विचार / लेख
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-आर के जैन
दिल्ली में दिवाली से पहले ही वायु प्रदूषण का स्तर चरम पर पहुंच गया है । आनंद विहार का AQI 426 दर्ज हुआ है जबकि
अभी तो दिवाली के पटाखे भी नहीं फूटे हैं और न तो पंजाब में इस बार कोई पराली जलाने की खबर है । फिर राजधानी की हवा में अचानक हुए इस दमघोंटू बदलाव की वजह क्या है?
दीवाली से पहले ही दिल्ली एक बार फिर गैस चैंबर बन चुकी है । हवा में घुला जहर इतना बढ़ गया है कि राजधानी का हर दूसरा इलाका ‘बेहद खराब’ से लेकर ‘गंभीर’ श्रेणी तक पहुंच चुका है । केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की तरफ से रविवार सुबह को जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 274 दर्ज किया गया, जो ‘खराब’ श्रेणी में आता है ।
हालांकि कुछ ही घंटों में हालात और बिगड़ गए। सुबह 7 बजे आनंद विहार का AQI 426 तक पहुंच गया. वहीं आरके पुरम (322), विवेक विहार (349), अशोक विहार (304), बवाना (303), और जहांगीरपुरी (314) जैसे इलाके भी ‘बेहद ख़राब’ श्रेणी में रहे।
राजधानी की हवा में अचानक हुए इस दमघोंटू बदलाव ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है । कई लोगों को फिक्र है कि अभी तो दिवाली के पटाखे भी नहीं फूटे हैं तब हवा में ऐसा जहर घुल गया, फिर दिवाली के बाद दिल्ली का क्या होगा।
एक और सवाल यह भी उठ रहा है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाए जाने को एक बड़ी बताया जाता रहा है, लेकिन पंजाब में हालिया बाढ़ की वजह से सारे खेत डूब गए हैं। ऐसे में पराली जलाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठाता तो फिर दिल्ली में सांसों पर आए इस संकट की वजह क्या है?
दरअसल दिल्ली की दमघोंटू हवा अब किसी एक वजह का नतीजा नहीं है बल्कि यह कई कारकों के मिले-जुले असर का परिणाम है, जिनमें सबसे बड़ा हिस्सा वाहनों से निकलने वाले धुएं, सड़क की धूल, और औद्योगिक प्रदूषण का है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक दिल्ली की कुल प्रदूषण लोड में सबसे बड़ा योगदान परिवहन क्षेत्र का है… लगभग 15.6 प्रतिशत । वाहनों से निकलने वाला धुआं, धूल और औद्योगिक उत्सर्जन मिलकर वायु गुणवत्ता को तेजी से गिरा रहे हैं । इसके अलावा, दिवाली से पहले चलने वाले निर्माण कार्यों की धूल और कूड़ा जलाने जैसी गतिविधियां भी हवा को ज़हरीला बना रही हैं।
दिल्ली में प्रदूषण का यह संकट हर साल दीवाली से पहले और बाद में चरम पर पहुंचता है। हर बार इसकी वजह पराली को बताया जाता है, लेकिन इस बार आंकड़े कुछ और कहानी कह रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में कुछ कम हैं, फिर भी दिल्ली की हवा इतनी खराब क्यों है? जवाब है- शहर के भीतर के प्रदूषण स्रोत।
वाहनों से उत्सर्जन, सड़क की धूल, और निर्माण गतिविधियां इस समय दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान दे रही हैं। सड़कों पर जमा मिट्टी, खुले निर्माण स्थल और ट्रैफिक जाम के कारण उठने वाली धूल राजधानी की हवा को ज़हर बना रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में 18 से 23 प्रतिशत योगदान वाहनों से और 15 से 34 प्रतिशत सड़क धूल से आता है।
साफ है कि दिल्ली की हवा केवल पराली की वजह से जहरीली नहीं हुई है । यह राजधानी के अंदरूनी प्रदूषण, वाहनों की भीड़, सड़कों की धूल और सीमित सरकारी कार्रवाई का सम्मिलित परिणाम है। जब तक दीर्घकालिक और सख्त नीतियां लागू नहीं की जातीं, हर साल अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली का दम ऐसे ही घुटता रहेगा… चाहे पराली जले या नहीं।


