विचार / लेख

-अशोक पांडेय
राजेश खन्ना की लोकप्रियता के किस्से सुनते बचपन कटा। बताते थे जब वह ‘कटी पतंग’ में लाल स्कार्फ पहनकर पियानो के सामने बैठा ‘प्यार दीवाना होता है’ गाता था तो लड़कियां बेहोश हो जाती थीं। ‘कटी पतंग’ लगी होती तो पिक्चर हॉल के सामने कम से कम दो एम्बुलेंस खड़ी रखे जाने का सरकारी ऑर्डर था। बाज हॉल अपने यहां ग्लूकोज चढ़ाने की व्यवस्था भी रखते थे।
किस्सा यह था कि जब वह एक दफा पीलीभीत आया तो सात लड़कियों ने सिर्फ इस बात पर जहर खा लिया था कि उन्हें उसके प्रोग्राम में जाने की इजाजत नहीं मिली। उसकी वह फोटो ब्लैक में बिका करती थी जिसमें वह दांतों में लाल गुलाब दबाए था। लड़कियाँ उस फोटो को सिरहाने रखकर सपना देखने का सपना देखती थीं।
कस्बाई लड़कियों द्वारा आत्महत्या किये जाने के मामले राजेश खन्ना के साथ देव आनंद के साथ भी जोड़े जाते थे। इसका असर यह हुआ कि अकेला होने पर मैं टेढ़ी चाल चलता ‘गाता रहे मेरा दिल’ किया करता।
जवानी फूटने की शुरुआत हुई तो पता नहीं कहाँ से जीतेन्दर नाम के महात्मा ने जीवन में घुसपैठ कर डाली।
तीस इंची मोहरी वाली सफेद बैलबॉटम के उस युग में इस पुण्यात्मा ने अस्सी के दशक के कई सालों तक देश भर के दर्जियों को कलाकारों में तब्दील करने का बीड़ा उठा लिया था।
कमीज सिलाने के लिए सिर्फ दो मीटर गबरडीन-पोलिएस्टर भर से काम नहीं चलता था। पीली जेब, नीली पट्टी और लाल कॉलर के लिए अलग से कटपीस ले जाने होते थे। किस कमीज में किस जगह कितनी चेनें लगेंगी इस हिदायत को दर्ज करने के लिए दर्जियों ने अलग से नोटबुकें बनाना शुरू किया।
जीतेन्दर के कहने पर ही सरकार ने जूतों के लिए अलग से ब्लूप्रिंट जारी किया।
तीखी नोक वाले सफेद जूतों के सामने पीतल की पट्टी, टखनों तक की चेन और तलुवों में कम से कम सात हॉर्स-शू कीलें लगाना अनिवार्य था ताकि पहनने वाला न सिर्फ गधे का बच्चा दिखाई दे उसकी पदचाप भी उसके वैसा होने की उद्घोषणा करे- खट-टक-खट-टक।
कहाँ तो सोचा था जवानी आते ही लड़कियों को अपनी मोहब्बत के लिए तरसा-तरसाकर आत्महत्या के लिए मजबूर कर दूंगा कहाँ जूते-कमीज के भूसा डिजायनों के अनुसंधान में आधी जवानी लपक गई।
चालीस के फेरे में आ चुके राजेश खन्ना और जीतेन्दर मेरे पिता की आयु के हो चुके थे। पिताजी हल्द्वानी में प्लाट खरीदने को पैसे जुगाड़ रहे थे जबकि राजेश खन्ना को उससे आधी उमर की टीना मुनीम की मम्मी शादी के खयाल से चाय पर बुला रही थी। मसें हमारी भीग रही थीं लेंडी जीतेन्दर की तर हो रही थी।
सत्रह का हुआ तो मन में हिलोर उठा करती किसी नाजनीना के साथ कम से कम एक बार ‘तू सोला बरस की, मैं सतरा बरस का’ जरूर गाना है। सठिया जाने की उमर में लता दीदी और किशोर दद्दा गा सकते थे। मैं क्यों नहीं गा सकता।
चौरासी का साल। बारहवीं के बोर्ड निबटे थे। राष्ट्र के युवाओं के जीवन का चरम-म_ा करने की नीयत से राजेश खन्ना और जीतेन्दर ने मिल कर एक लम्पट पिक्चर में इक_ा आने का फैसला किया। इस शाहकार का नाम ‘मकसद’ था।
उसमें क्या होता था कि ये दोनों अंकल जी एक वैराग्यपूर्ण गाना गाते थे जिसके अंतरे ‘झिंक-चिका-झिंक-चिका-ताकिड़-ताकिड़-ता’ की टेक पर खत्म होते थे। बोल थे।
दिल तुमने दिया न हो तो हमसे शुरुआत करो।
मैं रांझे की छुट्टी कर दूँ हीर को तुम भी मात करो
ये जो फकीरी आपको मुझमें दिखाई देती है, उसी क्लासिक पिक्चर से आई है।