विचार / लेख
-उमंग पोद्दार
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया है।
पीठ के छह जजों ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है।
सिर्फ जज जस्टिस बेला त्रिवेदी इस राय से असहमत थीं।
इस फैसले के बाद राज्य अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण में आंकड़ों के आधार पर सब-क्लासिफिकेशन यानी वर्गीकरण कर सकते हैं। इसका मतलब ये है कि अगर किसी राज्य में 15 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जातियों के लिए है तो उस 15 फीसदी के अंतर्गत वो कुछ अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण तय कर सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि सारी अनुसूचित जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं हैं। कुछ दूसरों से ज़्यादा पिछड़ी हो सकती हैं। इसलिए उनके उत्थान के लिए राज्य सरकार सब-क्लासिफिकेशन कर के अलग से आरक्षण रख सकती है।
सात जजों ने छह अलग-अलग राय लिखी। विशेषज्ञों का मानना है कि आरक्षण के हिस्से में ये एक बहुत बड़ा फ़ैसला है जिसके कई राजनीतिक प्रभाव दिखेंगे।
1975 में पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति की नौकरी और कॉलेज के आरक्षण में 25 फीसदी वाल्मीकि और मज़हबी सिख जातियों के लिए निर्धारित किया था। इसे हाई कोर्ट ने 2006 में खारिज कर दिया।
खारिज करने का आधार 2004 का एक सुप्रीम कोर्ट का फैसला था। जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति की सब-कैटेगरी नहीं बनाई जी सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यों के पास ये करने का अधिकार नहीं है। क्योंकि अनुसूचित जाति की सूची राष्ट्रपति की ओर से बनाई जाती है।
पढ़ाई और नौकरी दोनों पर लागू
आंध्र प्रदेश ने भी पंजाब जैसा एक कानून बनाया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया।
इस कारण। पंजाब सरकार ने एक नया क़ानून बनाया। जिसमें यह कहा गया कि अनुसूचित जाति के आरक्षण के आधे हिस्से में इन दो जातियों को प्राथमिकता दी जाएगी। ये कानून भी हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ के पास पहुंचा।
एक अगस्त के फैसले ने 2004 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलट दिया।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस मनोज मिश्रा के फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति एक समान वर्ग नहीं है।
उन्होंने लिखा कि कुछ जातियां। जैसे जो सीवर की सफ़ाई करते हैं। वो बाकियों से ज़्यादा पिछड़ी रहती हैं। जैसे जो बुनकर का काम करते हैं जबकि दोनों ही अनुसूचित जाति में आते हैं और छुआ-छूत से जूझती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सब-क्लासिफिकेशन का निर्णय आंकड़ों के आधार पर होगा ना कि राजनीतिक लाभ के लिए। सरकारों को ये दिखाना होगा कि क्या पिछड़ेपन के कारण किसी जाति का सरकार के कार्य में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। सब-क्लासिफिकेशन पर जुडिशियल रिव्यू भी लगाया जा सकता है।
क्या होगा असर?
चार और जजों ने चीफ जस्टिस की राय से सहमति जताई। पर अपने-अपने फैसले लिखे।
जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि सरकार ये नहीं कर सकती कि किसी एक जनजाति को पूरा आरक्षण दे दे।
पंजाब सरकार ने कोर्ट के सामने ये तर्क रखा कि अनुसूचित जाति में सभी जातियां समान नहीं है। केंद्र सरकार ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सब-क्लासिफिकेशन की अनुमति मिलनी चाहिए।
फिलहाल। अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण में सब-क्लासिफिकेशन होता है। अब ऐसा ही सब-क्लासिफिकेशन अनुसूचित जाति और जनजाति में भी देखा जा सकता है।
हालांकि इसके लिए राज्यों को पर्याप्त आंकड़ा पेश करना होगा।
ऐसा कई बार हुआ है कि कोर्ट ने सरकार के ठीक से आंकड़ा इक_ा नहीं करने की बात कहते हुए आरक्षण को खारिज कर दिया है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे दलित वोट पर भी असर पड़ेगा।
जादवपुर यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाजीत नस्कर का कहना है। ‘सब-क्लासीफिकेशन मतलब एससी-एसटी वोट बँट जाएं। ऐसे एक समुदाय के अंदर राजनीतिक बँटवारा पैदा होगा। बीजेपी ने भी कोर्ट में सब-क्लासिफिकेशन का समर्थन किया है। हो सकता है कि इनसे उनको सियासी फायदा मिले। राज्य स्तर की राजनीतिक पार्टियां भी अपने फ़ायदे के मुताबिक़ सब-क्लासिफिकेशन लाएंगी।’
हालांकिउन्होंने इस फैसले से असहमति जताई और कहा। ‘अनुसूचित जाति का आरक्षण छुआछूत के आधार पर दिया जाता है। इसका सब-क्लासिफिकेशन नहीं कर सकते। इस फैसले का आने वाले दिनों में जोर-शोर से विरोध होगा।’
वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने भी एक्स पर इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह फैसला समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ जाता है। उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि पिछड़ापन का निर्णय किस आधार पर किया जाएगा।
कोर्ट के चार जजों ने अनुसूचित जाति और जनजाति में क्रीमी लेयर पर भी अपने विचार रखे।
क्रीमी लेयर का मतलब ये है कि वो वर्ग वित्त और सामाजिक रूप से विकसित हैं और वो आरक्षण का उपयोग नहीं कर सकते।
जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अन्य पिछड़े वर्ग आरक्षण जैसे अनुसूचित जाति और जनजाति में भी क्रीमी लेयर आना चाहिए। पर उन्होंने ये नहीं कहा कि क्रीमी लेयर कैसे निर्धारित किया जाएगा।
इस पर दो और जजों ने सहमति जताई। वहीं जस्टिस पंकज मिथल ने कहा कि अगर एक पीढ़ी आरक्षण लेकर समाज में आगे बढ़ गई है। तो आगे वाली पीढिय़ों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
हालांकि। ये बस जजों की टिप्पणी थी और भविष्य के मुकदमों पर बाध्य नहीं होगा। क्रीमी लेयर का सवाल कोर्ट के सामने नहीं था।
फि़लहाल अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर क्रीमी लेयर लागू है और अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए नौकरी में वृद्धि में भी क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू है। (bbc.com/hindi)


