विचार / लेख
-पुष्य मित्र
एक तारीख सूर्योदय से शुरू होती है और अगले सूर्योदय को खत्म हो जाती है। एक तारीख रात बारह बजे शुरू होती है और 24 घंटे बाद फिर रात बारह बजे खत्म हो जाती है।
इसके बाद आती है हमारे पंडितों की तारीख, जो कहती है आज दोपहर बारह बजकर 35 मिनट पर अष्टमी शुरू होगी जो अगले दिन सुबह ग्यारह बजे खत्म होगी, मगर अष्टमी आज नहीं कल होगी और कल ही दोपहर बाद नवमी भी होगी।
हमारे ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड विद्वानों द्वारा तैयार इस स्पेशल कैलेंडर को जिसे हम पंचांग कहते हैं, नासा में काम करने वाला भारतीय वैज्ञानिक भी आंख मूंद कर मान लेता है।
कोई नहीं कहता, पंडित जी जरा अपना कैलेंडर सुधार लीजिए। ऐसा क्या कैलेंडर बना लिए हैं, जिसे आप ही समझ पाते हैं, आप ही उसकी व्याख्या कर पाते हैं।
महाराज आप ही कहते हैं कि दिन सूर्योदय के हिसाब से होता है, फिर आपकी तिथि क्यों गड़बड़ा रही है। सिर्फ इसलिए कि आपके साल के हिसाब किताब में ही लोचा है। इसलिए आपको बारह साल बाद एक मलमास जोडऩा पड़ता है। ये न जोड़ें तो हम हिंदू भी मुसलमानों की तरह हर मौसम में होली और दुर्गापूजा मनाएं, जैसे वे हर मौसम में ईद और बकरीद मनाया करते हैं।
जब विज्ञान उन्नत नहीं था तो हम चांद की कलाओं को देखकर तारीख तय करते थे। मगर जब हमने सूर्य की स्थितियों को समझना शुरू किया तो सौर कैलेंडर बने। भारत में भी बने। मगर ज्यादातर हिंदू और मुसलमान आज भी चंद्र कैलेंडर से चिपके हैं। क्योंकि उनका धर्म उन्हें अपनी पौराणिक मूर्खताओं को छोडऩे की इजाजत नहीं देता।
कई दफा मुझे लगता है कि अपने पूर्वजों की मूर्खताओं और पूर्वाग्रहों या संयमित शब्द में कहें तो उनके ज्ञान की सीमाओं से चिपके रहने का ही नाम धर्म है। हम भी चिपके हैं। इसलिए बीच दोपहर में 12 बजकर 40 मिनट पर हमारा नया दिन शुरू होता है और हम कोई बहस नहीं करते। चुपचाप मान लेते हैं।
ये भी नहीं पूछते कि पंडित जी घंटा मिनट तो आपके पास नहीं था, ये तो पश्चिम ने दिया है। ये आप कैसे घुसा लेते हैं अपने पंचांग में।
मगर नहीं, धर्म के मामले में जो पंडित जी कह दें वही सही। इसलिए आज अष्टमी भी है और नवमी भी। अष्टमी कल भी थी। कल सप्तमी भी थी। पंडित जी जानते हैं, यह कन्फ्यूजन है तभी उनकी पूछ है। इसलिए भारतीय कैलेंडर का कंफ्यूजन बना रहे।


