विचार / लेख
-पुष्य मित्र
सरकार कोई हो, सच्ची पत्रकारिता को बर्दाश्त नहीं कर पाती। ताजा खबर झारखंड से है, जहां सरकार ने लोकतंत्र 19 चैनल के दो पत्रकारों तीर्थ नाथ 'भूमिपुत्र' और सुनीता मुंडा को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। हालांकि बाद में जनदबाव में इन्हें छोड़ दिया गया।
वजह यह थी कि ये पत्रकार लगातार संथाल परगना के सामाजिक कार्यकर्ता सूर्या हांसदा के फेक एनकाउंटर के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। सूर्या हांसदा अपने गांव में बच्चों के लिए स्कूल चलाते थे, हालांकि वे एक उग्र एक्टिविस्ट भी थे और कई गलत मसलों के खिलाफ आवाज भी उठाते थे। उन पर कई मुकदमे भी थे।जानकारी यह है कि टाइफाइड से पीडि़त हांसदा को पुलिस हाथ पांव बांध कर ले गई और उसका एनकाउंटर कर दिया।
इतना ही नहीं झारखंड की सरकार अब उस नगड़ी में रांची का दूसरा रिम्स खोलने की तैयारी कर रही है, जहां की जमीन बचाने के लिए झारखंड के एक्टिविस्टों ने 2012 में एक लंबा और सफल आंदोलन किया था।
संदेश एक ही है, आज के दौर में हर सरकार का एक न एक दिन पूंजीपतियों के पाले में जाना और उनके हिसाब से नीतियां बनाना नियति है। और जन पक्षधर पत्रकारों की भी नियति है कि वह हर सरकार की नब्ज टटोलते हुए शाश्वत विपक्ष की भूमिका निभाए, हर तरह के खतरे उठाते हुए।
एक सच यह भी है कि आज देश में चाहे जिस विचार की पार्टी क्यों न हो, उनकी आर्थिक नीति कमोबेश एक जैसी है। वह है क्रोनी कैपिटलिज्म। लोकतंत्र का मौजूदा स्वरूप ही पार्टियों को पूंजीपतियों की बिना शर्त गुलामी के लिए मजबूर करता है।


