विचार / लेख

-अशोक पांडेय
हवा को बींधती हुई इन पतली नोकीली मूंछों को आपने कभी न कभी जरूर देखा होगा। साल 2010 में हुए एक ओपिनियन पोल में इन्हें मानव सभ्यता की सबसे विख्यात मूंछें चुना गया। ये साल्वाडोर डाली की मूंछें है।
आधुनिक युग की सबसे बड़ी चित्रकार त्रयी वान गॉग-पिकासो-डाली में सबसे आकर्षक और विवादास्पद व्यक्तित्व के स्वामी साल्वाडोर डाली 1904 में स्पेन के फिगेरेस कसबे में जन्मे थे। मैड्रिड की आर्ट एकेडमी में पढ़ते हुए उन्होंने घोषित किया कि उनके काम को जज करने की औकात वहां की किसी भी फैकल्टी की नहीं है। उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद वे सीधे पेरिस गए जहां पाब्लो पिकासो और आंद्रे ब्रेतों से उनकी गहरी दोस्ती हुई। उसके बाद इनकी अगुवाई में बीसवीं सदी की चित्रकला का नया इतिहास लिखा गया। बेहद रंगबिरंगी और विवादों से भरपूर सृजनात्मक जिन्दगी जी चुकने के बाद 85 साल का होने के बाद डाली उसी फिगेरेस में मरे जहाँ पैदा हुए थे।
बहुत से मूंछ विशेषज्ञ आज भी मानते हैं कि इनके पीछे सत्रहवीं शताब्दी के बहुत बड़े चित्रकार दीएगो वेलास्केज की प्रेरणा थी। अलबत्ता जनवरी 1954 को एक अमेरिकी टीवी गेम-शो में हिस्सा लेते हुए साल्वाडोर डाली से जब पूछा गया -
‘ये आपकी मूंछ है या कोई लतीफा?’
अपनी ट्रेडमार्क मूंछ को हवा में दुलराते करते हुए डाली ने कहा था -
‘यह मेरी पर्सनालिटी का सबसे गंभीर हिस्सा है। यह एक साधारण हंगेरियन मूंछ है।’
प्रश्नकर्ता ने आगे जिज्ञासा जाहिर की कि वे उन्हें उस तरह हवा में खड़ा कैसे रख लेते हैं। इसपर डाली ने बताया कि वे अपनी मूंछों पर उसी ब्रांड का पोमेड इस्तेमाल किया करते हैं जिसे उनकी पिछली पीढ़ी के विश्वविख्यात फ्रेंच लेखक मार्सेल प्रूस्त किया करते थे। इस कदर प्रतिष्ठित साहित्यिक-कलात्मक विरासत से सृजित की गयी इन मूंछों को दुनिया भर में ख्याति मिलनी ही थी।
डाली के एक दोस्त होते थे फिलिप हॉल्समैन। अपने समय के सबसे बड़े फोटोग्राफरों में गिने जाने वाले फिलिप हॉल्समैन ने डाली के साथ मिल कर 1954 में ही उनकी मूंछों पर एक फोटो-बुक छपाई ‘डालीज़ मुस्टाश’। यह दो दोस्तों के बीच एक एब्सर्ड शाब्दिक और फोटोग्राफिक संवाद था जो अपने प्रकाशन के कुछ ही महीनों बाद एक कल्ट बन गया। दोनों ने किताब अपनी-अपनी बीवियों को समर्पित की। हॉल्समैन ने अपनी बीवी के लिए लिखा- ‘इवोन को जिसकी वजह से मुझे रोज़ हजामत करनी पड़ती है।’
उसी किताब को अपनी बीवी को डाली ने यूं समर्पित किया- ‘गाला नाम के फ़रिश्ते के लिए जो मेरी मूंछों की रखवाली भी करती है।’
किताब में डाली और उसकी मूंछों के कुल 28 फोटो हैं जिनमें से आखिऱी वाली के साथ दोनों के बीच हुए एक संवाद में हॉल्समैन पूछते हैं, ‘साल्वाडोर, अब जबकि मैं तुम्हारी मूंछों का राज जान गया हूँ, मुझे लगने लगा है तुम शायद पागल हो।’ डाली ने उत्तर दिया, ‘लेकिन यह निश्चित है कि मैं हर उस शख्स से कम पागल हूँ जिसने इस किताब को खरीद लिया है।’
डाली की मौत के बीस साल बाद मारिया पीलार आबेल नाम की एक औरत ने दावा किया कि वह डाली की अवैध संतान है और उसे अपने बाप की अकूत संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए। लंबा कानूनी विवाद खींचा और आखिरकार 2017 में कोर्ट के आदेश पर डीएनए टेस्ट के लिए डाली के शरीर को कब्र से बाहर निकाला गया। डीएनए मैच नहीं हुआ और मारिया केस हार गयी।
मृत शरीरों को सुरक्षित रखने में विशेषज्ञता रखने वाले नार्सिस बारदालेत ने डाली की मौत के समय उसकी मूंछों को सीधा खड़ा सहायता की थी। कब्र खोदे जाने के बाद उन्हें फिर से डाली की बची-खुची देह की सम्हाल करने का काम दिया गया।
उसने अखबार वालों को बताया- ‘दफनाते समय हमने उनके चेहरे को एक नफीस रेशमी रूमाल से ढंका था। रूमाल अब भी वैसा ही था। उसे हटाकर देखा तो मैं हैरानी से भर गया। उनकी मूंछें बिलकुल वैसी ही थीं।। दस बज कर दस मिनट बजाती हुईं। डाली यही चाहते थे।’
डाली की मूंछों पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और लिखा जा सकता है।
बहुत से लोगों को तीखी मूंछ रखने का शौक होता है। मुझे रसूल हमजातोव याद आते हैं जो अपनी यादगार किताब ‘मेरा दागिस्तान’ में कहते हैं, ‘टोपी तो मैंने टॉलस्टॉय जैसी खरीद ली लेकिन उसके नीचे रखने को वैसा सिर कहाँ से लाऊँगा।’