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दिल्ली का प्रदूषण किसकी नाकामी, केंद्र और राज्य सरकारों पर क्यों उठ रहे हैं सवाल
26-Oct-2024 3:51 PM
दिल्ली का प्रदूषण किसकी नाकामी, केंद्र और  राज्य सरकारों पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

-चंदन कुमार जजवाड़े

मौसम बदलने के साथ ही उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का असर बढऩे लगा है। इस प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर राजधानी दिल्ली और इसके आसपास रहने वाले करीब 3 करोड़ लोगों पर पड़ता है।

सर्दियों की दस्तक के साथ ही दिल्ली और इसके आसपास के लोग करीब तीन महीने तक एक तरह के गैस चैंबर में जहरीली हवा के बीच सांस लेने को मजबूर होते हैं।

इसका असर बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों पर सबसे ज्यादा होता है। हालाँकि इन दिनों दिल्ली में प्रदूषण का असर इतना ज़्यादा होता है कि यह स्वस्थ इंसान को भी गंभीर बीमारियाँ दे सकता है।

दिल्ली के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट कई बार नाराजग़ी जता चुका है। केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली और आसपास की राज्य सरकारें अलग-अलग दावे करती रही हैं, लेकिन इससे प्रदूषण के स्तर में कोई बड़ी राहत नजऱ नहीं आती है।

क्या हैं दिल्ली में प्रदूषण के हालात

दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर काम करने वाले सीएक्यूएम यानी ‘द कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट’ ने बीबीसी को बताया है कि दिल्ली में पूरे साल प्रदूषण होता है, लेकिन यह सर्दियों में ज्यादा नजर आता है।

सर्दियों में कम तापमान, हवा नहीं चलने और बारिश नहीं होने से प्रदूषण करने वाले कण ़मीन की सतह के करीब काफी कम इलाके में जमा हो जाते हैं।

पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में सभी देशों की राजधानी में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है।

इस रिपोर्ट में पीएम 2.5 के आधार पर बताया गया है कि दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित 15 शहरों में 12 शहर भारत के हैं।

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 30 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर भारत में हैं जहां पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे ज़्यादा है।

मेडिकल जर्नल बीएमजे की स्टडी में पाया गया है कि प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल 20 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत होती है।

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ कहते हैं, ‘दिल्ली में प्रदूषण पूरे साल रहता है लेकिन यह सर्दियों में सतह के काफी करीब आ जाता है, जिसकी वजह से यह ज़्यादा दिखता है और ज्यादा नुकसान भी पहुँचाता है।’

उनका कहना है कि प्रदूषण की कई वजहें हैं जिनमें निजी वाहनों की बड़ी तादाद, दिल्ली में निर्माण कार्य की बड़ी भूमिका है, इसमें पराली (खेतों में फसलों के अवशेष) जलाना भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी

देश की राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में दिवाली के पहले ही एक्यूआई ‘बहुत खराब’ स्तर पर पहुँच गई है और इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी शुरू हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए बने कानूनों को लेकर केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणी की है और कहा है कि ये किसी काम के नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है और नागरिकों के अधिकार की रक्षा करना केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है।

कोर्ट ने कहा कि पराली जलाने पर जुर्माने से संबंधित प्रावधानों को लागू नहीं किया गया है।

हालाँकि दिल्ली की इस हालत और प्रदूषण के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार तीखी टिप्पणी कर चुका है।

साल 2019 में दिल्ली सरकार के ऑड-इवन स्कीम पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े किए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान वायु प्रदूषण को ‘जीने के मूलभूत अधिकार का गंभीर उल्लंघन’ बताते हुए कहा था कि राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय अपनी ‘ड्यूटी निभाने में नाकाम’ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- ‘हमारी नाक के नीचे हर साल ऐसा हो रहा है। इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे, आप लोगों को मरते हुए नहीं छोड़ सकते।’ दिल्ली में उस साल हेल्थ इमरजेंसी भी लागू करनी पड़ी थी।

साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में दिवाली में पटाखों पर पाबंदी लगा दी थी।

कृषि विशेषज्ञ और वकील विजय सरदाना इस मुद्दे पर लंबे समय से नजऱ रख रहे हैं। उनका मानना है कि पराली जलाना भारत में एक राजनीतिक समस्या है, इसलिए सरकारें इसके खिलाफ कदम नहीं उठा सकती हैं।

विजय सरदाना कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट को पराली जलाने की सैटेलाइट तस्वीरें मंगाकर पराली जलाने वालों के खिलाफ एक्शन लेना होगा। कोर्ट ने प्रदूषण को संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीने के अधिकार के खिलाफ माना है, तो ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ एक्शन जरूरी है।’

उनका मानना है पराली जलाने से प्रदूषण की समस्या में अचानक बढ़ोतरी होती है और ऐसा करना अपराध है तो इस तरह के अपराध करने वालों को कोई सरकारी लाभ नहीं मिलना चाहिए।

क्या कर रही है दिल्ली सरकार

दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग के मुताबिक साल 2016 से अक्तूबर से फरवरी के बीच करीब 150 दिनों में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता की स्थिति चिंताजनक रही है।

इस दौरान जहाँ साल 2016 में 143 दिनों तक एक्यूआई खऱाब से लेकर खतरनाक (सिवियर) की श्रेणी में रहा, वहीं पिछली सर्दियों 150 में 124 दिन हवा की गुणवत्ता इसी श्रेणी में पाई गई।

डीपीसीसी यानी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की वेबसाइट के मुताबिक़ दिल्ली में सर्दियों के दौरान पीएम-2.5 को बढ़ाने में बायोमास को जलाने का सबसे बड़ा योगदान रहा जो 25 फीसदी के बराबर है। इसमें पराली जलाना भी शामिल है।

सीएक्यूएम के मुताबिक सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए जो कदम उठाए हैं उसका असर हुआ है और प्रदूषण का औसत स्तर 2016 के मुकाबले कम हुआ है। हालाँकि अक्तूबर महीने के आसपास दिवाली और पराली की वजह से कुछ दिनों के लिए यह जरूर बढ़ जाता है।

डीपीसीसी के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण के पीछे दूसरे नंबर पर वाहनों का योगदान होता है और यह करीब 25 फीसदी है।

दिल्ली के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी से प्रदूषण की समस्या पर बात की है। उनका कहना है कि बीते कुछ साल में खेती में मशीनों के इस्तेमाल की वजह से यह समस्या बढ़ी है।

वो कहते हैं, ‘मशीनों से खेती की लागत कम होती है और मजदूरों की जरूरत भी कम हो जाती है। इससे खेती में पशुओं की जरूरत खत्म हो गई और अब उन्हें खिलाने के लिए पराली की जरूरत नहीं पड़ती है।’

उनका कहना है कि बीजों की नई नस्ल, ज़्यादा गर्मी में सिंचाई के लिए पानी की ज़्यादा जरूरत से बचने के लिए भी एक फसल के बाद दूसरी फसल के लिए खेतों को जल्दी तैयार करना पड़ता है, इसलिए पराली को जला दिया जाता है।

विजय सरदाना भी इस बात से सहमत दिखते हैं। उनका कहना है कि ज़्यादा मज़दूरी देने से बचने के लिए पराली को जला दिया जाता है और यह समस्या कऱीब 10 साल पहले ज़्यादा बड़े स्तर पर शुरू हुई है।

विजय सरदाना कहते हैं, ‘जब से पंजाब सरकार ने जून के महीने में अंडर ग्राउंड वॉटर से सिंचाई पर पाबंदी लगाई है, तब से किसान धान की कटाई के बाद अक्तूबर महीने के आसपास धान की कटाई के बाद पराली को जला देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत जल्दी तैयार हो जाए।’

उनका मानना है कि यह प्रदूषण के पीछे एक बड़ी वजह है चाहे इसे कोई स्वीकार करे या न करे।

दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए 200 मोबाइल एंटी स्मॉग गन भी लगाए गए हैं जो पानी का छिडक़ाव कर धूल को नियंत्रित करता है। इनमें से करीब 100 एएसजी ऊंची इमारतों पर लगाए गए हैं। इसके अलावा सडक़ों पर 100 से ज्यादा एएसजी लगाए गए हैं।

दिल्ली सरकार इस प्रदूषण को रोकने के लिए ग्रेडेड एक्शन प्लान भी लागू करती है। इसके तहत प्रदूषण के स्तर के हिसाब से निर्माण के काम पर रोक, होटलों और अन्य खान-पान की दुकानों पर कोयला जलाने पर पाबंदी लगाई जाती है।

इसले अलावा इसमें आपातकालीन सेवाओं को छोडक़र डीजल जेनरेटर के इस्तेमाल पर रोक जैसे कदम शामिल हैं।

दिल्ली सरकार में मंत्री गोपाल राय ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में आने वाली डीज़ल बसों की वजह से दिल्ली में प्रदूषण पर असर पड़ता है।

उनका कहना है, ‘दिल्ली में अब सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में डीजल बसें अभी भी आनंद विहार और कौशांबी डिपो पर चल रही हैं।’

सरकारों के बीच खींचतान और राजनीति

खबरों के मुताबिक इस साल फिर से दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुख्यमंत्री आतिशी को चि_ी लिखी है।

जबकि बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को जि़म्मेदार ठहराया है, जो बीते 10 साल में ज़्यादातर समय के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री थे।

लाइव लॉ के मुताबिक साल 2021 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनाम दाखिल किया था उसके मुताबिक सर्दियों में दिल्ली में पीएम-2.5 की मात्रा बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका उद्योगों की है जो कि 30त्न है। जबकि इसमें दिल्ली की सडक़ों पर चल रहे वाहनों का योगदान करीब 28 फीसदी है।

दिल्ली सरकार पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटना को एक बड़ी वजह बताती रही है, जबकि केंद्र सरकार इसके पीछे दूसरी वजहों को ज्यादा जिम्मेदार मानती है।

इसके अलावा डीपीसीसी की वेबसाइट पर दी गई जानाकारी के मुताबिक़ भारत में 10 जनवरी 2019 को नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की शुरुआत की गई। हालाँकि दिल्ली सरकार का आरोप है कि दिल्ली को साल 2019-20 और साल 2020-21 के दौरान एनसीएपी के तहत कोई फंड नहीं मिला।

दिल्ली सरकार का कहना है कि उसे साल 2021-22 में करीब 11 करोड़ और साल 2022-23 में इसके तहत करीब 23 करोड़ रुपये का फंड मिला।

क्या है समाधान?

पीएम यानी पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की एक किस्म है। इसके कण बेहद सूक्ष्म होते हैं जो हवा में बहते हैं। पीएम 2.5 या पीएम 10 हवा में कण के साइज को बताता है।

हवा में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर ख़ून में घुल जाते है। इससे शरीर में कई तरह की बीमारी जैसे अस्थमा और साँसों की दिक्कत हो सकती है।

संजय वशिष्ठ कहते हैं, ‘प्रदूषण की वजहों और इसके असर की सारी जानकारी हर सरकार को है, उनके पास हमसे ज़्यादा जानकार लोग बैठे हैं। लेकिन प्रदूषण को कम करने के लिए अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ठीक किया जाता है तो इसका असर कार और बाकी वाहनों के बिजनेस पर पड़ेगा।’

संजय वशिष्ठ इस मामले में ट्रांसपोर्ट सेक्टर के हितों और उसमें आई गिरावट का रोजगार पर असर तो मानते ही हैं, साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर करने के लिए बड़े निवेश की ज़रूरत को भी सरकारों के लिए एक बड़ी समस्या मानते हैं।

इसके अलावा निर्माण कार्य के खिलाफ सख्त कदम उठाने से इस सेक्टर पर भी असर पड़ सकता है।

हालांकि वो मानते हैं कि निर्माण कार्य में धूल कम निकले इसके लिए नई तकनीक की जरूरत भी है।

सीएक्यूएम भी इस बात को मानती है कि दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के दूरगामी उपायों में ज्यादा से ज्य़ादा इलेक्ट्रिक वाहन, निर्माण के कार्य में उडऩे वाली धूल को रोकना और जीवनशैली को बदलना शामिल है।

सीएक्यूएम के मुताबिक अक्सर लोग रोज़मर्रा की जिंदगी से प्रदूषण में योगदान को भूल जाते हैं जिसमें वाहनों के इस्तेमाल से लेकर कई कार्यों में लकड़ी को जलाना शामिल है, जैसे सर्दियों के दौरान ठंड से बचने के लिए अलाव जलाना। (bbc.com/hindi)


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