विचार / लेख

चोरी पर चिंतन...
27-Aug-2025 9:14 PM
चोरी पर चिंतन...

-आनंद बहादुर

आज मैंने ‘चोरी’ शब्द पर गौर किया है। भारत में चोर शब्द कोई बहुत बुरा शब्द नहीं है। दरअसल, यहां जीवन स्थितियां इतनी कठिन हैं, इतनी विकराल, कि जीवित रहने के लिए हर कोई कुछ न कुछ चुराता रहता है। यह बात अति निम्न वर्ग, निम्न वर्ग, निम्न मध्यमवर्ग पर भी उतनी ही लागू होती है, जितनी उच्च वर्गों पर। निम्न वर्ग के लोग नदी-जंगल, खेत-खलिहान आकाश-पाताल से, लकड़ी-काठी-पत्ते, फल-सब्जियां, साग पात, खर-पतवार, मतलब जो कुछ उपयोगी लगे, खोंटकर बटोरकर, उठापठा करके अपने घर ले जाते हैं। इसको कोई चोरी नहीं कहता है, लेकिन 'जो मेरा नहीं है जरूरत हो तो उसको भी अपने घर ले जा सकते हैं’ इस बात को एक प्रकार की व्यापक मान्यता मिली हुई है, इसका यह प्रमाण है। क्योंकि दो जून का खाना ही नसीब नहीं है, तो नैतिकता का पलड़ा किससे सम्हले! निम्न वर्ग और निम्न मध्यमवर्ग की जीवन की जरूरत ही जब वर्तमान अर्थव्यवस्था से पूरी नहीं हो रही है। इसे आप उच्च वर्ग के घरों में काम करने वाले घरेलू सहायकों के मामलें में भी देख सकते हैं जो मौका मिलते ही कुछ न कुछ उठाकर अपने घर ले जाते हैं।

उच्च वर्ग और अति उच्च वर्ग में इस प्रकार का आचरण बहुत आम बात है। कामकाज में चोरी, श्रम करने में चोरी, सरकारी कामकाज में घूसखोरी, पैरवी, गलत तरीके से अपने लोगों को नौकरी लगा देना, नंबर बढ़ा देना, नंबर कम कर देना, परीक्षा में नकल करना- इस चोरी के अनेक रूप हैं और यह सार्वभौम तरीके से हमारे समाज में विद्यमान हैं। बिजनेस-व्यापार में थोड़ा सा कम तोल देना, 2-4 सड़े फल या सब्जियां तराजू में छुपा कर डाल देना, खराब माल सप्लाई कर देना, डॉक्टर को पर्चा लिखने के लिए जांच लिखने के लिए कमीशन देना, इंजीनियर को कट देकर खराब रोड बना देना, न्यायालय में प्रभाव में आकर निर्णय देना, पीत पत्रकारिता... यह सब अब हमारा स्थापित सामाजिक आचरण हो गया है। इसको पूरे भारत में मान्यता मिली हुई है और इसको कोई बुरा नहीं समझता, क्योंकि हर कोई किसी न किसी तरह से इस तरह की झुठखोरी में लगा हुआ है।

बहुत कम लोग हैं जो आदर्श रूप से एब्सोल्यूट टम्र्स में चोर नहीं हैं। (क्या पता उतने भर भी हैं या नहीं!) हमारे देश की समूची सभ्यता और संस्कृति की बनावट ही ऐसी हो गई है। हमारे यहां धर्म का पाखंड भी इस प्रकार की हरकत (देखिये, मैं इसे अभी भी चोरी नहीं कह रहा हूं) को बढ़ावा देता है। आम आदमी मानता है कि उसने अगर कोई गलत काम किया है, अगर कोई चीज बेचने में डंडी मारी है, कहीं से, किसी तरह से, किसी का हक छीना है, किसी को दुख दिया है, तो जाकर कहीं पर जल चढ़ा देने से, कहीं अगरबत्ती बार देने से, किसी नदी में डुबकी लगा लेने से, किसी पंडित जी से कथा सुन लेने से- वह पाप मिट जाएगा। इसलिए भारतीय लोग चोर और चोरी को बहुत गंभीरतापूर्वक नहीं लेते हैं। इसीलिए किसी को चोर कह देना बड़े-बड़े चुनावों का मुख्य मुद्दा नहीं बन पाता है। हालांकि की गई चोरी पूरे देश के सामने जगजाहिर होती है, उसकी सूचना न्याय को बंद लिफाफे में दी जाती है, और बंद लिफाफे की संस्कृति को स्वीकार भी कर लिया जाता है।

भारत में चोरी की तुलना में चरित्र का पतन अधिक बड़ा अपराध है। अगर आप किसी के बारे में कह सकें कि वह चरित्रवान नहीं है और इसको साबित कर दें, तो लोग उसको वोट नहीं देंगे। लेकिन आप अगर यह साबित कर भी दें कि कोई चोर है, तो लोग फिर भी उसको वोट दे देंगे। क्योंकि लोग जानते हैं कि वे भी अपने अंदर में किसी किसी ना किसी हद तक चोर हैं। जबकि अमेरिका में इससे ठीक उलट है। अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने जब मोनिका लेविंस्की के साथ अनैतिक संबंध बनाया, व्यभिचार किया, और उसको पूरे सीनेट में स्वीकार भी कर लिया, तो सीनेट ने उसे हँसते-खेलते माफ कर दिया, और यहां तक कि बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन ने भी अपने पति के तरफ से पैरवी की, और उनको सीनेट से माफी दिलवाई।

ऐसा इसलिए कि अमेरिका में व्यभिचार कोई पाप नहीं है। लडक़े-लड़कियां वहां आठ-दस साल की उम्र से ही काम-कला में प्रवृत्त हो जाते हैं। अनेक स्त्रियों और पुरुषों से संबंध रखने को वहां सामाजिक स्वीकृति हासिल है। इसलिए बिल क्लिंटन व्यभिचार करके भी अमेरिका का राष्ट्रपति बना रह जा सकता है। लेकिन अगर उस पर चोरी का आरोप लगाया जाता, या जैसा निक्सन पर चोरी से फोन को टैप कर जासूसी करने का आरोप लगाया गया था, वैसा हो, तो उसको राष्ट्रपति पद से हटा दिया जाता है। जबकि भारत में खुलेआम लोगों की जासूसी कराई गई, पेगासस नामक संस्था ने उसको अंजाम दिया, और आज भी लगातार लोगों की जासूसी कराई जाती है, लोगों के लैपटॉप में, मोबाइल में चोरी-छिपे गलत जानकारी डाल कर उनको प्रताडि़त, दंडित किया जाता है। लेकिन आमजन इसको अपराध नहीं मान रहा है। आम आदमी सोचता है कि अगर भ्रष्टाचारी की जगह सरकार के रूप में मैं रहता तो मैं भी ऐसा ही करता। इसलिए भारत में चोरी कोई इशू नहीं है, चाहे वोट चोरी हो, नोट चोरी हो, या चोट चोरी हो, चोरी छुपकर की जाए, दिनदहाड़े चाकू दिखाकर की जाए, बंदूक की नोक पर की जाए या बुलडोजर से की जाए। जो लोग गंभीरतापूर्वक एक लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्हें इस बात को समझना चाहिए।


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