विचार / लेख
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर सुबह-सुबह पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग के कैंपस में मॉर्निंग वॉक कर रहे थे। उन्होंने इसकी तस्वीर अपने एक्स अकाउंट से पोस्ट की।
पाकिस्तान के राजनीतिक टिप्पणीकार क़मर चीमा ने इस तस्वीर पर कहा, ‘जयशंकर साहब को रात में अच्छी नींद आई तभी इतनी सुबह-सुबह जगकर मॉर्निंग वॉक कर रहे हैं। उन्होंने पूरे उच्चायोग को भी सुबह-सुबह जगा दिया।’
‘जयशंकर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के हाथ मिलाने की तस्वीर में भी भरोसा दिख रहा है। जयशंकर ने सप्लाई चेन की बात की जो बहुत ही अहम है। उन्होंने बिल्कुल सीधी बात कही है। जयशंकर ने कहा कि ईमानदार बातचीत होनी चाहिए। जयंशकर ने पाकिस्तान को मुबारकबाद भी दी।’
एससीओ यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन का 23वां सम्मेलन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में आज यानी 16 अक्तूबर को संपन्न हो गया।
एससीओ के सदस्य चीन, भारत, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और बेलारूस हैं। इसके अलावा 16 अन्य देशों को ऑब्ज़र्वर या डायलॉग पार्टनर का दर्जा मिला हुआ है।
एससीओ समिट के लिए इन सभी देशों के प्रतिनिधि पाकिस्तान आए हैं और भारत से विदेश मंत्री एस जयशंकर गए थे। भारत से किसी भी विदेश मंत्री का यह पाकिस्तान दौरा कऱीब 10 साल बाद हुआ। जयशंकर पाकिस्तान में चर्चा के केंद्र में हैं।
पाकिस्तान के मीडिया में जयंशकर को लेकर काफ़ी कुछ कहा जा रहा है।
वहाँ के पत्रकार और पूर्व डिप्लोमैट भी जयशंकर को ख़ासा तवज्जो दे रहे हैं।
कई लोग हैरानी जता रहे हैं कि जयशंकर जिस अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं, वैसा कुछ भी उन्होंने पाकिस्तान में नहीं कहा।
जयशंकर के भाषण से राहत?
कई लोग तारीफ कर रहे हैं कि जयशंकर ने पाकिस्तान को एससीओ के अच्छे आयोजन के लिए क्रेडिट दिया और मुबारकबाद दी।
एससीओ को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड की जमकर तारीफ की।
शहबाज शरीफ ने कहा, ‘चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर अब दूसरे चरण में है। मुझे लगता है कि इस प्रोजेक्ट को संकीर्ण सियासी नज़रिए से नहीं देखना चाहिए। हमें न केवल क्षेत्रीय कारोबार को बढ़ाने की जरूरत है बल्कि यूरेशिया को जोडऩे की ज़रूरत है।’
एससीओ को एस जयशंकर ने संबोधित करते हुए कहा, ‘सहयोग पारस्परिक आदर और संप्रभु समानता के आधार पर होना चाहिए। क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान से ही सच्ची साझेदारी मजबूत हो सकती है न कि किसी के एकतरफ़ा एजेंडा से। एससीओ का विकास और विस्तार अपने फ़ायदे वाली नीतियों से नहीं हो सकता, खासकर ट्रेड और ट्रांजिट के मामले में।’
जयशंकर ने भले किसी भी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन भारत बेल्ट एंड रोड का विरोध करता रहा है। बेल्ट एंड रोड के तहत ही चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर परियोजना चल रही है और भारत इस पर आपत्ति जताता रहा है।
यह परियोजना पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरती है और भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताता है।
जयशंकर के संबोधन पर पाकिस्तानी पत्रकार इफ़्ितख़ार फिऱदौस ने लिखा है, ‘एससीओ में दिए गए भाषण पर विचार करते हुए लगता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच जिस आक्रामकता की उम्मीद थी, उसके कोई संकेत नहीं मिले। यहाँ तक कि उम्मीद के कऱीब भी नहीं। ऐसा तब है, जब भारत 13 लोगों के सबसे छोटे प्रतिनिधिमंडल के साथ आया है। लेकिन दोनों देशों के संबंधों में अतीत का इतना बोझ है कि आमूलचूल परिवर्तन की उम्मीद पालना असंभव के करीब लगता है।’
पाकिस्तान का नहीं लिया नाम
इफ्तिखार फिरदौस की इस पोस्ट के जवाब में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि रहीं मलीहा लोधी लिखती हैं, ‘एससीओ फोरम पर द्विपक्षीय मुद्दों को नहीं उठाया जा सकता है। यह सामान्य नियम है। जब पाकिस्तान और भारत को सदस्य के तौर पर इसमें शामिल किया गया था तब भी दोनों देशों ने इस नियम पर सहमति जताई थी।’
पाकिस्तान के एक और पत्रकार ए वहीद मुराद ने जयशंकर के संबोधन की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा है, ‘पाकिस्तान के सरकारी टीवी ने एससीओ में भारत के विदेश मंत्री के संबोधन को म्यूट कर दिया। ‘म्यूट करने की शिकायत कई पाकिस्तानी कर रहे हैं।’
मलीहा लोधी ने समा टीवी से बातचीत में एस जयशंकर के भाषण पर कहा, ‘भारत के विदेश मंत्री ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है, जो नया है। वो पहले भी ऐसी बातें करते रहे हैं। उन्होंने कुछ भी विवादित बात नहीं कही है। उन्होंने आतंकवाद का मुद्दा उठाया लेकिन पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। पाकिस्तान का नाम वो ले भी नहीं सकते थे।’
‘ऐसे फोरम में किसी भी मुल्क के नाम लेने की इजाज़त नहीं होती है। लेकिन भारतीय मीडिया में कहा जा रहा है कि जयशंकर ने चीन और पाकिस्तान को घेरा। जयशंकर ने एससीओ के संबोधन में वैश्विक संस्थाओं में सुधार की बात कही। जाहिर है भारत यूएनएससी में सदस्यता चाहता है।’
मलीहा लोधी से पाकिस्तान के जियो न्यूज ने पूछा कि जयशंकर के भाषण को वह कैसे देखती हैं?
क्या कह रहे हैं पाकिस्तानी एक्सपर्ट?
इसके जवाब में लोधी ने कहा, ‘जयशंकर ने उन्हीं मुद्दों को उठाया, जो भारत की नीति रही है। भारत ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया लेकिन व्यापक रूप में उठाया न कि पाकिस्तान को टारगेट करते हुए। हालांकि भारतीय मीडिया में इसे पाकिस्तान पर निशाने के रूप में देखा गया। जयशंकर ने इस फोरम को बहुपक्षीय ही रखा।’
पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल 24 न्यूज़ से वहाँ के पूर्व राजनयिक मसूद ख़ालिद ने कहा, ‘जयशंकर का पाकिस्तान आना अच्छा है और हमने वेलकम भी किया। भारत और पाकिस्तान दोनों एससीओ के सदस्य 2017 में बने थे। भारत एससीओ का बहिष्कार नहीं कर सकता था।’
‘लेकिन जयशंकर के दौरे को पाकिस्तान में कुछ ज़्यादा ही हाइप किया गया। कहा जाने लगा कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी। ऐसा तब है, जब जयशंकर ने स्पष्ट कर दिया था कि वह द्विपक्षीय दौरे पर नहीं जा रहे हैं।’
पाकिस्तान की सांसद और पूर्व राजनयिक शेरी रहमान ने जयशंकर के भाषण पर जियो न्यूज से कहा, ‘जयशंकर ने बहुत ही सतर्क होकर बात की। उन्होंने आतंकवाद पर बात की लेकिन पाकिस्तान पर उंगली नहीं उठाई। वो अपने दायरे सोचकर आए थे और उसी के हिसाब से भाषण दिया। जयशंकर जिस अंदाज के लिए जाने जाते हैं, वैसा कुछ नहीं था। हमें भी इसका वेलकम करना चाहिए। जयशंकर ने शांति से चल रहे समिट का माहौल खऱाब नहीं किया बल्कि पाकिस्तान को मुबारकबाद दी।’
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित को लगता है कि जयशंकर के इस्लामाबाद आने पर पाकिस्तान में कुछ ज़्यादा है शोर मचा।
अब्दुल बासित ने लिखा है, ‘पाकिस्तान में हमलोग की आदत है कि अनावश्यक का शोर मचाते हैं। ख़ास कर भारत से संबंधों के मामले में। जयशंकर ने पाकिस्तान आने से पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह बहुपक्षीय समिट में शामिल होने जा रहे हैं न कि द्विपक्षीय।’
‘जयशंकर का पाकिस्तान आना ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे लगे कि भारत का रुख बदल रहा है। अगर भारत इस्लामाबाद में आयोजित एससीओ समिट से ख़ुद को दूर रखता तो एक संदेश जाता कि भारत एससीओ के साथ वही कर रहा है जो सार्क के साथ करता रहा है। भारत के पास इस्लामाबाद समिट में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।’
अब्दुल बासित ने लिखा है, ‘इसी तरह पाकिस्तान ने भी इस समिट में शामिल होने के लिए पीएम मोदी को आमंत्रित कर भारत पर अहसान नहीं किया था। पाकिस्तान पीएम मोदी को ही आमंत्रित करता और यह भारत पर था कि वह अपना प्रतिनिधि बनाकर किसे भेजता है। जाहिर है कि पीएम मोदी के लिए जयशंकर से अच्छा विकल्प नहीं था।’(bbc.com/hindi)


