विचार / लेख
-इमरान कुरैशी
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि मस्जिद में भगवान राम की प्रशंसा में नारे लगाने में कुछ गलत नहीं है। कुछ बड़े वकीलों ने अदालत के इस फैसले की आलोचना की है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा, ‘ये समझ से परे की बात है कि अगर कोई जय श्रीराम के नारे लगाता है तो यह कैसे किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।’
दक्षिण कन्नड़ जिले के कदाबा तालुक के गांव बिनेल्ली में सितम्बर 2023 में दो लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को उन्होंने रद्द कर दिया।
दोनों याचिकाकर्ता उन लोगों में शामिल थे जिनकी तस्वीर सीसीटीवी में तब क़ैद हुई थी जब वो रात में मस्जिद में दाखिल हुए थे और नारे लगा रहे थे।
कर्नाटक के पूर्व महाधिवक्ता बीवी आचार्या ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘मेरे विचार से, ये वे मामले हैं जिनमें अहम मुद्दा मंशा की है, जिसके साथ ये नारे लगाए जा रहे थे या किसी प्रार्थना स्थल में लोग प्रवेश कर रहे थे।’
‘मान लीजिए एक मुस्लिम या ईसाई किसी पर्व के दिन मंदिर में प्रवेश करता है और कुरान या बाइबिल का पाठ करता है, क्या आप इसे निर्दोष कह सकते हैं? प्रथम दृष्टया यह फैसला ग़लत है।’
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े इस मुद्दे को थोड़ा अलग नज़रिए से देखते हैं।
उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘धारा 295 के तहत किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करना या अपमान की कोशिश करना दंडनीय अपराध है। एकेश्वरवादी वैष्णव मंदिर में, अगर शिव भगावन के नारे लगाए जाएँ, तो क्या यह इस धारा के उल्लंघन के दायरे में नहीं आता है?’
पूर्व सरकारी वकील बीटी वेंकटेश ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘फैसले में उस संदर्भ और हालात का ध्यान नहीं रखा गया जिसे शिकायत में तफसील से बताया गया है।’
शिकायत में क्या है?
यह घटना 24 सितम्बर 2023 की रात 10।50 बजे की है, जब कुछ अज्ञात लोग उस रात कदाबा-मारदाला स्थित मस्जिद में घुस जाते हैं और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाते हैं और कथित तौर पर उन्होंने धमकी दी कि वे संबंधित समुदाय के लोगों को नहीं बख़्शेंगे।
हैदर अली की ओर से दायर शिकायत में सीसीटीवी के फुटेज को आधार बनाया गया है जिसमें दिखता है कि कुछ नौजवान दोपहिया वाहनों पर मस्जिद के चक्कर लगाते हैं और नारे लगाते हैं।
शिकायत में ये कहा गया है कि हिंदू और मुस्लिम ‘बड़ी शांति’ के साथ रह रहे थे और ये लोग इन समुदायों के बीच दरार डालने की कोशिश कर रहे थे।
इसके बाद कीरथन कुमार और एनएम सचिन कुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 447 (आपराधिक प्रवेश), 295ए (किसी वर्ग की धार्मिक मान्यताओं या धर्म के अपमान की मंशा से किया गया कार्य) 505 (ऐसे बयान जो सार्वजनिक अशांति भडक़ा सकते हैं), 503 (आपराधिक धमकी), 506 (आपराधिक धमकी के लिए सज़ा) और 34 (एक जैसी मंशा) के तहत दंडनीय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज हुई।
फैसले में क्या कहा गया है?
जस्टिस नागाप्रसन्ना ने कहा, ‘धारा 295ए किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करके धार्मिक भावनाएं भडक़ाने के मकसद से जानबूझ कर और दुर्भावना पूर्ण कृत्यों से संबंधित है। यह समझ से परे है कि अगर कोई जय श्री राम के नारे लगाते है तो कैसे यह किसी वर्ग की भावनाओं को आहत करता है। जबकि शिकायतकर्ता ने खुद ही कहा है कि इलाक़े में हिंदू और मुस्लिम सद्भावना के साथ रह रहे हैं तो इस घटना को किसी भी तौर से द्वेष पैदा करने वाला नहीं कहा जा सकता।’
फैसले में महेंद्र सिंह धोनी बनाम यारागुंतले श्यामसुंदर (2017) के मुकदमे का जि़क्र किया गया है और कहा गया कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आईपीसी की धारा 295ए के तहत कोई भी ऐसा कृत्य अपराध नहीं होगा जिसका शांति या सामाजिक व्यवस्था पर असर न पड़ता हो।’ धारा 505 के संदर्भ में हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं था कि कथित घटना ने कोई सार्वजनिक शरारत या दरार पैदा की हो।
‘धारा 506 पर हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत में खुद लिखा है कि शिकायतकर्ता ने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्होंने कथित तौर पर आपराधिक धमकी का अपराध किया था।’
जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, ‘शिकायत दूर-दूर तक आईपीसी की धारा 503 या धारा 447 के मूल तत्वों को नहीं छूती। कथित अपराध का कोई तत्व मिलना और इन याचिकाकर्ताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई की इजाज़त देना क़ानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बन जाएगा और नतीजतन न्याय की भ्रूणहत्या होगी।’
फैसले की आलोचना क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि कोर्ट को सिफऱ् एक तर्क मिला कि जब हिंदू और मुस्लिम सद्भावना के साथ रह रहे थे, इस तरह की घटना कैसे अशांति फैला सकती है।
हेगड़े ने कहा, ‘इसके बाद अदालत ने धोनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जहां तथ्य पूरी तरह से अलग थे।’ लेकिन वरिष्ठ वकील बीवी आचार्या कई अन्य सवाल उठाते हैं।उनके मुताबिक, ‘यहां तक कि अनधिकृत प्रवेश में, सिर्फ इसलिए कि यह एक सार्वजनिक स्थल है, इसका ये मतलब नहीं कि कोई भी किसी भी समय उस जगह घुस जाए। इसके पीछे की मंशा को देखना होगा। इसी तरह, जो नारे वे लगा रहे थे, तो क्या वे दूसरे धर्म की भावना को आहत कर रहे थे, यह उनकी मंशा और उन हालात पर निर्भर करता है, जिसके तहत उन्होंने वे शब्द बोले।’
आचार्या ने कहा, ‘इसलिए जब आप मस्जिद जैसी धार्मिक जगह में प्रवेश करते हैं और फिर वहां आप जय श्रीराम बोलते हैं तो निश्चित तौर पर प्रथम दृष्टया परिस्थितियां दूसरे समुदाय की भावनाओं को आहत करने की मंशा को दिखाती हैं। सैद्धांतिक रूप से, अगर इस फैसले को सही माना गया तो इसके खतरनाक परिणाम होंगे।’
संजय हेगड़े की तरह ही उन्होंने कहा कि हर मामले में फैसला अलग अलग होता है।
उन्होंने कहा, ‘इन सबसे अधिक, यह एक ऐसा मुकदमा है जिसमें जब अदालत के सामने पूरे तथ्य न हों तो पूरी जांच की जरूरत है। सिर्फ एफआईआर के आधार पर आप इसे खारिज नहीं कर सकते। कल ही, सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया जिसमें कहा गया है कि आगे की जांच से कई तथ्यों का पता चलेगा। प्रथम दृष्टया इस मुकदमे में दिखता ग़लत नीयत दिखती है। अदालत को इसमें आगे की जांच कराने की इजाजत देनी चाहिए थी।’
आगे जांच की मंज़ूरी क्यों नहीं मिली?
पूर्व सरकारी वकील बीटी वेंकटेश आचार्या के साथ सहमत हैं कि इस मामले में विस्तृत जांच की मांग की गई थी क्योंकि शिकायतकर्ता ने जय श्रीराम के नारे लगाने के अलावा भी विशेष तौर पर कई बिंदुओं का जिक्र किया है।
वेंकटेश ने कहा कि शिकायत, विशेष तौर पर कदाबा पुलिस स्टेशन में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच सद्भाव का उल्लेख करती है, जहां ये घटना घटी।
उन्होंने कहा, ‘शिकायत में उन परिस्थियों के बारे में विशेष तौर से जिक्र किया गया है जिसके तहत हिंदू और मुस्लम सद्भावना के साथ रहते हैं। इसमें कहा गया है कि एक डस्टर कार और दो दो-पहिया वाहनों पर सवार होकर लोग संदिग्ध रूप से मस्जिद के चक्कर लगा रहे थे। इसके बाद नारेबाजी होती है और फिर नारों के ज़रिए बेरी समुदाय के खिलाफ धमकी दी जाती है।’
वेंकटेश ने कहा, ‘बेरी समुदाय मुस्लिम समाज का एक वर्ग है जो आम तौर पर कर्नाटक के तटीय इलाकों में रहता है। उनके खिलाफ धमकी दी गई कि उन्हें बख़्शा नहीं जाएगा। जबरन घुसने और नारेबाज़ी करने के अलावा यह साफ़ तौर पर आपराधिक धमकी है और ये सभी भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के अंतर्गत दंडनीय है। यह कोई शरारत नहीं है। यह जानबूझ कर किया गया कार्य है। जज ने संदर्भ को नहीं देखा और इसलिए गंभीर ग़लती कर दी।’
सुप्रीम कोर्ट के एक य वकील ब्रिजेश कलप्पा ने सोशल मीडिया पर राय ज़ाहिर करते हुए लिखा, ‘तो किसी मस्जिद में जाना और जय श्रीराम के नारे लगाने में कुछ भी ग़लत नहीं है। क्या एक मुस्लिम मंदिर में घुस सकता है और अल्लाह हू अकबर चिल्ला सकता है? यह वही देश है जहां ब्रिटिश ने समुदायों के बीच नफऱत के बीज बोए थे? क्या अदालत ने तर्क की सारी शक्ति खो दी है?’
अभिजीत मजुमदार ने एक्स पर लिखा, ‘धार्मिक भावनाओं को आहत करने के बारे में नहीं जानता, लेकिन दुनिया में कहीं भी अल्ला-हू-अकबर चिल्लाने से जगह तुरंत खाली हो जाती है।’ ((bbc.com/hindi)


