विचार / लेख
-कीर्ति दुबे
जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से केसी त्यागी का इस्तीफा नीतीश कुमार की पार्टी की उलझन की ओर इशारा करता है।
केसी त्यागी जिस जेडीयू के प्रवक्ता थे, वह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा है। जेडीयू केंद्र सरकार में भी शामिल है और बिहार में भी बीजेपी के समर्थन से सरकार चला रही है।
लेकिन केसी त्यागी जेडीयू की बात जिस तरह से मीडिया के सामने रख रहे थे, उससे कई बार लगता था कि वह उस जेडीयू के प्रवक्ता हैं, जब नीतीश कुमार का तेवर 2017 से पहले वाला हुआ करता था।
केसी त्यागी की टिप्पणी से एनडीए की लाइन के बचाव से ज़्यादा सवाल खड़े हो रहे थे। उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों पर जमकर सवालिया निशान लगाए थे। खासकर लैटरल एंट्री, इसराइल, गाजा और अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी के मामले में।
बीते रविवार को जेडीयू ने केसी त्यागी की जगह राजीव रंजन को पार्टी का नया राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया।
इससे पहले मार्च 2023 में केसी त्यागी ने प्रवक्ता के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था लेकिन दो महीने बाद ही उनकी वापसी हो गई थी। अब दो साल में दूसरी बार उन्होंने ये पद छोड़ा है।
अपने इस्तीफे पर केसी त्यागी की सफाई
बीबीसी से खास बातचीत में केसी त्यागी ने अपने इस्तीफे, राहुल गांधी, जेडीयू की आंतरिक राजनीति और प्रशांत किशोर की विधानसभा चुनाव में एंट्री जैसे कई मुद्दों पर बात की।
अपने इस्तीफ़े पर उन्होंने कहा, ‘नीतीश कुमार अब जब अध्यक्ष नहीं रहे तो लगा मुझे ये पद छोड़ देना चाहिए। पिछले दो-ढाई सालों से मैं संगठन के पद पर नहीं हूँ। बस पार्टी का प्रवक्ता था और मुख्य सलाहकार हूँ। पिछले कुछ समय से मैं लेखन के काम में लगा हुआ हूं। लिहाजा मैंने नीतीश कुमार से आग्रह किया कि मुझे पार्टी के पदों से मुक्त किया जाए। मेरा नीतीश कुमार से 48 सालों का रिश्ता है। वो मेरे नेता भी हैं और मित्र भी।’
केसी त्यागी कहते हैं, ‘मैं एक बात ऑन रिकॉर्ड कहना चाहता हूं कि मैं इस पार्टी में नीतीश कुमार की वजह से हूँ। जहाँ तक अखबारों में चर्चा है, मेरा कोई भी बयान ऐसा नहीं है, जो जेडीयू की विचारधारा से मेल ना खाता हो और एक भी बयान बीजेपी के खिालफ नहीं है।’ महागठबंधन की सरकार में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में जातिगत जनगणना कराई। इसके बाद वो फिर बीजेपी के साथ हो लिए।
बीते दिनों आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा था, ‘जातिगत जनगणना संवदेनशील मामला है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए बल्कि इसका इस्तेमाल पिछड़े समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए।’
ये बयान बीजेपी के जातिगत जनगणना पर दिए गए पिछले बयानों से अलग है।बीते साल छत्तीसगढ़ की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘गरीब ही सबसे बड़ी जाति और सबसे बड़ी आबादी है। कांग्रेस देश में हिन्दुओं को बाँट रही है।’
केसी त्यागी संघ के बयान को बीजेपी की ओर से जातिगत जनगणना के प्रति सकारात्मक पहल के रूप में देखते हैं।
क्या नीतीश कुमार कमजोर पड़ गए हैं?
नीतीश कुमार मोदी 3.0 सरकार के लिए कई बार ये दोहराते दिखते हैं कि इस सरकार को जेडीयू का ‘बेशर्त समर्थन’ है।
अगर संख्या बल देखें तो इस एनडीए सरकार में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दो ऐसे नेता हैं जो सरकार को बरकरार रखने और गिराने का दम रखते हैं।
ऐसे में जेडीयू का इतना अहम समर्थन होने के बाद भी नीतीश कुमार बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं ले पा रहे?
केसी त्यागी इस पर कहते हैं, ‘बजट में बिहार के लिए हजारों करोड़ दिए गए हैं। बिहार में मेडिकल कॉलेज बनेंगे, हवाईअड्डे बनेंगे, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम होगा। विशेष राज्य बनाने की दिशा में केंद्र सरकार का बड़ा कदम है।’
बतौर जेडीयू नेता केसी त्यागी भले ये कह रहे हों लेकिन बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले लोग इसे नीतीश कुमार का मोदी सरकार के सामने झुके हुए बर्ताव की तरह देखते हैं।
पटना में एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘केंद्र में एनडीए सरकार के लिए उनका समर्थन काफी अहम है। नीतीश कुमार ऐसी स्थिति में हैं कि वो चाहें तो कई मांगें बिहार को लेकर मनवा सकते हैं, लेकिन वो हर जगह यही कहते हैं कि हमारा बीजेपी को समर्थन बिना शर्त के है। आज एनडीए सरकार में जो हैसियत जेडीयू की है, इसके बावजूद नीतीश कुमार का दंडवत होने वाला रवैया मुझे समझ नहीं आता।’
केसी त्यागी समाजवादी आंदोलन से जुड़े नेता हैं। जेडीयू की कमान चाहे शरद यादव के हाथ में रही हो या ललन सिंह के पास, केसी त्यागी हमेशा ही नीतीश कुमार के कऱीबी रहे।
केसी त्यागी ने 1974 में चौधरी चरण सिंह के साथ काम किया और साल 1989 में लोकसभा सांसद रहे।
इससे पहले त्यागी जॉर्ज फर्नांडीस के साथ इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन में रहे और यहीं से समाजवाद की राजनीति में उनका कद बढ़ा।
खेमा बदलने पर नीतीश का बचाव
क्या केसी त्यागी के लिए बार-बार नीतीश कुमार के खेमा बदलने का बचाव करना और जायज ठहराना मुश्किल रहा है?
इस सवाल पर वो कहते हैं, ‘नहीं। नीतीश कुमार ने बिहार के भले के लिए किया और मुझे इसका बचाव करने में कोई संकोच नहीं हुआ।’
लेकिन जो लोग केसी त्यागी को करीब से जानते हैं वो अक्सर ये कहते हैं कि त्यागी समाजवादी नेता हैं और विचारधारा के बिल्कुल उलट कुछ बोल पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा था।
बिहार की राजनीति में जाना-माना नाम शिवानंद तिवारी जेडीयू में भी रहे और अब आरजेडी में हैं। समाजवाद के आंदोलन से निकले शिवानंद तिवारी केसी त्यागी को काफी करीब से जानते हैं।
शिवानंद तिवारी केसी त्यागी को लेकर कहते हैं, ‘केसी त्यागी को हम 1977 के वक्त से जानते हैं। वो समाजवादी हैं। अपनी विचारधारा पूरी तरह नहीं बदल देंगे। गाजा में जो हो रहा है, उनकी राय वही रहेगी जो हमारी राय है। लेकिन आज के समय में वैचारिक प्रतिबद्धता आसान नहीं है।’
शिवानंद तिवारी कहते हैं, ‘आजकल नेता बॉस के अंदाज में काम करते हैं। मैं जेडीयू में रहा और आरजेडी में भी। मुझे नहीं पता कि केसी त्यागी जी ने इस्तीफा क्यों दिया है लेकिन जो मैं अखबारों में ही पढ़ रहा हूं उससे तो यही लगता है कि उनके बयान बीजेपी को और जेडीयू के नेतृत्व को असहज कर रहे थे।’
विचारधारा, धर्मनिरपेक्षता और वोट बैंक की राजनीति
एक वक्त था, जब नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार तक करने नहीं आने देते थे।
साल 2013 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ दिया था। इसे नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता को लेकर प्रतिबद्धता के रूप में देखा जाता था। अब चीज़ें पूरी तरह से बदल गईं। नीतीश कुमार को बीजेपी अपने हिसाब से कई बार झुका चुकी है।वर्तमान समय में नीतीश कुमार मोदी सरकार को बिना शर्त समर्थन की बात करते हैं। भारत की राजनीति में अब अक्सर कहा जाता है कि धर्मनिरेपक्षता वैचारिक प्रतिबद्धता से ज्यादा वोट बैंक सुनिश्चित करने का जरिया है। नीतीश कुमार के पाला बदलने को इसी से जोड़ा जाता है।
केसी त्यागी नीतीश कुमार का बचाव करते हुए कहते हैं, ‘जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म हुआ तो हमारी पार्टी ने वॉकआउट किया था। यूसीसी पर भी नीतीश कुमार ने कहा था कि हम इसके खिलाफ नहीं हैं लेकिन इसके स्टेकहोल्डर्स से बात की जानी चाहिए।’
वो कहते हैं, ‘जब मैंने एनडीए उम्मीदवार के रूप में मेरठ से चुनाव लड़ा तो मुस्लिम वोट बीएसपी को पड़े लेकिन इससे मेरी वैचारिक प्रतिबद्धता थोड़ी भी नहीं डगमगाई। मैं या नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्ष हैं और ये प्रतिबद्धता वोटबैंक के लिए नहीं है।’ हाल के वर्षों में धर्म के आधार पर लिंचिंग की कई घटनाएं हुई हैं।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अक्सर एक समुदाय को टारगेट करने वाला बयान देते हैं। हाल ही में उनकी सरकार ने असम में विधानसभा सत्र के दौरान जुमे की नमाज के लिए मिलने वाला वक्त खत्म कर दिया था।
असम सरकार के इस फैसले पर केसी त्यागी कहते हैं, ‘हम इस फैसले के पूरी तरह खिलाफ हैं और ये नहीं होना चाहिए।’
बिहार चुनाव और प्रशांत किशोर की एंट्री
बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं और इस बार के चुनाव में प्रशांत किशोर ने एंट्री ली है। लगभग दो साल से वो बिहार में पदयात्रा कर रहे हैं। उनकी पार्टी 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में उनकी पार्टी क्या कोई अहम भूमिका निभा सकती है?
इस सवाल पर त्यागी कहते हैं, ‘बिहार का चुनाव दोतरफा है। एक तरफ है, बीजेपी और जेडीयू तो दूसरी तरफ आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन होगा। ये चुनाव भी गठबंधन में बँटा होगा। यहां की राजनीति में किसी भी तीसरे दल की जगह नहीं है। प्रशांत किशोर पदयात्रा कर रहे हैं लेकिन उससे ज़्यादा उन्हें बिहार चुनाव में कुछ हासिल नहीं होगा। वो किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचा पाएंगे।’
साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के साथ थे। तब प्रशांत किशोर ने नारा दिया था- बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है।
दोनों के बीच घनिष्ठता ऐसी बढ़ी थी कि नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया लेकिन ये साथ लंबा नहीं चला और प्रशांत किशोर ने जेडीयू छोड़ दी।
लेकिन नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के बीच वास्तव में हुआ क्या था?
इस पर केसी त्यागी कहते हैं, ‘नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को पार्टी का सोल वाइस प्रेजिडेंट बनाया, जिसका मतलब है कि उनकी जानकारी के बिना पार्टी में कोई फैसला नहीं हो सकता था। लेकिन वही बताएंगे कि उन्होंने पार्टी क्यों छोड़ी। जेडीयू में रहते हुए उन्होंने ममता बनर्जी का कैंपेन संभाला, तमिलनाडु में डीएमके लिए काम किया। हम और नीतीश कुमार 40 साल से साथ हैं और हमने तो आज तक दल नहीं बदला, दल के प्रति निष्ठा अलग चीज़ है।’
इंडिया गठबंधन बनाने का आइडिया नीतीश कुमार का था। उन्होंने पटना में इसकी बैठक कराई। लेकिन फिर उन्होंने ख़ुद को इस गठबंधन से अलग किया और फिर से बीजेपी के साथ चले गए।
नीतीश कुमार के इंडिया ब्लॉक छोडऩे की वजह बताते हुए केसी त्यागी कहते हैं, ‘इंडिया ब्लॉक में ये तय हुआ था कि प्रधानमंत्री के लिए कोई नाम तय नहीं होगा। फिर ममता बनर्जी ने एक बैठक में कहा कि मल्लिकार्जुन खडग़े जी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया जाए। जब ये तय हुआ था कि कोई उम्मीदवार उम्मीदवार नहीं होगा तो ऐसा क्यों हुआ?’
केसी त्यागी कहते हैं, ‘उस पर भी सबके सामने बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि नीतीश जी ममता जी के प्रस्ताव पर राजी नहीं हैं। इसके बाद ही नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक छोडऩे का मन बना लिया। राहुल गांधी ये बात नीतीश जी से अकेले में भी कर सकते थे लेकिन जिस तरह उन्होंने कहा वो ही हमारे गठबंधन छोडऩे का कारण बना।’ (bbc.com/hindi)


