विचार / लेख

बिहार पर कुछ खरी-खरी का मौका...
05-Sep-2020 5:29 PM
बिहार पर कुछ खरी-खरी का मौका...

कीर्तिश भट्ट का कार्टून बीबीसी पर


-शिशिर सोनी

बिहार को रसातल में पहुंचा देने वाले नेताओं से सवाल करने के समय आ गया है। हिसाब किताब करने का समय आ गया है। चुनाव आज हो या कल। चुनावी बेला में मुखर हो कर सवाल करें। सोचें, समझें कि नीतीश, लालू से इतर क्या प्रयोग हो सकते हैं?

सत्ता में चूंकि नीतीश कुमार हैं। तो ज्यादा सवाल उनके हिस्से आयेगा। देश में शायद ही कोई नेता होगा जिसकी किस्मत नीतीश जैसी होगी। लगातार 26 सालों से सत्ता का सुख भोग रहे हैं। फिर भी बिहार की किस्मत क्यों नहीं बदली?

नीतीश कुमार से 26 सालों का हिसाब किताब लेना चाहिए। 1990 में नीतीश, लालू के साथ मंत्री थे। 1994 में लालू से अलग हो कर समता पार्टी बनाई। 1994 से 1997 चार साल सत्ता से दूर रहे। 1998 की केंद्र की वाजपेयी सरकार में मंत्री बने। फिर 2004 से लगातार बिहार के सीएम हैं। मतलब गत तीस सालों में नीतीश केवल चार साल सत्ता से बाहर रहे। तो ठीक है 30 साल का नहीं 26 साल का हिसाब लीजिये।

बिहार के स्कूल, कॉलेज, अस्पतालों की दुर्दशा का कौन जिम्मेदार है?

26 साल, शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल
बिहार से बच्चों की पढ़ाई पर सबसे ज्यादा पैसा दूसरे राज्यों को जाता है। क्यों? क्योंकि बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर कभी काम नहीं हुआ। आखिर क्यों हमारे बच्चे कोटा जाते हैं। पहले स्कूलिंग फिर कोचिंग सब राजस्थान के कोटा में। नीतीश कुमार ने क्या कभी कोशिश की कि कोटा कोचिंग स्कूल वाले बिहार में अपनी ब्रांच खोलें। ताकि बिहार का पैसा बिहार में रहे। स्थानीय लोगों को रोजगार मिले। बच्चों को बाहर न जाना पड़े! बस एक उदाहरण दे रहा हूँ। नीतीश और उनके कुनबे से सवाल होने चाहिए इस दिशा में उन्होंने क्या किया? सरकारी स्कूलों के हाल पर तो किसी को भी रोना आ जाए। लेकिन 26 साल राज करने वाले नीतीश बदहाल शिक्षा व्यवस्था में खुशहाल हैं !

26 साल, स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल
अस्पतालों की दुर्दशा कैसी है उसकी पोल पट्टी कोरोना ने खोल दी। तीन दशक में पटना को एक एम्स मिला। वो भी सुषमा स्वराज की देन थी। राज्य सरकार ने कितने अस्पताल खोले? जो खुले हैं उनकी ऐसी अव्यवस्था क्यों है? ये सवाल होने चाहिए। आज भी क्यों बिहार के लोगों को समय पर समुचित इलाज का अभाव है? वहाँ के डॉक्टरों पर लोगों का भरोसा क्यों नहीं बन पा रहा? निजी अस्पतालों को लूट का अड्डा क्यों बनने दिया गया? सरकार और स्वास्थ्य माफिया के बीच सांठगांठ पर सवाल होने चाहिए?

26 साल, उद्योग धंधे का बुरा हाल
बिहार में एक भी कल कारखाने नहीं लगे, क्यों? नीतीश के पार्टनर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोतिहारी की जनता से वायदा किया था - अगली बार आऊंगा तो मोतिहारी चीनी मिल की चाय पियूँगा। मिल खुलेगी। चीनी मिल खुल गई क्या? आज तक नहीं खुली वो भी तब जब राधा मोहन सिंह मोतिहारी से सांसद बनने के बाद केंद्र में कृषि मंत्री बनाये गए। मोतिहारी की जनता झूठे वादे पर दौड़ाना जानती है, सो, उसके बाद से मोदी गायब हैं। 2019 के चुनाव में मोदी मोतिहारी से कन्नी काट गए। गये ही नहीं। नितीश ने इस संबंध में क्या किया?

कार्टूनिस्ट इरफान

चकिया, सुगौली, नरकटिया गंज सहित दजऱ्नों चीनी मिल बंद पड़े हैं। नीतीश कुमार ने इन्हे शुरू कराने के लिए क्या किया? इन मिलों में काम करने वाले लाखों कामगारों की हालत आज क्या है ? किस फटेहाली में वे जी रहे हैं, नितीश ने कभी सुध ली? क्यों नही ली? बिहार में बड़े पैमाने पर सीप से बटन बनाने के कारखाने थे सब बंद पड़े हैं। नितीश कुमार ने 26 सालों में इसे शुरू कराने के क्या प्रयास किये?

मुजफ़रपुर की लीची, दीघा का दूधिया मालदा आम, हजीपुर का केला, दरभंगा का मखाना, भागलपुर का सिल्क, देश विदेश में प्रसिद्ध है। फिर भी उद्योग धंधे क्यों नहीं ला रहे? एक भी फूड प्रोसेसिन्ग यूनिट आज तक क्यों नहीं लगा?

आखिर क्यों हमारे खेतिहर पंजाब जाते हैं मजदूरी करने? जाहिर है रोजगार के लिए। बिहारी बिहार में इज़्ज़त से जीवन बसर कर सकते हैं अगर यहाँ कल कारखाने लगेंगे तो हमारे मेहनतकश लोगों को बिहार में ही काम मिलेगा। स्कूल, कॉलेज, कोचिंग की व्यवस्था ठीक होगी तो बिहार का पैसा बिहार में रुकेगा। रोजगार के साधन बढ़ेंगे। अस्पतालों की स्थिति ठीक होगी तो गरीब निजी अस्पतालों में लुटने से बचेंगे। समय पर गरीबों को इलाज मिल सकेगा।

बिहार जहाँ तीस साल पहले था, वहाँ से कितने कदम आगे चल पाया? सवाल होने चाहिए। बिहार में सबसे ज्यादा युवा आबादी है, ्रनीतीश कुमार की इनके लिए क्या योजऩा है? युवाओं को सवाल करना चाहिए आखिर सबसे ज्यादा 46 फीसदी बेरोजगारी बिहार में क्यों है? स्वच्छ भारत के सर्वे में बिहार की राजधानी पटना को सबसे गंदे शहर का मेडल मिला, नितीश कुमार के 26 साल में हमें ये मिला? सोचिये। मीमांसा कीजिये। सवाल बनाइये। सवाल उठाइये।

मैं ये सवाल इसलिए उठा रहा हूँ क्योंकि अभी ही उचित समय है। तकरीबन एक करोड़ ऐसे बिहारी अभी बिहार में हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में असम से कन्याकुमारी तक खाक छान कर कोरोना काल में लौटे हैं। राज्य दर राज्य से आये बिहारी लोगों के मन में इस बात की जबरदस्त टीस है कि बिहार की ऐसी दुर्गति क्यों है?

बिहार की जनता को चाहिए कि इसबार चुनावी मैदान में आये सभी दलों से विजन डॉक्यूमेंट मांगे। बिहार को ये दल पांच सालों में किस रास्ते पर और कैसे ले जाना चाहते हैं उसका लिखित दस्तावेज हो। फिर ये तय हो की किस दल को वोट किया जाए। जाहिर है इसके लिए जातपात से ऊपर उठना होगा।
मगर नीतीश कुमार से 26 साल का हिसाब जरूर मांगे। हर मंच से। हर चौक चौराहे से। हर चाय, पान की दुकान से।


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