विचार / लेख

डिजिटल ठगी के शिकार आम नागरिक
19-Oct-2024 4:14 PM
डिजिटल ठगी के शिकार आम नागरिक

- डॉ. आर.के. पालीवाल

पिछले दशक में केंद्र सरकार ने कई ऐसे नियम कानून बनाए हैं जिनसे लोगों को डिजिटल दुनिया में प्रवेश करना जरूरी हो गया। नकद लेन देन को जांच एजेंसियों द्वारा शक की नजर से देखना, डिजिटल इकोनॉमी प्रयुक्त करने पर टोल नाकों पर लाभ और ऑन लाइन आवेदन और ऑन लाइन शिकायत निवारण आदि भी ऐसी कई वजहें हैं जिससे लोगों को मज़बूरी में मोबाइल के सहारे डिजिटल लेन देन करना पड़ता है।

दूसरी तरफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के तेजी से प्रचार प्रसार के कारण ऐसे बेरोजगार पढ़े लिखे युवाओं की एक बड़ी फौज तैयार हो गई है जिसने उचित नौकरी के अभाव या घर बैठे ठगी की आसान कमाई को अपने पेशे के रूप में अपना लिया है। अखबारों और सोशल मीडिया की खबरों में आए दिन देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसे समाचार मिलते हैं जिनसे विशेष रूप से बुजुर्गों और पेंशन आदि की सीमित आय वालों की ऑनलाइन ठगी के दुखद समाचार मिलते हैं। इस ठगी के नित नए विविध रूप सामने आ रहे हैं जिनमें कहीं फर्जी फेसबुक अकाउंट बनाकर मैसेंजर के माध्यम से लोगों से तरह तरह से ठगी की जा रही है। इसी तरह व्हाट्सएप पर किसी का फोटो लगाकर उनके मित्रों और परिजनों को व्हाट्स ऐप कॉल पर झूठी सूचना देकर पैसे वसूले जा रहे हैं।

इन सबमें सबसे ख़तरनाक वीडियो काल के माध्यम से महिलाओं से दोस्ती के नाम पर ब्लैकमेलिंग कर और ई डी, सी बी आई और इनकम टैक्स आदि जांच एजेंसियों का डर दिखाकर लोगों को डिजिटल अरेस्ट तक कर तगड़ी रकम वसूली है। हाल ही में पंजाब के औद्योगिक समूह वर्धमान इंडस्ट्री के वरिष्ठ मैनेजिंग डायरेक्टर ओसवाल को सुप्रीम कोर्ट की फर्जी बैंच का डर दिखाकर छह करोड़ की पेनल्टी किसी अज्ञात अकाउंट में जमा कराने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। यही नहीं फेसबुक पर मुकेश अंबानी के फोटो और नाम से भी कुछ फर्जी अकाउंट बने हैं जिनसे मुझे भी मित्रता का अनुरोध आया है। जब मुकेश अंबानी और ओसवाल के नाम से ठगी का कारोबार हो सकता है ऐसे में आम आदमी के साथ कुछ भी संभव है।

फेसबुक और व्हाट्स एप आदि के सर्वर देश के बाहर हैं। इन कंपनियों की नीतियां ऐसी हैं कि फर्जी अकाउंट की रिपोर्ट करने पर भी रेडीमेड उत्तर आता है कि हमें इस अकाउंट में कुछ गलत नहीं लगता। केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ही इस मामले को फेसबुक और व्हाट्स एप आदि के साथ सख्ती से उठा सकते हैं क्योंकि पुलिस के लिए भी इन अंतरराष्ट्रीय गिरोहों को नियंत्रित करना तब तक संभव नहीं है जब तक फेसबुक और व्हाट्स एप चलाने वाली मल्टी नेशनल कंपनियां अपनी तरफ से आगे बढ़ कर डिजिटल ठगी को अंजाम देने वाले गिरोहों को पकड़वाने की पहल नहीं करेंगी। अभी उनका रवैया इन्हें संरक्षण देने का है।

डिजिटल ठगी के जो विविध रूप इन दिनों चल रहे हैं उनमें कुछ लोग छोटी छोटी रकम की ठगी करते हैं, जैसे वे आपको कहते हैं कि यदि आपने अमुक अकाउंट में तीन हजार रुपए का बिल तुरंत नहीं भरा तो आपकी बिजली रात दस बजे कट जाएगी । ऐसे ठग दिन में सौ डेढ़ सौ लोगों को निशाना बनाते हैं। ठगी की रकम कम होने से ठगे जाने वाले लोग पुलिस के झमेले में भी नहीं पड़ते।

दूसरे डिजिटल ठग वे हैं जो महिलाओं की कामुक अदाओं की वीडियो काल में थोड़ी चंचल तबियत के लोगों को फंसाकर ब्लैकमेल करते हैं।इज्जत नीलाम होने के डर से ठगे गए लोग कोर्ट कचहरी नहीं जाते। तीसरे सबसे शातिर ठग अमीरों को जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तार करने का डर दिखाकर लाखों करोड़ों की वसूली करने वाले हैं ,जिनका शिकार वर्धमान समूह के मालिक हुए हैं। सबसे ज्यादा बरबाद वे होते हैं जिनका बैंक अकाउंट हैक कर जीवन भर की जमा पूंजी लुट जाती है। कहने के लिए साइबर फ्रॉड सेल बनी हैं लेकिन वहां ऑन लाइन शिकायत करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है जो बुजुर्गों के बस की नहीं है। यदि साइबर पुलिस किसी व्हाट्स ऐप नंबर पर सादा शिकायत करने की सुविधा दे तभी लुटे पिटे लोग अपनी शिकायत आसानी से दर्ज करा सकते हैं अन्यथा लोग चुपचाप लुटते रहेंगे।


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