राजपथ - जनपथ
आखिर यह सन्नाटा क्यों?
नगरीय निकाय चुनाव नतीजे आने से पहले कांग्रेस में तूफान से पहले की शांति दिख रही है।
पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को कोई बेहतर नतीजे की उम्मीद नहीं है। वो नतीजे आने के बाद पार्टी के बड़े नेताओं पर टूट पडऩे की तैयारी में हैं।
एक पूर्व विधायक ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि वो आने वाले दिनों में धमाका करेंगे। धमाका किस तरह का होगा, यह स्पष्ट नहीं है। मगर यह तय है कि धमाके की गूंज दिल्ली तक सुनाई दे सकती है।
रायपुर में स्थानीय नेताओं के बीच विवाद खुलकर जाहिर हो सकती है। इसकी वजह यह है कि कई सीनियर पार्षदों की टिकिट काट दी गई थी। ये सभी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। कुछ की स्थिति तो बेहतर बताई जा रही है। इन पूर्व पार्षदों का कहना है कि वो देर सबेर विधानसभा टिकट के दावेदार हो सकते थे इसलिए उन्हें जानबूझकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। बागी कांग्रेस चुनाव जीतकर आएंगे तो कुछ बोलेंगे ही, और बोलेंगे तो विवाद बढ़ेगा ही। यानी आने वाले दिनों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज की राह मुश्किल हो सकती है।
भाजपा में भी कुछ ठीक नहीं
भाजपा में विशेषकर सरगुजा संभाग में नगरीय निकाय चुनाव के बीच में काफी विवाद हु्आ है। चर्चा है कि महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने तो चुनाव प्रचार की समीक्षा बैठक में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन से स्थानीय प्रमुख नेताओं की शिकायत की है। उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन स्थानीय दिग्गज नेता महिला बाल विकास मंत्री से खफा बताए जा रहे हैं। इन सबके बीच एक के बाद एक कई ऑडियो भी वायरल हुआ है। एक ऑडियो में महिला बाल विकास मंत्री के पति और भाजपा के बागी प्रत्याशी के बीच बातचीत है। बागी प्रत्याशी उन पर पार्टी के खिलाफ काम करने वालों को टिकट देने की तोहमत लगा रहे हैं। दोनों के बीच में काफी विवाद हो रहा है। ऐसे कई ऑडियो-वीडियो चर्चा का विषय बना हुआ है। चुनाव नतीजे आने के बाद कुछ और ऑडियो-वीडियो जारी हो सकता है जिससे प्रदेश की राजनीति गरमा सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
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चिरमिरी में किरकिरी का खतरा
नगरीय निकायों में बुधवार को मतदान के बाद चुनाव नतीजों का आकलन किया जा रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि 10 में से 9 नगर निगम पार्टी जीत सकती है। सिर्फ चिरमिरी को लेकर संशय है। इससे परे कांग्रेस के नेता अनौपचारिक चर्चा में तीन नगर निगमों में जीत का भरोसा जता रहे हैं।
भाजपा को रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, और राजनांदगांव व जगदलपुर व धमतरी, रायगढ़ में स्पष्ट जीत की उम्मीद है। इन निगमों में अच्छी खासी मार्जिन से भाजपा के मेयर प्रत्याशियों के जीत का दावा किया जा रहा है। पार्टी नेताओं का आकलन है कि भाजपा को अंबिकापुर, और कोरबा में मामूली अंतर से जीत मिल सकती है। जबकि चिरमिरी में कुछ भी हो सकता है। इससे परे कांग्रेस कोरबा, अंबिकापुर, और चिरमिरी को लेकर उम्मीद से है।
कांग्रेस का नगर पालिका, और नगर पंचायतों में प्रदर्शन बेहतर रह सकता है। सरगुजा संभाग में मनेन्द्रगढ़ जैसी नगर पालिका में कांग्रेस प्रत्याशी भारी रही है। खुद सीएम विष्णुदेव साय के विधानसभा क्षेत्र कुनकुरी के नगर पालिका में कांग्रेस ने तगड़ी टक्कर दी है। यहां सामाजिक समीकरण के चलते मुकाबला नजदीकी रहा है। कुल मिलाकर मतदान के बाद भाजपा के रणनीतिकार खुश नजर आ रहे हैं। 15 तारीख को चुनाव नतीजे आने तक हार-जीत का आकलन चलता रहेगा।
अरबपति की वापिसी किस कीमत पर?
कांग्रेस में मतदान खत्म होते ही डेढ़ दर्जन बागी नेताओं की पार्टी में वापिसी हो गई। पार्टी ने निष्कासित-निलंबित नेताओं की कांग्रेस में वापिसी के लिए छानबीन समिति बनाई थी। चर्चा है कि समिति की अनुशंसा से पहले ही बागियों को पार्टी में वापस ले लिया गया। इस पूरे मामले पर पार्टी के कई प्रमुख नेताओं ने अलग-अलग स्तरों पर अपनी नाराजगी जताई है।
जिन नेताओं को पार्टी में वापस लिया गया है उनमें रायपुर उत्तर के निर्दलीय प्रत्याशी अजीत कुकरेजा भी हैं। कहा जा रहा है कि अजीत कुकरेजा को पार्टी में वापस लाने में पूर्व मेयर एजाज ढेबर की भूमिका अहम रही है। अजीत, ढेबर के चुनाव प्रचार में लगे हुए थे। और फिर मतदान खत्म होते ही ढेबर ने उन्हें पार्टी में लेने के लिए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को तैयार किया। चर्चा है कि छानबीन समिति के सदस्यों को इसकी भनक भी नहीं लगी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, बागियों की वापिसी से नाखुश बताए जाते हैं। इस पूरे मामले पर आने वाले दिनों में कांग्रेस के भीतर विवाद खड़ा हो सकता है।
मतदान के लिए उदासीन क्यों?
छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनाव अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहे। आमतौर पर देखे जाने वाले विवाद, झड़प, झीना-झपटी, मारपीट और प्रलोभन जैसी घटनाओं के अलावा कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। बावजूद इसके, कई निकायों में 2019 के मुकाबले मतदान प्रतिशत घट गया। राजधानी रायपुर में केवल 49.58 प्रतिशत वोटिंग हुई, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 53 प्रतिशत था।
चुनाव को सुगम बनाने के लिए सरकारी और निजी दफ्तरों में अवकाश घोषित किया गया था। प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी—गली-मोहल्लों में प्रचार, बैनर-पोस्टर, रोड-शो, रैलियां और यहां तक कि उपहार व नगदी वितरण तक हुआ। फिर भी आधे से अधिक मतदाता वोट डालने नहीं पहुंचे। यहां तक कि जिनको कोई प्रत्याशी पसंद नहीं था, वे भी नोटा दबाने नहीं निकले।
क्या मतदाताओं को यह लग रहा था कि ‘को नृप होई, हमें का हानि’? यानी कोई भी पार्षद या महापौर बने, उनके जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा? या फिर सत्तारूढ़ दल की नगरीय निकायों में बढ़त के पुराने ट्रेंड को देखकर कुछ ने मान लिया कि नतीजे पहले से तय हैं और उनके वोट से कोई बदलाव नहीं होगा?
विधानसभा और लोकसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी अधिक देखी गई थी, लेकिन इस बार नगरीय निकाय चुनावों में महिला मतदाता अपेक्षाकृत कम संख्या में निकलीं। क्या महतारी वंदना योजना की लाभार्थी महिलाएं भी मतदान से दूर रहीं? क्या महाकुंभ के कारण मतदान प्रभावित हुआ? क्या नामांकन और मतदान के बीच की अवधि इतनी कम थी कि प्रत्याशी मतदाताओं तक सही से पहुंच नहीं बना सके?
विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भारत निर्वाचन आयोग स्वीप कार्यक्रम के तहत व्यापक जागरूकता अभियान चलाता है, लेकिन यह राज्य निर्वाचन आयोग से संचालित चुनाव है। नगरीय निकाय चुनावों में ऐसा कोई अभियान नहीं दिखा। कुछ जिलों में प्रशासन ने जरूर अपनी ओर से पहल की थी। विधानसभा-लोकसभा चुनावों में बुजुर्गों और दिव्यांगों को घर से मतदान की सुविधा दी गई थी, लेकिन इस बार सभी को बूथ तक पहुंचना जरूरी था।
मतदान के प्रति यह उदासीनता क्यों रही, इसका सही उत्तर तो वे ही दे सकते हैं, जिन्होंने वोट नहीं डाला। पर आयोग, सरकार और राजनीतिक दलों को इस पर मंथन जरूर करना चाहिए। आखिर, लोकतंत्र में जनता की भागीदारी ही उनका सबसे बड़ा हथियार है।
देस लौटने की तैयारी में...
नॉर्दर्न पिंटेल एक सुंदर और लंबी गर्दन वाला बतख प्रजाति का पक्षी है, जिसे इसके अनोखे आकार और आकर्षक पंखों के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। रूस, मंगोलिया, कनाडा, कजाकिस्तान, चीन आदि में पाया जाने वाला यह प्रवासी पक्षी होता है। इसे सर्दियों में भारत सहित कई देशों में देखा जाता है। यह तस्वीर अचानकमार अभयारण्य के रास्ते पर एक दलदली जमीन से ली गई है। सर्दियों में यह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में प्रवास करता है। अब चूंकि गर्मी बढ़ रही है, ये पक्षी वापस लौटने की तैयारी में हैं। नॉर्दर्न पिंटेल की संख्या हाल के वर्षों में घट रही है, जिसका मुख्य कारण अवैध शिकार और हैबिटेट का नष्ट होना है। इसे आईयूसीएन ने रेड लिस्ट में डाल रखा है, जिसके संरक्षण की जरूरत बनी हुई है। (rajpathjanpath@gmail.com)
राजधानी में कांग्रेस दिक्कत में
चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अब तक का सबसे बेहतर हो सकता है। वजह यह है कि पार्टी का चुनाव प्रबंधन अच्छा रहा है। पार्टी के तमाम प्रमुख नेता प्रचार खत्म होने के बाद भी डोर-टू-डोर जाकर मतदाताओं से मिलते रहे हैं। रायपुर नगर निगम के एक हाईप्रोफाइल वार्ड में तो सोमवार की रात खुद महामंत्री (संगठन) पवन साय ने प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की।
पार्टी ने सरकार के सभी मंत्रियों को एक-एक निगम का प्रभारी बनाया है। रायपुर के प्रभारी कृषि मंत्री रामविचार नेताम हैं। नेताम ने पूरे समय रायपुर में रहकर वार्डों में झगड़े निपटाते दिखे हैं।
भाजपा नेताओं की रणनीति का प्रतिफल यह रहा कि कांग्रेस के कई-कई बार के पार्षद, जो कि पिछले चुनावों में आसानी से जीत दर्ज करते रहे हैं। इस बार मुश्किल में घिरे दिख रहे हैं। आम आदमी पार्टी की भले ही दिल्ली में सत्ता चली गई, लेकिन रायपुर नगर निगम में खाता खुल सकता है। दो-तीन वार्डों में आप प्रत्याशी मजबूत दिख रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार चुनाव में नतीजे चौकाने वाले आ सकते हैं।
बिना कोषाध्यक्ष टिकट बिक्री ?
कांग्रेस का प्रचार तंत्र इस बार बिखरा रहा है। प्रदेश के प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गेंदू चुनाव लड़ रहे हैं, और कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल चुनावी परिदृश्य से गायब हैं। इसका सीधा असर चुनाव प्रचार पर पड़ा है। पहली बार रिकॉर्ड संख्या में बागी चुनाव मैदान में उतरे हैं। उन्हें मनाकर चुनाव मैदान से हटाने में किसी बड़े नेता ने रुचि नहीं दिखाई।
दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट पूरी तरह चुनाव से गायब रहे। वो एक दिन भी यहां पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार के लिए नहीं आए। यही नहीं, पार्टी के बड़े नेता एक साथ किसी भी मंच पर नहीं दिखे। यानी एकजुटता का दिखावा नहीं कर पाए। इसका सीधा असर चुनाव पर दिखा है। प्रदेश में तीन नगर निगम ही ऐसे हैं, जहां कांग्रेस कड़ी टक्कर देते दिख रही है। इनमें भी प्रत्याशियों का बड़ा रोल है। टिकट को लेकर लेनदेन की चर्चा रही है। चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस में गदर मचने के आसार दिख रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
दो बड़े चुनावों के बाद सुस्त मतदान
नगरीय निकाय चुनाव में कई जगहों पर बेहतर मतदान हुआ है। मगर रायपुर जैसे बड़े नगर निगमों में मतदाता सूची में गड़बड़ी सामने आई है। वार्डों के परिसीमन के चलते मतदान केन्द्र बदल गए, और इसकी वजह से मतदाताओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है।
बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए चुनाव आयोग ने अभियान चलाया था। मगर नाम जुड़वाने के बावजूद बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम गायब थे। राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले चुनावों में आयोग ने मतदान के आंकड़े जारी करने में तत्परता दिखाती रही है। इस बार वैसा कुछ नजर नहीं आया। सुबह 10 बजे पहली बार आंकड़े जारी किए गए। राजनीतिक दलों के लोग भी आयोग से संतुष्ट नजर नहीं आए।
सांसद के सार्वजनिक गुस्से का सवाल
बस्तर में कई जनप्रतिनिधि जेड प्लस सुरक्षा के घेरे में चलते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण। कांकेर सांसद भोजराज नाग भी उन्हीं में से एक हैं। जब नक्सल ऑपरेशन की प्रतिक्रिया स्वरूप जनप्रतिनिधियों पर हमले हो रहे हैं, तो यह जरूरी है कि उनकी सुरक्षा को लेकर पुलिस को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए।
कांकेर-भानुप्रतापपुर मार्ग पर सांसद की गाड़ी करीब एक घंटे तक जाम में फंसी रही। सामने ट्रकों की लंबी कतार थी, जिन्हें पुलिस माइंस से आने वाले भारी वाहनों की चेकिंग में रोक रही थी। इस दौरान सांसद का गुस्सा थाना प्रभारी पर फूट पड़ा। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में वह खुलेआम टीआई पर वसूली के आरोप लगाते दिखे। उन्होंने कहा- ऐसी टीआईगिरी करोगे? वीआईपी को एक घंटे रोकोगे? तमाशा बना दिया है! बदतमीज कहीं के! माइंस की ट्रकों से वसूली करते हो, बहुत शिकायतें हैं तुम्हारी! पुलिस सफाई देती रही कि नो एंट्री में घुसी ट्रकों की संख्या अधिक थी, जिससे व्यवस्थित करने में समय लगा और जाम लग गया।
यह पहली बार नहीं है जब सांसद इस तरह सार्वजनिक रूप से भडक़े हों। कुछ समय पहले रावघाट इलाके के एक ठेकेदार से फोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने आपा खो दिया था और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था। वह वीडियो भी वायरल हुआ था। करीब छह महीने पहले मंच से अधिकारियों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा था- कान खोलकर सुन लें, जनता के पैसे से मिलने वाला वेतन मौज करने के लिए नहीं है। मैं सांसद हूं, पुजारी भी हूं। अगर पुरानी मानसिकता नहीं छोड़ते तो भूत उतारूंगा।
सांसद की नाराजगी जायज हो सकती है, पुलिस पर वसूली का आरोप भी सही हो सकता है। जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधि को जाम में फंसना निश्चित रूप से एक सुरक्षा चूक मानी जा सकती है। लेकिन जब दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक अपनी ही सरकार हो, तो इस तरह सार्वजनिक रूप से संयम खोने पर सवाल उठ जाता है। सांसद चाहें तो सीधे डीजीपी से बात कर टीआई को सस्पेंड करने के लिए कह सकते थे। सार्वजनिक मंच पर बार-बार आक्रोश जाहिर करना केवल राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन नहीं माना जाए? ब्यूरोक्रेट से परेशान जनता उनकी नाराजगी से थोड़ी देर के लिए खुश हो सकती है, पर वह समाधान की उम्मीद भी रखती है।
जंगल वॉर आसान नहीं
छत्तीसगढ़ के कांकेर स्थित काउंटर टेररिज्म एंड जंगल वॉरफेयर (सीटीजेडब्ल्यू) कॉलेज देश में आतंकवाद व नक्सलवाद से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। अब तक हजारों केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान यहां से आतंकवाद विरोधी एवं जंगल युद्ध तकनीकों में प्रशिक्षित हो चुके हैं। यह कॉलेज जंगलों और दुर्गम इलाकों में अभियानों की रणनीति, गुरिल्ला युद्ध तकनीक, आधुनिक हथियारों के संचालन और परिस्थितिजन्य निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने पर केंद्रित है। सुरक्षा बलों को यहां शारीरिक, मानसिक व सामरिक रूप से सशक्त बनाया जाता है, जिससे वे आतंकवाद और नक्सली हिंसा जैसी चुनौतियों से प्रभावी रूप से निपट सकें। हाल के मुठभेड़ों में सफलता को देखें तो इस तरह का प्रशिक्षण महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। यह तस्वीर वहां चल रहे एक प्रशिक्षण की है।
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हम अंग्रेजों के जमाने के टैक्स कलेक्टर हैं
भारत में करीब 200 वर्ष राज करने वाले अंग्रेज देशवासियों से दो तरह से टैक्स लेते थे। एक किसानों से लगान और नौकरीपेशा मुलाजिमों से इनकम टैक्स कह सकते हैं । इनकम टैक्स सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत ने ही लगाया था। वह भी देश छोडऩे से दो वर्ष पहले 1945 से इनकम टैक्स लगाया था। यानी उस वक्त यह टैक्स आठ पैसे से लेकर दो आने तक के अलग-अलग आय पर अलग-अलग स्लैब था। सस्ते के उस जमाने के लोग भी टैक्स से परेशान रहे होंगे। इनकम टैक्स लगे 80 वर्ष बीत चुके हैं। और इस दौरान देशवासियों कि इनकम लाखों गुना बढ़ी और उसी अनुपात में टैक्स भी। पर अंग्रेजी हुकूमत को नहीं पता था कि उनका लगाया टैक्स कभी एक तरह से शून्य भी कर दिया जाएगा। अभी 1 फरवरी को पेश बजट में सरकार ने 12 लाख तक की आय को कर मुक्त कर दिया है। हालांकि इसके गुणा- भाग को लेकर सदन से सडक़ तक बहस जारी है। उस वक्त के टैक्स स्लैब को अंग्रेजों के आदेश की यह दुर्लभ प्रति हमें इनकम टैक्स से ही एक अधिकारी रहे सुरेश मिश्रा ने शेयर की है।
शराब बनाने की छूट का लाभ किसे?
कई राज्यों, विशेष रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में आदिवासी समुदाय को महुआ से शराब बनाने की छूट दी गई है। सरकारें इसे उनकी परंपरा, रीति-रिवाज और सांस्कृतिक पहचान से जोडक़र इस पर रोक लगाने से बचती रही हैं। लेकिन इस छूट की आड़ में गैर आदिवासी महुआ शराब बनाकर धड़ल्ले से अवैध रूप से बेच रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में कई नेताओं और मंत्रियों ने महुआ शराब के उत्पादन को आदिवासी संस्कृति से जोड़ते हुए इसे जारी रखने का समर्थन किया है, जैसे पूर्व मंत्री कवासी लखमा। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इसे आदिवासी अधिकारों से जोड़ा था, पर इसे नियंत्रित करने के पक्षधर थे। भाजपा नेता ननकीराम कंवर, नंदकुमार साय आदिवासी समाज में शराबबंदी की पैरवी करते हैं।
मध्य प्रदेश में 2020 में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने पारंपरिक शराब को कानूनी मान्यता देने की घोषणा की थी। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने 2022 में महुआ लिकर को पारंपरिक मदिरा के रूप में मान्यता देने की योजना बनाई थी। झारखंड में भी इसे आदिवासी समुदाय के अधिकार के रूप में देखा गया है। लेकिन इन राज्यों में महुआ शराब को पारंपरिक उपयोग के नाम पर बनाए जाने की अनुमति इसके बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार को शह देती है। कई गैर-आदिवासी इलाकों में पुलिस तथा आबकारी विभाग की मिलीभगत से इसे बेचा जाता है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के लोफंदी गांव में हाल ही में महुआ शराब के सेवन से आठ लोगों की मौत हुई, जिन लोगों की अवैध महुआ शराब के निर्माण की बात आ रही है।
शराब के दूसरे फॉर्मेट की तरह महुआ शराब भी कम नुकसानदायक नहीं है। बल्कि, इसे बनाने के तरीके पर किसी भी तरह की निगरानी ही नहीं होती। बेचने के लिए बनाई जाने वाली कच्ची महुआ शराब में नशा बढ़ाने के लिए यूरिया खाद, तंबाकू और कीटनाशक दवा का उपयोग किया जाता है। तंबाकू में निकोटिन होता है, जो दिमाग और स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है, और सड़ाया गया महुआ पाचन तंत्र को नष्ट कर देता है। तंबाकू एवं महुए के रस से बना नशीला पेय पेट में अल्सर पैदा कर सकता है। अधिक तेज महुआ शराब आमाशय, छोटी और बड़ी आंत में छाले पैदा करती है, जिनसे खून की उल्टी होती है। आंतरिक अंगों को इतनी बुरी तरह नुकसान पहुंचाती है कि मौत हो जाती है। इधर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच एनीमिया एक बड़ी समस्या बनकर आई है। सरगुजा, बस्तर से आदिवासियों की मौत की खबर रक्त की कमी के कारण हो जाने की खबरें अक्सर आती रहती है। शराब रक्त अल्पता की एक बड़ी वजह है।
बिलासपुर जिले में हुई मौतों के पीछे विषाक्त हो चुकी शराब है या नहीं, इस पर प्रशासन ने अब तक कुछ भी साफ-साफ जवाब नहीं दिया है। पर इसके दुष्परिणाम तो जगजाहिर हैं। आबकारी और पुलिस की अवैध कमाई का जरिया बने इस धंधे को रोकना शायद तभी मुमकिन है, जब महुआ शराब पर दी गई छूट पर निगरानी बढ़ाई जाए, दुरुपयोग रोका जाए।
सडक़ पर बिखरे रंग-बिरंगे सपने
रायपुर की एक सडक़ पर यह गुब्बारा विक्रेता अपने दोपहिया वाहन पर ढेर सारे रंग-बिरंगे गुब्बारे लेकर जा रहा है। लाल, नीले और हरे गुब्बारों से भरा यह दृश्य जितना आकर्षक है, उतना ही यह व्यक्ति के संघर्ष और जीवटता का प्रतीक भी है। सडक़ पर संतुलन साधते हुए यह विक्रेता अपनी रोजी-रोटी की तलाश में निकला है, जो महानगर का रूप लेते शहर में आत्मनिर्भर छोटे व्यवसायियों की बढ़ती भूमिका को व्यक्त करता है। यह तस्वीर रोज़मर्रा की जद्दोजहद और सपनों को साकार करने की जिद बनकर उभरती है। भले ही उसका अपना जीवन अपनी आजीविका की चिंता से घिरा हो।
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जय जगन्नाथ
ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक को विधानसभा चुनाव में हराकर सुर्खियों में आए काटाभांजी के भाजपा विधायक लक्ष्मण बाग रायपुर नगर निगम चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों के प्रचार के लिए पहुंचे, तो विशेषकर उत्कल मोहल्लों में अच्छा स्वागत हुआ। लक्ष्मण बाग ने प्रचार की शुरूआत हाईप्रोफाइल वार्ड भगवतीचरण शुक्ल के उत्कल मोहल्लों से की। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर चुनाव मैदान में हैं।
बाग भाजपा प्रत्याशी अमर गिदवानी को साथ लेकर उत्कल मोहल्लों की तंग गलियों में घूमे, वो अपने साथ पूरी जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद लेकर आए थे, और हर घर में अपने हाथों से प्रसाद वितरित किया। लोग काफी भावुक हो गए और कई लोगों ने बाग का पैर धोकर आरती भी उतारी। बाग के साथ ओडिशा भाषी भाजपा नेता अमर बंसल, और विश्वदिनी पांडेय भी थे। बाग ने कुछ घंटों में ही वहां का माहौल एक तरह से बदल दिया। कांग्रेस के परंपरागत उत्कल मोहल्लों में जिस तरह भाजपा ने सेंध लगाई है, उससे ढेबर मुश्किल में पड़ गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चाँदी का शिवलिंग!!
रायपुर नगर निगम में चुनाव प्रचार खत्म होने के कुछ घंटे पहले शहर के बीचोंबीच के एक वार्ड के निर्दलीय प्रत्याशी ने जो कुछ किया उससे कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी हैरान रह गए हैं। निर्दलीय प्रत्याशी ने घर-घर जाकर चांदी का शिवलिंग दिया है। लोगों ने उत्साहपूर्वक इसको स्वीकार भी किया है।
वैसे भी इस वार्ड में पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुयायी निर्णायक भूमिका में है। ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी के शिवलिंग वितरण को एक मास्टर स्टोक माना जा रहा है। इससे पहले वर्ष 94 के वार्ड चुनाव को छोडक़र यहां से कांग्रेस या भाजपा से ही पार्षद बनते रहे हैं। मगर इस बार निर्दलीय ने दलीय प्रत्याशियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है।
रायपुर नगर निगम में करीब दर्जनभर वार्डों में निर्दलीय प्रत्याशी, कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों पर भारी दिख रहे हैं। वर्ष 2009 में सबसे ज्यादा 10 निर्दलीय पार्षद चुनकर आए थे। देखना है कि इस बार क्या होता है।
मतदाता सूची विश्लेषक की मांग
छत्तीसगढ़ में इस समय स्थानीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का माहौल है। शहर, गांव-गली सब तरफ चुनाव प्रचार तेज है। मगर, प्रचार में लगे किसी प्रत्याशी के लिए सिर्फ अपने इलाके की मतदाता सूची हासिल लेना पर्याप्त नहीं होता, उसे अपने इलाके की भौगोलिक सीमा, जातिगत, सामाजिक और पारिवारिक संरचना का भी अध्ययन करना पड़ता है। यह काम जटिल होता है। मगर चुनावी मार्केट में एक नया पेशा शुरू हो गया है, मतदाता सूची विश्लेषक' का। ये युवाओं के समूह होते हैं जिनका काम मतदाता सूची का अध्ययन करना ही होता है। यह टीम मतदाता सूची की छानबीन करके बताती है कि किस मोहल्ले में किस समुदाय, जाति के कितने वोट हैं, कौन किसके प्रभाव में वोट डाल सकता है और किस परिवार का वोट बैंक बड़ा और मजबूत है, वार्ड की सीमा किस गली से शुरू होकर किस गली में खत्म होती है, आदि।
जातीय समीकरण, रिश्तेदारी का गणित और प्रभावशाली मुखियाओं की पकड़ ही चुनावी सफलता का असली मंत्र है। प्रत्याशियों को इसके हिसाब से रणनीति तैयार करनी पड़ती है। पर वे खुद इस रिसर्च में समय नहीं गंवा सकते, इसलिए इन विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं, जो बाकायदा कीमत लेकर उन्हें वोटरों का एक स्पष्ट खाका तैयार करके दे रहे हैं। प्रमुख दलों के अलावा निर्दलीय भी इनसे सेवाएं ले रहे हैं। इस बार वोटर लिस्ट विश्लेषकों की बाजार में मांग इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि नामांकन से मतदान के बीच का समय कम मिला है। प्रत्याशियों को इन विश्लेषकों से मदद मिल रही है कि उनके संभावित वोटर कौन हैं और उन्हें साधने के लिए किन प्रभावशाली लोगों को अपने पक्ष में करना होगा।
वैसे इस मौके पर यह सवाल उठता है कि क्या चुनावी राजनीति जाति, बिरादरी का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है? क्या प्रत्याशी और मतदाता विकास कार्यों से ज्यादा ऐसे समीकरणों में ही उलझे रहेंगे?
यात्रियों का इंजन पर कब्जा
प्रयागराज महाकुंभ की आस्था की लहर ने रेलवे की व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण ट्रेनों में पैर रखने तक की जगह नहीं बची। हालात इतने बिगड़ गए कि लखनऊ जंक्शन पर जगह न मिलने से नाराज श्रद्धालु बरेली-प्रयागराज एक्सप्रेस के इंजन के सामने खड़े हो गए, जिससे लोको पायलट को मजबूर होकर ट्रेन रोकनी पड़ी। वाराणसी में तो स्थिति और गंभीर हो गई जब श्रद्धालुओं ने ट्रेन के इंजन पर ही कब्जा जमा लिया। जीआरपी को काफी मशक्कत करनी पड़ी, तब जाकर लोग नीचे उतरे। हरदोई में भी हालात बेकाबू हो गए। श्रद्धालुओं ने ट्रेन में प्रवेश न मिलने पर हंगामा खड़ा कर दिया और गुस्से में आकर कोचों में तोडफ़ोड़ कर दी। इधर शनिवार देर रात वाराणसी कैंट में करीब 1:30 बजे जब प्रयागराज जाने वाली ट्रेन पहुंची, तो उसमें पहले से ही इतनी भीड़ थी कि नए यात्रियों के लिए कोई जगह नहीं बची। ऐसे में 20 से अधिक श्रद्धालु इंजन में चढ़ गए और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। लोको पायलट के बार-बार कहने के बावजूद किसी ने दरवाजा नहीं खोला, जिसके बाद जीआरपी को बुलाना पड़ा। पुलिसकर्मियों ने जबरन यात्रियों को नीचे उतारा।
हरदोई में प्रयागराज जाने वाली ट्रेन जब प्लेटफॉर्म पर रुकी, तो अंदर बैठे श्रद्धालुओं ने दरवाजे नहीं खोले। कुछ नाराज यात्रियों ने तो गुस्से में ट्रेन पर पथराव तक कर दिया, जिससे कई शीशे टूट गए। इसके बाद भी दरवाजा नहीं खुला, करीब 2,000 श्रद्धालु स्टेशन पर ही छूट गए। बिलासपुर जोनल रेलवे की ओर से भी प्रयागराज के लिए लगातार नई ट्रेनों की घोषणा हो रही है, मगर जाहिर है कि यात्रियों की संख्या के लिहाज से ये काफी कम हैं।
(rajpathjanpath@gmail.com)
गीता की क़सम!
वैसे तो अदालतों में धार्मिक ग्रंथ गीता की शपथ लेते सुना, और देखा जा सकता है। मगर चुनाव में भी गीता की शपथ लेते देखा जा रहा है। रायपुर नगर निगम के एक वार्ड प्रत्याशी डॉ. विकास पाठक, लाल कपड़े में गीता लपेटकर घर-घर जा रहे हैं, और उनके सामने गीता की शपथ लेकर वार्ड की हर समस्याओं को हल करने का वादा कर रहे हैं। देश-प्रदेश में कई चुनाव हुए लेकिन पहली बार किसी प्रत्याशी को ऐसी शपथ लेते देखा गया।
पाठक कांग्रेस में थे पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी। इस पर वो पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में कूद गए हैं, और आज ही उन्हें निष्कासित किया गया। पाठक के चुनाव प्रचार के तौर तरीके की खूब चर्चा हो रही है। मगर मतदाता उन पर भरोसा करते हैं या नहीं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
जेल के बाद अब चुनाव प्रचार
रायपुर की धर्मसंसद में महात्मा गांधी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने, और राजद्रोह के आरोप में 95 दिन जेल में गुजारने वाले विवादास्पद कालीचरण महाराज की निकाय चुनाव में एंट्री हुई है। कालीचरण महाराज ने दो दिन पहले रायपुर के एक भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया।
कालीचरण महाराज के खिलाफ रायपुर में राजद्रोह का प्रकरण दर्ज हुआ था, और वो रायपुर के सेंट्रल जेल में थे। यहां रायपुर में उनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। इन्हीं में से एक भाजपा प्रत्याशी बद्री गुप्ता ने कालीचरण महाराज को चुुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित किया था। बद्री गुप्ता शहीद राजीव पांडे वार्ड से चुनाव लड़ रहे हैं।
कालीचरण महाराज ने दिन भर बद्री गुप्ता के साथ गली-मोहल्लों में भाजपा का प्रचार किया। उनका काफी स्वागत भी हुआ। उन्होंने हिन्दुत्व के लिए भाजपा को जिताने की अपील की। दिन भर प्रचार करने के बाद शाम को महाराष्ट्र चले गए। विवादास्पद कालीचरण महाराज का मतदाताओं पर कितना असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
कांग्रेस नेताओं के पोस्टर लिए निर्दलीय!!
अंबिकापुर नगर निगम के एक वार्ड में कांग्रेस आखिरी तक प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई। इस वार्ड को रफी अहमद किदवई वार्ड के नाम से जाना जाता है। यहां शत-प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, और कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। मगर आखिरी तक दावेदारों में सहमति नहीं बन पाई, और इस वजह से किसी को बी-फार्म जारी नहीं किया जा सका। खास बात यह है कि यहां आधा दर्जन प्रत्याशी चुनाव मैदान में है, जिनमें से दो निर्दलीय प्रत्याशी, टी.एस.सिंहदेव और मेयर प्रत्याशी डॉ.अजय तिर्की की तस्वीर लगाकर वोट मांग रहे हैं।
हु्आ यूं कि कांग्रेस ने अंबिकापुर नगर निगम को 8 जोन में बांट रखा है। इनमें से एक जोन के प्रभारी श्रम कल्याण बोर्ड के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद हैं। शफी अहमद के जोन के अंतर्गत रफी अहमद किदवई वार्ड आता है।
रफी अहमद किदवई वार्ड पिछड़ा वर्ग आरक्षित है। यहां से कांग्रेस के दावेदारों में पहले पिछड़ा वर्ग की सर्टिफिकेट को लेकर विवाद चलता रहा। बताते हैं कि शफी अहमद ने हसन पठान को प्रत्याशी बनाने की सिफारिश की थी, इसके अलावा सरफराज और रशीद पेंटर नामक दो और दावेदार थे।
बाकी दो दावेदार ने हसन को टिकट देने की खिलाफत कर रहे थे। पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस.सिंहदेव ने सभी दावेदारों से आपस में चर्चा कर नाम सुझाने के लिए कहा था लेकिन अंत तक सहमति नहीं बन पाई, आखिरकार यहां बी-फार्म किसी को जारी नहीं किया गया। अब दो निर्दलीय प्रत्याशी शाहिद और सरफराज, टी.एस. सिंहदेव की तस्वीर लगाकर वोट मांग रहे हैं। खास बात यह है कि इस वार्ड को भाजपा आज तक जीत नहीं पाई है। यहां इस बार भाजपा को कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी नहीं होने से थोड़ी उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। देखना है आगे क्या होता है।
सरकारी सिस्टम में छिपे कोचिये
राज्य में शराब को लेकर तीन अहम खबरें सामने हैं। सिमगा और बेमेतरा में पुलिस और आबकारी विभाग की कार्रवाई में करीब 1500 पेटी अवैध शराब जब्त की गई, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग एक करोड़ रुपये बताई जा रही है। पकड़ी गई शराब कथित तौर पर मध्यप्रदेश से तस्करी कर लाई गई थी।
दूसरी ओर, बिलासपुर के लोफंदी गांव में शराब पीने से 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 4 की हालत गंभीर बनी हुई है। आशंका जताई जा रही है कि यह जहरीली अवैध शराब थी।
तीसरी खबर प्रदेश के आबकारी विभाग की बैठक की है। सचिव ने चिंता जताई है कि सरकारी शराब दुकानों की बिक्री लक्ष्य से कम हो रही है। उन्होंने आने वाले दिनों में बिक्री बढ़ाने का निर्देश जारी कर दिया गया है।
पंचायत और नगरीय चुनाव को देखते हुए पुलिस और आबकारी विभाग लगातार छापेमारी कर रहे हैं। इसके बावजूद अवैध शराब का कारोबार जारी है। दिलचस्प बात यह है कि जहां तस्करी और अवैध शराब की खपत बढ़ रही है, वहीं सरकारी दुकानों की बिक्री घटती जा रही है। इसका सीधा मतलब है कि लोग सरकारी शराब का विकल्प तलाश रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी जान जोखिम में क्यों न डालनी पड़े।
सरकार जब शराब की कीमत बढ़ाती है, तो उसका मुनाफा भी बढऩा चाहिए। जब शराब की बिक्री ठेकेदारों के पास थी, तब कीमतों पर कुछ नियंत्रण था। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने शराब ठेका अपने हाथ में लेते हुए दावा किया था कि पृथ्वी पर कोचिए नजर नहीं आएंगे'। हकीकत यह है कि कोचिए अब भी सक्रिय हैं, तस्करी भी जारी है, बस इन्हें संरक्षण देने वाले चेहरे बदल गए हैं।
पहले शराब ठेकेदार आबकारी विभाग की मिलीभगत से अवैध कारोबार चलाते थे, लेकिन अब आबकारी अफसर और मैदानी कर्मचारी खुद इस पर नियंत्रण रख रहे हैं। हालिया छापों में यह सामने आया है कि अवैध शराब सिर्फ कोचियों के जरिए ही नहीं, बल्कि बार में भी महंगे ब्रांड के नाम पर तस्करी की शराब बेची जा रही है।
अगर सरकारी शराब दुकानों की बिक्री घट रही है और अवैध शराब व तस्करी बढ़ रही है, तो यह सरकार की नीति और क्रियान्वयन की विफलता है। ऐसे में महज बिक्री बढ़ाने का लक्ष्य तय करने से समस्या हल नहीं होगी। सरकार को यह समझना होगा कि लोग सरकारी दुकानों से शराब क्यों नहीं खरीद रहे? क्या कीमतें ज्यादा हैं? क्या गुणवत्ता को लेकर अविश्वास बढ़ रहा है? जब तक इन बिंदुओं पर मंथन नहीं होगा, तस्करी और अवैध शराब का कारोबार फलता-फूलता रहेगा।
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बड़े-बड़ों को छोटा-छोटा जिम्मा
नगरीय निकायों में भाजपा प्रत्याशी कई जगहों पर कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। इस तरह का फीडबैक मिलने के बाद पार्टी के क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, और पवन साय सरगुजा संभाग के दौरे पर निकले हैं। उन्होंने पहले चिरमिरी में पार्टी नेताओं के साथ बैठक की, और फिर अंबिकापुर जाकर पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। उन्होंने प्रदेश के पदाधिकारियों को एक-एक वार्ड की जिम्मेदारी भी दी है।
चिरमिरी में तो भाजपा के मेयर प्रत्याशी रामनरेश राय के लिए स्थानीय संगठन के नेता पूरी तरह एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। रामनरेश राय, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के करीबी माने जाते हैं। न सिर्फ चिरमिरी, बल्कि मनेन्द्रगढ़ नगर पालिका में भी भाजपा की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है। यहां पिछले दो चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। जामवाल, और साय ने जायसवाल व अन्य नेताओं के साथ मंत्रणा की, और आने वाले दिनों में प्रचार की रूपरेखा तैयार की, ताकि पार्टी के पक्ष में अनुकूल माहौल बन सके।
दूसरी तरफ, अंबिकापुर में प्रदेश पदाधिकारी अनुराग सिंहदेव, अखिलेश सोनी, और अन्य को एक-एक वार्ड का प्रभार गया है। उन्हें साफ तौर पर बता दिया गया है कि पार्टी प्रत्याशी उनके वार्डों से हारे, तो उनकी (प्रभारी) हार मानी जाएगी। जामवाल, और साय के तेवर का असर देखने को मिल रहा है, और स्थानीय प्रमुख नेता गलियों की खाक छानने को मजबूर हो गए हैं। चुनाव में क्या कुछ होता है, यह तो 15 तारीख को ही पता चलेगा।
चुनाव और फ्रिज-वाशिंग मशीन
रायपुर नगर निगम के कई वार्डों में पैसा पानी की तरह बह रहा है। कुछ जगहों पर निर्दलीय प्रत्याशी भी दिल खोलकर पैसा खर्च कर रहे हैं। इन सबके बीच कांग्रेस के एक दिग्गज वार्ड प्रत्याशी ने मतदाताओं को लुभाने के लिए स्कीम लॉन्च की है। कांग्रेस प्रत्याशी ने बल्क में वोट डलवाने वाले प्रमुख नेता को फ्रिज-वाशिंग मशीन गिफ्ट करने का वादा किया है। साथ ही हर मतदाता को दो हजार देने की बात कही है।
वार्ड प्रत्याशी के लिए चुनाव खर्च की कोई सीमा नहीं है। ऐसे में अभी से नगदी बंटना शुरू हो गया है। यही नहीं, कुछ जगहों पर वोट न करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। दरअसल, कई इलाकों के वोटर पार्टी विशेष के परम्परागत समर्थक माने जाते हैं। ऐसे वोटरों को रोकने के लिए प्रतिद्वंदी दल के लोग अभी से जुट गए हैं। विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत ग्रामीण इलाकों की तुलना में काफी कम रहा है। नगरीय निकाय चुनाव में मतदान का प्रतिशत क्या रहता है, इस पर निगाहें टिकी हुई है।
दवा घोटाले की जड़ें दूर तक
सीजीएमएससी में दवा खरीद घोटाले की पड़ताल चल रही है। सरकार की एजेंसी ईओडब्ल्यू-एसीबी ने घोटाले के प्रमुख सूत्रधार, और बड़े सप्लायर से रिमांड में लेकर पूछताछ कर रही है। जांच में तीन आईएएस अफसर भीम सिंह, चंद्रकांत वर्मा, और पद्मिनी भोई भी घेरे में आ गए हैं। चर्चा है कि देर सवेर सीजीएमएससी बोर्ड के लोग भी घेरे में आ सकते हैं। आठ साल पहले रमन सरकार ने सीजीएमएससी का गठन किया था। इसके माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, और सरकारी अस्पतालों के लिए दवा खरीद होती है। दिलचस्प बात यह है कि सीजीएमएससी से जुड़ी फाइलें शासन स्तर तक नहीं पहुंचती है। ये अलग बात है कि विभाग प्रमुख का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दखल रहता है।
पिछली सरकार में सीजीएमएससी बोर्ड का गठन किया गया था, और बोर्ड के अनुमोदन के बाद ही खरीदी होती रही है। बोर्ड में तत्कालीन विधायक डॉ. प्रीतम राम और डॉ. विनय जायसवाल प्रमुख सदस्य थे। अब जांच आगे बढ़ेगी, तो दोनों विधायकों तक पहुंच सकती है। विनय जायसवाल, खुद मेयर का चुनाव लड़ रहे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
न समारोह, न प्रचार, सीधे भुगतान
राज्य के किसानों का बोनस का इंतजार आखिरकार खत्म हो गया। धान बेचते समय उन्हें सिर्फ समर्थन मूल्य का भुगतान किया गया था, जिससे वे चिंतित थे कि बाकी रकम कब मिलेगी, मिलेगी भी या नहीं। यह आशंका बेवजह नहीं थी, क्योंकि इससे पहले डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में दो साल का बोनस रोक दिया गया था। माना गया था कि 2018 के चुनाव में भाजपा की हार का यह एक बड़ा कारण था।
इसी को ध्यान में रखते हुए 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने न सिर्फ 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी का वादा किया, बल्कि रुका हुआ बोनस देने की भी घोषणा की थी। सरकार बनते ही सुशासन दिवस पर 25 दिसंबर 2023 को यह बकाया राशि दे दी गई।
इस बार भी धान खरीदी के दौरान किसानों की चिंता बनी हुई थी, जो फरवरी के पहले सप्ताह में खत्म हो गई है। सरकार ने वादे के मुताबिक 800 रुपये प्रति क्विंटल की अतिरिक्त राशि किसानों के खातों में पहुंचने लगी है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि इस बार किसानों को बोनस देने के लिए किसी तरह का समारोह नहीं रखा गया। कांग्रेस सरकार के समय राजीव गांधी किसान न्याय योजना के भुगतान पर बड़े आयोजन होते थे, जबकि 2023 में भाजपा सरकार ने भी सुशासन दिवस पर ऐसा किया था। इस बार चुनाव आचार संहिता लागू होने की वजह से ऐसा न हुआ हो, लेकिन किसानों को इससे खास फर्क नहीं पड़ता।
राशि खाते में पहुंचने से किसानों में खुशी है। संयोग यह है कि जल्द ही जिला पंचायत चुनावों का मतदान होने वाला है। ऐसे में बोनस की यह रकम कुछ न कुछ असर जरूर डालेगी।
निमंत्रण में छिपा खतरा
ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने के लिए हर वक्त अलर्ट रहना जरूरी हो गया है। पुलिस और बैंक लगातार सतर्क रहने की सलाह देते हैं, लेकिन ठग हर दिन नया तरीका ढूंढ निकालते हैं। वे इस बात की गहरी रिसर्च करते हैं कि किस तरह के ट्रेंड चल रहे हैं, ताकि उसी बहाने लोगों को जाल में फंसाया जा सके।
आजकल शादी-ब्याह के निमंत्रण वाट्सएप पर भेजने का चलन बढ़ गया है। इन्हें आकर्षक बनाने के लिए वीडियो फाइल भी शेयर की जाती हैं। लेकिन अगर आप बिना सोचे-समझे ऐसी किसी फाइल को खोलते हैं, तो ठगी के शिकार हो सकते हैं।
रायपुर पुलिस के पास ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं, जिनमें शादी का निमंत्रण भेजने के बहाने लोगों को ठगा गया। इसको देखते हुए पुलिस ने आम जनता को सतर्क रहने की सलाह दी है। चाहे वह शादी-ब्याह, बर्थ डे के निमंत्रण के आमंत्रण ही क्यों न हों, अनजान लिंक और फाइल खोलने से पहले पूरी जांच करें, वरना साइबर ठगों के जाल में फंस सकते हैं।
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चुनाव प्रचार में शिवजी !!
नगरीय निकाय चुनाव के बीच कांकेर में पंडित प्रदीप मिश्रा का शिव महापुराण की कथा चल रही है। कथा में भारी भीड़ उमड़ रही है। खास बात ये है कि कांकेर जिले में पिछले कई चुनावों में भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया था। कांकेर नगर पालिका अध्यक्ष का पद तो भाजपा पिछले 25 साल से नहीं जीत पाई है। इस बार भाजपा यहां चुनाव जीतेगी या नहीं, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।
चुनाव प्रचार की शुरूआत में कांग्रेस बेहतर स्थिति में रही है। वजह यह है कि निकाय-पंचायतों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी रखने के खिलाफ समूचे बस्तर में सर्व पिछड़ा समाज का बड़ा आंदोलन हुआ था। आंदोलन का केन्द्र बिन्दु कांकेर जिला मुख्यालय रहा है। इसके अलावा ईसाई, और मुस्लिम वोटर भी कांकेर में अच्छी खासी संख्या में हैं। ये कोर वोटर माने जाते हैं।
इससे परे भाजपा ने पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए अनारक्षित कांकेर नगर पालिका अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग से प्रत्याशी दिए हैं। इन सबके बीच शिवमहापुराण कथा सुनने के लिए जिस तरह लोगों की भीड़ उमड़ी है, उससे भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। कुल मिलाकर यहां पार्टी हिन्दुत्व कार्ड खेल रही है। शुक्रवार को कथा का समापन होगा। इसके चार दिन बाद मतदान है। तब माहौल भाजपा के पक्ष में रहेगा या नहीं, यह तो 15 तारीख को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
छोटा चुनाव हाई प्रोफाइल
सीएम विष्णुदेव साय के विधानसभा क्षेत्र की कुनकुरी नगर पंचायत में कांग्रेस ने ताकत झोंक दी है। नगर पंचायत इलाके में मतांतरित आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। यही वजह है कि कांग्रेस यहां विशेष रूप से ध्यान दे रही है। कांग्रेस ने नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर युवक कांग्रेस नेता विनयशील को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि भाजपा ने सुदबल यादव को टिकट दी है।
कांग्रेस यहां चुनाव जीतकर प्रदेश में एक मैसेज देने की कोशिश में जुटी हुई है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने कुनकुरी में चुनावी सभा लेकर माहौल बनाने की कोशिश की है। मगर सामाजिक समीकरण अनुकूल होने के बाद भी कांग्रेस की राह कठिन हो गई है। वजह यह है कि सीएम के इलाके में पिछले 13 महीने में काफी काम हुए हैं। सीएम खुद एक बार सभा लेकर जा चुके हैं। यहां भाजपा प्रत्याशी के चुनाव प्रचार की कमान सीएम की पत्नी कौशल्या साय ने संभाल रखी है।
सीएम की पत्नी जनपद की पदाधिकारी भी रह चुकी हैं। लिहाजा, इलाके के लोग उनसे परिचित भी हैं, और वो जहां भी प्रचार के लिए जा रही हैं, उनके साथ सेल्फी लेने के लिए महिला-युवाओं की भीड़ जमा हो जा रही है। कुल मिलाकर छोटे से नगर पंचायत में चुनावी मुकाबला हाई प्रोफाइल हो गया है।
पत्रकार की हत्या पर संसद में चर्चा'
बस्तर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का मामला संसद में उठा। आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने लोकसभा में देशभर में दलितों, आदिवासियों और सच बोलने का साहस रखने वालों पर बढ़ते अत्याचार का मुद्दा उठाया। वे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपनी पार्टी की ओर से वक्तव्य दे रहे थे।
आजाद ने कहा कि पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। मुकेश चंद्राकर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके कारण उनकी हत्या कर दी गई। ऐसी स्थिति में कौन पत्रकार ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाएगा?
आजाद उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से सांसद हैं, लेकिन उन्होंने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों में हुई अत्याचार की घटनाओं का भी अपने भाषण में जिक्र किया।
बलौदाबाजार उपद्रव को लेकर उनकी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं पर पुलिस-प्रशासन ने कार्रवाई की है। छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान सांसद आजाद ने आरोप लगाया कि इस मामले की आड़ में दलित और पिछड़े समाज के निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तीसरी सबसे प्रभावी राजनीतिक ताकत रही है, लेकिन पिछले दो चुनावों में उसका जनाधार कमजोर हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा के दो विधायक चुने गए थे, लेकिन इस बार 2023 में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। उत्तर प्रदेश में भी 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली। इन परिस्थितियों में बहुजन समाज पार्टी से जुड़े लोग चंद्रशेखर आजाद को मायावती के संभावित विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में जब बसपा ने अपना आधार बढ़ाया था, तब पिछड़ा वर्ग भी उसके साथ था। संसद में अपने भाषण के दौरान आजाद ने ओबीसी के लिए क्रिमीलेयर की व्यवस्था समाप्त करने की भी मांग रखी।
इन सभी पहलुओं को देखते हुए यह साफ दिखाई देता है कि चंद्रशेखर आजाद की नजर बसपा के पारंपरिक वोट बैंक पर है और आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है।
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नेता हवा में, उम्मीदवार मिट्टी में
कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के लिए एक हेलीकॉप्टर किराए पर लिया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल हेलीकॉप्टर से प्रचार के लिए प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जा रहे हैं। ये अलग बात है कि विशेषकर पार्टी के वार्ड प्रत्याशी संसाधनों की कमी का रोना रो रहे हैं, और उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मेयर प्रत्याशियों पर छोड़ दिया गया है।
वार्ड प्रत्याशियों को संसाधन मुहैया कराना एक तरह से मेयर प्रत्याशियों की मजबूरी भी है। वजह यह है कि वार्ड प्रत्याशी मजबूत होंगे, तो इसका फायदा मेयर प्रत्याशियों को मिलेगा। वैसे भी समय कम रह गए हैं, और हर गली-मोहल्ले तक मेयर प्रत्याशी का पहुंच पाना संभव नहीं है। इससे परे कई जगहों पर कई वार्डों में निर्दलीय भी मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। इनमें से ज्यादातर कांग्रेस के ही बागी हैं। ऐसे में मेयर प्रत्याशी निर्दलीयों का साथ लेने की भी कोशिश कर रहे हैं। देखना है कि कांग्रेस के मेयर प्रत्याशियों को इसका कितना फायदा मिलता है।
54 विभाग, अवर सचिव, एसओ दोगुने
सोमवार को मंत्रालय कैडर में हुए अवर सचिवों की पदोन्नति के बाद यही स्थिति हो गई है । विभागों में डेढ़ दो गुने से अधिक अवर सचिव अनुभाग अधिकारी हो गए हैं । अब जीएडी के पास समस्या यह आ खड़ी हुई है कि इन्हें कौन सा काम दिया जाए या बैठे बिठाए जीएडी पूल में रिजर्व रखकर वेतन दिया जाए। पूरी सरकार 54 विभागों से चलती है। और उसे गवर्नमेंट बिजनेस रूल के हिसाब से अवर सचिव ही संचालित करते हैं, आईएएस या अन्य नहीं।
राज्य मंत्रालय में सांख्येत्तर पद लेकर धड़ाधड़ पदोन्नति तो दे दी गई या ले ली गई । लेकिन अब सभी पदोन्नति के समक्ष काम का संकट आ खड़ा हुआ है। खासकर इस अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी कैडर में। कैडर में अवर सचिव के 52 पहले से कार्यरत हैं और अब परसों 21 और बना दिए गए ।
विभाग हैं 54। अब जीएडी इनके लिए काम की तलाश कर रहा है। क्योंकि लोनिवि,पीएचई,वन,ऊर्जा, कृषि जैसे तकनीकी विभागों में उनके मूल कैडर के भी अवर सचिव तकनीकी सेक्शन सम्भाल रहे हैं । तो कई विभागों में डिप्टी कलेक्टर अवर सचिव बन बैठें हैं। उन्हें बाहर कर मंत्रालय कैडर के इन नए नवेलों को नियुक्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि बहुतेरे मैट्रिकुलेट और तकनीकी ज्ञान से मामले में जीरों होते हैं।
ऐसे में इन्हें रिजर्व पूल में रखकर, हर रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति देने के अलावा विकल्प नहीं हैं। तब तक ये रोज आफिस आकर बिना काम के रोजी पकाएंगे। जैसे कलेक्टरों को बिना विभाग के मंत्रालय में पदस्थ करने की परंपरा पिछली सरकार से चली आ रही। हालांकि यह भी बताया गया है कि कुछ को लूप लाइन में डालने के लिए संस्कृति प्रकोष्ठ, एनआरआई सेल उपयुक्त माने जा रहे हैं। 21 लोगों के अवर सचिव बनने के बाद दूसरा संकट अनुभाग अधिकारियों का आ खड़ा हुआ है। यह कैडर भी ओवर लोडेड है।
विभागों से लगभग दोगुने 97 पहले से कार्यरत हैं और 6 माह पहले पदोन्नत डेढ़ दर्जन और हो गए। और अब एसओ से अवर सचिव बनने से एकाएक 18 विभाग बिना एसओ के हो गए हैं। अब भला, अवर सचिव बनने के बाद इनसे एसओ का काम तो नहीं लिया जा सकता। ऐसे में इनकी पूर्ति के लिए नीचे के ग्रेड 1 बाबूओं को भी समयपूर्व पदोन्नति देनी होगी। यानी 6 माह में दूसरा प्रमोशन। और उधर सरकार के कुछ विभागों का मैदानी अमला बिना प्रमोशन के रिटायर होने मजबूर किया जाता है।
महंत का निशाना किस पर?
नगरीय निकाय चुनाव के प्रचार के बीच नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत के बयान से पार्टी के भीतर खलबली मची है। डॉ. महंत ने कह दिया है कि कांग्रेस विधानसभा का चुनाव पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव की अगुवाई में लड़ेगी। नेता प्रतिपक्ष ने एक तरह से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की तरफ इशारा किया है। हालांकि सिंहदेव ने महंत के बयान से पल्ला झाड़ा है, और कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है। और बदलाव का कोई भी फैसला हाईकमान लेता है।
महंत, पार्टी के सबसे अनुभवी नेता हैं। उनके बयान के मायने तलाशे जा रहे हैं। कई लोग पीसीसी में बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को बदला जा सकता है। दरअसल, बैज को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी, ताकि वो चुनाव प्रचार में पूरा समय दे सकें, मगर वो खुद अडक़र विधानसभा चुनाव लड़ गए, और हार गए। विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। कोरबा को छोडक़र बाकी सारी लोकसभा सीटें पार्टी हार गई।
इधर, नगरीय निकाय चुनाव में भी पार्टी के आसार अच्छे नहीं दिख रहे हैं। टिकट वितरण में गड़बड़ी सामने आई है। कई जगहों पर बैज का पुतला फूंका गया है। पहली बार ऐसा हुआ है जब एक नगर पंचायत अध्यक्ष समेत 33 वार्डों में भाजपा प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए हैं। इसके लिए भी प्रदेश कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन में जिम्मेदार माना जा रहा है। चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट भी खफा हैं। ऐसे में महंत के बयान के बाद बैज के भविष्य को लेकर हल्ला उड़ा है, और बदलाव की बात कही जा रही है, तो वह बेवजह नहीं है।
सरकारी अस्पताल निजी हाथों में?
पिछले वर्ष नवंबर में बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक में लिए गए निर्णय के परिपालन में राज्य सरकार ने यहां के 240-बेड वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का संचालन स्वयं करने के बजाय नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएमडीसी) को सौंप दिया। यह अस्पताल केंद्र सरकार की योजना के तहत बनाया गया है, जिसमें राज्य सरकार ने भी 40 प्रतिशत खर्च वहन किया है। राज्य सरकार ने इसे एनएमडीसी को इस विश्वास के साथ सौंपा कि एक केंद्रीय उपक्रम के पास होने से इसका बेहतर प्रबंधन होगा। अब स्थिति यह है कि एनएमडीसी ने स्वयं इसे संचालित करने के बजाय निजी कंपनियों के लिए टेंडर जारी कर दिया है। यानी, संचालन और मेंटेनेंस अब निजी हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया में है। इस टेंडर को लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नगरनार प्लांट की स्थापना के समय एनएमडीसी ने बस्तर के आदिवासियों और गरीब तबके के लिए एक आधुनिक अस्पताल स्थापित करने का आश्वासन दिया था। जिला प्रशासन ने इसके लिए जमीन भी आवंटित कर दी थी, लेकिन दो दशक बीत जाने के बावजूद यह अस्पताल धरातल पर नहीं उतर सका। जो एनएमडीसी, जो एक नया अस्पताल समय पर नहीं बना सकी, उसे एक बड़े सेटअप वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल को संचालित करने की जिम्मेदारी दे दी गई।
सरकार और एनएमडीसी भले ही यह दावा कर रहे हैं कि निजी हाथों में संचालन जाने के बावजूद मुफ्त इलाज की सुविधा बरकरार रहेगी, लेकिन स्थानीय लोगों में संशय बना हुआ है। इधर, बिलासपुर के समीप कोनी में एक मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल की इमारत बनकर तैयार हो चुकी है। मार्च 2023 में उसका औपचारिक उद्घाटन किया गया, मगर एक वर्ष बीतने के बावजूद अब तक वहां ओपीडी से अधिक सुविधा शुरू नहीं हो पाई हैं। करोड़ों की मशीनें धूल खा रही हैं, स्टाफ और तकनीकी विशेषज्ञों की भर्ती पूरी नहीं हुई है।
सरकार पहले ही विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए निजी अस्पतालों के साथ अनुबंध करती आ रही है, अब अरबों रुपये खर्च कर बनाए गए अपने ही अस्पतालों को चलाने से पीछे हट रही है? यदि यही सिलसिला चल निकला तो सरकारी अस्पतालों का भविष्य क्या होगा?
गर्मी की मिठास तैयार हो रही
छत्तीसगढ़ की नदियां केवल जल संसाधन ही नहीं, बल्कि किसानों के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण साधन भी हैं। खासतौर पर गर्मी के मौसम में महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, खारून और हसदेव जैसी प्रमुख नदियों के किनारे किसान बड़े पैमाने पर वाटरमेलन (कलिंदर) की खेती करते हैं।
जनवरी से फरवरी के बीच बुवाई करने वाले किसान अप्रैल-मई तक अच्छी उपज प्राप्त कर लेते हैं। कलिंदर की मांग गर्मी में अत्यधिक बढऩे से यह नकदी फसल के रूप में किसानों को अच्छा लाभ देती है।
नदी तटों पर इस खेती के लिए सिंचाई और उर्वरक की कम आवश्यकता होती है क्योंकि मिट्टी में नमी बनी रहती है। तरबूज की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें तापमान 25 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच हो। अकेले महासमुंद जिले में लगभग एक हजार एकड़ में तरबूज की खेती की जाती है, और इसकी मांग कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भी है। मगर, छत्तीसगढ़ में भी दूसरे राज्यों से अलग वैरायटी के कलिंदर आ रहे हैं, जो आकार में छोटे व सस्ते भी हैं। हालांकि, जल स्तर में गिरावट और अवैध रेत उत्खनन से यह खेती प्रभावित हो रही है। नदियों को संरक्षित और और खेती को प्रोत्साहित किया जाए, तो यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अधिक सशक्त बना सकती है। यह तस्वीर कसडोल के पास महानदी की है, जिसमें जहां तक नजर जा रही है, कलिंदर की खेती दिखाई दे रही है।
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...और तीरथ करने भेजा
बाड़ ही जब खेत चरने लग जाए तो रखवाली कौन करे, यह कहावत कांग्रेस नेताओं पर फिट बैठती दिख रही है। प्रदेश में कई जगहों पर कांग्रेस नेताओं पर टिकट बेचने के आरोप लग रहे हैं, और कोरबा में तो प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का पुतला भी फूंका गया। इस बार नगरीय निकायों के 33 कांग्रेस के वार्ड प्रत्याशियों ने चुपचाप नामांकन वापस लिए, तो कई चौंकाने वाली जानकारी छनकर सामने आ रही है।
सुनते हैं कि बसना के नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी को बिठाने में कांग्रेस के एक स्थानीय प्रमुख नेता ने भूमिका निभाई है। यह बात छनकर सामने आई है कि भाजपा के चुनाव प्रबंधकों ने पहले चुपचाप दो निर्दलीय प्रत्याशियों के नामांकन वापस करा लिए। इसके बाद आम आदमी पार्टी, और बसपा प्रत्याशी पर डोरे डाले।
दोनों दलों के प्रत्याशियों ने भी सरेंडर कर दिया। भाजपा के प्रबंधक पहले ही एक स्थानीय दिग्गज कांग्रेस नेता के संपर्क में थे, और ये वो नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभाई थी।
बताते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी तो पहले चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं थीं, लेकिन किसी तरह समझाइश देकर उन्हें नामांकन दाखिल करा दिया गया। और आखिरी क्षणों में महिला प्रत्याशी से नामांकन वापस कराकर पति के साथ उन्हें तीर्थाटन के लिए भेज दिया गया। भाजपा प्रत्याशी डॉ. खुशबू अग्रवाल निर्विरोध निर्वाचित हुई है।
नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अंतागढ़ उपचुनाव की याद ताजा की है। तरीके भी वही थे, और लेनदेन भी उसी अंदाज में हुआ है। मगर फिलहाल इसके कोई पुख्ता सुबूत सामने नहीं आए हैं। ये अलग बात है कि बसना नगर में हर किसी की जुबान में लेनदेन की चर्चा है। देर सबेर यह मामला गरमाएगा। देखना है आगे क्या होता है।
निर्दलियों के आसार दिख रहे
रायपुर नगर निगम में इस बार वर्ष-2009 के चुनाव की तरह बड़े पैमाने पर निर्दलीय चुनाव जीतकर आ सकते हैं। कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक बागी चुनाव मैदान में हैं, जिनकी स्थिति फिलहाल मजबूत दिख रही है। न सिर्फ रायपुर बल्कि कई निकायों में बागी बेहतर दिख रहे हैं। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की समस्या है।
कांग्रेस ने इस चुनाव में प्रत्याशी की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर टिकट बांटी है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि कई जगहों पर स्थानीय कार्यकर्ता पार्टी के बागी प्रत्याशियों का साथ दे रहे हैं। वर्ष-2009 के निकाय चुनाव में रायपुर में 10 निर्दलीय पार्षद चुनकर आए थे। इस बार भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति बन सकती है। न सिर्फ रायपुर बल्कि अंबिकापुर, दुर्ग, और नांदगांव में भी कांग्रेस के कई निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत दिख रही है।
भाजपा में भी अंबिकापुर, और कई निकायों में निर्दलीय प्रत्याशी मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। फिर भी भाजपा ने काफी हद तक अपने बागियों को मनाने में कामयाब रही है। अब आगे क्या होता है, यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
पहलवानों की अगली पीढ़ी अखाड़े में
आखिरकार पूर्व केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह की बेटी मोनिका सिंह ने सूरजपुर जिले की जिला पंचायत सदस्य क्रमांक-15 से नामांकन भर दिया है। मोनिका भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने नामांकन दाखिले के दौरान जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया।
रेणुका सिंह भरतपुर-सोनहत सीट से विधायक हैं। जबकि मोनिका अपनी मां के पुराने विधानसभा क्षेत्र प्रेमनगर के क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं। बताते हंै कि रेणुका सिंह ने अपनी बेटी को अधिकृत प्रत्याशी घोषित करने के लिए स्थानीय प्रमुख नेताओं से चर्चा भी की थी। मगर विधायक भुवन सिंह मरावी इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने बागी तेवर दिखा दिए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इसी क्षेत्र से सतवंत सिंह चुनाव मैदान में हैं, जो कि दिवंगत कांग्रेस नेता तुलेश्वर सिंह के बेटे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में रेणुका सिंह, और तुलेश्वर सिंह आपस में टकराते रहे हैं। उनकी राजनीतिक अदावत चर्चा में रही है। अब दूसरी पीढ़ी के सदस्य आपस में भिड़ रहे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
नैक घोटाले पर सीबीआई की चोट
1994 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता जांचने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) की स्थापना की। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था को तय मानकों पर परखना था, ताकि बेहतर प्रदर्शन करने वाले संस्थानों को अधिक अनुदान मिल सके। इससे न केवल शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, बल्कि छात्रों को भी सही कॉलेज चुनने में सहूलियत मिली।
शुरुआत में नैक मूल्यांकन के लिए चार मापदंड थे, जिन्हें 2022 में बढ़ाकर आठ कर दिया गया। इसमें शिक्षण सुविधाएं, शिक्षकों का शोध कार्य, परीक्षा परिणाम, आधारभूत ढांचा, वेतन व्यवस्था, छात्र सुविधाएं और संपूर्ण शैक्षणिक वातावरण शामिल थे। नैक की टीम इन सभी पहलुओं का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार करती और संस्थान को सीजीपीए के आधार पर ग्रेड देती थी। नैक टीम में विशेषज्ञों और अनुभवी प्रोफेसरों को शामिल कर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की कोशिश की गई।
मगर, समय के साथ नैक प्रणाली में गड़बडिय़ां शुरू हो गईं। कई कॉलेज और विश्वविद्यालय अच्छे ग्रेड के लिए जोड़तोड़ में लग गए। फर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर, दिखावटी फैकल्टी, औपचारिकतावश एल्युमनी गठन और महज कागजों में लाइब्रेरी निर्माण जैसे हथकंडे अपनाए जाने लगे। इससे कई ऐसे निजी संस्थान ए-प्लस और ए-प्लस-प्लस ग्रेड पाने में सफल हो गए, जिनकी शैक्षणिक गुणवत्ता संदिग्ध थी। इस उच्च ग्रेडेशन के कारण उन्हें यूजीसी से अधिक फंड मिलने लगा और वे इसका फायदा उठाकर एडमिशन फीस भी बढ़ाने लगे।
हाल ही में सीबीआई ने देशभर में छापेमारी कर एक दर्जन से अधिक प्रोफेसरों को गिरफ्तार किया है। इन पर आरोप है कि इन्होंने कॉलेज और विश्वविद्यालय संचालकों से मोटी रिश्वत लेकर ग्रेडेशन बांटे। इस घोटाले में छत्तीसगढ़ का नाम भी सामने है। अटल बिहारी विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक और नैक इंस्पेक्शन टीम के चेयरमैन रहे समरेंद्र नाथ साहा को बिलासपुर के कोनी स्थित उनके निवास से गिरफ्तार किया गया। वर्तमान में वे एक निजी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।
इधर, यूजीसी ने जनवरी 2024 में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सुझाव पर नैक ग्रेडेशन प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय ले लिया। सत्र 2025-26 से शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन एक प्रोफॉर्मा भरना होगा, जिसमें वे अपनी सुविधाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी की जानकारी देंगे। ग्रेडेशन के बजाय अब संस्थानों को एक से पांच तक का लेवल दिया जाएगा। यहां तक कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को भी आकलन की इस नई प्रक्रिया से गुजरना होगा।
सीबीआई की यह कार्रवाई तब हुई जब नैक प्रणाली पहले ही खत्म की जा चुकी है। शायद घोटाले में शामिल लोग यह सोचकर निश्चिंत हो गए थे कि अब उनके द्वारा दिए गए ग्रेड की जांच नहीं होगी। लेकिन जांच एजेंसी ने पुरानी फाइलें खोल दी हैं। अब देखना है कि आगे किन-किन लोगों पर शिकंजा कसेगा, क्योंकि खबरों के अनुसार कई और प्रोफेसर और रिश्वत देने वाले विश्वविद्यालय, कॉलेजों के अधिकारी जांच के दायरे में हैं।
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बारातियों जैसे मजे
नगरीय निकायों में प्रत्याशियों का प्रचार अब रफ्तार पकड़ रहा है। रायपुर नगर निगम में तो कई निर्दलीय प्रत्याशी प्रचार के मामले में भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों से आगे नजर आ रहे हैं। शहर के बीचों-बीच एक वार्ड में निर्दलीय प्रत्याशी को फूलगोभी चुनाव चिन्ह मिला है।
पिछले दो दिनों में निर्दलीय प्रत्याशी ने अपने वार्ड के हर घर में दो-दो फूलगोभी भिजवा दी है। वो अब तक दो टन फूलगोभी बांट चुके हैं। सब्जी के बहाने प्रचार भी हो गया है। आखिरी के दो तीन दिनों में कुछ इसी तरह फूलगोभी बंटवाने का प्लान है।
प्रत्याशी की सोच है कि मतदाताओं को चुनाव चिन्ह याद रहेगा, और वो चुनाव जीत जाएंगे। इससे परे वार्ड के एक अन्य निर्दलीय प्रत्याशी को चुनाव चिन्ह गुब्बारा मिला हुआ है, और वो चुनाव चिन्ह हर घर तक पहुंचाने के लिए गली मोहल्लों में गुब्बारे उड़वा रहे हैं।
इसी तरह रायपुर दक्षिण की हाईप्रोफाइल वार्ड में एक दिग्गज प्रत्याशी की तरफ से बस्तियों में सुबह नाश्ते से लेकर लंच, और डिनर तक की व्यवस्था की गई है। प्रत्याशी की तरफ से सारी सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है, और बस्ती के लोग रोज पार्टी कर रहे हैं। चुनाव के चलते हर गली मोहल्ले में कुछ नया हो रहा है। प्रत्याशियों को इसका कितना फायदा मिलता है, यह चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
वोटर लिस्ट की उलझन
निगम चुनाव इस बार वार्डों के नए परिसीमन के तहत हो रहे है। इससे वार्डों का पूरा एरिया बदल गया है। उदाहरण स्वरूप पिछले चुनाव में जिसने टिकरापारा में वोट डाला था अब वो भाठागांव में डालेगा। और बहुतों को अब तक पता भी नहीं है कि उनका नाम किस वार्ड के वोटर लिस्ट में है। ऐसे में किसी बूथ में वार्ड का कौन कौन सा इलाका शामिल है उसकी सूचना देने यह सही उपाय हो सकता है। इसके बाद भी वोटर लिस्ट की गड़बड़ी से परेशानी तय है।
वोटिंग के दिन 11 फरवरी को मतदाताओं का भटकना और इसकी खीझ, झल्लाहट में वोट न डालकर घर लौटना भी तय है। वैसे भी बहुतायत वोटर मानते हैं कि चुनाव जीतने के बाद पार्षद काम करते नहीं, चक्कर कटवाते हैं और बिना पैसे के काम करते नहीं। निगम का अमला मल्टी पोस्ट ईवीएम के प्रचार में उलझा हुआ है तो पार्टियों के बूथ एजेंट, प्रत्याशियों के प्रचार में। देखना होगा कि वोटर की समस्या कैसे दूर होगी।
कोचिंग संस्थानों की बाढ़
बिलासपुर शहर का गांधी चौक इलाका छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए एक खास केंद्र बन गया है। इसे छत्तीसगढ़ का छोटा- मोटा नई दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर समझ सकते हैं। यहां कोचिंग संस्थानों, पुस्तकालयों, किराए के मकानों और छात्रों का नेटवर्क विकसित हो रहा है। यहां लगभग 30-35 कोचिंग संस्थान, उतने ही पुस्तकालय और किताब दुकानें हैं, जो आगे बढ़ते हुए दयालबंद इलाके से शहर की सीमा तक पहुंच गया है। शायद यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कोचिंग हब है। यहां आने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हजारों छात्र किराये के कमरों, हॉस्टलों, कोचिंग संस्थानों और लाइब्रेरियों के सहारे अपने भविष्य की दिशा तय कर रहे हैं। कोचिंग उद्योग के साथ ही इस इलाके में सहायक व्यवसायों की भी बाढ़ आ चुकी है।
हालांकि, इस तरह के कोचिंग हब में छात्रों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ उनकी सुरक्षा और सुविधाओं की बात भी उठती है। पिछले वर्ष दिल्ली के कोचिंग संस्थानों में बदइंतजामी के कारण तीन छात्रों की मौत हो गई थी। छात्रों की सुरक्षा, उनके रहने की स्थिति, और कोचिंग संस्थानों में सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करना प्रशासन और संस्थान संचालकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। गांधी चौक जैसे इलाकों में भीड़भाड़ और असुरक्षित परिस्थितियों के कारण छात्रों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि कमरों की कमी, असुरक्षित और अपंजीकृत हॉस्टल और कोचिंग सेंटर की कम जगह पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं की क्लास लेना। जिस तरह से मोटी फीस प्रतियोगी छात्रों से ली जा रही है, अधिकांश में उसके अनुरूप सुविधाएं भी नहीं हैं। यहां पर कोरबा, जांजगीर ही नहीं, रायपुर, भिलाई-दुर्ग तथा दूसरे राज्यों के ग्रामीण इलाकों के छात्र भी मिल जाएंगे। कोटा, नागपुर के कई नामी कोचिंग इंस्टीट्यूट ने भी बिलासपुर में अपने स्टडी सेंटर खोल दिए हैं। शहर के अलग-अलग छोर पर प्राइवेट लाइब्रेरी भी चल रही हैं। गांधी चौक का तेजी से उभरना शिक्षा क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत हो सकता है, लेकिन सवाल बना हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के लिए जरूरी व्यवस्थाएं और सुरक्षा इंतज़ाम कितने पुख्ता हैं? यहां के हॉस्टल और कोचिंग संस्थान अग्नि सुरक्षा, ट्रैफिक व्यवस्था आदि मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं? क्या मकान मालिक छात्रों को उचित रहने की सुविधा दे रहे हैं?
घूस देने वाला भी नपेगा!
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में हाईकोर्ट में ही नौकरी लगाने के नाम पर 7.5 लाख रुपये की धोखाधड़ी के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने निर्देश दिया कि रिश्वत देने वाले के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। अब कोरबा पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रिश्वत देने की शिकायत करने वाले संजय दास के खिलाफ भी अपराध दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 172, 173 और 174 के तहत रिश्वत देना और लेना दोनों गंभीर अपराध हैं, जिनमें अधिकतम सात साल तक की सजा का प्रावधान है। कोरबा के इस मामले में रिश्वत देने वाले आरोपी ने रकम सीधे बैंक खाते में जमा कराई और कुछ धनराशि मोबाइल वॉलेट के माध्यम से ट्रांसफर की। संभवत: उसने यह सावधानी इसलिए बरती ताकि रिश्वत का पुख्ता सबूत उसके पास मौजूद रहे और नौकरी का झांसा देने वाला व्यक्ति रकम लेने से इनकार न कर सके। लेकिन यही सबूत अब उसी के गले की फांस बन गया है।
छत्तीसगढ़ में नौकरी के नाम पर धोखाधड़ी के मामले लगातार सामने आते हैं। हालांकि कानून में स्पष्ट प्रावधान हैं, फिर भी अधिकांश मामलों में पुलिस केवल रिश्वत लेने वालों पर ही कार्रवाई करती है, देने वालों को नजरअंदाज कर देती है। कोरबा पुलिस ने हाईकोर्ट के निर्देश पर इस चिन्हित मामले में तो कार्रवाई कर दी, लेकिन अन्य मामलों का क्या? आमतौर पर लोग स्वेच्छा से रिश्वत देते हैं और जब काम नहीं बनता, तो पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंच जाते हैं। अगर हाईकोर्ट के आदेश का हर मामले में सख्ती से पालन हो, तो पुलिस का ही बोझ हल्का होगा। लोग भी रिश्वत देने से पहले कई बार सोचेंगे कि कानून का शिकंजा उन पर भी कस सकता है।
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राजनीति और दारू
नगरीय निकायों में चुनाव प्रचार धीरे-धीरे गरमा रहा है। कांग्रेस, और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का भी दौर चल रहा है। कुछ गड़े मुद्दे भी उछल रहे हैं। पिछले दिनों कवर्धा जिला कांग्रेस संगठन में शराब कारोबार से जुड़े शख्स को ऊंचा ओहदा दिया गया, तो पार्टी के अंदर खाने में काफी प्रतिक्रिया हुई। अब भाजपा को चुनाव प्रचार में एक मुद्दा मिल गया है, और इस मसले पर कांग्रेस को घेर रही है।
कवर्धा के विधायक, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने कवर्धा नगर पालिका के प्रत्याशियों के प्रचार में इस मुद्दे को अपने अलग ही अंदाज में उठाया। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने कवर्धा का ठेका एक दारू ठेकेदार को दे दिया है। हर बस्ती में नए लडक़ों को बिगाडऩे का काम चल रहा है। हास परिहास के बीच छत्तीसगढ़ी में उन्होंने कहा कि दारू ल देखते, तो हमर लइका मन भी ऐती-ओती हो जथे..।
विजय शर्मा यहीं नहीं रूके। उन्होंने पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर का नाम लिए बिना रह रहकर तीर छोड़े, और कहा कि रायपुर के नेता को यहां से प्रेम होता, तो यहां के लोगों के बारे में सोचते। उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछले पांच साल में कवर्धा में एक भी काम नहीं हुआ है। डिप्टी सीएम ने कहा कि कांग्रेस के लोग बिलासपुर मार्ग में पुलिया निर्माण को अपनी उपलब्धि गिनाते हैं, जिसकी मंजूरी डॉ. रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में दी थी। कुल मिलाकर स्थानीय चुनाव में स्थानीय मुद्दे प्रमुखता से उठ रहे हैं।
विभागीय मुखिया और सवाल
ईएनसी केके पिपरी रिटायर हो गए, और सरकार ने उनकी जगह विजय भतप्रहरी को ईएनसी का प्रभार दिया गया है। चर्चा है कि कुछ महीने पहले पिपरी को हटाने की कोशिशें हुई थी, तब वो छुट्टी मनाने विदेश गए थे। उन्हें हटाने की फाइल भी चल गई थी, लेकिन विभागीय मंत्री अरुण साव के हस्तक्षेप के बाद हटाने का प्रस्ताव रुक गया। अब जब भतप्रहरी को प्रभार दिया गया है, तो कई सवाल खड़े हो गए हैं।
विजय भतप्रहरी कई जांच से घिरे हैं। उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में भी केस दर्ज है। भतप्रहरी विभाग में ओएसडी के पद पर भी हैं। कई प्रमुख लोगों ने उन्हें ईएनसी का प्रभार देने पर अलग-अलग स्तरों पर शिकायत भी की है। इससे परे एसपी कश्यप जैसे कुछ सीनियर चीफ इंजीनियर ईएनसी बनने की लाइन में हैं। अभी निकाय चुनाव चल रहा है। चर्चा है कि चुनाव निपटने के बाद ईएनसी की पोस्टिंग के मसले पर कोई फैसला हो सकता है।
बेटी चुनें, या बहू ?
इस बार राजधानी निगम के चुनाव में दिलचस्प बात यह है कि तीनों प्रमुख मेयर प्रत्याशी मीनल चौबे, दीप्ति प्रमोद दुबे, और डॉ. शुभांगी तिवारी का ब्राह्मणपारा से ताल्लुक रहा है। मीनल ब्राम्हणपारा में पली-बढ़ी, और छात्रसंघ चुनाव से राजनीति में आई। विवाह के बाद वो चंगोराभाठा में शिफ्ट हो गईं । मीनल तीन बार पार्षद रही हैं। वो शहर जिला भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष के अलावा वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष का भी दायित्व संभाल रही हैं।
दूसरी तरफ, कांग्रेस प्रत्याशी दीप्ति प्रमोद दुबे मूलत: बेमेतरा की रहने वाली हैं। उनका सीधे राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा है। वो प्रमोद दुबे से विवाह के बाद ब्राह्मणपारा में शिफ्ट हुईं। दीप्ति, विशुद्ध रूप से घरेलू महिला रही हैं, और प्रमोद दुबे से विवाह के बाद जरूर सामाजिक कार्यक्रमों में नजर आती रही हैं।
इससे परे आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी डॉ. शुभांगी तिवारी भी रायपुर ब्राह्मणपारा की रहने वाली हैं। अपने माता-पिता की इकलौती संतान डॉ. शुभांगी तिवारी ने रायपुर एम्स से चिकित्सा की डिग्री हासिल की है। उनके माता-पिता कोटा में शिफ्ट हो गए, और फिर उनकी मां दो बार पार्षद रही हैं।
शुभांगी के पिता चंद्रशेखर तिवारी मंडी इंस्पेक्टर की नौकरी में आने से पहले भाजपा से जुड़े रहे हैं, और रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल व देवजी पटेल के करीबी रहे हैं। मगर बेटी ने भाजपा के बजाए आम आदमी पार्टी से राजनीति की शुरुआत की है। अब ब्राह्मणपारा के लोगों के वाट्सएप ग्रुप में चल रहा है कि बेटी चुने या बहू को।
शिथिल प्रशासन, मौज लेकर आया
चुनावों के दौरान कई लोगों को अस्थायी रोजगार मिल जाता है। वर्तमान में नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों की सरगर्मी तेज हो चुकी है। इस दौरान मतदाताओं से संपर्क करने, प्रचार सामग्री बांटने, माइक, बाइक, ऑटोरिक्शा से प्रचार करने और जुलूस-सभाओं में भाग लेने जैसे कार्यों के लिए बड़ी संख्या में लोग जुट जाते हैं। ये लोग केवल दैनिक भुगतान के आधार पर काम करते हैं, न तो इन्हें पार्टी कार्यकर्ता कहा जा सकता है, न ही इनसे किसी तरह की निष्ठा की अपेक्षा की जाती है। वे केवल मेहनत करते हैं और उसका पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।
हालांकि, यह तो चुनावी माहौल का एक छोटा लाभ है। असल फायदा उन लोगों को होता है, जो जानते हैं कि प्रशासनिक सख्ती चुनावों के दौरान शिथिल पड़ जाती है। कई जिलों से खबरें आ रही हैं कि रेत तस्करों की गतिविधियां बढ़ गई हैं, क्योंकि खनिज विभाग ने छापेमारी फिलहाल रोक दी है। इसी तरह, अवैध निर्माण कार्यों पर भी नगर निगम के इंजीनियरों की उदासीनता देखी जा रही है। कुछ स्थानों से यह भी सूचना मिल रही है कि अवैध प्लाटिंग कर चुनावी माहौल का फायदा उठाकर तेजी से बिक्री की जा रही है। छूट के ऑफर भी दिए जा रहे हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि ऐसे कार्यों में संलिप्त अधिकांश लोग किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं। प्रशासनिक अधिकारी जब इन अवैध गतिविधियों की शिकायतें पाते हैं, तो वे कार्रवाई से बचने के लिए यह तर्क देते हैं कि चुनाव के दौरान कोई भी कदम राजनीतिक रंग ले लेगा। इस बहाने जांच-पड़ताल और छापेमारी टाल दी गई है। अवैध कारोबारियों को खुली छूट मिल रही है।
चुनावी माहौल सिर्फ अस्थायी रोजगार नहीं लाता बल्कि कई अवैध गतिविधियों के लिए एक सुरक्षा कवच भी है।
और बदल लिया इरादा...
चित्रकूट वाटरफॉल में एक जनाब ब्रेकअप के सदमे में जिंदगी खत्म करने चले थे, लेकिन जैसे ही पानी में कूदे, हकीकत का एहसास हुआ! मौत सामने दिखी तो दिल की सारी उलझनें हवा हो गईं। और जैसे ही एक नाव पास आई, जान बचाने के लिए फटाफट चढ़ गए!
जिंदगी किसी एक मोड़ पर रुकती नहीं, तकलीफें आती हैं, मगर उनका हल खुद को खत्म करना नहीं होता। जो आज दर्द लग रहा है, वही कल आपको और मजबूत बना सकता है। अगर कोई तकलीफ में है, तो अकेले मत रहिए। अपने दोस्तों, परिवार या किसी मददगार से बात कीजिए। हर अंधेरे के बाद सवेरा जरूर आता है!
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इस बार कई मंतूराम!
नगरीय निकाय चुनाव में करीब एक नगर पंचायत अध्यक्ष समेत करीब 30 भाजपा पार्षदों का निर्विरोध निर्वाचन तय हो गया है। इनके खिलाफ कोई और प्रत्याशी मैदान में नहीं है। धमतरी में कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी का नामांकन निरस्त होने के बाद भाजपा प्रत्याशी की जीत आसान हो गई है।
राज्य बनने के बाद निकाय चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में निर्विरोध निर्वाचन नहीं हुआ। इसके लिए कांग्रेस नेताओं के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पार्टी ने आपाधापी में प्रत्याशी घोषित किए, और जिन जगहों पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने नाम वापिस लिए हैं वहां लेन-देन की चर्चा हो रही है।
धमतरी में तो मेयर प्रत्याशी विजय गोलछा का नामांकन निरस्त होने के बाद पार्टी ने डमी प्रत्याशी तिलक सोनकर को अधिकृत प्रत्याशी घोषित करने का मन बनाया था। तिलक रायपुर आकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से भी मिले थे। इसके बाद कुछ लोगों ने बैज का कान फूंक दिया कि तिलक को अधिकृत घोषित करने से मंतूराम पवार प्रकरण दोहरा सकता है। इसके बाद तिलक सोनकर की पृष्ठभूमि जांची गई। यह बताया गया कि तिलक आर्थिक रूप से कमजोर है, और जीवनयापन के लिए आलू-प्याज बेचने का काम करते हैं। फिर क्या था, बैज ने प्रमुख नेताओं से चर्चा के बाद धमतरी में किसी का समर्थन नहीं करने का फैसला किया है।
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी का नामांकन निरस्त होने के बाद से निर्विरोध निर्वाचन के लिए कोशिशें भी की थी। करीब दर्जन भर प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, इनमें से 4 की ही नामांकन वापिसी हो पाई। बाकियों ने चुनाव मैदान में हटने से मना कर दिया।
कुल मिलाकर धमतरी के मेयर चुनाव ने अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव की याद दिलाई है। उस समय भी कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार, और अन्य निर्दलियों ने नाम वापिस ले लिए थे, लेकिन एक अंबेडकराइट पार्टी के रूपधर पुड़ो की नाम वापिसी नहीं हो पाई थी, और इस वजह से मतदान हुआ। इससे परे धमतरी में अभी तक किसी तरह की लेन-देन की चर्चा सामने नहीं आई है, लेकिन निर्दलीयों की मौजूदगी के चलते मेयर के लिए भी मतदान होगा। ये अलग बात है कि भाजपा प्रत्याशी जगदीश रामू रोहरा की राह आसान हो गई है।
देवेंद्र के पास जवाब नहीं है
भाजपा ने बसना के नगर पंचायत अध्यक्ष का भी चुनाव जीत लिया है। यहां भाजपा प्रत्याशी डॉ.खुशबू अग्रवाल के खिलाफ कोई भी प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरा। कांग्रेस, और आम आदमी पार्टी व बसपा के साथ-साथ निर्दलियों ने भी नामांकन वापिसी के आखिरी दिन अपने नाम वापस ले लिए।
कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापिस लेने की खबर स्थानीय संगठन के प्रमुख नेताओं तक पहुंची, तो हडक़म्प मच गया। तुरंत प्रत्याशी और उनके परिवार के सदस्यों से संपर्क साधा गया लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो पाया। आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी, और उनके पति ने अपना मोबाइल स्विचऑफ कर रखा था।
बसना से भाजपा प्रत्याशी के निर्विरोध निर्वाचन खबर पार्टी हाईकमान तक पहुंची है। चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट ने इस सिलसिले में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज और अन्य नेताओं से चर्चा की है। बसना, राजपरिवार का गढ़ माना जाता है। पूर्व मंत्री देवेन्द्र बहादुर सिंह यहां का प्रतिनिधित्व करते आए हैं। कांग्रेस प्रत्याशी भी देवेन्द्र बहादुर सिंह की पसंद से तय किए गए थे। और अब जब प्रत्याशी ने नाम वापिस ले लिए हैं तो देवेन्द्र बहादुर को जवाब देते नहीं बन रहा है।
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अब भी देवतुल्य?
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य निरूपित करती आई है। पार्टी के नेता अपने उद्बोधन में कार्यकर्ताओं को देवतुल्य कहते हैं। इन देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने धमतरी जिले के नगरी में गुरुवार को पार्टी दफ्तर में जो कुछ किया, उसने 25 साल पहले रायपुर के एकात्म परिसर की घटना की याद दिला दी।
उस समय भी देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने बृजमोहन अग्रवाल को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाने पर एकात्म परिसर में तोडफ़ोड़ की थी, और बाहर गाडिय़ों में आग लगा दी थी। नगरी के दफ्तर में तोडफ़ोड़ उस समय शुरू हुई, जब जिला संगठन ने पार्टी समर्थित जिला प्रत्याशियों की सूची जारी की। स्थानीय कार्यकर्ता जिनके लिए समर्थन चाह रहे थे, उनकी जगह किसी और के लिए समर्थन की घोषणा कर दी गई। पार्टी दफ्तर के बाहर नाराज कार्यकर्ताओं ने बकायदा बैनर लगा दिया जिसमें लिखा है-यहां टिकट बिकता है।
देवतुल्य कार्यकर्ताओं की हरकत से पार्टी संगठन के नेता खफा हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अपने गुस्से का इजहार किया है। कांग्रेस में भी कार्यकर्ता इस तरह की प्रतिक्रिया दे चुके हैं। वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर निवर्तमान मेयर ऐजाज ढेबर के समर्थकों ने राजीव भवन में तोडफ़ोड़ की थी।
ढेबर ने बाद में अपने खर्चे से मरम्मत करवाकर मामला शांत कराया। इस बार भी कुछ इसी तरह की घटना राजीव भवन में भी घट सकती थी। कुछ प्रत्याशियों के नाम लीक हो गए थे। इसके लिए कार्यकर्ताओं ने राजीव भवन परिसर में खूब हंगामा किया। तोडफ़ोड़ से बचने के लिए पार्टी ने सूची सुबह 5 बजे जारी की। तब तक ज्यादातर कार्यकर्ता घर जा चुके थे, और इस वजह से कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। राजनीतिक दलों के लिए ‘देव’ कब ‘दानव’ बन जाए कोई नहीं जानता।
कोहली और बाबर आजम
रायपुर नगर निगम के भगवती चरण शुक्ल वार्ड में निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर के चुनाव मैदान में उतरने से यहां मुकाबला हाईप्रोफाइल हो गया है। ढेबर के खिलाफ भाजपा ने व्यापारी नेता अमर गिदवानी को उतारा है, जो कि छह महीने पहले ही कांग्रेस छोडक़र पार्टी में शामिल हुए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भगवती चरण शुक्ल वार्ड से कई और प्रत्याशियों ने नामांकन लिए थे, लेकिन ढेबर, या फिर गिदवानी के प्रभाव में आकर नामांकन दाखिल नहीं किया। यहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला है। सोशल मीडिया पर एक पोस्टर वायरल हो रहा है, जिसमें क्रिकेटर विराट कोहली, और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान बाबर आजम की तस्वीर है, और कैप्शन में लिखा है- ‘हू विल विन’।
गिदवानी के चुनाव मैदान में उतरने से ढेबर के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई है। यहां सिंधी-पंजाबी, और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या तकरीबन बराबर है। ऐसे में ओडिशा मूल के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में होंगे। कुल मिलाकर हार-जीत काफी कम मतों से होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
निर्विरोध चुना जाना भी जरूरी
विगत दो दशकों में ग्राम पंचायतों के वित्तीय अधिकार और प्रशासनिक स्वतंत्रता में काफी वृद्धि हुई है। ग्रामीण रोजगार योजनाओं, आवास योजनाओं का आवंटन और गांवों में होने वाले निर्माण कार्य जैसे मामलों में हर साल लाखों रुपये की आवक पंचायत फंड में होती है। इसके अतिरिक्त, वित्त आयोग से मिलने वाली सीधी राशि भी पंचायतों के खाते में जमा होती है, जिसे पंचायतें अपने विवेक से खर्च करने के लिए स्वतंत्र होती हैं।
इधर, कोविड महामारी के दौरान कई पंचायतों में सरपंचों और सचिवों पर करोड़ों रुपये के गबन के आरोप लगे। कुछ सरपंचों को बर्खास्त किया गया।
फंड का ही असर है कि पंचायत चुनाव अत्यधिक खर्चीला हो गया है। सरपंच उम्मीदवार मतदाताओं को नकद पैसे, उपहार और पार्टियों के प्रबंध में भारी धनराशि खर्च करते हैं। औसतन देखा जाए तो पंचायत चुनाव में एक मतदाता पर खर्च नगरीय, विधानसभा और लोकसभा चुनावों से कहीं अधिक होता है।
पंचायत चुनाव की प्रकृति अलग होती है। यहां उम्मीदवार अक्सर रिश्तेदार, दोस्त या पड़ोसी होते हैं, जिससे चुनावी प्रतिस्पर्धा तीव्र और व्यक्तिगत हो जाती है। पंचायतों में मिलने वाले फंड का आकर्षण इतना बढ़ गया है कि रिश्ते तक बिगड़ जाते हैं, और कई बार स्थायी दुश्मनी भी हो जाती है।
इसके बावजूद कई गांवों में समझदारी और सामूहिक सहमति की मिसाल भी देखने को मिलती है। एक राय से प्रत्याशियों का चयन कर लिया जाता है ताकि गांव में भाईचारा और सद्भाव बना रहे। उदाहरण के लिए, 2022 में राज्य में हुए पंचायत उपचुनाव के दौरान 22 सरपंच निर्विरोध चुने गए। वहीं, 2020 के आम पंचायत चुनाव में रायगढ़ जिले की 10 पंचायतों में सरपंच और पंच के सभी पद आपसी सहमति से तय किए गए, जिससे वहां चुनाव की नौबत ही नहीं आई।
हालिया उदाहरण में सूरजपुर जिले के तिलसिवां गांव में महिला सरपंच और सभी पंचों का निर्विरोध चयन कर लिया गया, और चुनाव अधिकारियों को मतदान की तैयारी से मुक्त कर दिया गया। ऐसी ही घटनाएं प्रदेश की अन्य पंचायतों से भी सामने आ रही हैं, विशेष रूप से पंच पदों पर।
ऐसी सहमति इसलिए संभव हो पाती है क्योंकि पंच और सरपंच पदों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते। यदि इन पदों पर कांग्रेस और भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो जाएं, तो आम सहमति में कई बाधाएं खड़ी हो सकती हैं।
एयरपोर्ट पर उड़ान कैफे
अब हमें स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर के अलावा जगदलपुर, बिलासपुर और अंबिकापुर एयरपोर्ट में सस्ते खाने वाले ‘उड़ान कैफे’ का इंतजार है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर ‘उड़ान यात्री कैफे’ की शुरुआत की है। यह कैफे एयरपोर्ट पर किफायती भोजन उपलब्ध कराने वाला देश का पहला केंद्र है। यहां पानी की बोतल और चाय केवल 10 रुपए में मिलती है, जबकि समोसा, कॉफी और मिठाई जैसे गुलाब जामुन 20 रुपए में उपलब्ध हैं।
मालूम हो कि एयरपोर्ट पर सांसदों ने लोकसभा में महंगे खाने-पीने की वस्तुओं को लेकर सवाल उठाया गया था। उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार एयरपोर्ट पर ऐसी कैंटीन खोल सकती है, जहां कम कीमत पर भोजन मिले। कोलकाता एयरपोर्ट इस साल अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर ‘उड़ान कैफे’ शुरू करने का निर्णय लिया गया। फिलहाल यह तय नहीं है कि अगला कैफे किस एयरपोर्ट पर खुलेगा।
कोलकाता के कैफे में अभी पांच वस्तुएं उपलब्ध हैं- पानी, चाय, कॉफी, समोसा और गुलाब जामुन। यात्रियों के बीच चाय और समोसा सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। हर दिन यहां लगभग 700-800 लोग आते हैं, जिनमें हर आयु वर्ग के यात्री शामिल हैं।
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पहले मुख्य सचिव
राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के चार राज्यों के मुख्य सचिवों को एग्जांपलर लीडरशिप सर्टिफिकेट से सम्मानित किया है। इनमें छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी शामिल हैं। जैन के अलावा जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव अटल दुल्लू, राजस्थान की उषा शर्मा, हरियाणा के टीवी एस एन प्रसाद को भी इस प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया है। इनके अलावा जम्मू कश्मीर, असम, तमिलनाडु, यूपी और मप्र के डीजीपी को भी यह सम्मान दिया गया है।
यह सम्मान बीते एक वर्ष में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बेहतर संचालन और निष्पक्ष निर्भीक व्यवस्था के लिए दिया गया है । 25 वर्ष पूर्व गठित छत्तीसगढ़ राज्य में अब तक हुए 12 मुख्य सचिवों में से केवल जैन ने ही यह उपलब्धि हासिल की है। स्वच्छ छवि और प्रचार से दूर रहने वाले जैन ने अपनी इस उपलब्धि को भी प्रचार से दूर रखा। यह सम्मान पिछले दिनों एलटीसी अवकाश के दौरान ही बिना किसी तामझाम के हासिल किया। चुनाव आयोग ने देश भर में केवल जम्मू कश्मीर के ही मुख्य सचिव और डीजीपी को ही यह सम्मान दिया है।
अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ के डीजीपी इससे चूक गए। वैसे भाजपा के राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल ने ने एक वर्ष पूर्व हुए विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा को बदलने भारत निर्वाचन आयोग से लिखित में मांग की थी। और उसके बाद जुनेजा ने लोकसभा चुनाव कराए और अभी छ माह की सेवा वृद्धि पर कार्यरत हैं । छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक बार आयोग ने डीजीपी विश्वरंजन को हटाया था।
देवजी का इंकार
भाजपा में पंचायत चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है। चूंकि चुनाव दलीय आधार पर नहीं हो रहे हैं। इसलिए जिले की कमेटी जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है जिन्हें पार्टी का समर्थन है। खबर है कि विधानसभा टिकट से वंचित कई सीनियर नेताओं को जिला पंचायत चुनाव लडऩे की सलाह भी दी गई थी। मगर कुछ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
चर्चा है कि धरसींवा से तीन बार के विधायक रहे पाठ्यपुस्तक निगम के पूर्व चेयरमैन देवजी पटेल को भी रायपुर जिला पंचायत सदस्य क्रमांक-एक से चुनाव लडऩे का प्रस्ताव दिया गया था। रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित है। ऐसे में चुनाव जीतने के बाद बहुमत मिलने की दशा में देवजी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का भी विचार था, लेकिन देवजी ने साफ तौर पर पंचायत चुनाव लडऩे से मना कर दिया।
चूंकि देवजी ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया है इसलिए उनकी जगह चंद्रशेखर शुक्ला को पार्टी की तरफ से अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया गया है। शुक्ला लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में आए थे। वो प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रहे हैं। कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पंचायत चुनाव में हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। अभी नामांकन दाखिले की प्रक्रिया चल रही है। तीन फरवरी को नामांकन दाखिले के बाद प्रत्याशियों को लेकर तस्वीर साफ होगी।
खुुशवंत-मनहरे आमने-सामने
नगरीय निकाय की तरह कांग्रेस, और भाजपा के कई नेता अपने नाते रिश्तेदारों को पंचायत चुनाव में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा ने यह तय किया है कि सांसद, और विधायकों के नाते रिश्तेदारों को प्रत्याशी बनाने से पहले प्रदेश की समिति से औपचारिक अनुमति लेनी होगी। इसकी वजह से कई दिग्गज नेताओं के प्रत्याशी बनने का मामला अटका पड़ा है।
चर्चा है कि सतनामी समाज के गुरु, और आरंग के विधायक खुशवंत साहेब अपने छोटे भाई को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाना चाहते हैं। मगर पार्टी संगठन ने पहले यहां से पूर्व जनपद अध्यक्ष वेदराम मनहरे का नाम तय किया था। वेदराम मनहरे विधानसभा टिकट के दावेदार थे, लेकिन अंतिम समय में उनकी टिकट कट गई, और खुशवंत साहेब प्रत्याशी बन गए। अब मनहरे हर हाल में चुनाव लडऩा चाहते हैं, और खुशवंत साहेब भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में उक्त जिला पंचायत क्षेत्र में प्रत्याशी तय करने का मसला जिले की कमेटी ने प्रदेश पर छोड़ दिया है। देखना है पार्टी इस पर क्या फैसला लेती है।
कांग्रेस का पत्नीवाद
आखिरकार निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर अपनी पत्नी अंजुमन ढेबर को प्रत्याशी बनवाने में कामयाब रहे। शहर जिला कांग्रेस कमेटी ने चुपचाप ढेबर की पत्नी के नाम बी-फार्म जारी कर उन्हें अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें टिकट मिली है।
ढेबर खुद भगवती चरण शुक्ल वार्ड से लड़ रहे हैं। जबकि उनकी पत्नी अंजुमन बैजनाथपारा वार्ड से अधिकृत प्रत्याशी हैं। पहले चुनाव समिति की बैठक में यह तय किया गया था कि एक ही परिवार के दो सदस्यों को टिकट नहीं दी जाएगी।
रायपुर नगर निगम के चार वार्डों की टिकट रोक दी गई। इसमें बैजनाथ पारा वार्ड भी है। बाद में पार्टी की गाइडलाइन को दरकिनार कर ढेबर की पत्नी को प्रत्याशी बना दिया गया। यही नहीं, पार्टी ने टिकरापारा वार्ड के निवर्तमान पार्षद समीर अख्तर की टिकट काट दी, जिनके वार्ड से रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस बढ़त मिली थी। अख्तर ने पार्टी छोडक़र आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। कुल मिलाकर कांग्रेस की टिकट वितरण में भाई-भतीजावाद देखने को मिला है। इसका क्या असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अंडा मेन्यू में तो है, थाली में नहीं
अक्टूबर 2023 में छत्तीसगढ़ की पूर्व सरकार और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के बीच हुए एमओयू के तहत सरकारी स्कूलों के मध्यान्ह भोजन में सप्ताह में एक दिन अंडा शामिल किया जाना था। इसके अलावा, प्रत्येक शनिवार को खीर-पूड़ी परोसने की भी योजना थी। कांग्रेस सरकार ने अंडे को मेन्यू में शामिल किया, लेकिन उसका यह कहकर विरोध किया गया कि कई बच्चे शाकाहारी हैं और अंडा नहीं खाना चाहते। विरोध के बाद अंडे के विकल्प के तौर पर सोयाबड़ी को जोड़ा गया। सरकार बदलने के बाद भी अंडा मेन्यू में बना हुआ है, लेकिन यह सवाल कायम है कि क्या बच्चों को यह वास्तव में मिल रहा है?
हाल ही में, महाराष्ट्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने अपने स्कूलों में अंडे के लिए धन देना बंद करने की घोषणा की है। यह कदम दक्षिणपंथी समूहों के विरोध के बाद उठाया गया। इसके उलट दक्षिणी राज्यों जैसे कर्नाटक में, जहां भाजपा सरकार नहीं है, बच्चों को अधिक अंडे दिए जा रहे हैं। पिछले साल कर्नाटक सरकार ने सप्ताह में छह दिन अंडा देने की घोषणा की थी।
छत्तीसगढ़ की स्थिति इन दोनों से अलग है। यहां अंडा मेन्यू में तो शामिल है, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कुछ समय पहले एक टीवी चैनल की रिपोर्ट में दंतेवाड़ा से बलरामपुर तक की कई स्कूलों में स्थिति का खुलासा हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूलों में अंडा तो गायब ही है, सोयाबड़ी भी नहीं दी जा रही।
सरकार द्वारा मध्यान्ह भोजन के लिए तय राशि प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र मात्र 5.69 रुपये और माध्यमिक स्तर पर 8.17 रुपये है। इतनी कम राशि में पौष्टिक भोजन देना व्यावहारिक रूप से असंभव है। कुछ जिलों जैसे दंतेवाड़ा में डीएमएफ (जिला खनिज निधि) से प्रति छात्र 1.80 रुपये अतिरिक्त राशि स्वीकृत की गई है, लेकिन यह भी पर्याप्त
नहीं है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूलों में न्यौता भोज की परंपरा शुरू की है, जिसमें अफसर और नेता विशेष अवसरों पर बच्चों को भोज देते हैं। लेकिन नियमित पौष्टिक भोजन की स्थिति दयनीय है। अंडा और सोयाबड़ी जैसे विकल्प कम राशि के कारण बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह विरोधाभास ध्यान देने योग्य है। मेन्यू में अंडा बना हुआ है, लेकिन थाली से गायब है।
बेहतर प्लान कर निकलें प्रयागराज
मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ में हुई भगदड़ और उससे हुई मौतों के बाद कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। हवाई टिकट के दाम, जो घटना के पहले 600 प्रतिशत तक बढ़ गए थे, अब घटकर आधे हो गए हैं। हालांकि, यह किराया अभी भी सामान्य दरों से कई गुना अधिक है। टूर ऑपरेटर्स ने भी राहत दी है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ और कोरबा जैसे शहरों के वे अब यात्रियों को पहले के मुकाबले सस्ते पैकेज उपलब्ध करा रहे हैं। रेलवे ने मौजूदा स्पेशल ट्रेनों के साथ-साथ अचानक नई स्पेशल ट्रेनों की घोषणा की है, जिनमें सीटें आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। अचानक तय हो रही ट्रेनों में जाने की सुविधा तो है, लेकिन लौटने की नहीं। इन परिस्थितियों में प्रयागराज के लिए निकलना कुछ आसान महसूस हो सकता है, मगर आपको वहां से लौटना भी है।
दरअसल, सडक़ मार्ग की स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। हादसे के बाद भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मेला प्रशासन और राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनके चलते प्रयागराज जाने वाली कई सडक़ें घंटों जाम हैं। रास्ते में रुके छत्तीसगढ़ के यात्रियों ने अपने परिजनों को बताया है कि उनकी गाडिय़ां 8-10 घंटे तक एक ही जगह पर फंसी हुई हैं। इससे खाने-पीने की दिक्कतें भी खड़ी हो गई हैं। ऐसे में अगर आप प्रयागराज जाने की योजना बना रहे हैं, तो थोड़ी देर ठहरने और स्थिति का पता करने की सलाह है। वैसे भी महाकुंभ का यह मेला 26 फरवरी तक जारी रहेगा।
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कांग्रेस-भाजपा भाई-भाई
चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव में कुछ जगहों पर कांग्रेस, और भाजपा के नेताओं के बीच आपसी समन्वय से प्रत्याशी तय किए गए। बताते हैं कि कांग्रेस के एक मेयर प्रत्याशी ने पहले भाजपा नेताओं से बात की, और फिर चुनाव लडऩे के लिए तैयार हुए।
दरअसल, मेयर प्रत्याशी का सरकार के एक मंत्री, जो स्थानीय विधायक भी हैं, उनसे बेहतर रिश्ते हैं। मेयर प्रत्याशी ने विधानसभा चुनाव में मंत्री जी की काफी मदद की थी। मेयर प्रत्याशी यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके खिलाफ भाजपा से कोई कमजोर ही चुनाव मैदान में उतरे।
चर्चा है कि मंत्री जी ने भाजपा प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभाई है, जिन्हें अपेक्षाकृत कमजोर माना जा रहा है। सरकार के मंत्री के कांग्रेस प्रत्याशी से अघोषित गठजोड़ की खबर से स्थानीय स्तर पर हलचल मची हुई है, और इसकी शिकायत प्रदेश संगठन के शीर्ष नेताओं तक पहुंचाने की तैयारी चल रही है।
संकेत साफ है कि नतीजे अनुकूल नहीं आए, तो मंत्री जी को जवाब देने में मुश्किल खड़ी हो सकती है। फिलहाल तो संगठन के नेता भाजपा प्रत्याशी को ताकत देने में जुट गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बीवी के साथ-साथ बेटा भी !
पंचायत चुनाव के लिए कांग्रेस, और भाजपा ने जिला व जनपद सदस्य के लिए समर्थित उम्मीदवारों की सूची जारी करने जा रही है। भाजपा में सभी जिलों में बैठकों का दौर चल रहा है। यह खबर सामने आई है कि भाजपा के प्रभावशाली नेता अपने परिजनों को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हंै, और इसके लिए पार्टी के समर्थन के लिए जोड़ तोड़ कर रहे हैं।
चूंकि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है। इसलिए जिलाध्यक्षों की अगुवाई में एक कमेटी बनी हुई है, और यह कमेटी भाजपा समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है। बताते हैं कि सरगुजा सहित कई जिलों में बड़े नेता आपस में भिड़ गए हैं। पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा अपनी पत्नी के साथ-साथ अपने पुत्र लवकेश पैकरा को जिला पंचायत चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
पार्टी के स्थानीय नेता दोनों में से किसी एक को ही प्रत्याशी बनाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन पूर्व गृहमंत्री दोनों के लिए अड़े हुए हैं। चर्चा है कि पूर्व गृहमंत्री की स्थानीय प्रमुख नेताओं से बहस भी हुई है। कुल मिलाकर विवादों के निपटारे के लिए कई जगहों पर अधिकृत प्रत्याशी तय करने का जिम्मा प्रदेश की समिति पर छोड़ दिया गया है।
अब कहां दफनाएंगे शव?
बस्तर के मेडिकल कॉलेज डिमरापाल में 20 दिनों तक रखे गए पास्टर सुभाष बघेल के शव को अंतत: उनके गांव से 30 किलोमीटर दूर करकापाल स्थित मसीही कब्रिस्तान में दफनाया गया। यह मामला केवल एक शव दफनाने का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक स्वीकृति और कानूनी व्यवस्था के बीच उत्पन्न जटिलताओं का प्रतीक बन गया है।
सुभाष बघेल ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके थे। उनकी मृत्यु उनके गांव छिंदवाड़ा में हुई। उनके परिवार ने उनकी इच्छा के अनुसार गांव में ही शव दफनाने की कोशिश की, लेकिन गांव के आदिवासी समुदाय ने इसका विरोध किया। परिवार ने तब अपनी निजी जमीन पर दफनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन गांव वालों ने इसका भी विरोध जारी रखा। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था के संकट का हवाला देते हुए परिवार की इच्छा को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट परिवार सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन वहां भी दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसले सुनाए। जस्टिस बी. नागरत्ना ने गांव में सम्मानजनक ढंग से दफनाने की मांग को सही ठहराया, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने प्रशासन की दलील को मान्यता दी। अंतत: शव को करकापाल के मसीही कब्रिस्तान में दफनाया गया।
यह मामला बस्तर और छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सों में ईसाई धर्म अपनाने वालों और अन्य समुदायों के बीच बार बार उत्पन्न हो रहे टकराव का है। अक्सर, इन समुदायों को अपने ही गांव में शव दफनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई मामले हाईकोर्ट तक पहुंच चुके हैं, लेकिन सुभाष बघेल का मामला शायद पहला है जो सुप्रीम कोर्ट तक गया।
बघेल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हुआ, लेकिन इस फैसले ने यह स्पष्ट नहीं किया कि ऐसी स्थिति में परिजनों की इच्छा का सम्मान होगा या विरोध करने वालों का दबदबा बना रहेगा। क्या भविष्य में ईसाई धर्म अपनाने वाले लोगों को अपने गांव या निजी जमीन पर शव दफनाने की अनुमति मिल पाएगी? क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला देकर विरोध करने वाले अब प्रशासन पर आसानी से दबाव डालेंगे? क्या धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वीकृति के बीच संतुलन बनाने के लिए कोई स्थायी समाधान हो सकता है?
उत्सव में लूटपाट
प्रयागराज में मौनी अमावस्या के अवसर पर हुई भगदड़ और उसके बाद मौतों की घटनाओं के बीच कई अलग जानकारियां सामने आई हैं। 28 जनवरी को स्नान के लिए 10 से 12 करोड़ लोग प्रयागराज पहुंचे, जो कई देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। इस अवसर का फायदा एयरलाइंस कंपनियां जमकर उठा रही हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से प्रयागराज आने वाली फ्लाइट्स के किराए में भारी वृद्धि हुई है। डीजीसीए ने जब किराया नियंत्रित करने का निर्देश दिया, तब भी इसका कोई असर नजर नहीं आया। 28 जनवरी को फ्लाइट के किराए में 600 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई।
दिल्ली से प्रयागराज का किराया 32 हजार रुपये और मुंबई से प्रयागराज का 60 हजार रुपये तक पहुंच गया। हैरानी की बात यह है कि इसी दिन दिल्ली से लंदन की इकॉनमी क्लास फ्लाइट का किराया केवल 25 हजार रुपये था। सोशल मीडिया पर लोग इस मुद्दे पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या धार्मिक आयोजनों के नाम पर जनता से इस तरह मनमाना शुल्क वसूलना जायज है? क्या किराए में यह वृद्धि मुनाफाखोरी नहीं है?
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अपील का क्या मतलब है?
नगरीय निकायों के लिए भाजपा ने सभी प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। प्रत्याशी को लेकर कई जगह विवाद भी हो रहा है। खुद प्रदेश अध्यक्ष किरण देव के भतीजे ने सुकमा नगर पालिका अध्यक्ष प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और उन्होंने पार्टी छोडऩे का ऐलान कर दिया है। यही स्थिति कई जगहों पर है। मगर पार्टी की नीति साफ रही है कि एक बार घोषणा के बाद प्रत्याशी बदले नहीं जाते हैं। इस बार तो पार्टी ने प्रत्याशी चयन के खिलाफ सुनवाई के लिए गठित अपील समिति भी भंग कर दी है।
अपील समिति में घोषित प्रत्याशी के खिलाफ शिकायत की जा सकती है, और गंभीर शिकायत होने पर समिति प्रत्याशी बदलने की अनुशंसा कर सकती है। इस बार रायपुर नगर निगम, और प्रदेश के कई जगहों पर प्रत्याशी बदलने की मांग भी उठी। और जब असंतुष्ट लोग अपील समिति में आवेदन के लिए गए, तो उन्हें पता चला कि अपील समिति का अस्तित्व ही नहीं है। समिति को कुछ दिन पहले ही भंग किया जा चुका है।
पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि मेयर-अध्यक्ष के चयन के लिए चुनाव समिति की बैठक में खुद राष्ट्रीय सह महामंत्री शिवप्रकाश मौजूद थे। बाकी प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, और पवन साय की जानकारी में लाकर, और उन्हें सूची दिखाकर ही जारी किया जा रहा था। और जब पार्टी के शीर्षस्थ लोग टिकट को लेकर फैसले ले रहे हैं, तो उनके फैसले के खिलाफ अपील का कोई मतलब नहीं है।
चेहरा देखकर टिकट
कांग्रेस में चेहरा देखकर टिकट देने की परम्परा रही है। यही वजह है कि कई जगह मजबूत नेता टिकट से वंचित रह जाते हैं, और इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ता है। इस बार भी मेयर, और पालिका अध्यक्ष के चयन में ऐसा ही हुआ। पार्टी के कुछ लोग मानकर चल रहे हैं कि प्रदेश के 10 में से 3-4 जगहों पर ही पार्टी तगड़ा मुकाबला देने की स्थिति में है। बाकी जगहों पर भाजपा प्रत्याशी फिलहाल बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं। पार्टी का चुनाव प्रबंधन कैसा रहता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
तीनों गुवाहाटी में !
भारतीय पुलिस सेवा के तीन अफसर जितेन्द्र सिंह मीणा, आरएन दास, और डी श्रवण केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इनमें से जितेन्द्र सिंह मीणा सीबीआई, आरएन दास सीआरपीएफ, और डी श्रवण एनआईए में पदस्थ हैं। तीनों ही अफसर सालभर के भीतर प्रतिनियुक्ति पर गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि तीनों ही अफसर एक ही जगह गुवाहाटी में पोस्टेड हैं। तीनों का दफ्तर भले ही अलग-अलग है, लेकिन आपस में एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने का समय निकाल ही लेते हैं।
कुंभ स्नान और सिपाही का पत्र
प्रयागराज कुंभ समापन महाशिवरात्रि को होने जा रहा है। उससे पहले हर कोई, 144 वर्ष बाद हो रहे महाकुंभ में त्रिवेणी संगम में स्नान का पुण्य लाभ कमाने प्रयासरत है। निजी से लेकर सरकारी हर मुलाजिम इसके लिए छुट्टी हासिल करने अपने अपने स्तर पर यत्न कर रहा है। एक ऐसे ही पुलिस के सिपाही ने अपने एसपी को पत्र लिखकर छुट्टी का आवेदन दिया है। इसे पढऩे के बाद शायद कप्तान साहब भी स्नान के लिए कुम्भ चले जाएं। राजस्थान सरकार के पुलिस कांस्टेबल ने इतना विस्तृत वर्णन कर है कि जन्म जन्मांतर के पाप काटने के लिए कुंभ स्नान सी अनुमति देने का आग्रह किया है। पूरा पत्र हूबहू पढ़ें—
गर्माहट से आई मुस्कान
यह कोरबा जिले के एक पहाड़ी कोरवा बाहुल्य गांव कदमझेरिया के सरकारी प्राथमिक शाला की तस्वीर है। पहाड़ों से घिरे इस इलाके में ठंड का प्रकोप कुछ अधिक ही होता है।
इन बच्चों के पास गर्म कपड़े नहीं होते। स्कूल के शिक्षकों ने इनके लिए बोरी भर गर्म कपड़ों की व्यवस्था की। बच्चों ने अपनी-अपनी नाप से उन कपड़ों को पसंद किया और पहन लिया। शिक्षकों ने तय किया है कि वे हर माह अपने वेतन का एक प्रतिशत जमा करेंगे और बच्चों के लिए स्लेट, पेंसिल, कपड़े, जूते की उनकी जरूरत के अनुसार व्यवस्था करते रहेंगे।
चुनाव और मजदूरों का जाना एक साथ
खरीफ फसल कटने के बाद मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ से हजारों मजदूरों का काम की तलाश में बाहर जाना होता है। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और जनजाति परिवारों के होते हैं। जांजगीर-चांपा, सारंगढ़-बिलाईगढ़ आदि जिलों से बाहर जाने वाले अधिकतर लोग अनुसूचित जाति परिवारों के होते हैं। ये यूपी और उत्तरभारत के अन्य राज्यों में ईंट भ_ों में या फिर बिल्डिंग कंस्ट्र्क्शन के काम में लगे होते हैं। खबर आ रही है कि बस्तर से रोजाना दो ढाई सौ लोग तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु कूच कर रहे हैं। अंतर्राज्जीय बसें खचाखच भरी चल रही हैं। ये मजदूर अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार के वयस्क मतदाताओं और बच्चों के साथ जा रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से प्रदेश में होने जा रहे स्थानीय चुनावों में, विशेषकर पंचायतों के चुनाव में दिखाई देगा। प्रशासन की ओर से इनको रोकने के लिए कोई चिंता जताई नहीं जा रही है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
टिकट के बाद बग़ावत का दौर
नगरीय निकाय चुनाव की टिकट जारी करने में कांग्रेस, और भाजपा ने सतर्कता बरती है। दरअसल, छोटे चुनाव में टिकट कटने, या फिर मनमाफिक प्रत्याशी नहीं होने पर कार्यकर्ताओं का गुस्सा फट पड़ता है और वो पार्टी दफ्तर में धरना-प्रदर्शन से परहेज नहीं करते हैं। यही वजह है कि भाजपा ने मेयर, और रायपुर नगर निगम प्रत्याशियों की सूची गणतंत्र दिवस समारोह निपटने के बाद जारी की। कांग्रेस में तो टिकट की अधिकृत घोषणा के पहले ही राजीव भवन में नारेबाजी होती रही।
आधी रात तक मेयर-अध्यक्षों की टिकट को लेकर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट माथापच्ची करते रहे, और फिर सोमवार की अलसुबह मेयर, पालिकाओं और नगर पंचायतों के अध्यक्षों की सूची जारी की गई। इस दौरान कार्यकर्ताओं का मजमा लगा रहा। चूंकि नामांकन दाखिले की आखिरी तिथि 28 तारीख है इसलिए कांग्रेस नेताओं पर जल्द से जल्द प्रत्याशी घोषित करने के लिए दबाव था। अब हाल यह है कि दोनों दलों में बस्तर से सरगुजा तक बगावत देखने को मिल रहा है। नाराज लोगों को मनाने की कोशिशें चल रही है। अब दोनों ही दलों को डैमेज कंट्रोल में कितना सफलता मिलती है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
नामों से पड़े अब फेर-बदल की बारी
कांग्रेस, और भाजपा में प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले हेरफेर होता रहा। भाजपा में रायपुर नगर निगम के कई पार्षद प्रत्याशी नाम तय होने के बाद अंतिम क्षणों में बदल दिए गए। मसलन, रायपुर नगर निगम के पूर्व पार्षद अमर बंसल का नाम पहले तय हो गया था। लेकिन सूची जारी होने से पहले उनकी जगह आनंद अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया।
इसी तरह देवेन्द्र नगर वार्ड से तुषार चोपड़ा का नाम फायनल किया गया था। लेकिन सूची जारी होने से पहले उनका नाम काटकर कृतिका जैन को प्रत्याशी बनाया गया। तुषार के खिलाफ कई शिकायतें थी और विरोधियों ने प्रमुख नेताओं को इसकी जानकारी दे दी। इसके बाद उनका पत्ता साफ हो गया। कांग्रेस में तो प्रत्याशियों की सूची में ही चौंकाने वाली गड़बड़ी सामने आई है। रायगढ़ जिले की बरमकेला नगर पंचायत सीट से मनोहर नायक को अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित किया गया। जबकि यह सीट महिला आरक्षित सीट है। इस पर भाजपा नेताओं ने चुटकी ली है।
सरकार के मंत्री ओ.पी. चौधरी ने एक्स पर लिखा कि लगता है कोई टाइपिंग एरर है। भूपेश बघेल जी, सचिन पायलट जी ! टायपिंग एरर होगा तो थोड़ा ठीक कर लेवें....। कांग्रेस में तो बी फार्म जारी होने तक बदलाव की गुंजाइश रहती है। खुद भूपेश बघेल इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। भूपेश बघेल जब 1993 में पाटन से पहली बार चुनाव लड़े थे तब पार्टी ने पूर्व मंत्री अनंतराम वर्मा को अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया था। मगर बी फार्म भूपेश बघेल के नाम जारी हो गया। और वो जीतकर पहली बार विधायक बने।
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कांग्रेस में महिला प्रपंच
कांग्रेस में निकाय टिकट के लिए माथापच्ची चल रही है। नगर निगमों में तो वार्ड प्रत्याशियों के नाम तक तय नहीं हो पा रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी की महिला दावेदारों को झटका लग सकता है, जो पिछले कुछ दिनों से नेता पत्नियों को प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस मुहिम को राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम, श्रीमती डॉ. किरणमयी नायक का खुला समर्थन रहा है। मगर पार्टी के दिग्गजों ने दो नगर निगम की मेयर टिकट नेता पत्नी को देने का मन बना लिया है।
रायपुर नगर निगम के वार्डों में तो जो कुछ हो रहा है, वो पहले कभी नहीं हुआ। मेयर एजाज ढेबर ने न सिर्फ खुद बल्कि अपनी पत्नी की टिकट भी पक्की करवा ली है। जबकि पत्नी कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रही है। और जब ढेबर दंपत्ति की टिकट फाइनल स्टेज में पहुंची है, तो कई सीनियर पार्षद भी अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए अड़े हुए हैं। जिन्हें मना करना मुश्किल हो रहा है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की मौजूदगी में रविवार को होने वाली बैठक में औपचारिक रूप से सूची पर मुहर लग सकती है। सूची जारी होते ही कांग्रेस में बवाल मच सकता है।
कांग्रेस के एक बड़े नेता को लेकर राजधानी में चर्चा है कि किस सौदे के तहत वे एक पत्नी को टिकट देने को न सिर्फ तैयार हो गए हैं, बल्कि अड़ गए हैं।
टिकट और राइस मिल
भाजपा में टिकट को लेकर जंग चल रही है। रायपुर नगर निगम के वार्ड प्रत्याशियों की सूची काफी हद तक सांसद बृजमोहन अग्रवाल के हिसाब से तय हुई है। यद्यपि चारों विधायक राजेश मूणत, सुनील सोनी, पुरंदर मिश्रा, और मोतीलाल साहू अपने करीबियों का नाम तय करवाने में सफल रहे हैं। रायपुर नगर निगम के साथ-साथ संभाग की पालिकाओं, और नगर पंचायतों के अध्यक्ष व वार्ड प्रत्याशियों के नाम भी तय किए गए।
सुनते हैं कि टिकट वितरण में एक निकाय के मौजूदा अध्यक्ष का पत्ता साफ हो गया है। निकाय अध्यक्ष टिकट के मजबूत दावेदार थे। निकाय अध्यक्ष की टिकट कटने के पीछे राइस मिलर्स की हड़ताल से जोडक़र देखा जा रहा है। निकाय अध्यक्ष ने पिछले दिनों राइस मिलर्स के आंदोलन की अगुवाई की थी, और फिर इसके चलते धान खरीदी व्यवस्था बुरी तरह लडखड़़ा गई। सरकार ने निकाय अध्यक्ष की मिल को सील भी कर दिया था। बाद में सबकुछ ठीक भी हो गया था, लेकिन टिकट की बारी आई, तो उनके नाम पर विचार भी नहीं हुआ। कहा जा रहा है कि कुछ लोगों के बहकावे में आकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना भारी पड़ गया।
निजी विश्वविद्यालयों के विदेशी छात्र
छत्तीसगढ़ के शुरूआती दौर के पहले ही तीन वर्ष में ही 136 से अधिक निजी विश्वविद्यालय खुल गए थे। यानी उस वक्त जितने तहसील विकासखंड थे हरेक में एक विवि खुले। इरादा बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं बल्कि 40-40 एकड़ तक जमीन पर कब्जा करना था। बाद में सुप्रीम कोर्ट, यूजीसी की फटकार के बाद इन पर लगाम लगी और आज हालत यह है कि केवल 17 निजी विश्वविद्यालय रह गए हैं। उस दौर के इक्का दुक्का ही रह गए हैं। बाकी एक दशक भर में खोले गए। उच्च शिक्षा विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन के मुताबिक इन सभी विश्वविद्यालयों में कुल छात्र संख्या 35000 हजार है। इनमें देश और विदेश,दोनों के छात्र हैं। इनमें भी रायपुर, बिलासपुर के दो विवि में विदेशी छात्रों की संख्या अधिक है। उनमें भी अफ्रीकी देशों के। एक विवि में तो 27 देशों के तीन हजार विद्यार्थी हैं।
इन दोनों विवि की देखा-देखी राजधानी के एक और निजी विश्वविद्यालय भी विदेशी छात्रों के लिए दरवाजे खोले हैं। जहां तक इनमें शिक्षा के स्तर को लेकर परस्पर दावे हो सकते हैं। हाल की एक बैठक में कुलाधिपति ने इन विश्वविद्यालयों से दी गई पीएचडीज की मांगी गई विस्तृत जानकारी से शिक्षा के स्तर को समझा जा सकता है। ऐसे में वहीं डिग्री डिप्लोमा की गुणवत्ता की बात न करे तो बेहतर। स्थिति यह भी है कि मंत्रालय में पदोन्नति के लिए स्नातक,स्नातकोत्तर की आवश्यकता भी ये विवि चुटकी में पूरी कर देते हैं। सब का एक ही ध्येय फीस वसूली ।
निजी विवि और चिंतित अभिभावक
डिग्री बांट कर प्रतिभावान छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो कर ही रहे थे । अब इन विवि के हॉस्टल विदेशी छात्रों की शरणस्थली बन कर नारकोटिक्स, और साइबर क्राईम के अड्डे बन गये हैं । और तो और मुझे शक यह भी है कि ये विदेशी छात्र अपने देशों के महंगे और तेज नशे वाले ड्रग्स के पैडलर हो गए हैं। जो प्रदेश के युवाओं को नशे की लत में ढकेल रहे हैं।
इस ओर आगाह करते हुए एक अभिभावक ने फेस बुक पोस्ट कर छत्तीसगढ़ पुलिस से आग्रह किया है कि इन अफ्रीकी देशों के जो छात्र निजी विश्वविद्यालय में छात्र वीजा पर पढ़ाई के नाम पर यहां रह रहे हैं,उनका पुलिस वेरिफिकेशन किया जाए। नाइजीरिया जो फ्रॉड व ड्रग्स के धंधे में कुख्यात है,वहां के लोग यहां के विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में कहीं फ्रॉड व ड्रग्स का धंधा तो नहीं कर रहे हैं। बीते एक वर्ष में एमडीएमए ड्रग और अब साइबर ठगी के मामलों में नाइजीरिया मूल के ही छात्र पकड़े गए हैं।
गर्माहट से आई मुस्कान
यह कोरबा जिले के एक पहाड़ी कोरवा बाहुल्य गांव कदमझेरिया के सरकारी प्राथमिक शाला की तस्वीर है। पहाड़ों से घिरे इस इलाके में ठंड का प्रकोप कुछ अधिक ही होता है।
इन बच्चों के पास गर्म कपड़े नहीं होते। स्कूल के शिक्षकों ने इनके लिए बोरी भर गर्म कपड़ों की व्यवस्था की। बच्चों ने अपनी-अपनी नाप से उन कपड़ों को पसंद किया और पहन लिया। शिक्षकों ने तय किया है कि वे हर माह अपने वेतन का एक प्रतिशत जमा करेंगे और बच्चों के लिए स्लेट, पेंसिल, कपड़े, जूते की उनकी जरूरत के अनुसार व्यवस्था करते रहेंगे।
चुनाव और मजदूरों का जाना एक साथ
खरीफ फसल कटने के बाद मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ से हजारों मजदूरों का काम की तलाश में बाहर जाना होता है। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और जनजाति परिवारों के होते हैं। जांजगीर-चांपा, सारंगढ़-बिलाईगढ़ आदि जिलों से बाहर जाने वाले अधिकतर लोग अनुसूचित जाति परिवारों के होते हैं। ये यूपी और उत्तरभारत के अन्य राज्यों में ईंट भ_ों में या फिर बिल्डिंग कंस्ट्र्क्शन के काम में लगे होते हैं। खबर आ रही है कि बस्तर से रोजाना दो ढाई सौ लोग तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु कूच कर रहे हैं। अंतर्राज्जीय बसें खचाखच भरी चल रही हैं। ये मजदूर अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार के वयस्क मतदाताओं और बच्चों के साथ जा रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से प्रदेश में होने जा रहे स्थानीय चुनावों में, विशेषकर पंचायतों के चुनाव में दिखाई देगा। प्रशासन की ओर से इनको रोकने के लिए कोई चिंता जताई नहीं जा रही है।
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पिछड़े वर्ग की नाराजगी का क्या?
नगरीय निकाय-पंचायत चुनाव में पदों के आरक्षण की सीमा 50 फीसदी करने से पिछड़ा वर्ग के जनप्रतिनिधियों में नाराजगी है। पिछड़ा वर्ग को नगरीय निकायों में थोड़ा फायदा हो रहा है, लेकिन पंचायतों में नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरपंच से लेकर जिला पंचायतों में अनारक्षित सीटें बढ़ी है, और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में कमी आई है। इस वजह से पिछड़ा वर्ग का बस्तर में बड़ा आंदोलन भी हुआ है।
भाजपा को पिछड़ा वर्ग के लोगों की नाराजगी का अंदाजा भी है, और इससे निपटने के लिए कार्य योजना बनाई गई है। इसका प्रतिफल यह रहा कि बस्तर संभाग के नगर पालिकाओं, और नगर पंचायतों में अनारक्षित सीटों पर ज्यादातर जगहों पर पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी उतारे जा रहे हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों ने जगदलपुर मेयर के अलावा कोंडागांव नगर पालिका, कांकेर में अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग के योग्य प्रत्याशी की तलाश कर ली है। एक-दो दिन के भीतर इसका ऐलान किया जा सकता है। इसका पार्टी को कितना फायदा होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
नए पदाधिकारियों का बड़ा भाव
भाजपा में नवनियुक्त जिला अध्यक्षों की पूछपरख बढ़ गई है। विशेषकर वार्डों, और पंचायत के पदों पर किसी एक नाम के लिए सहमति नहीं बन पा रही है, या फिर विवाद की स्थिति बन गई है, वहां जिलाध्यक्षों को कुछ प्रमुख नेताओं से चर्चा कर प्रत्याशी तय करने के अधिकार दे दिए गए हैं।
भाजपा के रणनीतिकारों की मजबूरी भी है। वजह यह है कि नामांकन दाखिले की समय-सीमा खत्म होने में तीन दिन बाकी रह गए हैं। ऐसे में जल्द से जल्द प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए दबाव भी है।
भाजपा, और कांग्रेस दफ्तर में सैकड़ों दावेदार सुबह से लेकर रात तक डटे रहते हैं। इससे पार्टी के बड़े नेता परेशान हैं। इसके चलते रायपुर नगर निगम के वार्ड प्रत्याशियों के चयन के लिए सांसद बृजमोहन अग्रवाल को अपने घर में बैठक करने की छूट दे दी है। चूंकि बृजमोहन के घर में बैठक होने की खबर उड़ी, तो कुशाभाऊ ठाकरे परिसर से भीड़ छटकर मौलश्री विहार शिफ्ट हो गई। मगर बाकी जगहों के लोग अब भी पार्टी दफ्तर में देखे जा सकते हैं।
फील्ड को मिले 60 अफसर
पिछले ही दिनों हमने इसी कॉलम में बताया था कि राजधानी को सेफ जोन मानकर राप्रसे के अफसर फील्ड छोडक़र मंत्रालय, संचालनालय और राजधानी के अन्य राज्य स्तरीय दफ्तरों में अफसरशाही के दिन गुजार रहे हैं। मंत्रालय, संचालनालय में तो में इस कैडर के अफसर बहुतायत हो गए हैं। प्रतिनियुक्ति के निर्धारित पदों से दो गुने राप्रसे अफसर दोनों भवनों में पदस्थ हो गए हैं। यहां तक कि दूर दूर तक वास्ता न होने के बावजूद तकनीकी विभागों में भी डिप्टी कलेक्टर पदस्थ हो गए हैं।
विभाग न मिले तो भी ये जीएडी पूल यानी रिजर्व में रहकर बिना काम के दिन काट रहे थे। बंगला, कार नौकरों के साथ पूरा दबदबा और राजधानी में रहने का जलवा अलग। और फील्ड के दफ्तर डिप्टी, संयुक्त और एडिशनल कलेक्टर की कमी से जूझ रहे थे। नई सरकार आने के बाद इसका आकलन कर पहले सचिव पी.अंबलगन और अब मुकेश बंसल ने जो ऑपरेशन क्लीन अभियान चलाया उससे फील्ड के दफ्तरों को अफसर मिले हैं।
नए वर्ष में अब तक किए गए राप्रसे अफसरों के तबादले में से 60 से अधिक अफसर मंत्रालय, संचालनालय, आयोग, निगम-मंडलों से निकालकर फील्ड में डिप्टी, संयुक्त, एडिशनल कलेक्टर पदस्थ किए गए हैं। इससे कलेक्टरों के हाथ मजबूत तो हुए हैं, और सीएम विष्णु साय के कामकाज में समयबद्धता, तेजी और कसावट के न्यू ईयर रेजुलेशन भी हासिल किया जा सकता है। वैसे यह सिलसिला अभी थमा नहीं है,जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ के मजदूरों से जुड़े दो रेल हादसों की चीख
महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पुष्पक एक्सप्रेस से जुड़े हालिया हादसे ने रेल की पटरियों पर छत्तीसगढ़ से जुड़े उन भयावह दृश्यों को ताजा कर दिया, जिनमें निर्दोष जानें गंवाई गईं। वहां ज्यादातर सवारी जनरल डिब्बे के थे, यहां भी मजदूरों ने जान गंवाई थीं। हादसा तो अचानक होता है, लेकिन उसका कारण अक्सर हमारी लापरवाह व्यवस्था और लोगों की मजबूरियां होती हैं। यहां छत्तीसगढ़ से जुड़ी दो घटनाएं बताना चाहेंगे, जो श्रमिकों, कामकाजी लोगों की पटरियों पर हुई ऐसी ही मौतों से जुड़ी है।
2011 में, 22 अक्टूबर को बिलासपुर स्टेशन के पास फाटक बंद रहने की समस्या से जूझते मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी। ठीक स्टेशन से आगे तारबाहर में 20 से अधिक पटरियों का जाल, हजारों लोगों का आवागमन और रेलवे की कमजोर सुरक्षा। बंद फाटक को आप पैदल, साइकिल और बाइक से पार कर सकते थे। अंडरब्रिज या ओवर ब्रिज बनाने की मांग को रेलवे ने लगातार अनसुना किया। पार करते लोगों को एक मालगाड़ी ने रौंद दिया। इस घटना में मौके पर ही 11 ने जान गंवाई,बच्चे- महिलाएं भी इनमें शामिल थे । बाद में यह संख्या बढक़र 16 हो गई। इस हादसे के बाद अंडरब्रिज बनाया गया।
2020 में लॉकडाउन के दौरान, छत्तीसगढ़ के मेहनतकश प्रवासी मजदूरों ने सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय करना तय किया। सब तरफ सन्नाटे के बीच। 7 मई को थकान और भूख से टूटे इन मजदूरों ने रेल पटरी को अपना अस्थायी आश्रय समझा, पटरी पर ही लेट गए। लेकिन मालगाड़ी ने उनके सपनों और जीवन को कुचल दिया। उन्हें पता नहीं था कि रेलगाडिय़ां पूरी तरह बंद नहीं है। सवारी गाडिय़ां नहीं चल रही थीं, लेकिन कोविड का फायदा उठाते हुए माल लदान, ढुलाई को रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचाया जा रहा है।
ये हादसे बताते हैं कि अपने खून-पसीने से देश की आर्थिक गाड़ी को खींचने वाले मजदूरों की जिंदगी को सुरक्षा देने में हम बार-बार विफल हो जाते हैं।
जिम्मेदारी से भाग रहा वन विभाग
टाइगर रिजर्व के नाम पर फॉरेस्ट के अफसरों को करोड़ों का फंड तो चाहिए, मगर किसी बाघ-बाघिन की जान खतरे में हो तो उसे बचाने के नाम पर पल्ला छुड़ाते हैं। बजट मिले इसलिए, गिनती में तो शामिल कर लेते हैं मगर, कोशिश करते हैं कि वह उनके इलाके से भाग जाए, दूसरे इलाके के अफसर जो करना चाहते हैं करें। बांधवगढ़, कान्हा नेशनल पार्क घूमते अचानकमार टाइगर रिजर्व में और अब दोबारा मरवाही वन मंडल में घूम रही टाइग्रेस इन दिनों भटक रही है। यह स्थिति खुद उसके लिए और जंगल में रहने वाले लोगों के लिए खतरे का कारण बन रही है। अब तक किसी मनुष्य का शिकार उसने नहीं किया लेकिन 6 मवेशियों को मार चुकी है। प्रभावित ग्रामीणों को इसने चिंता में डाल रखा है। यह भी आशंका है कि आत्मरक्षा या गुस्से में लोग इस बाघिन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ का वन विभाग मध्यप्रदेश के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर इस बाघिन को रेस्क्यू कर सकता है। रेडियो कॉलर के जरिए उसकी लोकेशन पहले से मिल रही है, लेकिन इस प्रक्रिया में देर होना अनहोनी को निमंत्रण देना है। रात में स्पॉटलाइट से उसके लोकेशन की खोजबीन सिर्फ नजर रखने और लोगों को सतर्क करने के लिए की जा रही है। जानकारों का कहना है कि ऐसा करना उसे अधिक परेशान कर सकती है। इसे सुरक्षित स्थान पर ले जाकर उसे ऐसी जगह छोड़ा जा सकता है, जहां उसकी जिंदगी और इंसानी गतिविधियां दोनों सुरक्षित रहें। यह समय है कि वन विभाग सक्रियता दिखाए, अन्यथा यह लापरवाही पर्यावरण व वन सुरक्षा में योगदान देने वाली इस जीव की मृत्यु या मानव-वन्यजीव संघर्ष की किसी घटना को जन्म दे सकती है।
(rajpathjanpath@gmail.com)
या तो संगठन, या चुनाव
भाजपा में नगरीय निकाय प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। पार्टी संगठन के एक अलिखित फैसले से हलचल मची हुई है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि मंडल और जिला अध्यक्षों को चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा। जबकि कई मंडल, और जिलाध्यक्ष वार्ड चुनाव लडऩा चाह रहे थे। रायपुर में नवनिर्वाचित शहर जिलाध्यक्ष रमेश ठाकुर लाखे नगर वार्ड से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे। ठाकुर तीन बार पार्षद रह चुके हैं। मगर इस बार उन्हें चुनाव लडऩे की इजाजत नहीं दी है। इसी तरह कुछ मंडल अध्यक्ष भी वार्ड चुनाव लडऩे के मूड में थे, लेकिन उन्हें वार्डों में जाकर पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए की जिम्मेदारी दी गई है। न सिर्फ रायपुर बल्कि बाकी जिलों में भी कमोबेश यही स्थिति है। दूसरी तरफ, पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं हो रहे हैं। अलबत्ता, भाजपा जिला और जनपद के लिए अपने समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी करेगी। पंचायतों में भी यथा संभव जिला और मंडल के पदाधिकारियों को चुनाव लडऩे से मना किया गया है, फिर भी कुछ जगहों पर मंडल के पदाधिकारी चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कांग्रेस में मेयर पर सोच-विचार
कांग्रेस में कुछ मौजूदा मेयर को फिर से चुनाव लड़ाने पर विचार चल रहा है। इनमें अंबिकापुर से डॉ. अजय तिर्की, और चिरमिरी से कंचन जायसवाल प्रमुख हैं। डॉ. तिर्की के नाम पर ज्यादा कोई विवाद नहीं है। अलबत्ता, चिरमिरी की मौजूदा मेयर कंचन जायसवाल अथवा उनके पति पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल के नाम पर भी चर्चा चल रही है।
चिरमिरी से पूर्व मेयर डमरू रेड्डी भी जोर लगा रहे हैं। कुल मिलाकर यहां नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत की पसंद पर मुहर लग सकती है। इससे परे कोरबा से पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल की पत्नी रेणु अग्रवाल की टिकट पक्की मानी जा रही है। रेणु एक बार मेयर रह चुकी हैं। और जयसिंह नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत के करीबी माने जाते हैं। यही वजह है कि रेणु अग्रवाल की टिकट को लेकर ज्यादा कोई विवाद नहीं है।
हालांकि बिलासपुर, रायगढ़, राजनांदगांव, और धमतरी मेयर भी टिकट चाहते हैं। पार्टी की सोच भी है कि मौजूदा मेयर को प्रत्याशी बनाने से चुनाव खर्च को लेकर समस्या नहीं आएगी, लेकिन जीत की संभावना भी टटोली जा रही है। बावजूद इसके दो-तीन मेयर फिर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
दो अध्यक्षों की इज्जत दांव पर
चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज जगदलपुर मेयर टिकट को लेकर उलझन में हैं। बस्तर के एक और प्रभावशाली नेता पूर्व मंत्री कवासी लखमा जेल में हैं। इस वजह से जगदलपुर मेयर टिकट बैज की पसंद से ही तय होने की उम्मीद है। यहां से बैज के करीबी प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदू का नाम भी चर्चा में है। मलकीत सिंह की अच्छी पकड़ भी है। मगर वो असमंजस में है।
दूसरी तरफ, जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, और लखमा के करीबी राजीव शर्मा, और मनोहर लूनिया का नाम भी चर्चा में है। दीपक बैज, जगदलपुर के प्रत्याशी को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाह रहे हैं। और यहां चुनाव हारने से उनके लिए भविष्य की राह आसान नहीं रह जाएगी। इससे परे भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष किरणदेव की साख भी दांव पर है। कुल मिलाकर बैज स्थानीय नेताओं से लगातार चर्चा कर सर्वमान्य प्रत्याशी की खोज में जुटे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चुनाव और पटवारियों पर कार्रवाई
सरकार के ऑनलाइन कामकाज के विरोध में एक माह से प्रदेश के पटवारी हड़ताल पर है। इससे फील्ड में भू राजस्व का काम चरमरा गया है। एक माह से खसरा बी-वन की नकल तक नहीं मिल रही। नामांतरण तो दूर की बात है। ग्रामीण इलाकों में गहन आक्रोश और सरकार के प्रति नाराजगी घर कर गई। सामने ग्रामीणों की हिस्सेदारी वाले पंचायत चुनाव होने हैं। कहीं यह भारी न पड़ जाए इसे देखते हुए राजस्व विभाग पटवारियों पर कार्रवाई कर रहा है। पहले पटवारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष और सचिव का तबादला कर दिया ।और अब निलंबन, सेवा से पृथक करने की धमकी दी जा रही। और अब यह विवाद बड़े पैमाने पर कर्मचारियों के वृहद संगठन तक जा पहुंचा है।
फेडरेशन के नेताओं का कहना है कि सरकार कर्मचारी नेताओं से संवाद करने के बजाय लगातार उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। हम चाहते हैं कि सरकार को कार्रवाई करने के बजाय कर्मचारी संगठनों से संवाद कर समस्याओं के समाधान के लिए पहल करनी चाहिए। फेडरेशन ने कर्मचारी नेताओं के खिलाफ की जा रही कार्रवाई का विरोध और निंदा की है। नई सरकार के एक वर्ष बाद ही हर विभाग,वर्ग के कर्मचारी पिछली सरकार को याद करने लगे हैं। उनका कहना था कि पिछली सरकार का खौफ, अफसरों में होता था न कि कर्मचारियों पर।
शिक्षा विभाग के एक कर्मचारी नेता ने लिखा शिक्षा विभाग को भी प्रयोगशाला बना कर रख दिया गया है। परीक्षा के समीप चुनाव का आयोजन कर वैसे ही इस शैक्षणिक सत्र का बंदरबाट कर दिया गया है। रोज नित नए आदेश, ऑनलाइन अवकाश, राजस्व तथा अन्य विभाग के नए नए कार्य थे शिक्षा विभाग के माथे मढ़ कर पढ़ाई को कागजों में प्राथमिकता पर रखा है। हकीकत में अंतिम है।
अस्पताल में इंद्रधनुष देखा ?
यह केरल के एक सरकारी अस्पताल की तस्वीर है, जिसकी बेड में एक खास बात है। इसमें लिखा फ्राईडे यह सुनिश्चित करता है कि बिस्तर की बेडशीट हर दिन बदली जाती है। यह शुक्रवार की बेडशीट है। अपने यहां कितने अस्पतालों में यह देखा गया है? केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है मिशन इंद्रधनुष जिसके तहत गर्भवती माताओं और 5 साल के बच्चों के लिए टीकाकरण का अभियान चलता है। सन् 2023 में इसका पांचवां चरण शुरू हो चुका है। छत्तीसगढ़ में भी यह योजना लागू है। इसी अभियान के तहत यह भी तय किया है कि इंद्रधनुष के पैटर्न पर हर दिन चादर बदल दिए जाएंगे, जो मरीज अंग्रेजी में लिखे दिन का नाम नहीं पढ़ सकते, वे रंग से जान सकते हैं कि चादर आज बदली गई या नहीं। बिस्तर की चादरों के दिन और रंग इस प्रकार तय हैं- रविवार- बैंगनी, सोमवार-नीला, मंगलवार-नीला, बुधवार-हरा, गुरुवार-पीला, शुक्रवार-नारंगी और शनिवार-लाल। क्या आपने छत्तीसगढ़ के अस्पतालों में इसका पालन होते देखा है? गुजरात के एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा है कि उन्होंने 9 सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण किया, कहीं भी इसका पालन होते नहीं पाया। आप भी अपने पास के सरकारी अस्पतालों में पता लगा सकते हैं कि क्या उन्होंने रंग-बिरंगे चादर का इंतजाम, हर दिन के लिए अलग-अलग किया है?
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महिला कांग्रेस का दफ्तर सील होगा?
पूर्व सीएम भूपेश बघेल इस बात से खफा हैं कि रायपुर मेयर, और अन्य कई जगहों पर टिकट के लिए पार्टी नेता अपनी पत्नियों के नाम आगे बढ़ा रहे हैं। पार्टी नेताओं के प्रभाव में जिले के पदाधिकारी भी अपनी 'नेता' पत्नी को ही प्रमोट कर रहे हैं। सुनते हैं कि पूर्व सीएम ने रायपुर जिले के एक प्रमुख पदाधिकारी को फटकार भी लगाई, कि नेताओं की पत्नी को आगे किया जाएगा, तो पार्टी की महिला कार्यकर्ता क्या करेंगी?
चर्चा है कि पूर्व सीएम ने रायपुर मेयर टिकट के लिए दावेदारों को टटोलने की भी कोशिश की। कुछ नेताओं ने महिला आयोग अध्यक्ष श्रीमती डॉ. किरणमयी नायक का नाम सुझाया। भूपेश ने उन्हें फोन भी लगवाया, लेकिन किरणमयी नायक के अंबिकापुर प्रवास में होने की वजह से चर्चा नहीं हो पाई। इससे परे राजीव भवन में महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों ने आपस में बैठक भी की है। कुछ तो नेता पत्नी के नामों को लेकर यह कहते सुने गए, कि यदि इन्हीं (नेता-पत्नी)में से प्रत्याशी तय किया जाता है, तो महिला कांग्रेस के कार्यालय को सील कर देना चाहिए। चाहे कुछ भी हो, महिला-टिकट मसले पर कांग्रेस में विवाद बढ़ सकता है।
नई ईवीएम और नई आशंकाएं
विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बाद एक बार फिर ईवीएम सेंटर ऑफ अट्रैक्शन हो गया है। निकाय चुनाव में करीब पांच वर्ष बाद 11 फरवरी को ईवीएम से वोटिंग होगी। नगरीय निकायों के मतदाता एक ही मशीन में एक ही बार में दो बार बीप का बटन दबाएंगे। पहला पार्षद के लिए दूसरा महापौर और पालिका अध्यक्ष के लिए । दो वोटिंग की सुविधा वाली इस एक ही मशीन को तकनीकी रूप से मल्टी वोट मल्टी पोस्ट नाम है।
यूं तो ईवीएम अपने ईजाद के जमाने से विवाद और अविश्वास से जूझ रही है। और राज्य निर्वाचन आयोग के इस नए नाम से चुनावी मैदान के घाघ एक बार फिर संदेह, आशंका कुशंका के शब्द लेकर उतर गए हैं। अभी यह सब कुछ वाट्सएप ग्रुप में चल रहा है जल्द ही आयोग, हाईकोर्ट तक भी जा सकता है। सशंकित लोगों का कहना है कि भाजपा सुनियोजित रूप से ईवीएम की नई मशीन लेकर आई है जिसमे एक ही मशीन में अध्यक्ष पार्षद के वोट डाले जाएंगे। वीवीपैड की पर्ची भी नहीं मिलेगी। जिस मशीन के बारे में जनप्रतिनिधि न ही आम जनता जानती है।
कई जिलों में जिला निर्वाचन अधिकारी की भूमिका निभाने वाले अधिकारी जो चुनाव करवाने का अनुभव नहीं रखते ना ही इनको मशीन की पूरी जानकारी है कि कैसे आठ दिन में चुनाव कराना है तो वो मतदाता तक कैसे जानकारी पहुंचा पाएंगे। इसमें भाजपा की पूरी प्लानिंग है इसका विरोध करेंगे।
वैसे तकनीकी जानकार बताते हैं कि ये मशीन स्टेट इलेक्शन कमीशन की है। इसमें एक सेंट्रल यूनिट में 4 बैलेट यूनिट कनेक्ट किए जा सकेंगे। और एक बीयू में महापौर,अध्यक्ष और पार्षद के 12प्रत्याशियों के नाम हो सकेंगे। हर मशीन में एक बटन, नोटा का होगा।
सबसे ज्यादा बधाई मिल रही है ...... को
नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव की वजह से कैबिनेट का विस्तार टल गया है। फरवरी के आखिरी हफ्ते में विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो सकता है। ऐसे में कैबिनेट विस्तार कब होगा, यह तय नहीं है। मगर भाजपा के छोटे-बड़े नेता पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को मंत्री बनने की अग्रिम बधाई देते नजर आए।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल के यहां विवाह समारोह में देश-प्रदेश के नेता जुटे थे। सरकार के मंत्री-विधायक, आम लोगों के आतिथ्य सत्कार में लगे थे। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल भी पूरे समय विवाह समारोह में रहे। कईयों ने उन्हें बधाई दी, तो वो हंसकर टालते दिखेे। पूर्व स्पीकर धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत सहित अन्य सीनियर विधायकों का नाम भी भावी मंत्रियों के रूप में लिया जा रहा है, लेकिन बधाइयां तो सबसे ज्यादा अमर को ही मिल रही है। अमर मंत्री बनेंगे या नहीं, यह तो कैबिनेट विस्तार के बाद ही पता चलेगा।
गया ड्रोन पानी में...
दूरस्थ क्षेत्रों में ड्रोन के माध्यम से दवाएं पहुंचाने और पैथोलॉजी टेस्ट के लिए सैंपल इक_ा करने का महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया है, वह भी स्वास्थ्य मंत्री के अपने क्षेत्र में। नवंबर माह में सरगुजा संभाग के कई स्थानों पर इस योजना का परीक्षण किया गया, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल की उपस्थिति भी रही। सूरजपुर जिले में ड्रोन के जरिए भटगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक दवाएं भेजी गईं, जबकि मनेंद्रगढ़ से चिरमिरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और बस्तर के कोंडागांव से मर्दापाल तक भी इसी प्रकार का परीक्षण किया गया।
सरगुजा और बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। मरीजों को इलाज के लिए नदी-नालों को पार कर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ड्रोन के माध्यम से दवाएं पहुंचाने की यह योजना इन दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती थी, क्योंकि इससे आपातकालीन स्थिति में त्वरित उपचार मिल सकता था।
अक्टूबर में मध्य प्रदेश में इस योजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भोपाल एम्स में किया गया था। वहां ड्रोन के जरिए सैंपल और दवाएं मंगाने-भेजने का काम हो रहा है। मेघालय जैसे अन्य दुर्गम मार्ग वाले राज्यों में भी यह योजना प्रभावी रूप से लागू हो चुकी है। सरगुजा में नवंबर में जब परीक्षण हुआ, तो एक जगह से दूसरी जगह दवाएं पहुंचाने में केवल 20-25 मिनट लगे, जबकि सडक़ मार्ग से यही दूरी तय करने में डेढ़ से दो घंटे लगते हैं।
मगर, सरगुजा में इस योजना पर अमल नहीं हो पा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि बजट नहीं मिला। यह संयोग है कि पिछली कांग्रेस सरकार में भी स्वास्थ्य मंत्री सरगुजा संभाग से थे और अब भी वही स्थिति है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की कोई ठोस पहल नजर नहीं आ रही है। योजना का ठंडे बस्ते में चला जाना प्रशासनिक इच्छाशक्ति और प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करता है।
सडक़ बना आशियाना...
अंबिकापुर में महामाया पहाड़ी पर वन विभाग की जमीन पर घर बनाकर रह रहे लोगों को हाईकोर्ट ने अर्जेंट सुनवाई कर फौरी राहत तो दे दी है, पर यह केवल 5 दिन के लिए है। हाईकोर्ट का आदेश आने से पहले ही कई मकान तोड़े जा चुके थे। फिलहाल उनकी स्थिति ऐसी है। जाहिर है कि अफसरों की लापरवाही से जंगल पर कब्जा हुआ। कब्जा होता रहा, देखते रह गए- समय पर कदम नहीं उठाया गया। लोग पूछ रहे हैं कि क्या वन विभाग के अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ भी कोई एक्शन होगा?
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पटवारियों की लंबी हड़ताल
एक तरफ लंबित राजस्व मामले जल्दी निपटे इसके लिए मंत्री और अफसर जिलों में बैठकें लेते, फटकारते हैं, दूसरी तरफ पटवारियों की एक माह से भी लंबी (16 दिसंबर से) चल रही हड़ताल खत्म कराने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। सरकार ने अभी हाल ही में संघ के प्रदेश पदाधिकारियों का तबादला कर दिया, जिसने आंदोलनरत पटवारियों को और नाराज कर दिया है। राजस्व का काम ठप होने से अनुमान है कि अकेले रायपुर में 12000 से अधिक आवेदन लंबित हो चुके हैं। पूरे प्रदेश में रुके मामलों की संख्या 1.5 लाख से अधिक हो सकती है। इसमें केवल नामांतरण, फौती के मामले नहीं हैं बल्कि आय प्रमाण पत्र, ओबीसी प्रमाण पत्र, एसटीएससी जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भी लोग भटक रहे हैं। पटवारियों से बात करने से पता चलता है कि दस्तावेज तैयार करने की ऑनलाइन प्रक्रिया में काम तो करना चाहते हैं, पर सरकार ने उन्हें सुविधाएं नहीं दी। वे इंटरनेट और मोबाइल फोन पर आने वाले खर्च का भत्ता मांग रहे हैं। एक पटवारी के पीछे 2 या 3 हजार रुपये का अतिरिक्त भार सरकार को उठाना है। इन पटवारियों की संख्या प्रदेश में करीब 6 हजार है। (जो लोग समझते हैं कि पटवारियों को 2-4 हजार रुपये की क्या जरूरत, इस मांग पर उनको गौर करना चाहिए।)
वैसे पटवारियों के सारे अधिकार तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक के पास भी होते हैं। लंबित काम वे भी निपटा सकते हैं। सरकार की ओर से निर्देश भी जारी किया गया है कि अर्जेंट काम वे निपटाते चलें, मगर यह स्थायी समाधान नहीं है। आम आदमी को पटवारी से ही मुलाकात करने और कराने के लिए कितने ही पापड़ बेलने पड़ते हैं, तहसीलदार और आरआई से वे किस तरह जूझ पाएंगे?
अब जब स्थानीय चुनावों के लिए आचार संहिता लागू हो चुकी है, सरकार हड़ताल खत्म कराने के लिए केवल आश्वासन दे सकती है। पार्षद और पंच पदों के दावेदारों को भी पटवारियों से कई तरह के सर्टिफिकेट की जरूरत पडऩे वाली है। आम आदमी की नहीं सही, इनकी परेशानी की तरफ तो अफसरों का ध्यान जाएगा ही।
साप्ताहिक सुपर मार्केट
ऐसे बाजार में क्या-क्या खूबियां होती हैं? एक तो ज्यादातर सामान आदिवासी, ग्रामीण अपने हाथों से बनाकर बेचते हैं। बिकने वाली ज्यादातर चीजें पर्यावरण के अनुकूल होती हैं। थोड़ा मोल-भाव जरूर होता है, पर हर चीज किफायती। मुनाफे और लागत के बीच ज्यादा अंतर नहीं होता। मॉल या सुपर मार्केट में जब यही सामान खरीदने जाएं तो अलग महंगे दर पर मिलेगी। गांवों के साप्ताहिक बाजार में सामुदायिक भावना होती है। ग्राहक और दुकानदार के बीच जो अपनापा और रिश्ता होता है, वह सुपर मार्केट में नहीं मिलेगा। ग्रामीण साप्ताहिक बाजार में केवल जबान के भरोसे पर उधार मिल जाएगा, सुपर बाजार में क्रेडिट कार्ड से मिलेगा, मोबाइल नंबर बताना होगा। कला, संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के मिसाल होते हैं ये बाजार, जिन पर धीरे-धीरे शहरीकरण का असर दिखने लगा है। यह तस्वीर धमतरी जिले के गट्टासिल्ली गांव की है, जो नगरी तहसील में पड़ता है। छायाकार पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर ने ली है।
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बेकसूर के खिलाफ अतिसक्रियता
आखिरकार एक्टर सैफ अली खान पर हमले के संदिग्ध आकाश कनौजिया को लंबी पूछताछ के बाद आरपीएफ ने रविवार को सुबह छोड़ दिया। पहले आकाश को मुंबई ले जाने की तैयारी थी, लेकिन असली आरोपी के गिरफ्तार होने की सूचना के बाद उसे दुर्ग रेलवे स्टेशन से जाने दिया गया।
आकाश मुंबई के कोलाबा का रहने वाला है, और जांजगीर-चांपा में उसका ननिहाल है। वह मुंबई से अपने ननिहाल आ रहा था तभी शालीमार एक्सप्रेस में आरपीएफ की टीम पूछताछ के लिए उसे अपने साथ ले गई। उसे एक्टर सैफ अली खान पर हमले का संदिग्ध बताया गया, और एक तरह से प्रचारित किया गया कि आकाश ने ही सैफ पर हमला किया। पूछताछ के पहले ही नेशनल मीडिया तक आकाश की तस्वीर साझा की जा चुकी थी। इसके बाद आनन-फानन में मुंबई की टीम फ्लाइट से रायपुर पहुंची, और दुर्ग में पूछताछ की गई।
कुछ लोग मानते हैं कि पुलिस ने सैफ अली खान पर हमले के आरोपी को पकड़े जाने की खबर जानबूझकर फैलाई है, ताकि असली आरोपी तक पहुंचा जा सके। इन सबके बीच मीडिया से चर्चा में आकाश यह कहते रहे कि मुझे क्यों पकड़ा गया है, यह बात पुलिस से पूछा जाना चाहिए। कई लोग यह भी कह रहे हैं यदि असली आरोपी नहीं पकड़ा जाता, तो पुलिस आकाश को ही आरोपी बनाकर पेश कर देती। इसमें सच्चाई भले ही न हो, लेकिन आरपीएफ ने जिस तरह आकाश को लेकर सक्रियता दिखाई है, उस पर सवाल तो उठ रहे हैं। सवाल तो मुंबई में सैफ पर हमले के आरोपी की गिरफ्तारी पर भी उठ रहे हैं।
वेतन आयोग और साइबर ठग
अभी तो बुधवार को ही केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की है। अभी तो आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और सचिव की नियुक्ति होनी है। उसके बाद नए वेतनमान की सिफारिश पर रिपोर्ट तैयार करने, लागू करने में एक वर्ष का समय लगेगा। लेकिन आयोग की सिफारिश और पहुंचने वाले वित्तीय लाभ की गणना को लेकर ऑनलाइन ठग सक्रिय हो गए हैं।
साइबर ठगों ने वेतन आयेग के नाम से फ्रॉडकरने का नया तरीका ढूंढ निकाला है। इसमें कर्मचारियों के खातों से फ्रॉड करके ऑन लाइन सारी जमा रकम का विथड्रावल का प्रपंच रच लिया गया है। कर्मचारी संघ के नेताओं ने अपने साथियों को सतर्क करते हुए कहा है कि अपने आपको इस फ्रॉड होने से बचाए। नए वेतन आयोग के नाम से कोई लिंक यदि आपके पास व्हाट्सएप के माध्यम से पहुंचता है। और अति उत्साहित होकर उस लिंक को भूलकर भी टच ना करें अन्यथा जमा रकम को भी नहीं बचाया जा सकेगा। जानकारी क्राइम ब्रांच एक अधिकारी के द्वारा साझा किया जाना बताया है और आग्रह किया कि सभी ग्रुप में जानकारी देकर सूचित करे। 8 वें वेतन आयोग की सैलरी गणना के लिए किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें अन्यथा आप अपने खाते में से 7वें वेतन आयोग के लाभ उड़ा सकते हैं ।
यह भी तो लिविंग ऑफ आर्ट है...
कैबिनेट की बैठक में कल लिए गए सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक यह है कि फरवरी में किसानों को एक साथ धान बोनस की राशि प्रदान की जाएगी। परंतु एक और निर्णय लिया गया है, जो चर्चा का विषय बन गया है। यह निर्णय ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन को अटल नगर (नवा रायपुर) में 40 एकड़ भूमि रियायती दर पर देने का है।
रियायती दर का मतलब है कि जिस भूमि की वास्तविक कीमत हजारों करोड़ रुपये हो सकती है, उसे दो, चार या दस रुपये प्रति वर्गफुट की दर से दिया जाएगा। इतनी विशाल भूमि का उपयोग किस उद्देश्य से किया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। हो सकता है कि बेंगलुरु स्थित उनके मुख्यालय की तरह यहां भी कोई बड़ा संस्थान बनाया जाए।
श्रीश्री रविशंकर के सरकारों के साथ संबंध हमेशा चर्चा में रहे हैं। उनके अच्छे संबंधों का लाभ उन्हें कई बार मिला है। हालांकि, यह भी सच है कि उनकी कई टिप्पणियों और गतिविधियों ने विवादों को जन्म दिया है। लगभग 12 वर्ष पूर्व उनका बयान विवाद का कारण बना, जब उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूल नक्सलवाद को बढ़ावा देते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने कहा था कि यदि नरेंद्र मोदी सत्ता में आते हैं, तो रुपया मजबूत होगा और एक डॉलर की कीमत 40 रुपये तक पहुंच जाएगी। जबकि वर्तमान में एक डॉलर की कीमत 85.3 रुपये है।वे जाति आधारित आरक्षण का विरोध भी कर चुके हैं। पद्म भूषण पुरस्कार को अस्वीकार करने के बाद उन्होंने पद्म विभूषण पुरस्कार को स्वीकार कर लिया, जिससे आलोचनाएं हुईं।
सबसे बड़ा विवाद साल 2016 में हुआ। यमुना नदी के किनारे आयोजित विश्व संस्कृति महोत्सव रखा गया। इस आयोजन से पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन पर 1200 मिलियन रुपये का जुर्माना लगाने की सिफारिश की थी। बाद में यह जुर्माना घटाकर 50 मिलियन रुपये कर दिया गया। हालांकि, उन्होंने केवल 25,000 रुपये का भुगतान किया और बाकी राशि चुकाने के सवाल पर कहा कि उनके लिए यह संभव नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि जेल भेजना है तो भेज दें। यह मामला अब भी न्यायालय में लंबित है।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दिल्ली में हुए पहले किसान आंदोलन पर उन्होंने कहा था कि कुछ लोग मिलकर हुकूमत नहीं चला सकते। भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में किसी को बाधा नहीं डालनी चाहिए।
श्रीश्री रविशंकर के सरकार के साथ संबंध हमेशा अच्छे रहे हों, ऐसा भी नहीं है। अहमदनगर (महाराष्ट्र) के शिंगनापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश का अधिकार देने के आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र सरकार उनसे नाराज थी। उस समय राज्य में भाजपा-शिवसेना की सरकार थी। इसी दौरान उन्होंने कुछ जिलों में जीरो इन्वेस्टमेंट खेती का कार्यक्रम शुरू किया, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया। उन्होंने किसानों की कर्जमाफी को भी गलत ठहराया।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर उन्होंने मंदिर बनने से पहले बयान दिया था कि यह तभी बने जब सभी की सहमति हो। जब सरकारें निर्णय लेती हैं, तो ऐसे मामलों में व्यापक शोध नहीं किया जाता। यह देखा जाता है कि रियायत मांगने वाले ने अपनी प्रोफ़ाइल में क्या लिखा है। श्रीश्री रविशंकर एक आध्यात्मिक गुरु हैं, जो योग और प्राणायाम को माध्यम बनाकर जीवन को सरल बनाने का प्रयास करते हैं। उनके कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता शामिल होते रहे हैं।
मोदी के मन की दुर्लभ अरुकू कॉफी...
जब आप जगदलपुर से विशाखापट्टनम की यात्रा करेंगे, तो रास्ते में अरुकू वैली की पहाडिय़ां, घाटियां और सुरंगें आपका मन मोह लेंगी। यहां रुकने पर बोर्रा गुफाओं का अद्भुत नजारा भी देखा जा सकता है। लेकिन इन प्राकृतिक खूबसूरती के बीच अराकू घाटी में एक दुर्लभ और विशेष खेती की जाती है, जिसे अरुकू कॉफी के नाम से जाना जाता है। यह कॉफी आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जि़ले में स्थित अरुकू घाटी में उगाई जाती है, जो पूर्वी घाट की पहाडिय़ों में बसी हुई है। अरुकू कॉफी में चॉकलेट, कारमेल और हल्के फलयुक्त अम्लता का अनोखा स्वाद होता है और यह जैविक कृषि विधियों से उगाई जाती है। इसे आदिवासी किसानों और सहकारी समितियों द्वारा उगाया जाता है, जो सामुदायिक सशक्तीकरण और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने में मदद करता है। अरुकू कॉफी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है और इसे कैफे डी कोलंबिया प्रतियोगिता में ‘सर्वश्रेष्ठ रोबस्टा’ पुरस्कार मिला है। 2019 में इस कॉफी को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग भी प्राप्त हुआ, जो इसकी विशिष्टता और गुणवत्ता को प्रमाणित करता है।
भारत में कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु कॉफी के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जबकि विश्व में ब्राजील, वियतनाम और कोलंबिया शीर्ष तीन उत्पादक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अरुकू कॉफी की विशिष्टता और महत्त्व की सराहना की, जो न केवल स्वाद में अद्वितीय है, बल्कि आदिवासी समुदायों को आत्मनिर्भर बनाने में भी योगदान करती है।
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दोनों पार्टियां देख रही हैं, गांठ के पूरे
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस, और भाजपा में मेयर-पार्षद प्रत्याशियों के नामों पर मंथन चल रहा है। कांग्रेस ने सभी निकायों में पर्यवेक्षक भेजे हैं, जो कि स्थानीय संगठन, विधायक या पराजित प्रत्याशियों से चर्चा कर दावेदारों के नामों पर चर्चा कर रहे हैं।
कांग्रेस पर्यवेक्षक दावेदारों से एक सवाल जरूर कर रहे हैं कि आप कितना खर्च कर सकेंगे? साथ ही उन्हें बता दे रहे हैं कि पार्टी किसी तरह आर्थिक मदद नहीं करेगी, उन्हें चुनाव खर्च खुद करना होगा। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की चर्चा हो रही है।
भाजपा में मेयर टिकट के दावेदारों से सामाजिक, और राजनीतिक समीकरण के अलावा उनकी आर्थिक ताकत को लेकर भी जानकारी ली जा रही है। संकेत साफ है कि कांग्रेस, और भाजपा में जो भी चुनाव मैदान में उतरेंगे वो आर्थिक रूप से मजबूत होंगे।
दिलचस्प बात यह है कि पार्षद प्रत्याशी के लिए खर्च की कोई सीमा नहीं है। जबकि मेयर प्रत्याशी अधिकतम 10 लाख, नगर पालिका अध्यक्ष पांच लाख, और नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी तीन लाख तक ही खर्च कर सकेंगे। ये अलग बात है कि चुनाव में निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च होता है।
इतने रेट में ऐसाइच मिलेंगा
सरकार के निर्माण विभागों में रोजाना घपले-घोटाले के प्रकरण सामने आ रहे हैं। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की मुख्य वजह भी यही रही है। मुकेश चंद्राकर ने पीडब्ल्यूडी के सडक़ निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। जानकार लोग घटिया निर्माण के लिए सरकार की पॉलिसी को भी काफी हद तक जिम्मेदार मान रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सरकारी ठेकों में प्रतिस्पर्धा काफी ज्यादा है। हाल यह है कि ठेकेदार एसओआर रेट से 30-35 फीसदी तक कम में काम करने के लिए तैयार रहते हैं। इस वजह से निर्माण कार्यों में गुणवत्ता नहीं रह जा रही है। इससे परे ओडिशा सरकार ने नियम बना दिया है कि एसओआर दर से 15 फीसदी कम रेट नहीं भरे जा सकेंगे। टेंडर हासिल करने के लिए इससे ज्यादा कम रेट भरा नहीं जा सकता है। बराबर रेट भरे होने की दशा में लॉटरी निकालकर टेंडर दिए जा सकते हैं।
वेतन आयोग और 7 राज्यों के चुनाव
बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने उम्मीद से विपरीत आठवें वेतन आयोग के गठन का फैसला किया। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया थाकि यह कैबिनेट का निर्धारित एजेंडे में नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलग से यह प्रस्ताव रखा। यह केंद्र और राज्य सरकारों के करोड़ों कार्मिकों के लिए नए वर्ष की शुरूआत में ही खुशखबरी रही। मगर जिस प्रधानमंत्री ने दो वर्ष पहले यह कह दिया हो कि अब नया वेतन आयोग नहीं बनेगा। उसका ऐसा न्यू ईयर गिफ्ट , बिना रिटर्न गिफ्ट के मिले यह संभव नहीं। यह रिटर्न गिफ्ट कार्मिकों को वोट के रूप में देना होगा। इसलिए तो घोषणा की । इस वर्ष केंद्र सरकार के नजरिए से दो अहम राज्यों पहले दिल्ली और फिर बिहार के चुनाव होने हैं। जाहिर हैं वोट बैंक ये कर्मचारी ही होंगे। पहले नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली इलाकों में बड़ी संख्या में मतदाताओं पर पडऩे वाला है। ये सरकारी कर्मचारी मध्य और दक्षिण दिल्ली में चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। ऐसा ही गणित बिहार में भी है । झारखण्ड गंवाने के बाद सुशासन बाबू (नीतिश कुमार)की दलबदलू वाली नकारात्मक छवि से निपटने वेतन आयोग ही कारगर हो सकता है?। और अगले वर्ष 2026 में आयोग की रिपोर्ट आने के दौरान केरल,पुडुचेरी ,तमिलनाडु, असम के बाद पश्चिम बंगाल में भी चुनावी खेला होना है।यह उसी की तैयारी है। नए वेतन आयोग से हजारों कर्मचारियों, पेंशनभोगियों और रक्षा कर्मियों को लाभ होगा।
इससे पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व.मनमोहन सिंह ने 2014 में भी लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले फरवरी में सातवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उस आयोग ने 2.57 गुना फिटमेंट फैक्टर की सिफारिश की थी। और वेतन मैट्रिक्स 1 में वेतन 7000 रुपये से बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति माह किया गया था। वर्तमान सरकार आने वाले हफ्तों में थोड़ी अधिक बढ़ोतरी कर सकती है। आम तौर पर वेतन पैनल का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जिसमें सेवानिवृत्त सचिव और वरिष्ठ अर्थशास्त्री इसके सदस्य होते हैं। सातवें वेतन आयोग के कारण 2016-17 के दौरान एक लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हुआ।
बाघों के लिए बचाएं जंगल
वन्यप्राणियों, विशेषकर बाघों के संदर्भ में छत्तीसगढ़ में कुछ असामान्य गतिविधियां दिख रही हैं। बारनवापारा में एक बाघ कहीं से आ गया। यहां तेंदुआ तो हैं, पर बाघ पहली बार देखा गया। उसे बाद में गुरु घासीदास अभयारण्य में ले जाकर छोड़ दिया गया। इसके बाद करीब एक पखवाड़े तक मरवाही वन मंडल और अचानकमार अभयारण्य में एक गर्भवती बाघिन विचरण कर रही थी। वह घूमते, फिरते भटकते भनवारटंक के पास आ गई, जो उसलापुर-कटनी रेल मार्ग में पड़ता है। यह बाघिन कुछ दिन बाद अमरकंटक की तराई में दिखी। फिर उसे कटनी मार्ग पर ही शहडोल के पास देखा गया। अभी उसका कुछ पता नहीं है। अब एक बाघ को साजा के रिहायशी इलाके में पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे के फार्म हाउस के पास पाया गया। बाघ किसी को नजर नहीं आया लेकिन पंजों के निशान से वन विभाग ने बाघ की पुष्टि की है। जिला प्रशासन और वन विभाग ने अलर्ट भी जारी किया है।
ये खबरें उसी दौरान आ रही हैं जब दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में जंगल का 3 प्रतिशत विस्तार हो गया है। यह विस्तार हुआ है तो बाघ-बाघिनों को इतना भटकना क्यों पड़ रहा है? विस्तार के दावे को कई पर्यावरण प्रेमियों ने तथ्यों के साथ नकारा भी है। बाघों का मनुष्यों की आबादी के बीच दिखना कौतूहल और सनसनी की बात जरूर हो सकती है लेकिन इन जीवों को किस तरह से अपना अस्तित्व बचाने की चिंता सता रही है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। सुकून भरा घना जंगल मिले, जहां इनके लिए पर्याप्त आहार हों, तो ये शायद हमें नहीं दिखेंगे। बाघ एक शीर्ष मांसाहारी जीव है। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उनका होना बहुत जरूरी है। जिस जंगल में बाघ होते हैं, माना जाता है कि वह तस्करों से सुरक्षित रहता है। पर जब ये ही जंगल छोड़ रहे हों तो गहरी चिंता होनी चाहिए। विडंबना है, जंगल बचाने वाले बाघों के लिए जंगल नहीं बच रहे।
भविष्य ही जोखिम भरा, जान की क्या परवाह..
बीएड प्रशिक्षित विरोध कर रहे हैं, जब उन्हें राजधानी रायपुर के तूता स्थित धरनास्थल से उठाकर ले जाया जा रहा है। अदालती आदेश के बाद इनकी नौकरी छिन गई है। नौकरी देने के बाद 2900 लोग हटा दिए गए हैं। हजारों पद शिक्षकों के खाली है, समायोजन की मांग कर रहे हैं। अपनी कोई राय नहीं। बस, तस्वीर देख लीजिए।
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