विचार / लेख

जेल जाने पर सबकी कुर्सी जाएगी
23-Aug-2025 9:54 PM
जेल जाने पर सबकी कुर्सी जाएगी

-पंकज कुमार झा

राजनीति इतनी सारी विडंबनाओं को जन्म देता है कि पूछिए मत। आप अरविन्द केजरीवाल के बारे में सोचिए। वे पैदा ही हुए थे भारतीय राजनीति में जिस विषय को लेकर उसका नाम ‘लोकपाल’ था। ऐसा माहौल बना दिया गया था देश भर में, इस तरह समाचार माध्यमों ने एजेंडा के साथ इस विषय को आगे बढ़ाया था कि नई सदी में पैदा हुए बच्चे सोचने लगे थे कि इधर लोकपाल आया, उधर देश की सारी समस्याएं छू मंतर हो जाएगी। जंतर-मंतर ने यही संदेश देश भर में फैला दिया था।

उस कथित लोकपाल की सबसे बड़ी बात क्या थी, पता है? अरविंद केजरीवाल उसके माध्यम से यह मांग करते थे कि प्रस्तावित लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री को भी लाया जाय।

फिर वह आंदोलन परवान चढ़ा। अन्ना हजारे से उस आंदोलन को हड़प कर, अन्ना को वापस रालेगन-सिद्धि ठेल कर अरविंद राजनीतिक दल बना बैठे थे। आगे सफल हुए और एक-एक कर संघर्ष के दिनों के अपने सभी साथियों को बाहर किया। ये सब तो खैर इतिहास है अब।

असली बात यह कि सीएम बन जाने के बाद कभी देखा आपने उन्हें फिर लोकपाल नामक किसी व्यवस्था का जिक्र भी करते हुए? ऐसे दोहरे रवैये की तो आप अनेक और उदाहरण दे सकते हैं जो अरविंद के चालाक चरित्र का हिस्सा रहा है। लेकिन विडंबना देखिए। आज वास्तव में एक विधेयक संसद में रखा गया है जिसके भीतर पीएम-सीएम सभी आने वाले हैं। जेल जाने पर सबकी कुर्सी जाएगी। पर इस कानून के नाम से ही किस व्यक्ति का चेहरा सबसे पहले सामने आता है। जाहिर है अरविंद केजरीवाल का ही। है न? इसलिए नहीं क्योंकि उन्होंने कोई आंदोलन किया था, इसलिए क्योंकि भ्रष्टाचार में गंभीर आरोपों के कारण जब वे जेल गए तो इस्तीफा देने का तमीज नहीं दिखाया, शर्मनाक तरीके से वे जेल से ही सरकार चलाते रहे। यह उस व्यक्ति ने किया, जिसकी पैदाइश ही कथित भ्रष्टाचार के मंथन से हुआ था।

विडंबना यह भी है ही कि जिस कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरुद्ध अरविंद पैदा हुए, उसी के साथ सरकार बना ली। बच्चों की कसम तक का मान नहीं रखा। उस सजायाफ़्ता लालू यादव तक से गलबहियाँ करते रहे जिन्हें भ्रष्टाचार शिरोमणि होना अदालतों ने भी मान लिया है। स्वयं जिस कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने लालू यादव को राजनीति से बाहर करने के लिए मनमोहन सिंहजी के अध्यादेश को सरेआम फाड़ दिया था, वे सभी आज इस कानून का विरोध करने एक साथ खड़े हैं।

मैं अक्सर कहता हूं कि लालू यादव मूर्ख केजरीवाल है, जबकि अरविंद पढ़ा-लिखा लालू यादव। क्योंकि लालू अनपढ़ थे, तो उन्होंने इस्तीफा देकर निरक्षर पत्नी को सीएम बना दिया था। केजरीवाल पढ़े-लिखे थे तो कानूनी-प्रावधानों की कमी का लाभ उठा कर जेल से ही सरकार चलाते रहे। प्रावधानों की कमी केवल इसलिए थी क्योंकि हमारे संविधान निर्माता इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाए थे कि भारत में कोई लालू-केजरीवाल भी पैदा हो सकता है कभी।

यह संभव तो नहीं है कि प्रस्तावित कानून का नाम ‘अरविंद एक्ट’ रख दिया जाय ताकि आने वाली पीढिय़ां केजरीवाल की करतूतों से सबक ले, संभव शायद यह भी नहीं है कि अरविंद का संदर्भ देते हुए इस कानून की प्रस्तावना में लिखा जाय कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी, पर शायद यह संभव हो सकता है कि पूरे प्रकरण को पाठ्य-पुस्तक में शामिल करते हुए इसे छात्रों तक पहुँचाने की कोशिश हो।


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