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भारत: सड़क हादसा होने के बाद क्या करें और क्या नहीं
18-Sep-2025 1:56 PM
भारत: सड़क हादसा होने के बाद क्या करें और क्या नहीं

दिल्ली में बीएमडब्ल्यू गाड़ी के साथ हुए हादसे में वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी घायल हो गए. बीएमडब्ल्यू की ड्राइवर उन्हें इलाज के लिए 19 किमी दूर स्थित एक अस्पताल लेकर गईं. अब यही उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हो रही है.

 डॉयचे वैले पर आदर्श शर्मा का लिखा- 


दिल्ली में 14 सितंबर को हुए इस हादसे में जान गंवाने वाले नवजोत सिंह की पत्नी संदीप कौर ने बीएमडब्ल्यू कार की ड्राइवर गगनप्रीत पर कई आरोप लगाए हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, संदीप का कहना है कि उन्होंने कई बार गगनप्रीत से कहा था कि वे उन्हें प्राथमिक उपचार के लिए किसी नजदीकी अस्पताल में ले चलें लेकिन गगनप्रीत जानबूझकर उन्हें काफी दूर एक छोटे अस्पताल में लेकर गईं.

वहीं, गननप्रीत ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि वह घबरा गई थीं और केवल उसी अस्पताल के बारे में जानती थी क्योंकि कोरोना महामारी के दौरान वहां उनके बच्चों का इलाज हुआ था. इसके बाद पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि उस अस्पताल का मालिक गगनप्रीत का रिश्तेदार है, शायद इसलिए ही गगनप्रीत घायलों को वहां लेकर गई थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस मामले में पुलिस ने गगनप्रीत पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत, गैर-इरादतन हत्या, सबूतों से छेड़छाड़ और लापरवाही से गाड़ी चलाने के आरोप लगाए हैं. बुधवार को कोर्ट ने उन्हें 27 सितंबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया. इसके अलावा, उस अस्पताल के रिकॉर्ड भी पुलिस ने जांच के लिए जब्त कर लिए हैं.

नजदीकी अस्पताल ले जाना क्यों है जरूरी

सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले हरमन सिंह सिद्धू भी इसे गगनप्रीत की बड़ी गलती बताते हैं. वे कहते हैं, "एक तरफ प्लैटिनम मिनट और गोल्डन आवर की बात होती है, जिसका मतलब होता है कि ऐसी दुर्घटना की स्थिति में घायल को सबसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचाया जाए. लेकिन आप (गगनप्रीत) उन्हें दिल्ली जैसी जगह में करीब 20 किलोमीटर दूर लेकर जा रहे हो, इसका मतलब है कि इसमें कम से कम 35 से 40 मिनट लगे होंगे. अगर उन्हें कहीं नजदीकी अस्पताल में ले जाया जाता तो इस बात की काफी संभावना है कि वो अधिकारी आज जिंदा होते.”

सिद्धू 1996 में खुद एक सड़क दुर्घटना का शिकार हुए थे, जिसके बाद उन्होंने सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए ‘अराइव सेफ' एनजीओ की शुरुआत की थी. वे कहते हैं, "घायल को नजदीकी अस्पताल ले जाना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि वहां मौजूद डॉक्टर और स्टाफ को आपातकालीन मामलों को संभालना आता है. अधिक खून बहने या सांस लेने में समस्या होने पर वे प्राथमिक उपचार कर सकते हैं और समस्या को देखते हुए आगे के इलाज के लिए सही अस्पताल का सुझाव दे सकते हैं.

क्या होता है गोल्डन आवर और प्लैटिनम मिनट

दुर्घटना होने के बाद के पहले एक घंटे को गोल्डन आवर कहा जाता है. अगर इस समय घायल को उचित मदद मिल जाती है तो उसके जीवित रहने की संभावना काफी बढ़ जाती है, इसलिए घायल को जल्द से जल्द नजदीकी अस्पताल पहुंचाना जरूरी होता है. वहीं, हादसे के बाद के पहले 10 मिनटों को प्लैटिनम 10 मिनट कहा जाता है. यह समय घायल को अस्पताल ले जाने और इलाज शुरू करने के लिहाज से काफी जरूरी होता है.

हालांकि, सिद्धू इस मामले में सावधानी बरतने की सलाह देते हैं. वे कहते हैं, "अगर घायल हुए व्यक्ति के सिर या रीढ़ की हड्डी में चोट लगती है और उसे थोड़ा भी गलत तरीके से हिलाया जाता है तो उसकी चोट और बढ़ सकती है. इसलिए जरूरी है कि घायल को सीधा लिटाया जाए ताकि उसके दिमाग में खून की आपूर्ति सामान्य रहे.”

सिद्धू यह भी कहते हैं कि अगर एंबुलेस कम समय में आने वाली हो तो घायल को स्ट्रेचर पर एंबुलेंस से ही ले जाना चाहिए क्योंकि सामान्य गाड़ी में झटके भी ज्यादा लग सकते हैं और समस्या बढ़ सकती है. उन्होंने आगे कहा कि एंबुलेंस के ना आने पर पुलिस की पीसीआर गाड़ी भी एक विकल्प हो सकती है क्योंकि उन्हें भी ऐसी घटनाओं को संभालने का प्रशिक्षण मिला होता है.

 

दुर्घटनास्थल पर मौजूद लोगों का क्या है फर्ज

दुर्घटनास्थल पर मौजूद लोगों की भी एक अहम भूमिका होती है. वे काफी मदद भी कर सकते हैं और उनकी वजह से स्थिति बिगड़ भी सकती है. सिद्धू कहते हैं, "जब कोई दुर्घटना होती है तो लोग वहां जाकर इकट्ठे हो जाते हैं, जिससे वहां ऑक्सीजन कम हो जाती है…इसके अलावा, कई बार लोग घायलों की वीडियो भी बनाने लगते हैं, जो बेहद असंवेदनशील होता है. कानूनी तौर पर इसके खिलाफ कोई नियम नहीं है लेकिन वहां मौजूद लोगों की प्राथमिकता मदद करने की होनी चाहिए.”

भारत में पहले दुर्घटनास्थल पर मौजूद लोग घायलों की मदद करने से कतराते थे क्योंकि उन्हें कानूनी पचड़े में फंसने का डर होता था. हालांकि, 2015 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मदद करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिए थे. इसके तहत, अगर दुर्घटनास्थल पर मौजूद कोई व्यक्ति घायल को अस्पताल पहुंचाता है तो वहां उससे कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा और उसे निजी जानकारी देने के लिए भी बाध्य नहीं किया जाएगा.

भारत में इस साल एक नई योजना भी शुरू की गई है, जिसके तहत सड़क दुर्घटना में घायल हुआ कोई भी व्यक्ति 1.5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज पाने का हकदार है. इसके लिए दुर्घटना के 24 घंटे के भीतर पुलिस को सूचना देना जरूरी होता है. भारत में पिछले साल सड़क दुर्घटनाओं में 1.8 लाख मौतें हुई थीं. इस आंकड़े में सुधार लाने के लिए ही सरकार ने यह योजना शुरू की है, ताकि पैसों और इलाज के अभाव में किसी की जान ना जाए.


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