राजपथ - जनपथ
इस बार कई मंतूराम!
नगरीय निकाय चुनाव में करीब एक नगर पंचायत अध्यक्ष समेत करीब 30 भाजपा पार्षदों का निर्विरोध निर्वाचन तय हो गया है। इनके खिलाफ कोई और प्रत्याशी मैदान में नहीं है। धमतरी में कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी का नामांकन निरस्त होने के बाद भाजपा प्रत्याशी की जीत आसान हो गई है।
राज्य बनने के बाद निकाय चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में निर्विरोध निर्वाचन नहीं हुआ। इसके लिए कांग्रेस नेताओं के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पार्टी ने आपाधापी में प्रत्याशी घोषित किए, और जिन जगहों पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने नाम वापिस लिए हैं वहां लेन-देन की चर्चा हो रही है।
धमतरी में तो मेयर प्रत्याशी विजय गोलछा का नामांकन निरस्त होने के बाद पार्टी ने डमी प्रत्याशी तिलक सोनकर को अधिकृत प्रत्याशी घोषित करने का मन बनाया था। तिलक रायपुर आकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से भी मिले थे। इसके बाद कुछ लोगों ने बैज का कान फूंक दिया कि तिलक को अधिकृत घोषित करने से मंतूराम पवार प्रकरण दोहरा सकता है। इसके बाद तिलक सोनकर की पृष्ठभूमि जांची गई। यह बताया गया कि तिलक आर्थिक रूप से कमजोर है, और जीवनयापन के लिए आलू-प्याज बेचने का काम करते हैं। फिर क्या था, बैज ने प्रमुख नेताओं से चर्चा के बाद धमतरी में किसी का समर्थन नहीं करने का फैसला किया है।
दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी का नामांकन निरस्त होने के बाद से निर्विरोध निर्वाचन के लिए कोशिशें भी की थी। करीब दर्जन भर प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, इनमें से 4 की ही नामांकन वापिसी हो पाई। बाकियों ने चुनाव मैदान में हटने से मना कर दिया।
कुल मिलाकर धमतरी के मेयर चुनाव ने अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव की याद दिलाई है। उस समय भी कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार, और अन्य निर्दलियों ने नाम वापिस ले लिए थे, लेकिन एक अंबेडकराइट पार्टी के रूपधर पुड़ो की नाम वापिसी नहीं हो पाई थी, और इस वजह से मतदान हुआ। इससे परे धमतरी में अभी तक किसी तरह की लेन-देन की चर्चा सामने नहीं आई है, लेकिन निर्दलीयों की मौजूदगी के चलते मेयर के लिए भी मतदान होगा। ये अलग बात है कि भाजपा प्रत्याशी जगदीश रामू रोहरा की राह आसान हो गई है।
देवेंद्र के पास जवाब नहीं है
भाजपा ने बसना के नगर पंचायत अध्यक्ष का भी चुनाव जीत लिया है। यहां भाजपा प्रत्याशी डॉ.खुशबू अग्रवाल के खिलाफ कोई भी प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरा। कांग्रेस, और आम आदमी पार्टी व बसपा के साथ-साथ निर्दलियों ने भी नामांकन वापिसी के आखिरी दिन अपने नाम वापस ले लिए।
कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापिस लेने की खबर स्थानीय संगठन के प्रमुख नेताओं तक पहुंची, तो हडक़म्प मच गया। तुरंत प्रत्याशी और उनके परिवार के सदस्यों से संपर्क साधा गया लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो पाया। आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी, और उनके पति ने अपना मोबाइल स्विचऑफ कर रखा था।
बसना से भाजपा प्रत्याशी के निर्विरोध निर्वाचन खबर पार्टी हाईकमान तक पहुंची है। चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट ने इस सिलसिले में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज और अन्य नेताओं से चर्चा की है। बसना, राजपरिवार का गढ़ माना जाता है। पूर्व मंत्री देवेन्द्र बहादुर सिंह यहां का प्रतिनिधित्व करते आए हैं। कांग्रेस प्रत्याशी भी देवेन्द्र बहादुर सिंह की पसंद से तय किए गए थे। और अब जब प्रत्याशी ने नाम वापिस ले लिए हैं तो देवेन्द्र बहादुर को जवाब देते नहीं बन रहा है।
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अब भी देवतुल्य?
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य निरूपित करती आई है। पार्टी के नेता अपने उद्बोधन में कार्यकर्ताओं को देवतुल्य कहते हैं। इन देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने धमतरी जिले के नगरी में गुरुवार को पार्टी दफ्तर में जो कुछ किया, उसने 25 साल पहले रायपुर के एकात्म परिसर की घटना की याद दिला दी।
उस समय भी देवतुल्य कार्यकर्ताओं ने बृजमोहन अग्रवाल को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाने पर एकात्म परिसर में तोडफ़ोड़ की थी, और बाहर गाडिय़ों में आग लगा दी थी। नगरी के दफ्तर में तोडफ़ोड़ उस समय शुरू हुई, जब जिला संगठन ने पार्टी समर्थित जिला प्रत्याशियों की सूची जारी की। स्थानीय कार्यकर्ता जिनके लिए समर्थन चाह रहे थे, उनकी जगह किसी और के लिए समर्थन की घोषणा कर दी गई। पार्टी दफ्तर के बाहर नाराज कार्यकर्ताओं ने बकायदा बैनर लगा दिया जिसमें लिखा है-यहां टिकट बिकता है।
देवतुल्य कार्यकर्ताओं की हरकत से पार्टी संगठन के नेता खफा हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अपने गुस्से का इजहार किया है। कांग्रेस में भी कार्यकर्ता इस तरह की प्रतिक्रिया दे चुके हैं। वर्ष-2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर निवर्तमान मेयर ऐजाज ढेबर के समर्थकों ने राजीव भवन में तोडफ़ोड़ की थी।
ढेबर ने बाद में अपने खर्चे से मरम्मत करवाकर मामला शांत कराया। इस बार भी कुछ इसी तरह की घटना राजीव भवन में भी घट सकती थी। कुछ प्रत्याशियों के नाम लीक हो गए थे। इसके लिए कार्यकर्ताओं ने राजीव भवन परिसर में खूब हंगामा किया। तोडफ़ोड़ से बचने के लिए पार्टी ने सूची सुबह 5 बजे जारी की। तब तक ज्यादातर कार्यकर्ता घर जा चुके थे, और इस वजह से कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। राजनीतिक दलों के लिए ‘देव’ कब ‘दानव’ बन जाए कोई नहीं जानता।
कोहली और बाबर आजम
रायपुर नगर निगम के भगवती चरण शुक्ल वार्ड में निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर के चुनाव मैदान में उतरने से यहां मुकाबला हाईप्रोफाइल हो गया है। ढेबर के खिलाफ भाजपा ने व्यापारी नेता अमर गिदवानी को उतारा है, जो कि छह महीने पहले ही कांग्रेस छोडक़र पार्टी में शामिल हुए हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भगवती चरण शुक्ल वार्ड से कई और प्रत्याशियों ने नामांकन लिए थे, लेकिन ढेबर, या फिर गिदवानी के प्रभाव में आकर नामांकन दाखिल नहीं किया। यहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला है। सोशल मीडिया पर एक पोस्टर वायरल हो रहा है, जिसमें क्रिकेटर विराट कोहली, और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान बाबर आजम की तस्वीर है, और कैप्शन में लिखा है- ‘हू विल विन’।
गिदवानी के चुनाव मैदान में उतरने से ढेबर के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई है। यहां सिंधी-पंजाबी, और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या तकरीबन बराबर है। ऐसे में ओडिशा मूल के मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में होंगे। कुल मिलाकर हार-जीत काफी कम मतों से होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
निर्विरोध चुना जाना भी जरूरी
विगत दो दशकों में ग्राम पंचायतों के वित्तीय अधिकार और प्रशासनिक स्वतंत्रता में काफी वृद्धि हुई है। ग्रामीण रोजगार योजनाओं, आवास योजनाओं का आवंटन और गांवों में होने वाले निर्माण कार्य जैसे मामलों में हर साल लाखों रुपये की आवक पंचायत फंड में होती है। इसके अतिरिक्त, वित्त आयोग से मिलने वाली सीधी राशि भी पंचायतों के खाते में जमा होती है, जिसे पंचायतें अपने विवेक से खर्च करने के लिए स्वतंत्र होती हैं।
इधर, कोविड महामारी के दौरान कई पंचायतों में सरपंचों और सचिवों पर करोड़ों रुपये के गबन के आरोप लगे। कुछ सरपंचों को बर्खास्त किया गया।
फंड का ही असर है कि पंचायत चुनाव अत्यधिक खर्चीला हो गया है। सरपंच उम्मीदवार मतदाताओं को नकद पैसे, उपहार और पार्टियों के प्रबंध में भारी धनराशि खर्च करते हैं। औसतन देखा जाए तो पंचायत चुनाव में एक मतदाता पर खर्च नगरीय, विधानसभा और लोकसभा चुनावों से कहीं अधिक होता है।
पंचायत चुनाव की प्रकृति अलग होती है। यहां उम्मीदवार अक्सर रिश्तेदार, दोस्त या पड़ोसी होते हैं, जिससे चुनावी प्रतिस्पर्धा तीव्र और व्यक्तिगत हो जाती है। पंचायतों में मिलने वाले फंड का आकर्षण इतना बढ़ गया है कि रिश्ते तक बिगड़ जाते हैं, और कई बार स्थायी दुश्मनी भी हो जाती है।
इसके बावजूद कई गांवों में समझदारी और सामूहिक सहमति की मिसाल भी देखने को मिलती है। एक राय से प्रत्याशियों का चयन कर लिया जाता है ताकि गांव में भाईचारा और सद्भाव बना रहे। उदाहरण के लिए, 2022 में राज्य में हुए पंचायत उपचुनाव के दौरान 22 सरपंच निर्विरोध चुने गए। वहीं, 2020 के आम पंचायत चुनाव में रायगढ़ जिले की 10 पंचायतों में सरपंच और पंच के सभी पद आपसी सहमति से तय किए गए, जिससे वहां चुनाव की नौबत ही नहीं आई।
हालिया उदाहरण में सूरजपुर जिले के तिलसिवां गांव में महिला सरपंच और सभी पंचों का निर्विरोध चयन कर लिया गया, और चुनाव अधिकारियों को मतदान की तैयारी से मुक्त कर दिया गया। ऐसी ही घटनाएं प्रदेश की अन्य पंचायतों से भी सामने आ रही हैं, विशेष रूप से पंच पदों पर।
ऐसी सहमति इसलिए संभव हो पाती है क्योंकि पंच और सरपंच पदों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते। यदि इन पदों पर कांग्रेस और भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो जाएं, तो आम सहमति में कई बाधाएं खड़ी हो सकती हैं।
एयरपोर्ट पर उड़ान कैफे
अब हमें स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर के अलावा जगदलपुर, बिलासपुर और अंबिकापुर एयरपोर्ट में सस्ते खाने वाले ‘उड़ान कैफे’ का इंतजार है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर ‘उड़ान यात्री कैफे’ की शुरुआत की है। यह कैफे एयरपोर्ट पर किफायती भोजन उपलब्ध कराने वाला देश का पहला केंद्र है। यहां पानी की बोतल और चाय केवल 10 रुपए में मिलती है, जबकि समोसा, कॉफी और मिठाई जैसे गुलाब जामुन 20 रुपए में उपलब्ध हैं।
मालूम हो कि एयरपोर्ट पर सांसदों ने लोकसभा में महंगे खाने-पीने की वस्तुओं को लेकर सवाल उठाया गया था। उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार एयरपोर्ट पर ऐसी कैंटीन खोल सकती है, जहां कम कीमत पर भोजन मिले। कोलकाता एयरपोर्ट इस साल अपनी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस अवसर पर ‘उड़ान कैफे’ शुरू करने का निर्णय लिया गया। फिलहाल यह तय नहीं है कि अगला कैफे किस एयरपोर्ट पर खुलेगा।
कोलकाता के कैफे में अभी पांच वस्तुएं उपलब्ध हैं- पानी, चाय, कॉफी, समोसा और गुलाब जामुन। यात्रियों के बीच चाय और समोसा सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। हर दिन यहां लगभग 700-800 लोग आते हैं, जिनमें हर आयु वर्ग के यात्री शामिल हैं।
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पहले मुख्य सचिव
राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के चार राज्यों के मुख्य सचिवों को एग्जांपलर लीडरशिप सर्टिफिकेट से सम्मानित किया है। इनमें छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन भी शामिल हैं। जैन के अलावा जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव अटल दुल्लू, राजस्थान की उषा शर्मा, हरियाणा के टीवी एस एन प्रसाद को भी इस प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया है। इनके अलावा जम्मू कश्मीर, असम, तमिलनाडु, यूपी और मप्र के डीजीपी को भी यह सम्मान दिया गया है।
यह सम्मान बीते एक वर्ष में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बेहतर संचालन और निष्पक्ष निर्भीक व्यवस्था के लिए दिया गया है । 25 वर्ष पूर्व गठित छत्तीसगढ़ राज्य में अब तक हुए 12 मुख्य सचिवों में से केवल जैन ने ही यह उपलब्धि हासिल की है। स्वच्छ छवि और प्रचार से दूर रहने वाले जैन ने अपनी इस उपलब्धि को भी प्रचार से दूर रखा। यह सम्मान पिछले दिनों एलटीसी अवकाश के दौरान ही बिना किसी तामझाम के हासिल किया। चुनाव आयोग ने देश भर में केवल जम्मू कश्मीर के ही मुख्य सचिव और डीजीपी को ही यह सम्मान दिया है।
अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ के डीजीपी इससे चूक गए। वैसे भाजपा के राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल ने ने एक वर्ष पूर्व हुए विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा को बदलने भारत निर्वाचन आयोग से लिखित में मांग की थी। और उसके बाद जुनेजा ने लोकसभा चुनाव कराए और अभी छ माह की सेवा वृद्धि पर कार्यरत हैं । छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक बार आयोग ने डीजीपी विश्वरंजन को हटाया था।
देवजी का इंकार
भाजपा में पंचायत चुनाव के लिए प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है। चूंकि चुनाव दलीय आधार पर नहीं हो रहे हैं। इसलिए जिले की कमेटी जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है जिन्हें पार्टी का समर्थन है। खबर है कि विधानसभा टिकट से वंचित कई सीनियर नेताओं को जिला पंचायत चुनाव लडऩे की सलाह भी दी गई थी। मगर कुछ ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
चर्चा है कि धरसींवा से तीन बार के विधायक रहे पाठ्यपुस्तक निगम के पूर्व चेयरमैन देवजी पटेल को भी रायपुर जिला पंचायत सदस्य क्रमांक-एक से चुनाव लडऩे का प्रस्ताव दिया गया था। रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष पद अनारक्षित है। ऐसे में चुनाव जीतने के बाद बहुमत मिलने की दशा में देवजी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का भी विचार था, लेकिन देवजी ने साफ तौर पर पंचायत चुनाव लडऩे से मना कर दिया।
चूंकि देवजी ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया है इसलिए उनकी जगह चंद्रशेखर शुक्ला को पार्टी की तरफ से अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया गया है। शुक्ला लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में आए थे। वो प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रहे हैं। कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पंचायत चुनाव में हाथ आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। अभी नामांकन दाखिले की प्रक्रिया चल रही है। तीन फरवरी को नामांकन दाखिले के बाद प्रत्याशियों को लेकर तस्वीर साफ होगी।
खुुशवंत-मनहरे आमने-सामने
नगरीय निकाय की तरह कांग्रेस, और भाजपा के कई नेता अपने नाते रिश्तेदारों को पंचायत चुनाव में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा ने यह तय किया है कि सांसद, और विधायकों के नाते रिश्तेदारों को प्रत्याशी बनाने से पहले प्रदेश की समिति से औपचारिक अनुमति लेनी होगी। इसकी वजह से कई दिग्गज नेताओं के प्रत्याशी बनने का मामला अटका पड़ा है।
चर्चा है कि सतनामी समाज के गुरु, और आरंग के विधायक खुशवंत साहेब अपने छोटे भाई को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ाना चाहते हैं। मगर पार्टी संगठन ने पहले यहां से पूर्व जनपद अध्यक्ष वेदराम मनहरे का नाम तय किया था। वेदराम मनहरे विधानसभा टिकट के दावेदार थे, लेकिन अंतिम समय में उनकी टिकट कट गई, और खुशवंत साहेब प्रत्याशी बन गए। अब मनहरे हर हाल में चुनाव लडऩा चाहते हैं, और खुशवंत साहेब भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में उक्त जिला पंचायत क्षेत्र में प्रत्याशी तय करने का मसला जिले की कमेटी ने प्रदेश पर छोड़ दिया है। देखना है पार्टी इस पर क्या फैसला लेती है।
कांग्रेस का पत्नीवाद
आखिरकार निवर्तमान मेयर एजाज ढेबर अपनी पत्नी अंजुमन ढेबर को प्रत्याशी बनवाने में कामयाब रहे। शहर जिला कांग्रेस कमेटी ने चुपचाप ढेबर की पत्नी के नाम बी-फार्म जारी कर उन्हें अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के हस्तक्षेप के बाद ही उन्हें टिकट मिली है।
ढेबर खुद भगवती चरण शुक्ल वार्ड से लड़ रहे हैं। जबकि उनकी पत्नी अंजुमन बैजनाथपारा वार्ड से अधिकृत प्रत्याशी हैं। पहले चुनाव समिति की बैठक में यह तय किया गया था कि एक ही परिवार के दो सदस्यों को टिकट नहीं दी जाएगी।
रायपुर नगर निगम के चार वार्डों की टिकट रोक दी गई। इसमें बैजनाथ पारा वार्ड भी है। बाद में पार्टी की गाइडलाइन को दरकिनार कर ढेबर की पत्नी को प्रत्याशी बना दिया गया। यही नहीं, पार्टी ने टिकरापारा वार्ड के निवर्तमान पार्षद समीर अख्तर की टिकट काट दी, जिनके वार्ड से रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस बढ़त मिली थी। अख्तर ने पार्टी छोडक़र आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। कुल मिलाकर कांग्रेस की टिकट वितरण में भाई-भतीजावाद देखने को मिला है। इसका क्या असर होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
अंडा मेन्यू में तो है, थाली में नहीं
अक्टूबर 2023 में छत्तीसगढ़ की पूर्व सरकार और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के बीच हुए एमओयू के तहत सरकारी स्कूलों के मध्यान्ह भोजन में सप्ताह में एक दिन अंडा शामिल किया जाना था। इसके अलावा, प्रत्येक शनिवार को खीर-पूड़ी परोसने की भी योजना थी। कांग्रेस सरकार ने अंडे को मेन्यू में शामिल किया, लेकिन उसका यह कहकर विरोध किया गया कि कई बच्चे शाकाहारी हैं और अंडा नहीं खाना चाहते। विरोध के बाद अंडे के विकल्प के तौर पर सोयाबड़ी को जोड़ा गया। सरकार बदलने के बाद भी अंडा मेन्यू में बना हुआ है, लेकिन यह सवाल कायम है कि क्या बच्चों को यह वास्तव में मिल रहा है?
हाल ही में, महाराष्ट्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने अपने स्कूलों में अंडे के लिए धन देना बंद करने की घोषणा की है। यह कदम दक्षिणपंथी समूहों के विरोध के बाद उठाया गया। इसके उलट दक्षिणी राज्यों जैसे कर्नाटक में, जहां भाजपा सरकार नहीं है, बच्चों को अधिक अंडे दिए जा रहे हैं। पिछले साल कर्नाटक सरकार ने सप्ताह में छह दिन अंडा देने की घोषणा की थी।
छत्तीसगढ़ की स्थिति इन दोनों से अलग है। यहां अंडा मेन्यू में तो शामिल है, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कुछ समय पहले एक टीवी चैनल की रिपोर्ट में दंतेवाड़ा से बलरामपुर तक की कई स्कूलों में स्थिति का खुलासा हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूलों में अंडा तो गायब ही है, सोयाबड़ी भी नहीं दी जा रही।
सरकार द्वारा मध्यान्ह भोजन के लिए तय राशि प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र मात्र 5.69 रुपये और माध्यमिक स्तर पर 8.17 रुपये है। इतनी कम राशि में पौष्टिक भोजन देना व्यावहारिक रूप से असंभव है। कुछ जिलों जैसे दंतेवाड़ा में डीएमएफ (जिला खनिज निधि) से प्रति छात्र 1.80 रुपये अतिरिक्त राशि स्वीकृत की गई है, लेकिन यह भी पर्याप्त
नहीं है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूलों में न्यौता भोज की परंपरा शुरू की है, जिसमें अफसर और नेता विशेष अवसरों पर बच्चों को भोज देते हैं। लेकिन नियमित पौष्टिक भोजन की स्थिति दयनीय है। अंडा और सोयाबड़ी जैसे विकल्प कम राशि के कारण बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह विरोधाभास ध्यान देने योग्य है। मेन्यू में अंडा बना हुआ है, लेकिन थाली से गायब है।
बेहतर प्लान कर निकलें प्रयागराज
मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ में हुई भगदड़ और उससे हुई मौतों के बाद कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। हवाई टिकट के दाम, जो घटना के पहले 600 प्रतिशत तक बढ़ गए थे, अब घटकर आधे हो गए हैं। हालांकि, यह किराया अभी भी सामान्य दरों से कई गुना अधिक है। टूर ऑपरेटर्स ने भी राहत दी है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ और कोरबा जैसे शहरों के वे अब यात्रियों को पहले के मुकाबले सस्ते पैकेज उपलब्ध करा रहे हैं। रेलवे ने मौजूदा स्पेशल ट्रेनों के साथ-साथ अचानक नई स्पेशल ट्रेनों की घोषणा की है, जिनमें सीटें आसानी से उपलब्ध हो रही हैं। अचानक तय हो रही ट्रेनों में जाने की सुविधा तो है, लेकिन लौटने की नहीं। इन परिस्थितियों में प्रयागराज के लिए निकलना कुछ आसान महसूस हो सकता है, मगर आपको वहां से लौटना भी है।
दरअसल, सडक़ मार्ग की स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। हादसे के बाद भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मेला प्रशासन और राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनके चलते प्रयागराज जाने वाली कई सडक़ें घंटों जाम हैं। रास्ते में रुके छत्तीसगढ़ के यात्रियों ने अपने परिजनों को बताया है कि उनकी गाडिय़ां 8-10 घंटे तक एक ही जगह पर फंसी हुई हैं। इससे खाने-पीने की दिक्कतें भी खड़ी हो गई हैं। ऐसे में अगर आप प्रयागराज जाने की योजना बना रहे हैं, तो थोड़ी देर ठहरने और स्थिति का पता करने की सलाह है। वैसे भी महाकुंभ का यह मेला 26 फरवरी तक जारी रहेगा।
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कांग्रेस-भाजपा भाई-भाई
चर्चा है कि नगरीय निकाय चुनाव में कुछ जगहों पर कांग्रेस, और भाजपा के नेताओं के बीच आपसी समन्वय से प्रत्याशी तय किए गए। बताते हैं कि कांग्रेस के एक मेयर प्रत्याशी ने पहले भाजपा नेताओं से बात की, और फिर चुनाव लडऩे के लिए तैयार हुए।
दरअसल, मेयर प्रत्याशी का सरकार के एक मंत्री, जो स्थानीय विधायक भी हैं, उनसे बेहतर रिश्ते हैं। मेयर प्रत्याशी ने विधानसभा चुनाव में मंत्री जी की काफी मदद की थी। मेयर प्रत्याशी यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनके खिलाफ भाजपा से कोई कमजोर ही चुनाव मैदान में उतरे।
चर्चा है कि मंत्री जी ने भाजपा प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभाई है, जिन्हें अपेक्षाकृत कमजोर माना जा रहा है। सरकार के मंत्री के कांग्रेस प्रत्याशी से अघोषित गठजोड़ की खबर से स्थानीय स्तर पर हलचल मची हुई है, और इसकी शिकायत प्रदेश संगठन के शीर्ष नेताओं तक पहुंचाने की तैयारी चल रही है।
संकेत साफ है कि नतीजे अनुकूल नहीं आए, तो मंत्री जी को जवाब देने में मुश्किल खड़ी हो सकती है। फिलहाल तो संगठन के नेता भाजपा प्रत्याशी को ताकत देने में जुट गए हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बीवी के साथ-साथ बेटा भी !
पंचायत चुनाव के लिए कांग्रेस, और भाजपा ने जिला व जनपद सदस्य के लिए समर्थित उम्मीदवारों की सूची जारी करने जा रही है। भाजपा में सभी जिलों में बैठकों का दौर चल रहा है। यह खबर सामने आई है कि भाजपा के प्रभावशाली नेता अपने परिजनों को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हंै, और इसके लिए पार्टी के समर्थन के लिए जोड़ तोड़ कर रहे हैं।
चूंकि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है। इसलिए जिलाध्यक्षों की अगुवाई में एक कमेटी बनी हुई है, और यह कमेटी भाजपा समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी कर रही है। बताते हैं कि सरगुजा सहित कई जिलों में बड़े नेता आपस में भिड़ गए हैं। पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा अपनी पत्नी के साथ-साथ अपने पुत्र लवकेश पैकरा को जिला पंचायत चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
पार्टी के स्थानीय नेता दोनों में से किसी एक को ही प्रत्याशी बनाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन पूर्व गृहमंत्री दोनों के लिए अड़े हुए हैं। चर्चा है कि पूर्व गृहमंत्री की स्थानीय प्रमुख नेताओं से बहस भी हुई है। कुल मिलाकर विवादों के निपटारे के लिए कई जगहों पर अधिकृत प्रत्याशी तय करने का जिम्मा प्रदेश की समिति पर छोड़ दिया गया है।
अब कहां दफनाएंगे शव?
बस्तर के मेडिकल कॉलेज डिमरापाल में 20 दिनों तक रखे गए पास्टर सुभाष बघेल के शव को अंतत: उनके गांव से 30 किलोमीटर दूर करकापाल स्थित मसीही कब्रिस्तान में दफनाया गया। यह मामला केवल एक शव दफनाने का नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक स्वीकृति और कानूनी व्यवस्था के बीच उत्पन्न जटिलताओं का प्रतीक बन गया है।
सुभाष बघेल ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके थे। उनकी मृत्यु उनके गांव छिंदवाड़ा में हुई। उनके परिवार ने उनकी इच्छा के अनुसार गांव में ही शव दफनाने की कोशिश की, लेकिन गांव के आदिवासी समुदाय ने इसका विरोध किया। परिवार ने तब अपनी निजी जमीन पर दफनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन गांव वालों ने इसका भी विरोध जारी रखा। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था के संकट का हवाला देते हुए परिवार की इच्छा को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट परिवार सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन वहां भी दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसले सुनाए। जस्टिस बी. नागरत्ना ने गांव में सम्मानजनक ढंग से दफनाने की मांग को सही ठहराया, जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने प्रशासन की दलील को मान्यता दी। अंतत: शव को करकापाल के मसीही कब्रिस्तान में दफनाया गया।
यह मामला बस्तर और छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सों में ईसाई धर्म अपनाने वालों और अन्य समुदायों के बीच बार बार उत्पन्न हो रहे टकराव का है। अक्सर, इन समुदायों को अपने ही गांव में शव दफनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई मामले हाईकोर्ट तक पहुंच चुके हैं, लेकिन सुभाष बघेल का मामला शायद पहला है जो सुप्रीम कोर्ट तक गया।
बघेल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हुआ, लेकिन इस फैसले ने यह स्पष्ट नहीं किया कि ऐसी स्थिति में परिजनों की इच्छा का सम्मान होगा या विरोध करने वालों का दबदबा बना रहेगा। क्या भविष्य में ईसाई धर्म अपनाने वाले लोगों को अपने गांव या निजी जमीन पर शव दफनाने की अनुमति मिल पाएगी? क्या सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हवाला देकर विरोध करने वाले अब प्रशासन पर आसानी से दबाव डालेंगे? क्या धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वीकृति के बीच संतुलन बनाने के लिए कोई स्थायी समाधान हो सकता है?
उत्सव में लूटपाट
प्रयागराज में मौनी अमावस्या के अवसर पर हुई भगदड़ और उसके बाद मौतों की घटनाओं के बीच कई अलग जानकारियां सामने आई हैं। 28 जनवरी को स्नान के लिए 10 से 12 करोड़ लोग प्रयागराज पहुंचे, जो कई देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। इस अवसर का फायदा एयरलाइंस कंपनियां जमकर उठा रही हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से प्रयागराज आने वाली फ्लाइट्स के किराए में भारी वृद्धि हुई है। डीजीसीए ने जब किराया नियंत्रित करने का निर्देश दिया, तब भी इसका कोई असर नजर नहीं आया। 28 जनवरी को फ्लाइट के किराए में 600 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई।
दिल्ली से प्रयागराज का किराया 32 हजार रुपये और मुंबई से प्रयागराज का 60 हजार रुपये तक पहुंच गया। हैरानी की बात यह है कि इसी दिन दिल्ली से लंदन की इकॉनमी क्लास फ्लाइट का किराया केवल 25 हजार रुपये था। सोशल मीडिया पर लोग इस मुद्दे पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या धार्मिक आयोजनों के नाम पर जनता से इस तरह मनमाना शुल्क वसूलना जायज है? क्या किराए में यह वृद्धि मुनाफाखोरी नहीं है?
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अपील का क्या मतलब है?
नगरीय निकायों के लिए भाजपा ने सभी प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। प्रत्याशी को लेकर कई जगह विवाद भी हो रहा है। खुद प्रदेश अध्यक्ष किरण देव के भतीजे ने सुकमा नगर पालिका अध्यक्ष प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और उन्होंने पार्टी छोडऩे का ऐलान कर दिया है। यही स्थिति कई जगहों पर है। मगर पार्टी की नीति साफ रही है कि एक बार घोषणा के बाद प्रत्याशी बदले नहीं जाते हैं। इस बार तो पार्टी ने प्रत्याशी चयन के खिलाफ सुनवाई के लिए गठित अपील समिति भी भंग कर दी है।
अपील समिति में घोषित प्रत्याशी के खिलाफ शिकायत की जा सकती है, और गंभीर शिकायत होने पर समिति प्रत्याशी बदलने की अनुशंसा कर सकती है। इस बार रायपुर नगर निगम, और प्रदेश के कई जगहों पर प्रत्याशी बदलने की मांग भी उठी। और जब असंतुष्ट लोग अपील समिति में आवेदन के लिए गए, तो उन्हें पता चला कि अपील समिति का अस्तित्व ही नहीं है। समिति को कुछ दिन पहले ही भंग किया जा चुका है।
पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि मेयर-अध्यक्ष के चयन के लिए चुनाव समिति की बैठक में खुद राष्ट्रीय सह महामंत्री शिवप्रकाश मौजूद थे। बाकी प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल, और पवन साय की जानकारी में लाकर, और उन्हें सूची दिखाकर ही जारी किया जा रहा था। और जब पार्टी के शीर्षस्थ लोग टिकट को लेकर फैसले ले रहे हैं, तो उनके फैसले के खिलाफ अपील का कोई मतलब नहीं है।
चेहरा देखकर टिकट
कांग्रेस में चेहरा देखकर टिकट देने की परम्परा रही है। यही वजह है कि कई जगह मजबूत नेता टिकट से वंचित रह जाते हैं, और इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ता है। इस बार भी मेयर, और पालिका अध्यक्ष के चयन में ऐसा ही हुआ। पार्टी के कुछ लोग मानकर चल रहे हैं कि प्रदेश के 10 में से 3-4 जगहों पर ही पार्टी तगड़ा मुकाबला देने की स्थिति में है। बाकी जगहों पर भाजपा प्रत्याशी फिलहाल बेहतर स्थिति में दिख रहे हैं। पार्टी का चुनाव प्रबंधन कैसा रहता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
तीनों गुवाहाटी में !
भारतीय पुलिस सेवा के तीन अफसर जितेन्द्र सिंह मीणा, आरएन दास, और डी श्रवण केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। इनमें से जितेन्द्र सिंह मीणा सीबीआई, आरएन दास सीआरपीएफ, और डी श्रवण एनआईए में पदस्थ हैं। तीनों ही अफसर सालभर के भीतर प्रतिनियुक्ति पर गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि तीनों ही अफसर एक ही जगह गुवाहाटी में पोस्टेड हैं। तीनों का दफ्तर भले ही अलग-अलग है, लेकिन आपस में एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने का समय निकाल ही लेते हैं।
कुंभ स्नान और सिपाही का पत्र
प्रयागराज कुंभ समापन महाशिवरात्रि को होने जा रहा है। उससे पहले हर कोई, 144 वर्ष बाद हो रहे महाकुंभ में त्रिवेणी संगम में स्नान का पुण्य लाभ कमाने प्रयासरत है। निजी से लेकर सरकारी हर मुलाजिम इसके लिए छुट्टी हासिल करने अपने अपने स्तर पर यत्न कर रहा है। एक ऐसे ही पुलिस के सिपाही ने अपने एसपी को पत्र लिखकर छुट्टी का आवेदन दिया है। इसे पढऩे के बाद शायद कप्तान साहब भी स्नान के लिए कुम्भ चले जाएं। राजस्थान सरकार के पुलिस कांस्टेबल ने इतना विस्तृत वर्णन कर है कि जन्म जन्मांतर के पाप काटने के लिए कुंभ स्नान सी अनुमति देने का आग्रह किया है। पूरा पत्र हूबहू पढ़ें—
गर्माहट से आई मुस्कान
यह कोरबा जिले के एक पहाड़ी कोरवा बाहुल्य गांव कदमझेरिया के सरकारी प्राथमिक शाला की तस्वीर है। पहाड़ों से घिरे इस इलाके में ठंड का प्रकोप कुछ अधिक ही होता है।
इन बच्चों के पास गर्म कपड़े नहीं होते। स्कूल के शिक्षकों ने इनके लिए बोरी भर गर्म कपड़ों की व्यवस्था की। बच्चों ने अपनी-अपनी नाप से उन कपड़ों को पसंद किया और पहन लिया। शिक्षकों ने तय किया है कि वे हर माह अपने वेतन का एक प्रतिशत जमा करेंगे और बच्चों के लिए स्लेट, पेंसिल, कपड़े, जूते की उनकी जरूरत के अनुसार व्यवस्था करते रहेंगे।
चुनाव और मजदूरों का जाना एक साथ
खरीफ फसल कटने के बाद मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ से हजारों मजदूरों का काम की तलाश में बाहर जाना होता है। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और जनजाति परिवारों के होते हैं। जांजगीर-चांपा, सारंगढ़-बिलाईगढ़ आदि जिलों से बाहर जाने वाले अधिकतर लोग अनुसूचित जाति परिवारों के होते हैं। ये यूपी और उत्तरभारत के अन्य राज्यों में ईंट भ_ों में या फिर बिल्डिंग कंस्ट्र्क्शन के काम में लगे होते हैं। खबर आ रही है कि बस्तर से रोजाना दो ढाई सौ लोग तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु कूच कर रहे हैं। अंतर्राज्जीय बसें खचाखच भरी चल रही हैं। ये मजदूर अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार के वयस्क मतदाताओं और बच्चों के साथ जा रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से प्रदेश में होने जा रहे स्थानीय चुनावों में, विशेषकर पंचायतों के चुनाव में दिखाई देगा। प्रशासन की ओर से इनको रोकने के लिए कोई चिंता जताई नहीं जा रही है।
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टिकट के बाद बग़ावत का दौर
नगरीय निकाय चुनाव की टिकट जारी करने में कांग्रेस, और भाजपा ने सतर्कता बरती है। दरअसल, छोटे चुनाव में टिकट कटने, या फिर मनमाफिक प्रत्याशी नहीं होने पर कार्यकर्ताओं का गुस्सा फट पड़ता है और वो पार्टी दफ्तर में धरना-प्रदर्शन से परहेज नहीं करते हैं। यही वजह है कि भाजपा ने मेयर, और रायपुर नगर निगम प्रत्याशियों की सूची गणतंत्र दिवस समारोह निपटने के बाद जारी की। कांग्रेस में तो टिकट की अधिकृत घोषणा के पहले ही राजीव भवन में नारेबाजी होती रही।
आधी रात तक मेयर-अध्यक्षों की टिकट को लेकर प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट माथापच्ची करते रहे, और फिर सोमवार की अलसुबह मेयर, पालिकाओं और नगर पंचायतों के अध्यक्षों की सूची जारी की गई। इस दौरान कार्यकर्ताओं का मजमा लगा रहा। चूंकि नामांकन दाखिले की आखिरी तिथि 28 तारीख है इसलिए कांग्रेस नेताओं पर जल्द से जल्द प्रत्याशी घोषित करने के लिए दबाव था। अब हाल यह है कि दोनों दलों में बस्तर से सरगुजा तक बगावत देखने को मिल रहा है। नाराज लोगों को मनाने की कोशिशें चल रही है। अब दोनों ही दलों को डैमेज कंट्रोल में कितना सफलता मिलती है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
नामों से पड़े अब फेर-बदल की बारी
कांग्रेस, और भाजपा में प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले हेरफेर होता रहा। भाजपा में रायपुर नगर निगम के कई पार्षद प्रत्याशी नाम तय होने के बाद अंतिम क्षणों में बदल दिए गए। मसलन, रायपुर नगर निगम के पूर्व पार्षद अमर बंसल का नाम पहले तय हो गया था। लेकिन सूची जारी होने से पहले उनकी जगह आनंद अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया।
इसी तरह देवेन्द्र नगर वार्ड से तुषार चोपड़ा का नाम फायनल किया गया था। लेकिन सूची जारी होने से पहले उनका नाम काटकर कृतिका जैन को प्रत्याशी बनाया गया। तुषार के खिलाफ कई शिकायतें थी और विरोधियों ने प्रमुख नेताओं को इसकी जानकारी दे दी। इसके बाद उनका पत्ता साफ हो गया। कांग्रेस में तो प्रत्याशियों की सूची में ही चौंकाने वाली गड़बड़ी सामने आई है। रायगढ़ जिले की बरमकेला नगर पंचायत सीट से मनोहर नायक को अध्यक्ष प्रत्याशी घोषित किया गया। जबकि यह सीट महिला आरक्षित सीट है। इस पर भाजपा नेताओं ने चुटकी ली है।
सरकार के मंत्री ओ.पी. चौधरी ने एक्स पर लिखा कि लगता है कोई टाइपिंग एरर है। भूपेश बघेल जी, सचिन पायलट जी ! टायपिंग एरर होगा तो थोड़ा ठीक कर लेवें....। कांग्रेस में तो बी फार्म जारी होने तक बदलाव की गुंजाइश रहती है। खुद भूपेश बघेल इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। भूपेश बघेल जब 1993 में पाटन से पहली बार चुनाव लड़े थे तब पार्टी ने पूर्व मंत्री अनंतराम वर्मा को अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया था। मगर बी फार्म भूपेश बघेल के नाम जारी हो गया। और वो जीतकर पहली बार विधायक बने।
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कांग्रेस में महिला प्रपंच
कांग्रेस में निकाय टिकट के लिए माथापच्ची चल रही है। नगर निगमों में तो वार्ड प्रत्याशियों के नाम तक तय नहीं हो पा रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी की महिला दावेदारों को झटका लग सकता है, जो पिछले कुछ दिनों से नेता पत्नियों को प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस मुहिम को राज्यसभा सदस्य फूलोदेवी नेताम, श्रीमती डॉ. किरणमयी नायक का खुला समर्थन रहा है। मगर पार्टी के दिग्गजों ने दो नगर निगम की मेयर टिकट नेता पत्नी को देने का मन बना लिया है।
रायपुर नगर निगम के वार्डों में तो जो कुछ हो रहा है, वो पहले कभी नहीं हुआ। मेयर एजाज ढेबर ने न सिर्फ खुद बल्कि अपनी पत्नी की टिकट भी पक्की करवा ली है। जबकि पत्नी कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रही है। और जब ढेबर दंपत्ति की टिकट फाइनल स्टेज में पहुंची है, तो कई सीनियर पार्षद भी अपनी पत्नी को टिकट दिलाने के लिए अड़े हुए हैं। जिन्हें मना करना मुश्किल हो रहा है। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट की मौजूदगी में रविवार को होने वाली बैठक में औपचारिक रूप से सूची पर मुहर लग सकती है। सूची जारी होते ही कांग्रेस में बवाल मच सकता है।
कांग्रेस के एक बड़े नेता को लेकर राजधानी में चर्चा है कि किस सौदे के तहत वे एक पत्नी को टिकट देने को न सिर्फ तैयार हो गए हैं, बल्कि अड़ गए हैं।
टिकट और राइस मिल
भाजपा में टिकट को लेकर जंग चल रही है। रायपुर नगर निगम के वार्ड प्रत्याशियों की सूची काफी हद तक सांसद बृजमोहन अग्रवाल के हिसाब से तय हुई है। यद्यपि चारों विधायक राजेश मूणत, सुनील सोनी, पुरंदर मिश्रा, और मोतीलाल साहू अपने करीबियों का नाम तय करवाने में सफल रहे हैं। रायपुर नगर निगम के साथ-साथ संभाग की पालिकाओं, और नगर पंचायतों के अध्यक्ष व वार्ड प्रत्याशियों के नाम भी तय किए गए।
सुनते हैं कि टिकट वितरण में एक निकाय के मौजूदा अध्यक्ष का पत्ता साफ हो गया है। निकाय अध्यक्ष टिकट के मजबूत दावेदार थे। निकाय अध्यक्ष की टिकट कटने के पीछे राइस मिलर्स की हड़ताल से जोडक़र देखा जा रहा है। निकाय अध्यक्ष ने पिछले दिनों राइस मिलर्स के आंदोलन की अगुवाई की थी, और फिर इसके चलते धान खरीदी व्यवस्था बुरी तरह लडखड़़ा गई। सरकार ने निकाय अध्यक्ष की मिल को सील भी कर दिया था। बाद में सबकुछ ठीक भी हो गया था, लेकिन टिकट की बारी आई, तो उनके नाम पर विचार भी नहीं हुआ। कहा जा रहा है कि कुछ लोगों के बहकावे में आकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना भारी पड़ गया।
निजी विश्वविद्यालयों के विदेशी छात्र
छत्तीसगढ़ के शुरूआती दौर के पहले ही तीन वर्ष में ही 136 से अधिक निजी विश्वविद्यालय खुल गए थे। यानी उस वक्त जितने तहसील विकासखंड थे हरेक में एक विवि खुले। इरादा बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं बल्कि 40-40 एकड़ तक जमीन पर कब्जा करना था। बाद में सुप्रीम कोर्ट, यूजीसी की फटकार के बाद इन पर लगाम लगी और आज हालत यह है कि केवल 17 निजी विश्वविद्यालय रह गए हैं। उस दौर के इक्का दुक्का ही रह गए हैं। बाकी एक दशक भर में खोले गए। उच्च शिक्षा विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन के मुताबिक इन सभी विश्वविद्यालयों में कुल छात्र संख्या 35000 हजार है। इनमें देश और विदेश,दोनों के छात्र हैं। इनमें भी रायपुर, बिलासपुर के दो विवि में विदेशी छात्रों की संख्या अधिक है। उनमें भी अफ्रीकी देशों के। एक विवि में तो 27 देशों के तीन हजार विद्यार्थी हैं।
इन दोनों विवि की देखा-देखी राजधानी के एक और निजी विश्वविद्यालय भी विदेशी छात्रों के लिए दरवाजे खोले हैं। जहां तक इनमें शिक्षा के स्तर को लेकर परस्पर दावे हो सकते हैं। हाल की एक बैठक में कुलाधिपति ने इन विश्वविद्यालयों से दी गई पीएचडीज की मांगी गई विस्तृत जानकारी से शिक्षा के स्तर को समझा जा सकता है। ऐसे में वहीं डिग्री डिप्लोमा की गुणवत्ता की बात न करे तो बेहतर। स्थिति यह भी है कि मंत्रालय में पदोन्नति के लिए स्नातक,स्नातकोत्तर की आवश्यकता भी ये विवि चुटकी में पूरी कर देते हैं। सब का एक ही ध्येय फीस वसूली ।
निजी विवि और चिंतित अभिभावक
डिग्री बांट कर प्रतिभावान छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो कर ही रहे थे । अब इन विवि के हॉस्टल विदेशी छात्रों की शरणस्थली बन कर नारकोटिक्स, और साइबर क्राईम के अड्डे बन गये हैं । और तो और मुझे शक यह भी है कि ये विदेशी छात्र अपने देशों के महंगे और तेज नशे वाले ड्रग्स के पैडलर हो गए हैं। जो प्रदेश के युवाओं को नशे की लत में ढकेल रहे हैं।
इस ओर आगाह करते हुए एक अभिभावक ने फेस बुक पोस्ट कर छत्तीसगढ़ पुलिस से आग्रह किया है कि इन अफ्रीकी देशों के जो छात्र निजी विश्वविद्यालय में छात्र वीजा पर पढ़ाई के नाम पर यहां रह रहे हैं,उनका पुलिस वेरिफिकेशन किया जाए। नाइजीरिया जो फ्रॉड व ड्रग्स के धंधे में कुख्यात है,वहां के लोग यहां के विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में कहीं फ्रॉड व ड्रग्स का धंधा तो नहीं कर रहे हैं। बीते एक वर्ष में एमडीएमए ड्रग और अब साइबर ठगी के मामलों में नाइजीरिया मूल के ही छात्र पकड़े गए हैं।
गर्माहट से आई मुस्कान
यह कोरबा जिले के एक पहाड़ी कोरवा बाहुल्य गांव कदमझेरिया के सरकारी प्राथमिक शाला की तस्वीर है। पहाड़ों से घिरे इस इलाके में ठंड का प्रकोप कुछ अधिक ही होता है।
इन बच्चों के पास गर्म कपड़े नहीं होते। स्कूल के शिक्षकों ने इनके लिए बोरी भर गर्म कपड़ों की व्यवस्था की। बच्चों ने अपनी-अपनी नाप से उन कपड़ों को पसंद किया और पहन लिया। शिक्षकों ने तय किया है कि वे हर माह अपने वेतन का एक प्रतिशत जमा करेंगे और बच्चों के लिए स्लेट, पेंसिल, कपड़े, जूते की उनकी जरूरत के अनुसार व्यवस्था करते रहेंगे।
चुनाव और मजदूरों का जाना एक साथ
खरीफ फसल कटने के बाद मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने के लिए निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ से हजारों मजदूरों का काम की तलाश में बाहर जाना होता है। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और जनजाति परिवारों के होते हैं। जांजगीर-चांपा, सारंगढ़-बिलाईगढ़ आदि जिलों से बाहर जाने वाले अधिकतर लोग अनुसूचित जाति परिवारों के होते हैं। ये यूपी और उत्तरभारत के अन्य राज्यों में ईंट भ_ों में या फिर बिल्डिंग कंस्ट्र्क्शन के काम में लगे होते हैं। खबर आ रही है कि बस्तर से रोजाना दो ढाई सौ लोग तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु कूच कर रहे हैं। अंतर्राज्जीय बसें खचाखच भरी चल रही हैं। ये मजदूर अकेले नहीं बल्कि अपने परिवार के वयस्क मतदाताओं और बच्चों के साथ जा रहे हैं। इसका असर निश्चित रूप से प्रदेश में होने जा रहे स्थानीय चुनावों में, विशेषकर पंचायतों के चुनाव में दिखाई देगा। प्रशासन की ओर से इनको रोकने के लिए कोई चिंता जताई नहीं जा रही है।
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पिछड़े वर्ग की नाराजगी का क्या?
नगरीय निकाय-पंचायत चुनाव में पदों के आरक्षण की सीमा 50 फीसदी करने से पिछड़ा वर्ग के जनप्रतिनिधियों में नाराजगी है। पिछड़ा वर्ग को नगरीय निकायों में थोड़ा फायदा हो रहा है, लेकिन पंचायतों में नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरपंच से लेकर जिला पंचायतों में अनारक्षित सीटें बढ़ी है, और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में कमी आई है। इस वजह से पिछड़ा वर्ग का बस्तर में बड़ा आंदोलन भी हुआ है।
भाजपा को पिछड़ा वर्ग के लोगों की नाराजगी का अंदाजा भी है, और इससे निपटने के लिए कार्य योजना बनाई गई है। इसका प्रतिफल यह रहा कि बस्तर संभाग के नगर पालिकाओं, और नगर पंचायतों में अनारक्षित सीटों पर ज्यादातर जगहों पर पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी उतारे जा रहे हैं।
पार्टी के रणनीतिकारों ने जगदलपुर मेयर के अलावा कोंडागांव नगर पालिका, कांकेर में अध्यक्ष पद पर पिछड़ा वर्ग के योग्य प्रत्याशी की तलाश कर ली है। एक-दो दिन के भीतर इसका ऐलान किया जा सकता है। इसका पार्टी को कितना फायदा होता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
नए पदाधिकारियों का बड़ा भाव
भाजपा में नवनियुक्त जिला अध्यक्षों की पूछपरख बढ़ गई है। विशेषकर वार्डों, और पंचायत के पदों पर किसी एक नाम के लिए सहमति नहीं बन पा रही है, या फिर विवाद की स्थिति बन गई है, वहां जिलाध्यक्षों को कुछ प्रमुख नेताओं से चर्चा कर प्रत्याशी तय करने के अधिकार दे दिए गए हैं।
भाजपा के रणनीतिकारों की मजबूरी भी है। वजह यह है कि नामांकन दाखिले की समय-सीमा खत्म होने में तीन दिन बाकी रह गए हैं। ऐसे में जल्द से जल्द प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए दबाव भी है।
भाजपा, और कांग्रेस दफ्तर में सैकड़ों दावेदार सुबह से लेकर रात तक डटे रहते हैं। इससे पार्टी के बड़े नेता परेशान हैं। इसके चलते रायपुर नगर निगम के वार्ड प्रत्याशियों के चयन के लिए सांसद बृजमोहन अग्रवाल को अपने घर में बैठक करने की छूट दे दी है। चूंकि बृजमोहन के घर में बैठक होने की खबर उड़ी, तो कुशाभाऊ ठाकरे परिसर से भीड़ छटकर मौलश्री विहार शिफ्ट हो गई। मगर बाकी जगहों के लोग अब भी पार्टी दफ्तर में देखे जा सकते हैं।
फील्ड को मिले 60 अफसर
पिछले ही दिनों हमने इसी कॉलम में बताया था कि राजधानी को सेफ जोन मानकर राप्रसे के अफसर फील्ड छोडक़र मंत्रालय, संचालनालय और राजधानी के अन्य राज्य स्तरीय दफ्तरों में अफसरशाही के दिन गुजार रहे हैं। मंत्रालय, संचालनालय में तो में इस कैडर के अफसर बहुतायत हो गए हैं। प्रतिनियुक्ति के निर्धारित पदों से दो गुने राप्रसे अफसर दोनों भवनों में पदस्थ हो गए हैं। यहां तक कि दूर दूर तक वास्ता न होने के बावजूद तकनीकी विभागों में भी डिप्टी कलेक्टर पदस्थ हो गए हैं।
विभाग न मिले तो भी ये जीएडी पूल यानी रिजर्व में रहकर बिना काम के दिन काट रहे थे। बंगला, कार नौकरों के साथ पूरा दबदबा और राजधानी में रहने का जलवा अलग। और फील्ड के दफ्तर डिप्टी, संयुक्त और एडिशनल कलेक्टर की कमी से जूझ रहे थे। नई सरकार आने के बाद इसका आकलन कर पहले सचिव पी.अंबलगन और अब मुकेश बंसल ने जो ऑपरेशन क्लीन अभियान चलाया उससे फील्ड के दफ्तरों को अफसर मिले हैं।
नए वर्ष में अब तक किए गए राप्रसे अफसरों के तबादले में से 60 से अधिक अफसर मंत्रालय, संचालनालय, आयोग, निगम-मंडलों से निकालकर फील्ड में डिप्टी, संयुक्त, एडिशनल कलेक्टर पदस्थ किए गए हैं। इससे कलेक्टरों के हाथ मजबूत तो हुए हैं, और सीएम विष्णु साय के कामकाज में समयबद्धता, तेजी और कसावट के न्यू ईयर रेजुलेशन भी हासिल किया जा सकता है। वैसे यह सिलसिला अभी थमा नहीं है,जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ के मजदूरों से जुड़े दो रेल हादसों की चीख
महाराष्ट्र के जलगांव जिले में पुष्पक एक्सप्रेस से जुड़े हालिया हादसे ने रेल की पटरियों पर छत्तीसगढ़ से जुड़े उन भयावह दृश्यों को ताजा कर दिया, जिनमें निर्दोष जानें गंवाई गईं। वहां ज्यादातर सवारी जनरल डिब्बे के थे, यहां भी मजदूरों ने जान गंवाई थीं। हादसा तो अचानक होता है, लेकिन उसका कारण अक्सर हमारी लापरवाह व्यवस्था और लोगों की मजबूरियां होती हैं। यहां छत्तीसगढ़ से जुड़ी दो घटनाएं बताना चाहेंगे, जो श्रमिकों, कामकाजी लोगों की पटरियों पर हुई ऐसी ही मौतों से जुड़ी है।
2011 में, 22 अक्टूबर को बिलासपुर स्टेशन के पास फाटक बंद रहने की समस्या से जूझते मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी। ठीक स्टेशन से आगे तारबाहर में 20 से अधिक पटरियों का जाल, हजारों लोगों का आवागमन और रेलवे की कमजोर सुरक्षा। बंद फाटक को आप पैदल, साइकिल और बाइक से पार कर सकते थे। अंडरब्रिज या ओवर ब्रिज बनाने की मांग को रेलवे ने लगातार अनसुना किया। पार करते लोगों को एक मालगाड़ी ने रौंद दिया। इस घटना में मौके पर ही 11 ने जान गंवाई,बच्चे- महिलाएं भी इनमें शामिल थे । बाद में यह संख्या बढक़र 16 हो गई। इस हादसे के बाद अंडरब्रिज बनाया गया।
2020 में लॉकडाउन के दौरान, छत्तीसगढ़ के मेहनतकश प्रवासी मजदूरों ने सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय करना तय किया। सब तरफ सन्नाटे के बीच। 7 मई को थकान और भूख से टूटे इन मजदूरों ने रेल पटरी को अपना अस्थायी आश्रय समझा, पटरी पर ही लेट गए। लेकिन मालगाड़ी ने उनके सपनों और जीवन को कुचल दिया। उन्हें पता नहीं था कि रेलगाडिय़ां पूरी तरह बंद नहीं है। सवारी गाडिय़ां नहीं चल रही थीं, लेकिन कोविड का फायदा उठाते हुए माल लदान, ढुलाई को रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचाया जा रहा है।
ये हादसे बताते हैं कि अपने खून-पसीने से देश की आर्थिक गाड़ी को खींचने वाले मजदूरों की जिंदगी को सुरक्षा देने में हम बार-बार विफल हो जाते हैं।
जिम्मेदारी से भाग रहा वन विभाग
टाइगर रिजर्व के नाम पर फॉरेस्ट के अफसरों को करोड़ों का फंड तो चाहिए, मगर किसी बाघ-बाघिन की जान खतरे में हो तो उसे बचाने के नाम पर पल्ला छुड़ाते हैं। बजट मिले इसलिए, गिनती में तो शामिल कर लेते हैं मगर, कोशिश करते हैं कि वह उनके इलाके से भाग जाए, दूसरे इलाके के अफसर जो करना चाहते हैं करें। बांधवगढ़, कान्हा नेशनल पार्क घूमते अचानकमार टाइगर रिजर्व में और अब दोबारा मरवाही वन मंडल में घूम रही टाइग्रेस इन दिनों भटक रही है। यह स्थिति खुद उसके लिए और जंगल में रहने वाले लोगों के लिए खतरे का कारण बन रही है। अब तक किसी मनुष्य का शिकार उसने नहीं किया लेकिन 6 मवेशियों को मार चुकी है। प्रभावित ग्रामीणों को इसने चिंता में डाल रखा है। यह भी आशंका है कि आत्मरक्षा या गुस्से में लोग इस बाघिन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ का वन विभाग मध्यप्रदेश के अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर इस बाघिन को रेस्क्यू कर सकता है। रेडियो कॉलर के जरिए उसकी लोकेशन पहले से मिल रही है, लेकिन इस प्रक्रिया में देर होना अनहोनी को निमंत्रण देना है। रात में स्पॉटलाइट से उसके लोकेशन की खोजबीन सिर्फ नजर रखने और लोगों को सतर्क करने के लिए की जा रही है। जानकारों का कहना है कि ऐसा करना उसे अधिक परेशान कर सकती है। इसे सुरक्षित स्थान पर ले जाकर उसे ऐसी जगह छोड़ा जा सकता है, जहां उसकी जिंदगी और इंसानी गतिविधियां दोनों सुरक्षित रहें। यह समय है कि वन विभाग सक्रियता दिखाए, अन्यथा यह लापरवाही पर्यावरण व वन सुरक्षा में योगदान देने वाली इस जीव की मृत्यु या मानव-वन्यजीव संघर्ष की किसी घटना को जन्म दे सकती है।
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या तो संगठन, या चुनाव
भाजपा में नगरीय निकाय प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। पार्टी संगठन के एक अलिखित फैसले से हलचल मची हुई है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि मंडल और जिला अध्यक्षों को चुनाव नहीं लड़ाया जाएगा। जबकि कई मंडल, और जिलाध्यक्ष वार्ड चुनाव लडऩा चाह रहे थे। रायपुर में नवनिर्वाचित शहर जिलाध्यक्ष रमेश ठाकुर लाखे नगर वार्ड से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे। ठाकुर तीन बार पार्षद रह चुके हैं। मगर इस बार उन्हें चुनाव लडऩे की इजाजत नहीं दी है। इसी तरह कुछ मंडल अध्यक्ष भी वार्ड चुनाव लडऩे के मूड में थे, लेकिन उन्हें वार्डों में जाकर पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए की जिम्मेदारी दी गई है। न सिर्फ रायपुर बल्कि बाकी जिलों में भी कमोबेश यही स्थिति है। दूसरी तरफ, पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं हो रहे हैं। अलबत्ता, भाजपा जिला और जनपद के लिए अपने समर्थित प्रत्याशियों की सूची जारी करेगी। पंचायतों में भी यथा संभव जिला और मंडल के पदाधिकारियों को चुनाव लडऩे से मना किया गया है, फिर भी कुछ जगहों पर मंडल के पदाधिकारी चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कांग्रेस में मेयर पर सोच-विचार
कांग्रेस में कुछ मौजूदा मेयर को फिर से चुनाव लड़ाने पर विचार चल रहा है। इनमें अंबिकापुर से डॉ. अजय तिर्की, और चिरमिरी से कंचन जायसवाल प्रमुख हैं। डॉ. तिर्की के नाम पर ज्यादा कोई विवाद नहीं है। अलबत्ता, चिरमिरी की मौजूदा मेयर कंचन जायसवाल अथवा उनके पति पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल के नाम पर भी चर्चा चल रही है।
चिरमिरी से पूर्व मेयर डमरू रेड्डी भी जोर लगा रहे हैं। कुल मिलाकर यहां नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत की पसंद पर मुहर लग सकती है। इससे परे कोरबा से पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल की पत्नी रेणु अग्रवाल की टिकट पक्की मानी जा रही है। रेणु एक बार मेयर रह चुकी हैं। और जयसिंह नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत के करीबी माने जाते हैं। यही वजह है कि रेणु अग्रवाल की टिकट को लेकर ज्यादा कोई विवाद नहीं है।
हालांकि बिलासपुर, रायगढ़, राजनांदगांव, और धमतरी मेयर भी टिकट चाहते हैं। पार्टी की सोच भी है कि मौजूदा मेयर को प्रत्याशी बनाने से चुनाव खर्च को लेकर समस्या नहीं आएगी, लेकिन जीत की संभावना भी टटोली जा रही है। बावजूद इसके दो-तीन मेयर फिर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
दो अध्यक्षों की इज्जत दांव पर
चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज जगदलपुर मेयर टिकट को लेकर उलझन में हैं। बस्तर के एक और प्रभावशाली नेता पूर्व मंत्री कवासी लखमा जेल में हैं। इस वजह से जगदलपुर मेयर टिकट बैज की पसंद से ही तय होने की उम्मीद है। यहां से बैज के करीबी प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदू का नाम भी चर्चा में है। मलकीत सिंह की अच्छी पकड़ भी है। मगर वो असमंजस में है।
दूसरी तरफ, जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, और लखमा के करीबी राजीव शर्मा, और मनोहर लूनिया का नाम भी चर्चा में है। दीपक बैज, जगदलपुर के प्रत्याशी को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाह रहे हैं। और यहां चुनाव हारने से उनके लिए भविष्य की राह आसान नहीं रह जाएगी। इससे परे भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष किरणदेव की साख भी दांव पर है। कुल मिलाकर बैज स्थानीय नेताओं से लगातार चर्चा कर सर्वमान्य प्रत्याशी की खोज में जुटे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
चुनाव और पटवारियों पर कार्रवाई
सरकार के ऑनलाइन कामकाज के विरोध में एक माह से प्रदेश के पटवारी हड़ताल पर है। इससे फील्ड में भू राजस्व का काम चरमरा गया है। एक माह से खसरा बी-वन की नकल तक नहीं मिल रही। नामांतरण तो दूर की बात है। ग्रामीण इलाकों में गहन आक्रोश और सरकार के प्रति नाराजगी घर कर गई। सामने ग्रामीणों की हिस्सेदारी वाले पंचायत चुनाव होने हैं। कहीं यह भारी न पड़ जाए इसे देखते हुए राजस्व विभाग पटवारियों पर कार्रवाई कर रहा है। पहले पटवारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष और सचिव का तबादला कर दिया ।और अब निलंबन, सेवा से पृथक करने की धमकी दी जा रही। और अब यह विवाद बड़े पैमाने पर कर्मचारियों के वृहद संगठन तक जा पहुंचा है।
फेडरेशन के नेताओं का कहना है कि सरकार कर्मचारी नेताओं से संवाद करने के बजाय लगातार उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। हम चाहते हैं कि सरकार को कार्रवाई करने के बजाय कर्मचारी संगठनों से संवाद कर समस्याओं के समाधान के लिए पहल करनी चाहिए। फेडरेशन ने कर्मचारी नेताओं के खिलाफ की जा रही कार्रवाई का विरोध और निंदा की है। नई सरकार के एक वर्ष बाद ही हर विभाग,वर्ग के कर्मचारी पिछली सरकार को याद करने लगे हैं। उनका कहना था कि पिछली सरकार का खौफ, अफसरों में होता था न कि कर्मचारियों पर।
शिक्षा विभाग के एक कर्मचारी नेता ने लिखा शिक्षा विभाग को भी प्रयोगशाला बना कर रख दिया गया है। परीक्षा के समीप चुनाव का आयोजन कर वैसे ही इस शैक्षणिक सत्र का बंदरबाट कर दिया गया है। रोज नित नए आदेश, ऑनलाइन अवकाश, राजस्व तथा अन्य विभाग के नए नए कार्य थे शिक्षा विभाग के माथे मढ़ कर पढ़ाई को कागजों में प्राथमिकता पर रखा है। हकीकत में अंतिम है।
अस्पताल में इंद्रधनुष देखा ?
यह केरल के एक सरकारी अस्पताल की तस्वीर है, जिसकी बेड में एक खास बात है। इसमें लिखा फ्राईडे यह सुनिश्चित करता है कि बिस्तर की बेडशीट हर दिन बदली जाती है। यह शुक्रवार की बेडशीट है। अपने यहां कितने अस्पतालों में यह देखा गया है? केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है मिशन इंद्रधनुष जिसके तहत गर्भवती माताओं और 5 साल के बच्चों के लिए टीकाकरण का अभियान चलता है। सन् 2023 में इसका पांचवां चरण शुरू हो चुका है। छत्तीसगढ़ में भी यह योजना लागू है। इसी अभियान के तहत यह भी तय किया है कि इंद्रधनुष के पैटर्न पर हर दिन चादर बदल दिए जाएंगे, जो मरीज अंग्रेजी में लिखे दिन का नाम नहीं पढ़ सकते, वे रंग से जान सकते हैं कि चादर आज बदली गई या नहीं। बिस्तर की चादरों के दिन और रंग इस प्रकार तय हैं- रविवार- बैंगनी, सोमवार-नीला, मंगलवार-नीला, बुधवार-हरा, गुरुवार-पीला, शुक्रवार-नारंगी और शनिवार-लाल। क्या आपने छत्तीसगढ़ के अस्पतालों में इसका पालन होते देखा है? गुजरात के एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा है कि उन्होंने 9 सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण किया, कहीं भी इसका पालन होते नहीं पाया। आप भी अपने पास के सरकारी अस्पतालों में पता लगा सकते हैं कि क्या उन्होंने रंग-बिरंगे चादर का इंतजाम, हर दिन के लिए अलग-अलग किया है?
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महिला कांग्रेस का दफ्तर सील होगा?
पूर्व सीएम भूपेश बघेल इस बात से खफा हैं कि रायपुर मेयर, और अन्य कई जगहों पर टिकट के लिए पार्टी नेता अपनी पत्नियों के नाम आगे बढ़ा रहे हैं। पार्टी नेताओं के प्रभाव में जिले के पदाधिकारी भी अपनी 'नेता' पत्नी को ही प्रमोट कर रहे हैं। सुनते हैं कि पूर्व सीएम ने रायपुर जिले के एक प्रमुख पदाधिकारी को फटकार भी लगाई, कि नेताओं की पत्नी को आगे किया जाएगा, तो पार्टी की महिला कार्यकर्ता क्या करेंगी?
चर्चा है कि पूर्व सीएम ने रायपुर मेयर टिकट के लिए दावेदारों को टटोलने की भी कोशिश की। कुछ नेताओं ने महिला आयोग अध्यक्ष श्रीमती डॉ. किरणमयी नायक का नाम सुझाया। भूपेश ने उन्हें फोन भी लगवाया, लेकिन किरणमयी नायक के अंबिकापुर प्रवास में होने की वजह से चर्चा नहीं हो पाई। इससे परे राजीव भवन में महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों ने आपस में बैठक भी की है। कुछ तो नेता पत्नी के नामों को लेकर यह कहते सुने गए, कि यदि इन्हीं (नेता-पत्नी)में से प्रत्याशी तय किया जाता है, तो महिला कांग्रेस के कार्यालय को सील कर देना चाहिए। चाहे कुछ भी हो, महिला-टिकट मसले पर कांग्रेस में विवाद बढ़ सकता है।
नई ईवीएम और नई आशंकाएं
विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बाद एक बार फिर ईवीएम सेंटर ऑफ अट्रैक्शन हो गया है। निकाय चुनाव में करीब पांच वर्ष बाद 11 फरवरी को ईवीएम से वोटिंग होगी। नगरीय निकायों के मतदाता एक ही मशीन में एक ही बार में दो बार बीप का बटन दबाएंगे। पहला पार्षद के लिए दूसरा महापौर और पालिका अध्यक्ष के लिए । दो वोटिंग की सुविधा वाली इस एक ही मशीन को तकनीकी रूप से मल्टी वोट मल्टी पोस्ट नाम है।
यूं तो ईवीएम अपने ईजाद के जमाने से विवाद और अविश्वास से जूझ रही है। और राज्य निर्वाचन आयोग के इस नए नाम से चुनावी मैदान के घाघ एक बार फिर संदेह, आशंका कुशंका के शब्द लेकर उतर गए हैं। अभी यह सब कुछ वाट्सएप ग्रुप में चल रहा है जल्द ही आयोग, हाईकोर्ट तक भी जा सकता है। सशंकित लोगों का कहना है कि भाजपा सुनियोजित रूप से ईवीएम की नई मशीन लेकर आई है जिसमे एक ही मशीन में अध्यक्ष पार्षद के वोट डाले जाएंगे। वीवीपैड की पर्ची भी नहीं मिलेगी। जिस मशीन के बारे में जनप्रतिनिधि न ही आम जनता जानती है।
कई जिलों में जिला निर्वाचन अधिकारी की भूमिका निभाने वाले अधिकारी जो चुनाव करवाने का अनुभव नहीं रखते ना ही इनको मशीन की पूरी जानकारी है कि कैसे आठ दिन में चुनाव कराना है तो वो मतदाता तक कैसे जानकारी पहुंचा पाएंगे। इसमें भाजपा की पूरी प्लानिंग है इसका विरोध करेंगे।
वैसे तकनीकी जानकार बताते हैं कि ये मशीन स्टेट इलेक्शन कमीशन की है। इसमें एक सेंट्रल यूनिट में 4 बैलेट यूनिट कनेक्ट किए जा सकेंगे। और एक बीयू में महापौर,अध्यक्ष और पार्षद के 12प्रत्याशियों के नाम हो सकेंगे। हर मशीन में एक बटन, नोटा का होगा।
सबसे ज्यादा बधाई मिल रही है ...... को
नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव की वजह से कैबिनेट का विस्तार टल गया है। फरवरी के आखिरी हफ्ते में विधानसभा का बजट सत्र शुरू हो सकता है। ऐसे में कैबिनेट विस्तार कब होगा, यह तय नहीं है। मगर भाजपा के छोटे-बड़े नेता पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को मंत्री बनने की अग्रिम बधाई देते नजर आए।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल के यहां विवाह समारोह में देश-प्रदेश के नेता जुटे थे। सरकार के मंत्री-विधायक, आम लोगों के आतिथ्य सत्कार में लगे थे। पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल भी पूरे समय विवाह समारोह में रहे। कईयों ने उन्हें बधाई दी, तो वो हंसकर टालते दिखेे। पूर्व स्पीकर धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत सहित अन्य सीनियर विधायकों का नाम भी भावी मंत्रियों के रूप में लिया जा रहा है, लेकिन बधाइयां तो सबसे ज्यादा अमर को ही मिल रही है। अमर मंत्री बनेंगे या नहीं, यह तो कैबिनेट विस्तार के बाद ही पता चलेगा।
गया ड्रोन पानी में...
दूरस्थ क्षेत्रों में ड्रोन के माध्यम से दवाएं पहुंचाने और पैथोलॉजी टेस्ट के लिए सैंपल इक_ा करने का महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया है, वह भी स्वास्थ्य मंत्री के अपने क्षेत्र में। नवंबर माह में सरगुजा संभाग के कई स्थानों पर इस योजना का परीक्षण किया गया, जिसमें स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल की उपस्थिति भी रही। सूरजपुर जिले में ड्रोन के जरिए भटगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक दवाएं भेजी गईं, जबकि मनेंद्रगढ़ से चिरमिरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और बस्तर के कोंडागांव से मर्दापाल तक भी इसी प्रकार का परीक्षण किया गया।
सरगुजा और बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। मरीजों को इलाज के लिए नदी-नालों को पार कर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ड्रोन के माध्यम से दवाएं पहुंचाने की यह योजना इन दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती थी, क्योंकि इससे आपातकालीन स्थिति में त्वरित उपचार मिल सकता था।
अक्टूबर में मध्य प्रदेश में इस योजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भोपाल एम्स में किया गया था। वहां ड्रोन के जरिए सैंपल और दवाएं मंगाने-भेजने का काम हो रहा है। मेघालय जैसे अन्य दुर्गम मार्ग वाले राज्यों में भी यह योजना प्रभावी रूप से लागू हो चुकी है। सरगुजा में नवंबर में जब परीक्षण हुआ, तो एक जगह से दूसरी जगह दवाएं पहुंचाने में केवल 20-25 मिनट लगे, जबकि सडक़ मार्ग से यही दूरी तय करने में डेढ़ से दो घंटे लगते हैं।
मगर, सरगुजा में इस योजना पर अमल नहीं हो पा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि बजट नहीं मिला। यह संयोग है कि पिछली कांग्रेस सरकार में भी स्वास्थ्य मंत्री सरगुजा संभाग से थे और अब भी वही स्थिति है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की कोई ठोस पहल नजर नहीं आ रही है। योजना का ठंडे बस्ते में चला जाना प्रशासनिक इच्छाशक्ति और प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करता है।
सडक़ बना आशियाना...
अंबिकापुर में महामाया पहाड़ी पर वन विभाग की जमीन पर घर बनाकर रह रहे लोगों को हाईकोर्ट ने अर्जेंट सुनवाई कर फौरी राहत तो दे दी है, पर यह केवल 5 दिन के लिए है। हाईकोर्ट का आदेश आने से पहले ही कई मकान तोड़े जा चुके थे। फिलहाल उनकी स्थिति ऐसी है। जाहिर है कि अफसरों की लापरवाही से जंगल पर कब्जा हुआ। कब्जा होता रहा, देखते रह गए- समय पर कदम नहीं उठाया गया। लोग पूछ रहे हैं कि क्या वन विभाग के अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ भी कोई एक्शन होगा?
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पटवारियों की लंबी हड़ताल
एक तरफ लंबित राजस्व मामले जल्दी निपटे इसके लिए मंत्री और अफसर जिलों में बैठकें लेते, फटकारते हैं, दूसरी तरफ पटवारियों की एक माह से भी लंबी (16 दिसंबर से) चल रही हड़ताल खत्म कराने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। सरकार ने अभी हाल ही में संघ के प्रदेश पदाधिकारियों का तबादला कर दिया, जिसने आंदोलनरत पटवारियों को और नाराज कर दिया है। राजस्व का काम ठप होने से अनुमान है कि अकेले रायपुर में 12000 से अधिक आवेदन लंबित हो चुके हैं। पूरे प्रदेश में रुके मामलों की संख्या 1.5 लाख से अधिक हो सकती है। इसमें केवल नामांतरण, फौती के मामले नहीं हैं बल्कि आय प्रमाण पत्र, ओबीसी प्रमाण पत्र, एसटीएससी जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भी लोग भटक रहे हैं। पटवारियों से बात करने से पता चलता है कि दस्तावेज तैयार करने की ऑनलाइन प्रक्रिया में काम तो करना चाहते हैं, पर सरकार ने उन्हें सुविधाएं नहीं दी। वे इंटरनेट और मोबाइल फोन पर आने वाले खर्च का भत्ता मांग रहे हैं। एक पटवारी के पीछे 2 या 3 हजार रुपये का अतिरिक्त भार सरकार को उठाना है। इन पटवारियों की संख्या प्रदेश में करीब 6 हजार है। (जो लोग समझते हैं कि पटवारियों को 2-4 हजार रुपये की क्या जरूरत, इस मांग पर उनको गौर करना चाहिए।)
वैसे पटवारियों के सारे अधिकार तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक के पास भी होते हैं। लंबित काम वे भी निपटा सकते हैं। सरकार की ओर से निर्देश भी जारी किया गया है कि अर्जेंट काम वे निपटाते चलें, मगर यह स्थायी समाधान नहीं है। आम आदमी को पटवारी से ही मुलाकात करने और कराने के लिए कितने ही पापड़ बेलने पड़ते हैं, तहसीलदार और आरआई से वे किस तरह जूझ पाएंगे?
अब जब स्थानीय चुनावों के लिए आचार संहिता लागू हो चुकी है, सरकार हड़ताल खत्म कराने के लिए केवल आश्वासन दे सकती है। पार्षद और पंच पदों के दावेदारों को भी पटवारियों से कई तरह के सर्टिफिकेट की जरूरत पडऩे वाली है। आम आदमी की नहीं सही, इनकी परेशानी की तरफ तो अफसरों का ध्यान जाएगा ही।
साप्ताहिक सुपर मार्केट
ऐसे बाजार में क्या-क्या खूबियां होती हैं? एक तो ज्यादातर सामान आदिवासी, ग्रामीण अपने हाथों से बनाकर बेचते हैं। बिकने वाली ज्यादातर चीजें पर्यावरण के अनुकूल होती हैं। थोड़ा मोल-भाव जरूर होता है, पर हर चीज किफायती। मुनाफे और लागत के बीच ज्यादा अंतर नहीं होता। मॉल या सुपर मार्केट में जब यही सामान खरीदने जाएं तो अलग महंगे दर पर मिलेगी। गांवों के साप्ताहिक बाजार में सामुदायिक भावना होती है। ग्राहक और दुकानदार के बीच जो अपनापा और रिश्ता होता है, वह सुपर मार्केट में नहीं मिलेगा। ग्रामीण साप्ताहिक बाजार में केवल जबान के भरोसे पर उधार मिल जाएगा, सुपर बाजार में क्रेडिट कार्ड से मिलेगा, मोबाइल नंबर बताना होगा। कला, संस्कृति और परंपरा के संरक्षण के मिसाल होते हैं ये बाजार, जिन पर धीरे-धीरे शहरीकरण का असर दिखने लगा है। यह तस्वीर धमतरी जिले के गट्टासिल्ली गांव की है, जो नगरी तहसील में पड़ता है। छायाकार पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर ने ली है।
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बेकसूर के खिलाफ अतिसक्रियता
आखिरकार एक्टर सैफ अली खान पर हमले के संदिग्ध आकाश कनौजिया को लंबी पूछताछ के बाद आरपीएफ ने रविवार को सुबह छोड़ दिया। पहले आकाश को मुंबई ले जाने की तैयारी थी, लेकिन असली आरोपी के गिरफ्तार होने की सूचना के बाद उसे दुर्ग रेलवे स्टेशन से जाने दिया गया।
आकाश मुंबई के कोलाबा का रहने वाला है, और जांजगीर-चांपा में उसका ननिहाल है। वह मुंबई से अपने ननिहाल आ रहा था तभी शालीमार एक्सप्रेस में आरपीएफ की टीम पूछताछ के लिए उसे अपने साथ ले गई। उसे एक्टर सैफ अली खान पर हमले का संदिग्ध बताया गया, और एक तरह से प्रचारित किया गया कि आकाश ने ही सैफ पर हमला किया। पूछताछ के पहले ही नेशनल मीडिया तक आकाश की तस्वीर साझा की जा चुकी थी। इसके बाद आनन-फानन में मुंबई की टीम फ्लाइट से रायपुर पहुंची, और दुर्ग में पूछताछ की गई।
कुछ लोग मानते हैं कि पुलिस ने सैफ अली खान पर हमले के आरोपी को पकड़े जाने की खबर जानबूझकर फैलाई है, ताकि असली आरोपी तक पहुंचा जा सके। इन सबके बीच मीडिया से चर्चा में आकाश यह कहते रहे कि मुझे क्यों पकड़ा गया है, यह बात पुलिस से पूछा जाना चाहिए। कई लोग यह भी कह रहे हैं यदि असली आरोपी नहीं पकड़ा जाता, तो पुलिस आकाश को ही आरोपी बनाकर पेश कर देती। इसमें सच्चाई भले ही न हो, लेकिन आरपीएफ ने जिस तरह आकाश को लेकर सक्रियता दिखाई है, उस पर सवाल तो उठ रहे हैं। सवाल तो मुंबई में सैफ पर हमले के आरोपी की गिरफ्तारी पर भी उठ रहे हैं।
वेतन आयोग और साइबर ठग
अभी तो बुधवार को ही केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की है। अभी तो आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और सचिव की नियुक्ति होनी है। उसके बाद नए वेतनमान की सिफारिश पर रिपोर्ट तैयार करने, लागू करने में एक वर्ष का समय लगेगा। लेकिन आयोग की सिफारिश और पहुंचने वाले वित्तीय लाभ की गणना को लेकर ऑनलाइन ठग सक्रिय हो गए हैं।
साइबर ठगों ने वेतन आयेग के नाम से फ्रॉडकरने का नया तरीका ढूंढ निकाला है। इसमें कर्मचारियों के खातों से फ्रॉड करके ऑन लाइन सारी जमा रकम का विथड्रावल का प्रपंच रच लिया गया है। कर्मचारी संघ के नेताओं ने अपने साथियों को सतर्क करते हुए कहा है कि अपने आपको इस फ्रॉड होने से बचाए। नए वेतन आयोग के नाम से कोई लिंक यदि आपके पास व्हाट्सएप के माध्यम से पहुंचता है। और अति उत्साहित होकर उस लिंक को भूलकर भी टच ना करें अन्यथा जमा रकम को भी नहीं बचाया जा सकेगा। जानकारी क्राइम ब्रांच एक अधिकारी के द्वारा साझा किया जाना बताया है और आग्रह किया कि सभी ग्रुप में जानकारी देकर सूचित करे। 8 वें वेतन आयोग की सैलरी गणना के लिए किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें अन्यथा आप अपने खाते में से 7वें वेतन आयोग के लाभ उड़ा सकते हैं ।
यह भी तो लिविंग ऑफ आर्ट है...
कैबिनेट की बैठक में कल लिए गए सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक यह है कि फरवरी में किसानों को एक साथ धान बोनस की राशि प्रदान की जाएगी। परंतु एक और निर्णय लिया गया है, जो चर्चा का विषय बन गया है। यह निर्णय ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन को अटल नगर (नवा रायपुर) में 40 एकड़ भूमि रियायती दर पर देने का है।
रियायती दर का मतलब है कि जिस भूमि की वास्तविक कीमत हजारों करोड़ रुपये हो सकती है, उसे दो, चार या दस रुपये प्रति वर्गफुट की दर से दिया जाएगा। इतनी विशाल भूमि का उपयोग किस उद्देश्य से किया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। हो सकता है कि बेंगलुरु स्थित उनके मुख्यालय की तरह यहां भी कोई बड़ा संस्थान बनाया जाए।
श्रीश्री रविशंकर के सरकारों के साथ संबंध हमेशा चर्चा में रहे हैं। उनके अच्छे संबंधों का लाभ उन्हें कई बार मिला है। हालांकि, यह भी सच है कि उनकी कई टिप्पणियों और गतिविधियों ने विवादों को जन्म दिया है। लगभग 12 वर्ष पूर्व उनका बयान विवाद का कारण बना, जब उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूल नक्सलवाद को बढ़ावा देते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने कहा था कि यदि नरेंद्र मोदी सत्ता में आते हैं, तो रुपया मजबूत होगा और एक डॉलर की कीमत 40 रुपये तक पहुंच जाएगी। जबकि वर्तमान में एक डॉलर की कीमत 85.3 रुपये है।वे जाति आधारित आरक्षण का विरोध भी कर चुके हैं। पद्म भूषण पुरस्कार को अस्वीकार करने के बाद उन्होंने पद्म विभूषण पुरस्कार को स्वीकार कर लिया, जिससे आलोचनाएं हुईं।
सबसे बड़ा विवाद साल 2016 में हुआ। यमुना नदी के किनारे आयोजित विश्व संस्कृति महोत्सव रखा गया। इस आयोजन से पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन पर 1200 मिलियन रुपये का जुर्माना लगाने की सिफारिश की थी। बाद में यह जुर्माना घटाकर 50 मिलियन रुपये कर दिया गया। हालांकि, उन्होंने केवल 25,000 रुपये का भुगतान किया और बाकी राशि चुकाने के सवाल पर कहा कि उनके लिए यह संभव नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि जेल भेजना है तो भेज दें। यह मामला अब भी न्यायालय में लंबित है।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दिल्ली में हुए पहले किसान आंदोलन पर उन्होंने कहा था कि कुछ लोग मिलकर हुकूमत नहीं चला सकते। भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में किसी को बाधा नहीं डालनी चाहिए।
श्रीश्री रविशंकर के सरकार के साथ संबंध हमेशा अच्छे रहे हों, ऐसा भी नहीं है। अहमदनगर (महाराष्ट्र) के शिंगनापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश का अधिकार देने के आंदोलन के दौरान महाराष्ट्र सरकार उनसे नाराज थी। उस समय राज्य में भाजपा-शिवसेना की सरकार थी। इसी दौरान उन्होंने कुछ जिलों में जीरो इन्वेस्टमेंट खेती का कार्यक्रम शुरू किया, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया। उन्होंने किसानों की कर्जमाफी को भी गलत ठहराया।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर उन्होंने मंदिर बनने से पहले बयान दिया था कि यह तभी बने जब सभी की सहमति हो। जब सरकारें निर्णय लेती हैं, तो ऐसे मामलों में व्यापक शोध नहीं किया जाता। यह देखा जाता है कि रियायत मांगने वाले ने अपनी प्रोफ़ाइल में क्या लिखा है। श्रीश्री रविशंकर एक आध्यात्मिक गुरु हैं, जो योग और प्राणायाम को माध्यम बनाकर जीवन को सरल बनाने का प्रयास करते हैं। उनके कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता शामिल होते रहे हैं।
मोदी के मन की दुर्लभ अरुकू कॉफी...
जब आप जगदलपुर से विशाखापट्टनम की यात्रा करेंगे, तो रास्ते में अरुकू वैली की पहाडिय़ां, घाटियां और सुरंगें आपका मन मोह लेंगी। यहां रुकने पर बोर्रा गुफाओं का अद्भुत नजारा भी देखा जा सकता है। लेकिन इन प्राकृतिक खूबसूरती के बीच अराकू घाटी में एक दुर्लभ और विशेष खेती की जाती है, जिसे अरुकू कॉफी के नाम से जाना जाता है। यह कॉफी आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जि़ले में स्थित अरुकू घाटी में उगाई जाती है, जो पूर्वी घाट की पहाडिय़ों में बसी हुई है। अरुकू कॉफी में चॉकलेट, कारमेल और हल्के फलयुक्त अम्लता का अनोखा स्वाद होता है और यह जैविक कृषि विधियों से उगाई जाती है। इसे आदिवासी किसानों और सहकारी समितियों द्वारा उगाया जाता है, जो सामुदायिक सशक्तीकरण और स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने में मदद करता है। अरुकू कॉफी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है और इसे कैफे डी कोलंबिया प्रतियोगिता में ‘सर्वश्रेष्ठ रोबस्टा’ पुरस्कार मिला है। 2019 में इस कॉफी को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग भी प्राप्त हुआ, जो इसकी विशिष्टता और गुणवत्ता को प्रमाणित करता है।
भारत में कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु कॉफी के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जबकि विश्व में ब्राजील, वियतनाम और कोलंबिया शीर्ष तीन उत्पादक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अरुकू कॉफी की विशिष्टता और महत्त्व की सराहना की, जो न केवल स्वाद में अद्वितीय है, बल्कि आदिवासी समुदायों को आत्मनिर्भर बनाने में भी योगदान करती है।
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दोनों पार्टियां देख रही हैं, गांठ के पूरे
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस, और भाजपा में मेयर-पार्षद प्रत्याशियों के नामों पर मंथन चल रहा है। कांग्रेस ने सभी निकायों में पर्यवेक्षक भेजे हैं, जो कि स्थानीय संगठन, विधायक या पराजित प्रत्याशियों से चर्चा कर दावेदारों के नामों पर चर्चा कर रहे हैं।
कांग्रेस पर्यवेक्षक दावेदारों से एक सवाल जरूर कर रहे हैं कि आप कितना खर्च कर सकेंगे? साथ ही उन्हें बता दे रहे हैं कि पार्टी किसी तरह आर्थिक मदद नहीं करेगी, उन्हें चुनाव खर्च खुद करना होगा। भाजपा में भी कुछ इसी तरह की चर्चा हो रही है।
भाजपा में मेयर टिकट के दावेदारों से सामाजिक, और राजनीतिक समीकरण के अलावा उनकी आर्थिक ताकत को लेकर भी जानकारी ली जा रही है। संकेत साफ है कि कांग्रेस, और भाजपा में जो भी चुनाव मैदान में उतरेंगे वो आर्थिक रूप से मजबूत होंगे।
दिलचस्प बात यह है कि पार्षद प्रत्याशी के लिए खर्च की कोई सीमा नहीं है। जबकि मेयर प्रत्याशी अधिकतम 10 लाख, नगर पालिका अध्यक्ष पांच लाख, और नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी तीन लाख तक ही खर्च कर सकेंगे। ये अलग बात है कि चुनाव में निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा खर्च होता है।
इतने रेट में ऐसाइच मिलेंगा
सरकार के निर्माण विभागों में रोजाना घपले-घोटाले के प्रकरण सामने आ रहे हैं। बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की मुख्य वजह भी यही रही है। मुकेश चंद्राकर ने पीडब्ल्यूडी के सडक़ निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। जानकार लोग घटिया निर्माण के लिए सरकार की पॉलिसी को भी काफी हद तक जिम्मेदार मान रहे हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सरकारी ठेकों में प्रतिस्पर्धा काफी ज्यादा है। हाल यह है कि ठेकेदार एसओआर रेट से 30-35 फीसदी तक कम में काम करने के लिए तैयार रहते हैं। इस वजह से निर्माण कार्यों में गुणवत्ता नहीं रह जा रही है। इससे परे ओडिशा सरकार ने नियम बना दिया है कि एसओआर दर से 15 फीसदी कम रेट नहीं भरे जा सकेंगे। टेंडर हासिल करने के लिए इससे ज्यादा कम रेट भरा नहीं जा सकता है। बराबर रेट भरे होने की दशा में लॉटरी निकालकर टेंडर दिए जा सकते हैं।
वेतन आयोग और 7 राज्यों के चुनाव
बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने उम्मीद से विपरीत आठवें वेतन आयोग के गठन का फैसला किया। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया थाकि यह कैबिनेट का निर्धारित एजेंडे में नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अलग से यह प्रस्ताव रखा। यह केंद्र और राज्य सरकारों के करोड़ों कार्मिकों के लिए नए वर्ष की शुरूआत में ही खुशखबरी रही। मगर जिस प्रधानमंत्री ने दो वर्ष पहले यह कह दिया हो कि अब नया वेतन आयोग नहीं बनेगा। उसका ऐसा न्यू ईयर गिफ्ट , बिना रिटर्न गिफ्ट के मिले यह संभव नहीं। यह रिटर्न गिफ्ट कार्मिकों को वोट के रूप में देना होगा। इसलिए तो घोषणा की । इस वर्ष केंद्र सरकार के नजरिए से दो अहम राज्यों पहले दिल्ली और फिर बिहार के चुनाव होने हैं। जाहिर हैं वोट बैंक ये कर्मचारी ही होंगे। पहले नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली इलाकों में बड़ी संख्या में मतदाताओं पर पडऩे वाला है। ये सरकारी कर्मचारी मध्य और दक्षिण दिल्ली में चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। ऐसा ही गणित बिहार में भी है । झारखण्ड गंवाने के बाद सुशासन बाबू (नीतिश कुमार)की दलबदलू वाली नकारात्मक छवि से निपटने वेतन आयोग ही कारगर हो सकता है?। और अगले वर्ष 2026 में आयोग की रिपोर्ट आने के दौरान केरल,पुडुचेरी ,तमिलनाडु, असम के बाद पश्चिम बंगाल में भी चुनावी खेला होना है।यह उसी की तैयारी है। नए वेतन आयोग से हजारों कर्मचारियों, पेंशनभोगियों और रक्षा कर्मियों को लाभ होगा।
इससे पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व.मनमोहन सिंह ने 2014 में भी लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले फरवरी में सातवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उस आयोग ने 2.57 गुना फिटमेंट फैक्टर की सिफारिश की थी। और वेतन मैट्रिक्स 1 में वेतन 7000 रुपये से बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति माह किया गया था। वर्तमान सरकार आने वाले हफ्तों में थोड़ी अधिक बढ़ोतरी कर सकती है। आम तौर पर वेतन पैनल का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जिसमें सेवानिवृत्त सचिव और वरिष्ठ अर्थशास्त्री इसके सदस्य होते हैं। सातवें वेतन आयोग के कारण 2016-17 के दौरान एक लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हुआ।
बाघों के लिए बचाएं जंगल
वन्यप्राणियों, विशेषकर बाघों के संदर्भ में छत्तीसगढ़ में कुछ असामान्य गतिविधियां दिख रही हैं। बारनवापारा में एक बाघ कहीं से आ गया। यहां तेंदुआ तो हैं, पर बाघ पहली बार देखा गया। उसे बाद में गुरु घासीदास अभयारण्य में ले जाकर छोड़ दिया गया। इसके बाद करीब एक पखवाड़े तक मरवाही वन मंडल और अचानकमार अभयारण्य में एक गर्भवती बाघिन विचरण कर रही थी। वह घूमते, फिरते भटकते भनवारटंक के पास आ गई, जो उसलापुर-कटनी रेल मार्ग में पड़ता है। यह बाघिन कुछ दिन बाद अमरकंटक की तराई में दिखी। फिर उसे कटनी मार्ग पर ही शहडोल के पास देखा गया। अभी उसका कुछ पता नहीं है। अब एक बाघ को साजा के रिहायशी इलाके में पूर्व मंत्री रविंद्र चौबे के फार्म हाउस के पास पाया गया। बाघ किसी को नजर नहीं आया लेकिन पंजों के निशान से वन विभाग ने बाघ की पुष्टि की है। जिला प्रशासन और वन विभाग ने अलर्ट भी जारी किया है।
ये खबरें उसी दौरान आ रही हैं जब दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में जंगल का 3 प्रतिशत विस्तार हो गया है। यह विस्तार हुआ है तो बाघ-बाघिनों को इतना भटकना क्यों पड़ रहा है? विस्तार के दावे को कई पर्यावरण प्रेमियों ने तथ्यों के साथ नकारा भी है। बाघों का मनुष्यों की आबादी के बीच दिखना कौतूहल और सनसनी की बात जरूर हो सकती है लेकिन इन जीवों को किस तरह से अपना अस्तित्व बचाने की चिंता सता रही है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। सुकून भरा घना जंगल मिले, जहां इनके लिए पर्याप्त आहार हों, तो ये शायद हमें नहीं दिखेंगे। बाघ एक शीर्ष मांसाहारी जीव है। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उनका होना बहुत जरूरी है। जिस जंगल में बाघ होते हैं, माना जाता है कि वह तस्करों से सुरक्षित रहता है। पर जब ये ही जंगल छोड़ रहे हों तो गहरी चिंता होनी चाहिए। विडंबना है, जंगल बचाने वाले बाघों के लिए जंगल नहीं बच रहे।
भविष्य ही जोखिम भरा, जान की क्या परवाह..
बीएड प्रशिक्षित विरोध कर रहे हैं, जब उन्हें राजधानी रायपुर के तूता स्थित धरनास्थल से उठाकर ले जाया जा रहा है। अदालती आदेश के बाद इनकी नौकरी छिन गई है। नौकरी देने के बाद 2900 लोग हटा दिए गए हैं। हजारों पद शिक्षकों के खाली है, समायोजन की मांग कर रहे हैं। अपनी कोई राय नहीं। बस, तस्वीर देख लीजिए।
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डेपुटेशन और बेरुखी
केंद्र सरकार खासकर गृह मंत्रालय छत्तीसगढ़ समेत अधिकांश राज्य सरकारों से खफा है। वो इसलिए कि आईपीएस अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने में राज्य आनाकानी कर रहे। दरअसल, राज्य सरकारें इन अभा संवर्ग के केंद्रीय अफसरों को अपना मानकर, प्रतिनियुक्ति के लिए अनुमति नहीं देती। इससे न तो राज्यों का कोटा पूरा हो रहा न केंद्रीय एजेंसियों में अफसरों की पूर्ति हो पा रही। इससे बड़ी संख्या में कई और जांच एजेंसियां अमले की कमी से जूझ रही है। और गृह मंत्री अमित शाह के लिए ये दोनों ही महकमे प्राथमिकता वाले हैं। कहीं ऐसा न हो कि वो किसी दिन राज्यवार संख्या और नाम भेजकर 24 घंटे में रिलीव करने का ही आदेश भेज दे।
गृह मंत्रालय के पास इस समय प्रतिनियुक्ति के लिए 234 पद रिक्त हैं। इनमें सीबीआई, सीआरपीएफ, एनआईए, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, बीएसएफ, एनएसजी, एसएसबी सहित विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों और बलों में 114 एसपी, 77 डीआईजी, 40 आईजी, दो एडीजी और एक एसडीजी के पद खाली पड़े हैं। और भी दूसरे पद हैं।आईपीएस (कैडर) नियमों के तहत, प्रत्येक राज्य में उनके कुल कैडर स्ट्रेंथ से 15 से 40 प्रतिशत वरिष्ठ ड्यूटी पद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व (सीडीआर) के रूप में निर्धारित किए जाते हैं। इस आधार पर छत्तीसगढ़ से 15 फीसदी के मान से 30 अफसर जाने चाहिए, लेकिन हैं केवल 6 अफसर ही हैं।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर कहा, ऐसा अनुभव रहा है कि कुछ राज्य/कैडर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में नाम नहीं भेजते हैं। इसके अलावा, कई बार राज्य सरकारें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के अधिक नाम भेजती हैं, लेकिन वे एसपी से लेकर आईजी तक के पदों पर नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित नहीं करती हैं।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा कि 2025 के लिए नाम प्राथमिकता के आधार पर भेजे जाएं। पिछले साल जून में गृह मंत्रालय ने इसी तरह का अनुरोध किया था लेकिन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए आईपीएस अधिकारियों को नामित करने पर राज्यों की ओर से ठंडी प्रतिक्रिया मिली थी। इस मुद्दे को हल करने के लिए, गृह मंत्रालय ने उन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की कोशिश की है जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए प्रस्ताव पर अपना नाम रखे जाने के बाद भी आने से मना करते हैं या रद्द कराने में जुटे रहते हैं। अब ऐसे अफसरों के सीआर में इस पर रिमार्क करने की पर विचार चल रहा है। या फिर सीधे रिलीविंग आर्डर ही न कर दें।
थोड़ी कमी, बाकी सब खुशी
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर शनिवार को किरण देव की दोबारा ताजपोशी हुई। छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जहां संगठन चुनाव पूरे हुए, और प्रदेश अध्यक्ष का भी चुनाव हुआ है। पार्टी हाईकमान ने राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े को चुनाव अधिकारी बनाया था। तावड़े यहां आए, तो उनकी अच्छी खातिरदारी भी हुई। मगर थोड़ी चूक भी हो गई, जिसको लेकर कुछ नेताओं ने अपनी नाराजगी भी जताई।
तावड़े के लिए भोजन का इंतजाम किया गया था, वह गुणवत्ता की नजरिए से हल्का था। सुनते हैं कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय इसको लेकर काफी नाराज रहीं। सरोज महाराष्ट्र की प्रभारी रही हैं। लिहाजा, तावड़े से उनके अच्छे संबंध हैं। सरोज के अलावा और कुछ और अन्य नेताओं ने भी खाना अच्छा न होने पर कार्यालय में मौजूद नेताओं पर अपनी नाराजगी जताई।
कार्यक्रम निपटने के बाद तावड़े, स्पीकर डॉ. रमन सिंह से मिलने भी गए। और फिर बाद में रवाना होने से पहले रमन सिंह के सीएम रहते उनके ओएसडी रहे विवेक सक्सेना के घर भी गए। विवेक सक्सेना और विनोद तावड़े, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में साथ-साथ काम कर चुके हैं। जाते-जाते सांसद बृजमोहन अग्रवाल, तावड़े से एयरपोर्ट पर मिले, और उन्हें बेटे की शादी में आने का न्योता भी दिया। कुल मिलाकर मेल मुलाकात से तावड़े काफी खुश थे, लेकिन यहां के नेता खातिरदारी में थोड़ी कमी के चलते नाखुश रहे।
बस्तर में हालात जस के तस
बस्तर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या के बावजूद प्रशासन ने कोई सबक लिया हो, ऐसा नहीं लगता। अफसरों और ठेकेदारों के बीच की साठगांठ पहले जैसी ही है। ताजा मामला गीदम नगर पंचायत का है, जहां 81 लाख रुपये की लागत से पार्क का निर्माण होना है। इसके लिए टेंडर निकाला गया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि टेंडर का विज्ञापन बस्तर के किसी अखबार में प्रकाशित नहीं किया गया। यह विज्ञापन 400 किलोमीटर दूर बिलासपुर के अखबारों में छपा, जबकि बस्तर के स्थानीय अखबारों से पूरी तरह गायब रहा।
चुनाव आ जाने के कारण नगर निकायों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका लगभग समाप्त हो गई है। सारे निर्णय प्रभारी अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे हैं। जब विज्ञापन के बस्तर में न छपने को लेकर सवाल किया गया, तो मुख्य नगर पंचायत अधिकारी का जवाब था कि वह इस पर कलेक्टर से पूछकर बताएंगे। उनके इस बयान ने कलेक्टर को भी इस विवाद में घसीट लिया, भले ही इसमें कलेक्टर की कोई भूमिका रही हो या नहीं।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि टेंडर प्रक्रिया में किसी खास ठेकेदार को लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई थी। यह कार्यप्रणाली न केवल पारदर्शिता पर सवाल है, बल्कि यह भी है कि बस्तर में हालात अभी नहीं बदलेंगे।
ऐसे अद्भुत पक्षियों को भगाया जा रहा
हंस (बार-हेडेड गूज, प्रवासी), सुरखाब (रुडी शेल्डक, प्रवासी) और महान पनकौवे (ग्रेट कार्मोरेंट, स्थानीय प्रवासी) जैसे बड़े जलीय पक्षी बिलासपुर के गनियारी स्थित शिवसागर जलाशय में एक छोटे से टीले पर धूप सेंकते हुए देखे गए।
प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के इस विश्राम स्थल के पास जिस तेज़ी से मुरुम का उत्खनन और ट्रकों से परिवहन हो रहा है, वह उनके प्राकृतिक आवास में भारी हस्तक्षेप का कारण बन रहा है। ऐसा लगता है कि इसी कारण से ये पक्षी यहां से जल्द ही रुखसत हो गए। पिछले साल भी इनकी संख्या में कमी देखी गई थी और यदि यही स्थिति बनी रही, तो आशंका है कि ये पक्षी भविष्य में यहां आना बंद कर देंगे। (rajpathjanpath@gmail.com)
नहले पे दहला
कल वन कर्मचारी संघ की नई कार्यकारिणी ने शपथ ली। दीनदयाल ऑडिटोरियम में आयोजित भव्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वन मंत्री केदार कश्यप थे, और अध्यक्षता विधायक पुरंदर मिश्रा ने की। वन कर्मचारियों को संबोधित करते हुए दोनों ने ही वन और वनवासियों की पौराणिक और ऐतिहासिक बातें रखीं। पहले बोले पुरंदर मिश्रा, कहा- वन सभी के लिए आश्रय स्थल रहे हैं। भगवानों ने भी वनों में दिन गुजारे। जन कल्याण के लिए ऋषि मुनियों ने तपस्याएं। उन्होंने हास-परिहास में कहा इस कलयुग में ईश्वर का सान्निध्य हासिल करना हो, वरदान लेना हो या कुछ लाभ प्राप्त करना हो तो हम ब्राह्मण के पास आएँ, हम ईश्वर तक पहुंचाएंगे।
मिश्रा जी यहीं नहीं रुके करीब आधे घंटे का उनका संबोधन ब्राह्मणों पर ही केंद्रित रहा। आधे घंटे तक ब्राह्मण-ब्राह्मण सुनकर दिग्गज आदिवासी नेता से भी रहा नहीं गया। अपने संबोधन की बारी का पूरा फायदा उठाया और ब्राह्मणवाद पर तीर छोड़े। केदार कश्यप ने आदिवासियों को वनों का मूल निवासी बताया। और कहा अब हालत यह है कि ब्राह्मण, अपने पूर्वज ऋषि मुनियों की वनों-गुफाओं में तपस्या, आश्रम व्यवस्था का हवाला देकर स्वयं को वनवासी बताकर आदिवासी घोषित करने की मांग करने लगे हैं। केदार ने कहा कि बस्तर में तो इसके लिए धरना प्रदर्शन भी किए गए।
इस नहले पे दहले को सुनकर ऑडिटोरियम में हंसी ठ_े गूंजे। सही भी है हाल के वर्षों में केंद्र राज्य सरकारों से वनवासियों को मिल रहे फायदे को देखते हुए ब्राह्मणों का भी हृदय परिवर्तन होना कोई आश्चर्य की बात नहीं।
इस बरस अच्छे दिन, या वादों का खेल?
दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की नई सरकार बनी। चुनावी घोषणा पत्र में हर साल एक लाख नौकरियां देने का वादा प्रमुख था। लेकिन 2024 पूरा बीत गया और छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) को छोडक़र शायद ही किसी अन्य भर्ती प्रक्रिया का ठोस अंजाम हुआ हो।
जनवरी 2024 में व्यापमं ने मत्स्य निरीक्षक के 70 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया, लेकिन उसकी प्रक्रिया अभी तक अधूरी है। सिपाही भर्ती में धांधली के चलते प्रक्रिया विवादों में उलझ चुकी है। इसके विपरीत, व्यापमं पहले हर साल करीब दर्जनभर विज्ञापन विभिन्न पदों के लिए निकालता था।
अब 2025 में जब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव नज़दीक हैं, व्यापमं ने कई महत्वपूर्ण पदों जैसे आबकारी आरक्षक, सहायक विस्तार अधिकारी, सहायक परियोजना अधिकारी, सब इंजीनियर आदि के लिए भर्ती कैलेंडर जारी किया है। युवाओं में उम्मीदें जगी हैं कि शायद इस बार कुछ ठोस होगा।
यह स्थिति 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले से मिलती-जुलती है। रेलवे ने भी बड़े पैमाने पर भर्ती कैलेंडर जारी किया था। हालांकि रेल मंत्रालय उस कैलेंडर के तहत अधिकांश भर्तियां पूरी करने में नाकाम रहा।
छत्तीसगढ़ के युवा अब उम्मीद कर रहे हैं कि 2025 में सरकार अपने वादे के मुताबिक भले ही एक लाख नौकरियां न दे पाए, लेकिन भर्ती कैलेंडर में शामिल पदों पर समयबद्ध तरीके से प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ पूरी कर ले। 2024 की तरह इस साल का भी खाली गुजर जाना युवाओं की नाराजगी को बढ़ा सकता है। भारत के सबसे बड़े धनिक उद्योगपति गौतम अदाणी 60 हजार करोड़ का निवेश करने का ऐलान करके चले गए, पहले पन्ने में छपी खबरों में बेरोजगार युवा अपनी जगह ढूंढ रहे हैं।
सरकार का एक विभाग साल में तीन-चार बार रोजगार मेला लगाता है। हजारों लोग इंटरव्यू देने पहुंचते हैं, पर नौकरी तो दो चार लोग ही स्वीकार करते हैं। ये उद्योग जिस वेतन का ऑफर दे रहे हैं, वह न्यूनतम मजदूरी से भी कम होती है। सरकार इनकी कान क्यों नहीं उमेठती। ये उद्योग राज्य की जमीन सस्ते दामों पर हासिल करते हैं, प्रदूषण फैलाते हैं, पानी और दूसरे संसाधनों का रियायती दर पर इस्तेमाल करते हैं। पर, स्थानीय युवाओं को उचित पारिश्रामिक देने के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या इस साल वाकई बड़ी संख्या में युवाओं को सम्मानजनक रोजगार मिलेगा?
अमीरी पल भर में खाक
लास एंजिल्स में हाल ही में लगी आग को एक ऐतिहासिक तांडव के रूप में देखा जा सकता है। यह आग, जिसे हाल के वर्षों की सबसे बड़ी आगजनी की घटना माना जा रहा है, हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे मानव निर्मित संरचनाएँ और संपत्तियां, चाहे वे कितनी भी महंगी और भव्य क्यों न हों, प्रकृति के सामने कितनी अस्थायी और असहाय हैं।
लास एंजिल्स में लगी आग ने कई घरों को नष्ट कर दिया, जिनमें से एक घर की कीमत भारतीय मुद्रा में लगभग 300 करोड़ रुपये थी। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि भौतिक संपत्ति और धन का कोई स्थायी मूल्य नहीं है जब प्रकृति अपनी पूरी ताकत दिखाती है। प्रकृति की शक्ति के सामने मानव की सीमाएं सीमित हैं। (rajpathjanpath@gmail.com)
कांग्रेस दारू फूंक-फूंककर पीना नहीं सीख रही
प्रदेश में शराब घोटाले पर कांग्रेस घिरी हुई है। पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा समेत आधा दर्जन से अधिक अफसर-कारोबारी ईडी के घेरे में आ चुके हैं। कुछ और को ईडी जल्द गिरफ्तार कर सकती है। इस घटना से कांग्रेस ने कोई सबक सीखा है, ऐसा दिखता नहीं है। पार्टी ने हाल ही में एक जिले में अध्यक्ष पद पर एक ऐसे शख्स को बिठा दिया है, जो कि शराब कोचिए के रूप में जिले में कुख्यात रहा है।
मूलत: बिहार रहवासी नवनियुक्त जिलाध्यक्ष एक बड़े शराब के बड़े ठेकेदार के मैनेजर के रूप में बरसों सेवाएं देते रहा है। जिले के भीतर अवैध शराब बिकवाने में उसकी भूमिका अहम रही है। ये अलग बात है कि वो एक बार वार्ड का चुनाव जीतने में कामयाब रहा। अब पार्टी ने उसे जिले का मुखिया बना दिया है।
चर्चा है कि उसे अध्यक्ष बनवाने में एक भूतपूर्व मंत्री की अहम भूमिका रही है। इसकी शिकायत पार्टी संगठन में अलग-अलग स्तरों पर हुई है। ये अलग बात है कि सुकमा जिले का पार्टी कार्यालय भी शराब के पैसे से ही बनने का खुलासा ईडी ने किया है। और अब पुराने कोचिए के आने से पैसे की कमी नहीं होगी।
मंत्री अकेले नहीं?
अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित जमीन बिल्डर को देने के मसले पर पिछले दिनों खूब हो हल्ला मचा था। सरकार को जांच बिठानी पड़ी थी, और फिर कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद उक्त जमीन फिर से कॉलेज के नाम करने पर विचार चल रहा है। मगर राजस्व मंत्री की भूमिका पर अब भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
सुनते हैं कि भाजपा के लोगों ने ही सीधे राजस्व मंत्री से पूछ लिया कि जमीन कॉलेज के लिए आरक्षित की गई थी, फिर भी उसे रामा बिल्डकॉन को कैसे दे दिया गया? इस पर राजस्व मंत्री ने जो मासूम सा जवाब दिया, उसकी पार्टी के अंदरखाने में खूब चर्चा हो रही है।
राजस्व मंत्री ने निजी चर्चा में कहा बताते हैं कि यह फैसला कोई अकेले का नहीं था। आबंटन कमेटी के सभी सदस्य चाहते थे कि बिल्डर को जमीन दे दी जाए, फिर क्या जमीन आबंटन की अनुशंसा कर दी गई। यही वजह है कि आबंटन से जुड़ी फाइल में कई गड़बडिय़ां होने के बाद भी राजस्व मंत्री की कोई जवाबदेही तय नहीं हुई।
बस भाईचारे को याद रखिये
अंबिकापुर में हाल ही में एक भव्य महामाया प्रवेश द्वार का निर्माण हुआ। एक सप्ताह पहले, पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने इस प्रवेश द्वार का लोकार्पण किया था। लेकिन कल मंत्री केदार कश्यप और मंत्री लक्मीपति राजवाड़े के हाथों उसी द्वार का फिर लोकार्पण कर दिया गया।
जब भाजपा के नेताओं से इस दोहरे लोकार्पण के कारण के बारे में पूछा गया, तो जवाब मिला कि पहले यह अधूरा था। मगर स्थानीय लोग इस दावे को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पहले और अब के बीच द्वार पर कोई भी काम नहीं हुआ। अगर पहले यह अधूरा था, तो लोकार्पण क्यों हुआ? और अगर अब यह पूरा है, तो पहले भी इसे पूरा माना जा सकता था।
नगरीय निकाय चुनाव करीब हैं। कांग्रेस ने अपनी उपलब्धियों को दिखाने के लिए लोकार्पण का आयोजन भव्य रूप से किया, लेकिन सत्ता में रहते हुए, भाजपा यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि किसी उद्घाटन या लोकार्पण का श्रेय कांग्रेस को जाए। इस राजनीतिक खींचतान में द्वार सियासी मंच बन गया।
राजनीतिक उठापटक अपनी जगह है, लेकिन अंबिकापुर की सामाजिक समरसता इस पूरे प्रकरण का उज्ज्वल पहलू है। इस द्वार के निर्माण में मुस्लिम पार्षदों ने भी अपनी निधि से एक-एक लाख रुपये का योगदान दिया। यही वह भावना है जिसे याद रखना चाहिए—सामाजिक सौहार्द और
भाईचारे की। (rajpathjanpath@gmail.com)
बड़े नेता और छोटे चुनाव!
नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा इस हफ्ते हो सकती है। भाजपा ने प्रत्याशी चयन के लिए मापदण्ड भी तय कर लिए हैं। रायपुर जैसे बड़े नगर निगमों में पार्टी विधानसभा टिकट के दावेदार रहे नेताओं को वार्ड चुनाव लड़ा सकती है।
सुनते हैं कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में पिछले दिनों पार्टी संगठन के नेताओं की अनौपचारिक बैठक हुई। जिसमें प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार की रणनीति पर चर्चा की गई। विशेषकर नगर निगमों में पार्टी के सीनियर नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया गया है ताकि मेयर प्रत्याशी को इसका फायदा मिल सके। रायपुर मेयर पद महिला, और बिलासपुर पिछड़ा वर्ग आरक्षित है।
पार्टी की सोच है कि यदि मेयर प्रत्याशी कमजोर रहे, तो भी वार्ड में मजबूत पार्षद प्रत्याशी होने से मेयर प्रत्याशी को इसका फायदा मिल सकता है। हालांकि रायपुर में विधानसभा टिकट के दावेदार नेता निगम-मंडलों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। ये नेता पार्षद चुनाव लडऩे के लिए तैयार होंगे या नहीं, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
मंत्रियों की तल्खी, अब तक चार
कोरबा, जांजगीर-चांपा सहित अन्य जिलों में माइक्रो फाइनेंस और चिटफंड कंपनियों के जाल में फंसकर हजारों महिलाओं पर लगभग 125 करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ गया है। ये महिलाएं मुख्यत: रोज़ी-मजदूरी या छोटे-मोटे व्यवसाय करने वाली हैं। माइक्रो फाइनेंस कंपनियां बिना जमीन-ज्वेलरी गिरवी रखे, केवल आधार कार्ड के आधार पर 25-30 हजार रुपये तक का लोन देती हैं।
एक फ्रॉड कंपनी, फ्लोरा मैक्स ने इन महिलाओं से यह कहकर लोन निकलवाया कि वह इस रकम से व्यवसाय करेगी और अच्छा मुनाफा देगी। अब कंपनी के लोग कर्ज की रकम लूटकर फरार हैं। फाइनेंस कंपनियां इन महिलाओं पर कर्ज चुकाने का दबाव बना रही हैं, जिससे उनकी परेशानियां बढ़ गई हैं। महिलाओं की रातों की नींद उड़ गई है, वे घबराई हुई हैं, और परिवारों में कलह बढ़ रहा है।
पहले ये महिलाएं रायपुर में प्रदर्शन कर चुकी हैं, लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। अब जब वसूली एजेंटों का दबाव बढ़ा, तो उन्होंने कोरबा में कृषि मंत्री रामविचार नेताम और उद्योग मंत्री लखन लाल देवांगन को घेर लिया। महिलाएं कर्ज माफी की मांग कर रही थीं, जबकि मंत्री समझा रहे थे कि ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि कंपनी के लोगों को पकडक़र उनसे पैसा वसूलने का प्रयास किया जाएगा।
हालांकि, यह भी व्यवहारिक नहीं लगता। भाजपा सरकार के कार्यकाल में चिटफंड कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपये की उगाही की थी। कांग्रेस सरकार ने इस मुद्दे पर काम शुरू किया, लेकिन अब तक पीडि़तों को 3-4 प्रतिशत रकम भी वापस नहीं मिल सकी है।
कोरबा में, मंत्री संयमित आचरण नहीं रख पाए। महिलाओं से उनका बर्ताव ठीक नहीं था। लखन लाल देवांगन ने तो महिलाओं को ‘फेंकवा देने’ तक की धमकी दे दी। इससे पहले, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल झोलाछाप डॉक्टरों के मामले में और मंत्री केदार कश्यप नारायपुर के छात्रावासों की दुर्दशा के मामलों में इसी तरह तल्खी दिखा चुके हैं। अब ऐसे मंत्रियों की संख्या बढक़र चार हो गई है, जो जनता के सवालों पर धीरज खो रहे हैं।
सत्तारूढ़ संगठन चुनाव, किसकी चली?
भाजपा के जिला अध्यक्षों के चुनाव निपट गए। सोमवार को कवर्धा जिलाध्यक्ष का चुनाव हुआ। पिछले कुछ दिनों से राजनांदगांव, और कवर्धा जिलाध्यक्ष के चुनाव को लेकर स्थानीय नेताओं में खींचतान चल रही थी। विवाद इतना ज्यादा था कि दोनों जिलों के चुनाव हफ्तेभर टालने पड़े।
राजनांदगांव में स्थानीय सांसद संतोष पाण्डेय, अपने समर्थक सौरभ कोठारी को जिलाध्यक्ष बनवाना चाहते थे। इससे पूर्व सीएम रमन सिंह के समर्थक सहमत नहीं थे। आखिरकार रमन सिंह की पसंद पर कोमल सिंह राजपूत को जिले की कमान सौंपी गई, और सौरभ कोठारी को महामंत्री बनाया गया। दिलचस्प बात यह है कि राजनांदगांव अकेला जिला है जहां अध्यक्ष के साथ महामंत्री भी घोषित किए गए।
कुछ इसी तरह कवर्धा जिलाध्यक्ष को लेकर भी खींचतान चल रही थी। कवर्धा जिलाध्यक्ष के मसले पर डिप्टी सीएम विजय शर्मा, सांसद संतोष पाण्डेय, और विधायक भावना बोहरा के बीच आपस में सहमति नहीं बन पा रही थी। विजय शर्मा, देवकुमारी चंद्रवंशी को अध्यक्ष बनवाना चाह रहे थे, तो संतोष पाण्डेय, और भावना बोहरा, राजेन्द्र चंद्रवंशी को अध्यक्ष बनाने पर जोर दे रहे थे।
आखिरकार प्रदेश संगठन के हस्तक्षेप पर विजय शर्मा को पीछे हटना पड़ा, और राजेन्द्र चंद्रवंशी को अध्यक्ष घोषित किया गया। इस बार जिलाध्यक्षों के चयन में सरकार के ज्यादातर मंत्रियों की नहीं चली है। चर्चा है कि मंत्रियों के जिलों में उनके विरोधी माने जाने वाले नेता संगठन के मुखिया बने हैं। ऐसे में मंत्रियों के इलाके में एक अलग पॉवर सेंटर बन गया। अब संगठन किस तरह चलता है, यह देखना है।
महाकुंभ में छत्तीसगढ़
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक विशेष पंडाल का निर्माण किया है। यह राज्य की संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करता है। प्रवेश द्वार पर गौर मुकुट की सजावट और छत्तीसगढ़ के आध्यात्मिक स्थलों, आदिवासी कला, पारंपरिक आभूषण, वस्त्र और ग्रामीण जनजीवन की झलक है। पंडाल को छत्तीसगढ़ के विविध रंगों से सजाया गया है। पंडाल में वर्चुअल रियलिटी हेडसेट और 180 डिग्री वीडियो डोम के माध्यम से छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति की जानकारी भी साझा की जा रही है।
भाजपा-कांग्रेस के कई प्रमुख नेता अपना वार्ड आरक्षित होने के बाद अड़ोस-पड़ोस के वार्डों में अपनी संभावना तलाश रहे हैं। इसका वहां अभी से विरोध शुरू हो गया है। स्वामी आत्मानंद वार्ड के लोगों ने तो बकायदा एक बोर्ड लगाकर राजनीतिक दलों से आग्रह किया है कि बाहरी व्यक्ति को प्रत्याशी न बनाया जाए...।
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रौशन चंद्राकर की रौशनी
भूपेश सरकार में कस्टम मिलिंग घोटाले की ईडी पड़ताल कर रही है। ईडी ने करीब 5 सौ राइस मिलर्स को नोटिस दिया था, और बारी-बारी से बयान लिए। चर्चा है कि सभी राइस मिलर्स ने लिखित बयान में कहा है कि प्रोत्साहन राशि जारी करने के एवज में प्रति क्विंटल 20 रुपए उगाही की जाती थी।
जानकार बताते हैं कि ईडी के पास घोटाले से जुड़े तमाम साक्ष्य मौजूद हैं। ईडी ने जेल में बंद मार्कफेड के तत्कालीन एमडी मनोज सोनी, और मिलर्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रौशन चंद्राकर के वाट्सएप चैट निकलवाए हैं। रौशन चंद्राकर अपने मोबाइल से मार्कफेड एमडी को मिलर्स का नाम मैसेज करते थे, और फिर अगले दिन मिलर्स के खाते में राशि जारी कर दी जाती थी।
बताते हैं कि चंद्राकर ने ऐसे करीब 5 सौ मिलर्स के नाम अलग-अलग समय में मार्कफेड एमडी को भेजे थे। कुल मिलाकर सवा सौ करोड़ से अधिक की उगाही मिलर्स से की गई। सर्वविदित है कि रौशन चंद्राकर, कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल का करीबी है। और वे रामगोपाल अग्रवाल अभी ईडी की गिरफ्त से बाहर है। अब आगे क्या होता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
पड़ोस में कूद रहे हैं नेता !
रायपुर नगर निगम के पूर्व मेयर एजाज ढेबर ने सभापति प्रमोद दुबे के वार्ड में नववर्ष पर घर-घर मिठाइयों का पैकेट, और फस्ट एड दवाईयों की किट बटवाए, तो इसकी खूब चर्चा हो रही है। आम तौर पर दिवाली पर मिठाई-गिफ्ट का चलन रहा है, लेकिन पहली बार ढेबर की तरफ से नववर्ष पर मिठाई बंटवाई गई। दिलचस्प बात यह है कि ढेबर, और प्रमोद दुबे एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में सभापति के भगवती चरण शुक्ल वार्ड में ढेबर की सक्रियता के मायने तलाशे जा रहे हैं।
चर्चा है कि ढेबर भगवती चरण शुक्ल वार्ड से चुनाव लडऩा चाहते हैं। उनका पैतृक घर भी इसी वार्ड में आता है। जबकि वार्ड पार्षद रहे प्रमोद दुबे यहां के लिए बाहरी रहे हैं। बावजूद इसके वार्ड चुनाव में रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की थी। अंदर की खबर यह है कि प्रमोद दुबे खुद वार्ड चुनाव लडऩे के बजाए अपनी पत्नी दीप्ति दुबे को मेयर प्रत्याशी बनवाना चाहते हैं। हल्ला यह भी है कि इसके लिए ढेबर, और प्रमोद दुबे के बीच समझौता भी हो गया है। ढेबर, प्रमोद दुबे की पत्नी की उम्मीदवारी का समर्थन कर सकते हैं। इन चर्चाओं में कितना दम है, यह तो पता नहीं, लेकिन वार्डवासी मिठाई-दवाई किट मिलने से काफी खुश हैं।
खतरे में बाघिन की जान
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) ने वन्यजीव रहवास वाले क्षेत्रों में रेलवे लाइनों की योजना बनाने के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए हैं। सबसे पहले यही कहा गया है कि ऐसे इलाकों से रेल लाइन गुजारने की योजना जहां तक संभव हो, न बनाएं। इसके बजाय वैकल्पिक मार्गों का चयन करें। यदि अत्यधिक आवश्यकता हो और रेल लाइन ऐसे इलाकों से गुजरनी ही हो, तो वन विभाग की मदद से गहन सर्वेक्षण किया जाए। बाघ, हाथी, तेंदुआ और बायसन जैसे वन्यजीवों के लिए ट्रैक के साथ अंडरपास या ओवरपास का निर्माण किया जाए। इसके साथ ही रेलवे के बुनियादी ढांचे में वन्यजीव-अनुकूल डिजाइन सुविधाओं को शामिल करके वन्यजीवों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
हाल ही में, कटनी मार्ग पर एक मालगाड़ी के लोको पायलट द्वारा शूट किया गया एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। वीडियो में एक बाघिन को बिलासपुर-कटनी मार्ग पर शहडोल के पास तीसरी लाइन को पार करते हुए देखा गया। बाघ-बाघिन का इस तरह दिनदहाड़े दिखना रोमांचक और अद्भुत लगता है। वीडियो बनाने वाले रेलवे कर्मचारी ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं। लेकिन इस दृश्य के पीछे रेलवे की लापरवाही उजागर होती है, जिसके चलते बाघिन और अन्य वन्यजीवों को ट्रैक पार करने में जान का खतरा उठाना पड़ रहा है।
यह तीसरी रेलवे लाइन हाल ही में तैयार हुई है, जबकि डब्ल्यूआईआई के निर्देश पहले से मौजूद थे। सवाल उठता है कि निर्माण के दौरान क्या यह पहचान नहीं की गई कि इस क्षेत्र में संवेदनशील वन्यजीव गुजरते हैं? दिन के समय मालगाड़ी के ड्राइवर ने बाघिन को देखकर अपनी गति कम कर ली, लेकिन रात के अंधेरे में ऐसे वन्यजीवों के लिए यह खतरा और बढ़ जाता है। कुछ वर्ष पहले बेलगहना के पास एक तेंदुआ रात में रेलवे ट्रैक पर हादसे का शिकार हो गया था।
यह बाघिन हाल ही में कटनी मार्ग के ही भनवारटंक स्टेशन के आसपास देखी गई थी। इसे गर्भवती बताया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में घूमने के बाद यह मध्यप्रदेश के अमरकंटक की तराई से होते हुए शहडोल क्षेत्र तक पहुंच गई है। शायद इसे अपने प्रजनन के लिए कोई सुरक्षित ठौर नहीं मिल रहा है। यह बाघिन अपनी और अपने होने वाले शावकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित लगती है।
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तीन डी का अवैध कारोबार
यूपी की सीमा से सटे सरगुजा के जिलों में तीन ‘डी’ यानी डीजल, दारू, और धान का जोर है। डीजल, यूपी में 10 रुपए सस्ता है। इस वजह से बड़े उपभोक्ता यूपी से डीजल मंगवाते रहे हैं। मगर इससे छत्तीसगढ़ सरकार को वैट के रूप में करीब साढ़े 3 सौ करोड़ का सालाना नुकसान हो रहा था। अब इसके रोकथाम के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल में बड़े उपभोक्ताओं के लिए वैट में कटौती की है।
इसी तरह यूपी से अवैध रूप से शराब की तस्करी हो रही है। इस पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लग पाया है। इससे परे यूपी, और झारखंड से अवैध रूप से धान लाकर यहां बेचा जा रहा है। छत्तीसगढ़ में धान की सरकारी खरीदी चल रही है। यहां देश में सबसे ज्यादा कीमत पर धान खरीदा जा रहा है।
बताते हैं कि कुछ समय पहले बलरामपुर जिले में दो ट्रक धान पकड़ा भी गया था। नए नवेले अच्छी साख वाले तहसीलदार ने तुरंत कार्रवाई कर पुलिस को इसकी सूचना दी। मगर बाद में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, और धान को छोड़ दिया था। मामला बढ़ा तो एसपी तक बात पहुंची। इसके बाद कार्रवाई की गई। कुल मिलाकर सीमावर्ती जिलों में प्राथमिक सोसायटियों में धान खपाया जा रहा है। प्रभावशाली लोगों की वजह से दारू, धान और डीजल के अवैध कारोबार पर प्रभावी नियंत्रण नहीं लग सका है। इससे राज्य को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
मैनपाट में भी फार्महाउस
पीएससी घोटाले की सीबीआई जांच कर रही है। पीएससी के पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के बेटे और भतीजे समेत आधा दर्जन से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जांच में कई नए तथ्य सामने आए हैं। सुनते हैं कि सोनवानी का मैनपाट में भी फार्महाउस है, और यहां रहकर कई डील फाइनल की थी। सोनवानी सरगुजा कमिश्नर रह चुके हैं। उनके अधीनस्थ अधिकारियों के बच्चे भी पीएससी में सिलेक्ट हुए थे। सीबीआई इसकी पड़ताल कर रही है। फिलहाल तो तीन-चार अभ्यर्थी ही घेरे में आए हंै। आने वाले दिनों में कुछ और गिरफ्तारियां हो सकती है।
कुलपतियों की नियुक्ति फिर रुकेगी?
छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के अधीन कुल 15 विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से तीन विश्वविद्यालय इस समय संभागायुक्तों के प्रभार में संचालित हो रहे हैं। इंदिरा गांधी संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ और महात्मा गांधी उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय, पाटन के कुलपतियों को हटाए जाने के बाद स्थायी नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। इन विश्वविद्यालयों का प्रभार क्रमश: दुर्ग और रायपुर संभाग के संभागायुक्तों को सौंपा गया है। हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग का कार्यभार भी संभागायुक्त के पास है।
रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ल को स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, जबकि वहां भी स्थायी कुलपति की नियुक्ति लंबित है। पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति डॉ. बंश गोपाल सिंह का कार्यकाल जल्द समाप्त होने वाला है। वहीं, अटल यूनिवर्सिटी बिलासपुर के कुलपति एडीएन वाजपेयी का कार्यकाल भी इसी साल खत्म हो जाएगा। नए कुलपतियों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पहली बार, दावेदारों से उनकी काबिलियत के दस्तावेजों के साथ उपलब्धियों का स्लाइड शो के माध्यम से प्रेजेंटेशन लिया जा रहा है।
इस बीच यूजीसी ने कुलपतियों की नियुक्ति के मापदंड में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। अब 10 वर्षों के अध्यापन अनुभव की अनिवार्यता को समाप्त करने की बात है। किसी भी क्षेत्र के अनुभवी और अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले व्यक्ति को पात्र माना जाएगा। वैसे बहुत पहले ऐसा होता रहा है। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति पद पर आईपीएस विभूति नारायण राय और गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के पहले कुलपति रहे आईएएस शरतचंद्र बेहार इसके उदाहरण रहे हैं।
प्रस्तावित मसौदे का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों ने विरोध किया है। उनका आरोप है कि इस बदलाव से संघ के लोगों को नियुक्त करने का रास्ता खोला जा रहा है। साथ ही कहा है कि शिक्षा राज्य का विषय है, केंद्र इसमें अनावश्यक हस्तक्षेप कर रही है।
नए मसौदे में राज्यपाल (कुलाधिपति) के अधिकार बढ़ाने की बात भी शामिल है। चयन प्रक्रिया में राज्यपाल का वर्चस्व होगा, जो पहले राज्य सरकार के साथ टकराव का कारण बनता रहा है। पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान भी ऐसा देखा गया था।
छत्तीसगढ़ में जब मापदंड विस्तारित हो चुके हैं और राज्यपाल को अधिक अधिकार मिलने जा रहे हैं, सवाल यह है कि क्या राज्यपाल वर्तमान चयन प्रक्रिया को रोकेंगे और नए मसौदे के लागू होने का इंतजार करेंगे?
अपराधी का महिमामंडन
प्रयागराज कुंभ सबके लिए है। बलात्कारियों के लिए भी। अदालत से दोषी ठहराए जाने के बाद सजा काट रहे आसाराम के अनुयायियों को फर्क नहीं पड़ता, वह उनके लिए अब भी संत है। प्रशासन और सरकार को भी लगता है कोई दिक्कत नहीं।
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वैश्य समाज का दबदबा घटा
अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने से भाजपा को बनिया जैन पार्टी की संज्ञा दी जाती रही है। 90 के दशक में सुंदरलाल पटवा सीएम थे, तब प्रदेश अध्यक्ष पद पर लखीराम अग्रवाल काबिज थे। दोनों की वजह से भाजपा में वैश्य समुदाय का दबदबा कायम रहा।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद डॉ.रमन सिंह सीएम जरूर रहे लेकिन वैश्य समाज की हैसियत कम नहीं हुई। सरकार से लेकर संगठन में रूतबा कायम रहा। यह पहला मौका है जब छत्तीसगढ़ भाजपा के 35 संगठन जिलों में से 34 में चुनाव हो गए, और वैश्य समाज का एक भी अध्यक्ष नहीं बना।
रविवार को राजनांदगांव जिलाध्यक्ष का चुनाव हुआ, वहां सौरभ कोठारी के जिलाध्यक्ष बनने की उम्मीद थी। स्थानीय सांसद संतोष पांडेय ने उन्हें जिलाध्यक्ष बनाने के लिए दम भी लगाया था लेकिन उन्हें अध्यक्ष की जगह महामंत्री पद से संतोष करना पड़ा। यहां कोमल सिंह राजपूत को जिलाध्यक्ष बनाया गया जो कि पिछड़ा वर्ग से आते हैं।
भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग पर विशेष ध्यान दिया है, और आदिवासी व पिछड़ा वर्ग के नेताओं को आगे बढ़ा रही है। इन सबके बीच में ब्राम्हण और राजपूत नेताओं को जगह मिल गई है लेकिन वैश्य समुदाय हाशिए पर दिख रहे हैं। मंत्रियों में भी बृजमोहन अग्रवाल के जाने के बाद एक भी वैश्य समाज के मंत्री नहीं हैं। वैसे कैबिनेट विस्तार होना है, और इसमें वैश्य समाज को प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद है। संगठन में भी नियुक्तियां होनी है जिसमें वैश्य समुदाय के नेताओं को जगह मिलना तय माना जा रहा है। लेकिन पार्टी के भीतर पहले जैसा रूतबा रहेगा, इसकी संभावना कम दिख रही है।
रिश्वतखोर बीईओ और वाट्सऐप चैट
एसीबी ईओडब्लू ने शुक्रवार को बीईओ, लिपिक और एक मध्यस्थ शिक्षक को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। इसके बाद शिक्षक, कर्मचारी संगठनों के वाट्सएप ग्रुप में आक्रोश, विडंबनाएं और पोल खोलते पोस्ट कर रहे है। इन शिक्षकों का कहना है कि यह इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था के पतन के पीछे असली दोषी कौन हैं? यह घटना न केवल भ्रष्टाचार की गहराई को उजागर करती है? यह गिरफ्तारी उन ईमानदार शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए भी निराशाजनक हैं, जो व्यवस्था में सुधार और प्रगति की उम्मीद रखते हैं। यह समय है कि ऐसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कदम उठाए जाएँ और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।
दूसरे ने लिखा
जो शिक्षक अपने छात्रों को ईमानदारी कर्तव्य परायणता अन्याय के प्रति लडऩे की शिक्षा देता है।वही शिक्षक अपने ही सिस्टम से हार जाता है। शिक्षक ऐसा पद है जो पूरी जिंदगी एक चवन्नी रिश्वत मिलने की कोई गुंजाइश नहीं रहती। लेकिन अपना कार्य करवाने के लिए अपने ही उच्च अधिकारियों को अपने वेतन का पैसा देना पड़ता है। तबादले के लिए पैसा, रिलीव होने के लिए पैसा, एलपीसी जारी करने पैसा, जीपीए पासबुक संधारण करने पैसा, सर्विस बुक संधारण करने पैसा, उच्च परीक्षा में बैठने अनुमति हेतु पैसा, बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता द्य ऐसे में अब शिक्षक बच्चों को क्या ईमानदारी एवं कर्तव्य परायणता का शिक्षा दे पाएगा।
तीसरे ने कुछ पोल खोलते तथ्य रखा- लिखा राजधानी का एक संकुल प्रभारी की किसी आईएएस से कम इंकम नहीं है। दिवंगत पिता की जगह अनुंकपा नियुक्ति पाकर बीते 20 वर्ष से रायपुर में ही पदस्थ है। एक हाथ ला दूसरे हाथ आर्डर की नीति पर काम करते चार-चार गाड़ी, इतने ही मकानों का मालिकाना हक हासिल कर लिया है। और सालाना एसीआर में यह गरीब शिक्षक ही है। सखाराम दुबे स्कूल के आफिस का मानो यह आईएएस हो। पर है बीईओ से नीचे। आखिरी में लिखा यह अकेला विरला नहीं है प्रदेश में ऐसे दर्जनों होंगे ।
इसके जवाब में चौथे ने लिखा-
अयोग्य और अपात्र लोग चाटुकारिता, नेतागिरी और पैसे के दम पर अधिकारी के पद को पाकर केवल वसूली करते है और अपने राजनीतिक आकाओं को खुश रखने का काम करते है। मौका मिला है तो जितना हो सके लूट लो की मानसिकता शिक्षकों के शोषण का मुख्य कारण है।योग्य, पात्र और कर्मठ लोगों को अधिकारी बनाया जाए तो स्थिति अलग होगी।
पांचवे ने लिखा-ऐसे गोरखधंधे में कई कर्मचारी नेता भी संलिप्त रहते है। इसलिए कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान नहीं होता।
छठवें ने लिखा-
अभी वर्तमान में शिक्षा विभाग में 146 विकासखंड में केवल 45 नियमित विकासखंड शिक्षा अधिकारी है। बाकी जगह प्राचार्य और व्याख्याता लोग जुगाड से बैठे है। इसी प्रकार 33 जिलों में केवल 8 जिला शिक्षा अधिकारी नियमित पदस्थ है। 25 जिला शिक्षा अधिकारी प्रभारी है।इस स्थिति में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठ और प्रशासनिक कसावट की बात बेमानी है।होना यह चाहिए कि विभाग को सभी पदों में योग्य और पात्र लोगों को नियुक्ति/पदोन्नति देकर प्रभार वाद से विभाग को मुक्त करना चाहिए।
सातवें ने पोस्ट किया-
सभी विभाग की यही कहानी है।
आठवें से जवाब मिला-स्वास्थ्य विभाग का इससे भी बुरा हाल है। प्रभारवाद अभी सबसे बड़ी समस्या है। हम भी इसका दंश झेल रहे हैं।
एक अन्य ने कहा- अरे हमारे विभाग में तो नीचे से ऊपर प्रभार वाद चल रहा हेड मास्टर, प्राचार्य, बीईओ, डीईओ, उपसंचालक,संयुक्त संचालक और न जाने क्या-क्या पद पूरे प्रभार में चल रहे है, और यही लोग लूट मचा रखे हैं । प्रभारवाद याने शासन हितैषी कर्मचारी विरोधी, नेता चरणपादुक, ब्यूरोक्रेट्स चाटुकार, भ्रष्टाचार के दीमक। इनके रहते प्रमोशन संभव नहीं है और न ही नियमित प्रशासनिक पद।
नेताओं की मजबूरी, छात्राओं में निराशा।
एक पत्र
आज शा .कन्या महाविद्यालय देवेंद्र नगर रायपुर में वार्षिकोत्सव एवं पुरस्कार वितरण कार्यक्रम आयोजित था,जिसके मुख्य अतिथि के रूप में माननीय सांसद श्री
बृजमोहन अग्रवालजी, विशिष्ट अतिथि के रूप में विधायक श्री पुरंदर मिश्रा जी,एवं पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा जी आमंत्रित थे।
कल रात में सांसद अग्रवाल जी के पी ए ने प्राध्यापकों को सूचित किया कि अग्रवालजी नहीं आ पाएंगे बाहर जा रहे हैं।
प्राध्यापकों को बहुत निराशा हुई, फिर सोचा चलो पुरंदर मिश्रा जी,और जुनेजा तो आ रहे हैं, ऐन वक्त पर पुरंदर मिश्राजी भी उपस्थित नहीं हुए पता चला उड़ीसा गए हैं।
आयोजकों के होश उड़ गए, बच्चे निराश हो गए।
इस बीच पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा जी ने आकर स्टाफ और छात्राओं का हौसला बढ़ाया।
इस तरह की घटना ने आज सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।
कि छात्राओं का क्या दोष ? कितनी तैयारी, मेहनत और खर्च किया था, दूर दूर के गांव से छात्राएं आती हैं, उन्हें कितनी तकलीफ और निराशा हुई, इसकी कल्पना क्या हमारे नेता कर सकते हैं ?
एक छात्रा।
कन्या महाविद्यालय देवेन्द्रनगर।
तिल-गुड़ खाओ, मीठा बोलो
हिंदू पंचांग और अंग्रेजी कैलेंडर में 14 जनवरी (कभी-कभी 15 जनवरी) मकर संक्रांति की तिथि को लेकर कोई विवाद नहीं होता। यह वह एकमात्र त्यौहार है जो हर साल तय तारीख पर मनाया जाता है। बाकी हिंदू त्यौहारों के विपरीत, जो चंद्र कैलेंडर के अनुसार चलते हैं और हर साल तिथियों में बदलाव करते हैं, मकर संक्रांति सूर्य की मकर राशि में प्रवेश के सटीक समय के आधार पर तय होती है।
सौर वर्ष 365.25 दिनों का होता है, जबकि चंद्र वर्ष केवल 354 दिनों का। यही अंतर अन्य हिंदू पर्वों की तिथि में भ्रम का कारण बनता है। ज्योतिष और खगोलशास्त्र के जानकार अपनी-अपनी गणना के अनुसार त्यौहार की तिथियों की घोषणा करते हैं, जिससे बाकी पर्व अक्सर दो दिन तक मनाए जाते हैं।
मकर संक्रांति से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, यह वह दिन है जब सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव की मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसे पिता-पुत्र के बीच सामंजस्य और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन गंगा का भगीरथ के तप के फलस्वरूप पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इसी वजह से इस पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्रांति के नाम और रीति-रिवाज भिन्न हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब में इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है। पंजाब में इस दिन लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति, कर्नाटक में सुग्गी हब्बा और तेलंगाना में पेद्दा पंडुगा के नाम से जाना जाता है।
इस त्यौहार की विशेषता है तिल-गुड़, लाई, मूंगफली, रेवड़ी, गजक और चूड़ा जैसे पारंपरिक व्यंजन। भले ही नाम अलग-अलग हों, लेकिन इन व्यंजनों के बिना मकर संक्रांति का उत्सव अधूरा लगता है। महाराष्ट्र में इस दिन कहा जाता है, "तिलगुड़ घ्या, गुड-गुड बोला। इसका अर्थ है- तिल-गुड़ खाओ और मीठा बोलो।
यह तस्वीर रायपुर के एक परिवार द्वारा सोशल मीडिया पर साझा की गई है, जिसमें त्यौहार से जुड़ी पारंपरिक मिठाइयां और व्यंजन दिखाई दे रहे हैं।
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सचिवालय में बेहतर दिन लौटे
राज्य प्रशासन में वरिष्ठता के सम्मान के दिन वापस लौट आए हैं। प्रभारी मुख्य सचिव तय करने के लिए बकायदा तीन नामों का पैनल सीएम को भेजा गया। उसमें से सबसे वरिष्ठ पर मुहर लगवाई गई।
बीते पांच वर्ष में तो कई बार मुख्यमंत्री के एसीएस ही स्वयं प्रभार ले लेते और एक वर्ष से तो द्वितीय-तृतीय वरिष्ठ पर मुहर लगवाई जाती रही है। मैडम रेणु पिल्ले को मंत्रालय से बाहर की मानकर उनकी वरिष्ठता को दरकिनार किया जाता रहा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया।
यह सब वही कर सकता है जो वरिष्ठों का सम्मान करता है। एलटीसी पर गए मुख्य सचिव की जगह रेणु पिल्ले को कार्यकारी सीएस बनाया गया।
जीएडी ने तीन नाम सरकार को भेजे थे और सम्मान हुआ वरिष्ठता का। इस बात की पूरे कैडर में चर्चा हो रही। हर अफसर सकारात्मक मान रहा। यह वही कर सकता है जो स्वयं भी इस दायरे का पालन करता हो। हमने कल ही इसी कॉलम में बताया था कि सुबोध सिंह ब्यूरोक्रेटिक व्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटे हुए हैं।
सचिव और मंत्री
मंत्री अफसर के बीच शिष्टाचार की बातें होती हैं तो चर्चा नहीं होती, यदि यहीं बातें ऊंची आवाज में होती है तो कोई सुनने वाला आकाशवाणी बन जाता है, और फिर बातें वायरल होती हैं। सुनने वाले वायसकॉल हासिल करने तक के प्रयत्न करने लगते हैं। कल से यही चल रहा है। कल शाम पहली बार के मंत्री और एक अफसर में यही कुछ हुआ। साहब ने स्वयं कॉल कर नेताजी को जमकर खरी-खरी सुनाई। नेताजी अपने विभाग की खरीदियों को मंजूर करने बिल क्लियर करने विभाग की मैडमों पर जबरदस्त दबाव बनाए हुए थे। पुराने विवादित बिल, विधानसभा में उठ चुके इन खरीदियों जैसे अन्याय कारणों से ठिठकी हुई हैं।
विभाग की तीनों ही आईएएस मैडम विभाग के खरीदी विंग की प्रभारी भी हैं। जब नेताजी का दबाव असहनीय हुआ तो तीनों ने जाकर साहब के सामने दुखड़ा सुनाया। इसके बाद तो साहब, नेताजी पर भारी पड़ गए। साहब को सुनने वाले तो एक तरह से सिहर उठे तो दूसरी ओर खड़े लोग नेताजी के हावभाव देखकर सकते में रहे। इतने हॉट-टॉक की डेंसिटी तो पहले कभी नहीं रही। अब तक तो नेताजी बोलते रहे हैं और साहब लोग जी-जी करते सुने, देखे जाते रहे हैं। एक ही पुराना वाकया इसके बराबर का रहा है जब बीस वर्ष पहले अजयपाल सिंह ने एक दबंग मंत्री को ललकारा था।
मंत्रिमंडल, जितने मुँह, उतनी बातें
भाजपा में नगरीय निकाय, और पंचायत चुनाव की तैयारी चल रही है। बावजूद इसके कैबिनेट विस्तार का भी हल्ला है। कुछ लोग इसके लिए मकर संक्रांति की तिथि गिना रहे हैं। इन सबके बीच महाराष्ट्र फॉर्मूले की भी खूब चर्चा है।
हल्ला है कि कैबिनेट विस्तार के बीच मंत्रियों के विभागों को भी इधर से उधर किया जा सकता है। चर्चा यह है कि सीएम खुद गृह विभाग रख सकते हैं। महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस के पास जनसंपर्क के साथ-साथ गृह विभाग भी है। बाकी विभाग नए शामिल होने वाले मंत्रियों के बीच बंटवारा हो सकता है। फिलहाल तो अटकलें ही लगाई जा रही है। आगे क्या होगा यह तो दो-तीन दिन बाद साफ हो सकता है।
सडक़ सुधार की इतनी बड़ी कीमत
सरकारी निर्माण कार्य, विशेषकर सडक़ों के सुधार और मरम्मत में भ्रष्टाचार की खबरें आम हैं। हाईकोर्ट में सडक़ों की दुर्दशा को लेकर कई जनहित याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कई मामलों में अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया है। परंतु, उनके पास हर सवाल का पहले से तैयार जवाब होता है। जिन सडक़ों पर अदालत का ध्यान जाता है, उनकी मरम्मत करके अफसर और ठेकेदार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं।
विधानसभा से रायपुर-बिलासपुर हाईवे को जोडऩे वाली सडक़ की खराब हालत को लेकर हाईकोर्ट ने कई बार अधिकारियों को तलब किया। इसके बाद सडक़ की स्थिति में सुधार हुआ। लेकिन अफसरों और ठेकेदारों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि कुछ फासले पर स्थित मोवा ओवरब्रिज की मरम्मत भी गुणवत्ताहीन ढंग से कर दी गई।
प्रदेशभर में घटिया सडक़ों की खबरें आए दिन मीडिया में छपती रहती हैं, लेकिन अफसरों पर इसका कोई असर नहीं होता। मोवा ओवरब्रिज के मामले में गड़बड़ी की खबर सामने आते ही पीडब्ल्यूडी के बड़े अफसर सक्रिय हो गए। इसकी वजह भ्रष्टाचार के प्रति उनकी रियायत नहीं थी, बल्कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इस घटिया काम की आवाज उठाने पर पत्रकार मुकेश चंद्राकर जैसा हश्र हो सकता है।
बीजापुर की घटना का ही असर है कि अब मोवा ओवरब्रिज मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं।
जब भी हम मोवा ओवरब्रिज से गुजरेंगे, पत्रकार मुकेश चंद्राकर की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की याद दिलाएगा।
भारी काम हल्के मन से
संगीत न केवल मन को हल्का करता है बल्कि एकरसता के साथ किसी काम करने के लिए जोश भी भर देता है। छत्तीसगढ़ से सैकड़ों मजदूर दूसरे राज्यों में ईंट बनाने के लिए प्रवास करते हैं। उनकी मजदूरी काम के घंटों से नहीं, बल्कि कितनी ईंटे बनाई, उस पर दी जाती है। संगीत से उन्हें मानसिक ऊर्जा मिलती होगी और शारीरिक थकान कम महसूस होती होगी, और ज्यादा ईंटें बना लेते होंगे। उत्तर प्रदेश के एक ईंट भ_े में लगा साऊंड सिस्टम।
(rajpathjanpath@gmail.com)
अतिउत्साह से शिकायतें
रायपुर नगर निगम मेयर का पद महिला आरक्षित होने के बाद भाजपा, और कांग्रेस के अंदरखाने में शिकवा-शिकायतों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा में विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई, जब मेयर पद महिला आरक्षित होते ही नेता प्रतिपक्ष मीनल चौबे के उत्साही समर्थकों ने पटाखे फोड़े, और उन्हें एक तरह से प्रत्याशी घोषित कर दिया। इस पर मीनल के विरोधियों ने पार्टी संगठन से शिकायत कर दी। चर्चा है कि पार्टी संगठन के नेताओं ने इसे गंभीरता से लिया है।
कुछ इसी तरह की गलती सभापति प्रमोद दुबे से जुड़े लोगों ने कर दी। प्रमोद दुबे के करीबियों ने उनकी पत्नी का बायोडाटा सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसके बाद कांग्रेस की कई महिला पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज से मिलकर किसी भी नेता की पत्नी को प्रत्याशी बनाने पर चेता दिया है।
महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों को मेयर एजाज ढेबर का भी समर्थन मिला। मेयर की पत्नी अर्जुमन ढेबर ने सोशल मीडिया पर कह दिया कि टिकट पर महिला कांग्रेस की पदाधिकारियों का पहला हक है। ये बात किसी से नहीं छिपी है कि मेयर और सभापति के रिश्ते मधुर नहीं रहे हैं।
यही नहीं, एक पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा ने प्रमोद दुबे की पत्नी का नाम सामने आते ही खुले तौर पर कह दिया है कि उनकी पत्नी भी टिकट की दावेदार हैं। यह साफ है कि नेता पत्नी को टिकट देने का कदम जोखिम भरा भी हो सकता है। देखना है कि दोनों दल आगे क्या निर्णय करती हैं।
सचिवालय विभाग से अधिक जरूरी
सीएम के प्रमुख सचिव सुबोध सिंह ने कार्यभार लेने के बाद अब तक कोई अलग से विभागों का प्रभार नहीं लिया है। यद्यपि सीएम के पास आधा दर्जन से अधिक विभाग हैं, और उनके आने के पहले काफी फाइलें पेंडिंग थी। यह सब देखते हुए सुबोध ने कोई नया विभाग लेने के बजाए सीएम सचिवालय को व्यवस्थित करने जुटे हैं।
इसका प्रतिफल यह रहा कि अब फैसले तेजी से हो रहे हैं। कुछ इसी तरह राज्य बनने के बाद तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के पहले सेक्रेटरी सुनिल कुमार ने भी सिर्फ जनसंपर्क, और आईटी विभाग अपने पास रखा था। उस वक्त आईटी का नया विभाग बना था। सुनिल कुमार ने भारी भरकम विभाग अपने पास रखने के बजाए नए राज्य की समस्याओं को हल करने प्रशासनिक कसावट के लिए बड़ा काम किया था। और सरकार का पहला कार्यकाल पूरा होते-होते सीएम सचिवालय व्यवस्थित हो पाया। इससे मिलती-जुलती परिस्थितियां अभी बनी हुई है, और सुबोध को भी रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर माना जाता है।
कोहरे में लिपटा अमरकंटक
पेंड्रारोड से अमरकंटक की ओर निकलें तो भालू के आकार की मूर्तियां स्वागत करती हैं। कोहरे की चादर में ढके घने वृक्षों के बीच का यह रास्ता इन दिनों प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग जैसा लग रहा है। नर्मदा और सोन नदियों का उद्गम स्थल इन दिनों जाड़े और कोहरे भरी सुबह के कारण और भी आकर्षक हो गया है। यहां का शांत वातावरण, साफ हवा और प्राकृतिक छटा सैलानियों को सुकून और आध्यात्मिकता का अनुभव कराती है। 9 जनवरी को यहां का न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सेल्सियस था। हालांकि इसी दिन छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में तापमान इससे भी नीचे चला गया था। मैनपाट में 3.7 डिग्री चला गया था, जहां बर्फ की परतें भी जम रही हैं।
बाघिन लौटी, राहत की सांस ली
जिस अचानकमार अभयारण्य में पर्यटकों को साल में एकाध बार ही टाइगर का दर्शन हो पाता है। बाकी को बायसन और चीतल, बारहसिंगा से ही संतुष्ट होना पड़ता है। इस सीजन में तो किसी पर्यटक को अब तक एक भी बाघ-बाघिन का दर्शन नहीं हुआ है। ऐसे में एक टाइग्रेस कान्हा नेशनल पार्क से घूमते फिरते मरवाही, पेंड्रा और अचानकमार के जंगलों में विचरण करने लगी। इस टाइग्रेस की आने की सबसे पहले खबर मरवाही के ग्रामीणों को हुई। मरवाही मंडल के अधिकारी मुस्तैद हो गए। रात भर जाग-जागकर उसके लोकेशन पर निगरानी की जाती रही। फिर वह भनवारटंक की ओर पहुंच गई, जो बिलासपुर वन मंडल में है। अब यहां के वन अधिकारियों की नींद उड़ी। इधर एक बड़ा माता मंदिर भी है जहां नए साल पर हजारों लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दो दिन घूमने के बाद बाघिन फिर मरवाही वन मंडल में लौट गई। बिलासपुर के अफसरों ने राहत की सांस ली। फिर वह अचानकमार टाइगर रिजर्व में पहुंच गई। वहां एक दिन ठहरने के बाद वह केंवची रेंज से होते हुए अमरकंटक की तराई की ओर चली गई। इस तरह से छत्तीसगढ़ की सीमा से बाहर हो गई। यह सब बाघिन को लगाए गए कॉलर आईडी से पता चलता रहा। एक वनकर्मी का कहना है कि अफसर लोग चाहते तो हैं कि टाइगर के नाम पर फंड मिलता रहे, पर टाइगर की वजह से आराम में खलल पड़े यह उनको मंजूर नहीं। पहले के अफसर अपने इलाके में टाइगर देखकर खुश हो जाते थे, जंगल में कैंप करते थे। अब के अफसर तो शहर के बंगलों में रहने के आदी हो गए हैं। हाथी-बाघ की खबर मिलने पर जंगल जाने से घबराते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस बाघिन को अपने लिए नये रहवास की तलाश थी, पर छत्तीसगढ़ का जंगल उसे रास नहीं आया और वापस लौट गई।
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साव का बढ़ा भाव
सीएम विष्णुदेव साय, और डिप्टी सीएम अरुण साव के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिल रहा है। बालोद के एक कार्यक्रम में सीएम ने अरुण साव की तारीफों के पुल बांधे। उस वक्त मंच पर साव भी थे। कैबिनेट ब्रीफिंग हो, या फिर किसी और विषय पर सरकार के पक्ष रखने के लिए साव को ही अधिकृत किया गया है।
प्रदेश में नगरीय निकाय, और पंचायत के चुनाव होने हैं। नगरीय निकायों में अरुण साव की पहल पर सभी निकायों में प्रशासक बिठाकर राशि का आबंटन किया गया है, ताकि तेजी से काम हो सके। पार्टी को चुनाव में इसका फायदा मिल सके। प्रदेश के सभी निगमों में कांग्रेस का कब्जा रहा है, और कार्यकाल खत्म होने के बाद भाजपा नेताओं की सिफारिश पर तेजी से काम हो रहे हैं। अब चुनाव में इसका कितना फायदा होता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
वित्त विभाग और निगम-मंडल
भाजपा प्रदेश प्रभारी के दौरे पर आते ही गलियारों में कैबिनेट फेरबदल और निगम मंडल आयोग में नियुक्तियों को लेकर हलचल है । कुछ नाम भी सामने लिए जाने लगे हैं। इस बार भी उनका दौरा निकाय चुनाव में जीत और संविधान हमारा स्वाभिमान अभियान पर प्रबोधन के साथ पूरा हुआ। वैसे यह भी सच्चाई है कि अब पार्टी नेताओं में ही निगम मंडल को लेकर उत्साह नहीं रह गया है। और ये लोग हाथ पर हाथ धरे बैठ गए हैं । यह भी कहते हैं कि उन्हीं चंद लोगों को ही नियुक्त किया जाएगा जो पहले भी रहे हैं।
इन सबके बीच एक खबर यह भी है कि वित्त विभाग के अफसर ही नहीं चाहते हैं कि निगम मंडलों में नियुक्तियां हो। उनका कहना है कि इन नियुक्तियों से स्थापना व्यय में एकाएक उछाल आता है। नए अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्यों के वेतन भत्ते, मकान वाहन सुविधा का व्यय भार आता है। नान, खनिज निगम, हाउसिंग बोर्ड, लघु वनोपज भवन निर्माण कर्मकार मंडल जैसे कारोबारी निगम मंडलों के लिए यह सहनीय है, लेकिन विभागीय बजट पर निर्भर निगम मंडल दोहरी मार होते हैं । और यदि पिछली सरकार की तरह तीस से अधिक निगम मंडलों में नियुक्तियां की जाती हैं,तो खर्च बढ़ेगा।
वित्त अफसर बताते हैं कि तीन वर्ष में इन पर 250 करोड़ खर्च हुए थे। पिछले नेताओं के जलवे देख- सुनकर ही नियुक्तियों को लेकर संगठन सरकार पर दबाव भी उसी तरह का है। वहीं विभागीय मंत्री भी अपनी कमान ढीली नहीं करना चाहते। इन्हीं निगम मंडलों की ही वजह से अभी उनके लाव लश्कर चल रहे हैं। वे भी नियुक्तियों को मुल्तवी कराने में सफल रहे हैं। अब देखना है कि इस रस्साकशी में कब तक सफल बने रहते हैं। यह तो दिख रहा है कि निकाय चुनाव तक तो नियुक्तियां नहीं हो रहीं।
भाजपा वोटर का नोटा प्रेम
दिल्ली देश की राजधानी होने की वजह से वहां हो रहे विधानसभा चुनावों की खबरें मीडिया पर खूब तैर रही है। सोशल मीडिया पर भी आ रही है। ऐसा ही एक पोस्टर वहां के एक भाजपा विधायक ओ पी शर्मा से संबंधित फैला हुआ है। दिखाई यह देता है कि पोस्टर लगाने वाला खुद को तो भाजपा का कट्टर वोटर बता रहा है लेकिन विधायक से नाराज है। उसने शर्मा को वोट देने की जगह नोटा का विकल्प चुनने की बात कही है। इसे देखकर आप यह नहीं कह सकते कि भाजपा कार्यकर्ताओं, मतदाताओं में उनके खिलाफ सचमुच भारी नाराजगी होगी। हो सकता है कि पोस्टर चिपकाने वाला उसके विरोधी दल कांग्रेस या आम आदमी पार्टी का समर्थक हो। चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह के कई पैंतरे आजमाए जाते हैं।
नौकरी नहीं नेटवर्क मार्केट मांगिये
आजकल हजारों युवा ग्रेजुएट, पीजी, बीएड और डीएड जैसे डिग्री कोर्स पूरे कर सरकारी शिक्षक बनने का सपना देख रहे हैं। लेकिन यह समस्या केवल शिक्षकों तक सीमित नहीं है; दूसरे विभागों में भी नौकरी के लिए युवाओं की लंबी कतारें हैं। हालात ऐसे हैं कि पीएचडी धारक भी क्लर्क या भृत्य की पोस्ट के लिए आवेदन करने को मजबूर हैं। दूसरी ओर सरकार की ओर से सलाह दी जा रही है कि युवा नौकरी मांगने की बजाय रोजगार देने वाले बनें।
नेताओं की बातों पर यकीन न भी हो, तो उन लोगों पर गौर करें जो सरकारी नौकरी छोड़ अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए व्यापार का रुख कर रहे हैं। रायगढ़ जिले के एक हिंदी व्याख्याता रघुराम पैकरा का मामला काफी चर्चा में है। वे लगातार स्कूल से गैरहाजिर रहते थे। कभी छुट्टी लेकर तो कभी बिना बताए। जब शिक्षा विभाग ने बर्खास्तगी का नोटिस जारी किया तो उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया कि सरकारी नौकरी उनकी आर्थिक समस्याओं को हल नहीं कर रही। इसके चलते उन्होंने इस्तीफा देकर नेटवर्क मार्केटिंग के क्षेत्र में कदम रखा, जहां प्रोटीन पाउडर जैसे उत्पाद बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं।
बिलासपुर, जांजगीर और सरगुजा जिलों से भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं। रायगढ़ के ही शशि बैरागी ने भी हाल ही में इस्तीफा दिया है।
बिलासपुर के संयुक्त संचालक ने सभी अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि स्कूल से गायब शिक्षकों पर निगरानी रखें। जांच में पाया गया है कि ये शिक्षक नेटवर्क मार्केटिंग और अन्य निवेश से जुड़े व्यवसायों के कारण स्कूलों से दूर रहते हैं। नवंबर महीने में ऐसे दो दर्जन से अधिक शिक्षकों को नोटिस जारी की गई थी।
यह मान लेना गलत होगा कि सरकारी नौकरी छोडऩे वाले हर व्यक्ति को व्यापार में सफलता मिल रही है। अधिकांश मामलों में ये शिक्षक अपने स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के माता-पिता को पहले अपने ग्राहक बनाते हैं। धीरे-धीरे, उनका धंधा इतना बढ़ जाता है कि वे अपने स्कूल का रास्ता भूल जाते हैं।
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अब तो सिंधी समाज को मौका मिले
नगरीय निकाय चुनाव की तिथि भले ही अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन मेयर और अध्यक्ष के पदों का आरक्षण होने के बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। सिंधी, पंजाबी, और गुजराती व अन्य समाज के लोगों ने अपने-अपने समाज से मेयर प्रत्याशी तय करने के लिए जोर लगाना शुरू कर दिया है। भाजपा और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में सिंधी और गुजराती समाज से एक भी प्रत्याशी नहीं दिया था, लिहाजा निकाय चुनाव में प्रतिनिधित्व देने की मांग कर रहे हैं।
सिंधी समाज के नेताओं की नजर रायपुर, धमतरी, और राजनांदगांव मेयर टिकट पर है। खास बात यह है कि रायपुर की सीट से सिंधी समाज से दिवंगत रमेश वल्र्यानी, और श्रीचंद सुंदरानी विधायक रहे हैं। मगर आम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने सिंधी समाज से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाया। इसी तरह बड़े व्यापारिक गुजराती समाज से भी किसी को भी दोनों ही दल ने टिकट नहीं दी थी। जबकि गुजराती समाज के धरसींवा से देवजी पटेल, धमतरी में दिवंगत जया बेन, हर्षद मेहता, और भाटापारा से कलावती मेहता विधायक रही हैं। यही नहीं, मनेन्द्रगढ़ से गुजराती समाज के दीपक पटेल विधायक रहे हैं। रायपुर महिला अनारक्षित है, और बाकी सामान्य सीटों पर दोनों ही बड़े व्यापारिक समाज के नेताओं को टिकट की आस है।
सिंधी समाज की कई महिला नेत्रियों के बायोडाटा भाजपा व कांग्रेस नेताओं तक पहुंच रहे हैं। भाजपा से सिंधी काउंसिल की उपाध्यक्ष राशि बलवानी ने दावेदारी की है, तो कांग्रेस से पूर्व पार्षद कविता गुलवानी ने खुलकर चुनाव लडऩे की इच्छा जताई है। धमतरी से प्रदेश भाजपा महामंत्री रामू रोहरा का नाम प्रमुखता से उभरा है, तो कांग्रेस से पूर्व जिलाध्यक्ष मोहन लालवानी टिकट मांग रहे हैं। गुजराती समाज से कांग्रेस से सरिता दोषी का नाम चर्चा में है।
राजनांदगांव से भी दिवंगत पूर्व मंत्री लीलाराम भोजवानी के बेटे राजा भोजवानी ने टिकट के लिए दबाव बनाया है। चर्चा है कि सिंधी समाज से कम से कम एक मेयर टिकट देने की मुहिम को शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल का भी समर्थन है। इससे परे पंजाबी, अग्रवाल, और अन्य समाज के लोगों ने भी मेयर टिकट के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में जात पात की राजनीति तेज होने के आसार हैं। अब पार्टी जाति देखकर प्रत्याशी तय करती है या नहीं, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
रायपुर शहर में एक ऐसी रंगीली मोटर साइकिल देखने मिली जिसके इंच-इंच पर कोई न कोई रंगीन टेप लगा हुआ था, बहुत से रंगीन झंडे लगे हुए थे, और मोहब्बत से उसका नाम पापा की परी भी लिखा हुआ था। जाहिर है कि इसे चलाने वाला बुजुर्ग गले में एक बड़ा सा लाकेट पहना हुआ शौकीन आदमी था।
भाजपा की हॉटसीट कवर्धा पर...
भाजपा के 35 संगठन जिलों में से 33 में अध्यक्ष के चुनाव बिना किसी विवाद के निपट गए, लेकिन राजनांदगांव और कवर्धा के अध्यक्ष के चुनाव टाल दिए गए हैं। चर्चा है कि दोनों जिलों में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और स्थानीय सांसद संतोष पाण्डेय के बीच किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई है।
बताते हैं कि डॉ. रमन सिंह खेमे ने कवर्धा जिलाध्यक्ष तय करने का मामला डिप्टी सीएम विजय शर्मा, और सांसद संतोष पाण्डेय पर छोड़ दिया है। मगर चर्चा है कि विजय शर्मा और सांसद की अपनी-अपनी अलग पसंद है, और वो उन्हें ही अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। जबकि राजनांदगांव में डॉ. रमन सिंह से जुड़े लोगों की अपनी पसंद है, लेकिन वहां भी सांसद संतोष पाण्डेय की अलग पसंद है। यही वजह है कि दोनों ही जिलों में चुनाव रोक दिए गए हैं। यहां अब प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद जिलाध्यक्ष के चुनाव कराए जाएंगे।
स्कूलों में यौन शिक्षा दें या नहीं?
कोरबा के सरकारी कन्या छात्रावास में एक नाबालिग छात्रा के गर्भधारण और प्रसव की घटना ने प्रशासन, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर कर दिया है। किसी गर्भवती के लिए नियमित चिकित्सा देखभाल अत्यंत आवश्यक होती है, परंतु इस छात्रा ने अपनी स्थिति को शिक्षकों, सहपाठियों और प्रशासन से छिपाकर बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के बच्चे को जन्म दिया। प्रसव के बाद छात्रा ने शिशु को परिसर के बाहर फेंक दिया। आठ घंटे कडक़ड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे रहने के बावजूद शिशु की जान बच गई और उसे कोरबा मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में भर्ती कराया गया।
इस घटना ने कन्या छात्रावासों की सुरक्षा व्यवस्था पर कुछ गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बस्तर के झिलियामारी छात्रावास की घटना के बाद सुरक्षा के लिए नियम बनाए गए थे, जैसे महिला गार्ड की तैनाती, पुरुष स्टाफ का सीमित प्रवेश और अधीक्षिकाओं की सतर्कता। बावजूद इसके ये नियम जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं हो पाए। जशपुर जिले में भी पिछले वर्ष एक घटना सामने आई थी, जिसमें छात्रावास अधीक्षिका के परिवार के सदस्यों द्वारा यौन शोषण का मामला था।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्कूलों और छात्रावासों में स्वास्थ्य परीक्षण और किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। चिरायु योजना और आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों के तहत छात्रों के स्वास्थ्य और मानसिक कल्याण पर काम होना था। इस घटना ने इन दावों को खोखला साबित कर दिया। 11वीं कक्षा की छात्रा, जो छात्रावास परिसर के ही सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी, इन स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रही। यह लापरवाही स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा प्रणाली की बड़ी विफलता को दर्शाती है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण समिति ने स्कूलों में किशोरों के लिए यौन शिक्षा पाठ्यक्रम तैयार किया है, जो असुरक्षित यौन संबंधों और यौन स्वास्थ्य पर जानकारी देता है। झारखंड जैसे पड़ोसी राज्यों में इसे लागू किया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ सहित करीब 6 राज्यों ने इस पाठ्यक्रम को अपनाने से इनकार कर दिया। यदि इस पाठ्यक्रम को लागू किया गया होता, तो शायद इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकती थीं।
नाबालिग छात्रा और उसके शिशु का भविष्य क्या होगा। दोनों को सामाजिक त्रासदी भोगना पड़ सकता है। छात्रावासों में तो इस तरह की घटना पहली बार सुनी गई है लेकिन हर रोज किसी न किसी थाने में नाबालिगों को अगवा कर लेने, रेप करने और उसके बाद उसे छोड़ देने की रिपोर्ट दर्ज हो रही है। पीडि़त बालिकाओं की रिपोर्ट पर 18-20 साल के लडक़े जेल जा रहे हैं। कानून कुछ ऐसा है कि बहुतों को 20-20 साल की कैद की सजा इस उम्र में शुरू हो जाती है। ये सब अशिक्षित नहीं हैं, ज्यादातर किसी न किसी स्कूल में पढऩे वाले लोग हैं। असुरक्षित यौन संबंधों और उनके दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने के लिए यौन शिक्षा किस रूप में दिया जाए? विशेषज्ञों की मदद से सरकार को कोई फैसला लेना चाहिए।
अचानक ढाबा..
दिल्ली हरियाणा हाईवे पर स्थित इस ढाबे वाले ने ग्राहकों का ध्यान खींचने के लिए जरूर अपने होटल का नाम अजीब सा रख दिया है, पर जिस ग्राहक ने सोशल मीडिया पर यह तस्वीर डाली है, उनका कहना है कि जब वे यहां चाय पीने रुके तो यहां भयानक भीड़ जैसी कोई बात नहीं थी, बल्कि सभी टेबल कुर्सियां खाली थीं।
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डीजीपी पैनल लंबा-चौड़ा हुआ
डीजीपी अशोक जुनेजा के एक्सटेंशन की अवधि फरवरी के पहले हफ्ते में खत्म हो रही है। सरकार ने नए डीजीपी के चयन के लिए पहले तीन नामों का पैनल केंद्र को भेजा था। मगर केन्द्र ने पैनल को लौटा दिया है। यह साफ किया है कि जिन एडीजी स्तर के अफसरों की सेवा अवधि 30 साल हो चुकी है, उन सभी के नाम भेजे जाए।
कहा जा रहा है कि पहले पवन देव, अरूणदेव गौतम, और हिमांशु गुप्ता के नाम का पैनल भेजा गया था। अब एसआरपी कल्लूरी, और जीपी सिंह का नाम भी जोड़ा गया है। इन दोनों अफसरों की कुल सेवा अवधि भी 30 साल से अधिक हो चुकी है।
जीपी सिंह को पहले जबरिया रिटायर किया गया था, अब उनकी सेवा में वापसी हो चुकी है। उनके खिलाफ दर्ज सारे अपराधिक प्रकरण निरस्त हो गए हैं। लिहाजा, वो भी अब कन्सिडरैशन जोन में आ गए हैं। केन्द्र सरकार अब आगे क्या करती है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
अब सब टूट पड़े हैं
बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोपी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर पर शिकंजा कस रहा है। पुलिस तो आरोपी को जल्द से जल्द सजा दिलाने के लिए साक्ष्य जुटाने की कोशिश कर रही है। बाकी विभागों ने भी सुरेश चंद्राकर के प्रतिष्ठान पर नजर जमाए हुए हैं। जीएसटी विभाग ने सुरेश चंद्राकर के प्रतिष्ठान में दबिश दी, और करीब 2 करोड़ से अधिक अपात्र इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया है। इसकी जांच चल रही है। यही नहीं, सुरेश चंद्राकर ने करीब 15 एकड़ वन भूमि पर कब्जा किया हुआ है। गृहमंत्री विजय शर्मा ने वन अफसरों को तत्काल इस पर कार्रवाई के लिए निर्देशित किया है। चंद्राकर के सडक़ निर्माण कार्यों की पहले ही जांच के आदेश दे दिए गए हैं। अब आरोपियों के खिलाफ जांच पूरी कर पुलिस कब तक चालान पेश करती है, यह देखना है।
धान खरीदी में व्यवधान
अपने वादे के अनुरूप सरकार 21 क्विंटल धान की खरीदी तो कर रही है लेकिन रफ्तार धीमी है। इस बार राइस मिलरों ने बकाया भुगतान व मिलिंग की राशि बढ़ाने की मांग पर उठाव में देरी की। इसके चलते प्रदेश के कई स्थानों में किसानों का धान जाम है। उन्हें मिलने वाला टोकन सीमित दिनों के लिए होता है, यदि उस अवधि में नहीं बेच पाए तो नया टोकन जारी किया जाता है। तब तक सोसाइटियों में किसानों को अपने धान की रखवाली करनी पड़ती है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से आई खबरों को समेटे तो मालूम होता है कि राजनांदगांव जि़ले में 96 खरीदी केंद्रों में से 90 समितियों में धान खरीदी बंद कर दी गई थी। दुर्ग जि़ले में सहकारी समिति कर्मचारियों ने 23 दिसंबर से खरीदी बंद करने की चेतावनी दी थी। कवर्धा जि़ले में 108 समितियों में से 90 समितियों में धान खरीदी बंद कर दी गई थी। बेमेतरा जि़ले में सेवा सहकारी समिति बोरतरा में धान का उठाव नहीं होने से खरीदी बंद कर दी गई थी। ऐसे समाचार प्रदेश के कई जिलों से मिल रहे हैं। भानुप्रतापपुर के किसानों ने सोमवार को चक्काजाम ही कर दिया। उन्हें बार-बार टोकन दिया जाता है लेकिन धान का उठाव धीमा होने की वजह से समितियों में जगह नहीं बची है। कस्टम मिलिंग व परिवहन की गति धीमी है। अब यह देखना होगा कि निर्धारित 31 जनवरी तक सारे किसान अपना धान बेच पाते हैं या नहीं। कई स्थानों पर किसानों की ओर से 15 दिन आगे, 15 फरवरी तक खरीदी करने की मांग उठ चुकी है। दिलचस्प यह है कि प्रतिपक्ष कांग्रेस का इस मामले में मीडिया पर बयान तो आ रहा है लेकिन सडक़ पर उतरकर आंदोलन प्रभावित किसान ही कर रहे हैं।
चुनावी वायदों की चिंता
कई बार वोट हासिल करने के लिए चुनाव के दौरान जो वादे किए जाते हैं, उसके पूरा होने का इंतजार पांच साल अगले चुनाव के आने तक करना पड़ता है। मगर, एक जगह किया गया वादा, दूसरी प्रदेश में दोहराना पड़े तो यह इंतजार जरूरी नहीं कि लंबा हो। दिल्ली में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ी हुई है। आम आदमी पार्टी व कांग्रेस में एक साथ चुनाव लडऩे की सहमति नहीं बनी है। वहां कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना है। कांग्रेस किसानों को डायरेक्ट बेनिफिट देने का वादा कर सकती है। जब यह वादा किया जाएगा तो तेलंगाना मं किया गया वायदा याद दिलाया जाएगा। वहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के पहले किसानों को 15 हजार रुपये सालाना देने की घोषणा की थी लेकिन सालभर से अधिक हो गए, घोषणा लागू नहीं की गई। अब जब चुनाव का वक्त आ गया है, तेलंगाना के सीएम ने इस स्कीम को लागू करने का ऐलान कर दिया है। हो सकता है कि दिल्ली चुनाव के पहले, इसकी पहली किस्त भी जारी कर दिया जाए। इस पर तेलंगाना के सीएम पर कटाक्ष करते हुए कई पोस्टर एआईसीसी दफ्तर के सामने चिपकाए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने यू टर्न ले लिया है। दिल्ली चुनाव को देखते हुए वे तेलंगाना में किए गए चुनावी वायदों को लागू करने जा रहे हैं।
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