विचार / लेख
-अंशुल सिंह
हरियाणा में बीजेपी की सरकार ने अनुसूचित जाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण वाले फैसले को लागू करने का निर्णय लिया है। ऐसा करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य बन गया है।
17 अक्टूबर को नायब सिंह सैनी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और शपथ ग्रहण के अगले दिन 18 अक्टूबर को सीएम सैनी ने कैबिनेट की बैठक में यह फ़ैसला लिया।
कैबिनेट के इस फैसले के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने प्रेस कॉन्फ्ऱेंस की और कहा कि हमारी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान किया है।
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने हरियाणा सरकार के इस फैसले को दलितों को आपस में लड़ाने का षडय़ंत्र करार देते हुए इसे दलित विरोधी बताया है।
फैसले से किन जातियों को लाभ मिलेगा?
इसी साल अगस्त के महीने में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद चुनाव से पहले अनुसूचित जाति में उप-वर्गीकरण की बात उठी थी।
तब नायब सिंह सैनी के कहा था कि राज्य मंत्रिमंडल ने हरियाणा अनुसूचित आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है।
उन्होंने कहा था, ‘राज्य में अनुसूचित जातियों के लिए सरकारी नौकियों में 20 फीसदी कोटा आरक्षित किया जाएगा। आयोग की सिफारिश के हिसाब से इस कोटे का आधा (50 फीसदी) और कुल कोटे में 10 फ़ीसदी वंचित अनुसूचित जातियों को दिया जाएगा।’
हरियाणा में आधिकारिक रूप से कुल 36 जातियां ‘वंचित अनुसूचित जातियों’ की लिस्ट में शामिल हैं।
ये जातियां हैं: अद धर्मी, वाल्मीकि, बंगाली, बरार, बटवाल, बोरिया, बाजीगर, बंजारा, चनल, दागी, दरेन, देहा, धानक, धोगरी, डुमना, गगरा, गंधीला, जुलाहा, खटीक, कोरी, मरीजा, मजहबी, मेघ, नट, ओड, पासी, पेरना, फरेरा, संहाई, संहाल, सांसी, संसोई, सपेला, सरेरा, सिक्लीगर और सिरकीबंद।
हरियाणा में वंचित अनुसूचित जातियों की स्थिति
राज्य में वंचित अनुसूचित जातियों के लिए अनुसूचित जातियों के आरक्षण के भीतर आरक्षण देना लंबे समय से एक मुद्दा रहा है।
बीजेपी ने 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में भी इन जातियों को आरक्षण देने का वादा किया था।
2011 की जनगणना के मुताबक़ि, राज्य की कुल आबादी 2.5 करोड़ से ऊपर है और इसमें करीब 27.5 लाख की हिस्सेदारी वंचित अनुसूचित जातियों की है।
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रुप-ए, ग्रुप-बी और क्रुप-सी में इन जातियों से आने वाले लोगों की हिस्सेदारी क्रमश: 4.5 फीसदी, 4.14 फीसदी और 6.27 फीसदी है।
वहीं राज्य में दूसरी अनुसूचित जातियों की जनसंख्या भी 27.5 लाख के आसपास है लेकिन इनकी हिस्सेदारी ग्रुप-ए, ग्रुप बी और ग्रुप सी में क्रमश: 11 फीसदी, 11.31 फीसदी और 11.8 फीसदी है।
2011 की जनगणना के डेटा से पता चलता है कि वंचित अनुसूचित जातियों में सिफऱ् 3.53 फ़ीसदी आबादी ग्रेजुएट, 3.75 फ़ीसदी आबादी बारहवीं, 6.63 फीसदी आबादी हाईस्कूल और 46.75 फीसदी लोग निरक्षर हैं।
घोर आरक्षण विरोधी फैसला-मायावती
बीएसपी प्रमुख मायावती ने इस फैसले को ‘फूट डालो-राज करो’ से जोडक़र बताया है।
मायावती ने एक्स पर लिखा, ‘हरियाणा सरकार को ऐसा करने से रोकने के लिए भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के आगे नहीं आने से भी यह साबित है कि कांग्रेस की तरह बीजेपी भी आरक्षण को पहले निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने और अन्तत: इसे समाप्त करने के षडय़ंत्र में लगी है, जो घोर अनुचित है। बीएसपी इसकी घोर विरोधी है।’
उन्होंने आगे लिखा, ‘वास्तव में जातिवादी पार्टियों द्वारा एससी-एसटी व ओबीसी समाज में ‘फूट डालो-राज करो’ व इनके आरक्षण विरोधी षड्यंत्र आदि के विरुद्ध संघर्ष का ही नाम बीएसपी है। इन वर्गों को संगठित व एकजुट करके उन्हें शासक वर्ग बनाने का हमारा संघर्ष लगातार जारी रहेगा।’
उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने व्यक्तिगत तौर से हरियाणा सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।
केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त 2024 के फैसले के तहत, मैं व्यक्तिगत तौर से हरियाणा सरकार द्वारा एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण लागू करने का स्वागत करता हूँ। आरक्षण का लाभ उन वंचितों तक पहुँचना जरूरी है, जो 75 साल बाद भी हमारे ही समाज का एक बड़ा हिस्सा है और जो बहुत पीछे रह गया था। उसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सभी दलों की है। इसका विरोध अस्वीकार्य है।’
उन्होंने लिखा, ‘हरियाणा सहित भाजपा सरकारें,सबका साथ, सबका विकास, के मार्ग पर मोदी जी के नेतृत्व में समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं।’
‘ओबीसी के बाद बीजेपी का दलित कार्ड’
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लागू करने की बात कही थी। ऐसे में एक चीज़ स्पष्ट थी कि बीजेपी इस मुद्दे के साथ चुनाव में उतरने जा रही है।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री इस फ़ैसले का विश्लेषण सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू बताते हुए करते हैं।
हेमंत अत्री कहते हैं, ‘फैसले का सकारात्मक पहलू यह है कि जो वंचित अनुसूचित जातियां हैं उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा। नकारात्मक पहलू यह है कि इससे दलितों के बीच ही गुट बन जाएंगे। भाजपा पहले भी कई राज्यों में ऐसा कर चुकी है जब उन्होंने प्रभावशाली जाति वर्ग के खिलाफ उन्हीं के वर्ग से दूसरी जातियों को खड़ा कर दिया हो। हरियाणा में जाट प्रभावशाली हैं तो मनोहर लाल खट्टर और नायब सैनी को सीएम बनाया।ये दोनों गैर जाट हैं।’
हेमंत अत्री इसे दलित कार्ड से भी जोडक़र देखते हैं। वो कहते हैं, ‘हरियाणा में तब सत्ता विरोधी लहर देखी जा रही थी और लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने पांच सीटें गंवाई थीं। इस चुनाव से पहले आचार संहिता के बावजूद इन्होंने यह फैसला लिया था। इसलिए यह एक औपचारिकता है क्योंकि पहले लागू नहीं हो पाया था। इसमें इन्होंने दलित कार्ड खेला है और पहले खट्टर को हटाकर नायब सैनी को सीएम बनाकर ओबीसी कार्ड खेला था।’
मायावती को बीजेपी का जवाब
बीजेपी के हरियाणा प्रदेश के प्रवक्ता प्रोफेसर विधु रावल इसे वंचित अनुसूचित जातियों के लिए एक ज़रूरी फैसला बताते हैं।
विधु रावल कहते हैं, ‘जो असली वंचित हैं उन तक सरकारी लाभ और सुविधाएं पहुंचे इसके लिए यह मील का पत्थर साबित होने वाला निर्णय है। आरक्षण की मूल आत्मा भी यही है कि जो भी समाज की मुख्य धारा से पिछड़ गए या सालों तक शोषित रहे हैं उनके लिए आरक्षण है।’
मायवती ने इस फैसले को विभाजनकारी बताया है और कांग्रेस भी इसे बांटने वाला बता रही है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और हरियाणा प्रभारी रहे एडवोकेट जितेन्द्र बघेल कहते हैं, ‘भाजपा का काम ही बांटने वाली राजनीति करना है और यह फ़ैसला भी दलितों के भीतर बांटने वाला और आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ करने जैसा है।’
इन आरोपों पर प्रो। विधु रावल कहते हैं, ‘मायावती जी अगर दलितों का वास्तव में हित चाहतीं तो कभी भी इस फ़ैसले का विरोध न करतीं। असल में कुछ लोगों तक ही आरक्षण का लाभ सीमित न रहे इसके लिए भी बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर जी ने भी प्रयास किए थे। जिन लोगों तक आज तक आरक्षण का लाभ नहीं पहुंचा है तो मुझे लगता है कि उन तक भी आरक्षण पहुंचे। असल में यह एक साहसिक निर्णय है और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ही पालन करना है।’
क्या बीजेपी दूसरे राज्यों में भी अनुसूचित जाति में ऐसा वर्गीकरण कर सकती है?
इस सवाल के जवाब में रावल कहते हैं, ‘राज्य दर राज्य स्थितियां अलग होती हैं। जैसे कर्नाटक में दलितों में कुछ दलितों के प्रति छुआछूत है कुछ के प्रति नहीं। यह अलग-अलग राज्य की परिस्थितियों पर ज़्यादा निर्भर करता है।’
प्रोफेसर विधु रावल कहते हैं कि राज्य सरकारें इसका अवलोकन करेंगी और असल प्रयास बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान को आत्मा सहित लागू करने का है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल एक अगस्त को अपने फ़ैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण या सब-क्लासिफिकेशन किया जा सकता है।
अभी अनुसूचित जाति को 15 फ़ीसदी आरक्षण मिलता है और अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी। इनकी सूची राष्ट्रपति बनाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के छह जजों ने कहा था कि इस लिस्ट में राज्य सरकार सिर्फ उप-वर्गीकरण कर सकती है, और कुछ सीटों को एक अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए अंकित कर सकती है।
कोर्ट का ये मानना था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक समान नहीं हैं। अदालत का कहना था कि कुछ जातियां बाकी से ज़्यादा पिछड़ी हुई हैं।
इस फैसले के समर्थकों में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन, आंध्र प्रदेश के एन चंद्रबाबू नायडू, बिहार के नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी के कई नेता शामिल हैं।
वहीं, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने फैसले का विरोध किया था। ((bbc.com/hindi)


