विचार / लेख
-सनियारा खान
स्वाभिमानी औरतों को हमेशा पितृसत्तात्मक समाज से लड़ते हुए जि़न्दगी गुजारनी पड़ती हैं। यहां मैं बात करना चाहूंगी एमी बिशेल की। वे ब्रिटेन की एक बहुत ही चर्चित लेखिका है। एक बार उन्हें एक पार्टी के लिए आमंत्रित किया गया था। वे उस पार्टी में अपनी ग्यारह साल की बेटी मेबेल को साथ लेकर गई थी। पार्टी के बीच में एक सत्तर साल के आदमी ने मेबल को ‘तुम तो बहुत ही सुंदर हो’ कहकर उसे घूर रहा था। उस आदमी के कारण मेबेल पूरे समय पार्टी में चुप सी रही और असहज महसूस कर रही थी। बेटी का चेहरा देखकर एमी भी समझ गई थी कि उसे पार्टी में मजा नहीं आ रहा है। लेकिन शिष्टाचार के कारण एमी उस आदमी को कुछ कह नहीं पाई। पार्टी खत्म होने के बाद मां-बेटी दोनों घर आ गए। घर आने के बाद एमी फिर से पूरी घटनाक्रम को याद कर के समझने की कोशिश कर रही थी। सभी पक्षों को ध्यान से सोचकर एमी को लगने लगा कि उससे एक बहुत बड़ी गलती हो गई है। पार्टी में ही सभी के सामने उस आदमी को कह देना चाहिए था कि उनका व्यवहार ग्रहण योग्य नहीं है। अब एमी मेबेल के पास जाकर उससे माफी मांगी। क्योंकि उनको लगा कि वे एक मां होकर भी बेटी के साथ होते हुए अन्याय को चुपचाप देख रही थी। बेटी को कैसा महसूस हो रहा था इस बात को छोडक़र वे एक अनजान आदमी क्या सोचेगा इस बात को लेकर फिक्र कर रही थी। बहुत देर तक बात करने के बाद दोनों ने मिलकर ये तय किया कि जिस तरह की बातों से वे अपमानित या असहज महसूस करे, उस तरह की बातें सुनकर वे खामोश न रहकर उसी समय विरोध जताएंगे। चाहे इसके लिए कोई उनको घमंडी समझे या अशिष्ट समझे! जहां सवाल आत्मसम्मान को लेकर उठता है, वहां किसी भी तरह से समझौता नहीं करना चाहिए। एमी बिशेल ने उनकी जि़ंदगी में घटनेवाली ऐसी ही कई घटनाओं के बारे में अपनी किताब ‘बैड मैनर्स’(Bad Manners) में लिखा है। व्यक्तिगत रूप से वे चाहती थी कि ज्यादा से ज्यादा मर्द ये किताब जरूर पढ़ें। तभी वे समझ पाएंगे कि उनकी किस प्रकार की हरकतों से औरतें अपमान और शर्म महसूस करती हैं! किसी औरत को स्वस्थ रूप से प्रशंसा कर पाना भी एक हूनर है और मर्दों को ये हूनर आना चाहिए। एमी जानती थी कि उनकी बेटी मेबेल की आँखें और बाल बहुत सुंदर हैं। लेकिन उसमें कई और अच्छी बातें भी थी। वह सरल स्वभाव की थी और उसे किताबें पढऩा बहुत पसंद था। पर उसकी इन बातों पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता था। जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, लोग उसकी सुंदरता के कारण उसकी और ज़्यादा तारीफ करने लगें। एमी को भी उसे सजाने संवारने में मजा आता था। उसे नए-नए डिज़ाइन के कपड़े लेकर देती थी। उसकी बालों को अलग-अलग स्टाइल में बनवाती थी। लेकिन उस पार्टी वाली रात के बाद से जि़ंदगी को लेकर एमी का नजरिया ही बदल गया। उनको समझ में आया कि औरतों को बाहरी सुंदरता से ज़्यादा अंदर से हिम्मती होना जरूरी है। हिम्मत न होने के कारण ही वे अपनी बेटी को अपमानित होते देखकर भी उस अनजान आदमी से कुछ नहीं कह पाई। एमी खुद भी अपनी जिंदगी की कुछ घटनाओं को याद करती है। सिर्फ बारह साल की उम्र में ही एक आदमी ने उनके शरीर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। पंद्रह साल की उम्र में एक रेस्टोरेंट के मैनेजर ने उनको अश्लील ढंग से छुआ था। उस दिन घर आकर एमी पूरी रात रो रही थी। ज़्यादातर बच्चियां, लड़कियां या महिलाओं के अंदर इस तरह की कई अनचाही बातें छुपी रहती हैं। एमी बिशेल की लिखी हुई इस किताब में समाज के हर नागरिक के लिए सीखने लायक कई प्रकार की बातें हैं। जैसे, लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए सभी को मिल कर सामने आना चाहिए।
हर इंसान को हर अन्याय के खिलाफ बोलना चाहिए।
समाज आप से क्या चाहता है इस की जगह आप खुद को लेकर क्या चाहते है, इस बात को गंभीरता से सोचिए।
आपसे गलत फायदा उठाने की कोशिश करने वाला चाहे वृद्ध हो या कम उम्र का लडक़ा हो, आप उस समय शिष्टाचार को भूल जाइए और सबके सामने उस आदमी का मुखौटा उतार फेंकने की हिम्मत कीजिए।
इस किताब से ये बात भी समझना चाहिए कि एक औरत अपने अंदर उसके साथ किए गए अन्याय और शारीरिक तथा मानसिक अपमान को सालों तक छुपाकर रखते-रखते एक समय के बाद वह मानसिक संतुलन खो देती है और तब तक बहुत देर हो जाती है।
एक और अफसोस करने लायक सच ये है कि अपने देश में अब जो माहौल है, उसे देखकर तो ऐसा लगता है कि यहां समाज और उसकी मानसिकता को शायद ही कोई बदल पाए! पर फिर भी गलत के खिलाफ प्रतिवाद जारी रखने के लिए सभी को प्रतिबद्ध होना चाहिए। क्योंकि प्रतिवाद के बिना तो बदलाव संभव ही नहीं है।


