियारों में खूब हो रही है।
12 जनपथ बंगला वर्षों से एलजेपी नेता रामविलास पासवान के नाम पर था। वे 9 बार सांसद रहे और केंद्र में मंत्री भी थे। इस नाते इतना बड़ा बंगला उन्हें मिला हुआ था। लेकिन अगर चिराग पासवान को केंद्र में पिता वाला मंत्री पद नहीं मिलता है तो 12 जनपथ बंगले से हाथ धोना पड़ सकता है।
यानी 12 जनपथ बंगले और चिराग दोनों की किस्मत केंद्र में एनडीए सरकार के साथ से जुड़ी है। इसलिए ये सवाल और भी अहम हो जाता है कि चिराग केंद्र की एनडीए सरकार में बने रहेंगे या फिर चले जाएँगे?
वैसे ये बात किसी से छुपी नहीं है कि नीतीश कुमार बिहार चुनाव के नतीजों के बाद से चिराग से कितने नाराज़ हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर किसी से इस बारे में भले ही न कहा हो, लेकिन अलग अलग मंच पर पार्टी के नेताओं ने इस बारे में ज़रूर कहा है।
चर्चा है कि नतीजे आने के घंटों बाद तक नीतीश कुमार और जेडीयू खेमे में चिराग की वजह से ही खामोशी छाई थी। पार्टी के नेता चाहते हैं कि चिराग को बीजेपी की तरफ़ से सख़्त संदेश दिया जाए।
एलजेपी को केंद्र से भी बाहर का रास्ता?
आखिर वो सख्त संदेश क्या होगा और कैसे दिया जाएगा?
एक विकल्प हो सकता है कि बिहार में सरकार बनने से पहले या तुरंत बाद, घोषणा कर दी जाए कि, चूँकि चिराग ने एनडीए के मुख्यमंत्री पद के दावेदार नीतीश कुमार का ख़ुलकर विरोध किया, इसलिए केंद्र में एनडीए से उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।
ऐसा करके नीतीश कुमार के ग़ुस्से को बीजेपी थोड़ा शांत कर सकती है और चिराग को संदेश भी मिल जाएगा। लेकिन इस तरीके से सख़्त संदेश देने पर बीजेपी में थोड़ी हिचकिचाहट दिख रही है।
केंद्रीय मंत्री और बिहार के बीजेपी के बड़े नेता रविशंकर प्रसाद ने एक टीवी चैनल पर साक्षात्कार में कहा, ‘एलजेपी, राष्ट्रीय पार्टी तो है नहीं। एक बिहार बेस्ड पार्टी है। चिराग ने बिहार में एनडीए गठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार नीतीश कुमार का खुला विरोध किया। इसलिए ये उन्हें तय करना है कि उनको आगे क्या करना है। लेकिन एक बात साफ़ है बीजेपी अपने गठबंधन के साथियों को ख़ुद नहीं भगाती। चाहे शिवसेना हो या फिर अकाली दल दोनों हमसे ख़ुद अलग हुए। ऐसे में चिराग को पिता वाला ख़ाली मंत्री पद मिलेगा या नहीं या वो ख़ुद एनडीए से केंद्र में अगल हो जाएँगे, ये मामला ऊपर के स्तर पर तय होगा।’
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के मुताबिक़ नीतीश कुमार भी इस तरीके से चिराग के विरुद्ध जाना नहीं चाहेंगे। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘नीतीश कुमार, चिराग पासवान की वजह से ग़ुस्से में ज़रूर हैं। लेकिन ‘बदले वाली डिश’को गर्म खा कर मुँह जलाने वाली ग़लती नीतीश नहीं करेंगे। वो अनुभवी नेता हैं। खाना ठंडा करके ही खाना पसंद करेंगे।’
दूसरी तरफ़ बीजेपी भी बिहार में ऐसा कुछ नहीं करेगी की नीतीश कुमार नाराज़ हों। बिहार में बीजेपी का लॉन्ग टर्म एजेंडा हैं अति पिछड़ों को पार्टी के साथ जोडऩा। उनके इस एजेंडे में चिराग पासवान से ज़्यादा नीतीश कुमार उनको सूट करते हैं।’
बीजेपी और नीतीश के लिए ‘पासवान’ वोट के मायने
बिहार में ‘पासवान’ जाति का 4-5 फ़ीसद वोट हैं।
सीएसडीएस लोकनीति के सर्वे के मुताबक़ि इस बार के चुनाव में ‘पासवान’ का 32 फ़ीसद वोट एलजेपी को मिला, 17 फीसद एनडीए को मिला और 22 फीसद महागठबंधन को मिला।
चुनाव में चिराग पासवान भले एक ही सीट जीत पाएँ हों, पर वोट शेयर 5 फीसद से भी थोड़ा ज़्यादा ही रहा। साल 2000 में एलजेपी के गठन के बाद से बिहार चुनाव 2020 से पहले तक उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 12 फीसद वोट शेयर का रहा था। इतना ही नहीं, उनका थोड़ा प्रभाव दूसरी दलित जातियों पर भी पड़ा।
लिहाजा बीजेपी और नीतीश नहीं चाहेंगे कि सीधे तौर पर चिराग पासवान को केंद्र में एनडीए से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए।
बीजेपी चिराग के बजाए उनके ‘पासवान’ वोट बैंक को साथ रखने की कोशिश करेगी, ताकि उन्हें ये समझाया जा सके कि आपके नेता ने ग़लती की है, वो ज़्यादा महत्वकांक्षी हो गए। उसके लिए उनके वोटर को सज़ा देना सही नहीं है।
प्रदीप सिंह कहते हैं कि बहुत मुमकिन है कि ऐसा करने पर एलजेपी में दरार पड़ जाए और पार्टी ही टूट जाए। कुछ नेता बीजेपी के समर्थन में खुल कर सामने आ जाएँ।
शायद इस बात का अहसास चिराग पासवान को भी है। और इसलिए पूरे चुनाव में वो ख़ुद को मोदी का हनुमान बताते रहे।
राम विलास पासवान के न रहने पर चिराग पासवान के लिए अकेले पार्टी को चलाना और एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती है।
लेकिन सीएसडीएस के संजय कुमार दूसरी बात कहते हैं। बीबीसी से उन्होंने कहा, ‘पासवान या नीतीश? अगर सवाल इस पर आ जाए तो बीजेपी जाहिर है कि नीतीश के साथ ही जाएगी। नीतीश कुमार का जनाधार भी चिराग पासवान से कहीं ज़्यादा है। 6 सांसदों के साथ एलजेपी के साथ जाना कोई समझदारी वाला फैसला नहीं होगा।’
वे कहते हैं, ‘पॉलिटिकल प्रोमिनेंस की बात करें तो बीजेपी को चिराग पासवान को साथ रखना चाहिए। नीतीश कुमार बीजेपी पर किसी भी वक़्त हावी हो सकते हैं , लेकिन चिराग का हावी होना थोड़ा मुश्किल होगा। बड़े परिपेक्ष में देखें तो चिराग बीजेपी के लिए एक दलित चेहरे के तौर पर काम कर सकते हैं।’
एलजेपी का मंत्रीपद
चिराग को ना मिले
एलजेपी को सख्त संकेत देने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि राम विलास पासवान के निधन के बाद, केंद्र में एलजेपी के कोटे का एक खाली पड़ा मंत्री पद बीजेपी चाहे तो एलजेपी को न दे।
डेढ़ साल पहले केंद्र में एनडीए की सरकार बनी। उनके दो पार्टनर शिवसेना और अकाली दल बाद में उससे अलग हो गए। हाल ही में रामविलास पासवान का निधन हो गया। इन वजहों से केंद्र में कई मंत्री पद ख़ाली पड़े हैं।
बिहार चुनाव के बाद इन मंत्री पदों को भरने के लिए मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा काफ़ी दिनों से चल रही है।
ऐसे में एक संभावना ये बनती दिख रही है कि नीतीश की नाराजग़ी को दूर करने के लिए रामविलास पासवान की खाली जगह चिराग को या पार्टी के दूसरे सांसद को न देकर बीजेपी के किसी नेता को दे दिया जाए।
जानकार इस संभावना से भी इंकार नहीं करते कि जेडीयू, जो अब तक केंद्र में सरकार में शामिल नहीं है उनके कोटे से कोई मंत्री बन जाए।
दोनों ही सूरत में एलजेपी को बिना कुछ कहे एक संदेश मिल जाएगा कि बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ जाने की सज़ा उन्हें केंद्र में मंत्री पद गंवा कर मिली है।
प्रदीप सिंह कहते हैं कि इस बात की संभावना ज़्यादा है कि चिराग को केंद्र में मंत्री पद न मिले। ऐसा करके बीजेपी नीतीश कुमार को थोड़ा ‘कम्फर्ट ज़ोन’ में ले जाने की कोशिश कर सकती है। इससे चिराग भी एनडीए का दामन छोडऩे के लिए मजबूर हो जाएंगे।
इस बात का इशारा ख़ुद रविशंकर प्रसाद टीवी चर्चा में दे चुके हैं।
रामविलास पासवान वाली राज्यसभा सीट भी गंवा सकते हैं चिराग?
प्रदीप सिंह एक तीसरे तरीके की भी बात करते हैं। उनके मुताबिक़ अगर नीतीश थोड़ा और इंतज़ार करने के मूड में हों तो हो सकता है रामविलास पासवान वाली राज्य सभा सीट के लिए जब उपचुनाव हों तो भी उम्मीदवार एलजेपी का न उतारा जाए।
दरअसल एलजेपी को एक राज्यसभा सीट देने का फै़सला लोकसभा चुनाव के दौरान ‘सीट शेयरिंग फॉर्मूले’ के तहत तय हुआ था।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू दोनों 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और एलजेपी ने 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। साथ ही राज्यसभा की एक सीट एलजेपी के खाते में देने के लिए बीजेपी-जेडीयू तैयार हुए थे।
अगर आने वाले दिनों में रामविलास पासवान वाली ख़ाली राज्य सभा सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी एलजेपी के उम्मीदवार को नहीं उतारेगी तो ये उस फॉर्मूले का उल्लंघन होगा। (bbc.com/hindi)
लेकिन ऐसा करके बीजेपी चिराग पासवान को इतना मजबूर कर सकती है कि वो ख़ुद ही एनडीए से बाहर हो जाएँ। (बीबीसी)


