विचार / लेख
-डॉ. संजय शुक्ला
भारत के लोग सदियों से उत्सवधर्मी रहे हैं जहां हर धर्म, जाति और संप्रदायों की अपनी धार्मिक और सामाजिक परंपराएं और हैं जिन्हें वे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। हालांकि कभी-कभी इन उत्सवों के उमंग और तरंग में कुछ वजहों से भंग भी पड़ जाता है जो समाज के एक हिस्से को नागवार गुजरता है फलस्वरूप शासन और प्रशासन को दखल देना पड़ता है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के पर्यावरण एवं पर्यावरण विभाग द्वारा राज्य के सभी जिलों के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों पत्र लिखकर ध्वनि प्रदूषण (नियमन और नियंत्रण) नियम 2000 तथा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के परिप्रेक्ष्य में वाहनों पर साउंड बाक्स रखकर डीजे बजाने पर साउंड बाक्स जब्त व वाहन का परमिट निरस्त करने को कहा है। पत्र में यह भी कहा गया है कि वे शादियों, जन्मदिन, धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में निर्धारित मानकों से अधिक ध्वनि प्रदूषण पर आयोजकों के खिलाफ उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना का मामला दर्ज करते हुए ध्वनि प्रदूषण यंत्र, टेन्ट , डीजे आदि को जप्त किया जाए। इस पत्र में प्रेशर हार्न, मल्टीटोन हार्न को निकालने तथा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, कोर्ट और कार्यालयों के 100 मीटर दायरे में लाउड स्पीकर बजाने को प्रतिबंधित करते हुए इसे जप्त करने का निर्देश दिया गया है। सरकार के इस आदेश के बाद राज्य के डीजे और धुमाल संचालकों में हडक़ंप मच गया है और वे विरोध प्रदर्शन की राह पर हैं।
अलबत्ता सरकार के इस फैसले का आम नागरिक स्वागत और समर्थन कर रहे हैं तथा इस पर सख्ती से अमल की मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि राज्य के अनेक नागरिक संगठन और आम नागरिक काफी दिनों से राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक आयोजनों,जूलूस, विसर्जन झांकियों , वैवाहिक एवं अन्य प्रसंगों के दौरान बजने वाले डीजे एवं धुमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे। नागरिक संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने राज्य में ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर किया था जिस पर अदालत ने राज्य सरकार को जनहित में ध्वनि प्रदूषण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। बिलाशक छत्तीसगढ़ सरकार का डीजे सहित तमाम ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले माध्यमों पर रोक लगाने का फैसला जनस्वास्थ्य तथा कानून और व्यवस्था के लिहाज से सामयिक और सार्थक कदम है बशर्ते इसका मुस्तैदी के साथ क्रियान्वयन संभव हो सके।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों में डीजे बजाने के नाम पर उपजे हिंसक घटनाओं में जहां अनेक लोगों की मौत हुई है वहीं इसके तेज आवाज की वजह से भी बुजुर्गों और युवाओं की मौत हो रही है। छत्तीसगढ़ में इस गणेश उत्सव के दौरान डीजे की वजह से पांच लोगों की मौत हो चुकी है। दुर्ग के नंदिनी गांव में डीजे पर डांस के नाम पर दो गुटों में हुए झड़प के बाद तीन युवकों की हत्या हो गई तो बलरामपुर में डीजे की तेज आवाज से एक युवक के मस्तिष्क की नस फटने से मौत हो गई। एक दुखदाई घटना पुरानी भिलाई थानांतर्गत हथखोज में हुई जहां एक हृदयरोगी बुजुर्ग ने गणेश पंडाल में तेज आवाज में डीजे बजाए जाने पर आत्महत्या कर ली। मृतक ने सुसाइड नोट में गणेशोत्सव समिति के अध्यक्ष पर मनमानी करने और प्रताडऩा का आरोप लगाया है। छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्यों में भी इस प्रकार की घटनाएं घटित हुई है। मध्यप्रदेश के सागर जिले के शाहपुर नगर में डीजे की तेज आवाज के चलते एक पुरानी इमारत की दीवार ढहने के कारण 9 बच्चों की मौत मलबे में दबने से हो गई। इसी प्रकार ओडिशा में वैवाहिक समारोह में एक 50 वर्षीय व्यक्ति की मौत डीजे के तेज आवाज की चलते दिल का दौरा पडऩे से हो गई।
गौरतलब है कि डीजे केवल धार्मिक आयोजनों और विसर्जन जुलूसों के दौरान ही लोगों के लिए परेशानी का सबब नहीं बन रहा है अपितु रिहायशी इलाकों से लेकर होटलों में वैवाहिक समारोहों के दौरान इसके प्रचलन ने लोगों का जीवन मुहाल कर दिया है। कोलाहल अधिनियम और ध्वनि प्रदूषण कानूनों की खुलेआम धज्जियां कैसे उड़ रही है? इसका उदाहरण अस्पतालों, स्कूलों और कॉलेजों के आसपास डीजे के तेज आवाज के साथ निकलने वाले विसर्जन जुलूस और रैलियां हैं लेकिन आयोजक और प्रशासन इस दिशा में बेपरवाह नजर आते हैं। जिला प्रशासन द्वारा हर साल स्कूलों और कॉलेजों के परीक्षा के दौरान ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर बंदिश लगाने का फरमान जारी किया जाता है लेकिन इस दौरान भी डीजे सहित तमाम ध्वनि विस्तारक यंत्रों की तेज आवाज छात्रों के पढ़ाई में खलल डालने से बाज नहीं आती।अलबत्ता धुमाल और डीजे का शोर सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर ही असर नहीं डाल रहा है बल्कि इसका दुष्प्रभाव पशु-पक्षियों पर उनके स्वभावगत परिवर्तन के तौर पर देखा जा रहा है।
विचारणीय है कि नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल, ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण और नियम अधिनियम 2000 तथा अनेक अदालतों द्वारा डीजे व धुमाल को प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद प्रशासनिक अमला दिखावे की कार्रवाई कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेती है। कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने वाहनों में डीजे या धुमाल रखकर इसके उपयोग को मोटर व्हीकल एक्ट के विरुद्ध मानते हुए जिला प्रशासन को इसके लिए लिए जिम्मेदार मानते हुए संबंधित वाहन को जब्त करने और जुर्माना लगाने का आदेश दिया है । केंद्र सरकार के ध्वनि प्रदूषण नियमन एवं नियंत्रण नियम 2000 , पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत निर्धारित डेसीबल से ज्यादा ध्वनि विस्तारकों को प्रतिबंधित किया गया है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ शासन के परिवहन विभाग द्वारा 25 अक्टूबर 2021 को जारी परिपत्र में मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 182 ए (1) के तहत वाहन पर आल्टर या साउंड सिस्टम रखकर बजाने पर वाहन जब्ती और 1 लाख जुर्माना का प्रावधान है।
आश्चर्यजनक तौर पर इन प्रावधानों और आदेशों का पालन अभी तक संभव नहीं हो पाया था। गौरतलब है कि एक आम व्यक्ति के लिए सामान्य तौर पर 65 डेसीबल तक का आवाज सुरक्षित रहता है। इससे अधिक आवाज पर व्यक्ति के सेहत और सुनने की क्षमता पर दुष्प्रभाव डालता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक डीजे और धुमाल के तेज आवाज की वजह से व्यक्ति के सुनने की क्षमता या तो कमजोर हो सकती है अथवा खत्म हो सकती है। इसी प्रकार तेज आवाज का असर मस्तिष्क के नसों पर पड़ सकता है, हृदयगति असमान्य होने और हार्ट अटैक का की संभावना रहती है। मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार डीजे जैसे ध्वनि विस्तारकों के काफी तेज आवाज का असर बच्चों से लेकर सभी उम्र के व्यक्तियों के दिमाग पर पड़ता है जिससे अनिद्रा, डर, एंजायटी और तनाव जैसे मानसिक रोग हो सकते हैं। डीजे का तेज आवाज उच्च रक्तचाप व मानसिक रोगियों तथा गर्भवती महिलाओं के लिए घातक हो सकता है। इसके अलावा डीजे के तेज आवाज से होने वाले कंपन की वजह से पुरानी इमारतों और पुलों के गिरने की वजह से जनहानि की संभावना भी रहती है।
ध्वनि प्रदूषण अधिनियम और नियम 2000 में कमर्शियल, इंडस्ट्रियल और रेसिडेंशियल इलाके के लिए आवाज की सीमा तय है। इसके मुताबिक इंडस्ट्रियल एरिया में दिन में आवाज 75 डेसीबल और रात में 70 डेसीबल होना चाहिए। इसी तरह कमर्शियल इलाकों के लिए दिन में आवाज 65 डेसीबल और रात में 55 डेसीबल तथा रेसिडेंशियल इलाकों के लिए दिन में 50 डेसीबल और रात में 40 डेसीबल तय है। बहरहाल वास्तविकता इन अधिनियमों और नियमों में तय मानकों से अलग होती है। आश्चर्यजनक तौर पर रेसिडेंशियल इलाकों में अनेक सार्वजनिक भवनों, होटलों में वैवाहिक एवं अन्य समारोहों में देर रात तक तेज आवाज में डीजे और आर्केस्ट्रा की आवाज ने रहवासियों का नींद हराम कर रखा है। रिहायशी इलाकों में गोदामों और फैक्ट्रियों की अनुमति किस तरह से मिलती है? यह किसी से छिपी नहीं है लेकिन इनसे होने वाले शोरगुल का असर आम नागरिकों पर ही देखा जा रहा है।
बहरहाल डीजे सहित तमाम ध्वनि प्रदूषकों के उपयोग पर प्रभावी प्रतिबंध नहीं लग पाने की मुख्य वजह प्रशासन तंत्र पर राजनीतिक हस्तक्षेप या दबाव ही है। दरअसल आज देश की राजनीति धर्म और जाति पर केंद्रित हो चुकी है हर राजनीतिक दल इन मुद्दों को उभार देने में पीछे नहीं है। धार्मिक आयोजनों या विसर्जन जूलूसों के दौरान डीजे और धुमाल के बेजा उपयोग पर बंदिश में कोताही के लिए धार्मिक संवेदनशीलता जैसे कारण जिम्मेदार हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो हमारे राजनीतिक और धार्मिक संगठन किसी भी धर्म के आयोजन में प्रशासनिक दखल को धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए मुद्दे को विस्फोटक बनाने से नहीं हिचक रहे हैं। देश में जब भी दीपावली के दौरान भारी शोर वाले पटाखों या चीन निर्मित पटाखों पर बंदिश लगाने या डीजे को प्रतिबंधित करने की बात होती है संबंधित पक्ष अल्पसंख्यक समुदाय के धर्म स्थलों पर इबादत के दौरान बजने वाले लाउडस्पीकर की दुहाई या उलाहना देने से नहीं चूकते।आखिरकार डीजे और पटाखों की पैरवी करने वालों को कौन समझाए कि लाउडस्पीकर और डीजे व पटाखों के ध्वनि तीव्रता और अवधि में काफी अंतर होता है?
बहरहाल केवल धार्मिक भावना या धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अनुचित परंपराओं को उचित ठहराने की प्रवृत्ति के चलते ही समाज में विसंगतियों को बढ़ावा मिल रहा है। विसर्जन जुलूस के दौरान तेज आवाज वाले डीजे के अश्लील गाने पर नशे में मदमस्त युवाओं की भीड़ समाज के सामने बड़ी चुनौती बन रही है। डीजे और नशे का डबल तडक़ा हमारे धार्मिक आस्था पर लगातार चोट कर रही है लेकिन हमारे धर्मगुरु, धार्मिक संगठनों के अगुआ और प्रबुद्ध वर्ग ऐसी भक्ति को देखकर मौन रहने में ही अपनी भलाई समझ रहा है। हमारे सामने अनेक ऐसे धर्मों और पंथों के उदाहरण हैं जिसमें उनके धार्मिक आयोजनों के दौरान भारी शोरगुल वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों और शराब जैसे सभी नशीले पदार्थों का पूरी तरह से निषेध है। हर धर्म और जाति के लोगों को किसी दूसरे समुदाय के ऐसे अनुकरणीय फैसलों को जरूर स्वीकार किया जाना चाहिए ताकि धर्म और जाति में प्रगतिशीलता का भाव पैदा हो सके। बहरहाल देश के युवाओं का धर्म के प्रति आस्थावान होना राष्ट्र और समाज के लिए साकारात्मक संदेश है धार्मिक आयोजनों में युवाओं के बढ़-चढक़र हिस्सा लेने में भी कोई बुराई नहीं है अलबत्ता उन्हें ऐसे आयोजनों के दौरान नशा, डीजे जैसे ध्वनि प्रदूषकों और अश्लीलता के खिलाफ खुद लामबंद होना चाहिए ताकि हर वर्ग इन उत्सवों का हिस्सा बन सकें और उनका जान सलामत रहे। बिलाशक कोई भी उत्सव बिना गीत और संगीत अधूरा है लिहाजा हर धार्मिक और सामाजिक उत्सवों में उन परंपरागत गीतों और वाद्ययंत्रों के संगीत को एक बार फिर से अपनाने की दरकार है जो आधुनिकता की भीड़ में गुम हो चुकी है आखिरकार सुकून भी उन्हीं में है।


