विचार / लेख

-स्टेफनी हेगार्डी
दुनिया भर में सभी अनुमानों से भी ज़्यादा तेज़ी से जन्म दर में कमी आ रही है। चीन में जन्म दर में रिकॉर्ड कमी देखी गई है।
जबकि, लातिन अमेरिका से भी ऐसे ही हैरान कर देने वाले आंकड़े सामने आए हैं। एक के बाद एक कई देशों में जन्म दर से संबंधित सरकारी अनुमान गलत साबित हो रहे हैं।
दुनिया भर के अलग-अलग देशों में आंकड़े जमा करने के तरीके अलग हैं। और ऐसे में तुलना करना मुश्किल है। लेकिन, पूर्वी एशिया में बे-औलादी की दर कहीं ज़्यादा है।
वहां ये दर करीब 30 फीसदी है। ब्रिटेन में ये दर 18 प्रतिशत है। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्ऱीका में भी जन्म दर अंदाजे से कहीं ज़्यादा नाटकीय तौर पर गिर रही है।
जन्म दर में कमी की एक वजह जहां लोगों में बच्चे पैदा करने का कम होता रुझान है, तो वहीं दूसरी वजह दुनिया के लगभग हर देश में ही बच्चे न होने की दर में इजाफा है।
कोलंबिया की इसाबेल का ब्रेकअप हुआ, तो उन्होंने ‘नेवर मदर्स’ के नाम का एक संगठन बनाया। इसके बाद उन्हें इस बात का एहसास भी हुआ कि वह मां बनना ही नहीं चाहती थीं।
लेकिन, उन्हें हर दिन अपनी इस पसंद की वजह से आलोचना का शिकार होना पड़ता था।
वह कहती हैं, ‘जो चीज मैं सबसे ज़्यादा सुनती हूं, वह यह है कि आपको इस पर पछतावा होगा। आप स्वार्थी हैं। जब आप बूढ़ी हो जाएंगी, तो आपकी देखभाल कौन करेगा?’
इसाबेल अपनी मर्जी से बे-औलाद हैं। लेकिन, कई लोगों के लिए इसकी वजह इन्फर्टिलिटी (बायोलॉजिकल परेशानी के चलते गर्भ धारण न कर पाना) है।
ऐसे लोग बच्चे तो पैदा करना चाहते हैं, लेकिन इस इच्छा में कामयाब नहीं होते। इसके लिए विशेषज्ञ ‘सोशल इन्फर्टिलिटी’ की शब्दावली इस्तेमाल करते हैं।
क्या कहती है रिसर्च?
हाल के एक शोध के अनुसार, इस बात की संभावना अधिक है कि कुछ कम आमदनी वाले मर्द बच्चा चाहते हुए भी नि:संतान रहते हैं।
नॉर्वे में सन 2021 में होने वाले एक शोध में यह बात सामने आई कि कम आमदनी वाले मर्दों में संतानहीनता की दर 78 फीसदी थी।
लेकिन, दूसरी और अधिक आमदनी वाले मर्दों में यह दर केवल 11 फीसदी थी।
जब रॉबिन हेडली 30 की उम्र में थे, तो वह बाप बनने के लिए बेचैन थे। उन्होंने यूनिवर्सिटी में शिक्षा तो नहीं ली, लेकिन उत्तरी इंग्लैंड की एक यूनिवर्सिटी में फोटोग्राफर की नौकरी की है।
बीस साल की उम्र में उनकी शादी हो चुकी थी, जिसके बाद उन्होंने और उनकी पत्नी ने यह कोशिश की कि उनके यहां बच्चे हों, मगर इससे पहले की उनकी यह कोशिश कामयाब होती वह अलग हो गए।
रॉबिन पर बैंक के कज़ऱ् का बोझ था, जिससे वह अपनी जान छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे।
वह आर्थिक तौर पर इतने मज़बूत नहीं थे कि वह अपने दोस्तों के साथ बाहर निकलते और नया संबंध बनाते।
आर्थिक परेशानियों की वजह से वह अपने उन दोस्तों से भी दूर होते चले गए, जो मां बाप बन रहे थे। ऐसे में रॉबिन हीन भावना का शिकार हो गए।
वह कहते हैं, ‘बच्चों के लिए सालगिरह के कार्ड या नए बच्चों की नई चीज लेना, यह सब आपको इस बात का एहसास दिलाती हैं कि आपकी जिंदगी में, आपमें किसी चीज की कमी है और आपसे क्या उम्मीद की जाती है। इसके साथ एक न खत्म होने वाली तकलीफ और दर्द भी जुड़ा हुआ है।’
उनके अपने अनुभवों ने उन्हें पुरुष इन्फ़र्टिलिटी के बारे में एक किताब लिखने को प्रेरित किया। उन्हें एहसास हुआ कि वह उन सभी चीज़ों से प्रभावित हुए हैं।
और इन सब के पीछे आर्थिक स्थिति, किस वक़्त क्या हुआ और क्या होना चाहिए था और सबसे बढक़र रिश्तों की सही समय पर पहचान, यह सब बातें काम कर रही थीं।
उन्होंने महसूस किया कि बढ़ती उम्र और बच्चे पैदा करने के बारे में उन्होंने जितनी भी पढ़ाई की, उसमें अधिकतर में नि:संतान मर्दों के लिए कहीं भी कोई जगह नहीं थी।
ऐसे लोग सरकारी आंकड़ों में पूरी तरह ग़ायब थे। या यह कह लीजिए कि सरकारी कागजात में उनका कहीं कोई नामोनिशान तक न था।
‘सोशल इन्फर्टिलिटी’
‘सोशल इन्फ़र्टिलिटी’ की कई वजहें हैं, जिनमें बच्चा पैदा करने के लिए आर्थिक संसाधनों की कमी या सही समय पर सही पार्टनर से मिलने में नाकामी की बात शामिल हैं।
फिनलैंड के पॉपुलेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट की सामाजिक विशेषज्ञ और डेमोग्राफर एना रोटकिर्च ने यूरोप और फिऩलैंड में बीस साल से ज़्यादा समय तक इस बारे में जानकारी इक_ा की है।
वह कहती हैं कि इसकी बुनियादी वजह कुछ और है। एशिया से बाहर फिऩलैंड की गिनती दुनिया के उन देशों में होती है, जहां बे-औलादी की दर सबसे ज़्यादा है।
लेकिन, सन 1990 और सन 2000 के दशक की शुरुआत से ही यह दुनिया भर में बच्चे पैदा करने के लिए अनुकूल नीतियों के ज़रिए नि:संतान होने की समस्या से निपटने की कोशिशों के लिए विशेष स्थान रखता है।
वहां मां-बाप बनने पर मिलने वाली छुट्टी, बच्चों की देखभाल के लिए अनुकूल माहौल और घर चलाने के लिए मर्द और औरत बराबरी से अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं।
लेकिन, ऐसे अनुकूल माहौल के बावजूद सन 2010 के बाद से देश में जन्म दर में लगभग एक तिहाई की कमी आई है।
प्रोफेसर रोटकिर्च का कहना है कि शादी की तरह बच्चे पैदा करने को भी एक अहम पड़ाव के तौर पर देखा जाता था, जैसे कि बालिग़ होते ही एक नई जि़ंदगी की शुरुआत करना।
‘मगर अब हालात इसके उलट होते जा रहे हैं यानी कि अब शादी और बच्चे पैदा करना अहम काम नहीं रहा। हां, जब लोगों की जिंदगी के सभी काम हो जाएं तो वह देखेंगे कि यह भी कोई करने वाला काम था।’
प्रोफ़ेसर रोटकिर्च बताती हैं कि हर वर्ग के लोग यह सोचते हैं कि बच्चा पैदा करना उनकी जिंदगी में अनिश्चितता बढ़ा रहा है।
फिनलैंड में उन्होंने यह देखा कि सबसे अमीर महिलाएं बिना इरादा बे-औलाद रहने को महत्व देती हैं। लेकिन दूसरी और कम आमदनी वाले मर्दों में बे-औलाद रहने का रुझान अधिक पाया जाता है।
यह पहले की तुलना में हैरान कर देने वाला बदलाव है क्योंकि पहले गरीब परिवारों में बालिग होने की बात पर बहुत जोर दिया जाता था।
यहां तक कि पढ़ाई छोड़ दी जाती थी और नौकरी ढूंढकर अपने पांव पर खड़े होने और कम उम्र में ही शादी करके अपना परिवार बसाने को ज़्यादा पसंद किया जाता था।
मर्दों की आर्थिक समस्या
मर्दों की आर्थिक समस्याएं और इससे पैदा होने वाली अनिश्चितता उन्हें बे-औलादी की तरफ़ ले जाती है।
इसे सामाजिक विशेषज्ञ ‘सेलेक्शन इफ़ेक्ट’ का नाम देते हैं। इसमें महिलाएं जीवन साथी का चुनाव करती हैं तो उसी सामाजिक वर्ग या उससे ऊपर के किसी शख़्स का चुनाव करती हैं।
रॉबिन हेडली की बीवी ने उन्हें यूनिवर्सिटी जाने और पीएचडी करने में मदद की।
वह कहते हैं, ‘अगर वह ना होती तो मैं इस मुक़ाम पर नहीं होता जहां मैं हूं।’
हां, लेकिन अब जब उन्होंने बच्चे पैदा करने के बारे में सोचा, तो वह 40 की उम्र को पार कर चुके थे और बहुत देर हो चुकी थी।
दुनिया भर के 70 फ़ीसद देशों में औरतें शिक्षा के मैदान में मर्दों से आगे निकल रही हैं, जिसकी वजह से सामाजिक विशेषज्ञ मार्शिया अनहोरन ने इसे ‘दी मेटिंग गैप’ यानी मिलन का अंतर नाम दिया है।
प्रजनन स्वास्थ्य और आंकड़े की कमी
अधिकतर देशों में पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि जन्म का रिकॉर्ड दर्ज करते समय केवल मां के प्रजननीय स्वास्थ्य को देखा जाता है।
इसका मतलब यह है कि संतानहीन में पुरुषों की गिनती नहीं की जाती।
लेकिन, कुछ नॉर्डिक (उत्तर यूरोपीय) देशों में बच्चा पैदा होने पर स्त्री और पुरुष दोनों के बारे में जानकारी रखी जाती है।
नॉर्वे में होने वाले एक शोध में अमीर और गऱीब मर्दों के बीच बच्चे पैदा करने में बड़े पैमाने पर अंतर बताते हुए कहा गया है कि अनगिनत मर्द पीछे रह गए हैं।
ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में पुरुषों के स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य का अध्ययन करने वाले विंसेंट स्ट्रॉब कहते हैं कि जन्म दर में कमी में मर्दों की भूमिका की अक्सर अनदेखी की जाती है।
वह जन्म दर में कमी के मामले में पौरुष संकट पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।
उनके अनुसार यह नौजवान मर्दों में उलझाव से जुड़ा है, जिसकी वजह समाज में महिलाओं का सशक्त होना और ‘मर्दानगी से जुड़ी सामाजिक उम्मीदों’ में बदलाव है।
इस मामले को ‘मर्दानगी का संकट’ का नाम भी दिया गया है और अति दक्षिणपंथी एंड्रयू टेट जैसे लोगों की, जो महिला अधिकार के विरोधी हैं, शोहरत इस बात का सबूत है।
स्ट्रॉब का कहना है कि कम शिक्षित मर्द पहले की तुलना में बहुत बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं।
इसकी एक वजह यह भी है कि तकनीकी प्रगति ने हाथ से काम करने वालों के लिए मौकों को कम कर दिया है, जिससे यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने वालों और उन लोगों में अंतर बढ़ गया है, जो उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सकते।
इससे ‘मेटिंग गैप’ भी बढ़ा है और इसका मर्दों की सेहत पर काफी असर पड़ता है।
ड्रग्स का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है और बालिग़ मर्दों में इसका इस्तेमाल सबसे अधिक है, चाहे वह अफ्ऱीका में हो या दक्षिणी और मध्य अमेरिका में।
स्ट्रॉब कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि प्रजननीय स्वास्थ्य और इस तरह के सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के बीच कोई संबंध है, जो हमारी नजऱों से ओझल है।’
यह बात मर्दों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है। स्ट्रॉब का कहना है कि अकेले रहने वाले मर्दों की सेहत आमतौर पर अपने पार्टनर के साथ रहने वाले मर्दों की तुलना में खऱाब होती है।
हल क्या है?
स्ट्रॉब और हेडली का कहना है कि प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में बातचीत लगभग पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित है। और ऐसे में जन्म दर से निपटने के लिए बनाई गई कोई भी नीति अधूरी रह गई।
स्ट्रॉब का मानना है कि प्रजनन स्वास्थ्य के साथ-साथ पुरुष स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा और बाप बनने वाले मर्दों का ध्यान रखने के फ़ायदे पर बातचीत करनी होगी।
वह कहते हैं कि यूरोपीय यूनियन में 100 में से केवल एक मर्द अपना करियर छोडक़र बच्चे का ध्यान रखता है जबकि महिलाओं में यह अनुपात हर तीन में एक का होता है।
ऐसे सबूत मौजूद हैं कि बच्चे की देखभाल मर्दाना सेहत के लिए अच्छी होती है।
इधर इसाबेल अपने संगठन के ज़रिए एक अंतरराष्ट्रीय बैंक के प्रतिनिधियों से मिलीं तो उन्हें बताया गया कि बाप बनने वालों को छह हफ़्तों की छुट्टी की पेशकश की गई लेकिन किसी ने भी यह पेशकश कबूल नहीं की।
इसाबेल का कहना है कि मर्दों को लगता है कि बच्चे संभालना औरतों का काम है। दूसरी और रॉबिन हेडली के अनुसार बेहतर आंकड़े की ज़रूरत है।
उनके अनुसार जब तक पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य का रिकॉर्ड नहीं होगा, इसे समझना मुश्किल होगा और यह भी जानना होगा कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर उसका क्या असर होता है।
दूसरी तरफ संतानहीनता की समस्या पर बातचीत से भी मर्द गायब हैं। महिलाओं को अपनी सेहत का कैसे ख़्याल रखना चाहिए, इस पर तो बहुत बात होती है और जागरूकता भी है, लेकिन मर्दों में यह बात नहीं होती।
रॉबिन का कहना है कि मर्दों में एक जीवन चक्र भी होता है और शोध से साबित होता है कि 35 साल की उम्र के बाद मर्दों के स्पर्म की उपयोगिता कम हो जाती है।
ऐसे में यह ज़रूरी है कि मां-बाप की सामाजिक परिभाषा को भी व्यापक बनाया जाए।
शोधकर्ता इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि संतानहीन लोग भी बच्चों की परवरिश में अहम भूमिका निभा सकते हैं। एना रोटक्रिच के अनुसार इसे ‘एलो पेरेंटिंग’ कहते हैं।
वह कहती हैं कि मानव इतिहास में एक बच्चे का ध्यान रखने वाले एक दर्जन से अधिक लोग हुआ करते थे।
डॉक्टर हेडली ने जब अपने शोध के दौरान एक बे-औलाद मर्द से बात की, तो उसने एक ऐसे परिवार के बारे में बताया जिससे वह स्थानीय फ़ुटबॉल क्लब में मिलता था।
एक स्कूल प्रोजेक्ट के लिए परिवार के दो बच्चों को दादा-दादी की ज़रूरत थी, लेकिन उनके दादा-दादी नहीं थे।
उस आदमी ने उन बच्चों के दादा का रूप लिया और फिर कई साल तक वह बच्चे जब भी क्लब में उनको देखते तो उन्हें दादा ही कहते। उनके अनुसार बच्चों का ऐसा कहना उनको बहुत अच्छा लगता था।
प्रोफ़ेसर रोटक्रिच का कहना है, ‘मेरी राय में अधिकतर बे-औलाद लोग इस तरह बच्चों का ध्यान रखते हैं लेकिन यह नजऱ नहीं आता। जन्म के रजिस्टर में तो नहीं होता है, लेकिन यह बहुत अहम होता है।’ (bbc.com/hindi)