विचार / लेख
-अपूर्व गर्ग
अवसाद, तनाव, असफलता, प्रतियोगिता और बहुत सी परीक्षाओं से गुजरने के लिए दुनिया प्रेरणादायी व्यक्तित्व, प्रेरक लोग, प्रेरक प्रसंग-विचार-पुस्तक और आज की भाषा में प्रेरक नेताओं की शरण में जाते हैं।
दरअसल, दुनिया जब से पूरी तरह बाजार में बदल गई तब से ‘प्रेरणा के बाजार’ में सोना बरस रहा है ।
ये ‘मोटिवेशनल लीडर्स’ बड़े स्टार होटलों में ऊंची फीस के साथ बताते हैं आज इस बाज़ार और गलाकाट स्पर्धा में कैसे आगे बढ़ें ?
पर स्वाभाविक तरह से अच्छा इंसान बनकर चुनौतियों और संघर्ष कर कैसे खुद को बदलें, दुनिया बदलें और सचाई के साथ सफल हों ये हुनर प्रेमचंद साहित्य के अनमोल खजाने में है।
प्रेमचंद को पढक़र देश ,दुनिया और समाज को ज़्यादा बेहतर समझ कर अपनी समस्याओं, हताशा और चुनौतियों की बाधाओं को बेहतर पार किया जा सकता है।
प्रेमचंद का दिल्ली में अभिनन्दन होना था और उसी रात उन्हें लौटना था। कार्यक्रम की समाप्ति पर एक पंजाबी सज्जन उठे और हाथ जोड़ कर कहा ‘मैं प्रेमचंद को आज रात किसी हालत में जाने नहीं दूंगा। यहाँ मौजूद सारी सभा और प्रेमचंद को कल मैं अपने यहाँ आमंत्रित करना चाहता हूँ।’
लोगों को बड़ा विचित्र मालूम हुआ प्रेमचंद का जाना निश्चित था पर उस व्यक्ति ने कहा-
‘मैं प्रेमचंद को तलाश करता दो बार लखनऊ गया ,बनारस गया। उस व्यक्ति का कहना था बहुत बुरे दौर में उसके पास कुछ भी न बचा था, जेब में दो रुपये और कुछ पैसे बचे थे। प्रेमचंद जी का एक अफसाना नजऱ आया और प्रेमचंद जी की ‘मन्त्र’ कहानी पढ़ गया। पढक़र मेरे दिल की पस्ती जाती रही। हौसला खुल गया। मैं लौटकर आया और हार न मानने का इरादा कर लिया तब से मेरी तरक्की ही होती गई।’
युवाओं को प्रेरित करने प्रेमचंद हमेशा आगे रहते ।एक बानगी देखिये उन्होंने कानपुर के श्री सद्गुरूशरण अवस्थी को लिखा था ‘आपकी क्लास में यदि साहित्यिक रूचि के छात्र हों तो उन्हें लिखते रहने की प्रेरणा करते रहिये। युवक कभी-कभी सुन्दर गल्प लिख जाते हैं ,जो हम लोगों से नहीं बन पड़ती। हमारी जीत अभ्यास में है ।नवीनता और विचित्रता तो उनके साथ है।’
कभी युवा अश्क को लिखे पत्र में देखिये कैसे उन्होंने अश्कज़ी को ‘प्रेरित’ किया और यही उपेन्द्रनाथ अश्क हिंदी -उर्दू के देश के सुप्रसिद्ध लेखक बने ।
प्रेमचंद पढि़ए और अपनी लड़ाई पर निकलिये ।
प्रेमचंद की कहानी में उनका एक पात्र कहता है ‘हमारी बड़ी भूल यही है कि खेल को खेल की तरह नहीं खेलते। खेल में धांधली करके कोई जीत ही जाए तो क्या हाथ आएगा खेलना तो इस तरह चाहिए कि निगाह जीत पर रहे , पर हार से घबराये नहीं, ईमान को न छोड़े। जीत कर इतना न इतराये कि कभी होगी ही नहीं। यह हारजीत तो जि़ंदगी के साथ है।’
‘रंगभूमि’ में प्रेमचंद किस तरह ‘प्रेरित’ करते हैं , देखिये-
‘सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं , बाज़ी पर बाज़ी हारते हैं , चोट पर चोट खाते हैं, धक्के पर धक्के सहते हैं पर मैदान में डटे रहते हैं ,उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़ते। खेल में रोना कैसा। खेल हंसने के लिए दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं।’
इसलिए आपके बच्चे ,युवा पीढ़ी प्रेमचंद को जितना पड़ेगी उतना बेहतर इंसान वो बनेंगे और उनके संघर्षों ,लड़ाइयों में प्रेमचंद साहित्य उत्प्रेरक की तरह हौसला-अफज़़ाई करती रहेगी ।


