विचार / लेख
शेख़ हसीना ने 15 साल तक बांग्लादेश की सरकार पर काबिज़ रहने के बाद सोमवार को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और वह देश छोडक़र भारत पहुंचीं।
शेख़ हसीना के बांग्लादेश छोडऩे के बाद हज़ारों प्रदर्शनकारी उनके सरकारी आवास में घुसे और वहां तोडफ़ोड़ और लूटपाट की।
शेख़ हसीना के देश छोडऩे के बाद आर्मी चीफ़ जनरल वकार-उज़-ज़मान ने मीडिया से कहा कि बांग्लादेश में एक अंतरिम सरकार बनाई जाएगी।
बांग्लादेश में बीते महीने से ही हिंसक प्रदर्शनों का दौर जारी था। प्रदर्शनकारियों में अधिकांश छात्र समूह थे जो सरकारी नौकरियों में आरक्षण के ख़िलाफ़ सडक़ों पर उतरे थे।
बांग्लादेश में हुए इस बड़े फेरबदल की पाकिस्तान के मीडिया में भी चर्चा हो रही है।
पाकिस्तान का मीडिया क्या कह रहा है
बांग्लादेश के सियासी घटनाक्रम पर पाकिस्तान के जियो टीवी नेटवर्क ने अपनी लीड स्टोरी का शीर्षक दिया है, ‘देशभर में ख़ूनी प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश की पीएम शेख़ हसीना ने पद छोड़ा, बांग्लादेश से भागीं।’
इसके साथ शेख़ हसीना की वह तस्वीर लगाई गई है, जिसमें वह सुबकती दिख रही हैं। ये तस्वीर बीती 25 जुलाई की है, जब प्रदर्शनकारी छात्रों ने एक मेट्रो स्टेशन पर तोडफ़ोड़ की थी और शेख़ हसीना घटनास्थल पर पहुंची थीं।
ठीक इसके नीचे बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा जिय़ा को रिहा करने के लिए राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन के आदेश से जुड़ी ख़बर को जगह दी गई है।
इसमें बताया गया है कि शेख़ हसीना के देश छोडऩे के कुछ ही घंटों बाद उनकी चिर प्रतिद्वंद्वी और बांग्लादेश नेशनिलिस्ट पार्टी की नेता ख़ालिदा जिय़ा को जेल से रिहा करने के आदेश दिए हैं। ख़ालिदा जिय़ा को साल 2018 में भ्रष्टाचार के मामले में 17 साल की जेल की क़ैद सुनाई गई थी।
डॉन न्यूज़ ने अपने संपादकीय का शीर्षक दिया है- ‘हसीना का पतन’।
डॉन न्यूज ने अपने संपादकीय में लिखा है कि अगर सेना ने सत्ता न संभाली होती तो बांग्लादेश एक और अस्थिरता की ओर बढ़ सकता था।
डॉन न्यूज़ लिखता है, ‘शेख हसीना ने अपने 15 साल के कार्यकाल में विपक्ष को दबाया और सभी रास्ते ऐसे बंद किए जिससे जनता का आक्रोश फूट गया। शेख हसीना के विपक्षियों ने उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार, ग़ैर-न्यायिक हत्याएं, लोगों को गायब होने के मामलों में संलिप्तता का आरोप लगाया। पिछले कुछ सप्ताहों में शेख़ हसीना की आवामी लीग ने प्रदर्शनकारियों से संघर्ष किया। इसमें कम से कम 300 लोग मारे गए। इसी कार्रवाई ने शेख़ हसीना की विदाई तय कर दी।’
डॉन न्यूज़ के मुताबिक़, ये अख़बार हमेशा से राजनीतिक मामलों में सैन्य दख़लअंदाज़ी का विरोध करता रहा है।
संपादकीय में लिखा है, ‘पाकिस्तान ने सीधे या परोक्ष तौर पर कई बार सैन्य शासन देखा। बांग्लादेश के लिए भी सैन्य सरकार कोई नई बात नहीं है। लेकिन दोनों ही ओर इस दख़लअंदाज़ी से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ठेस पहुंची हैं। इस बात पर चर्चा हो सकती है कि शेख़ हसीना की दमनकारी कार्रवाई, कुप्रबंधन और उनकी बढ़ती अलोकप्रियता सेना के लिए सत्ता में आने का सुनहरा मौका बनी। लेकिन बांग्लादेश के जनरलों (सेना) की राजनीतिक गतिविधियों में दखलअंदाज़ी करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने के लिए आलोचना होनी चाहिए।’
वहीं ट्रिब्यून एक्सप्रेस ने एक ओपिनियन पीस में लिखा है कि शेख़ हसीना के पीएम पद छोडक़र भारत जाने से अब ये सवाल पैदा हो गया है कि आगे क्या होगा।
इस लेख के अनुसार, ‘सत्ता से बेदखल हुई आवामी लीग अब कहीं नहीं है और न तो जेल में बंद ख़ालिदा जिय़ा और उनकी पार्टी की ओर से ही कुछ कहा जा रहा है। ढाका में चीज़ें अभी स्पष्ट नहीं हैं। इस बीच बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा से तोडफ़ोड़ करने की कोशिशों की तस्वीरें परेशान करने वाली हैं।’
‘ये दक्षिण एशियाई मुस्लिम देश गंभीर रूप से सामाजिक-आर्थिक उलझन में हैं और महीनों तक राजनीतिक उठापटक और कानून व्यवस्था की लचर हालात के बाद अब ये देश इस हालात में आ पहुंचा है। सबसे बड़ी चिंता ये है कि क्या ये देश फिर से सैन्य शासन की ओर बढ़ रहा है।’
मदीहा लोधी ने क्या कहा
जियो टेलीविजऩ चैनल पर बांग्लादेश की पीएम शेख़ हसीना के पद छोडऩे की नौबत क्यों आई? इस पर मदीहा लोधी ने प्रतिक्रिया दी और सारे घटनाक्रम को भारत के लिए झटका बताया।
लोधी अमेरिका में पाकिस्तान की राजदूत रह चुकी हैं।
वह कहती हैं, ‘आवामी ताकत से ये साबित हुआ है कि जब आवाम सडक़ पर आती है तो उसके सामने कोई नहीं आ सकता। शेख़ हसीना ने छात्रों पर जिस किस्म के दमनकारी कदम उठाए लेकिन उससे वह प्रदर्शन रोक नहीं पाईं। हसीना भारत की ओर ज़्यादा थीं और पाकिस्तान के ख़िलाफ़। ज़ाहिर तौर पर इससे भारत को झटका लगा होगा। लेकिन आगे क्या होगा वह इसपर निर्भर करता है कि बांग्लादेश की नई सरकार की शक़्ल क्या होगी। क्या वहां फ़ौज का शासन होगा या सरकार बनेगी।’
डॉन न्यूज़ ने बांग्लादेश के पीएम के तौर पर शेख हसीना के पिछले 15 सालों का ब्योरा दिया है।
वेबसाइट ने लिखा है कि शेख़ हसीना ने एक वक़्त पर बांग्लादेश को सैन्य शासन से बचाया था।
डॉन न्यूज़ लिखता है, ‘शेख़ हसीना के सत्ता में बीते 15 सालों को बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के पुनर्जन्म के तौर पर देखा जाता है। लेकिन उनपर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के आरोप भी लगते रहे हैं।’
पाकिस्तानी चैनल हम न्यूज़ ने बांग्लादेश की सियासी उठक-पटक को लेकर देश के कुछ राजनीतिक विश्लेषकों से बातचीत की।
इनमें से एक आशिमा सिराजी ने बांग्लादेश के मौजूदा हालात पर कहा, ‘ये बहुत बड़ी डेवलेपमेंट है लेकिन पहले ही ऐसा लग रहा था कि ये होगा। जिस तरह से नौकरियों के मुद्दे पर नौजवान सडक़ों पर निकले और उनपर जिस तरह से ताकत का बेजा इस्तेमाल किया शेख़ हसीना सरकार ने।।।ये नजऱ आ रहा था कि वहां इस तरह से हालात बिगड़ जाएंगे।’
वहीं, द ट्रिब्यून अख़बार ने शेख़ हसीना के देश और पीएम पद छोडऩे का एलान करने वाले बांग्लादेश सेना के प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान के बारे में बताया है।
वकार उज्ज़मां ने इसी साल 23 जून को तीन साल के लिए सैन्य प्रमुख का पद संभाला था।
सोशल मीडिया यूज़र्स की राय क्या है
मीडिया की तरह ही पाकिस्तान के सोशल मीडिया पर भी बांग्लादेश के मुद्दे कुछ प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।
सोशल मीडिया यूज़र्स वो वीडियो शेयर कर रहे हैं जिसमें बांग्लादेशी प्रदर्शनकारी छात्र अपने देश के संस्थापक शेख़ मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा पर हथौड़ा चला रहे हैं।
एक यूजऱ ने इस वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए लिख़ा है, ‘1971 का बदला। अच्छा किया मुजीबुर्रहमान के साथ। गद्द़ारों की कोई इज़्ज़त नहीं। छात्र संगठनों को सलाम है।’
छह दिसंबर 1971 को पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा उससे अलग होकर बांग्लादेश के तौर पर एक स्वतंत्र देश बना था। इस आंदोलन की अगुवाई शेख़ मुजीबुर्ररहमान ने की थी।
बांग्लादेश के बनने में भारत की अहम भूमिका रही थी और इसे आज भी पाकिस्तान की बड़ी हार माना जाता है।
बांग्लादेश की स्थिति पर जियो न्यूज़ की एक रिपोर्ट पर एक पाकिस्तानी यूजऱ ने सवाल किया, ‘क्या बांग्लादेश से सीखकर, पाकिस्तान, ख़ासकर कराची के लोगों के लिए मौजूदा कोटा प्रणाली ख़त्म कर दी जाएगी? या फिर हम ऐसी ख़ूनी घटना का इंतज़ार करेंगे?’
ख़ुद को बांग्लादेशी बताने वाले एक यूजऱ ने लिखा, ‘आज आज़ाद हो गया हमारा बांग्लादेश।’
बांग्लादेश के हालात पर जियो न्यूज़ की एक अन्य रिपोर्ट पर एक यूजऱ ने लिखा, ‘बांग्लादेश हमारा बड़ा भाई है और मैं आशा करता हूं कि ये देश शांति से अपनी समस्याएं सुलझाएगा।पाकिस्तान आर्मी परिवार का होने के नाते मैं बांग्लादेश का दुखद बंटवारा भुला नहीं सकता। अल्लाह उन पर रहम करे।’
बांग्लादेश के अख़बारों ने क्या लिखा?
बांग्लादेश की पीएम शेख़ हसीना के देश छोड़ कर चले जाने पर वहां के अख़बारों ने अलग-अलग नज़रिये से टिप्पणी की है।
दैनिक ‘प्रोथोम आलो’ की ख़बर का शीर्षक है- शेख़ हसीना अंत में भी बल प्रयोग करना चाहती थीं।
अख़बार लिखता है कि शेख हसीना अंत में भी अतिरिक्त बल और अधिक रक्तपात के जरिए सत्ता बरकरार रखना चाहती थीं।
‘सामयिक’ पत्रिका की हेडलाइन है- छात्रों की खून से सनी जीत।
इसमें कहा गया है कि बांग्लादेश में जनता की जीत हुई लेकिन ये छात्रों के खून से सनी हुई है।
‘न्यू एज’ की खबर कुछ इस तरह शुरू होती है- खालिदा की रिहाई, जेएस का विघटन, राष्ट्रीय सरकार जल्द।
पहले पन्ने पर लगी इस रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा है कि बीएनपी चेयरपर्सन खालिदा जिया को तुरंत रिहा करने का फैसला किया गया है।
‘नया दिगंत’ अखबार में बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस के हवाले से कहा गया है कि छात्रों की जीत दूसरी आज़ादी है।
जीत के दिन पुलिस फायरिंग में 103 की मौत-युगांतर अखबार के पहले पन्ने पर ये ख़बर छापी गई है।
इसमें लिखा गया है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के सोमवार को इस्तीफा देने के बाद अवामी लीग के मंत्रियों-सांसदों के आवास, केंद्रीय कार्यालय और अन्य कार्यालयों में तोडफ़ोड़ की गई और आगजनी की गई।
‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने लिखा कर्फ्यू आज ख़त्म; सभी शैक्षणिक, निजी संस्थान, कारखाने भी खुलेंगे। यह बिजनेस स्टैंडर्ड के पहले पन्ने का शीर्षक है।
बांग्लादेश में क्या हुआ?
बांग्लादेश में आरक्षण पर चल रहे हिंसक प्रदर्शनों के राष्ट्रव्यापी आंदोलन में तब्दील हो जाने के बाद देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पांच अगस्त को इस्तीफ़ा दिया और वह भारत आ गईं।
शेख़ हसीना वर्ष 2009 से लगातार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं।
वो एक सैन्य विमान से भारत पहुंचीं।
बांग्लादेश में छात्रों ने सरकारी नौकरियों में आज़ादी की लड़ाई लडऩे वालों के परिजनों के लिए 30 प्रतिशत के आरक्षण को समाप्त करने की मांग के साथ विरोध शुरू किया था।
हाई कोर्ट की ओर से इस विवादित कोटा व्यवस्था को बरकरार रखने के बाद छात्रों के प्रदर्शन और तेज़ हो गए। हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए।
प्रदर्शनकारियों पर सरकार की कड़ी कार्रवाई ने आक्रोश को और हवा दी।
बढ़ते विरोध-प्रदर्शनों और हिंसा को समाप्त करने के लिए शेख़ हसीना ने छात्र नेताओं के साथ बिना शर्त बातचीत की पेशकश की थी लेकिन लेकिन छात्र प्रदर्शनकारियों ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया और ढाका कूच का आह्वान कर दिया।
इसके बाद सोमवार को शेख हसीना को अपना पद और देश दोनों छोडऩे पड़े। (bbc.com/hindi)


