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दक्षिण कोरिया में अब आगे क्या होगा, उत्तर कोरिया क्यों है खामोश?
07-Dec-2024 3:27 PM
दक्षिण कोरिया में अब आगे क्या होगा,  उत्तर कोरिया क्यों है खामोश?

-लुइस बरुचो और रशेल ली

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल ने मंगलवार को देश में मॉर्शल लॉ की घोषणा करके सभी को चौंका दिया था।

राष्ट्रपति यून सुक-योल ने ये कदम उठाने की वजह उत्तर कोरिया से मिल रही धमकी और ‘देश विरोधी ताकतों’ को बताया था।

वैसे, उनका यह कदम राजनीतिक ज़्यादा दिखा। इसके विरोध में बड़ा प्रदर्शन हुआ और आपातकालीन संसदीय वोटिंग की मांग हुई। संसद ने इस फैसले को नामंजूर कर दिया। इसके बाद राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ का आदेश वापस ले लिया।

अब विपक्ष राष्ट्रपति यून के खिलाफ महाभियोग शुरू करने की तैयारी कर रहा है।

विपक्षी सांसदों ने राष्ट्रपति यून पर ‘राजद्रोह जैसा व्यवहार’ करने का आरोप लगाया है। राष्ट्रपति यून के इस कदम के खिलाफ हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया और उनके इस्तीफे की मांग की।

इस बीच, दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने मॉर्शल लॉ लागू करने की घोषणा करने की ‘पूरी जिम्मेदारी’ लेते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

उन्होंने ‘भ्रम और तनाव’ पैदा करने को लेकर जनता से माफी भी मांगी।

किन मुद्दों पर जीते थे यून राष्ट्रपति का चुनाव

राष्ट्रपति यून ने साल 2022 में राष्ट्रपति का चुनाव जीता था। दक्षिण कोरिया में साल 1980 से स्वतंत्र तौर पर राष्ट्रपति चुनाव की शुरुआत हुई है। तब से लेकर अब तक का यह सबसे करीबी मुकाबला था।

63 वर्षीय यून ने राष्ट्रपति चुनाव में अपने अभियान के दौरान उत्तर कोरिया और विभाजनकारी माने जा रहे लैंगिक मुद्दों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था।

राष्ट्रपति रहते वो गलतियों और राजनीतिक घोटालों के लिए बदनाम हो गए। यही वजह है कि उनकी सरकार कमजोर पड़ चुकी है। बीती रात हुआ नाटकीय घटनाक्रम इसका एक प्रमाण है।

बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार में भूतपूर्व विदेश मंत्री कांग क्यूंग-व्हा ने कहा, ‘राष्ट्रपति यून का निर्णय यह बताता है कि वो इस बात से बिल्कुल बेखबर हैं कि इस समय उनका देश वास्तव में किन परिस्थितियों से गुजर रहा है।’

तो फिर अब आगे क्या होगा। इस बारे में कांग कहती हैं कि यह सब कुछ पूरी तरह से यून पर निर्भर करता है।

उन्होंने कहा, ‘जिन परिस्थितियों में यून ने खुद को पहुंचा दिया है, अब यह उन पर ही निर्भर करता है कि वो यहां से कैसे बाहर निकलेंगे।’

हालांकि यून के पास अब भी कुछ समर्थन है। सत्ताधारी दल के कुछ सांसदों ने राष्ट्रपति के समर्थन में आवाज उठाई है।

उनमें से एक हैं ह्वांग क्यो आह्न। वो भूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, ‘राष्ट्रीय संसद के स्पीकर वू वोन शिक और यून की पार्टी के नेता हान डोंग-हून को गिरफ्तार किया जाए, क्योंकि इन नेताओं ने राष्ट्रपति की ओर से लिए जाने वाले फैसले में अड़चन डालने की कोशिश की है।’

ह्वांग ने कहा, ‘अब उत्तर कोरिया के समर्थक समूहों को खत्म किया जाना चाहिए।’

उन्होंने अपील की कि राष्ट्रपति यून को इस मामले में मजबूती से जवाब देना चाहिए। साथ ही इस मामले की जांच करवाकर ऐसे नेताओं को बाहर करने के लिए सभी आपातकालीन अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहिए।

क्या राष्ट्रपति यून पर महाभियोग चलाया जाएगा?

अब सारी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यून को अब महाभियोग का सामना करना पड़ेगा?

हालांकि वह दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति नहीं होंगे, जो इस तरह की परिस्थिति का सामना करेंगे।

छह विपक्षी दलों ने यून के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाए जाने का प्रस्ताव रखा है। 72 घंटों में इसके लिए मतदान होना चाहिए। सभी सांसद शुक्रवार (6 दिसंबर) या शनिवार (7 दिसंबर) को इसके लिए इक_ा होंगे।

इस प्रस्ताव को पास कराने के लिए 300 सदस्यों वाली संसद में दो तिहाई सांसदों यानी 200 वोट का होना जरूरी हैं। विपक्षी दलों के पास पर्याप्त संख्या है।

हालांकि यून की पार्टी ने भी उनके इस कदम की आलोचना की है, लेकिन पार्टी क्या निर्णायक फ़ैसला लेगी, यह सामने आना बाकी है।

ऐसे में यदि सत्ताधारी दल के कुछ सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया तो यह पास हो जाएगा।

यदि संसद इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देती है, तो यून की ताकत तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दी जाएगी और प्रधानमंत्री हान दक-सू कार्यकारी राष्ट्रपति बन जाएंगे।

इस बीच, नौ सदस्यों की परिषद यानी संवैधानिक अदालत दक्षिण कोरिया की सरकार की शाखाओं की देख-रेख करेगी। इस मामले में इसे ही अंतिम फैसला लेना है।

यदि संवैधानिक अदालत ने महाभियोग के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया तो यून को अपना पद छोडऩा होगा। और अगले 60 दिनों में राष्ट्रपति चुनाव हो जाएंगे।

यदि यह प्रस्ताव खारिज हो जाता है, तो यून राष्ट्रपति बने रहेंगे।

यह घटनाक्रम साल 2016 में हुए राष्ट्रपति पार्क ग्यून हे के निष्कासन की याद दिलाता है। इस मामले में यून ने अभियोजन पक्ष के भ्रष्टाचार मामले का नेतृत्व करने में अहम भूमिका निभाई थी।

पार्क को साल 2022 में रिहा कर दिया गया था। उन्होंने चार साल और नौ महीने जेल में बिताए थे।

इसी तरह साल 2004 में संवैधानिक अदालत ने संसद के महाभियोग के प्रस्ताव को पलट दिया था। इसके बाद राष्ट्रपति रोह मू-ह्यून अपने पद पर बने रहे थे।

क्या दक्षिण कोरिया में पहले भी मार्शल लॉ घोषित किया गया है?

यून का मार्शल लॉ लागू करना दक्षिण कोरिया में पिछले 45 सालों में किया गया ऐसा पहला ऐलान है। इसने देश के इतिहास में इस आपातकालीन कदम के गलत इस्तेमाल से जुड़े पुराने घावों को फिर हरा कर दिया है।

मार्शल लॉ का उद्देश्य राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति को संभालना था।

लेकिन इसके उलट यहां इसका इस्तेमाल असहमति को दबाने, अपनी सत्ता को बनाए रखने और लोकतंत्र को नुक़सान पहुंचाने के एक औजार के रूप में किया जाता रहा है। इस कारण इसकी आलोचना हुई है।

1948 में राष्ट्रपति सिंगमन री ने मार्शल लॉ घोषित किया था, जिसके कारण कई नागरिकों की मौत हुई थी।

राष्ट्रपति री के ऐसा कदम उठाने की वजह जेजू विद्रोह को दबाने था।

इसी तरह, साल 1960 में अप्रैल क्रांति के दौरान मार्शल लॉ का दुरुपयोग किया गया था।

उस समय चुनाव में धोखाधड़ी के खिलाफ एक रैली निकाली जा रही थी, जिसमें पुलिस ने एक हाई स्कूल छात्र को मार डाला था। इसके बाद राष्ट्रपति री की सरकार के खिलाफ विरोध और भी बढ़ गया था।

राष्ट्रपति पार्क चुंग-ही ने अपने शासन के दौरान सत्ता को मिल रही चुनौतियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू किया था। और उनकी हत्या के बाद 440 दिन तक मार्शल लॉ लागू रहा था।

इसी दौरान राष्ट्रपति चुन डू-ह्वान के शासनकाल में ग्वांग्जू नरसंहार हुआ।

ऐसी घटनाओं ने दक्षिण कोरिया के लोगों के लिए दर्दनाक यादें छोड़ दीं। इस कारण उन्होंने मार्शल लॉ को लोगों की सुरक्षा के उपाय की बजाय राजनीतिक ताकत इस्तेमाल करने के तरीके के तौर पर देखना शुरू किया।

1987 से दक्षिण कोरिया के संविधान में मार्शल लॉ घोषित करने की शर्तें सख्त कर दी गईं। इसके तहत, मार्शल लॉ लगाने या हटाने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी है।

दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र कितना स्थिर है?

यून सुक-योल की ओर अचानक उठाए गए इस कदम ने देश को स्तब्ध कर दिया।

क्योंकि दक्षिण कोरिया अब खुद को एक विकसित देश और आधुनिक लोकतंत्र मानता है। और वो तानाशाही के दौर से बहुत आगे बढ़ चुका है।

कई लोग ऐसी घटना को उस लोकतांत्रिक समाज के लिए बड़ी चुनौती के रूप में देखते हैं, जहां दशकों से ऐसा नहीं हुआ।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह दक्षिण कोरिया की लोकतांत्रिक छवि को अमेरिका में छह जनवरी को हुए दंगों से भी ज़्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।

सियोल में ईवा विश्वविद्यालय की विशेषज्ञ लीफ-एरिक इस्ले ने कहा, ‘यून का मार्शल लॉ घोषित करना एक गलत राजनीतिक आकलन और क़ानूनी अतिक्रमण करने जैसा दिखता है, जो अकारण दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को ख़तरे में डाल रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘वह एक ऐसे नेता लग रहे थे, जो पूरी तरह घिर चुके हैं। और लगातार बढ़ते घोटालों, संस्थागत बाधाओं और महाभियोग चलाए जाने की मांग के ख़िलाफ़ हताशा में कदम उठा रहे थे। जिनके अब और भी तेज़ होने की आशंका है।’

उत्तर कोरिया ने इस पर क्या कहा?

अपनी घोषणा में यून ने उत्तर कोरिया को निशाना बनाया था।

उन्होंने कहा था, ‘यह उत्तर कोरियाई कम्युनिस्ट ताकतों के ख़तरे से स्वतंत्र कोरिया गणराज्य की रक्षा करने’ और ‘लोगों की स्वतंत्रता और खुशी को लूटने वाले निष्ठुर उत्तर कोरियाई समर्थक और राज्य विरोधी ताकतों को समाप्त करने’ के लिए उठाया गया कदम था।

इस तरह की टिप्पणियों पर आमतौर पर उत्तर कोरिया की ओर से प्रतिक्रिया आती है। लेकिन, इस बार उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

दक्षिण कोरिया के सैन्य कमान ने बुधवार को एक बयान जारी करके कहा कि यून का मार्शल लॉ आदेश भंग कर दिया गया है और ‘उत्तर कोरिया की ओर से कोई असामान्य गतिविधियाँ नहीं देखी गईं।’

समाचार एजेंसी योन्हाप के अनुसार, इस बयान में यह भी कहा गया, ‘उत्तर कोरिया के खिलाफ सुरक्षा स्थिति स्थिर बनी हुई है।’ हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह अभी तक साफ नहीं है कि यून ने उत्तर कोरिया के खतरे की बात क्यों कही। लेकिन कई लोगों का मानना है कि इस बात से उत्तर और दक्षिण के बीच पहले से बढ़ रहा तनाव कम नहीं होगा।’ (bbc.com/hindi)


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