विचार / लेख
-सम्यक ललित
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एन.सी.आर. क्षेत्र से आवारा कुत्तों को पकड़ कर उन्हें शरणस्थलियों में बंद रखने का आदेश दिया है। कोर्ट के इस आदेश पर पशु-प्रेमियों और आवारा कुत्तों से त्रस्त लोगों के बीच एक तीखी बहस छिड़ गई है। एक ओर पशु-प्रेमी कह रहे हैं कि गलियों-सडक़ों पर रहने वाले ये कुत्ते हमारे सामान्य रहन-सहन का अभिन्न हिस्सा हैं, वहीं दूसरी ओर इन कुत्तों के काटने से त्रस्त लोग कुत्तों को इंसानी आबादी से दूर रखने के पक्षधर हैं। मैं यहाँ इस बहस का एक अन्य पक्ष सामने रखना चाहता हूँ। मैं यहाँ कुत्तों की समस्या को हल करने के किसी उपाय की बात नहीं कर रहा हूँ-मैं बस विकलांगजन के दृष्टिकोण से इस समस्या का एक पक्ष सामने रख रहा हूँ।
विकलांगजन के लिये आवारा कुत्ते एक बहुत बड़ी मुसीबत होते हैं। मेरी बैसाखियों को देखकर कुत्तों को लगता है कि मैं उन पर हमला कर सकता हूँ। इसके प्रतिक्रिया-स्वरूप कुत्तों ने मुझ पर अक्सर हमला किया है। अपना संतुलन खो देने के कारण मैं कई बार इनके बीच गिरा भी हूँ। बैसाखियों से (बेवजह) आतंकित कुत्तों ने कभी मुझे काटा तो नहीं क्योंकि बैसाखियों के कारण वे नज़दीक आने से डरते हैं-लेकिन स्कूल के दिनों में इन्होनें मेरे मन में दहशत भर दी। कई कुत्ते मिल कर जब आपको गिरा लें और आप भाग भी न पायें तो कैसी दहशत आपके मन में होगी इसका आप अनुमान लगा सकते हैं।
विकलांगजन अक्सर किसी सहायक उपकरण का प्रयोग करते हुए बाहर निकलते हैं। बैसाखी, व्हीलचेयर, सफेद छड़ी, लाठी जैसी चीजें कुत्तों को खतरनाक लगती हैं। किसी दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिये कुत्तों का हमला कैसा हो सकता है इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। कोई व्यक्ति जो सुन नहीं सकता उस पर अचानक कुत्तों का हमला -जऱा सोचिये।
एक समय कुत्तों के कारण मैंने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था- लेकिन स्कूल जाना मेरे लिये बेहद जरूरी था इसलिये मैं अधिक समय तक रुक नहीं पाया और मैंने उसी दहशत के बीच स्कूल-कॉलेज आना-जाना जारी रखा-प्रश्न यह है कि क्या विकलांगजन का कुत्तों की दहशत में रहना स्वीकार्य हो सकता है? आवारा कुत्तों के हमले में अनेक बच्चों की जान गई है, अनेक लोगों की मौत रेबिज के कारण हो चुकी है। क्या यह इन घटनाओं को सामान्य जीवन का हिस्सा माना जा सकता है?
यदि वे मुझ हमला न करें तो मुझे कुत्ते बहुत पसंद हैं। कुत्ता दिल जीत लेने वाला बहुत ही प्यारा प्राणी है। मैं ख़ुद अक्सर एक कुत्ते को पाल लेने के बारे में सोचता हूँ लेकिन कुत्तों के कारण दहशत किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। चिडिय़ा, कबूतर, बिल्ली इत्यादि अनेक पशु-पक्षी हमारे आस-पास रहते हैं। यकीनन इनके होने से हमारी बहुत-सी संवेदनाओं को पोषण मिलता है, हमारी संवेदनाएँ विकसित होती हैं। लेकिन इनके होने से हमें कई प्रकार की परेशानियाँ भी होती हैं- कबूतरों की बीट इसका एक उदाहरण है। इन सभी परेशानियों का हल हम खोज लेते हैं क्योंकि ये कोई बहुत बड़ी परेशानियाँ नहीं हैं। लेकिन दहशत? हमला? मौत? क्या यह सब स्वीकार्य है?
समाधान कोई भी हो लेकिन इस समस्या का समाधान होना चाहिये। (viklangta.com)


