विचार / लेख
-आनंद के.सहाय
बीते साल जून में कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद जस्टिन ट्रूडो ने भारत की ओर उंगली उठाई थी। भारत ने उन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। और उसके बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के डिप्लोमैट्स को देश छोडऩे को कहा था। इसके बाद दोनों देशों के बीच तल्ख़ भाषा में बयानबाजी हुई थी। मौजूदा वक़्त में दोनों देशों के बीच संबंध अपने सबसे खऱाब दौर से गुजऱ रहे हैं। दोनों के बीच रिश्तों के सामान्य होने की संभावना कम दिख रही है।
भारत का मानना है कि कुछ कनाडाई सिख भारत के भीतर एक अलग सिख देश बनाने के उद्देश्य से हिंसक ख़ालिस्तानी आंदोलन को बढ़ावा दे रहे हैं। यही तकरार का अहम बिंदु है।
करीब 40 साल पहले पंजाब में हिंसा के सबसे भयंकर दौर में भारतीय सेना ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर पर विवादास्पद हमला किया था और फिर अक्टूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दो सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी।
इस पृष्ठभूमि में भारत कनाडा से ऐसे कुछ लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करता रहा जिन पर भारत ख़ालिस्तानी समर्थक होने का आरोप लगाता रहा है। कनाडा ने भारत के ऐसे निवेदनों को अब तक अनसुना किया है।
भारत हरदीप सिंह निज्जर को ‘ख़ालिस्तानी आतंकवादी’ करार देता रहा है। लेकिन कनाडा का कहना है कि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता और व्यक्तिगत आज़ादी का हिमायती है और कनाडा किसी को अपनी राय रखने से नहीं रोक सकता।
भारत ने सार्वजनिक तौर पर ये कहा है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो वहां के ‘सिख वोट बैंक’ को रिझा रहे हैं और इसी कारण उनकी सरकार ख़ालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई की भारत की मांग की नजरअंदाज करती रही है।
अपने-अपने देश की आबादी के अनुपात में, कनाडा में भारत की तुलना में अधिक सिख हैं।
किसी भी पश्चिमी देश के साथ इतने खऱाब रिश्ते नहीं
भारत-कनाडा में लगातार खराब होते जा रहे रिश्तों में खटास हैरान करने वाली है।
सोवियत यूनियन के विघटन के बाद किसी भी पश्चिमी देश के साथ भारत के संबंध इतने खऱाब नहीं रहे हैं।
भारत ने कोल्ड वॉर के बाद अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी देशों के साथ रिश्ते सुधारे हैं और धीरे-धीरे एक मुकम्मल मार्केट इकोनमी बनने की दिशा में आगे बढ़ता रहा है।
भारत ने जी7 और नेटो देशों के साथ आर्थिक, व्यापार और राजनीतिक रिश्ते सुधारने की कोशिश की है।
कनाडा इन दोनों समूहों का हिस्सा है और अमेरिका के साथ उसके बेहद कऱीबी सैन्य संबंध हैं जो नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफ़ेंस कमांड यानी नोराड के ज़रिए प्रतिबिंबित होते हैं। दोनों के देशों की अर्थव्यवस्था भी एक दूसरे से करीबी रूप से जुड़ी हुई है।
ये दिलचस्प है कि अमेरिका के किसी नज़दीकी सहयोगी के साथ भारत के रिश्तों में इतनी खटास आ गई हो। भारत बीते तीन दशकों से ख़ुद अमेरिका के साथ आर्थिक और सामरिक दिशा में बेहतर संबंध बनाने में प्रयासरत रहा है।
दोनों देशों के बीच बिगड़ते रिश्तों के बीच सोमवार को भारत ने कहा कि वो कनाडा में अपने हाई कमिश्नर संजय कुमार वर्मा और कुछ अन्य राजनयिकों को वापस बुला रहा है।
लेकिन कनाडा ने कहा कि दरअसल उसने संजय कुमार वर्मा समेत छह भारतीय राजनयिकों और कंसुलर अधिकारियों को निष्कासित कर दिया है क्योंकि भारत ने इन्हें मिली डिप्लोमेटिक और कंसुलर इम्युनिटी हटाने और कनाडा के साथ जांच में सहयोग करने से मना कर दिया था।
भारतीय राजनयिकों और अधिकारियों को निकालने के बाद नई दिल्ली ने छह कनाडाई राजनयिकों को निकालने की घोषणा की। इनमें कार्यकारी उच्चायुक्त स्टुअर्ट रॉस व्हीलर भी शामिल थे।
क्या है ‘पर्सन्स ऑफ़ इंटरेस्ट’
एक-दूसरे के राजनयिकों को निकालने का फ़ैसला तब सामने आया है जब निज्जर हत्या मामले में कनाडा ने भारतीय राजनयिकों और उच्चायोग के दूसरे अधिकारियों को ‘पर्सन्स ऑफ इंटरेस्ट’ बताया है।
कनाडा में ‘पर्सन्स ऑफ इंटरेस्ट’ उसे कहा जाता है जिसको लेकर जांचकर्ता मानते हैं कि उस शख्स को किसी अपराध की महत्वपूर्ण जानकारी है।
सितंबर 2023 में निज्जर की हत्या के बाद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने देश की संसद में बयान दिया था कि कनाडा के पास इस अपराध में भारतीय अधिकारियों के शामिल होने के ‘ठोस सबूत’ हैं।
भारत ने इस दावे को सिरे से ख़ारिज करते हुए कनाडा से सबूत की मांग की थी।
सोमवार को कनाडा के उच्चायुक्त को देश से निकालने की घोषणा के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि ट्रूडो सरकार ने भारतीय अधिकारियों के खिलाफ अपने आरोपों के समर्थन में भारत को ‘सबूत का एक टुकड़ा’ तक नहीं दिखाया था।
विदेश मंत्रालय ने कनाडा को लेकर ये भी कहा था कि वो ‘राजनीतिक लाभ के लिए भारत को बदनाम कर रहा है।’
दिलचस्प रूप से कनाडा के कार्यकारी उच्चायुक्त जिन्हें अब निकाल दिया गया है, उन्होंने इसका जवाब दिया था।
उन्होंने कहा था कि कनाडा ने भारत सरकार की सभी मांगों को पूरा किया और भारत सरकार को भारतीय एजेंटों और उनके निज्जर हत्या मामले से जुड़े होने के सबूत दिए गए थे। उन्होंने आगे कहा था कि अब ये भारत के ऊपर था कि वो अगला कदम उठाता।
कैसे सबूत भारत को दिए गए?
कनाडा ने भारत को किस गुणवत्ता का सबूत देने का दावा किया है उसे आज नहीं तो कल ज़रूर तौला जाएगा लेकिन ये साफ़ नहीं है कि कनाडा ने ये सबूत कब दिए थे। इस स्तर पर किसी भी हालत में संबंधों को सुधारने की प्रक्रिया की शुरुआत होने की संभावना नहीं है। नकारात्मक दिशा में बहुत कुछ बहुत तेजी से हुआ है।
प्रधानमंत्री ट्रूडो और प्रधानमंत्री मोदी के बीच इस साल जून में इटली में जी-7 से इतर द्विपक्षीय मुलाक़ात हुई थी। वहीं आसियान सम्मेलन से बीते शुक्रवार को भी दोनों नेता मिल चुके थे लेकिन इससे ये जरा भी संकेत नहीं मिल सकता था कि संबंध इस स्तर पर पहुंच जाएंगे।
समाचार एजेंसी एएनआई ने भारतीय अधिकारियों के हवाले से बताया था कि लाओस की बैठक छोटी और अनाधिकारिक थी, इससे ‘कुछ भी ठोस बाहर नहीं आया था।’
सूत्रों के हवाले से कहा गया, ‘भारत विरोधी तत्वों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गारंटी के बगैर संबंधों में सुधार मुश्किल होगा।’ ये कोई आधिकारिक बयान नहीं था लेकिन इससे इस मामले पर भारत की सोच का पता चलता है।
ये एक टेढ़ी खीर लगता है। सीबीसी न्यूज ने ट्रूडो के हवाले से कहा था, ‘मैंने जोर देकर कहा था कि हमें काम करने की जरूरत है।।।इसमें मेरा फोकस कनाडा के लोगों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का पालन है।’
विएंटाइन में दोनों देशों के नेताओं के बीच मुलाकात से पहले हिंदुस्तान टाइम्स ने कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जोली के हवाले से कहा था कि भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण और बहुत मुश्किल हैं। उन्होंने डर जताया था कि कनाडा की जमीन पर ‘निज्जर जैसे कत्ल’ आगे भी हो सकते हैं।
क्या सुधरेंगे दोनों देशों के रिश्ते?
ये साफ है कि कनाडा फि़लहाल इस मसले को गर्म रखना चाहता है। और जैसे कि देखा जा रहा है भारत भी इस समस्या के हल के लिए किसी किस्म की गंभीर डिप्लोमेसी का रास्ता अपनाने के प्रति इच्छुक नहीं दिख रहा है।
भारत में एक विचार ये है कि अक्तूबर 2025 में कनाडा में होने वाले आम चुनावों में ट्रूडो हार जाएंगे और जब दोनों देशों के बीच संबंधों में नई शुरूआत का अवसर मिलेगा। लेकिन कनाडा की संसद के भीतर भारत के खिलाफ लगाए गए आरोपों से पार पाना आसान नहीं होगा।
दिलचस्प ये है कि इस सारे बखेड़े में एक अमेरिकी एंगल भी है। सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत पर आरोप लगाए थे। इसके कुछ हफ्ते बाद अमेरिकी संघीय अदालत ने निखिल गुप्ता नाम के भारतीय नागरिक को अमेरिकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में नामित किया था। पन्नू खालिस्तान की हिमायत करने वाले अमेरिकी वकील हैं।
सवाल ये है कि क्या अमेरिका ने कनाडा के साथ मिलकर निखिल गुप्ता वाले केस की टाइमिंग तय की थी?
भारत के लिए आगे का क्या है रास्ता?
हाल ही में पन्नू ने कुछ भारतीय अधिकारियों के खिलाफ दीवानी मुकदमें दर्ज किए हैं। इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का नाम भी शामिल है। यही कारण था कि संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलन में परंपरा के खिलाफ जाते हुए भारतीय प्रधानमंत्री के साथ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नहीं गए थे।
इससे भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में एक दिलचस्प आयाम पर भी विचार सामने आता है। अमेरिका ने निस्संदेह भारत के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक विकसित किया है, लेकिन यह उसके अंतरराष्ट्रीय आचरण की प्रकृति में है कि जब भी मौका मिले एक अच्छे दोस्तों को भी थोड़ा दूर रखा जाए-ताकि बाद में किसी समय अच्छा सौदा किया जा सके।
इसमें एक एंगल और है। जहां तक भारत के वैश्विक मुद्दों पर आचरण का सवाल है, पीएम मोदी के नेतृत्व में कुछ बड़ा करने का हामी है।
निज्जर के मामले में भारत के आक्रामक रुख को समझने के लिए इस बात का ध्यान रखना जरूरी है। और इससे निज्जर मामले पर कनाडा से निपटने में भारत के आक्रामक रुख़ को समझने में मदद मिल सकती है। इस आक्रामकता में किसी अन्य देश की धरती पर हत्या को अंजाम देने का संदेह भी शामिल है।
जब अमेरिका ने भारतीय अधिकारियों को कानूनी कार्रवाई की धमकियां दी थीं तो भारत ने कुछ समीकरण बिठाने की कोशिश की थी लेकिन कनाडा के मुद्दे पर वो टोन ही गायब रही है। चीन इसे ‘वुल्फ़ वॉरियर डिप्लोमेसी’ की संज्ञा देता है। लेकिन भारत और चीन के दुनिया पर प्रभाव में आर्थिक और सैन्य हिसाब से बहुत बड़ा अंतर है।
लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि कनाडा के मुद्दे से बचा नहीं जा सकता। कम टकराव वाली कूटनीति में कोई प्रतिष्ठा नहीं खोती है। इसी पुराने भारतीय तरीके से एक ज़माने में उसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान हासिल करने में मदद मिली थी। (bbc.com/hindi)


