विचार / लेख
-राजीव सरदारीलाल
किसी भी देश को तरक्की पाने के लिए अन्य कारकों के अलावा वहां की उच्च शिक्षा का भी मजबूत होना एक महत्वपूर्ण कारक है ।अगर भारत को आगे तरक्की पाना है तो उच्च शिक्षा पर सर्वाधिक काम करने की जरूरत है।
उच्च शिक्षा की बेहतरी और उसे बढ़ावा देना तरक्की पाने का सबसे आसान, सस्ता एवं लंबे समय तक के लिए किए जाने वाला उपाय है जो देश के लिए सैकड़ो तरक्की के दरवाजे खोल देगा। इसका सबसे अच्छा उदाहरण देश में कंप्यूटर आने के बाद देश के युवाओं का उल्लेखनीय प्रदर्शन है।
क्या देश इस ओर काम कर रहा है ? क्या सरकारें इस काम पर पर्याप्त ध्यान और खर्च कर रही हैं? आइये आंकड़ों से स्थिथि को समझते है कि हम किस ओर बढ़ रहे हैं और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उच्च शिक्षा के नाम पर सबसे ज्यादा उल्लेख शिक्षा महाविद्यालयों का किया गया है। शिक्षा महाविद्यालयों की पूरे देश में क्या स्थिति है यह किसी से छुपी नहीं है। हाल के सालों में केंद्र सरकार की संस्था राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद जो भारत में शिक्षा पाठ्यक्रमों को संचालित एवं मान्यता देती है, उसने दो साल के पाठ्यक्रम वाले बी।एड। एवं डी।एड। के नए महाविद्यालयों के आवेदन लेने भी बंद कर दिए हैं। नए महाविद्यालय अब सिर्फ चार साल पाठ्यक्रम के खुलेंगे और उसकी गति भी अत्यंत धीमी है।
राज्य सरकार द्वारा संचालित संस्थाएं तो इन चार साल वाले पाठ्यक्रम को खोल पाने के लिए योग्य भी नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा तय मानकों पर राज्य की बहुत सारी संस्थाएं अमानक पाई गई हैं। जाहिर है मांग को देखते हुए देश में शिक्षा महाविद्यालय निजी ही खुलेंगे। इसके अलावा तकनीकी शिक्षा और अन्य पाठ्यक्रमों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। सरकारी उच्च शिक्षण संस्थाओं का योगदान लगातार घटता जा रहा है। तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा में सरकारी संस्थाएं शिक्षा के परिदृश्य से गायब होती जा रही है। देश में अभी की स्थिति में सत्तर प्रतिशत उच्च शिक्षण संस्थाएं निजी है।
नामी संस्थाओं जैसे आई.आई. टी., आई.आई.एम., आई.आई.एस.सी. जैसी संस्थाएं बहुत अच्छी हैं लेकिन बहुत कम हैं। इतने बड़े देश में ऐसी उत्कृष्ट संस्थाओं की संख्या नगण्य है। हम भले ऐसे चुनिन्दा संस्थाओं पर छाती ठोंक लें लेकिन बड़ी आबादी के लिए सरकारी विश्वविद्यालय और कॉलेजों की बहुत कमी है ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (देश की 18-23 वर्ष की आबादी के मुकाबले स्नातक में प्रवेश लेने वाले छात्र/छात्राओं की संख्या) मौजूदा 27 प्रतिशत से वर्ष 2035 तक 50 प्रतिशत करने की बात कही गई है। लेकिन ऐसा किसी भी सूरत में होता दिख नहीं रहा। केंद्र तथा राज्य सरकार नई शिक्षा नीति के लक्ष्य पाने के लिए अपने प्रयास कर रहा है लेकिन यह सफल होंगे इसमें बड़ा संदेह है। इसका सबसे बड़ा कारण केंद्र एवं राज्य सरकारों की उच्च शिक्षा के प्रति उदासीनता है। उच्च शिक्षा से लगभग सरकारों ने अपने खर्च के मामले में हाथ खींच लिए हैं। जी.ई.आर. विकसित देशों में भारत के मुकाबले बहुत ज्यादा है जैसे अमेरिका 88, जर्मनी 70 तथा कनाडा 69 प्रतिशत।
सरकारों की उच्च शिक्षा के प्रति कंजूसी पर विद्यार्थी को दी जाने वाली छात्रवृत्ति पर असर साफ़ दिख रहा है । बहुतायत विद्यार्थी जिस छात्रवृत्ति मिलने से व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करते हैं उसे तमाम सरकारों ने ना ही बढ़ाया है यहाँ तक की छात्रवृत्ति को लगातार कम करने का काम किया जा रहा है। जहां निजी महाविद्यालयों की फीस बढ़ती जा रही है गरीब विद्यार्थियों की पहुंच उच्च शिक्षा पर खत्म होती जा रही है।
अन्य देशों में उच्च शिक्षा का ढांचा इस तरह तैयार किया जाता है की सृजन होने वाली नौकरियां, स्वरोजगार के अवसरों और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में किसी तरह का तालमेल हो ताकि पढक़र निकालने के बाद विद्यार्थी बेरोजगार ना रहे लेकिन ऐसा कोई तालमेल आज तक देश नहीं बना पाया है।
कोर्स की डिमांड ज्यों ज्यों बढ़ती है सरकार की एजेंसियां और निजी महाविद्यालय उस कोर्स की मान्यता लेने के लिए टूट पड़ते हैं लेकिन जैसे ही उस कोर्स में सैचुरेशन, कम प्रवेश होना शुरू होता है अच्छे-अच्छे कॉलेजों को कोर्स और फिर कॉलेज बंद करने की नौबत आ जाती है। इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर की फूड डिलीवरी करने की हालिया खबरें दिल दुखा देने वाली थी।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2021 से लेकर 2031 तक प्रतिवर्ष एक करोड़ लोग नौकरी पाने की स्थिति में रहेंगे एक करोड़ रोजगार या स्वरोजगार के अवसर कैसे पैदा होंगे, यह कोई सरकार या उसका कोई विभाग नहीं बता पा रहा । किसी तरह का ढांचा उच्च शिक्षा को लेकर पूरा देश नहीं बना पाया है। बहुत से राज्यों में उस राज्य के लोग अपने उच्च शिक्षा मंत्री तक का नाम नहीं बता पाएंगे।
इतनी बुरी स्थिति और चेतना उच्च शिक्षा को लेकर इस देश में है जबकि उच्च शिक्षा देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए काफी है। इसी देश के कंप्यूटर तथा सॉफ्टवेयर के विद्यार्थियों ने पूरे विश्व में अपने झंडे गाड़े हैं। सबसे ज्यादा रोजगार और पैसा देश के युवाओं ने इसी क्षेत्र में बनाया है और देश को समृद्ध किया है। भारत की अन्य देशों में पहचान सॉफ्टवेयर में दक्ष इन्हीं युवाओं के कारण हुई है लेकिन इस एक क्षेत्र के अलावा ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहां इस देश की युवा बहुत अच्छे से अपने हुनर का लोहा मनवा सकते हैं लेकिन उच्च शिक्षा का खस्ता हाल ऐसे सारे अवसरों को धूमिल कर रहा है।
उच्च शिक्षा का पर किया जाने वाला खर्च बहुत ही कम है । गरीब विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा में अवसर उपलब्ध कराने के लिए सरकारी कॉलेज का होना बहुत जरूरी है क्योंकि पूरे विश्व में हमारे देश की उच्च शिक्षा जिस गति से महंगी हो रही है वह अन्य किसी भी देश में नहीं हो रही। जहां तक स्वरोजगार की बात है बहुत से ऐसे हुनर जो अन्य देशों में बहुत पैसा देते हैं, फिलहाल हमारे देश में भी ऐसे हुनर वाले कम है जैसे बिजली मिस्त्री (इलेक्ट्रीशियन), प्लंबर, वेल्डर लेकिन ऐसे सारे रोजगार इस देश की सामाजिक विषमताओं में फंस गए हैं। देश ने श्रम का सम्मान करना नहीं सीखा है। हमारे देश में जब तक गाड़ी, बंगला,पैसा और जाति का सम्मान होता रहेगा तब तक इस तरह का श्रम सम्मान हासिल नहीं कर पाएगा ।यह बहुत बड़ी विडंबना है जिसे समाज को मिलकर दूर करना होगा।
इसका हल क्या है? कैसे सुधरेगी देश की उच्च शिक्षा?
कम फीस में उच्च शिक्षा उपलब्ध कराई जाए, छात्रवृत्ति से इसे पोषित किया जाये। तकनीकी एवं कौशल के पाठ्यक्रमों को उच्च शिक्षण संस्थाओं में पढाया और सिखाया जाए। अनुसंधान पर भी भारत अपनी जी.डी.पी.का 0.65 त्न खर्च कर रहा है जबकि पूरे विश्व में यह औसत देश के औसत से दुगुने से ज्यादा लगभग 1.5त्न का है। उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है लेकिन यह हमारी उच्च शिक्षण संस्थाओं से गायब है। बहुत कम अनुसन्धान हम विश्व पटल पर अंकित कर पाए हैं। अनुसंधान पर जोर देकर जो बेहतर अकादमिक रिकॉर्ड वाले विद्यार्थी हैं उन्हें अंतिम पढाई तक सरकार सहारा दे। साथ ही कुछ पैसे अलग से दे ताकि वह परिवार पर आश्रित ना रहें (जैसा मेडिकल की स्नातकोत्तर शिक्षा में है)। उच्च शिक्षा में कांक्रीट का ढांचा बनाने में खर्च करने से ज्यादा न्युक्तियाँ की जाये ।बहुत बड़ी अधोसंरचना गुणवत्ता पूर्ण पढाई का मानक नहीं है। दक्ष शिक्षक, अच्छी लाइब्रेरी, जरूरत के उपकरण भी अच्छी शिक्षा के मानक हैं।
उच्च शिक्षा को निजी हाथों में सौंप देने से उच्च शिक्षा दिशाहीन होती जाएगी। सरकारों को स्वयं सामने आकर उच्च शिक्षा को सहारा देना होगा ।