विचार / लेख
-गोपा सान्याल
(फ्री लांस पत्रकार एवं फोटोग्राफर)
पहलगाम-जहाँ झीलों की सतह पर बादल ठहर जाते हैं, देवदार की छांव तले ख़्वाब पलते हैं,जहाँ झरनों और नदियों की कलकल में प्रकृति हर पल कोई राग छेड़ती है।
गुलाब और केसर की क्यारियाँ, सेव, बादाम और अखरोट के बागान मन को मोह लेते हैं।
कश्मीर की इस नायाब वादी को देखकर लगता है मानो कुदरत ने इसे स्वयं रचा गढ़ा हो। लेकिन जिस ज़मीन पर सूरज की रौशनी भी नरम लगती है, वहीं अब बारूद की गंध और हिंसा की परछाइयाँ फिर से सिर उठाने लगी हैं।
हालिया घटना जिसमें निर्दोष नागरिकों को क्रूरता पूर्वक धर्म पूछ पूछ कर मारा गया, इसने न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोरा है, बल्कि पहलगाम की छवि को भी एक गहरे ज़ख्म में बदल दिया है। सवाल यह नहीं कि हमला कैसे हुआ, सवाल यह है कि क्यों बार-बार वही ज़मीन, सियासी विफलताओं और आतंक के खेल का अखाड़ा बन जाती है?
कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष सैलानियों की दिल दहला देने वाली हत्या दुनिया को डराने वाली है क्योंकि पर्यटकों पर इस तरह की घटना सोच से बाहर है। इसके छीटें देश विदेश और हमारे छत्तीसगढ़ पर भी पड़े हैं जो कि बेहद दु:खद हैं। कोई हनीमून मनाने गया तो कोई विवाह की वर्षगांठ, तो कोई सुकून की तलाश में। कई जि़ंदगियाँ लूट गईं, जो भी वापस आया बुरी स्मृतियों को साथ लेकर।
कश्मीर के आम लोग पर्यटक को भगवान मानते है क्योंकि उनकी रोज़ी रोटी का साधन पर्यटक हैं। जहाँ की अर्थव्यवस्था की नींव ही पर्यटन है। वहाँ से पर्यटक पश्मीना शॉल, कहवा, केसर की खुशबू और सुकून लिए घर आते हैं। लेकिन अब बर्फ की सफेद वादियों पर निर्दोष लोगों के खून के धब्बों ने विश्वास और सुरक्षा को छलनी कर दिया है। क्या अब कोई नया जोड़ा यहाँ जाने को भी सोचेगा? क्या कश्मीर हमारी छुट्टियों का ड्रीम डेस्टिनेशन हो पायेगा? दो साल पहले जब हम कश्मीर गए थे तब उत्साह भी था आशंका भी । गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम की यात्रा हमारी इतनी शानदार इसलिए भी हो पाई क्योंकि स्थानीय लोगों का सहयोग मिला। बाद में हमने अपने वहाँ के संपर्क अपने परिचितों को भी उपलब्ध कराए। इतनी जगह घूमने के बाद मैंने कहा था ये वाकई जन्नत है खासकर पहलगाम।
पर इस घटना के बाद अब बड़ा सवाल है कि सैलानी ऐसे जगह कितने सुरक्षित हैं जहाँ की सीमा पर घुसपैठियों की घुसने की आशंका है। ऐसी जगह जहाँ हर कुछ मीटर की दूरी पर सेना के जवान सुरक्षा को तैनात हैं, ऐसे में किस तरह आतंकी हमारे घर घुस आये और रिसोर्ट से लोगों को खींच खींच कर कत्ल किया? कहाँ चूक हुई हमारी सुरक्षा में। ऐसी हिम्मत तभी हो सकती है, जब वहाँ के लोकल लोगों का सपोर्ट हो और हमारी सुरक्षा तंत्र में बड़ी चूक। कश्मीर पहुँचते ही सुरक्षा कारणों से वहाँ सिम भी बंद हो जाता है और लोकल सिम लेना पड़ता है। वहाँ पहुँचकर हम पूरी तरह विश्वास करके स्वयं को स्थानीय लोगों के हवाले सौंप देते है।क्योंकि हमारे पास यही तो एक चारा होता है।
2023 में कश्मीर भ्रमण में हमारे एक स्थानीय सारथी ने बताया था, कश्मीर में जिन लोगों पर हिंसा के आधार पर कार्रवाई होती है वहाँ के स्थानीय लोग उन्हें सपोर्ट देकर फिर से खड़ा कर देते हैं। कश्मीर पर किया गया बेशुमार खर्चा हमारी जेब से जाता है फिर ऐसे संवेदनशील स्थान में सैलानियों के लिए सुरक्षा व्यवस्था कुछ भी नहीं। आम पर्यटकों के लिए जब तक सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती तब तक ऐसे स्थल सैलानियों लिए पूरी तरह बंद कर देना चाहिए। ऐसी कई जगह है जो अन्य देशों की सीमा से लगे हैं वहाँ सैलानियों की सुरक्षा को देखते हुए पर्यटन की अनुमति होनी चाहिए।
बयानों की आड़ में हम अपनी जिम्मेदारी से कब तक मुंह मोड़ते रहेंगे। ऐसी घटनाओं से साम्प्रदायिक सद्भावना को भी ठेस लगती है।
पहलगाम केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि उस उम्मीद का नाम है जहाँ लोग शांति तलाशने आते हैं। यह वादी हमें याद दिलाती है कि कश्मीर केवल संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि सौंदर्य और सहअस्तित्व का सपना भी है और अगर हम इस सपने को टूटने देंगे, तो दोष केवल हमलावरों का नहीं, हमारी चुप्पी का भी होगा।
अब वक्त है कि सरकार, मीडिया और समाज तीनों मिलकर यह तय करें कि क्या हमें कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाना है या खामोशी से उसकी तबाही का दस्तावेज़ तैयार करना है।


