विचार / लेख

ईश्वर की खोज
10-Sep-2025 10:02 PM
ईश्वर की खोज

-ध्रुव गुप्त

हजारों सालों से ईश्वर की हमारी तलाश चल रही है। एक ऐसा ईश्वर जिसे किसी ने नहीं देखा।  लेकिन माना जाता है कि यह ब्रह्मांड उसी की रचना है और हम सबके जीवन, मृत्यु और भाग्य पर उसका नियंत्रण है। धर्म और अध्यात्म दृष्टि में संसार का अतिक्रमण ही उसे पाने का रास्ता है। यह संसार मिथ्या है, अंधकार है जिसमें जाने कितनी योनियों से हम भटक रहे हैं। इस मिथ्या संसार में आवागमन से मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण ही जीवन का लक्ष्य है। यह जीवन के अस्वीकार का दर्शन है। इस संसार का अतिक्रमण कर यदि आप किसी मोक्ष या ईश्वर की तलाश में हैं तो यह आत्मरति के सिवा कुछ नहीं। तमाम मोह, इच्छाओं और गति से परे यदि कोई मोक्ष है तो वह शून्य की ही स्थिति हो सकती है। ऐसा शून्य जीवन की ऊर्जा के नष्ट होने से ही संभव है। ऊर्जा चाहे जीवन की हो या पदार्थ की, कभी नष्ट होती नहीं। उसका रूपांतरण होता चलता है। ईश्वर कहे जाने वाले विराट ब्रह्मांडीय ऊर्जा के हम अंश हैं। बहुत छोटी- छोटी ऊर्जाएं जो रूप बदल-बदलकर इसी प्रकृति में ही बनी रहेंगी। अगला कोई जीवन इस रूप में शायद न मिले लेकिन किसी न किसी रूप में हमें यहीं मिलेगा।

इस ब्रह्मांडीय  ऊर्जा या ईश्वर  का साक्षात्कार करना है तो इस सोच को अपने भीतर गहरे उतारना होगाकि हमसब उसी ऊर्जा के अंश हैं और इसीलिए यह समूची सृष्टि ही हमारे परिवार का विस्तार है। सृष्टि से संपूर्ण तादात्म्य और उससे उत्पन्न संवेदना, प्रेम और करुणा उसे जानने का रास्ता है। हमारी प्रकृति उसी की प्रतिच्छवि है। सूरज-चांद-तारों में उसका नूर है। फूलों में उसकी मुस्कान। बच्चों की हंसी में उसकी मासूमियत। स्त्रियों में उसका ममत्व। नदी, समुद्र, झरनों की गर्जना और पक्षियों के कलरव में उसका संगीत। बादलों में उसकी करुणा। हवा के झोंको में उसका स्पर्श। यह प्रकृति हमारा घर भी है और गंतव्य भी। इसके इतर न कोई स्वर्ग है, न नर्क और  न निर्वाण। ईश्वर की हमारी तलाश यदि पूरी होनी है तो इसी संसार में होगी।


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