विचार / लेख
-नीलम पांडेय
राजस्थान का अनैतिक धर्मांतरण निषेध विधेयक, 2025 में सख्त प्रावधान और कड़ी सजाएं शामिल हैं। इसमें जबरन और धोखाधड़ी से किए गए धर्मांतरण पर आजीवन कारावास और बुलडोजर कार्रवाई जैसे कदम रखे गए हैं।
मंगलवार को राजस्थान विधानसभा में पारित इस विधेयक में कहा गया है कि पूर्वजों के धर्म में वापसी को धर्मांतरण की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है।
इसमें कहा गया है, ‘यदि कोई व्यक्ति मूल धर्म यानी पूर्वजों के धर्म में लौटता है, तो इसे इस अधिनियम के तहत धर्मांतरण नहीं माना जाएगा। स्पष्टीकरण।- इस उपधारा के उद्देश्य से मूल धर्म यानी पूर्वजों का धर्म वह है, जिसमें उस व्यक्ति के पूर्वजों का विश्वास था, या वे स्वेच्छा और स्वतंत्र रूप से उसका पालन करते थे।’
विधेयक में लिखा है कि केवल ‘अनैतिक धर्मांतरण या इसके विपरीत’ के लिए की गई शादी को शून्य और अमान्य घोषित किया जाएगा। इसमें यह भी जोड़ा गया कि सबूत का भार आरोपी पर होगा।
‘धार्मिक धर्मांतरण गलत पहचान, गलत जानकारी, दबाव, डर, अनुचित प्रभाव, प्रचार, उकसावे, लालच, ऑनलाइन माध्यम या धोखाधड़ी, विवाह या विवाह के बहाने से नहीं किया गया है, यह साबित करने की जिम्मेदारी उसी व्यक्ति पर होगी जिसने धर्मांतरण कराया है या उसके मददगार पर होगी,’ इसमें कहा गया है।
विधेयक डिजिटल माध्यम से किए जाने वाले धर्मांतरण के प्रयासों का भी जिक्र करता है। इसमें कहा गया है, ‘एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत पहचान, गलत जानकारी, दबाव, डर, अनुचित प्रभाव, लालच, ऑनलाइन माध्यम या धोखाधड़ी, विवाह या विवाह के बहाने से किए गए अनैतिक धर्मांतरण पर रोक लगाने और उससे जुड़े मामलों के लिए यह प्रावधान है।’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठन, जिनमें विश्व हिंदू परिषद (ङ्क॥क्क) शामिल है, राजस्थान में धर्मांतरण और ‘लव जिहाद’ के मामलों को लगातार उठाते रहे हैं। जुलाई में, वीएचपी के केंद्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से मुलाकात कर ‘धर्मांतरण विरोधी कानून’ की मांग की थी।
विधेयक के पारित होने के साथ, राजस्थान अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों की सूची में शामिल हो गया है, जहां पहले से ही धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हैं। विपक्षी कांग्रेस इस विधेयक की आलोचना करती रही है और उसने राजस्थान विधानसभा में बहस में भाग नहीं लिया।
नया विधेयक पिछले विधेयक की तुलना में ज्यादा सख्त सजाएं देता है। पिछला विधेयक पिछले सत्र में पेश किया गया था लेकिन इस साल की शुरुआत में वापस ले लिया गया था।
उदाहरण के तौर पर, पूर्वजों के धर्म में वापसी को पिछले विधेयक का हिस्सा नहीं बनाया गया था। साथ ही, मंगलवार को पारित विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि धर्मांतरण से जुड़ी कोई भी जानकारी या शिकायत अब ‘कोई भी व्यक्ति’ दर्ज करा सकता है। पहले यह केवल पीडि़त व्यक्ति या उसके रिश्तेदार ही कर सकते थे।
इसी तरह, अगर कोई व्यक्ति किसी विदेशी या गैर-कानूनी संस्था से अनैतिक धर्मांतरण से जुड़े मामले में पैसे लेता है, तो उसे 10 साल से कम नहीं और 20 साल तक की कठोर सजा दी जा सकती है और 20 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
‘राजस्थान विधानसभा ने आज राज्य में धर्मांतरण की घटनाओं को खत्म करने के लिए एक सख्त कानून देने का काम किया है,’ गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेधम ने मीडिया से कहा।
कड़ी सजाएं
जबरन धर्मांतरण के लिए सजा और कड़ी की गई है, जिसमें कुछ मामलों में आजीवन कारावास भी शामिल है। विधेयक के अनुसार, धर्मांतरण में शामिल संस्थानों की इमारतों पर बुलडोजर कार्रवाई की जा सकती है। हालांकि, यह केवल उन संपत्तियों पर लागू होगा, जो सामूहिक धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल की गई हों या अतिक्रमण में दोषी पाई जाएं।
विधेयक में कहा गया है, ‘अवैध निर्माण का ध्वस्तीकरण। यदि ऐसे किसी भवन या परिसर में, जहां अवैध धर्मांतरण या सामूहिक धर्मांतरण हुआ है, कोई अवैध/अनधिकृत निर्माण या संरचना पाई जाती है, तो जिला मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किसी गजटेड अधिकारी की जांच के बाद उसे ध्वस्त किया जा सकेगा।’
इसी तरह, अवैध धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल की गई संपत्ति जांच के बाद जब्त कर ली जाएगी, चाहे यह काम मालिक की सहमति से हुआ हो या बिना सहमति के। विधेयक में कहा गया है, ‘संपत्ति में वह संपत्ति शामिल होगी, जो इस अधिनियम के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति की हो या किसी और की हो, लेकिन दोषी व्यक्ति ने उसे मालिक की सहमति से या बिना सहमति के अवैध धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल किया हो।’
अवैध धर्मांतरण करने वालों को ‘कम से कम 7 साल की कैद, जो 14 साल तक बढ़ सकती है, और कम से कम 5 लाख रुपये का जुर्माना’ हो सकता है।
अगर ऐसे मामले नाबालिग, दिव्यांग, महिला या अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति से जुड़े हों, तो सजा कम से कम 10 साल और अधिकतम 20 साल की होगी। जुर्माना कम से कम 10 लाख रुपये होगा।
सामूहिक धर्मांतरण के मामले में सजा ‘कम से कम 20 साल की कठोर कैद, जो आजीवन कारावास (दोषी की प्राकृतिक आयु तक कैद) तक हो सकती है, और कम से कम 25 लाख रुपये का जुर्माना’ होगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि धर्मांतरण विरोधी विधेयक में ‘सद्भावना से किए गए कार्यों की सुरक्षा’ का प्रावधान है। इसमें कहा गया है, ‘किसी भी प्राधिकरण, अधिकारी या शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी, यदि उसने इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए किसी नियम या आदेश के तहत सद्भावना से कुछ किया है, करने का इरादा किया है, करने का दावा किया है या न करने का निर्णय लिया है।’
पिछले संस्करण से अलग, नए विधेयक में संस्थानों की परिभाषा में ‘सभी कानूनी इकाइयां, शैक्षणिक संस्थान, अनाथालय, वृद्धाश्रम, अस्पताल, धार्मिक मिशनरी, गैर-सरकारी संगठन और ऐसे अन्य सार्वजनिक संगठन’ शामिल हैं।
नए विधेयक में ‘प्रचार’ शब्द भी शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘जानकारी, विचारों या मान्यताओं का सुनियोजित प्रसार, जिसमें गलत जानकारी भी शामिल है, किसी भी माध्यम (मुद्रित सामग्री, प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया, मैसेजिंग एप्लीकेशन या किसी अन्य डिजिटल माध्यम) से, जिसका उद्देश्य गलत पहचान या दबाव के जरिए अवैध धर्मांतरण कराना या उसे आसान बनाना हो।’ (दि प्रिंट)