राजपथ - जनपथ
विज्ञापन देने वाला चला गया
अनुमान है कि सहारा इंडिया में छत्तीसगढ़ के करीब 15 हजार करोड़ रुपये फंसे हुए हैं, जो 7 लाख से अधिक निवेशकों ने जमा किए। इनमें मजदूर, छोटी मोटी नौकरी करने वाले और गृहणियां अधिक हैं, जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई, बेटियों की शादी जैसे कामों के लिए ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद में पैसे लगाए। परिपक्व होने के बावजूद रकम वापस नहीं होने पर घबराये निवेशकों ने हर उपाय कर डाले। रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर जैसे जिलों में उनका कई बार प्रदर्शन हो चुका। स्थानीय कार्यालयों के कुछ शाखा प्रबंधकों की गिरफ्तारी भी हुई पर वे जमानत पर छूट चुके। इसी साल हाईकोर्ट में करीब 400 निवेशकों ने याचिकाएं दायर की। इस पर सुनवाई हो रही है। सरकार की ओर से बताया गया है कि सहारा की कुछ संपत्तियों को कुर्क करके नीलामी की गई है और उसके जरिये निवेशकों की रकम लौटाई जाएगी। पर छत्तीसगढ़ में उसकी अचल संपत्तियां काफी कम हैं। इस साल जुलाई महीने में केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने निवेशकों की रकम लौटाने के लिए एक पोर्टल सीआरसीएस सहारा पोर्टल लांच किया था। इसमें शुरू में ही 18 लाख से अधिक आवेदन जमा हो गए। अब तक इसके जरिये कितनों की रकम वापस की जा सकी, यह मालूम नहीं। पर, यह घोषणा उसी समय कर दी गई थी कि अधिकतम 10 हजार रुपये ही लौटाये जाएंगे। जिन लोगों के लाखों रुपये फंसे हैं उन्हें इतनी छोटी राशि से कैसे तसल्ली मिल सकती है? इतना तो वे रकम पाने के लिए दौड़-धूप में ही खर्च कर चुके।
अब सहाराश्री सुब्रत राय का निधन हो गया है। लाखों लोगों को उनकी मौत से झटका लगा है। राय जब तक जीवित थे, बड़े अखबारों में नियमित रूप से बड़ा-बड़ा विज्ञापन देकर बताते थे कि सेबी ने उसकी कंपनी के खातों को रोककर रखा है। जैसे ही सेबी की पाबंदियां हटेंगी, पाई-पाई लौटाई जाएगी। उनका यह आश्वासन हताश निवेशकों में उम्मीद जगाये रहने के काम आता था, साथ ही कई बार मारपीट और गिरफ्तारी झेल चुके सहारा के कर्मचारियों की खाल बचाता था। अब पता नहीं उन्हें कौन दिलासा देगा और रकम कभी वापस मिल सकेगी भी या नहीं।
शराब दुकान में पीएम का पोस्टर
चुनाव कोई भी हो, शराब की अपनी भूमिका होती है। राजनीतिक कार्यकर्ता इसे छिपाकर भी क्या कर लेंगे। वह एक साथ शराब भी बेच सकता है और अपने पसंद के दल का प्रचार भी। यह तस्वीर राजस्थान के झोटवाड़ा जिले की है, जहां से ओलंपिक रजत विजेता शूटर केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वहां के कांग्रेस नेताओं ने सोशल मीडिया पर यह तस्वीर वायरल करते हुए दावा किया है कि भाजपा ने शराब दुकान को ही पार्टी का कार्यालय बना दिया है।
धान 3 दिसंबर के बाद ही बिकेंगे?
एक नवंबर से पूरे छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का सिलसिला शुरू हो चुका है, पर खरीदी केंद्रों में किसानों के बीच टोकन के लिए कोई मारामारी नहीं दिखाई दे रही है। इसके दो कारण हैं। एक तो सरकारी अमला चुनाव कराने में व्यस्त है, पर उससे बड़ी दूसरी वजह है धान की कीमत। चुनाव घोषणा पत्र में कांग्रेस भाजपा दोनों ही दलों के बीच होड़ मची रही कि कितना धान खरीदें और कितना भुगतान करें। भाजपा ने 3100 रुपये तो कांग्रेस ने 3200 क्विंटल की घोषणा कर दी है। कांग्रेस ने 20 क्विंटल प्रति एकड़ तो भाजपा ने 21 एकड़ खरीदने की बात कही है। भाजपा ने एकमुश्त राशि देने की बात कही है, कांग्रेस चार किश्तों में देती आई है। इस फॉर्मूले पर कोई बदलाव घोषित नहीं किया गया है। भाजपा ने अपने कार्यकाल के दो साल के बकाया बोनस को देने की घोषणा की है। कांग्रेस ने सन् 2018 में सरकार बनने पर इसे देने की घोषणा की, जो पूरी नहीं की गई। कांग्रेस ने कर्ज माफी फिर एक बार करने की बात कही है, भाजपा ने इस पर कोई बात नहीं की।
किसान को दोनों ही दलों की घोषणाओं में फायदे दिखाई दे रहे हैं, पर उनके वोट से पता लगेगा कि किसकी बात पर उन्हें ज्यादा भरोसा है। हालांकि भाजपा कांग्रेस दोनों ने ही किसानों से अपील की है कि वे धान बेचना बंद न करें, अतिरिक्त राशि का भुगतान सरकार बनने के बाद किया जाएगा। पर किसान असमंजस में हैं। खरीदी केंद्रों में धान आने की रफ्तार धीमी है। यदि वे 3 दिसंबर, चुनाव परिणाम का इंतजार करेंगे तो एकाएक खरीदी केंद्रों में बिक्री ने आपाधापी मचना तय है।
तीसरे मोर्चे की रणनीति
वैसे तो छत्तीसगढ़ में चुनावी मुकाबला दो ही दलों के बीच ही माना जाता है। कांग्रेस भाजपा ही सरकार बनाने की स्थिति में पहुंचती हैं। इस वजह से मतदाताओं का रुझान दो दलों पर ही अधिक रहता है। परन्तु बसपा अपनी जमीन पर हर बार मजबूती से आती है। हर चुनाव में एक-दो विधायक उनके चुने ही जाते हैं। इन सबसे परे एक पार्टी के कद्दावर नेता का मानना है कि जहां जहां मामला त्रिकोणीय होता है, वहां वहां उनकी पार्टी के प्रत्याशी की जीतने की संभावना बढ़ जाती है। 2003 चुनाव में विद्याचरण शुक्ल ने एनसीपी से कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया था। उसके बाद ऐसी स्थिति नहीं दिखी लेकिन पिछले चुनाव में नेताजी को त्रिकोणीय मुकाबले से काफी उम्मीद थी, लेकिन मामला उल्टा पड़ गया। इस बार फिर से कुछ नए दलों ने मुकाबला त्रिकोणीय करने का माहौल बनाने की कोशिश की है। इसमें जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस का नाम सबसे ऊपर है, उन्होंने बागियों को खोज-खोजकर टिकट दी है। इसी तरह बस्तर में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम की पार्टी हमर राज ने दम खम से चुनाव लड़ा है। छत्तीसगढिय़ा क्रांति सेना ने भी अधिकांश सीटों से ताल ठोंका है। आम आदमी पार्टी पहले ही मैदान में है। अब देखना यह है कि किन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनती है और कहां कितना फायदा मिलता है। इस फायदे का फायदा किसे मिलता है।
उधर नक्सली, इधर हाथी
छत्तीसगढ़ में पहले चरण की 20 नक्सल प्रभावित सीटों पर सुबह 7 बजे से दोपहर 3 बजे तक मतदान का समय तय किया गया था ताकि मतदाता और मतदान दल दिन के उजाले में ही अपने-अपने ठिकानों तक लौट सकें। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पिछले कई चुनावों में यही व्यवस्था की जाती है। दूसरे चरण में 17 नवंबर को जिन 70 सीटों पर वोट डाले जाएंगे उनमें सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक मतदान होगा। पर इनमें से सरगुजा, कोरबा और रायगढ़ जिले की कई सीटों पर ऐसे दर्जनों मतदान केंद्र हैं, जो हाथी प्रभावित हैं। सरगुजा ने मतदान के कुछ दिन पहले ही हाथियों के हमले से टूटे घरों का मुआयना करने ग्रामीणों के पास पहुंचे और उनको सरकारी मदद का भरोसा दिलाया, साथ ही कहा कि वे वोट डालने जरूर जाएं। कोरबा वनमंडल से खबर है कि यहां के केंदई और पसान रेंज में 61 हाथियों के अलग-अलग दल विचरण कर रहे हैं। वन विभाग ने आम लोगों को अलर्ट कर रखा है कि उनको किस तरफ नहीं जाना है। शाम होने के बाद तो बिल्कुल भी खतरा नहीं उठाना है। मगर, मतदान दलों को तो हर बूथ तक पहुंचना होगा। मतदाताओं को भी तय बूथ की ओर जाना पड़ेगा। कुछ दिन पहले यह जानकारी आ ही चुकी है कि विभिन्न राजनीतिक दलों को हाथियों की चिंता में प्रचार करने के लिए कुछ गांवों में जाने का मौका नहीं मिला और हाथी प्रभावित क्षेत्रों से वे शाम होने के पहले वापस लौट गए। ऐसी ही वजह से प्रशासन इन इलाकों में मतदाताओं से अपील कर रहा है कि वे शाम 4 बजे तक वोट डालें और घर लौट जाएं। मगर, आयोग ने 5 बजे तक मतदान कराने का आदेश दिया है, इसलिए मतदान दलों को तो रुकना ही पड़ेगा। इन दिनों शाम 5 बजे के बाद सूरज डूबने लगता है। दलों को पांच बजे तक मतदान कराने बैठना है, उसके बाद अपना सामान समेटकर अपने लिए आने वाली गाडिय़ों का इंतजार करना है। कई मतदान कर्मी इस बात को लेकर चिंता में है। उनका यह भी कहना है कि जिला प्रशासन को समय रहते रिपोर्ट देनी थी कि इन क्षेत्रों में मतदान का समय सुविधाजनक रखा जाए। पर यह इस बार तो हो नहीं पाया है।
संकट को समझते हुए वन विभाग ने कुछ उपाय किए हैं। पहला तो यह कि सभी मतदान कर्मियों को एलिफेंट लोकेशन बताने वाले ऐप डाउनलोड करने कहा गया है। वन विभाग की पेट्रोलिंग भी प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ा दी गई है। वैसे वन विभाग के कर्मचारियों की भी चुनाव ड्यूटी लगा दी गई है, जिससे इस काम के लिए स्टाफ की कमी महसूस की जा रही है।
इसे रिश्वत कैसे मानेंगे?
मतदाताओं को रुपये का प्रलोभन देने से रोकने के लिए चुनाव आयोग की गाइडलाइन है। प्रत्येक जिले में कलेक्टर बैंकों से जानकारी मांगी है कि उनके यहां कोई बड़ा लेन देन तो नहीं हुआ। इसके अलावा जन-धन खातों में जारी होने वाली रकम की भी जानकारी मांगी गई। जन धन योजना के खाते में भी छोटी रकम ही सही, अचानक डाली जा सकती है। इसका भी ब्यौरा बैंकों से मांगा गया। अब अचानक खातों में किसान सम्मान निधि की रकम आ गई है। यह केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली किसान सम्मान निधि है। छत्तीसगढ़ में 32 लाख से अधिक खाते हैं। यानि इतने किसानों के खाते में सरकारी रकम आई है जो प्रदेश के मतदाता भी हैं।
अब बैंक अधिकारी पेशोपेश में हैं। निर्वाचन आयोग ने संदिग्ध तौर पर जमा की गई रकम की जानकारी मांगी है। मतदान के ठीक दो दिन पहले केंद्र से जो राशि खाते में आई है, उसे तो वे संदिग्ध कैसे बता दें। कांग्रेस ने यह जरूर कहा है कि किश्त की यह रकम सितंबर में जमा होनी थी लेकिन जानबूझकर उसे अब जमा किया गया है।
इधर अफसर, उधर पटवारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुंगेली और महासमुंद की चुनावी सभा में छत्तीसगढ़ पीएससी में अफसर और नेताओं के बच्चों की शीर्ष पदों पर भर्ती का मुद्दा उठाया। भाजपा इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ में चुनाव के पहले से ही आंदोलन कर चुकी है और अब तो यह मामला भाजपा के ही नेता ननकी राम कंवर हाई कोर्ट भी ले गए हैं। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में पटवारी भर्ती परीक्षा 2023 के नतीजे आने पर लोग भौचक्के रह गए। टॉप 10 पोजीशन पर ग्वालियर के केवल एनआरआई कॉलेज से ही पासआउट सात नाम शामिल थे। इस कॉलेज का मालिक एक भाजपा विधायक है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता वहां पर अपने भाषणों में इसका बार-बार जिक्र कर रहे हैं, और चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। मध्यप्रदेश में ही अभूतपूर्व पीएससी भर्ती घोटाला हुआ था, जिसमें 2000 से अधिक लोग गिरफ्तार किए गए थे। इनमें वहां के तत्कालीन शिक्षा मंत्री भी शामिल थे। इस मामले से जुड़े करीब 40 आरोपी और पीडि़तों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत भी हुई थी। इनमें वहां के तब के राज्यपाल के बेटे का नाम भी शामिल है। आज तक इस घोटाले की जांच का कोई नतीजा सामने नहीं आया है।
सार यही है कि कांग्रेस हो, भाजपा या और कोई, सत्ता में रहते हुए सभी दलों को अपना कामकाज साफ सुथरा दिखाई देता है। उनको गड़बड़ी तभी नजर आती है, जब विपक्ष में हों।
गला साथ नहीं दे रहा
नेता मतलब ऊंची आवाज और अनवरत बोल। किसी में ये नहीं तो वो नेता नहीं। और फिर चुनाव के समय तो और ऊंची और सपने में भी चिल्लाने वाला होना चाहिए। लेकिन पड़ोस से चुनाव लड़ रहे युवा नेता की इन दिनों बोलती बंद हो गई है। नेताजी की अब तक की आवाज माइक और साउंड मिक्सिंग के भरोसे बुलंद रही। नए प्रोफेशन में तो बिना माइक के अंतिम व्यक्ति तक आवाज पहुंचानी होती है।
नेताजी प्रचार के अंतिम दौर में गले से परेशान हैं। सब कुछ इशारे में चल रहा है। वोटर भी इशारे में भरोसा दिला रहे। नेताजी शुरुआत में कुछ कमजोर चल रहे थे, अब इलाके के पुराने मोटा भाई ने पार्टी से पूरी नाराजगी खत्म कर जुट गए हैं। और नेताजी भी स्थानीय नेताओं की बार बार शिकायत करने से बाज आ गए है। ऐसे में राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि तब तो निकाल लेंगे।
यात्रा का खर्च बढ़ाया चुनाव ने
विधानसभा चुनाव के लिए परिवहन विभाग को 15 हजार वाहनों के अधिग्रहण का लक्ष्य दिया गया। इनमें 7000 सवारी बस, 2000 स्कूल बस 3000 ट्रक और इतने ही कार-जीप शामिल हैं। पहले चरण में 20 सीटों पर हुए चुनाव के लिए 3000 गाडिय़ां लगाई गई थी। अब 70 सीटों के लिए करीब 12000 गाडिय़ां अधिग्रहित की गई हैं। इसके चलते कई प्रमुख मार्गों पर बसें नहीं चल पा रही हैं। दूसरी तरफ दीपावली और भाई दूज का पर्व मनाने के लिए बड़ी संख्या में लोग यात्रा कर रहे हैं। इन की निर्भरता ऑटो रिक्शा और छोटी सवारी गाडिय़ों पर रह गई है। इन गाडिय़ों के मालिक मौके का खूब फायदा उठा रहे हैं। किराया दोगुना कर दिया गया है।
बड़ा आदमी, बड़ी दिक्कत
रायगढ़ से भाजपा प्रत्याशी ओपी चौधरी के लिए निर्दलीय उम्मीदवार गोपिका गुप्ता बड़ी मुसीबत बनकर खड़ी हो गई हैं। पार्टी के दिग्गज नेताओं ने गोपिका को मनाने की बड़ी कोशिश की लेकिन उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। आखिरकार पार्टी ने उनको निष्कासित कर दिया। इस निर्दलीय उम्मीदवार का जनाधार इस बात से समझा जा सकता है कि जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने वाली वह अकेली निर्दलीय उम्मीदवार थीं। 25 में से बाकी 24 सीटें भाजपा की थी, बाद में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ले ली। इस बार भी वह कह रही हैं कि उन्होंने भाजपा से बगावत नहीं की है। चुनाव जीतकर वह लौट कर फिर भाजपा में आ जाएंगी, जैसा जिला पंचायत के समय किया था। भाजपा के कई कार्यकर्ता उनके साथ प्रचार में घूमते हुए दिखाई दे रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी चौधरी को अमित शाह ने रायगढ़ की चुनावी रैली में मतदाताओं से अपील करते हुए कहा था कि उनको जीतने पर बड़ा आदमी बना देंगे। कुछ लोगों को लगता है चौधरी तो वैसे भी बड़े आदमी हैं। राजनीति के लिए उन्होंने कलेक्टर की कुर्सी छोड़ी है। एक खरसिया चुनाव हारने के बाद जरूरी नहीं की दूसरा भी हार जाएं। युवा हैं, लंबी पारी खेलेंगे। पर इस समय निर्दलीय उम्मीदवार के चलते उनके सामने बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई है।
यह चुनावी रथ तो नहीं?
स्वीडन में 1950 में वोल्वो ट्रक को केतली का स्वरूप दे दिया गया था। एक कॉफी बनाने वाली कंपनी ने अपने उत्पाद का प्रचार करने के लिए इसे तैयार कराया था। सन 1956 में यह गाड़ी बंद हो गई। इधर अपने देश में सोशल मीडिया पर इस फोटो को शेयर कर लतीफा बनाया जा रहा है। यह दावा किया जा रहा है कि सन् 2024 में इसका इस्तेमाल चुनावी रथ के रूप में किया जाएगा।
दीवाली पर डटे रहे
विधानसभा चुनाव प्रचार का अंतिम दौर चल रहा है। दीपावली के मौके पर भाजपा के प्रमुख नेता अपने घर नहीं गए, और पार्टी दफ्तर में चुनाव प्रचार की रणनीति पर चर्चा हुई। दीपावली की सुबह पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष भी रायपुर पहुंचे। उन्होंने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया, और पवन साय व अजय जामवाल के साथ बैठक की।
चर्चा है कि पार्टी के रणनीतिकारों ने उन क्षेत्रों को चिन्हित किया है जहां पार्टी प्रत्याशी कड़े संघर्ष में फंसे हैं। ऐसे इलाकों में मंगलवार, और बुधवार को रोड शो व सभा के जरिए माहौल बनाने की योजना बनाई गई। दर्जनभर राष्ट्रीय नेता यहां डटे हुए हैं। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
डील पर डील
विधानसभा चुनाव में फोन पर बातचीत को लेकर कई किस्से आ रहे हैं। बिलासपुर के पूर्व महापौर का आडियो सुर्खियों में है, जिसमें कांग्रेस की टिकट के लिये पैसे का ऑफर देने का आरोप था। अब एक आडियो वायरल हुआ है जिसमें अविभाजित दुर्ग जिले के एक प्रत्याशी के तीन करोड़ लेकर बैठने की चर्चा हो रही है। ओबीसी और सामान्य वर्ग के प्रत्याशी दोनों दलों ने उतारा है, लेकिन इस आडियो ने कुछ दिन तक राष्ट्रीय पार्टी के सिर में दर्द पैदा कर दिया है। इस सीट पर राजधानी से लेकर कई प्रतिष्ठित लोग दावेदार थे लेकिन टिकट स्थानीय नेता को मिली। अब कथित आडियो ने उनकी नींद उड़ा दी है।
भाजपा के म्यूजियम में अजूबे
पीएम नरेंद्र मोदी के रायपुर आगमन पर एयरपोर्ट में स्वागत के लिए जिले स्तर के लिए पदाधिकारियों के पास बनाए गए थे। कई ऐसे भी थे जो कि पीएम के स्वागत के लिए जाना चाहते थे, लेकिन उनका नाम सूची में नहीं था। ऐसे नेता सोशल मीडिया पर अपना भड़ास निकाल रहे हैं।
पीएम के स्वागत से वंचित नेताओं की नाराजगी राजनांदगांव के पूर्व सांसद प्रदीप गांधी को लेकर थी। प्रदीप गांधी स्वागत करने वालों में सबसे आगे थे। भाजपा नेताओं के वाट्सएप ग्रुप में उनकी फोटो साझा कर एक नेता ने कटाक्ष किया कि संसद में पैसा लेकर सवाल पूछने वाले भी पीएम मोदी का स्वागत कर रहे हैं।
कुछ नेता प्रदीप गांधी के बचाव में आगे आ गए। एक ने लिखा कि प्रदीप गांधी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। उनसे भूल हुई थी। पार्टी ने माफ कर दिया। आज वो पार्टी की मुख्यधारा में आकर काम कर रहे हैं। पार्टी के पदाधिकारी रहे अनूप मसंद ने वाट्सएप ग्रुप में मैसेज पोस्ट किया कि म्यूजियम में अजूबों को दिखाकर बच्चों को बहलाया जाता है। उसी पैटर्न पर बहलाने का कार्य आज कल की राजनीति में जोरों से चल रहा है। उन्होंने कहा कि कब तक बेवकूफ बनाओगे...।
मोदी की गारंटी काफी नहीं?
भाजपा जिस महतारी वंदन योजना का फार्म जमा करा रही है, वह कोई सरकारी फॉर्म नहीं है। इसमें नाम-पता, मोबाइल नंबर लिया जा रहा है, मोदी जी की साथ में फोटो है। कांग्रेस की शिकायत के बाद कुछ जगहों पर चुनाव आयोग ने सख्ती से कार्रवाई की है। बलौदा बाजार में दो भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गरियाबंद में भी दो महिला कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई। राजिम में प्रशासन की टीम ने फार्म भरवाने की शिकायत मिलने पर एक जगह पर रेड मारी तो भाजपा कार्यकर्ता भागने में सफल हो गए, हालांकि टीम ने प्रचार सामग्री और फॉर्म मौके से जब्त किए।
मगर कुछ स्थानों पर आयोग ने नरमी बरती है। बिलासपुर में नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष भाजपा पार्षद पर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वे केवल फॉर्म ही नहीं भरवा रहे हैं बल्कि पहली किस्त के रूप में महिलाओं को अपने कार्यालय बुलाकर एक-एक हजार रुपए बांट भी रहे हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें और जिला भाजपा अध्यक्ष को केवल नोटिस देना पर्याप्त समझा, जबकि शिकायत सीधे-सीधे रिश्वत देने की है।
अब आयोग के रुख और कांग्रेस की शिकायत के बाद खुलेआम महतारी वंदन योजना का फार्म भरवाना भाजपा के लिए मुश्किल हो गया है। शायद यही वजह है कि महासमुंद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में बांटने के लिए बड़े-बड़े पैकेट में हजारों फॉर्म लाए गए थे, मगर वितरित नहीं किए गए। बिलासपुर में महतारी वन्दन फॉर्म फेंके गए हैं। कचरे के ढेर में भी दिखाई दे रहे हैं। भाजपा के घोषणा पत्र पर सीधे मोदी की गारंटी है। इसके बावजूद भाजपा को पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि यह पर्याप्त नहीं है और भरोसा जीतने के लिए फॉर्म को जरूरी समझ रहे हैं।
दिवाली ट्रेन में ही मनानी पड़ी
रायपुर कोरबा के बीच चलने वाली हसदेव एक्सप्रेस एक तरफ 200 किलोमीटर की दूरी तय करती है। कम दूरी होने की वजह से यह ज्यादा लेट भी नहीं रहती। रोजाना आने जाने वालों के लिए यह एक जरूरी ट्रेन है। मगर दीपावली के दिन रायपुर से यह ट्रेन रिकॉर्ड देरी से चली। रायपुर से रवाना तो समय पर हो गई थी लेकिन रुकते रुकते जब यह अपने गंतव्य कोरबा पहुंची तो सुबह के 4 बज चुके थे। समय पर चली होती तो यह ट्रेन रात 9:45 बजे कोरबा पहुंचती और यात्री अपने घर पहुंच कर परिवार के साथ त्यौहार मना सकते थे। यह वही ट्रैक है जिस पर 120 किलोमीटर प्रति घंटे रफ्तार वाली वंदे भारत ट्रेन चलाई जाती है। हसदेव एक्सप्रेस की औसत रफ्तार 22 किलोमीटर प्रति घंटे रही।
हाथी मुद्दा तो है, मगर ऐसे..
कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच किसानों और गरीबों को लाभ देने के लिए घोषणाएं करने की होड़ मची रही। इस शोरगुल के बीच बहुत से मुद्दे पीछे रह गए। छत्तीसगढ़ के कम से कम दो दर्जन जिलों में हाथी मानव संघर्ष एक गंभीर समस्या है और यह बढ़ती जा रही है। वह किसानों की फसल और घरों को निशाना बनाते हैं। खेतों में काम करने और जंगल में वनोपज एकत्र करने के दौरान भी वे हाथियों के हमले में हताहत होते हैं। इस संकट के समाधान के लिए अगली सरकार क्या करने जा रही है, यह प्रभावित लोगों को पता नहीं। यह उन्हें जरूर पता है कि उनके गांव और मतदान केंद्र के बीच हाथियों के धमकने की आशंका बनी रहती है। सरगुजा, बलरामपुर कोरबा जिलों में निर्वाचन आयोग के निर्देश पर मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। अभियान चलाने वाले कई दल हाथियों के डर से प्रभावित गांवों में नहीं पहुंच पा रहे हैं। सरगुजा जिले के मैनपाट के आसपास 6 महीने से अधिक समय से 13 हाथियों का दल घूम रहा है। एक दूसरा दल प्रेमनगर और उदयपुर रेंज में भी है। इन इलाकों में प्रचार करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता सहम-सहम कर घूम रहे हैं। शाम हो जाने से पहले अपने ठिकानों पर लौट रहे हैं। हाथी इस चुनाव प्रत्याशियों और मतदाताओं के लिए मुद्दा तो है लेकिन यह किसी राजनीतिक दल के एजेंडे में शामिल नहीं है।
वोट के लिए आभारी आयोग
राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की ओर से दंतेवाड़ा जिले के दो परिवारों को आभार पत्र भेजा गया है। ऐसा इसलिए कि उन्होंने दुख की घड़ी में भी मतदान करने की जिम्मेदारी उठाई। एक परिवार मोहम्मद सोहेल का है, जिनके पिता का जिला अस्पताल में मतदान के दो दिन पहले इंतकाल हो गया था। यहीं के भगवत सलाम को भी आभार पत्र भेजा गया है। वे अपनी पत्नी के साथ वोट डालने आए, जबकि 4 नवंबर को उसने दो बच्चों को जन्म दिया जिनमें से एक की मृत्यु हो गई और अस्पताल में भर्ती दूसरे की मतदान के दिन भी हालत गंभीर थी।
इन दोनों परिवारों ने विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य को लेकर सजगता दिखाई। 17 नवंबर को प्रदेश की 70 सीटों में दूसरे चरण का मतदान है। जिनको वोट डालना जरूरी नहीं लगता, वे इनसे प्रेरणा ले सकते हैं।
आईपीएस से आईएएस खफा
महादेव ऐप पर एक न्यूज चैनल के स्टिंग की खूब चर्चा हो रही है। भाजपा सोशल मीडिया में इसको प्रचारित भी कर रही है। स्टिंग कवर्धा एसपी अभिषेक पल्लव का है, जिसमें वो महादेव ऐप पर काफी कुछ कह रहे हैं। पल्लव के खुलासे से आईएएस बिरादरी नाराज हैं।
पल्लव महादेव ऐप से आईएएस अफसरों की संलिप्तता से इंकार तो कर रहे हैं, लेकिन वो यह कह रहे हैं कि कलेक्टरों की भूमिका भले ही महादेव में नहीं हैं। मगर डीएमएफ, और जल जीवन मिशन के घोटाले में कलेक्टर हिस्सेदार हैं। बस, इसी एक टिप्पणी से आईएएस अफसर नाराज हैं।
हालांकि पल्लव ने बकायदा वीडियो जारी कर अपना पक्ष रखा है। और यह कहा कि तीन घंटे की बातचीत में कुछ अंशों को ही दिखाया गया है। मगर पल्लव की सफाई से सरकार, और आईएएस अफसर संतुष्ट नहीं है। अब देखना है आगे क्या होता है।
सीएम कौन होगा, खडग़े ने बताया
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कोरिया जिले के चरचा रेलवे ग्राउंड में सभा लेते हुए कहा-यहां की तीनों सीटों से कांग्रेस को जिताएं और फिर से भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाएं। ऐसा कहने के बाद उन्हें लगा कि साफ-साफ ऐसे बोलना सही नहीं। उन्होंने आगे जोड़ा- जो हाईकमान चाहेगा, वह मुख्यमंत्री बनेगा। इस दूसरी लाइन की ही चर्चा हो रही है। जब उन्होंने बघेल का नाम ले लिया तो फिर हाईकमान की बात क्यों कही? क्या कोई ऐसी परिस्थिति बन सकती है कि बहुमत के बाद बघेल की जगह किसी दूसरे नाम पर हाईकमान में विचार होगा? वैसे राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते हाईकमान की कमान अब खडग़े के ही पास है। पर वे कई बार अपने बयान में जब हाईकमान का नाम लेते हैं तो लोग मानते हैं कि वे सोनिया गांधी, राहुल गांधी की बात कर रहे हैं। जीते हुए विधायकों की राय मानने की कोई बात खडग़े ने नहीं की, और कांग्रेस में प्राय: ऐसा होता भी नहीं।
सरगुजा संभाग के इस कार्यक्रम में मंच पर उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव नहीं थे, वे दूसरे क्षेत्रों में प्रचार कर रहे थे। सिंहदेव तो बघेल को अगला मुख्यमंत्री बता चुके हैं। मंच पर खडग़े के साथ मौजूद थे प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे भी मौका पाकर दावा ठोंक सकते हैं। खडग़े के सुधारे गए बयान को लोग बैज की मौजूदगी से जोडक़र देख रहे हैं।
कागज की पुडिय़ा पर न्योता
एक रजिस्टर के सादे कागज पर हाथ से लिख कर स्क्रीन प्रिंटिंग किया हुआ निमंत्रण। पाने वालों को यह पुडिय़ा के रूप में मिला, जिसे खोलने पर पर मिले कुछ बीज, ताकि आप उन्हें अपने आंगन में रोप सकें। आमंत्रण की भाषा भी अनोखी। मीडिया के माध्यम से सादगी, मितव्ययिता, जागरूकता, संदेश, उपदेश, संस्कारों की जितनी बातें की जाती हैं, इसमें सब शामिल हैं। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के एक रंगमंच कलाकार ने अपने विवाह का निमंत्रण इस तरह से दिया है।
जातिगत जनगणना का जवाब
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि जातिगत जनगणना का दांव उनके खिलाफ ठीक वैसी ही साजिश है जैसी 90 के दशक में मंडल-कमंडल की थी। दुर्ग में कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण कुछ ऐसा था- गरीबों ने जब अपनी एक ही जाति मान ली है तो राजनीतिक दलों के पेट में चूहे दौडऩे लगे हैं। उनको लगने लगा है कि गरीबों की जाति इक_ी हो गई तो झूठ चलाने वालों की दुकानें बंद हो जाएंगी। अब इन्होंने खेल शुरू किया है, गरीबों को भी बांटना, गरीबों के सपनों को चित कर देना, गरीबों को ही आपस में लड़ाना। जातिवाद का जहर घोल रहे हैं। आपको आगाह कर रहा हूं, हमें गरीबों की एकता तोडऩे वाली हर एक साजिश को एकजुट होकर नाकामयाब करना है। मोदी ने सितंबर से अब तक छत्तीसगढ़ में जितनी भी चुनावी सभाएं ली हैं, जातिगत जनगणना का नाम लिए बगैर उन्होंने इसी तरह की बात कही है।
इस बीच बिहार विधानसभा में 65 प्रतिशत आरक्षण का विधेयक पारित हो गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े सहित प्राय: सभी नेता जातिगत जनगणना के पक्ष में बात कर रहे हैं। कांग्रेस ने साफ किया है कि सरकार बनते ही छत्तीसगढ़ में यह काम शुरू हो जाएगा।
दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा है कि उनकी पार्टी जातिगत जनगणना के खिलाफ कभी नहीं रही, लेकिन इस बारे में फैसला समय आने पर लिया जाएगा।
आरएसएस के जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि जातिगत जनगणना पर यदि किसी राज्य में भाजपा को ज्यादा नुकसान हो सकता है तो वह छत्तीसगढ़ है। यहां आरक्षण पर विधानसभा में पारित विधेयक राजभवन में लंबित भी है। चुनाव परिणाम से यह जानने में मदद मिलेगी कि इसका अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा। आरएसएस ने डैमेज कंट्रोल के लिए सामाजिक समरसता प्रोजेक्ट भी तैयार किया है। वह देशभर के गांवों में पहुंचेगी और सभी जातियों को हिंदुत्व के मुद्दे पर जोड़े रखने की
कोशिश करेगी।
बस नाम का तबादला
राजधानी पुलिस के एक मामले में कहा जा सकता है कि तबादले केवल ऑफिस रिकॉर्ड और अखबारों में छपवाने के लिए होते हैं। हकीकत में स्थानांतरित अधिकारी अपना पुराना ही काम करते हैं। इसके जरिए महकमे में अफसर की पकड़, और सेटिंग का अहसास होता है । राजधानी पुलिस के एक टीआई का भी कुछ ऐसा ही है।
आयोग की तिरछी नजर पर उनका तबादला सेल से गैर जिला बल में किया गया। वह भी आचार संहिता लगने के एक-दो दिन पहले ही। आयोग की नजर में वह लूप लाइन में है, लेकिन फ्रंट लाइन वर्क कर रहे हैं। अघोषित रूप से वह सेल का ही नेतृत्व कर रहे हैं। सेल का एक ही काम, ठगी के आरोपियों को पकडऩा है। ज्यादातर आरोपी बड़े लोग होते हैं। ऐसे में चुनावी शोर के बीच सेल से जुड़े लोग अपना काम बेहतर तरीके से निपटा रहे हैं।
इस अखबार ‘छत्तीसगढ़’ के संपादक ने लोगों को धनतेरस की शुभकामनाएं भेजीं, तो छत्तीसगढ़ के बहुत से लोगों ने यश टुटेजा का नंबर मांग लिया।
शाह की बैठक में क्या हुआ?
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार की रात कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में पहले चरण की सीटों की वोटिंग पर प्रदेश के चुनिंदा नेताओं के साथ चर्चा की, और फिर दूसरे चरण की सीटों में प्रचार की रणनीति को लेकर मार्गदर्शन दिया।
शाह के साथ बैठक में प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, नितिन नबीन, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और महामंत्री (संगठन) पवन साय व विजय शर्मा भी थे। बैठक देर रात तक चली। माथुर ने उन्हें ग्राऊंड रिपोर्ट से अवगत कराया। दावा किया गया कि पहले चरण की सीटों पर पार्टी का बहुत अच्छा रहेगा।
शाह ने दूसरे चरण की सीटों का आकलन किया, और कमजोर क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करने के लिए कहा है। मैदानी इलाकों में पीएम की सभाएं होंगी। महासमुंद, दुर्ग, और रायपुर में 13 तारीख को पीएम नरेंद्र मोदी की सभाएं होंगी। शाह ने त्यौहार के बीच ज्यादा से ज्यादा जनसंपर्क पर जोर दिया है। कुल मिलाकर दूसरे चरण में आक्रामक प्रचार की रणनीति बनाई गई है। यानी दूसरे चरण में महादेव ऑनलाइन सट्टा छाया रहेगा।
एक बाबा के सामने दूसरे बाबा का खतरा
अंबिकापुर में डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। सिंहदेव को मुस्लिम नेता अब्दुल मजीद खान ने काफी परेशान कर रखा है। अब्दुल मजीद को जोगी पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है।
बताते हैं कि मजीद, झाड़-फूंक का काम करते हैं। उनकी मुस्लिम समाज के गरीब लोगों में अच्छी पकड़ है। वो नामांकन भरने के बाद गायब हो गए थे। दो दिन तक सिंहदेव समर्थक उनकी नाम वापसी के लिए ढूंढते रहे, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला। नाम वापसी की तिथि खत्म होने के बाद ही सामने आए।
अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र में करीब 20 हजार के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं। इससे पहले तक मुस्लिम समाज के वोट एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में गिरते रहे हैं, लेकिन इस बार समाज के लोगों में नाराजगी है। नाराजगी की एक वजह यह भी है कि सिंहदेव के करीबी श्रम कल्याण बोर्ड के चेयरमैन शफी अहमद भटगांव से टिकट चाह रहे थे, लेकिन सिंहदेव की पसंद पर मौजूदा विधायक पारस राजवाड़े को रिपीट किया गया। इससे शफी अहमद नाराज चल रहे हैं।
भाजपा ने पहले ही पूर्व कांग्रेसी राजेश अग्रवाल को सिंहदेव के खिलाफ उतारकर मुकाबले को कड़ा बना दिया है, और अब मुस्लिम वोटों के छिटकने का खतरा पैदा हो गया है। देखना है कि सिंहदेव अपने परंपरागत वोटरों को कैसे संतुष्ट करते हैं।
चुनाव प्रचार के बीच त्यौहार
दूसरे चरण की शेष 70 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस, भाजपा के स्टार प्रचारक इस समय ताबड़तोड़ सभाएं ले रहे हैं। पार्टी प्रत्याशी और कार्यकर्ता भी हाट-बाजारों में जा रहे हैं। पर लोगों की भीड़ इनमें घटने लगी है। लोग त्यौहार की तैयारी में हैं। 10 को धनतेरस, 11 को नरक चतुर्दशी और 12 को दीपावली, पूरे तीन दिन। पार्टी कार्यकर्ता भी अपने संगठन और प्रत्याशी से छुट्टी मांग रहे हैं। प्रत्याशी भी समझ रहे हैं कि इस बीच सभाएं लेना ही नहीं, घरों में दस्तक देना भी अटपटा लगेगा, मतदाता नाराज हो जाएगा। कई राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भी इन तीन दिनों में आने से मना कर दिया है, क्योंकि उन्हें लगता है लोग सुनने के लिए आएंगे नहीं, उनको भी त्यौहार मनाना है। मुख्य मुकाबले वाली कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही कई प्रत्याशियों की टिकट देर से घोषित की गई है। इसके चलते पहले ही उन्हें कम समय मिला। अब इन तीन दिनों का अवकाश उन पर भारी पड़ रहा है। 15 की शाम को चुनाव प्रचार थम जाएगा। दीपावली के बाद उनके पास जनसंपर्क के लिए केवल 3 दिन रह जाएंगे। प्रत्याशी और कार्यकर्ता इसके चलते बचे हुए दिनों में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक, खासकर दूरदराज के गांवों में पहुंचने की कोशिश हो रही है।
छठ पर्व पर ही मतदान
किसी एक बात पर छत्तीसगढ़ के सभी दल सहमत थे तो वह दूसरे चरण के मतदान की तारीख बदलने की मांग थी। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग से अलग-अलग मांग की थी कि 17 नवंबर की जगह आगे किसी तारीख में मतदान कराया जाए। छठ पर्व इसी दिन से शुरू हो रहा है जो 20 नवंबर तक चलेगा। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, भिलाई, कोरबा और कालरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के मतदाता हैं। छठ उनका साल का सबसे बड़ा त्यौहार है। वे लंबा उपवास भी रखते हैं। इसलिये राजनीतिक दलों को लग रहा है कि वे इस दौरान मतदान के लिए नहीं निकलेंगे। दूसरी तरफ हजारों लोग तो अपने गृहग्राम के लिए निकल जाते हैं। राजस्थान में चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख 23 नवंबर से बदलकर 25 नवंबर कर दी। 23 को देवउठनी एकादशी पर्व वहां धूमधाम से मनाया जाता है। पर, छत्तीसगढ़ से उठी मांग के बावजूद आयोग ने तारीख में कोई बदलाव नहीं किया। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि छठ पूजा एक दिन बल्कि चार दिन तक चलने वाला पर्व है। मतदान की तारीख को काफी आगे ले जाना पड़ता। दूसरा राजस्थान में तारीख बदलना आयोग के लिए भी जरूरी हो गया था। जानकारी के मुताबिक राज्य के निर्वाचन पदाधिकारी ने रिपोर्ट दी थी कि 23 नवंबर को निर्वाचन कार्य के लिए प्राइवेट गाडिय़ां भी नहीं मिल पाएंगी, सब त्यौहार में बुक रहेंगीं। राजस्थान पर निर्णय लेते समय निर्वाचन प्रक्रिया में आ रहे व्यवधान को भी देखा गया, जबकि छत्तीसगढ़ में ऐसी समस्या नहीं है।
भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण
ज्यादा से ज्यादा वोट डाले जाएं, इसके लिए निर्वाचन आयोग स्वीप कार्यक्रम चलाता है। मतदाताओं का ध्यान खींचने के लिए तरह-तरह के प्रयोग इस अभियान में किए जा रहे हैं। बिलासपुर में विवाह के मौके पर दिया जाने वाला निमंत्रण पत्र की तरह मनुहार शीर्षक से कार्ड छपवाकर मतदाताओं में बांटा जा रहा है। कुछ कार्ड कलेक्टर और जिला निर्वाचन अधिकारी अवनीश शरण ने खुद अपने हाथों से मतदाताओं के पास जाकर दिए। बाकी कार्ड स्वयंसेवी बाटेंगे। वाट्सएप पर भी ये निमंत्रण भेजे जा रहे हैं।
दोनों के बड़े-बड़े दावे
विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 20 सीटों पर मतदान के बाद बढ़-चढक़र दावे हो रहे हैं। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने मतदान के तुरंत बाद मीडिया से चर्चा में 15 से 18 सीट जीतने का दावा किया। सीएम भूपेश बघेल ने सीटों को लेकर कोई दावे तो नहीं किए, लेकिन उन्होंने एक्स पर अपनी भावनाओं को इजहार किया।
उन्होंने ट्वीट किया कि प्रदेशभर से प्रथम चरण के मतदान के बाद जो सूचनाएं आ रही हैं, जनता का जो उत्साह दिख रहा है वो अद्भुत है। सीएम ने आगे कहा कि आपने इस बार वो कसर भी पूरी कर दी है, जो 2018 में थोड़ी सी रह गई थी।
पहले चरण की 20 सीटों में से 19 सीटें कांग्रेस के पास हैं। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की राजनांदगांव सीट कांग्रेस जीत नहीं पाई थी। सीएम के करीबियों का दावा है कि इस बार राजनांदगांव सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो जाएगा। यहां से सीएम के दोस्त गिरीश देवांगन चुनाव मैदान में थे।
दोनों दलों के नेताओं के दावे चाहे कुछ भी हो, लेकिन कई लोगों का अंदाजा है कि भाजपा को पहले चरण में फायदा जरूर होगा। इसकी वजह यह है कि भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि बस्तर में भाजपा को भारी सफलता मिली है। भाजपा नेता बस्तर की 12 में से 6 से 8 सीट जीतने का दावा कर रहे हैं। इनमें से कवर्धा सीट ऐसी है, जहां कोई स्पष्ट तौर पर कोई कुछ कहने से बच रहे हैं। यहां से परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर, और प्रदेश भाजपा के महामंत्री विजय शर्मा के बीच कड़ा मुकाबला है। कवर्धा में आप के उम्मीदवार खडक़राज सिंह को मिले वोट ही जीत-हार का फैसला कर सकते हैं।
मतदान के तुरंत बाद कांग्रेस ने खडक़राज सिंह के भाई और कवर्धा रियासत के मुखिया पूर्व विधायक योगीराज सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब योगी राज ने बागी तेवर से कांग्रेस को कवर्धा में कितना नुकसान होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा।
पुराने नेता घर बैठे, गांधीजी का भरोसा
राजधानी के पड़ोस की विधानसभा के एक बड़े दल के दावेदार अपनी जमा पूंजी का बटुआ खोल चुके हैं। यह मजबूरी भी है, क्योंकि वो गृह क्षेत्र से टिकट मांग रहे थे। पार्टी ने कर्म क्षेत्र से भी नहीं पड़ोस से दिया। इलाके के सभी दावेदार, पूर्व विधायक सभी नाराज हैं। इसी नाराजगी में जहां दर्जन भर बागी, निर्दलीय खड़े हो गए हैं। और बचे खुचे घर बैठ गए हैं। अब कॉलेज के कुछ दोस्तों, परिजनों, कलाकारों और गांधी जी के भरोसे मैदान में डटे हैं। यह तो गांधी जी का ही जलवा है जो नेताजी दर्जन भर निर्दलीयों को नाम वापसी में सफल रहे। इस प्रयास में नेताजी पांच, छह पेटी से उतर गए हैं। साथी कह रहे पार्टी ने कुछ नहीं दिया। प्रोफेशन से जो कमाया वह निकल गया । मगर सच्चाई तो संगठन जानता होगा। खैर , क्षेत्र में घूम रहे दोस्तों में ही जीत को लेकर दावे, प्रतिदावे हो रहे हैं।
सर्च किट बैग रेडी रख अलर्ट रहें
केंद्रीय गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ में तैनात ईडी और आयकर अफसरों को हाई अलर्ट पर रखा है। सोमवार से लेकर दीपावली बाद दो सप्ताह तक सबकी छुट्टियां कैंसिल करते हुए मुख्यालय न छोडऩे का आदेश दिया गया है। इतना ही नहीं घंटे दो घंटे के लिए पड़ोस को शहर भी जाने से इंकार कर रहे हैं। सभी से अपना सर्च किट बैग भी रेडी रखने कहा है। संकेत हैं कि आने वाले दिनों में बड़ी कार्रवाई की तैयारी है। इसके लिए दिल्ली मुख्यालय के अधिकारी भी अलर्ट मोड पर रखे गए हैं । हमारे सूत्रों ने कुछ चौंकाने वाले नाम का उल्लेख किया है, लेकिन कहा जाता है कि आईटी, ईडी की तीसरी आंख होती है, वह तिरछी नजर से देखकर कार्रवाई करते हैं। यानी सूत्रों ने जो नाम बताए हैं, वो न होकर कोई तीसरा होगा।
सूचना आयोग पर सुप्रीम कोर्ट
दो दिन बाद यानी 10 नवंबर को ठीक एक साल पूरा हो जाएगा जब राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत सेवानिवृत हो गए थे। तब से यह पद रिक्त है। अभी आयोग में मनोज कुमार त्रिवेदी और धनवेंद्र जायसवाल दो आयुक्त ही काम कर रहे हैं। इनकी नियुक्ति से पहले भी ये दोनों पद कई महीनों से खाली थे। इनका कार्यकाल 3 साल का है, जो अगले साल 15 मार्च तक जारी रहेगा। देश में काम करने वाली एक एनजीओ सार्थक ने? एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें बताया गया है कि देशभर में 6 मुख्य सूचना आयुक्तों के पद खाली हैं। इनमें एक छत्तीसगढ़ है। इस तरफ गौर करने की वजह यह भी है कि 6 नवंबर को केंद्र में मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में हीरालाल सामरिया ने शपथ ली। केंद्र सरकार ने 30 अक्टूबर को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के परिपालन में यह नियुक्ति की है। अगस्त महीने में केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय ने विज्ञापन तो निकाला था लेकिन नियुक्ति आदेश जारी नहीं किया। यह भी ध्यान देने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अकेले केंद्र सरकार के लिए निर्देश नहीं दिया, बल्कि कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारें सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों को भरने के लिए कदम उठाएं। ऐसा नहीं होने पर सूचना का अधिकार कानून निष्प्रभावी हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि यह आदेश छत्तीसगढ़ के लिए भी है। पर यहां अभी चुनाव का माहौल है। अब उम्मीद यही है कि नई सरकार के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति आवेदनों पर विचार करेगी।
यह भी एक चुनाव प्रचार
किसी खास दल का विरोध करने के लिए चुनाव आचार संहिता के शिकंजे में आए बिना भी काम किया जा सकता है। ऐसा विरोध प्रतिद्वंद्वी को लाभ तो पहुंचाएगा लेकिन चुनाव प्रचार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। यह तस्वीर मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा की एक पान दुकान की है। दुकानदार ने उधारी देने से तब तक रोक लगा रखी है, जब तक राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री नहीं बन जाते। पिछले दशक में जब अमेरिका में 9/11 का आतंकी हमला हुआ तब दुनिया भर में लादेन की तलाश होने लगी। अपने भी देश के कई दुकानदारों ने लिख रखा था कि जब तक लादेन नहीं मारा जाता, उधारी बंद। और आखिर एक दिन लादेन मारा गया। उसके बाद उधारी तो शुरू नहीं हुई, पोस्टर गायब हो गए।
बस्तर की भागीदारी कम क्यों रही?
पहले चरण में जिन 20 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ, उनमें सन् 2018 के चुनाव के मुकाबले इंतजाम बेहतर थे। इन 5 सालों में नक्सली वारदातों में कमी का दावा किया गया। मुठभेड़ और हताहतों के आंकड़े भी ऐसा कहते हैं। सुरक्षा बलों ने इस बीच 65 नए कैंप खोले। यह बताता है कि नक्सलियों का दबदबा घटा है। बस्तर संभाग में 126 ऐसे गांव थे, जहां पहली बार मतदान केंद्र बनाए गए। इन गांवों के मतदाताओं को वोट देने के लिए नक्सलियों की धमकी के बीच घने जंगल से गुजरने की नौबत नहीं आई। मतदाताओं की मदद के लिए संगवारी स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाई गई। कई मतदान केदों को मॉडल स्वरूप देकर आकर्षक ढंग से सजाया गया। पहली बार दिव्यांगों और 80 साल के अधिक उम्र के बुजुर्गों को उनके घर पहुंचकर मतदान की सुविधा दी गई। प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह बस्तर में भी स्वीप अभियान तो चला ही है।
5 साल पहले इन्हीं सीटों पर मतदान का प्रतिशत 76.95 यानी करीब 77 प्रतिशत था। इस बार यह सिर्फ 70.87 प्रतिशत रहा। अंतिम गणना के बाद इसमें थोड़ा बहुत बदलाव दिख सकता है फिर भी सन् 2018 के आंकड़ों को छूने की कोई संभावना नहीं है।
मतदान का कम होना केवल सुरक्षा संबंधी मामला है या कुछ और? कई बार जब बहुत ज्यादा वोटिंग को परिवर्तन की लहर के रूप में भी देखा जाता है। कम मतदान का एक मतलब यह भी लगाया जाता है कि मतदाता बदलाव का इच्छुक नहीं है। दूसरी ओर इन 20 सीटों के प्रमुख उम्मीदवारों के बीच कड़े संघर्ष की रिपोर्ट भी है।
जिन्हें बिजली बिल का फायदा नहीं
छत्तीसगढ़ में 2019 से हाफ बिजली बिल योजना लागू हुई। लाखों घरेलू उपभोक्ताओं के 400 यूनिट तक बिजली बिल हाफ कर दिया गया। लेकिन छत्तीसगढ़ में एक शहर ऐसा है, जहां के उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिला। वह है भिलाई नगर, जहां के 30 हजार घरों में बिजली बिल आधा नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि यह क्षेत्र केंद्रीय उपक्रम भिलाई स्टील प्लांट के अधीन आता है, वहां के घरों में बीएसपी विद्युत आपूर्ति करती है। यहां से कभी भाजपा के कद्दावर नेता व मंत्री चुनाव जीतकर आते थे, उन्हें कांग्रेस ने हरा दिया।
विधायक के लिए अपने मतदाताओं को इसका लाभ दिलाना चुनौती थी, वहां इसे मुद्दा भी बनाया गया। चूंकि बीएसपी केंद्र सरकार के अधीन है और केंद्र में भाजपा की सरकार है, इसलिये बीएसपी ने भी हाफ बिजली बिल योजना को लागू करने में रुचि नहीं दिखाई। जोर लगाने के बाद तय हुआ कि अगस्त 2023 से इसका लाभ भिलाई के घरेलू उपभोक्ताओं को भी मिलेगा, लेकिन आखिरकार यह अंत तक लागू नहीं हो सका।
अब कहा जा रहा है कि चुनाव के बाद इसे बीएसपी लागू करेगी। अब चुनाव में नेता मतदाताओं के बीच जा रहे हैं तो जनता दोनों दलों से पूछ रही है कि आखिर पांच साल में कांग्रेस-भाजपा इसका लाभ दिलाने में क्यों असफल रहे।
छपने लगे जीत की बधाई संदेश
ऐसा भी कहीं होता है क्या? कार्यकर्ता और समर्थक इतने उत्साहित हो जाएं कि मतदान के पहले ही जीत की बधाई के संदेश छपवाने लग जाएं। लेकिन राजधानी के एक विधानसभा में समर्थकों ने ऐसा विज्ञापन छपवाया है। वाकया ऐसा है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका का विश्वकप मैच दो दिन पहले हुआ, इसमें भारतीय टीम ने जीत दर्ज की। विश्वकप में यह उनकी आठवीं जीत है।
भाजपा के समर्थकों ने एक बड़े अखबार में लाखों रुपए खर्च करके एक विज्ञापन छपवाया और लिखा कि भारत की लगातार आठवीं दक्षिण अफ्रीका पर प्रचंड जीत की बधाई। नीचे 17 समर्थकों के नाम लिखे थे। इसमें 8 वीं जीत और दक्षिण को बड़े अक्षरों में लिखा गया था। अफ्रीका इतना छोटे में लिखा था कि दिखाई भी नहीं दे रहा था। इसमें रंगों का चयन पार्टी के झंडे के रंगों से मिलता जुलता रखा गया था।
समझने वाले समझ गए कि राजधानी का कौन सा नेता है जो अगर चुनाव जीतते हैं तो आठवीं बार विधायक बन जाएंगे। चूंकि प्रत्याशी का नाम नहीं छापा गया इसलिये चुनाव आयोग इसे चुनावी खर्च में जोड़ेगा भी नहीं।
रिमोट वोटिंग का क्या हुआ?
आजीविका के लिए दूसरे राज्यों में मजदूरों का प्रवास करना छत्तीसगढ़ की एक सच्चाई है। अक्सर सरकारें इसे कम करके बताती हैं। अधिकांश मजदूर श्रम विभाग में पंजीयन कराये बिना ही निकलते हैं। इस समय जब धान की फसल लगभग तैयार हो चुकी है, मजदूरों का फिर से प्रवास शुरू हो गया है। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के अलावा जम्मू कश्मीर, दिल्ली और पंजाब के लिए वे निकल पड़े हैं। इन दिशाओं की जनरल और स्लीपर बोगियां मजदूरों से भरी दिखाई दे रही हैं। कई ट्रेनों में पैर रखने की जगह नहीं मिलती। इस समय रेलवे ने त्यौहार के लिए कुछ स्पेशल ट्रेनों की घोषणा भी की है। इसका लाभ मजदूर भी उठा रहे हैं।
दीपावली के साथ-साथ आगे मतदान का त्यौहार भी आ रहा है। पर इन त्यौहारों से ज्यादा चिंता उन्हें इस बात की है कि वे गंतव्य तक जल्दी पहुंचे। जितनी देर करेंगे, उतने दिन वहां की मजदूरी मारी जाएगी। राजनीतिक दल इन्हें चाहकर भी नहीं रोक पाते हैं। निर्वाचन आयोग का स्वीप कार्यक्रम भी यहां बेअसर है। मजदूरों के पलायन के कारण जांजगीर-चांपा, सारंगढ़ जिलों में गांव के गांव खाली हो जाते हैं। ऐसे ही मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग का प्रस्ताव ला चुका है। रिमोट वोटिंग के जरिये मतदाता अपने क्षेत्र को प्रत्याशी को वहीं से वोट दे सकता है, जहां वह इन दिनों काम कर रहा है। इस साल की शुरूआत में आयोग ने इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक भी की थी। पर आम सहमति नहीं बन पाई। इस प्रणाली में वोटों की हैकिंग, धोखाधड़ी और हेराफेरी पर रोक लगाने का कोई पुख्ता तंत्र नहीं बन पाया है, जो सबको संतुष्ट करे।
तुम सियासत करो, हम कारोबार करेंगे
महादेव ऑनलाइन बेटिंग ऐप, रेड्डी अन्ना प्रेस्टोप्रो सहित 22 इसी तरह की अवैध सट्टेबाजी ऐप पर प्रतिबंध लगाने की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने यह भी बताया है कि यह कार्रवाई उनकी सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की मांग पर की है। साथ ही यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार डेढ़ साल से ऐप की जांच कर रही है लेकिन उस पर पाबंदी लगाने की कोई सिफारिश केंद्र से नहीं की। दूसरी तरफ मंत्री के इस जवाब पर कांग्रेस की तरफ जवाब आया है कि मंत्री झूठ बोल रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अगस्त महीने में ही केंद्र सरकार से इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। रायपुर पुलिस ने भी एक बयान में कहा है कि पिछले साल उसने महादेव ऐप को पत्राचार कर गूगल प्ले स्टोर से हटवाया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश का तो कहना है कि सरकार ऐसे ऐप जारी रखना चाहती है क्योंकि वह इनकी कमाई पर 28 प्रतिशत जीएसटी वसूल करती है।
ईडी के प्रेस नोट में ‘बघेल’ नाम उल्लेख होने और महादेव ऐप के कथित मालिक शुभम् सोनी का दुबई वीडियो जारी होने के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। बीजेपी 508 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा लेने के ईडी के आरोप पर सीएम को घेर रही है, तो कांग्रेस कह रही है कि ईडी भाजपा का विंग बन गई है और बिना कोई सबूत के बयान जारी करके उनको बदनाम कर रही है।
इस घमासान के बीच सबसे दिलचस्प यह है कि ऐप्स ब्लॉक करने की घोषणा के कुछ घंटे बाद ही महादेव बुक ने सट्टा लगाने वालों के लिए नया डोमेन लिंक जारी कर दिया। यह जानकारी भी दी गई है कि आईडी और पासवर्ड पहले वाले ही रहेंगे।
आसार यही दिख रहे हैं कि महादेव सट्टा ऐप सियायत के लिए इस्तेमाल हो रहा है, पर ऐप बंद नहीं होगा। चुनाव के बाद इसके कारोबार की शायद चर्चा भी नहीं हो।
शराबबंदी कोई नहीं करने वाला
कांग्रेस की सरकार पूरे पांच साल शराबबंदी का वायदा पूरा नहीं करने के कारण विपक्ष के निशाने पर थी। चुनाव प्रचार में भाजपा कांग्रेस की वादाखिलाफी का जिक्र करते समय इस मुद्दे को जरूर उठाती है, आंदोलन भी किये पर खुद कभी नहीं कहा कि सरकार बनने पर वह शराब की बिक्री बंद कराएगी। इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने भी इस वायदे को नहीं दोहराया है। शराबबंदी पर सुझाव देने बनाई गई समिति का तो जैसे कोई मतलब नहीं रह गया था। मतलब यह है कि कांग्रेस ने शराबबंदी के वादे से पीछा छुड़ा लिया है और भाजपा का रुख साफ है कि वह शराबबंदी के खिलाफ है। प्रदेश में जब इन दोनों में से ही किसी एक दल की सरकार बनने की संभावना हो और दोनों ही दल अपना रुख साफ कर चुके हों तब यह तय है कि अगले पांच साल तक शराब की बिक्री नहीं रुकने वाली। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ओर से जरूर कहा गया है कि वह शराब दुकानों की जगह दूध की दुकानें खोलेगी। पर यह दूर का अनुमान है। यह तभी मुमकिन है जब कांग्रेस या भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और उसे सरकार का हिस्सा बनने का मौका मिले।
जिन्हें बिजली बिल का फायदा नहीं
छत्तीसगढ़ में 2019 से हाफ बिजली बिल योजना लागू हुई। लाखों घरेलू उपभोक्ताओं के 400 यूनिट तक बिजली बिल हाफ कर दिया गया। लेकिन छत्तीसगढ़ में एक शहर ऐसा है, जहां के उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिला। वह है भिलाई नगर, जहां के 30 हजार घरों में बिजली बिल आधा नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि यह क्षेत्र केंद्रीय उपक्रम भिलाई स्टील प्लांट के अधीन आता है, वहां के घरों में बीएसपी विद्युत आपूर्ति करती है। यहां से कभी भाजपा के कद्दावर नेता व मंत्री चुनाव जीतकर आते थे, उन्हें कांग्रेस ने हरा दिया।
विधायक के लिए अपने मतदाताओं को इसका लाभ दिलाना चुनौती थी, वहां इसे मुद्दा भी बनाया गया। चूंकि बीएसपी केंद्र सरकार के अधीन है और केंद्र में भाजपा की सरकार है, इसलिये बीएसपी ने भी हाफ बिजली बिल योजना को लागू करने में रुचि नहीं दिखाई। जोर लगाने के बाद तय हुआ कि अगस्त 2023 से इसका लाभ भिलाई के घरेलू उपभोक्ताओं को भी मिलेगा, लेकिन आखिरकार यह अंत तक लागू नहीं हो सका।
अब कहा जा रहा है कि चुनाव के बाद इसे बीएसपी लागू करेगी। अब चुनाव में नेता मतदाताओं के बीच जा रहे हैं तो जनता दोनों दलों से पूछ रही है कि आखिर पांच साल में कांग्रेस-भाजपा इसका लाभ दिलाने में क्यों असफल रहे।
छपने लगे जीत की बधाई संदेश
ऐसा भी कहीं होता है क्या? कार्यकर्ता और समर्थक इतने उत्साहित हो जाएं कि मतदान के पहले ही जीत की बधाई के संदेश छपवाने लग जाएं। लेकिन राजधानी के एक विधानसभा में समर्थकों ने ऐसा विज्ञापन छपवाया है। वाकया ऐसा है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका का विश्वकप मैच दो दिन पहले हुआ, इसमें भारतीय टीम ने जीत दर्ज की। विश्वकप में यह उनकी आठवीं जीत है।
भाजपा के समर्थकों ने एक बड़े अखबार में लाखों रुपए खर्च करके एक विज्ञापन छपवाया और लिखा कि भारत की लगातार आठवीं दक्षिण अफ्रीका पर प्रचंड जीत की बधाई। नीचे 17 समर्थकों के नाम लिखे थे। इसमें 8 वीं जीत और दक्षिण को बड़े अक्षरों में लिखा गया था। अफ्रीका इतना छोटे में लिखा था कि दिखाई भी नहीं दे रहा था। इसमें रंगों का चयन पार्टी के झंडे के रंगों से मिलता जुलता रखा गया था।
समझने वाले समझ गए कि राजधानी का कौन सा नेता है जो अगर चुनाव जीतते हैं तो आठवीं बार विधायक बन जाएंगे। चूंकि प्रत्याशी का नाम नहीं छापा गया इसलिये चुनाव आयोग इसे चुनावी खर्च में जोड़ेगा भी नहीं।
रिमोट वोटिंग का क्या हुआ?
आजीविका के लिए दूसरे राज्यों में मजदूरों का प्रवास करना छत्तीसगढ़ की एक सच्चाई है। अक्सर सरकारें इसे कम करके बताती हैं। अधिकांश मजदूर श्रम विभाग में पंजीयन कराये बिना ही निकलते हैं। इस समय जब धान की फसल लगभग तैयार हो चुकी है, मजदूरों का फिर से प्रवास शुरू हो गया है। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के अलावा जम्मू कश्मीर, दिल्ली और पंजाब के लिए वे निकल पड़े हैं। इन दिशाओं की जनरल और स्लीपर बोगियां मजदूरों से भरी दिखाई दे रही हैं। कई ट्रेनों में पैर रखने की जगह नहीं मिलती। इस समय रेलवे ने त्यौहार के लिए कुछ स्पेशल ट्रेनों की घोषणा भी की है। इसका लाभ मजदूर भी उठा रहे हैं।
दीपावली के साथ-साथ आगे मतदान का त्यौहार भी आ रहा है। पर इन त्यौहारों से ज्यादा चिंता उन्हें इस बात की है कि वे गंतव्य तक जल्दी पहुंचे। जितनी देर करेंगे, उतने दिन वहां की मजदूरी मारी जाएगी। राजनीतिक दल इन्हें चाहकर भी नहीं रोक पाते हैं। निर्वाचन आयोग का स्वीप कार्यक्रम भी यहां बेअसर है। मजदूरों के पलायन के कारण जांजगीर-चांपा, सारंगढ़ जिलों में गांव के गांव खाली हो जाते हैं। ऐसे ही मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग का प्रस्ताव ला चुका है। रिमोट वोटिंग के जरिये मतदाता अपने क्षेत्र को प्रत्याशी को वहीं से वोट दे सकता है, जहां वह इन दिनों काम कर रहा है। इस साल की शुरूआत में आयोग ने इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक भी की थी। पर आम सहमति नहीं बन पाई। इस प्रणाली में वोटों की हैकिंग, धोखाधड़ी और हेराफेरी पर रोक लगाने का कोई पुख्ता तंत्र नहीं बन पाया है, जो सबको संतुष्ट करे।
तुम सियासत करो, हम कारोबार करेंगे
महादेव ऑनलाइन बेटिंग ऐप, रेड्डी अन्ना प्रेस्टोप्रो सहित 22 इसी तरह की अवैध सट्टेबाजी ऐप पर प्रतिबंध लगाने की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने यह भी बताया है कि यह कार्रवाई उनकी सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की मांग पर की है। साथ ही यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार डेढ़ साल से ऐप की जांच कर रही है लेकिन उस पर पाबंदी लगाने की कोई सिफारिश केंद्र से नहीं की। दूसरी तरफ मंत्री के इस जवाब पर कांग्रेस की तरफ जवाब आया है कि मंत्री झूठ बोल रहे हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अगस्त महीने में ही केंद्र सरकार से इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। रायपुर पुलिस ने भी एक बयान में कहा है कि पिछले साल उसने महादेव ऐप को पत्राचार कर गूगल प्ले स्टोर से हटवाया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश का तो कहना है कि सरकार ऐसे ऐप जारी रखना चाहती है क्योंकि वह इनकी कमाई पर 28 प्रतिशत जीएसटी वसूल करती है।
ईडी के प्रेस नोट में ‘बघेल’ नाम उल्लेख होने और महादेव ऐप के कथित मालिक शुभम् सोनी का दुबई वीडियो जारी होने के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। बीजेपी 508 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा लेने के ईडी के आरोप पर सीएम को घेर रही है, तो कांग्रेस कह रही है कि ईडी भाजपा का विंग बन गई है और बिना कोई सबूत के बयान जारी करके उनको बदनाम कर रही है।
इस घमासान के बीच सबसे दिलचस्प यह है कि ऐप्स ब्लॉक करने की घोषणा के कुछ घंटे बाद ही महादेव बुक ने सट्टा लगाने वालों के लिए नया डोमेन लिंक जारी कर दिया। यह जानकारी भी दी गई है कि आईडी और पासवर्ड पहले वाले ही रहेंगे।
आसार यही दिख रहे हैं कि महादेव सट्टा ऐप सियायत के लिए इस्तेमाल हो रहा है, पर ऐप बंद नहीं होगा। चुनाव के बाद इसके कारोबार की शायद चर्चा भी नहीं हो।
शराबबंदी कोई नहीं करने वाला
कांग्रेस की सरकार पूरे पांच साल शराबबंदी का वायदा पूरा नहीं करने के कारण विपक्ष के निशाने पर थी। चुनाव प्रचार में भाजपा कांग्रेस की वादाखिलाफी का जिक्र करते समय इस मुद्दे को जरूर उठाती है, आंदोलन भी किये पर खुद कभी नहीं कहा कि सरकार बनने पर वह शराब की बिक्री बंद कराएगी। इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने भी इस वायदे को नहीं दोहराया है। शराबबंदी पर सुझाव देने बनाई गई समिति का तो जैसे कोई मतलब नहीं रह गया था। मतलब यह है कि कांग्रेस ने शराबबंदी के वादे से पीछा छुड़ा लिया है और भाजपा का रुख साफ है कि वह शराबबंदी के खिलाफ है। प्रदेश में जब इन दोनों में से ही किसी एक दल की सरकार बनने की संभावना हो और दोनों ही दल अपना रुख साफ कर चुके हों तब यह तय है कि अगले पांच साल तक शराब की बिक्री नहीं रुकने वाली। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की ओर से जरूर कहा गया है कि वह शराब दुकानों की जगह दूध की दुकानें खोलेगी। पर यह दूर का अनुमान है। यह तभी मुमकिन है जब कांग्रेस या भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और उसे सरकार का हिस्सा बनने का मौका मिले।
अब डीजे के लिए डीजीपी !
डीजे की शोर पर हाईकोर्ट भी सख्त है, लेकिन शासन-प्रशासन की तरफ से रोकथाम के लिए अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है। दो दिन पहले तो नवा रायपुर के फाइव स्टार होटल में ठहरे लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी डीजे की शोर से इतने परेशान हो गए, कि उन्हें आधी रात को डीजीपी को फोन घनघना पड़ा।
चौधरी कांग्रेस प्रत्याशियों के प्रचार के लिए यहां आए हुए थे। वो अंतागढ़ भी गए, जहां उन्होंने बंगाली समाज के वोटरों से कांग्रेस प्रत्याशी रूप सिंह पोटाई के लिए वोट मांगा। उनके लिए नवा रायपुर के आलीशान होटल में ठहरने की व्यवस्था की गई थी। देर रात प्रचार से थके हारे लौटे अधीर रंजन चौधरी होटल परिसर में चल रहे डीजे की शोर से काफी परेशान हो गए।
बताते हैं कि चौधरी ने पहले होटल प्रबंधन को फोन कर डीजे बंद कराने कहा। मगर प्रबंधन ने ध्यान नहीं दिया। होटल में डीजे और ढोल-धमाका चलता रहा। इसके बाद आधी रात को उन्होंने सीधे डीजीपी अशोक जुनेजा को फोन किया, और इसको लेकर नाराजगी जताई। इससे हड़बड़ाए जुनेजा ने तत्काल होटल प्रबंधन को डीजे बंद करने कहा, और जमकर फटकार लगाई। तब कहीं जाकर डीजे का शोर बंद हो पाया। अधीर रंजन ने इस घटना का जिक्र कई और लोगों से भी शेयर किया।
दक्षिण की कहानी
सात बार के विधायक, और रायपुर दक्षिण से भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल का इस बार प्रचार का तरीका थोड़ा बदला है। वजह यह है कि इस बार मुकाबले में कांग्रेस से महंत रामसुंदर दास हैं, जो कि प्रदेश के प्रतिष्ठित दुधाधारी मठ के महंत हैं। महंत के नाम की घोषणा के बाद से बृजमोहन के उत्साही समर्थक कुछ ऐसा कर दे रहे हैं, जो कि कई लोगों को नहीं भा रहा है।
महंत के खिलाफ पहले सोशल मीडिया पर जमीन से जुड़ा विवाद उछाला गया। इसके बाद एक के बाद एक सोशल मीडिया के माध्यम से बृजमोहन समर्थक महंत के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। कई वीडियो सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। मगर बेहद शालीन महंत रामसुंदर दास कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। वो तडक़े मठ में पूजा पाठ के बाद प्रचार के लिए निकल जाते हैं। पार्क, स्टेडियम से लेकर लोगों के घरों में दस्तक दे रहे हैं। लोग उनके स्वागत में स्वस्फुर्त जुट रहे हैं। यही नहीं, महंत को अब तक उन्हें लाखों रुपए दान मिल चुके हैं। अब महंत की देखादेखी बृजमोहन ने प्रचार का तरीका बदला है, वो सुबह से पार्कों में नजर आने लगे हैं। जबकि उनकी दिनचर्या सुबह 11 बजे के बाद ही शुरू होती रही है।
चर्चा है कि सुबह लोगों से मेल-मुलाकात के चक्कर में बृजमोहन रात भर सो नहीं पा रहे हैं। दो-तीन दिन पहले बृजमोहन का कलेक्टोरेट परिसर स्थित ऑक्सीजोन में मॉर्निंग वॉक के लिए आए लोगों से मेल मुलाकात का कार्यक्रम तय था। वहां शनिवार को सुबह हनुमान चालीसा का पाठ होता है। मगर बृजमोहन ऑक्सीजोन में विलंब से पहुंचे। तब तक हनुमान चालीसा का पाठ हो चुका था। लोग घर जाने लगे थे, लेकिन कुछ उत्साही समर्थकों के दबाव में बृजमोहन के लिए दोबारा हनुमान चालीसा का पाठ कराया गया, जो कि कई लोगों को पसंद नहीं आया।
कांग्रेस का घोषणा पत्र
सत्ता में जिसकी सरकार रहती है, उस पर घोषणा पत्र को लेकर काफी दबाव रहता है। इसका कारण यह है कि सत्ता में होने के कारण उन्हें वित्तीय स्थिति का पता रहता है। पता भी नहीं होता तो अफसर को बोलकर जानकारी जुटा ली जाती है कि इस तरह की घोषणा करने से कितना वित्तीय भार आएगा। इस बार कांग्रेस के घोषणा पत्र में इसका प्रभाव दिखने लगा है। जब 2018 का विधानसभा चुनाव था तब कांग्रेस ने बहुत लंबा चौड़ा घोषणा पत्र तैयार किया था। 36 वादों की सूची अलग से रेखांकित की गई थी और उसका विस्तार अलग से पन्नों पर लिखा गया था। इस बार कांग्रेस को उम्मीद है कि उनकी सरकार बन रही है, इसलिए घोषणा करते समय कदम फूंक-फूंक कर रखा गया है। तभी तो धान की कीमत अगले चुनाव तक 3600 रूपए करने की बातें करने वाले मंत्री की बातें घोषणा पत्र में नहीं दिख रही है। वैसे धान खरीदी और कर्जमाफी जैसी घोषणाओं को पूरा करने के लिए सरकार को भारी बड़ा दिल रखना पड़ेगा क्योंकि बजट का बड़ा हिस्सा इसमें चला जाएगा।
ईडी की छापेमारी के बाद डांस
इन दिनों छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि राजस्थान में भी प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी और समन की चर्चा है। सीकर के विधायक व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डाटासेरा के यहां ईडी ने छापा मारा। ईडी को एक पेपर लीक मामले में इनका कनेक्शन मिला है। छापेमारी के बाद 8 नवंबर को ईडी ने पूछताछ के लिए अपने दफ्तर पहुंचने के लिए उनको नोटिस भी दे दी है। पर इस बीच डाटासेरा नामांकन दाखिले के लिए रैली लेकर निकले, अच्छी भीड़ थी। डाटासेरा कार्यकर्ताओं के साथ वे इतने जोश में आ गए कि कार की छत पर चढक़र गाने की धुन पर नाचने लगे। जैसे उन्हें ईडी की छापेमारी और समन की कोई फिक्र ही न हो।
एक गारंटी जिताने की भी..
चुनाव मैदान पर खड़े राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अपने-अपने दलों के घोषणा पत्र में दी गई गारंटी का प्रचार कर रहे हैं। पर इस गारंटी को पूरा करने के लिए उम्मीदवार का चुनाव जीतना भी जरूरी है। जीत की गारंटी का दावा करने वाले कुछ विज्ञापन सोशल मीडिया भी पर चल रहे हैं। दावा करने वाले ज्योतिष, तांत्रिक का कहना है कि वे ऐसा प्रबल राजयोग बना देंगे कि चाहे कोई निर्दलीय ही क्यों न हो, उन्हें गारंटी के साथ जीत दिलाएंगे। फीस (दक्षिणा) नतीजा आने के बाद ही लेंगे। तांत्रिक के विज्ञापन में उनका नाम, पता, मोबाइल नंबर सब दिया गया है, जिन्हें भरोसा हो वे उन्हें फेसबुक, ट्विटर पर सर्च कर तलाश सकते हैं।
अबूझमाड़ की दो तस्वीरें...
बस्तर के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके में इन दिनों नक्सली पर्चे पोस्टर लगाकर ग्रामीणों से मतदान का बहिष्कार करने कह रहे हैं। जिला मुख्यालय से थोड़ा आगे बढ़ते ही जगह-जगह सुरक्षा बलों की तैनाती दिखती है। कल 7 नवंबर को मतदान हिंसक वारदातों से बचा रहे और प्रक्रिया शांतिपूर्वक पूरी कर ली जाए, यह प्रशासन की सबसे बड़ी चिंता है। करीब 30 केंद्रों में मतदान दलों को हेलिकॉप्टर से भेजा जा रहा है। और यही अबूझमाड़ है जहां के के जाबांज मलखंभ खिलाड़ी युवाओं ने सोनी टीवी के इंडियाज गॉट टेलेंट की चैंपियनशिप जीत ली। इस प्रतिष्ठित स्पर्धा का विनर बनने से टीम को 30 लाख रुपये नगद और एक महंगी कार मिली है। अबूझमाड़ को इन मलखंभ खिलाडिय़ों ने जो नई पहचान दी है, उससे यह उम्मीद की जा सकती है कि देश-दुनिया के लोगों में बस्तर और खासकर अबूझमाड़ के बारे में नजरिया बदलेगा।( [email protected])
मोदी आए भी, और गए भी
पीएम नरेन्द्र मोदी का अचानक शनिवार को डोंगरगढ़ का प्रोग्राम बना, और वो पहले चरण की विधानसभा सीटों के लिए चुनाव प्रचार खत्म होने के कुछ घंटे पहले वहां पहुंचे। उनकी जैन मुनि आचार्य विद्यासागर से मुलाकात हुई, और उनसे आशीर्वाद लिया। डोंगरगढ़ में जैन समाज का तीर्थ स्थल चंद्रगिरी सज संवर रहा है। पीएम का कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। वो गोंदिया में कार्यक्रम निपटाने के बाद डोंगरगढ़ आए, और फिर कुछ देर यहां रुकने के बाद मध्यप्रदेश के सिवनी के लिए रवाना हो गए।
पीएम, आचार्य से मुलाकात से पहले डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी मंदिर के दर्शन किए। दिलचस्प बात यह है कि कुछ दिन पहले डोंगरगढ़ के पास भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सभा थी, लेकिन वो मंदिर नहीं जा पाए। इस पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कटाक्ष किया कि कहीं अपशकुन न हो जाए। अब जब पीएम मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे हैं, तो अपशकुन पर चर्चा खत्म हो गई।
पुत्र गया, पिता बाकी
रायपुर उत्तर से कांग्रेस के बागी निर्दलीय प्रत्याशी अजीत कुकरेजा को पार्टी से निकाल दिया गया है। कुकरेजा एमआईसी सदस्य भी हैं। मगर उनके पिता आनंद कुकरेजा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, आनंद प्रदेश कांग्रेस के संयुक्त महासचिव हैं। पिछले दिनों अजीत ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन दाखिल किया था, तब आनंद भी साथ थे।
बताते हैं कि शहर जिला कांग्रेस ने आनंद कुकरेजा के खिलाफ भी कार्रवाई की सिफारिश की थी, लेकिन उन पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की गई। चर्चा है कि आनंद की तरफ से कुछ आश्वासन दिया गया है, इस वजह से कार्रवाई रोकी गई है। अजीत के बैनर-पोस्टर से पिता आनंद कुकरेजा की तस्वीर गायब है। अलबत्ता, शहर के एक बड़े नेता ने चुनाव प्रचार की रणनीति पर चर्चा के लिए आनंद कुकरेजा ने बैठक रखी थी। जिसमें समाज के लोग बड़ी संख्या में पहुंचे थे। अब इसकी जानकारी कुछ लोगों ने पीसीसी को दे दी है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
लाश पर सिरपुर दर्शन
प्रशासनिक हलकों में आईएएस अफसर कहते हैं कि चुनाव ड्यूटी लगे तो मौज मस्ती । क्योंकि जिस राज्य जाते हैं वहां की जमीनी राजनीति की कोई जानकारी होती नहीं। फिर पचड़े में क्यों पड़े। आयोग ने कहा है कि शिकायतें सुनो,फारवर्ड करो, बूथ का निरीक्षण करों कुछ निर्देश दो और सरकारी ऐशो आराम को भोगो। छत्तीसगढ़ में भी यही हो रहा है। हर विधानसभा के लिए तीन तीन पर्यवेक्षक आए हैं। जब ये कम पड़े तो आयोग ने तीन और विशेष भेज दिए। तीनो रिटायर्ड । जब सेवा में ही नहीं तो क्या करना। बस घूमो फिरो। हत्या भी हो जाए तो हम तो पॉलिटिकल पर्यटन पर आए हैं। कल नारायणपुर में हत्या हो गई। भाजपा के दो, दो सांसद इन विशेष पर्यवेक्षक महोदय से मिलना चाहते थे, यह मानकर कि शेषन जैसा करेंगे। लेकिन साहब के लाइजन अफसर ने कह दिया साहब आज पुरातात्विक नगर सिरपुर जा रहे हैं। कल आइए। अब सांसद महोदय खुड़बुड़ा रहे हैं।
दामाद दोहरी भूमिका में
छत्तीसगढ़ की राजनीतिक, प्रशासनिक हलकों में दामादों की बड़ी धमक और पूछपरख रही है। एक की वजह से तो सरकार भी गवानी पड़ी है । इन दिनों भी एक दामाद बाबू दुलरू कि चर्चा हो रही है। ससुर जी देश के सबसे बड़ी संस्था के मुखिया हैं। जो मोटा भाइयों की पसंद बताए जाते हैं। उनके दामाद भी एक मोटा भाई के पास विशेष अफसर हैं। सो उम्मीद थी कि छत्तीसगढ़ को लेकर ससुर दामाद कुछ करेंगे। लेकिन दामाद बाबू से डॉ.साहब की पूरी टोली नाराज है। कहने लगे हैं ये तो पंजा छाप अफसर हैं। यानी दाऊजी की पूरी चल रही है। डॉ.साहब ने तीसरे मोटा भाई को पूरा हिसाब किताब बता दिया है इन दामाद बाबू का।
मतदान दल मां की शरण में
पहले चरण में 7 नवंबर को बस्तर संभाग के 2900 मतदान केंद्रों में वोट डाले जाएंगे, जिनमें से 600 बेहद संवेदनशील केंद्र हैं। यहां हमेशा खतरा बना रहता है। कर्मचारियों के पास विकल्प नहीं होता कि वे अपनी पसंद का मतदान केंद्र चुन सकें। यह दल की रवानगी के कुछ पहले रेंडम तरीके से निर्धारित होता है। कर्मचारियों के परिजन मनाते रहते हैं कि उन्हें अति संवेदनशील स्थानों पर जाने की नौबत नहीं आए। सुरक्षा बल जगह-जगह तैनात हैं फिर भी उन्हें अनहोनी का डर सताता तो रहता है। अभी हो रहा है कि चुनाव में खड़े उम्मीदवारों के साथ-साथ दंतेश्वरी मां की चौखट पर माथा टेकने के लिए मतदान कर्मी और उनके परिजन भी पहुंच रहे हैं। माई से वे प्रार्थना कर रहे हैं कि ड्यूटी सुरक्षित जगह पर लगे। जिनकी ड्यूटी संवेदनशील जगहों में तय हो गई है, वे भी पहुंच रहे हैं, सकुशल वापसी की प्रार्थना कर रहे हैं।
चुनावी सभा में स्कूली बच्चे...
चुनावी मौसम में रोज बड़े-बड़े नेताओं का दौरा हो रहा है। हर नेता के लिए भीड़ जुटाना आसान नहीं होता। कई बार राष्ट्रीय स्तर के नेता भी दो चार सौ लोगों की सभा में ही भाषण देकर लौट रहे हैं। निर्वाचन आयोग के अलावा विरोधी दल की भी निगाह होती है कि कहीं आचार संहिता का उल्लंघन तो नहीं हो रहा। ऐसा होने पर तुरंत शिकायत कर दी जाती है। मोबाइल ने शिकायत पोस्ट करना आसान भी कर दिया है। बैंकुठपुर की कांग्रेस पत्याशी की एक आमसभा यहां के हाईस्कूल मैदान में हुई। कार्यकर्ताओं में जोश था या दबाव, उन्होंने स्कूली बच्चों को बुलाकर सभा में बिठा दिया। चूंकि सब बच्चे यूनिफॉर्म में थे, इसलिए पहचान में आ गए। शिकायत मिलने पर कोरिया जिले के रिटर्निंग ऑफिसर ने न केवल प्रत्याशी सिंहदेव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, बल्कि उस स्कूल के प्राचार्य को निलंबित भी कर दिया है।
भगत अब तक नाराज
जशपुर से टिकट नहीं मिलने से पूर्व मंत्री गणेश राम भगत नाराज चल रहे हैं। उनके सैकड़ों समर्थक, रायपुर में दो दिन तक कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में धरने पर बैठे थे। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया उन्हें किसी तरह समझा बुझाकर जशपुर वापस भेजने में सफल रहे। भगत से बातचीत भी की, लेकिन उनकी नाराजगी बरकरार है।
बताते हैं कि भगत प्रचार-प्रसार से दूरी बनाए हुए हैं। उनके कट्टर समर्थक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। भगत जशपुर के बड़े हिन्दूवादी नेता हैं, और वो धर्मांतरण के मुद्दे के खिलाफ जनजाति सुरक्षा मंच बनाकर काम कर रहे हैं।
भगत ईसाई बने आदिवासियों को आरक्षण देने के खिलाफ मुहिम भी चलाई है। और अब जब कोप भवन में बैठे हैं, तो जशपुर जिले की तीनों सीट जशपुर, कुनकुरी और पत्थलगांव में भाजपा प्रत्याशियों की राह कठिन हो गई है। वैसे भी तीनों सीट कांग्रेस के पास है। जबकि जशपुर जिले की सीटों पर भाजपा का दबदबा रहा है। मगर इस बार भगत की नाराजगी से भाजपा की तीनों सीटों को कब्जा करने के रणनीति पर पानी फिरता दिख रहा है। हालांकि पार्टी के रणनीतिकार भगत को भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार के लिए तैयार करने में जुटे हुए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
कई ने राहत की साँस ली
सीएम भूपेश बघेल का ट्वीट-प्रमोद को उन्होंने क्या दिखाया? फिर प्रमोद ने उन्हें क्या बताया? काफी चर्चा में रहा। उनके ट्वीट को लेकर काफी उत्सुकता रही, और अंदाजा लगाया जा रहा था कि कांग्रेस किसी स्टिंग ऑपरेशन का खुलासा कर सकती है। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, और शाम को भाजपा के घोषणा पत्र जारी होने के बाद कांग्रेस ने 'देख रहा है प्रमोद' के कई वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किए, जिसमें राज्य सरकार की योजनाओं, और कांग्रेस सरकार पर भरोसे की बात बताई गई थी। ये वीडियो वेब सीरीज 'पंचायत' के कलाकार के साथ शूट किए गए।
दिलचस्प बात यह है कि प्रमोद नाम के कांग्रेस नेताओं से पूछताछ हो रही थी। कुछ लोग प्रमोद दुबे का बृजमोहन अग्रवाल के साथ कोई स्टिंग ऑपरेशन होने की बात कह रहे थे तो कुछ लोग बलौदाबाजार के विधायक प्रमोद शर्मा से संपर्क कर वस्तुस्थिति की जानकारी लेने की कोशिश कर रहे थे।
प्रमोद कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में आए हैं, और उनके पहले भाजपा में जाने की अटकलें लगाई जा रही थी। प्रमोद खुद इस तरह के संकेत दे चुके थे। चर्चा यह भी रही कि उनसे जुड़ा कोई स्टिंग सामने आ सकता है। यही नहीं, यूपी के नेता और छत्तीसगढ़ के मीडिया इंचार्ज प्रमोद तिवारी को लेकर भी कुछ इसी तरह के कयास लगाए जा रहे थे।
यही नहीं, कुछ कांग्रेस नेता तो किसी प्रमोद सिन्हा नाम के ईडी अफसर का स्टिंग होने की चर्चा कर रहे थे। कुल मिलाकर प्रमोद नाम के नेता पूछताछ से काफी परेशान रहे, और जब सब कुछ साफ हुआ तो कई 'प्रमोद' ने राहत की सांस ली।
घोषणा करके फंस गए प्रत्याशी
भाजपा का चुनावी घोषणा पत्र आ चुका है। इसमें 3100 रुपए में धान खरीदी के साथ ही और भी घोषणाएं हैं। लेकिन कांग्रेस के कर्जमाफी के वादे के बाद भाजपा नेता दावे कर रहे थे, हमारा घोषणा पत्र राकेट होगा।
इस चक्कर में भाजपा के कुछ प्रत्याशियों ने बढ़ चढ़ कर बातें जनसभाओं में भी कर दी थी।
कवर्धा जिले के एक प्रत्याशी ने तो यहां तक कह दिया था कि राष्ट्रीयकृत बैंकों के दो लाख के कर्ज हम माफ करेंगे। इसका वीडियो दूसरे जिलों में भी वायरल हुआ। लोगों में चर्चा का विषय बना रहा कि यह तो वाकई में रॉकेट होगा। पर जब घोषणा पत्र आया तो रॉकेट लांचिंग पैड से गायब था। अब प्रत्याशी चेहरा छिपाते फिर रहे हैं।
टिकट देने से परहेज, गानों से नहीं...
मतदाताओं को लुभाने में लोक कलाकारों की बड़ी भूमिका होती है। इनकी लोकप्रियता की वजह से कई राजनीतिक दल इन्हें टिकट भी देते हैं पर कई बार इसी के चलते चुनाव जीत भी जाते हैं। सन् 2018 के चुनाव में दो लोक गायकों, जांजगीर-चांपा जिले की पामगढ़ सीट से गोरेलाल बर्मन को तथा उससे लगी हुई सीट मस्तूरी से दिलीप लहरिया को कांग्रेस ने टिकट दी थी। दोनों चुनाव हार गए थे। फर्क यह था कि लहरिया ने विधायक रहते हुए चुनाव लड़ा था। बर्मन बसपा प्रत्याशी इंदु बंजारे से करीब 3000 मतों से हार गए थे। लहरिया मस्तूरी सीट से बसपा से भी नीचे उतरकर तीसरी पोजिशन पर थे और करीब 14 हजार वोटों से हार गए थे। देखा जाए तो बर्मन प्रदर्शन अच्छा ही था क्योंकि पामगढ़ क्षेत्र बसपा का गढ़ रहा है। भाजपा यहां तीसरे नंबर पर थी। पर इस बार कांग्रेस ने इस बार बर्मन को टिकट नहीं दी और लहरिया को फिर मौका दिया है। बर्मन को भेदभाव बर्दाश्त नहीं हुआ, उनकी नाराजगी फूट पड़ी। पिछले सप्ताह उन्होंने कांग्रेस से 20 साल पुराना नाता तोड़ लिया। वे जेसीसी (जोगी) में शामिल हो गए और मैदान में उतर गए हैं। कांग्रेस ने उनकी कला का सन् 2018 में सही इस्तेमाल किया। कांग्रेस की चुनावी गाड़ी में एक गाना खूब बजा- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरूआ, घुरुवा, बारी...। इसके अलावा भी कई गीत हैं, जो उन्होंने खुद लिखे भी हैं।
पार्टी छोड़ते ही कांग्रेस नेताओं को बर्मन ने पत्र लिखकर कहा कि वे उनके गानों का चुनाव में इस्तेमाल बंद करें। पार्टी की ओर से शायद कोई जवाब नहीं आया और गानों का इस्तेमाल भी बंद नहीं हुआ। इसलिए बर्मन ने अब दूसरी चि_ी लिखी है कि यदि उनके गानों को कांग्रेस ने बजाना बंद नहीं किया तो वे कोर्ट जाएंगे। अतीत बर्मन का पीछा कर रहा है, चिंता जायज है। बाकी सीटों पर हो सकता है फर्क न पड़े मगर, पामगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी के लिए ये गाने बजेंगे तो बर्मन को नुकसान तो हो ही सकता है।
निष्ठावान कांग्रेसी और दलबदलू..
कांग्रेस और भाजपा से बगावत कर दूसरे दलों का दामन पकडक़र चुनाव मैदान में उतरने वाले बहुत से उम्मीदवार खुद भी चुनाव जीत सकने के प्रति आश्वस्त नहीं होंगे, फिर भी वे इसलिये उतर गए हैं ताकि उनकी टिकट काटकर जिसे मौका दिया गया, उनको निपटा सकें। पर दल बदलकर मैदान पर उतरने वाले कई प्रत्याशी बहुत गंभीरता से लड़ रहे हैं। सन् 2013 में विधायक धर्मजीत सिंह ने लोरमी सीट से कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। जीत नहीं पाए। उसके पहले कांग्रेस से विधायक रह चुके थे। सन् 2018 में उन्होंने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) की टिकट पर यहीं से चुनाव लड़ा। अब इस बार वे भाजपा की टिकट पर तखतपुर विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं। यहां से विधायक रश्मि सिंह को फिर टिकट दी गई है। पिछला चुनाव उन्होंने 2900 के अंतर से जीता था। रिपोर्ट कार्ड दुरुस्त नहीं था। चर्चा यह थी कि यहां से प्रत्याशी बदल लिया जाएगा लेकिन टिकट सिफारिश से बच गई। पिछले चुनाव में जेसीसी से ही उनका मुकाबला था। धर्मजीत सिंह उसी पार्टी को छोडक़र मैदान में हैं। पिछली बार की मामूली अंतर से हुई जीत और जेसीसी मतदाताओं पर धर्मजीत सिंह के प्रभाव के अनुमान को देखते हुए कांग्रेस ने प्रचार का तरीका बदल लिया है। रश्मि सिंह और उनके समर्थक याद दिला रहे हैं कि धर्मजीत सिंह ने कांग्रेस से राजनीति शुरू की। पार्टी ने ही विधायक बनाया, फिर उन्होंने मौका देख पार्टी छोड़ी, जेसीसी में चले गए। अब जेसीसी छोडक़र भाजपा में आ गए। तो ऐसे बार-बार दल बदलने वालों से सावधान रहें। दूसरी तरफ अपनी पृष्ठभूमि याद दिला रही हैं कि उनके पिता और ससुर दोनों यहां से विधायक रहे। कभी टिकट मिली, कभी नहीं मिली। कभी हारे, कभी जीते। पर 50 साल से कांग्रेस से नाता नहीं तोड़ा।
इधर धर्मजीत सिंह को भाजपा कार्यकर्ताओं का साथ मिल रहा है, जो दावेदार थे, वे भी साथ दिख रहे है। कांग्रेस और जेसीसी की पृष्ठभूमि के चलते कुछ पुराने लोग भी उनके साथ आ गए हैं।
चुनाव बहिष्कार में प्रयोग ..
चुनाव प्रचार के लिए नये-नये तरीके इस्तेमाल किये जाते तो हैं पर बस्तर में चुनाव बहिष्कार के लिए जोर लगा रहे माओवादी भी इसे आजमाने लगे हैं। स्टेट हाईवे क्रमांक 25 पर पखांजूर के पास जनकपुर में एक चौराहे पर पारंपरिक पोस्टर के अलावा नक्सलियों ने बैलून पर भी चुनाव बहिष्कार के नारे लिखकर बांध दिए। बैनर और बैलून हटाने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी। मगर, पुलिस फोर्स को जैसे ही बता चला वह वहां पहुंची। बैनर पोस्टर तथा बैलून हटा लिए गए।
खर्च को लेकर संघर्ष
चर्चा है कि रायपुर की एक सीट पर मुख्य राजनीतिक दल के प्रत्याशी, और चुनाव संचालक के बीच विवाद शुरू हो गया है। चुनाव संचालक के पास पहले से ही संगठन का एक अतिरिक्त दायित्व था, बावजूद उन्हें चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी गई।
चुनाव प्रचार जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है। प्रचार के लिए कार्यकर्ता पैसा मांग रहे हैं। स्वाभाविक है कि प्रचार-प्रसार पर तो खर्च होता ही है। चुनाव आयोग ने प्रत्याशी के लिए 40 लाख खर्च की सीमा तय कर रखी है। मगर रायपुर की सीटों पर मुख्य दलों के प्रत्याशियों को तय सीमा से न्यूनतम 10-20 गुना, या उससे अधिक खर्च करना पड़ता है।
बताते हैं कि खर्च को लेकर चुनाव संचालक, और प्रत्याशी के बीच पिछले दिनों बैठक हुई। प्रत्याशी ने साफ तौर पर कह दिया कि वो 2-3 सीआर से ज्यादा नहीं खर्च कर सकते हैं। इस पर हैरान चुनाव संचालक ने कहा बताते हैं कि रायपुर की सीट पर न्यूनतम 10 सीआर खर्च करने पड़ते हैं। इतनी व्यवस्था नहीं होगी, तो मुश्किलें आएंगी। कार्यकर्ताओं की नाराजगी से बचने के लिए चुनाव संचालक ने फिलहाल खुद को किनारे कर लिया है। देखना है कि आगे का प्रचार कैसे होता है।
पूरा महल जुटा
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। भाजपा ने सिंहदेव के खिलाफ उनके ही चेले राजेश अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है। इस बार का माहौल काफी अलग है। पिछली बार तो उनके सीएम बनने का हल्ला था। इसलिए लोगों ने उन्हें बढ़-चढक़र समर्थन दिया। लेकिन इस बार परिस्थिति अलग है। स्थानीय लोगों में नाराजगी भी है।
सिंहदेव को सारी स्थिति का अंदाजा है। यही वजह है कि उनके छोटे भाई, और तीनों बहनों ने अंबिकापुर में डेरा डाल दिया है। सारे नजदीकी रिश्तेदार भी जुट गए हैं। गली-मोहल्लों में जाकर सिंहदेव के लिए वोट मांग रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल को उन्हीं के दल के प्रमुख नेता समर्थन नहीं कर रहे हैं। मगर असंतुष्ट कांग्रेसियों, और निष्ठावान भाजपाईयों व व्यक्तिगत संपर्कों की वजह से मजबूत दिख रहे हैं। कुल मिलाकर सिंहदेव के लिए इस बार की राह आसान नहीं है।
मंच पर कड़वे तेवर, मिले तो...
मानपुर-मोहला इलाके में सीएम भूपेश बघेल, और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा गुरुवार को वहां हेलीपैड में गर्मजोशी से मिले। दोनों ही सीएम अपने आक्रामक तेवर के लिए जाने जाते हैं। बिस्वा सरमा कांग्रेस में रह चुके हैं। और वो कांग्रेस की राजनीति में दिग्विजय सिंह के करीबी रहे हैं। भूपेश को भी दिग्विजय सिंह का वरदहस्त रहा है।
हिमंता और सीएम भूपेश बघेल, दोनों की मानपुर इलाके में सभा थी। और जब आमने-सामने हुए, तो हाथ मिलाया, और दोनों ने कुशलक्षेम पूछा। हिमंता के साथ महासमुंद के पूर्व सांसद चंदूलाल साहू भी थे। भूपेश बघेल ने उनकी तरफ देखकर पूछ लिया आप लोगों ने चंदूलाल जी को टिकट क्यों नहीं दिया? हास परिहास के बीच भूपेश ने आगे कहा कि अच्छा हुआ, आप लोगों ने चंदूलाल को टिकट नहीं दिया, हमारा एक विधायक बढ़ जाएगा। इसके बाद दोनों अलग-अलग हेलीकॉप्टर से रवाना हो गए।
क्या चिंतामणि दिखा पाएंगे अपना जादू
सरगुजा में संत गहिरा गुरु का काम और नाम बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने पूरे सरगुजा क्षेत्र में लोगों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से जागरूक किया। वे किसी राजनीतिक दल से नहीं थे। उनके नाम पर सरकार ने संत गहिरा गुरु अलंकरण भी घोषित किया है। उनके सुपुत्र चिंतामणि महराज अभी चर्चा में हैं। वे कांग्रेस के विधायक थे, उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दी तो भाजपा में चले गए। इसे उनकी घर वापसी कहा जा रहा है। वैसे चिंतामणि महराज भाजपा से कभी विधायक नहीं चुने जा सके। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें संस्कृत बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया था।
वे 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट के दावेदार थे, पर भाजपा ने महत्व नहीं दिया तो नाराज होकर सामरी विधानसभा से निर्दलीय मैदान में उतर गए। उन्हें लगभग 19000 वोट मिले, पर जीत नहीं सके। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने 2013 लुंड्रा से टिकट दी और जीतकर पहली बार विधायक बने।
2018 में कांग्रेस ने उन्हें लुंड्रा के बजाय सामरी से मैदान में उतारा और उन्होंने रिकार्ड 51 प्रतिशत मत लेकर चुनाव में विजयी रहे। लेकिन इस बार कांग्रेस ने टिकट नहीं दी। भाजपा में शामिल तो हुए पर कहीं से प्रत्याशी नहीं है। अब कार्यकर्ता कह रहे हैं कि भाजपा ने तो कभी विधायक तो बनाया नहीं, कांग्रेस से विधायक बन सके। अब देखना होगा कि भाजपा में उनकी ग्रह दशा कितना साथ देती है।
फसलों को बचाने वाला इलेक्ट्रॉनिक भेडिय़ा
फसल को जानवरों से बचाने के लिए हम बहुत पारंपरिक उपाय अपनाते हैं। एक पुतले को इंसानों का कपड़ा पहनाकर खड़ा कर दिया जाता है जिसे भगउड़ा या बिजूका कहा जाता है। या फिर कनस्तर पीट-पीट कर बंदरों और दूसरे जानवरों को भगाया जाता है। इसके अलावा बाड़ लगाई जाती है, जो खर्चीला है। कई बार पशु बाड़ को भी फांद लेते हैं, इसे देखते हुए उसमें गैरकानूनी तरीके से करंट लगा दिया जाता है। इससे जानवरों ही नहीं मनुष्यों की मौत भी हो जाती है। छत्तीसगढ़ में कई हाथी और अन्य वन्यप्राणी इसके चलते हर साल मारे जाते हैं।
पर अब जब किसान और खेती राजनीति के केंद्र में आ रही हो तो देश दुनिया में इस दिशा में होने वाले शोध और अविष्कारों पर भी नजर रखनी चाहिए। जापान में रोबोटिक भेडिय़े खेतों में लगाए जा रहे हैं, जो सोलर पावर से चलते हैं। कोई जानवर खेतों के आसपास फटकता है तो इसकी लाल एलईडी आंखें चमक जाती है। यह असली भेडिय़ों से भी ज्यादा भयानक 60 डेसिबल में चीखें निकालता है, जब तक जानवर भाग न जाए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार कीटों से बचाने के लिए भी विशेष प्रकार की ध्वनि इससे निकलती है। ध्वनि हर बार बदल जाती है ताकि जानवर डरना बंद मत करें।
कुछ दिन पहले इसी कॉलम पर कटघोरा के एक किसान की चर्चा हुई थी, जिसने इंटरनेट पर सर्च करके पता लगाया और एक मशीन मंगाई, जिसे खेत के बाड़ में जोड़ देने से 12 वोल्ट का डीसी करंट प्रवाहित होता है। यह भी सोलर पॉवर से ही चलता है। इससे हाथियों से बचाव हो रहा है। हाथियों को कोई नुकसान नहीं होता, हल्का झटका लगने पर वे पीछे हट जाते हैं।
इस रोबोटिक वोल्फ का विवरण भी इंटरनेट से ही मिला है, पर यह अभी भारतीय बाजार में उपलब्ध नहीं है। इसकी जानकारी एक किसान ने अपने सोशल मीडिया पेज पर साझा करते हुए सरकार से अपेक्षा की है कि ऐसे उपकरणों को अपने देश में भी किसानों के लिए उपलब्ध कराना चाहिए और अन्य कृषि उपकरणों की तरह इस पर भी अनुदान मिलना चाहिए।
पढ़ाई का दोहरा नुकसान
विधानसभा, लोकसभा चुनाव जब भी होते हैं, स्कूलों की पढ़ाई को बहुत नुकसान होता है। शिक्षकों की चुनाव ड्यूटी लग जाती है, स्कूलों में ताले लग जाते हैं। इनमें से अधिकांश बूथ बना दिये जाते हैं। पर दूसरी समस्या उन छात्रों को हो रही है जो पढ़ाई को लेकर गंभीर हैं और छुट्टी के दौरान घर पर पढ़ाई करने का मन बनाते हैं। जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है हर गली मोहल्ले में प्रचार गाडिय़ां घूम रही हैं। चुनाव आयोग और छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट की सख्ती के बाद पुलिस ने हाल के दिनों में डीजे और तेज साउंड वाली गाडिय़ों पर तो कुछ सख्ती दिखाई है, पर जो छोटी गाड़ी आटो रिक्शा और कैब में प्रचार करते हुए चल रही हैं, वे भी ध्वनि प्रदूषण फैला रहे हैं। कई बार तो एक चौराहे पर दो-दो तीन गाडिय़ां खड़ी होती हैं, और सब पर नारे, गाने, भाषण चल रहे होते हैं। चूंकि प्राय: सब गाडिय़ां निर्वाचन कार्यालयों से अनुमति लेकर ही चल रही हैं, इसलिये इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हो रही है। लोग गिन रहे हैं कि उनके इलाके में प्रचार की आखिरी तारीख कब है।
जेसीसी की टिकट के लिए मारामारी
मुंगेली जिले की लोरमी सीट वैसे भी हाईप्रोफाइल सीट है, क्योंकि यहां से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव मैदान में हैं। पर एक दूसरे मायने में भी यह खास सीट हो गई क्योंकि यहां जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के दो-दो बी फार्म धारक उम्मीदवार रिटर्निंग ऑफिसर के पास पहुंच गए। जेसीसी से मनीष त्रिपाठी चुनाव लडऩे की तैयारी साल भर से कर रहे थे। उनका नाम लगभग फाइनल कर भी दिया गया था। पर अचानक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सागर सिंह बैस ने अपनी पार्टी से बगावत कर दी। वे जेसीसी में आ गए और पार्टी ने उनके नाम भी बी फॉर्म जारी कर दिया। इधर त्रिपाठी ने दावा किया कि बी फॉर्म तो उनके नाम पर पहले से ही जारी हो चुका है। आखिरकार, पार्टी की ओर से बताया गया कि बैस को जारी किया गया फॉर्म ही सही है। त्रिपाठी ने कौन सा बी फॉर्म जमा किया है, उसे नहीं जानते वह असली नहीं है। अब मनीष त्रिपाठी मैदान में निर्दलीय उतर गए हैं। गौरतलब है कि सन् 2018 में यहां से जेसीसी को ही जीत मिली थी। पार्टी के विधायक धर्मजीत सिंह अब भाजपा की टिकट पर तखतपुर से लड़ रहे हैं। कुछ माह पहले तक यह समझा जा रहा था कि जेसीसी से लडऩे वाले नहीं मिलेंगे, वहीं आज लोरमी जैसी सीटें भी हैं, जहां टिकट नहीं मिलने पर बगावत हो गई।
स्वागत के लिए धक्का-मुक्की
भाजपा में स्टार प्रचारकों के स्वागत के लिए खींचतान मची है। चर्चा है कि कुछ शातिर नेताओं ने तो दिल्ली में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर एंट्री गेट टिकट भी बंद करवा दिया है। केवल उन्हीं लोगों को प्रवेश मिल पाता है, जिन्हें ये शातिर नेता पसंद करते हंै।
हालांकि एयरपोर्ट के अफसरों का कहना है कि चुनाव के चलते वीवीआईपी विजिट काफी हो रहा है, और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एंट्री गेट टिकट 12 नवंबर तक के लिए बंद कर दिया गया है। स्टार प्रचारकों के स्वागत के लिए भाजपा के नेताओं में आपसी विवाद काफी समय से चल रहा है। जिन नेताओं को मौका नहीं मिल रहा है वो स्वागत समिति से जुड़े नेताओं को कोस रहे हैं।
नाराज नेता धमतरी के एक पदाधिकारी को ज्यादा कोस रहे हैं। जिन्हें पार्टी ने कई तरह की जिम्मेदारी दे रखी है। उन पर आरोप है कि जहां स्टार प्रचारकों का कार्यक्रम हो रहा है, वहां के नेताओं को भी समय पर जानकारी नहीं दी जा रही है। हाल यह है कि कई सभाओं पर अपेक्षाकृत भीड़ नहीं जुट पा रही है।
यही नहीं, नेताजी तो वीआईपी नेताओं के बस्तर, और आसपास के इलाकों में कार्यक्रम तय होने पर घरेलू काम निपटाने के लिए साथ धमतरी चले जाते हैं, और सभा निपटने तक अपना काम पूरा कर लौट आते हैं। इस तरह की कई शिकायतें पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष तक पहुंची है। देखना है आगे क्या होता है।
बंगले में रहने पर भी ऐतराज
चुनाव आयोग के निर्देश पर हटाए गए छत्तीसगढ़ पुलिस के दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ भाजपा ने एक नई शिकायत में सरकारी बंगले में मौजूदगी पर सवाल उठाए हैं। 9 अक्टूबर को चुनाव आचार संहिता लागू होने के दो दिन बाद 11 अक्टूबर को आयोग ने 2 कलेक्टर समेत 3 आईपीएस अफसरों को जिले से हटाने के आदेश दिए थे।
आईपीएस अफसरों को पीएचक्यू में सहायक पुलिस महानिरीक्षक के तौर पर पदस्थ किया गया। शिकायत में कहा गया कि पीएचक्यू में आईपीएस अफसरों के लिए न आफिस और न ही कार्य की कोई नई जिम्मेदारी। ऐसे में अफसर अपने बंगले में ही जमे हुए हैं। भाजपा ने शिकायत में दो आईपीएस अफसरों का जिक्र किया है।
आयोग में जाने की खबर से पीएचक्यू में हडक़ंप मच गया। प्रदेश के शीर्ष अफसरों ने हटाए गए पुलिस अधीक्षकों को बंगला छोडक़र पीएचक्यू में हाजिर होने का फरमान जारी किया गया है। देखना है कि शिकायत पर कितना अमल होता है।
पथ संचलन में इस बार उत्साह कम क्यों
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना स्थापना दिवस विजयादशमी को हर साल मनाता है। इस दिन सारे स्वयंसेवक पूरे गणवेश में दंड लेकर एक तरह से शक्ति प्रदर्शन करते हैं। हर शहर और गांव में जहां संघ का संगठन है, वहां इसे मनाया जाता है।
विजयदशमी के बाद भी अनेक स्थानों में इसके आयोजन होते हैं लेकिन इस बार के पथ संचलन में स्वयंसेवक उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। पिछले साल की तुलना में पथ संचलन में ज्यादा स्वयंसेवक नहीं जुट रहे हैं। उत्साह का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि पहले स्वयंसेवक गणवेश में फोटो खींचा कर सोशल मीडिया में अपलोड
करते थे।
लेकिन इस बार सोशल मीडिया में केवल चुनावी सरगर्मी दिख रही है। इसके पीछे दो महत्वपूर्ण कारण बताये जा रहे हैं पहला आचार संहिता लगा होने के कारण सरकारी कर्मचारी इस आयोजन से दूरी बनाए हुए हैं, दूसरा भाजपा कार्यकर्ता व नेता भी चुनाव में व्यस्त हैं। ऐसे में संघ के लोग भी रुचि नहीं ले रहे हैं, वे कह रहे हैं कि स्वयंसेवक मेहनत करते हैं और फायदा भाजपा वाले ले जाते हैं, इसलिये ज्यादा भीड़ नहीं जुटा रहे हैं।
रूठे फूफाओं से ज्यादा खास कौन?
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सत्ता की लड़ाई तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है लेकिन तीसरी पार्टियों में बाजी पलटने की ताकत दिखाई दे रही है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, हमर राज, जोहार छत्तीसगढ़ जैसे दल खुद कितनी सीटें निकालेंगे इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता। मगर, प्रदेश की कई सीटों पर जीतने की उम्मीद कर रहे प्रत्याशियों को ये हरा सकते हैं और हारने के मुहाने पर खड़े उम्मीदवारों की जीत दिला सकते हैं, यह जरूर कह सकते हैं।
अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर गौर करें, जो उन्होंने ग्वालियर में कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान दिया। उन्होंने कहा सपा और बसपा के उम्मीदवारों की मदद करो, ये जितने मजबूत होंगे, उतना हमें फायदा होगा। ये ही कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। उन्होंने कहा- रूठे हुए फुफाओं (बागी या घर बैठे भाजपा नेताओं) को मनाने की ज्यादा जरूरत नहीं है।
अब आप यह अंदाजा लगाइए यदि मध्यप्रदेश में सपा और बसपा के लिए वे यह बात कह रहे हैं तो छत्तीसगढ़ में किन दलों के लिए कहते? शायद छत्तीसगढ़ भाजपा तक शाह का संदेश पहले ही पहुंच चुका है।
करवा चौथ का चुनाव पर असर
करवा चौथ पर महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना के साथ व्रत रखती हैं और रात में चांद देखकर इसे तोड़ती है। धूमधाम के साथ कल इसे देश में मनाया गया। इसका एक असर चुनाव की तैयारी पर मध्य प्रदेश में दिखा। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आरटीओ ने चुनाव में बसों की व्यवस्था करने के लिए एक बैठक एक नवंबर को बुलाई। करवा चौथ व्रत के चलते बस मालिकों ने इस बैठक की तारीख बदलने का आग्रह करते हुए एक रोचक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि व्रत के दिन सब की पत्नी चाहती हैं कि पति उनके साथ रहें। उन्होंने आशंका जाहिर की कि उनकी गैरमौजूदगी में अगर गलती से पत्नी ने कुछ खा लिया तो उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है। पत्र के नीचे हस्ताक्षर करने वालों ने अपने को निरीह बस मालिक बताया। यह खबर नहीं आई है कि आरटीओ ने उनकी अर्जी पर गौर किया या फिर इलेक्शन अर्जेंट के नाम पर बैठक बुलाने पर आमादा थे।
शौच से मना नहीं है लेकिन..
पता नहीं छोटे और मझोले रेलवे स्टेशन के शौचालयों में ऐसा कौन सा कीमती सामान रखा होता है कि वहां ताला लगाकर चाबी स्टेशन मास्टर रख लेते हैं। किसी यात्री को यहां जाने की जरूरत महसूस हो तो पहले शौचालय तक दौड़ लगाए, फिर स्टेशन मास्टर की तलाश करें और चाबी लेकर वापस आए। व्हीलचेयर पर चलने वाला कोई यात्री कैसे यह सब कर पाएगा, आप कल्पना करिए। यह मध्य प्रदेश के सिंहपुर डुमरा स्टेशन की तस्वीर है।
राम, भरत मिलाप
करीब डेढ़ दशक बाद भाजपा के दो बड़े नेताओं के एक होने की खबर है। ये दोनो,अब तक श्री राम और भरत की तरह रहते रहे हैं। दरअसल इनके बीच अपने मनोभाव से अधिक कई विभीषण आते रहे हैं। से सभी ,अपने फायदे कि लिए दोनों को एक नहीं होने दे रहे थे। इनमें पार्टी के लोग भी रहे और बाहरी भी। दोनों के टकराव के चलते 15 वर्ष की सरकार आखिरकार 14 पर आ सिमटी। दोनों को एक दूसरे से दूरी का नुकसान समझ में आया। यह सब देख, सुन, भांप रहे एक व्यक्ति ने पहल की। और दोनों को एक करने में अहम भूमिका निभाई। देखना यह है कि यह मिलाप राम, लक्ष्मण की तरह रहता है, फिर तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई की तरह।
इस बार मुस्लिम नहीं !
यह पिछले पांच चुनाव के बाद यह पहला ऐसा चुनाव होगा कि रायपुर दक्षिण में मुस्लिम प्रत्याशियों की अधिकता नहीं है। फिर भी एक दर्जन दावेदार खड़े हैं। वर्ना एक बारगी तो समाज से 24-24 खड़े, और करवाए गए थे। अबकी बार भी प्रयास किया गया लेकिन इन्हें खड़े करवाने वाले काम नहीं आए। प्रयास भी किया गया लेकिन हर प्रयास विफल किया गया। खड़े होने की खबर लगते ही कांग्रेस के चुनाव संचालक उनके ही घर बाहुबली भेज देते और बात खतम। इनमें से कुछ लोग शायद आज दावेदारी वापस भी ले लें। यानी इस बार टिकरापारा, संजय नगर, संतोषी नगर के 25 हजार वोट बूथ तक पहुंचने वाले है। क्योकिं इनकी निजामुद्दीन और अजमेर शरीफ की जियारत का भी इंतजाम अब तक नहीं हो पाया है। देखते हैं इनके लिए क्या इंतजाम करते हैं।
चुनावी चरण स्पर्श
बिलासपुर संभाग के एक नेताजी ने पूरा 5 साल लोगों के पैर छूकर काट दिया। चुनाव से कुछ समय पहले तक तो उनकी इस अदा पर लोग वाह-वाह कर रहे थे। नेताजी को जमीन से जुड़ा बताते नहीं थकते थे। अब जब चुनाव सिर पर है, तब नेताजी के पैर छूने की आलोचना होने लगी है। लोग कहने लगे हैं कि यह तो चुनावी चरणस्पर्श है। वैसे नेताजी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है, क्योंकि पैर छूने के बाद अपशब्द कहने की बात भी चर्चा में है और उनके ही लोग किस्से बताने लगे हैं।
चाचा-भतीजे की लड़ाई में पति-पत्नी
दो विधानसभा क्षेत्रों चाचा-भतीजे के बीच की लड़ाई में पति-पत्नी आ गए हैं। पाटन में भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच अमित जोगी और अकलतरा में सौरभ सिंह और राघवेंद्र सिंह के बीच ऋचा जोगी। पिछली बार ऋचा ने कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों को जमकर छकाया था। करीबी मुकाबले में सौरभ सिंह जीते थे। इस बार पाटन में अमित की उम्मीदवारी भी इसी तरह की मानी जा रही है। अब देखना यह है कि चाचा-भतीजे के बीच जोगी दंपति का भविष्य क्या रहेगा।
घुमा-फिरा कर बात क्यों करना?
वह जमाना भी अब लद चुका जब कोई नेता यह कहे कि नीतियों और कार्यक्रमों से प्रभावित होकर वह दूसरे दल में शामिल हो रहा है। सामरी विधायक चिंतामणि महाराज ने कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आने के लिए साफ-साफ शर्त रखी कि उन्हें अंबिकापुर से टिकट दी जाए। मगर भाजपा ने कोई दूसरा उम्मीदवार तय कर दिया। अब महाराज के भाजपा में लाने की योजना पर पेंच फंस गया। एक सप्ताह मसला हल नहीं हुआ। बाद जब शामिल हुए तो महाराज ने भी साफ कर दिया कि वे किस शर्त पर आए हैं। उन्हें आश्वासन मिला है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट दी जाएगी। बात घुमा-फिरा कर उन्होंने नहीं की। साफ-साफ सौदा है। समर्थन चाहिये तो पद दो या उसकी गारंटी। पर, यह सब भरोसे की ही बात है। भाजपा ने उन्हें सिर्फ आश्वस्त किया है, कोई अनुबंध नहीं हुआ है। अभी तो जशपुर और सरगुजा दोनों ही संसदीय सीट भाजपा के पास है। फिर क्या चिंतामणि महाराज की अपेक्षा आसानी से पूरी होगी? सन् 2019 में सारे सीटिंग सांसदों की टिकट काटी गई थी, इसलिये उम्मीद तो की जा सकती है।
तहखानों में कैद एफआईआर
मध्यप्रदेश के इंदौर क्रमांक एक से भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय का नामांकन निरस्त करने की मांग की गई। इसमें कहा गया था कि छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की एक अदालत में उनके खिलाफ 1999 से एक मामला लंबित है। कोर्ट ने उनको फरार बताया है। यह जानकारी प्रत्याशी ने नामांकन जमा करते हुए छिपाई है। कई घंटों की बहस के बाद निर्वाचन अधिकारी ने आपत्ति रद्द कर नामांकन मंजूर कर लिया। ऐसा कई बार होता है जब ठीक चुनाव के समय प्रत्याशियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे बरसों से जमी धूल झाडक़र बाहर निकाले जाते हैं। हलचल होती है, पर चुनाव परिणामों के बाद सब शांत हो जाता है। भानुप्रतापपुर, बस्तर के उप-चुनाव में भी देखा गया था कि ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ झारखंड में दर्ज आपराधिक मामले को कांग्रेस ने चुनाव के दौरान उठाया। चुनाव खत्म होते ही सब भूल गए। राजनीतिक रसूख रखने वालों के प्रति पुलिस उदार रहती है, वारंट तामील नहीं करती। एफआईआर दर्ज कराने वाले भी शायद फैसला नहीं चाहते। फिर अदालत दिलचस्पी ले, क्या पड़ी है। ऐसे मुकदमे बड़ी संख्या में अदालतों में लंबित हो सकते हैं। पुलिस रिकॉर्ड में अनगिनत फरारी वारंट दबे पड़े हैं।
चुनाव लडऩे वालों की फाइल को सिर्फ इस्तेमाल करने के लिये ढूंढ लिया जाता है। चुनाव नहीं लड़ रहे हों तो लोग इससे भी बचे रहते हैं।
बंदर के हाथ में पॉलिथीन
प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व और अभयारण्य आज से खुल गए हैं। यह अचानकमार टाइगर रिजर्व की तस्वीर है। यहां पॉलिथीन प्रतिबंधित है। पर न तो पर्यटकों में समझदारी है, न ही वन विभाग का मैदानी अमला मुस्तैद, कि उन्हें तहजीब सिखाएं। भूखे वन्यजीव खाद्य पदार्थों साथ इन पन्नियों को भी उदरस्थ कर लेते हैं। पर्यावरण, जंगल नदी-नालों का नुकसान तो है ही।
खर्च और विवाद
रायपुर की एक सीट पर कांग्रेस के चुनाव संचालकों के बीच आपस में खींचतान शुरू हो गई है। कांग्रेस प्रत्याशी सीधे-सरल हैं, और वो सब पर भरोसा करते हैं। मगर संचालकों की वजह से प्रचार तंत्र बिखरता दिख रहा है। हालांकि कुछ नेता जरूर ईमानदारी से काम करते दिख रहे हैं। मगर उनके विरोधी ही मेहनत पर पलीता लगाने में पीछे नहीं हैं।
हुआ यूं कि प्रत्याशी का प्रचार व्यवस्थित ढंग से करने की रणनीति बनाई गई थी। और एक संचालक ने कार्यकर्ताओं के खाने-पीने के लिए रसोई भी शुरू करवा दी। ये बात संचालक मंडल से जुड़े एक अन्य सदस्य को पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत मीडिया में खबर चलवा दी।
हाल यह हो गया कि चारों विधानसभा से कार्यकर्ता खाने-पीने के लिए वहां पहुंच जा रहे हैं। इससे खाने-पीने का खर्च चार गुना बढ़ जा रहा है। इस तरह संचालन समिति के सदस्य एक-दूसरे को झटका दे रहे हैं। हालांकि सीएम खुद प्रचार तंत्र पर नजर रखे हुए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
भाजपा दिग्गजों के रोड शो
भाजपा ने दिग्गज नेताओं के रोड शो का कार्यक्रम किया है। पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, असम के सीएम हिमंता बिस्वा शर्मा, केन्द्रीय मंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस का अलग-अलग शहरों में रोड शो होगा।
मोदी धरसींवा से लेकर रायपुर की चारों सीट से होते हुए आरंग तक रोड शो कर सकते हैं। इस पर चर्चा चल रही है। योगी आदित्यनाथ की दर्जनभर सभाएं होंगी। ये सभाएं मैदानी इलाकों में होंगी। सभा की तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। प्रदेश की तकरीबन सभी सीटों पर रोड शो का प्लान तैयार किया गया है। देखना है कि रोड शो से कितना फायदा होता है।
नेताम के बाद रेणुका का वीडियो
भाजपा नेताओं के पुराने वीडियो इन दोनों सोशल मीडिया पर एक के बाद एक वायरल हो रहे हैं। दो दिन पहले रामानुजगंज के भाजपा प्रत्याशी राम विचार नेताम का वीडियो छाया था, जिसमें वे भूपेश बघेल जिंदाबाद के नारे लगाते दिख रहे थे। यह 3 साल पुराना वीडियो था, जिसे इस तरह से पेश किया गया मानो वह अभी के चुनाव प्रचार का हो। अब एक वीडियो क्लिप भरतपुर-सोनहत प्रत्याशी केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह का आया है। 3000 से अधिक फॉलोवर वाले छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री नाम के अनवेरीफाइड ट्विटर पेज पर रेणुका सिंह का 28 सेकंड का एक वीडियो 29 अक्टूबर को पोस्ट किया गया है, जिसमें वह सामने खड़े कुछ कर्मचारियों को धमका रही हैं कि भगवाधारी भाजपा कार्यकर्ताओं को कमजोर मत समझना। ...जनपद और तहसील में बैठकर जो भेदभाव कर रहे हो ना, भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ.. भूल जाइए। अंधेरी कोठरी में ले जाकर ना, मैं बेल्ट खोलकर ठोकना जानती हूं अच्छे से।
दरअसल यह वीडियो मई 2020 का है। कोविड-19 महामारी का दौर था। इस दौरान बलरामपुर जिले के एक क्वॉरेंटाइन सेंटर में कर्मचारियों को उन्होंने धमकी दी थी। इसका वीडियो उसी समय वायरल भी हो गया था।
नेताम और रेणुका सिंह दोनों के ही वीडियो पुराने हैं पर इन्हें विधानसभा चुनाव से जोडक़र दिखाया जा रहा है। दूसरे चरण के चुनाव प्रचार में अभी और तेजी आने वाली है। देखना होगा कि सोशल मीडिया पर कांग्रेस से ज्यादा सक्रिय रहने वाली भाजपा कोई जवाबी हमला कर पाती है या नहीं।
चुनावी रैली का एक सीन ऐसा भी...
ड्डचुनावी सभाओं में जय जयकार, जिंदाबाद, जोशीले नारे और तालियों की गडग़ड़ाहट सुनाई-दिखाई देना आम बात है। मगर कांग्रेस की प्रियंका गांधी के भाषण के दौरान बिलासपुर की सभा में मौजूद कुछ महिलाएं सिसकने-सुबकने लगीं। दरअसल भाषण के बीच में प्रियंका गांधी बताने लगीं कि किस तरह बचपन में उन्होंने और राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की मौत का खौफनाक दृश्य देखा, और दोनों को खो देने का उन पर और राहुल पर क्या असर हुआ। प्रियंका का भाषण करीब 6 मिनट तक इसी पर था, जिसे सुनकर सभा में पहुंचे कई लोग भावुक हो गए थे।
चुनाव में रेलवे की सावधानी..
छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली ट्रेनों को विकास, मरम्मत आदि की वजह से रद्द करने का सिलसिला इन दिनों थमा हुआ है। वरना यह सिलसिला एक के बाद एक चलता है। इसे इन दिनों चल रहे विधानसभा चुनाव के साथ जोडक़र देखा जा रहा है। यहां तक तो ठीक है, पर ट्रेनों के घंटों विलंब से चलने की स्थिति नहीं सुधर पाई है। कल राजेंद्रनगर से दुर्ग के लिए चलने वाली साउथ बिहार एक्सप्रेस 10 घंटे देर से चली वहीं पुरी से आने वाली उत्कल एक्सप्रेस करीब 14 घंटे। कई दूसरी ट्रेनों का भी यही हाल था। इसका कारण सामने आया कि राउरकेला के पास बिसरा नाम के एक स्टेशन पर कई घंटे तक रेलवे के खिलाफ ही रेल रोको आंदोलन चला। यदि किसी रेल रोको आंदोलन के चलते आवागमन पर असर पड़ता है तो रेलवे इसकी सूचना जनसंपर्क विभाग के जरिये जरूर देता है। पर इस बार कोई जानकारी नहीं दी गई। शायद रेलवे को लगा होगा कि नाहक इसे क्यों फैलाया जाए। छत्तीसगढ़ में भी तो रेलवे की चाल को लेकर लोगों में नाराजगी है। उनका ध्यान रेलवे की ओर से हटा रहे।
रजनीश की अग्नि परीक्षा
बेलतरा के विधायक रजनीश सिंह को अधर में लटकाए रखने के बाद अंतिम सूची में आखिर भाजपा ने उनकी टिकट काट दी। इस झटके से सिंह उबर पाए ही नहीं थे कि पार्टी ने उन पर एक बड़ा बोझ डाल दिया है। उसी बेलतरा सीट से उनको चुनाव संचालक बना दिया गया, जहां से वे दोबारा खुद चुनाव लडऩे की उम्मीद कर रहे थे। अब उन पर जिम्मेदारी है कि अपनी पीड़ा और मलाल को दबाकर अधिकृत प्रत्याशी सुशांत शुक्ला को जिताने के लिए काम करें। आम तौर पर टिकट के मजबूत दावेदारों को दूसरे विधानसभा क्षेत्रों का काम सौंप दिया जाता है, पर भाजपा ने उसी पर प्रत्याशी को जिताने की जिम्मेदारी डाल दी। समस्या यह है कि यदि रजनीश सिंह की मेहनत के बाद भी भाजपा यहां की सीट नहीं निकाल पाई तो भी उन पर आरोप लग सकता है कि ठीक तरह से काम नहीं किया और टिकट कटने का हिसाब
चुका दिया।
सरल और सहजता में उलझे नेताजी
बड़े सहज, सरल हैं डिप्टी सीएम हैं। न काहू से बैर के बड़े प्रवर्तक भी हैं। लेकिन जाने अनजाने मुश्किल में पड़ ही जाते हैं। पिछले माह पीएम मोदी के लिए मिनिस्टर इन वेटिंग बने और मंच से तारीफ कर दी। जबकि कांग्रेस की मोदी से बड़ी अदावत रही है। नतीजे में उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष की चेतावनी झेलनी पड़ी। अब वे एक नई दिक्कत में पड़ते दिख कहे। उन्होंने दिल्ली की एक ऐसी पत्रकार को लंबा- चौड़ा इंटरव्यू दे दिया। इस पत्रकार से कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने चर्चा पर रोक लगाई है। सुनते हैं यह बात कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर गठबंधन के नेताओं तक फैल गई है । अब नेतृत्व के रूख का इंतजार है।
अच्छे दिन आए
कांग्रेस में टिकट वितरण के बाद कई जगहों पर असंतोष सामने आ रहा है। बड़ी संख्या में छोटे-बड़े असंतुष्ट नेता बागी होकर चुनाव लडऩे जा रहे हैं। इसका सीधा फायदा अमित जोगी को हुआ है। अमित को पहले चरण की सीटों के लिए प्रत्याशी नहीं मिल पा रहे थे, लेकिन दूसरे चरण की सीटों के लिए कुछ जगहों पर असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं के रूप में मजबूत प्रत्याशी मिल गए हैं।
चर्चा है कि अमित चुनाव प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर किराए पर लेने जा रहे हैं। उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि जोगी पार्टी के प्रत्याशियों को साधन-संसाधन की कमी नहीं होगी। सीएम भूपेश बघेल इसको लेकर भाजपा पर आरोप लगा चुके हैं। चाहे कुछ भी हो, अमित की पूछ परख बढ़ गई है।
ये तो प्रत्याशी हैं..
जैसे जैसे चुनाव दंगल अपने शबाब पर आने लगा है, वैसे वैसे नेताओं की धडक़न बढऩे लगी है। जो नेता पहले चुनाव को आसान समझ रहे थे, अब उन्हें खतरा दिखने लगा है। ऐसे ही एक कद्दावर मंत्री का हाल है। जब विपक्षी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित किया तो कहते थे कि क्या हल्का प्रत्याशी उतार दिया है। किसी वजनदार नेता को उतारते तो टक्कर होती। अभी तो चुनाव लडऩे जैसा ही नहीं लग रहा है।
लेकिन खरगोश कछुआ जैसी रेस वाली बात हो गई। विपक्ष के प्रत्याशी घर घर जाकर पांव छूने लगे और हवा का रुख बदलने लगा तो कद्दावर मंत्री के सुर बदल गए। अब वे कार्यकर्ताओं से कहने लगे हैं कि चुनाव को हल्के में नहीं लेना है। ईवीएम में नोटा का बटन रहता है, उसके लिये कोई वोट नहीं मांगता। फिर भी दो-पांच हजार वोट नोटा को मिल जाते हैं। यह तो प्रत्याशी है, जो घर घर जा रहा है। इसलिये संभल जाओ और प्रचार में कूद पड़ो।
यह तो कुछ अधिक ही बड़ा
छत्तीसगढ़ में एक पार्टी के बागियों को एक ऐसी जगह बुलाकर एक ऐसा व्यक्ति ‘दोस्ताना सलाह’ दे रहा है कि जिसका भांडा फूटे तो कुछ अधिक ही बड़ा हंगामा हो जाएगा।
इस कीमती वोट की कद्र होगी?
निर्वाचन आयोग ने दिव्यांगजनों और 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए घर पहुंच कर डाक मतदान कराने की व्यवस्था की। कोन्टा विधानसभा क्षेत्र में इस दिव्यांग युवती ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इसने और चुनाव आयोग ने तो अपनी जिम्मेदारी निभा दी। पर वह प्रतिनिधि जो चुनाव जीतेगा, जीतने के बाद क्या ऐसे मतदाताओं के घर पर दस्तक देगा और पूछेगा कि किसी सरकारी योजना का उसे लाभ मिला भी है या नहीं?
नेताम कब बोले, भूपेश बघेल जिंदाबाद?
बहुत से समर्पित पार्टी कार्यकर्ता प्रतिद्वंद्वी दलों के नेताओं के वीडियो-ऑडियो फुटेज, फोटो आदि संभालकर रखते हैं, फिर मौका देखकर उसे वायरल करते हैं। किस जगह की और कब की वीडियो है, यह छिपाकर कोई नई बात कह दी जाती है। इसी का नुकसान हो रहा है रामानुजगंज के भाजपा प्रत्याशी रामविचार नेताम को। सोशल मीडिया पर उनका एक 18 सेकंड का छोटा सा वीडियो क्लिप दो दिन से वायरल हो रहा है। एक जनसभा में माइक पर खड़े नेताम भीड़ से कह रहे हैं- मैं यहां से पीछे तक देख रहा हूं। पीछे वाले आवाज लगाएंगे-भूपेश बघेल जिंदाबाद....। एक नहीं नेताम ने दो बार यह नारा लगवाया।
इस वीडियो के साथ कमेंट दिया गया है- बीजेपी के नेताओं को भी भूपेश पर ही भरोसा है। सुनिये भाजपा के रामविचार नेताम जी को, जो भाजपा के राष्ट्रीय सचिव, पूर्व राज्यसभा सदस्य और रमन सरकार के केबिनेट मंत्री रहे हैं। छत्तीसगढ़ में अब की बार 75 पार होने जा रहा है।
कुछ पोस्ट दावा कर रहे हैं कि यह रामानुजगंज के चुनाव प्रचार के दौरान का भाषण है। पड़ताल की गई तो पता चलता है कि वीडियो सही जरूर है, मगर अभी का नहीं, बल्कि तीन साल पुराना है। यू ट्यूब में यह वीडियो मौजूद भी है। यह वीडियो दुर्ग जिले के पाटन का है, जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सांसद विजय बघेल चुनाव मैदान में इस बार भी आमने-सामने हैं। अक्टूबर 2020 में शराब दुकान में लूट का अपराध दर्ज कर पुलिस ने तीन भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें जमानत नहीं मिली और वे जेल भेज दिए गए थे। बिना जांच-पड़ताल झूठी कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए मंडी परिसर के अस्थायी जेल में विजय बघेल ने अपने समर्थकों के साथ आमरण-अनशन कर दिया। इसे समर्थन देने कई भाजपा नेता वहां पहुंचे। इनमें नेताम भी थे। भाषण के दौरान अति उत्साह में गड़बड़ हो गई। उन्होंने नारा लगवा दिया- भूपेश बघेल जिंदाबाद...। तीन साल पहले इस वीडियो क्लिप के साथ आई खबरों में बताया गया था कि जैसे ही नेताम का ध्यान गया कि उनसे गलती हो गई, उन्होंने सुधारा और भूपेश बघेल मुर्दाबाद के नारे लगवाए। हालांकि आगे का हिस्सा वीडियो क्लिप में दिखाई नहीं दे रहा है। वायरल वीडियो में सिर्फ वही हिस्सा है, जिसमें वे भूपेश बघेल जिंदाबाद का नारा लगवा रहे हैं।
नफे-नुकसान की चिंता
जिन कांग्रेस विधायकों को अपनी टिकट कटने का अंदाजा हो गया था, उनमें सामरी विधायक चिंतामणि महाराज भी थे। प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले ही उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे कह रहे थे कि- जनता कह रही है कि इतना अच्छा काम करने के बाद भी टिकट कटेगी तो हम चुनाव का बहिष्कार करेंगे। मगर इससे हाईकमान पर दबाव नहीं बना, टिकट कट गई। एक सप्ताह पहले भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल और विष्णुदेव साय उनसे मिलने के लिए सीधे उनके घर श्रीकोट पहुंच गए। चिंतामणि महाराज की यह शर्त सामने आ गई कि अंबिकापुर से टिकट मिलने पर वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे। पर भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दी। अब कल वे भाजपा के हेलिकॉप्टर से अपने गांव श्री कोट पहुंचे। वहां भाजपा नेता गौरीशंकर अग्रवाल, केदार गुप्ता आदि ने उनका स्वागत किया। इसके बाद तो सबको लग रहा था कि महाराज कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। मगर, उन्होंने फिर साफ कर दिया कि वे अभी कांग्रेस में ही हैं।
दरअसल, टिकट नहीं मिलने पर नाराजगी जाहिर करने के बावजूद कुछ विधायक बागी नहीं हुए। उन्हें लगता है कि यदि कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्हें कहीं न कहीं एडजस्ट कर लिया जाएगा। पर चिंतामणि महाराज ने भाजपा के प्रति अपना लगाव सार्वजनिक कर दिया है। वे पहले भी भाजपा में रहे हैं। इसलिए भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि एक दो दिन के भीतर ही वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
नड्डा ने पवन साय से क्या कहा
चर्चा है कि रायपुर जिले की तीन सीटों पर भाजपा के चुनाव प्रचार की रणनीति से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा नाखुश हैं। उन्होंने शनिवार को कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में महामंत्री (संगठन) पवन साय से नाराजगी भी जताई।
बैठक में यह बात उभरकर सामने आई है कि तीनों सीट पर प्रत्याशी चयन से बाकी दावेदार, और अन्य प्रमुख नेता नाराज चल रहे हैं। यही वजह है कि वो राष्ट्रीय अध्यक्ष की बैठक से भी दूर रहे। नड्डा ने पवन साय से कह भी दिया कि ऐसे में कैसे सरकार बनेगी?
बताते हैं कि नड्डा ने नाराज नेताओं की लिस्ट मांगी है। कुछ प्रमुख नेताओं को नाराज लोगों से चर्चा करने के लिए कहा है। वो खुद भी बात करेंगे। देखना है कि नाराज लोगों पर क्या कुछ असर होता है।
महिला नेत्री की परेशानी
कांग्रेस की एक महिला नेत्री ने पार्टी के बड़े नेताओं की सहमति से एक विधानसभा सीट छाँटकर चुनाव लडऩे की तैयारी शुरू कर दी थी। महिला नेत्री ने उस विधानसभा क्षेत्र के लोगों की खूब खातिरदारी की। कई गांव के लोगों को तीर्थ यात्रा भी कराया। वो पिछले कुछ महीनों से गांव के लोगों को गिफ्ट आदि बांट रही थीं। मगर ऐन वक्त में उनकी सीट बदल दी गई।
सीट बदलने से उन पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। इससे वो काफी परेशान हैं, लेकिन महिला नेत्री की जगह जिस प्रत्याशी का चयन किया गया उनकी पोजीशन ठीक हो गई। महिला नेत्री की मेहनत का उन्हें फायदा मिल रहा है। कहावत भी है कि मेहनत करे मुर्गा, अंडा खाए फकीर। देखना है कि सीट बदलने के बाद भी महिला नेत्री के पक्ष में चुनाव नतीजे आते हैं या नहीं।
कर्ज माफी से बेचैनी
कांग्रेस के किसानों की कर्ज माफी के ऐलान से भाजपा में बेचैनी है। कुछ भाजपा प्रत्याशियों ने तो प्रचार के दौरान अपनी तरफ से कर्ज माफी की बात कह रहे हैं। कवर्धा से भाजपा प्रत्याशी विजय शर्मा जोर शोर से इसका प्रचार भी कर रहे हैं। पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में कर्ज माफी को प्रमुखता से शामिल करने पर जोर दिया गया है।
भाजपा का घोषणा पत्र दो दिन में जारी हो सकता है। इसमें धान खरीद को लेकर बड़े वादे किए जाएंगे। साथ ही कर्ज माफी, और तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए वादे किए जा सकते हैं। देखना है कि घोषणा पत्र में क्या कुछ होता है, और चुनाव पर क्या असर होगा।
केजरीवाल पैटर्न, भाजपा का शक
कांग्रेस और बघेल के केजरीवाल स्टाइल से रमन सिंह और भाजपा पसोपेश में पड़ गई है। केजरीवाल ने पहले दिल्ली, फिर पंजाब में एकमुश्त घोषणा ( पत्र) करने के बजाए एक एक कर गारंटियां देते रहे। छत्तीसगढ़ में भी केजरीवाल ने राजधानी, न्यायधानी में 9 और बस्तर में एक गारंटी की घोषणा कर चुके थे। बघेल भी उसी पैटर्न पर चल रहे हैं। पहले स्वयं एक घोषणा कर भरोसा दिलाया। फिर राहुल, प्रियंका से तीन घोषणाएं कराईं। और भाजपा से बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि हम तो चार कर दिए आप बताएं क्या देंगे? भाजपा और रमन सिंह उन घोषणाओं का खंडन, मंडन ही कर पा रहे हैं । न की घोषणा। वैसे पार्टी, अपना घोषणा पत्र बना रही है। उसे इसके लिए तीन लाख से अधिक सुझाव, मांगें मिल चुकी हैं। इनकी छंटनी, लिस्टिंग में पसीने निकल रहे हैं। भाजपा को शक है कि इन्हीं में से कुछ लीक हो रहे हैं। लीक करने वाले अपने ही विभीषण या वराह के लोग तो नहीं। जो भी हो कांग्रेस अपने लिए भरोसा बढ़ा रही है। लगता है कि कांग्रेस को अब घोषणा पत्र लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
डॉ. साहब और मैडम की मुलाकात
जिला निर्वाचन अधिकारी निष्पक्षता को लेकर सरकार से कितनी भी शाबासी ले लें। सच्चाई तो उनका ज़मीर और ऊपर वाले को पता है। मन की बात समझ कर ये सभी अपनी अपनी स्थिति की टोह लेते रहते हैं। कल भी कुछ ऐसा ही हुआ । केंद्रीय मंत्री, सीईओ मैडम से मिलने गए थे। शिकायत कर आए कि प्रदेश के 33 जिलों से मिल रही शिकायतों को लेकर 158 मामले मैडम को भेज चुके हैं । और कार्रवाई मात्र 23 पर हुई। यह ठीक नहीं है, दिल्ली वाले कुमार साहब से भी शिकायत करेंगे। बस इसी बात से कई डीआरओ घबराए हुए हैं। वो जानते हैं कि कुमार साहब पहले दो कलेक्टर, तीन एसपी को बदल चुके हैं। यह तो सामान्य कार्रवाई हुई। पर ये लोग भविष्य में किसी भी चुनावी कार्य के लिए डिबार रहेंगे। यह बदनामी सबसे अहम होती है। डॉ,साहब ने दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर जिलों के नाम भी लिए। बस क्या था,राजधानी से लेकर हर जिले के कलेक्टर ने पड़ताल शुरू कर दी। पूछने लगे मेरी शिकायत ते नहीं हुई।
प्याज की ताकत, कई सरकारें गिर चुकी
पिछले एक सप्ताह से प्याज की कीमत बढ़ रही है। बाजार में यह 60 रुपए या उससे अधिक में बिक रहा है। महानगरों में तो 80 से 100 रुपए तक चला गया है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान इसकी कीमत कितनी ऊंचाई पर जाकर रुकेगी यह देखना होगा, क्योंकि नई फसल मतदान के बाद दिसंबर दूसरे सप्ताह तक बाजार में आएगी।
प्याज एक ऐसी फसल है जिसने देश के कई चुनावों को प्रभावित किया। सबसे दिलचस्प घटना थी जब इंडिया शाइनिंग का नारा देने और पोखरण में परमाणु परीक्षण कर भारत का दुनिया में लोहा बनवाने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा 1998 में लोकसभा चुनाव हार गई। नतीजे के बाद वाजपेयी ने कहा था कि जब-जब कांग्रेस सत्ता में नहीं होती, प्याज के दाम बढ़ जाते हैं। इसके पहले 1980 के चुनाव में जनता कांग्रेस को हराकर इंदिरा गांधी सत्ता में वापस लौटीं तो प्याज की कीमत को उन्होंने बड़ा मुद्दा बनाया था। वे चुनाव प्रचार में प्याज की माला पहनकर निकलती थीं। सन् 2010 में एक हफ्ते के भीतर जब प्याज के दाम 30 रुपए से बढक़र 80 रुपए तक हो गए तब पाकिस्तान से आयात करना पड़ा था। केंद्र में दूसरी बार मोदी सरकार के बनने के कुछ महीने बाद ही जब प्याज के दाम आसमान छूने लगे तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह चर्चित बयान आया था कि वह प्याज लहसुन नहीं खाती।
कई बार धर्म, जाति, कल्याणकारी योजनाओं और सत्ता विरोधी लहर जैसे मुद्दों पर प्याज भारी पड़ चुका है। फिलहाल केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में दाम को काबू पर रखने के लिए प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 67 रुपए किलो तय कर दिया है।
नोटा वोटों को लेकर चिंता
चुनाव आयोग ने सन् 2014 के राज्यसभा चुनाव में पहली बार नोटा लागू किया था। बाद के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी अनिवार्य रूप से इसका इस्तेमाल होने लगा।? पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इसे लेकर एक रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी। कोर्ट ने तब यह मानते हुए नोटा के प्रावधान का आदेश दिया था कि देश में शासन के लिए जो जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, उन्हें उच्च नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए। मतदाता को किसी भी एक उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यदि उसे कोई भी पसंद नहीं है, तो इसे व्यक्त करने का अधिकार उसे मिलना चाहिए। विशेषकर जब हमारे यहां जनप्रतिनिधि को मतदाता कार्यकाल के बीच में अयोग्यता के आधार पर हटा नहीं सकता।
कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से चुनाव आयोग से कोई मांग नहीं की है लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह विचार सामने आया है कि नोटा के प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक कई बार यह बटन गलती से दबा दिया जाता है। कई मौकों पर हार जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा में चले जाते हैं।
चुनाव आयोग के आंकड़े भी बताते हैं कि नोटा विकल्प के प्रति मतदाता लगातार जागरूक हो रहे हैं। नोटा बटन ईवीएम में सबसे नीचे होता है। यदि कुछ वोट गलती से नोटा में जा रहे हैं तो ऐसा दूसरे उम्मीदवारों को जाने वाले वोटों में भी हो सकता है। बघेल ने एक चर्चा छेड़ी है। इस पर राजनीतिक दलों में बहस हो सकती है, लेकिन कह नहीं सकते कि चुनाव आयोग इसे गंभीर सुझाव के रूप में लेगा। नोटा प्रावधान के पीछे सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है।
भूपेश ने किया दोस्त से सावधान
सीएम भूपेश बघेल ने रायपुर दक्षिण के पार्षदों को खास हिदायत दी है। उन्होंने कहा कि भाजपा प्रत्याशी को हराने के लिए खूब मेहनत करने की जरूरत है। भूपेश ने पार्षदों से कहा बताते हैं कि बृजमोहन अपने विरोधियों के खिलाफ अफवाह फैला देते हैं। ऐसे में जब वो प्रचार के लिए वार्डों में आए, तो उनके आसपास भी न फटके।
बृजमोहन साथ फोटो आदि खिंचवाने का शौक भी न करें, अन्यथा कांग्रेस के नेताओं के साथ फोटो-वीडियो सोशल मीडिया में वायरल कर लोगों के मन में शक पैदा कर देते हैं। इससे बचने की जरूरत है। सीएम ने पार्षदों को चेताया है कि उनके वार्डों से पार्टी को बढ़त नहीं मिली, तो निकाय चुनाव में उनके नामों पर विचार नहीं किया जाएगा। सीएम ने कहा कि पार्षद खुद तो जीत जाते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपने वार्डों से बढ़त नहीं दिला पाते हैं। देखना है कि सीएम की बातों का पार्षदों पर कितना असर पड़ता है।
आयोग की सख्ती और सरकारी बर्बादी
जैसे ही विधानसभा या लोकसभा चुनाव की घोषणा होती है, सरकारी संपत्ति पर लगे नेताओं की तस्वीरों को विरूपित (मिटा) दिया जाता है। इस तस्वीर में चिनाव आयोग की सख्ती साफ दिख रही है। यह तस्वीर बिरनपुर के पास एक गांव की है, जिसमें लोक निर्माण विभाग के बोर्ड में नेताओं की फोटो को सफेद पेंट से पोत दिया गया है। अब इस बोर्ड का उपयोग दोबारा नहीं किया जा सकेगा। यह बोर्ड पूरी तरह खराब हो गया है। आम जनता भले ही नहीं जानती कि इस बोर्ड को बनाने में 25 से 30 हजार रूपए खर्च हुए होंगे।
इस बोर्ड की प्रिटिंग को रेटरो प्रिंट कहा जाता है, जो कंप्यूटर से डिजिटल प्रिंट किया जाता है। रेटरो प्रिंट की खासियत यह होती है कि इससे फोटो इतनी साफ और स्पष्ट दिखती है कि हीरो-हिरोइन हों। रेटरो प्रिंट करने वाले इसके 10 साल की गारंटी देते हैं यानी 10 साल तक यह नए जैसा ही रहता है। लेकिन चुनाव तो पांच साल में हो जाते हैं तो ऐसे खर्चीले बोर्ड को कैसे बचाया जा सकता है।
ऐसे हर गांव हर शहर की हर गली में लगाये जाने लगे हैं। ऐसे वक्त में जब नेता जनता के कल्याण के लिये देने वाले धन को रेवड़ी कहते हैं, पैसे की बर्बादी कहते हैं तब ये खर्चीले बोर्ड क्या हैं?
ऐसे बोर्ड पार्षदों ने अपने हर वार्ड में सैकड़ों लगा रखे हैं ताकि उनकी फोटो हीरो-हिरोइन की तरह चमकदार दिखे। विधानसभा चुनाव में नहीं तो नगरीय निकाय चुनाव में उन्हें हटना तय है तो फिर ऐसे महंगे बोर्ड को लगाया ही क्यों जाता है। चुनाव आयोग या फिर सुप्रीम कोर्ट को इस अपव्यय पर कोई निर्णय देना चाहिये, ताकि सरकारी धन की बर्बादी रोकी जा सके।
जादूगर के सहारे प्रचार...
चुनाव के दिनों में भीड़ सिर्फ नेता का भाषण सुनने के नाम पर नहीं पहुंचती। तरह-तरह के नुस्खे आजमाने की जरूरत पड़ती है। भानुप्रतापपुर में कांग्रेस के प्रचार के लिए एक जादूगर को लगाया गया है। वह हाथ घुमाता है और उसकी थैली से कांग्रेस की प्रचार सामग्री निकल जाती है। आचार संहिता का खौफ न होता तो शायद जादूगर खाने-पीने की चीजें निकालकर दिखाता।
फेरबदल की उम्मीद में...
बीते चुनाव में कम मतों से हारे कुछ कांग्रेसी दावेदार टिकट से वंचित रह गए तो कुछ ऐसे विधायकों की टिकट गई जिन्होंने 2018 में अच्छे मतों से जीत हासिल की थी। अधिकृत उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद कुछ लोगों ने तुरंत फैसला ले लिया तो कुछ असमंजस की स्थिति में हैं। पिछली बार बहुजन समाज पार्टी से लगभग 3 हजार वोटों से हारे गोरेलाल बर्मन ने कांग्रेस छोडक़र जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का दामन थाम लिया है। यह उनकी दूसरी हार थी। सन् 2008 में भी वे परास्त हुए थे। मनेंद्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल को लेकर कई दिनों से चर्चा है कि वे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से लड़ सकते हैं पर उन्होंने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया। अंतागढ़ विधायक किस्मत लाल नंद को कांग्रेस ने निष्कासित कर दिया। पिछला चुनाव उन्होंने 13 हजार से अधिक मतों से जीता था। चिंतामणि महाराज ने अंबिकापुर से टिकट मिलने पर भाजपा में शामिल होने की शर्त रखी थी। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दी। अब उनका अगला कदम क्या होगा, इस पर अटकलें लग रही हैं। इधर तीन दिन पहले धमतरी से पूर्व विधायक गुरुमुख सिंह होरा ने नामांकन पत्र खरीद लिया था। नामांकन जमा करने के लिए उनके समर्थक कल इक_े भी हो गए थे। रैली निकालने की योजना थी, जिसे उन्होंने अचानक रद्द कर दिया। कहा गया कि हाईकमान के निर्देश पर उन्होंने नामांकन भरने की योजना टाल दी है। इसके बाद से चर्चा निकल पड़ी है कि यहां से कांग्रेस प्रत्याशी बदला जा सकता है।
बालिकाओं की रामलीला मंडली
10-20 साल पहले तक रामलीला का मंचन गांवों का एक परंपरागत उत्सव होता था। लोग रात-रात जागकर कलाकारों का जीवंत अभिनय देखने के लिए बैठे रहते थे। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश की कई टोलियों का छत्तीसगढ़ के गावों में डेरा होता था। पूरा गांव सत्कार में लगा होता था, राशन और ठहरने की व्यवस्था सामूहिक रूप से की जाती थी। अनेक टोलियां छत्तीसगढ़ में भी होती थीं। इनमें अभिनय करने वाले युवक पार्ट टाइम कलाकार होते थे। धीरे-धीरे अब यह चलन कम हो गया है। दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के तुर्रा ग्राम में रामलीला का मंचन होता है जिसमें सभी पात्र बालिकाएं होती हैं। राम, रावण, हनुमान का किरदार भी वे ही निभाती हैं। इसी तरह की एक मंडली बालोद जिले में भी है। दुर्ग के कलंगपुर में भी दशहरे पर रामलीला रखा गया था, जिसमें पहली बार सभी पात्र बालिकाएं थीं।
हवा के रूख वाला पजामा
चुनाव का माहौल ऐसा रहता है कि गरीब सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देखते हैं कि उन्हें और क्या हासिल हो सकता है। दूसरी तरफ अमीर यह अंदाज लगाते हैं कि आने वाली सरकार में कौन सी पार्टी सत्ता पर रहेगी, कौन मुख्यमंत्री रहेंगे, कौन डिप्टी सीएम, या दूसरे ताकतवर मंत्री बनेंगे। ऐसे ही एक बड़े कारोबारी ने एक अनौपचारिक निजी चर्चा में एक संपादक से पूछा- अगली सरकार और विपक्ष में सबसे ताकतवर कौन तीन-तीन लोग रहेंगे जिन्हें कि इस बार चंदा दिया जाए?
संपादक कुछ समझदार था, उसने कहा कि सातवां नाम मेरा लिखने को तैयार हों, तो मैं उसके पहले के छह नाम सुझा सकता हूं। अब कारोबारी हिसाब लगा रहे हैं कि एक सलाह का इतना दाम ठीक रहेगा या नहीं, जाहिर है कि बिना हिसाब लगाए तो वे इतने बड़े कारोबारी बने नहीं हैं। जिस तरह हवाई अड्डों पर हवा का रूख दिखाने के लिए एक पजामा सा बंधा रहता है जो कि हवा के साथ उड़ते रहता है, उसी तरह बड़े कारोबारियों के दिमाग में हमेशा ही हवा भरा पजामा फडफ़ड़ाते रहता है, और उसी के हिसाब से वे पजामा पहने आने वाले लोगों को आंकते हैं।
चुनाव आयोग के हाथी दांत
चुनाव आयोग बड़े नेताओं को उनके हमलावर और भडक़ाऊ भाषणों पर नोटिस तो देता है, लेकिन नोटिस देकर शांत रह जाता है। कोई भी असरदार कार्रवाई तभी हो सकती है जब पहले भडक़ाऊ भाषण के बाद उस नेता का उस प्रदेश में दुबारा कार्यक्रम बैन हो जाए। इसी तरह प्रदेश या जिले के भीतर के स्थानीय नेताओं के ऐसे भडक़ावे पर उसी तरह मतदान तक जिलाबदर कर देना चाहिए जिस तरह आज छोटे-छोटे से संदिग्ध मुजरिमों को, या कि असहमत राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जिलाबदर किया जा रहा है। चुनाव आयोग अगर लोगों को पहले भडक़ावे के बाद ही इलाके से निकालना शुरू कर दे, तो हवा से जहर कुछ कम हो सकेगा। कहने के लिए तो चुनाव आयोग हाथी के दांतों की तरह बड़े-बड़े अधिकार दिखाता है, लेकिन उसका इस्तेमाल दिखावे से अधिक नहीं हो पाता है।
सरमा को नोटिस, शाह को वह भी नहीं
भारत निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस की शिकायत पर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा को नोटिस जारी कर उनके उस बयान पर जवाब मांगा है जिसमें कहा था कि यदि एक अकबर कहीं आता है तो वह 100 अकबरों को बुलाता है। इन्हें रोकें अन्यथा कौशल्या माता की भूमि अपवित्र हो जाएगी। सरमा ने मुस्लिम शासक अकबर के नाम का उस जगह पर रूपक की तरह इस्तेमाल किया, जहां कांग्रेस प्रत्याशी का नाम मोहम्मद अकबर है।
कांग्रेस ने इसके पहले एक और शिकायत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ की थी। इसके मुताबिक राजनांदगांव की आमसभा में शाह ने कहा कि- भूपेश बघेल की सरकार ने तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के लिए छत्तीसगढ़ के बेटे भुवनेश्वर साहू को लिंचिंग कर मार डाला।
कांग्रेस ने आयोग से सरमा की शिकायत 19 अक्टूबर को की थी और शाह के खिलाफ 16 अक्टूबर को। अब तक जो खबरें हैं, उसके अनुसार शाह से आयोग ने इस पहली शिकायत पर कोई जवाब नहीं मांगा है। सरमा को नोटिस तो जारी हो गई है पर कार्रवाई क्या होगी, यह अभी अंधेरे में है। आयोग को ऐसे मामलों में नोटिस देने और कार्रवाई के लिए कितना वक्त लेना चाहिए, इसे समझने के लिए सन् 2019 का एक वाकया याद किया जा सकता है।
लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी की एक रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुसलमानों से अपील की कि वे अपना वोट न बंटने दें और गठबंधन के पक्ष में मतदान करें। इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यदि कांग्रेस, बसपा, सपा के साथ अली हैं, तो हमारे साथ बजरंगबली हैं। इनकी शिकायत आयोग से हुई लेकिन उसने कार्रवाई के नाम पर इन भाषणों की केवल निंदा की और इन नेताओं को सावधानी से बोलने की नसीहत दी। तब प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जो अब राज्यसभा सदस्य हैं, की बेंच ने मामले को सुना। आयोग को फटकार लगी। कोर्ट ने कहा कि आयोग ऐसे भाषणों की निंदा करके पल्ला नहीं झाड़ सकता। आयोग को ऐसे बयानों पर कार्रवाई के लिए समय भी नहीं लेना चाहिए। वह ठोस कार्रवाई कर अपना जवाब दाखिल करे। तब आयोग ने योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे और मायावती पर 48 घंटे तक प्रचार करने और भाषण देने पर रोक लगाई।
आज पांच साल बाद सुप्रीम कोर्ट की वह नसीहत और फटकार आयोग के ध्यान में पता नहीं, है भी या नहीं। अपने छत्तीसगढ़ में सरमा और शाह को भाषण दिये कई दिन बीत चुके हैं। सरमा छत्तीसगढ़ का दौरा करके, सभाएं और प्रेस वार्ता लेकर तीसरी बार जा चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह भी फिर चुनावी सभा लेने आ रहे हैं।
प्रबल के बल को भी टिकट...
स्व. दिलीप सिंह जूदेव के घर वापसी अभियान से जुड़े दो प्रत्याशी बिलासपुर की सीटों पर उतारे गए हैं। कोटा विधानसभा से जूदेव के बेटे प्रबल प्रताप को और बेलतरा से सुशांत शुक्ला को। सुशांत को टिकट मिलने से प्रबल प्रताप के सामने एक नई परेशानी खड़ी हो गई है। कोटा क्षेत्र उनके लिए अनजान सा है। घर वापसी अभियान के चलते विभिन्न कार्यक्रमों में पहले वे बिलासपुर और कोटा आते रहे हैं, पर जूदेव परिवार का यहां पर सबसे बड़ा सहयोगी सुशांत शुक्ला ही रहा है। प्रबल प्रताप इस भरोसे में थे कि सुशांत चुनाव अभियान की सारी जिम्मेदारी संभाल लेंगे। दौरे की रणनीति बनाएंगे, कार्यकर्ताओं से घुलने-मिलने में मदद करेंगे। अब जब खुद चुनाव लड़ रहे हैं तो सुशांत उनके लिए वक्त देने से रहे। अपने इलाके में व्यस्त हो गए हैं। अब प्रबल प्रताप विशुद्ध रूप से कोटा के कार्यकर्ताओं और जशपुर से आए समर्थकों के भरोसे रह गए हैं।
कांग्रेस की बी-टीम
सारी तैयारी, कार्यकर्ताओं का जोश , एक विकल्प के रूप में मतदाताओं की सोच सब धरी के धरी रह गई । हम आप पार्टी की बात कर रहे हैं । अगस्त- सितंबर तक सब कुछ बेहतर चल रहा था। एक एक गांव ,ब्लाक स्तर पर पार्टी की इकाइयां बन गई थीं। वार्ड प्रभारी, बीस बूथ प्रभारी,उन पर एक सर्किल प्रभारी जैसे 2.33 लाख नेतृत्वकर्ताओं की ग्राउंड टीम भी बना ली गई। स्व. वीसी शुक्ल,स्व.अजीत जोगी की पार्टी के 6 प्रतिशत वोटों के लिए विकल्प बनने की तैयारी में मजबूती से आगे बढ़ रही थी। दोनों सीएम आए, बड़े बड़े सम्मेलन किए। नौ नौ मैदानी गारंटी दिए और एक बस्तर गारंटी। सांसद, दिल्ली-पंजाब के मंत्रियों के दौरे होने लगे। इसी बीच एक के बाद एक चार सूचियों में 43 प्रत्याशी भी घोषित किए गए।
जब मध्य छत्तीसगढ़ की 47 सीटों की बारी आई तो।उसके बाद आया भारत बनाम इंडिया का मुद्दा। और केजरीवाल ने अपनी गारंटियों को तिलांजलि देकर कांग्रेस की बी -टीम बनना स्वीकार कर लिया। ऐसा होनेवाला है, यह बात हमने काफी पहले बता दी थी। और कल रात हुआ भी यही फैसला। उसके बाद से कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश घर कर गया है। राष्ट्रीय नेतृत्व को तरह तरह की संज्ञा, सर्वनाम,विशेषण दे रहे हैं। इसका असर भगवंत मान के राजधानी में होने वाले रोड शो में देखने को मिलेगा ।
किस्मत से मिलती है टिकट
विधायक बनने की लालसा तो हर किसी की हो सकती है, लेकिन यह आसान नहीं होता। विधायक बनना बाद की बात होती है, पहले तो टिकट मिलना किस्मत की बात होती है। कई आईएएस अधिकारी से लेकर कवि और नेता कतार में रहते हैं पर किस्मत होती है, तभी टिकट मिलती है। टिकट मिल गई तो उसके बाद जनता का विश्वास हासिल करना होता है।
ऐसे ही एक पद्मश्री कवि महोदय टिकट के इंतजार में थे, लेकिन न तो पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल कर पाए और न ही अब। कुछ यही हाल चर्चित आबकारी अधिकारी रहे आईएएस का रहा। बड़े लाव लश्कर के साथ दिल्ली में भाजपा प्रवेश किये थे, एयरपोर्ट से राजधानी तक भव्य स्वागत करवाकर शक्ति प्रदर्शन किया, धरसींवा से लडऩा चाहते थे, लेकिन हसरत अधूरी रह गई।
ऐसे ही दूसरी पार्टी से चुनाव लडक़र दूसरे नंबर पर रही महिला नेत्री ने टिकट की आस में कांग्रेस प्रवेश किया, पर आस अधूरी रह गई। अब वह पुरानी पार्टी में भी नहीं जा पा रही। ऐसे अनेकों है जिनके अरमान अधूरे रह जाते हैं, न यहां के होते हैं न वहां के।
नन्हीं रिपोर्टर की छोटी अपील
संकट मोचन मार्ग अंबिकापुर की एक छोटी बच्ची शानी त्रिपाठी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वह अपने छोटे भाई के साथ अपने घर के सामने है। उखड़ी हुई सडक़ की गिट्टी पैरों से उछालकर बता रही है कि यह कितना खतरनाक है। उसे साइकिल चलाते नहीं बनता, चोट आ जाती है। कोई गाड़ी यहां से गुजरे तो ऐसी धूल उड़ती है कि कोई चल सकता। रोड गायब है, गिट्टियां बच गई हैं। इसके बाद वह नाली का दर्शन कराती है, जो पूरी खुली पड़ी है। बहुत दिनों से जाम है और इसके चलते आसपास के लोग मच्छरों से परेशान है। बच्ची की बातों से यह लगता है कि वह किसी के इशारे पर नहीं बोल रही है। बातें उसके दिल दिमाग से ही निकल रही है।
चुनाव का मौसम है इसलिए ऐसा लग सकता है कि यह वीडियो किसी राजनीतिक मकसद से तैयार किया गया होगा। मगर वह देखने वालों से हाथ जोडक़र निवेदन कर रही है कि आपसे हो सकता है तो सडक़ बनवा दें, नाली साफ करा दें।
शिकायत भारी पड़ी
एफसीआई पर अवैध वसूली की शिकायत कर कुरूद के एक राईस मिलर मुश्किल में फंस गए हैं। मिलर, राईस मिलर एसोसिएशन के सचिव हैं, और उनकी शिकायत पर 40 से अधिक अफसरों को हटा दिया गया था। अब जांच आगे बढ़ी, तो दर्जनभर मिलर भी लपेटे में आ गए।
मिलरों के यहां पहले आईटी ने दबिश दी थी, और फिर ईडी भी जांच में कूद गई। ईडी ने मिलिंग में करीब 5 सौ करोड़ की हेराफेरी का दावा किया है। गोबरा-नवापारा से लेकर कोरबा तक मिलरों के ठिकानों पर छापे पड़े हैं।
ईडी की टीम शिकायतकर्ता मिलर के घर भी पहुंची थी। लेकिन वो नहीं मिले। उनके कर्मचारियों से पूछताछ हुई है। अब ईडी की टीम मिलर से पूछताछ करना चाहती है, लेकिन वो सामने नहीं आ रहे हैं। कुछ लोग बताते हैं कि आईटी, और ईडी के सक्रिय होने के बाद विदेश चले गए हैं। कहा जा रहा है कि ईडी, शिकायतकर्ता को ही आरोपी बना सकती है। इसको लेकर कुछ प्रमाण भी जुटाए गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
यूपी के इश्तहार कैसे बंद कराएँ ?
विधानसभा चुनाव हर तरह की सरकारी योजना का प्रचार प्रतिबंधित रहता है। हर सरकारी चीजों पर नेताओं के फोटो हटा लिये जाते हैं। यहां तक शिलान्यास के पत्थरों में लिखे नाम में स्टीकर चिपका दिए जाते हैं।
ऐसे में केंद्र सरकार की उज्जवला गैस सिलेंडर योजना का प्रचार कैसे हो सकता है। पेट्रोलियम कंपनियां इसके लिए फार्म भरने का प्रचार कर रही थीं, कांग्रेस ने चुनाव आयोग में तुरंत फरियाद लगा दी। पर अब कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यह आ गई कि वे यूपी सरकार के विज्ञापन कैसे बंद कराएं, जो हर टीवी चैनल पर चल रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीबों को गैस सिलेंडर बांटने का गुणगान कर रहे हैं।
एक विज्ञापन में मोदी के नेतृत्व में महिलाओं को आरक्षण देने का बखान कर रहे हैं। विज्ञापन में यह भी संदेश दिया जा रहा है कि यह सब तभी संभव हुआ, जब डबल इंजन की सरकार होती है। कांग्रेसी इसकी काट खोजने माथापच्ची कर रहे हैं।
डीए और बोनस में चुनाव का अड़ंगा
केंद्र सरकार ने चुनाव के बीच में केंद्रीय कर्मचारियों के लिए डीए की घोषणा कर दी। अब राज्य के कर्मचारी भी इसकी मांग कर रहे हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में तो अभी आचार संहिता है, लिहाजा सत्तापक्ष चाहकर भी घोषणा नहीं कर सकती।
केंद्र ने रेलवे के कर्मचारियों को 78 दिन का बोनस देने की घोषणा कर दी तो छत्तीसगढ़ के ऐसे उपक्रम जहां हर साल दिवाली पर बोनस दिया जाता है, उनके कर्मचारियों की उम्मीद बढ़ गई है। राज्य के एक सार्वजनिक उपक्रम के कर्मचारियों को हर दिवाली में बोनस मिलता है। पहले इसे चेयरमेन ही तय करते थे लेकिन पिछली दिवाली में बोनस देने की घोषणा मुख्यमंत्री से कराई गई थी। अब इस बार आचार संहिता है तो यहां के कर्मी बोनस को लेकर आक्रोश मिश्रित मायूसी में हैं वे मांग तो कर रहे हैं पर कोई सुनने को तैयार नहीं है।
प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद निर्वाचन आयोग ने आपराधिक मामलों में लिप्त रहे प्रत्याशियों को लेकर कुछ कड़े दिशानिर्देश दिए हैं। उन्हें नामांकन दाखिल करते समय एक अलग फॉर्म में लंबित मामलों की जानकारी देनी होगी। चुनाव चिन्ह आवंटन से लेकर मतदान के 48 घंटे के भीतर तीन बार टीवी अखबार में एफआईआर का प्रकाशन, प्रसारण भी कराना होगा। यदि उस दल की अपनी कोई वेबसाइट है तो उसमें भी इसकी घोषणा करनी होगी, आदि।
यदि अपराध व्यक्तिगत स्तर का हो तो प्रत्याशी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। जैसा भानुप्रतापपुर के उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम के साथ हुआ। उनके खिलाफ झारखंड में रेप और पॉक्सो एक्ट का अपराध दर्ज था। शपथ-पत्र में उन्होंने इस बात की जानकारी भी नहीं दी। पर कांग्रेस को जैसे ही पता चला उसने इसे मुद्दा बना लिया। झारखंड से पुलिस भी उनकी धरपकड़ के लिए पहुंच गई, फिर आनन-फानन में उन्हें अग्रिम जमानत का कागजात पेश करना पड़ा।
पर कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिसके बारे में प्रत्याशी सीना ठोक कर बता सकता है । कांकेर के गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवार हेमलाल मरकाम ने प्रेस को जानकारी दी है कि उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिसका उल्लेख नामांकन दाखिल करते समय दे दिया गया है। उनके मुताबिक एक मामले में पुलिस बेकसूर ग्रामीणों को पकडक़र थाने ले गई थी। इस पर उनकी थानेदार से बहस हो गई और उनके खिलाफ कई धाराओं में अपराध दर्ज कर लिया गया। दूसरा मामला रायगढ़ में आदिवासी भूमि के अधिग्रहण के विरोध में किये गए आंदोलन के चलते दर्ज किया गया। दोनों मामले आदिवासियों और ग्रामीणों के हक में लडऩे के चलते दर्ज किए गये। निष्कर्ष यह है कि यदि आंदोलन राजनीतिक हो तो एफआईआर के बारे में बताकर प्रत्याशी अधिक समर्थन और सहानुभूति भी हासिल कर सकता है।
आरक्षण के विरोधी की जीत
छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के चुनाव में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अभी एक बार फिर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा की वजह से राजभवन में विधानसभा से पारित विधायक रुका हुआ है। मगर एक दौर तब भी आया था जब छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में मंडल आयोग के विरोध में आंदोलन हुआ था। अभी जो अकलतरा विधानसभा क्षेत्र जांजगीर जिले में शामिल है, वह बिलासपुर में हुआ करता था। अकलतरा में मंडल आयोग के विरोध का झंडा डॉ. जवाहर दुबे ने उठा रखा था। वे भाजपा से जुड़े हुए थे। सन् 1990 में विधानसभा टिकट उन्हें नहीं मिली तो निर्दलीय मैदान में उतर गए। उन्हें मिला मशाल चुनाव-चिन्ह। उन्होंने कड़ी टक्कर में कांग्रेस के धीरेंद्र कुमार सिंह को 2966 वोटों से हरा दिया। हालांकि चुनाव परिणामों के बाद यह साफ हुआ कि केवल आरक्षण के मुद्दे पर डॉ. दुबे को वोट नहीं पड़े बल्कि त्रिकोणीय संघर्ष ने उनके लिए रास्ता साफ किया और भाजपा कांग्रेस दोनों ही दलों के अनेक कार्यकर्ता उनसे जुड़ गए थे। फिर भी यह तो माना ही गया कि एक ऐसे उम्मीदवार ने जीत हासिल की जो आरक्षण के विरोध में थे।
सडक़ बनाकर गांव में घुसें
सडक़, पानी, नाली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी यदि जनप्रतिनिधि उपलब्ध नहीं करा पाते तो हताश ग्रामीण चुनाव बहिष्कार जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कसडोल विधानसभा क्षेत्र के कोदवा सहसा ग्रामीणों को भी यही चेतावनी देनी पड़ी है। यहां से देवसुंदरा जाने वाली सडक़ का निर्माण बीते 10 सालों में नहीं हुआ। इस बीच भाजपा की सरकार चली गई फिर कांग्रेस का भी एक कार्यकाल पूरा हो गया। ग्रामीणों ने वोट मांगने वालों से कहा है कि पहले सडक़ बनवाएं, फिर हमारे गांव में प्रवेश करें।
30 तारीख गर्म रहेगी
विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी, पीएम मोदी के बजाए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सभाओं की डिमांड कर रहे हंै। दूसरे चरण की सीटों के लिए सारे प्रत्याशी अलग-अलग तिथियों में एक साथ नामांकन दाखिल करेंगे। इस मौके पर तकरीबन सभी जिलों से योगी आदित्यनाथ की सभा की डिमांड आई है।
योगी आदित्यनाथ की 30 तारीख को बलरामपुर, और कवर्धा जिले में सभा होगी। यही नहीं, पीएम की सभा भी 30 तारीख को दुर्ग में होगी। इससे परे कांग्रेस की भी 30 तारीख को दुर्ग में बड़ी सभा है। इसमें पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा प्रमुख रूप से रहेंगी। कुल मिलाकर नामांकन दाखिले के आखिरी दिन प्रदेश का राजनीतिक माहौल गर्म रहेगा।
दिग्विजय सिंह भूले नहीं..
मध्यप्रदेश में टिकट वितरण के खिलाफ कांग्रेस भाजपा दोनों में नाराजगी है। वे अपने ही नेताओं का पुतला फूंक रहे हैं, मुंडन करा रहे हैं, शीर्षासन कर रहे हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को कई दावेदार टिकट कटने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। पत्रकारों से चर्चा के दौरान दिग्विजय सिंह ने इस विरोध को लेकर कहा- टिकट तो पार्टी ने बांटी है। आएं, जिसे मेरा कुर्ता फाडऩा है-आकर फाड़ लें। साथ ही याद करते हुए कहा कि- वैसे आज तक एक ही बार मेरा कुर्ता फटा है। तब, जब मैं सन् 2000 में (स्व.) अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए रायपुर गया था...।
बृजमोहन के खिलाफ लडऩे के फायदे
भाजपा और कांग्रेस ने सिंधी समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं दिए हैं। इससे समाज के लोग खफा हैं। कांग्रेस से तो ज्यादा उम्मीद नहीं थी। मगर भाजपा के तो परम्परागत वोटर माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा ने टिकट नहीं दी, तो समाज के लोगों में काफी प्रतिक्रिया हुई है।
सिंधी समाज के नेता अपना गुस्सा पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर निकाल रहे हैं। बताते हैं कि बृजमोहन की प्रत्याशी चयन में कोई भूमिका नहीं थी, और वो खुद भी चाहते थे कि रायपुर उत्तर से सिंधी समाज से प्रत्याशी बनाया जाए। मगर समाज के लोग मानने के लिए तैयार नहीं है। इस सिलसिले में रणनीति तैयार करने के लिए एक बड़ी बैठक भी रखी गई है।
कहा जा रहा है कि बृजमोहन के खिलाफ कुछ सिंधी नेता चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं। एक-दो ने तो फार्म भी ले लिए हंै। बृजमोहन के खिलाफ चुनाव लडऩे के फायदे भी हैं। वो अपने विरोधियों का पूरा ख्याल रखते हैं। देखना है कि आगे क्या होता है।
मतदान की तारीख
चुनाव आयोग सारे पहलुओं को देखकर मतदान की तारीख घोषित करता है। फिर भी कई बार मतदान की तारीख बदलनी पड़ जाती है। राजस्थान में देवउठनी पर शादियां होती हैं, राजनीतिक दलों ने फरियाद लगाई तो चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख बदल दी।
इसे देखकर छत्तीसगढ़ में भी मतदान तारीख बदलने की मांग उठी। कारण बताया गया कि छठ पूजा की शुरुआत इस दिन होती है। सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने यह मुद्दा उठाया, क्योंकि नई पार्टी है, वोट बैंक बढ़ाना है। भिलाई, बिलासपुर, अंबिकापुर सहित कुछ क्षेत्रों में बिहारी से आए प्रवासी इसे मनाते हैं।
वोटबैंक का मामला है, इसलिये सभी दल इसमें कूद पड़े। छत्तीसगढिय़ा स्वाभिमान का झंडा बुलंद करने वाली पार्टी भी इसके समर्थन में आ गई। पूर्व कद्दावर नेता ने भी इसकी मांग कर दी। इस मामले में आयोग का फैसला आया भी नहीं था कि एक समाज ने भी यह कहकर मतदान तारीख बदलने की मांग कर दी कि हमारे समाज के कई लोग इस दिन तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं।
इन बातों को सुनकर गांव में मातर और देवारी मानने वाले कहने लगे कि आखिर चुनाव त्यौहार के समय क्यों होते हैं। छत्तीसगढ़ में नवरात्रि, दशहरा और दीवाली प्रमुख त्यौहार होता है। इस दौरान चुनाव होने से लोगों के व्यापारी व्यवसाय में असर पड़ता है। नगद राशि पर आयोग की नजर रहती है। इसे तीन महीने आगे कर देना चाहिए।
जहां जरूरत, वहां निगरानी ही नहीं
विधानसभा चुनाव 2023 के लिए सितंबर महीने में राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणन और अनुवीक्षण समिति, जिसे संक्षेप में एमसीएमसी कहते हैं, बना दी गई थी। प्रत्येक जिले में भी ऐसी समितियां काम कर रही है। इनमें डिप्टी कलेक्टर, जनसंपर्क विभाग के अधिकारी और कुछ रिटायर्ड अधिकारी रखे गए हैं। पहले ये सिर्फ अखबार, टीवी और रेडियो पर प्रकाशित, प्रसारित खबरों पर नजर रखते थे लेकिन पिछले कुछ चुनावों से सोशल मीडिया को निगरानी के दायरे में लाया जा चुका है। चुनाव आयोग की दिल्ली में चुनाव पर प्रेस कांफ्रेंस जैसे ही हुई, अखबार, टीवी से सरकारी विज्ञापन हट गए। अब पार्टियों के फंड से मिले विज्ञापन चलाए जा रहे हैं। खबरों में भी संतुलन रखा जा रहा है ताकि किसी खास दल या प्रत्याशी के पक्ष में झुकाव न दिखे। एमसीएमसी को खुद भी ऐसी कोई खबर हो तो संज्ञान में लेना है और शिकायत मिलने पर तो कदम उठाना ही है।
मगर, अखबार-टीवी आम तौर पर सतर्क हैं। सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर कमेटी कितना नजर रख पा रही है? प्रचार का इस समय सबसे बड़ा हथियार बना है डिजिटल प्लेटफॉर्म। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखें तो भाजपा और कांग्रेस के कार्टून, मीम और जोड़-तोड़ करके बनाए गए फोटो, वीडियो से ट्विटर पेज भरे पड़े हैं। फेसबुक में कुछ कम है लेकिन वाट्सएप ग्रुपों का भी ट्विटर जैसा ही हाल है। दशहरे पर एक दल दूसरी पार्टी के नेताओं को रावण बताने पर तुला रहा। ये पोस्ट इतने आक्रामक, असंतुलित और कहीं-कहीं अमर्यादित हैं कि अखबार कभी छापने की हिम्मत ही न करें। मालूम नहीं एमसीएमसी में इतने जानकार लोग हैं भी या नहीं कि वे सोशल मीडिया पर नजर रख सकें। मजे की बात यह है कि ये दल अपने खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट की शिकायत लेकर एमसीएमसी के पास जा भी नहीं रहे हैं। वजह यह है कि सब एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। दूध का धुला कोई नहीं। सोशल मीडिया पर ही पोस्ट का जवाब देकर हिसाब बराबर किया जा रहा है। वैसे आम मतदाता ऐसी पोस्ट से नाखुश हो तो सी-विजिल ऐप है। वे सीधे निर्वाचन पदाधिकारी को इसके जरिये शिकायत भेज सकते हैं।
एक यादगार बस्तर दशहरा
बस्तर का पारंपरिक दशहरा उत्सव हरेली अमावस्या से प्रारंभ हो चुका है। मावली परघाव की रस्म कल पूरी हुई। कहा जाता है कि बस्तर दशहरा की शुरूआत 13वीं शताब्दी में राजा पुरुषोत्तम देव ने शुरू की थी। यह खास तस्वीर सन् 1962 की है। सन् 1961 में महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को तत्कालीन सरकार ने अपदस्थ कर उनके भाई विजयचंद्र को राजा घोषित कर दिया था। प्रशासन सिर्फ इसी शर्त पर बस्तर दशहरा में सहयोग करने के लिए तैयार था कि इसे विजयचंद्र भंजदेव की अगुवाई में मनाया जाए। लाला जगदलपुरी ने अपनी एक किताब में बताया है कि बस्तर की जनता के दिल पर तो प्रवीरचंद्र राज करते थे। लोगों ने आपसी सहयोग कर संसाधन जुटाए और प्रवीरचंद्र भंजदेव के नेतृत्व में ही बस्तर दशहरा मनाया। राजा प्रवीरचंद्र महारानी के साथ रथ पर सवार होकर निकले तो लाखों लोग उनका स्वागत करने के लिए मौजूद थे।
अप्रिय चर्चा भी काम आई
कांग्रेस में रायपुर उत्तर से प्रत्याशी तय करने के लिए काफी किचकिच हुई। टिकट के दो प्रमुख दावेदार कुलदीप जुनेजा, और डॉ. राकेश गुप्ता से परे तीसरे नाम पर विचार से काफी विवाद हो रहा था। तीसरे शख्स का नाम तकरीबन फाइनल माना जा रहा था, लेकिन स्थानीय प्रमुख नेताओं के कड़े विरोध के बाद आखिरकार कुलदीप के नाम पर मुहर लग गई।
बताते हैं कि पार्टी के कुछ राष्ट्रीय नेता, रायपुर उत्तर के टिकट को लेकर काफी दिलचस्पी दिखा रहे थे। इसके बाद टिकट के एवज में महंगे गिफ्ट बांटने की चर्चा शुरू हो गई। इन सबके बीच एक व्यापारी नेता तो एआईसीसी में यह कहते सुने गए, कि वो सबसे ज्यादा खर्च कर सकते हैं। इस तरह की अप्रिय चर्चा प्रदेश प्रभारी सैलजा तक पहुंची।
सीएम, और अन्य नेताओं ने भी इसको गंभीरता से लिया। बाद में विवादों से बचने के लिए छानबीन समिति के सदस्यों की सहमति से कुलदीप को फिर से प्रत्याशी बनाने का फैसला लिया गया। दिलचस्प बात यह है कि पिछले तीन चुनाव में कुलदीप की टिकट आखिरी समय में तय होती रही है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।
बगावत उम्मीद से बहुत कम
सरगुजा संभाग में भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। यहां की सभी 14 सीटें कांग्रेस के पास हैं। ऐसे में भाजपा यहां विशेष रूप से ध्यान दे रही है। भाजपा के रणनीतिकार टिकट वितरण के बाद सरगुजा में कांग्रेस के दावेदारों में असंतोष को देखकर काफी खुश थे, और उन्हें अपने लिए अपार संभावनाएं दिख रही थी। लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस में असंतोष कम हो रहा है, भाजपा के रणनीतिकार चिंतित हैं।
सरगुजा में टिकट नहीं मिलने से नाराज बड़े नेता बृहस्पति सिंह के सुर भी बदल गए हैं। वो कह चुके हैं कि किसी भी दशा में कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। एक और कांग्रेस विधायक चिंतामणि महाराज के लिए कहा जा रहा था कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं। इसके बाद पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, और कई अन्य नेता उनसे मिलने पहुंच भी गए। मगर चिंतामणि महाराज ने ऐसी-ऐसी शर्त रखी, जिसे सुनकर बृजमोहन, और बाकी नेता बगल झांकने को मजबूर हो गए।
चिंतामणि महाराज ने अंबिकापुर से प्रत्याशी बनाने की मांग रख दी। भाजपा ने यहां से अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। बृजमोहन ने उनसे लोकसभा टिकट पर विचार करने का भरोसा दिलाया। लेकिन बात नहीं बनी। उनके जाने के बाद चिंतामणि महाराज यह कहते सुने गए, कि भाजपा उनके साथ पहले धोखा कर चुकी है। ऐसे में वो अब उन पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। अब जब कांग्रेस में बड़े नेता बागी होते नहीं दिख रहे हैं, तो भाजपा के नेता नई रणनीति बनाने में जुटे हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
चुनाव ड्यूटी कटवाने का खेल
विधानसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। इसमें जिला निर्वाचन अधिकारी जिले का प्रमुख होता है। कलेक्टर को इसका जिम्मा दिया जाता है, लेकिन ज्यादातर काम उपजिला निर्वाचन अधिकारी करता है। चुनाव है तो अधिकारी से लेकर बाबू तक चुनाव में व्यस्त हैं। उनका दशहरा दीवाली की छुट्टी चुनाव की भेंट चढ़ गई है।
चुनाव अधिकारी इतनी मेहनत के बाद मलाई की तलाश में रहते हैं, जिले में मतदान कराने के लिये छह हजार कर्मी की आवश्यकता है तो दस हजार की ड्यूटी लगा दी। अब चुनाव ड्यूटी करना किसको पसंद है तो हर जिले में इसके नाम कटवाने बाबू सेटिंग करा रहे हैं। दुर्ग जिले में एक अधिकारी इसके जरिये अपना चुनावी मेहनताना का इंतजाम करने में लगे हैं। ऐसे लोग हर जिले में तैनात हैं। इनसे निपटने राजधानी में तो डीआरओ आफिस में ही मेडिकल बोर्ड बिठा दिया गया है। ताकि मौके पर ही बिमारी पता चल जाए।
हमर राज का समाज में विरोध
सर्व आदिवासी समाज ने तय किया कि वे एक राजनीतिक दल बनाएंगे और विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। वजह यह है कि सत्ता में बार-बार आए दलों ने आदिवासियों के लिए संविधान में मिले विशेष प्रावधानों को लागू नहीं किया और जो नये कानून लाए जा रहे हैं उससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। यह लड़ाई बिना राजनीतिक दल बनाये ही भानुप्रतापपुर विधानसभा उप-चुनाव से शुरू हो चुकी थी। विधानसभा चुनाव में संगठन हमर राज पार्टी के बैनर पर मैदान में उतर रहा है। इसके 20 उम्मीदवार घोषित किये जा चुके हैं। पार्टी ने 50 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा की थी। दूसरे चरण के प्रत्याशियों की भी आज, कल में घोषणा हो सकती है।
मगर इसका दूसरा पहलू सामने आ रहा है। किसी सामाजिक संगठन में काम करने वाले लोग अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के हो सकते हैं। इसके सभी सदस्यों को किसी एक राजनीतिक लाइन पकडऩे के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सर्व आदिवासी समाज के सदस्य भी भाजपा, कांग्रेस या अन्य दलों के समर्थक-विरोधी हो सकते हैं। सर्व आदिवासी समाज उनका राजनीतिक नजरिया तय करे यह उन्हें मंजूर नहीं है। महासमुंद जिले में यह विरोध शुरू हुआ है। खल्लारी में सर्व आदिवासी समाज के महासमुंद जिला इकाई की बैठक हुई। इसने तय किया कि समाज का कोई भी व्यक्ति सर्व आदिवासी समाज की ओर से अधिकृत उम्मीदवार नहीं होगा। यदि वह हमर राज पार्टी से लड़े या निर्दलीय वह समाज का उम्मीदवार नहीं कहा जाएगा। सर्व आदिवासी समाज, सामाजिक संगठन है और यह अपनी यही जिम्मेदारी निभाएगा।
महासमुंद जिले में महासमुंद, खल्लारी, बसना और सरायपाली विधानसभा सीटें हैं। इनमें से सरायपाली अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, जबकि शेष तीन सामान्य सीटें हैं। दिलचस्प यह है कि इन चारों में कोई सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षित नहीं है, जबकि 2011 की जनगणना में इनकी संख्या 60 प्रतिशत से अधिक थी।
महासमुंद से आई प्रतिक्रिया का यह संकेत है कि सर्व आदिवासी समाज के सभी सदस्य हमर राज पार्टी के भी साथ हों, यह जरूरी नहीं है। मगर यह भी मुमकिन है कि जो इस संगठन से नहीं जुड़े हैं, वे भी कांग्रेस भाजपा के विकल्प के रूप में हमर राज पार्टी को साथ दे दें।
टिकट के लिए शीर्षासन..
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों ही जगह कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की लड़ाई का अनुमान है। दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उनकी सरकार बनेगी। इसीलिये टिकट से वंचित दोनों ही दलों के नेताओं और उनके समर्थकों में तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। टिकट बंटने के बाद छत्तीसगढ़ की तरह मध्यप्रदेश में भी एक से बढक़र एक नजारे दिखाई दे रहे हैं। भोपाल में कांग्रेस नेता कमलनाथ के घर के सामने पार्टी कार्यकर्ता धरने पर बैठे हैं। वे निवाड़ी सीट से रमेश पटेरिया की टिकट कट जाने से नाराज हैं। मौके पर एक कार्यकर्ता शीर्षासन कर ध्यान खींच रहा है।
टाइगर रिजर्व का यह हाल
यह तस्वीर उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व की है। इंदागांव परिक्षेत्र में दो पेड़ों के बीच फंस जाने से एक तेंदुये की मौत हो गई। पर वन विभाग को इसकी खबर चार दिन तक नहीं मिली। लाश चार दिन तक ऐसे ही फंसी रही। जानकारी मिलने पर पोस्टमार्टम कर शव दाह कराया गया। जब ऐसी सूचना वन विभाग के अफसर और मैदानी अमले को चार दिन तक न मिले तब अंदाजा लगा सकते हैं कि अभयारण्य में पेट्रोलिंग की क्या स्थिति होगी।
चिंतामणि को लेकर चिंता
चर्चा है कि कांग्रेस विधायक चिंतामणि महाराज भाजपा का दामन थाम सकते हैं। कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दी है। इसके बाद से चिंतामणि महाराज नाराज चल रहे हैं। हालांकि सीएम, और अन्य प्रमुख नेताओं से उनकी चर्चा हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा के नेता उन्हें अपने साथ लाने के लिए प्रयासरत हैं।
गहिरा गुरु के बेेटे सामरी के विधायक चिंतामणि महाराज की भाजपा से नजदीकियां जगजाहिर है। वो पहले भाजपा में थे, और संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं। ताजा खबर यह है कि चिंतामणि महाराज के बड़े भाई बब्रुवाहन सिंह के कार्यक्रम में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल शरीक हुए हैं।
बब्रुवाहन राजनीति से अलग हैं, लेकिन उनके कार्यक्रम में भाजपा नेताओं की मौजूदगी को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि यह कार्यक्रम पहले से तय था, और नवरात्रि के मौके पर हर साल आयोजित होता है। इसमें संघ परिवार के लोग प्रमुख रूप से मौजूद रहते हैं। अब चुनाव का समय है, तो चिंतामणि के भाजपा में शामिल होने की चर्चा चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
टिकट न मिला तो संचालन मिला
भाजपा ने जिनकी टिकट काटी उन्हें चुनाव संचालक की जिम्मेदारी दे रही है। अब तक दो दर्जन नेताओं को चुनाव की कमान दी जा चुकी है। कुछ को उसी विधानसभा में ते कुछ को दूसरे। कुछ नाराज दावेदार तो स्वयमेव ही अपने क्षेत्र के बाहर की जिम्मेदारी मांग चुके हैं। कारण एक तो प्रत्याशी से पटरी नहीं बैठती, दूसरी तन मन लगाकर जीते तो कोई क्रेडिट नहीं और हारे तो ठिकरा। सौदान सिंह के शागिर्दों से भला इस समस्या को कौन बेहतर जानेगी। सो सबने अपने इलाके से बाहर रहने का फैसला किया। एक समस्या और आ रही है, संगठन तो संचालक नियुक्त कर दे रहा है, प्रत्याशियों की तरह बकायदा सूची भी जारी कर रहा। लेकिन ये संचालक प्रत्याशियों को नहीं भा रहे। वे रात के अंधेरे में संगठन पदाधिकारियों और पुराने वरिष्ठ नेताओं से मिलकर संचालक बनने का आग्रह कर रहे हैं। राजधानी में भी एक प्रत्याशी ने यह डिमांड कर दी है। वे महापौर का चुनाव लड़ चुके नेताजी के लिए जुटे हुए हैं।
जब्त माल का हिसाब-किताब
चुनाव को प्रभावित करने में नगद राशि और उपहारों का बड़ा रोल होता है। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने सितंबर महीने में ही पुलिस और परिवहन विभाग को वाहनों की चेकिंग करने का निर्देश जारी कर दिया गया था। संयोगवश जिस वक्त छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, नवरात्रि, दशहरा और दीपावली की भी धूम है, जब आभूषण, कपड़ों और बर्तनों की खूब खरीदारी होती है। बीते चुनाव के दरम्यान सन् 2018 में भी दिवाली 7 नवंबर को थी और आचार संहिता अक्टूबर के पहले सप्ताह में लागू हो गई थी। आंकड़ा रोजाना बढ़ रहा है। अकेले रायपुर जिले की पुलिस 6 करोड़ रुपये से अधिक नगद अब तक जब्त किए हैं। पूरे राज्य का हिसाब बहुत बड़ा हो जाएगा। इसी तरह से सोने चांदी के जेवर और कपड़े जब्त किए गए हैं। इस चेकिंग से जुड़े कुछ पुलिस अफसरों का कहना है कि दरअसल ज्यादातर मामले टैक्स चोरी के हैं। अकेले छत्तीसगढ़ में बिना बिलिंग के सोने-चांदी का व्यापार साल भर में अरबों का होता है। साड़ी, चादर, शर्ट, पेंट के मामले भी ऐसे ही हैं। जो नगद जब्त हुए हैं वे भी ज्यादातर ठेकेदारों, सप्लायरों के हैं। अब तक जिनकी भी धकड़-पकड़ हुई है, वे किसी राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे थे, यह भी पता नहीं चला है। जांच अधिकारी सिर्फ यह कह रहे हैं कि जब्ती इसलिये की गई कि नगद का स्त्रोत नहीं बताया गया, कपड़े और आभूषणों का बिल नहीं था। चुनाव आचार संहिता के दौरान जो गड़बड़ी की जा रही है, वह तो शायद बारहों महीने होती होगी।
गरीब बस्तर के धनी उम्मीदवार
बस्तर की गरीबी और पिछड़ेपन की बात वे प्रत्याशी करने जा रहे हैं जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है। इनमें सबसे आगे तो कांग्रेस से बगावत कर जगदलपुर से निर्दलीय चुनाव लडऩे जा रहे टीवी रवि हैं। उन्होंने अपने शपथ-पत्र में 25 करोड़ रुपये की संपत्ति बताई है। इसमें सोना-चांदी, जमीन, बंगला, गाडिय़ां और नगद रकम शामिल है। इसी सीट से कांग्रेस टिकट के ही दावेदार जतिन जायसवाल की संपत्ति उनकी ओर से दिये गए शपथ के मुताबिक 16 करोड़ रुपये है। चर्चा थी कि जायसवाल को टिकट दिलाने का उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने भी प्रयास किया था। बस्तर के कांग्रेस उम्मीदवार लखेश्वर बघेल के पास 8 करोड़ की संपत्ति है, उनके मुकाबले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने जो हलफनामा दिया है उसके मुताबिक वे 2 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक हैं।
ललचाने लगे सीताफल..
नवरात्रि और दशहरा के करीब आते ही सीताफल की आवक छत्तीसगढ़ के बाजारों में शुरू हो जाती है। यह तस्वीर जांजगीर के बाजार की है। ([email protected])