विचार / लेख

हमारे दौर के चर्चित संतों को शर्मिंदा करते रतन टाटा
13-Oct-2024 9:25 PM
हमारे दौर के चर्चित संतों को शर्मिंदा करते रतन टाटा

-डॉ. आर.के. पालीवाल

कलियुग के बारे में कहा गया है कि ऐसे दुष्ट समय में जब भाई भाई का दुश्मन होगा, पति पत्नी में झगड़े होंगे और युवा बुजुर्गों को घर बदर करेंगे तब ईश्वर की कठोर साधना करने की किसी को फुर्सत नहीं होगी, ऐसे में केवल राम नाम के जप से ही ईश्वर प्रसन्न हो जाएंगे। ऐसा समय हमारे जीवन में आजकल हर तरफ घर घर की कहानी बनकर दिख रहा है जब महान विभूतियों का मिलना हर क्षेत्र में मुश्किल होता जा रहा है। राजनीति और उद्योग जगत में तो अच्छे लोगों की खोज और भी मुश्किल हो गई है जहां अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकलने के लिए अपने गुरु समान वरिष्ठों को मार्गदर्शक का ठप्पा लगा कर अंधेरे कोनों में धकेल दिया जाता है और साम दाम दंड भेद से येन केन प्रकारेण शीर्ष पर पहुंचने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं। यही कारण है कि अमीरी और प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचने के बाद भी उन्हें वैसा सम्मान नहीं मिलता जैसा हाल ही में दिवंगत रतन टाटा को मिला है। देश के हर हिस्से और हर वर्ग से रतन टाटा के देहावसान से दुखी होने के समाचार हैं।

ऐसा नहीं कि रतन टाटा किसी झोंपड़ी में रहते थे और फकीरों जैसा जीवन जी रहे थे। उनके पास रहने के लिए अच्छा खासा घर था, पहनने के लिए बढिय़ा सूट बूट और टाई थी,सेवा के लिए नौकर चाकर थे। खेलने और मन बहलाने के लिए अच्छी नस्ल के कुत्ते थे लेकिन इतना सब होने के बावजूद उनके देहांत पर देश के काफी नागरिक दुखी हो रहे हैं, उसके सबसे बड़े निम्न तीन कारण हैं जो उन्हें अपने अन्य समकालीन उद्योगपतियों से बेहतर बनाते हैं,1.वे अपनी अमीरी का फूहड़ प्रदर्शन नहीं करते थे, 2. उनकी कंपनियों में कर्मचारियों से गुलामों की तरह बेतहाशा काम नहीं कराया जाता और उन्हें अच्छी वर्किंग कंडीशन मिलती हैं और 3.उन्होंने कैंसर अस्पताल जैसी सुविधाएं आम जनता को उपलब्ध कराकर करुणा और सेवा के काफी काम किए हैं। इन्हीं कारणों से उनका सकल व्यक्तित्व आज के अधिकांश चर्चित संतों, राजनीतिज्ञों और उद्योगपतियों को शर्मिंदा करने में सक्षम है।

ईसा मसीह ने बहुत पहले कहा था कि सीधी राह चलकर कोई बहुत अमीर नहीं बन सकता और अमीरों के लिए स्वर्ग के दरवाजे कभी नहीं खुलते।सच यह भी है कि हम सब तुलनात्मक रूप से अच्छे या बुरे हैं और कोई भी अपने आप में पूर्ण नहीं है। इसीलिए उन्हें बेहतर माना जाता है जो अपने दूसरे प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में अधिक उदार और शालीन हैं। रतन टाटा के लंबे करियर में नीरा राडिया टेप ने जरूर उनकी छवि दागदार दी। असम के उल्फा आतंकवादियों की मदद और काम के बदले करुणानिधि के परिवार की ट्रस्ट को कई करोड़ की मदद के आरोप उन पर भी लगे। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण और पश्चिम बंगाल में नैनो प्रकरण के छींटे भी उनके नेतृत्व पर पड़े थे। इन सबके बावजूद वे कोयले की खदान में छोटे हीरे की तरह तो हैं ही।

वर्तमान दौर में जब संतों में संतोष नहीं रहा और आधुनिक संत, गुरु और मठाधीश तक आलीशान पांच सितारा आश्रम बनाने लगे, आलीशान कारों और प्राइवेट जेट में घूमने लगे तब अति महत्वाकांक्षी नेताओं और उद्योगपतियों में नदारद संवेदनशीलता, सहृदयता और सेवा की भावना रतन टाटा में काफी हद तक अक्षुण्ण रही । यही कारण है कि राजनीति और उद्योग जगत की विभूतियों में हमे कोई दूसरा अब्दुल कलाम और रतन टाटा जैसा उत्कृष्ट व्यक्ति नहीं दिखता जिसकी सादगी, कर्मठता और शालीनता दुर्लभ हो गई है।लोक जीवन में रहने वाली किसी भी विभूति के लिए आम अवाम का सम्मान सबसे बड़ा पुरस्कार है।कलियुग के भ्रष्ट से भ्रष्टतर होते दौर में रतन टाटा निश्चित रूप से कुछ अलग सोच के उद्योगपति रहे।

ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और देश के अन्य उद्योगपतियों को उनकी तरह आगे बढऩे की शक्ति प्रदान करें।


अन्य पोस्ट