विचार / लेख
-विजय सिंह ठकुराय
पेरिस ओलंपिक में बॉक्सिंग विवाद के बाद जिस तरह सोशल मीडिया पर मिसइनफार्मेशन की लहर चल पड़ी है, उसके मद्देनजर मुझे लगता है कि मुझे आपको कुछ बेसिक फैक्ट्स क्लियर कर देने चाहिएं।
सबसे पहले तो आपको यह जान लेना चाहिये कि ट्रांस अथवा कथित तौर पर मर्द से औरत बनी अल्जीरियन बॉक्सर ईमन खलीफ जैविक रूप से ट्रांस नहीं, एक महिला है। दिखने में मर्दों जैसी हो सकती है पर जन्म से जनाना अंगों के साथ ही पैदा हुई थी और बचपन से महिला वर्ग में ही बॉक्सिंग करती आ रही है।
मैं आपको यह भी बता दूँ कि भले ही ईमन ने इस बार 46 सेकंड में इटालियन बॉक्सर एंजेला करिनि को ढेर कर दिया हो, पर पूर्व में ईमन को कई महिला बॉक्सरों ने जम कर धोया है, जिनके नाम आप विकिपीडिया पर ईमन की मैच हिस्ट्री में सर्च कर सकते हैं। कहने का अर्थ यह है कि ईमन हमेशा महिला बॉक्सरों पर उतनी भारी नहीं पड़ी है। तो फिर उसे लेकर उठ रहे विवाद की जड़ क्या है?
जड़ पिछले साल शुरू हुई, जब रशिया द्वारा कंट्रोल्ड बॉक्सिंग फेडरेशन ने ईमन के डीएनए में ङ्गङ्घ क्रोमोसोम तथा टेस्टोस्टेरोन के एलिवेटेड लेवल पाए जाने पर उसे महिला जननांग होने के बावजूद ‘मर्द’ घोषित कर अयोग्य करार दे दिया। तो क्या ङ्घ क्रोमोसोम मर्द होने की गारंटी है?
जी नहीं, यह बात पूरी तरह सही नहीं है। वास्तव में ङ्घ क्रोमोसोम पर मौजूद स्क्रङ्घ नामक जीन ञ्जष्ठस्न तथा स्ह्रङ्ग9 प्रोटीन को जन्म देकर पुरुषत्व प्रेरित करती है। अगर किसी बायोलॉजिकल डिसऑर्डर से यह जीन निष्क्रिय हो, अथवा अनुपस्थित हो, तो ङ्घ क्रोमोसोम होने के बावजूद व्यक्ति महिला होता है।
वहीं अगर स्क्रङ्घ जीन ङ्घ क्रोमोसोम की बजाय किसी अन्य क्रोमोसोम पर एक्सप्रेस हो जाये, तो ङ्गङ्ग होने के बावजूद व्यक्ति महिला होने की बजाय पुरुष होता है। इसके अलावा और भी पचासों ज्ञात तथा अज्ञात हार्मोनल फैक्टर हैं, जो व्यक्ति के जेंडर का निर्धारण करते हैं। सिर्फ ङ्घ क्रोमोसोम होने अथवा टेस्टोस्टेरोन हाई होना मात्र ही पुरूष होने की गारंटी नहीं है, खासकर जब जनाना अंग मौजूद हों। इस तरह देखा जाए तो ईमन खलीफ ट्रांस न होकर कुछ एब्नार्मल हार्मोनल डिसऑर्डर की शिकार महिला है। बेशक, ये डिसऑर्डर उसे दूसरी महिलाओं की अपेक्षा शारीरिक एडवांटेज देते हैं, पर इससे उसके ऊपर ‘मर्द’ होने का लेबल नहीं लग जायेगा।
वास्तविक मुद्दा यह है कि जब आप जेंडर को बाइनरी (महिला/पुरूष) रूप में न देख कर एक स्पेक्ट्रम के रूप में देखने का आग्रह रखते हैं, तो प्रतिस्पर्धाओं का स्वरूप बाइनरी रखने का क्या तुक है?
प्रतिस्पर्धाओं को लेकर एक विस्तृत फ्रेमवर्क तैयार करने की जरूरत है, ताकि समान शारीरिक क्षमता वाले लोग ही एक-दूसरे से कॉम्पिटिशन कर पाएं। जब तक ऐसा नहीं होगा, पेरिस ओलंपिक जैसे ब्लंडर होते रहेंगे। इस मामले में किन्नरों और ट्रांस समुदाय का मजाक उड़ा रहे मित्रों से मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि ईमन खलीफ का तो पता नहीं, पर दुनिया में लाखों वास्तविक बायोलॉजिकल ट्रांस लोग मौजूद हैं, जो इस विवाद में गलत दिशा में जा रहे आउटरेज के कारण भविष्य में अपनी पहचान और सम्मान के प्रति हमेशा सशंकित और असुरक्षित महसूस करेंगे।


