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गिरिराज सिंह बिहार में ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ से अपना हित साध रहे हैं या बीजेपी का?
23-Oct-2024 3:17 PM
गिरिराज सिंह बिहार में ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ से अपना हित साध रहे हैं या बीजेपी का?

बीजेपी नेता गिरिराज सिंह की इस यात्रा को लेकर विपक्ष और सत्ताधारी दल जेडीयू ने भी सवाल उठाए हैं


-सीटू तिवारी

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार में 18-22 अक्तूबर के बीच ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ की।

इस यात्रा से जहां बीजेपी की प्रदेश इकाई ने किनारा कर लिया, वहीं राज्य में बीजेपी के साथ सत्ता में शामिल पार्टी जेडीयू भी इससे असहज दिखी।

गिरिराज सिंह ने ये यात्रा राज्य के भागलपुर, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया में की। इन जि़लों को सीमांचल का इलाका कहा जाता है।

केंद्रीय मंत्री ने अपनी इस यात्रा के दौरान 19 अक्तूबर को कटिहार में ‘लव, थूक और लैंड जिहाद’ की बात कहने के साथ ही सीमांचल में ‘रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठ’ का मुद्दा उठाया।

बिहार में पिछले कुछ समय से कई राजनीतिक यात्राएं चर्चा में रही हैं। चाहे वो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की संवाद यात्रा हो, या हाल ही में अपनी पार्टी लॉन्च करने वाले प्रशांत किशोर की पदयात्रा हो।

फिलहाल वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की निषाद संकल्प यात्रा, भाकपा माले की न्याय यात्रा चल ही रही है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा और इस दौरान आए बयानों की है।

गिरिराज सिंह की इस यात्रा पर राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी से लेकर सत्ताधारी पार्टी और बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने भी सवाल उठाए हैं।

जेडीयू ने जहां इस यात्रा को ‘गैऱ जरूरी’ बताया, वहीं तेजस्वी यादव ने यात्रा ने पहले चेतावनी दी थी, ‘अगर इस यात्रा से नफरत फैली तो आरजेडी चुप नही बैठेगी।’

आलम ये रहा कि इस सियासी उबाल में बीजेपी ने भी गिरिराज सिंह की इस यात्रा से किनारा कर लिया। आखिर ये यात्रा महत्वपूर्ण क्यों बन गई थी, इस सवाल का जवाब यात्रा के रूट चार्ट में है।

यात्रा वाले इलाके की डेमोग्राफी

दरअसल गिरिराज सिंह की यात्रा जिन जिलों से गुजरी, वो मुस्लिम आबादी के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

किशनगंज में 68 फीसदी, कटिहार में 45, अररिया में 43, पूर्णिया में 38 और भागलपुर में 18 फीसदी मुस्लिम आबादी है।

बिहार की सियासत पर नजऱ रखने वाले गिरिराज सिंह की इस यात्रा को राज्य में एक नए ट्रेंड के तौर पर देखते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष कहते है, ‘राज्य में हिंदू, मुसलमान या धर्म के नाम पर किसी पॉलिटिकल पार्टी या केन्द्रीय मंत्री के यात्रा निकालने का हाल के दशकों में कोई इतिहास नहीं मिलता।’

सीमांचल के चार जि़लों में 24 विधानसभा क्षेत्र हैं। अगर इसमें भागलपुर के 7 विधानसभा क्षेत्रों को भी जोड़ दें तो गिरिराज सिंह ने अपनी यात्रा के जरिए 31 विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करने की कोशिश की है।

मुस्लिम आबादी के लिहाज से महत्वपूर्ण सीमांचल के अलावा भागलपुर भी गिरिराज सिंह की इस यात्रा का हिस्सा है। भागलपुर में साल 1989 में सांप्रदायिक दंगा हुआ था।

बीजेपी ने कर लिया था यात्रा से किनारा

बिहार बीजेपी ने पहले ही इस यात्रा से खुद को किनारे कर लिया था।

प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने इस संबंध में सवाल पूछे जाने पर कहा, ‘ना नफरत के नाम पर, ना सियासत के नाम पर, एनडीए चुनाव लड़ेगी मोहब्बत के नाम पर।’

दिलीप जायसवाल ने कहा कि पार्टी के बैनर के तहत ये यात्रा नहीं हो रही है, इसलिए वो इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।

लेकिन क्या ये संभव है कि कोई केन्द्रीय मंत्री बिना केन्द्रीय नेतृत्व की सहमति से यात्रा निकाले?

दैनिक अख़बार राजस्थान पत्रिका में बिहार के ब्यूरो चीफ रहे प्रियरंजन भारती कहते हैं, ‘पार्टी बेशक आधिकारिक तौर पर घोषणा नहीं कर रही लेकिन ये एजेंडा तो बीजेपी और आरएसएस का ही है।’

उन्होंने कहा, ‘यात्रा का टार्गेट हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना है, लेकिन ये बहुत मुश्किल है क्योंकि हिंदू समाज जातियों में बंटा है और उसका वोटिंग पैटर्न भी इससे प्रभावित होता है।’

वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष भी गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा को बीजेपी का ‘प्लान बी’ बताते हैं।

वो कहते हैं, ‘बिना केन्द्रीय नेतृत्व की मंजूरी के ऐसी यात्राएं नहीं की जा सकती। ये बीजेपी का प्लान बी है, जिस पर पार्टी काम कर रही है।’

हालांकि। वरिष्ठ पत्रकार फ़ैज़ान अहमद इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखते हैं। वो कहते हैं, ‘मुझको नहीं लगता कि वो पार्टी के लिए यात्रा निकाल रहे हैं। सीमांचल में पार्टी अच्छी स्थिति में है। गिरिराज जो कर रहे है, वो अपने लिए कर रहे हैं।’

‘हिंदूवादी छवि को मजबूत करने की कवायद’

पत्रकार फैजान अहमद के मुताबिक, गिरिराज सिंह का यात्रा के पीछे ‘व्यक्तिगत मकसद’ है।

फ़ैज़ान अहमद कहते हैं, ‘बिहार में बीजेपी के पास कोई चेहरा नहीं है, ऐसे में गिरिराज सिंह खुद को लीडर के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते हैं। आप देखिए कि सुशील मोदी के बाद पार्टी ने जो डिप्टी सीएम दिए भी, उनकी कोई पॉलिटिकल स्टैंडिंग नहीं है।’

वो कहते हैं, ‘गिरिराज सिंह की अपनी छवि हिंदू फायर ब्रांड नेता की रही है। लेकिन पार्टी में हिमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं के उभार के बाद गिरिराज को अपनी उस छवि को बनाए रखने का संघर्ष पार्टी के भीतर ही करना पड़ रहा है। यानी उनके अपने लिहाज़ से भी ये यात्रा महत्वपूर्ण है।’

पत्रकार प्रियरंजन भारती भी कहते हैं, ‘हाल के दिनों में गिरिराज सिंह बाकी के फायरब्रांड नेताओं के मुकाबले खुद को बैकफुट पर महसूस कर रहे है। इस यात्रा के ज़रिए वो खुद को आक्रामक तरीके से प्रोजेक्ट करना चाहते हैं।’

इस बीच गिरिराज सिंह कई मौकों पर अपने साथ त्रिशूल लिए दिखे हैं।

अररिया में गिरिराज सिंह ने कहा भी, ‘त्रिशूल की पूजा महादेव (शिव) के तौर पर करें और ज़रूरत पडऩे पर इसका इस्तेमाल भी करें।’

गैर जरूरी यात्रा-जेडीयू

गिरिराज सिंह के हिंदू स्वाभिमान यात्रा की घोषणा के बाद से ही जेडीयू इसके प्रति असहज है।

ये जेडीयू के नेतृत्व में चल रही सरकार के एजेंडें ‘सबका साथ– सबका विकास’ के नारे में फिट बैठती नहीं दिखती।

जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन बीबीसी से कहते हैं, ‘हमारी पार्टी के मुताबिक ये ग़ैर ज़रूरी यात्रा है और बीजेपी भी इसे निजी और व्यक्तिगत यात्रा बता चुकी है।’

उन्होंने कहा, ‘वैसी स्थिति में आप कोई भी कार्यक्रम करते हैं तो ये आपका निजी कार्यक्रम है। बिहार में हिंदू हो या मुसलमान, नीतीश कुमार की अगुआई में सभी सुरक्षित हैं।’

हालांकि, इस यात्रा के दौरान कई विवादित बयान सामने आए हैं।

इस यात्रा के दौरान अररिया के बीजेपी सांसद प्रदीप सिंह ने कहा, ‘अररिया में रहना है तो हिंदू बनना पड़ेगा।’

इस पर जेडीयू एमएलसी नीरज कुमार सांसद प्रदीप सिंह के बयान को तो आड़े हाथों लेते हैं, लेकिन बिहार बीजेपी का बचाव करते हैं।

वो कहते है, ‘हिंदुस्तान के लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत संसद है। जहां सांसद जाति, धर्म से ऊपर उठकर काम करने की शपथ लेते हैं। अच्छा होता कि प्रदीप सिंह कहते कि लोगों को डॉ। आंबेडकर के दिए संविधान को मानना होगा।’

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह के बयानों के कारण ही बीजेपी प्रदेश ईकाई ने इस यात्रा से खुद को अलग कर लिया है।’

क्या चुनावी राजनीति पर होगा असर?

इस यात्रा में कई जगह गिरिराज सिंह इलाके के मुस्लिम विधायकों पर निशाना साधते दिखे।

जैसे उन्होंने पूर्णिया में अपनी सभा को संबोधित करते हुए कहा,‘ बायसी और अमौर में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए। अब कसबा की बारी है।’

पूर्णिया में 7 विधानसभा सीट हैं, जिनमें से तीन सीट यानी बायसी, अमौर और कसबा के विधायक मुस्लिम हैं। अमौर में अख्तरूल ईमान, बायसी से सैयद रूकनुद्दीन और कसबा से आफक़े आलम।

एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष और अमौर से विधायक अख्तरूल ईमान, गिरिराज सिंह के हिंदुओं के अल्पसंख्यक हो जाने के दावे को ‘उन्मादी जुमला’ बताते हैं।

वो कहते हैं, ‘कोचाधामन और अमौर दो ऐसी सीट हैं, जहां 74 फीसदी मुसलमान और 24 फ़ीसदी हिंदू आबादी है। एक दो बार ही ऐसा मौका आया कि जब यहां से हिंदू विधायक रहे।’

उन्होंने कहा, ‘गिरिराज सिंह उन्माद फैलाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि एक संवैधानिक पद पर बैठे आदमी धर्म विशेष और जाति की राजनीति कैसे कर सकता है। भागलपुर सिल्क सिटी है, उसके लिए कपड़ा मंत्री रहते उन्होंने क्या किया?’

प्रियरंजन भारती कहते है, ‘चुनावों पर क्या असर पड़ेगा, इसके लिए तो इंतज़ार करना होगा। लेकिन जेडीयू बीजेपी के रिश्तों में इससे तल्खी आएगी, ऐसा लगता नहीं है।’

बिहार में विधानसभा चुनाव साल 2025 में होने है।

देखना दिलचस्प होगा कि पक्ष और विपक्ष में बहुमत हासिल करने को लेकर और सत्ता पक्ष यानी जेडीयू और बीजेपी के भीतर भी खुद के ‘पॉलिटिकल स्पेस’ बढ़ाने को लेकर कौन कौन से राजनीतिक करतब भविष्य के गर्भ में है। ((bbc.com/hindi)


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