राजपथ - जनपथ
शाबासी देतीं भी तो कैसे?
प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी इस बात से हैरान हैं कि उनकी (थूक वाली) टिप्पणी पर कांग्रेस के लोग आक्रोशित हो गए थे, और इसको मुद्दा बनाकर प्रदेशभर में आंदोलन कर गए। पुरंदेश्वरी ने पार्टी के लोगों के साथ चर्चा में बताया कि दक्षिण के राज्यों में मामूली सी टिप्पणी को ज्यादा तूल नहीं दिया जाता है। यदि मुंह से कोई अप्रिय बात निकल जाती है, तो आपस में ही बातचीत कर मामले को सुलझा लिया जाता है।
पुरंदेश्वरी ने अजय चंद्राकर की तारीफ की, जो कि सबसे पहले थूक वाली टिप्पणी का जवाब देने के लिए आगे आए, और उन्होंने कांग्रेसजनों को मतलब समझाया कि पुरंदेश्वरी ने थूक नहीं, फूंक कहा था। हिन्दी अच्छी नहीं होने के कारण शब्दों का चयन गलत हो गया था। इतना ही नहीं, अजय ने कांग्रेसजनों की जमकर खिंचाई भी की थी। बाद में पुरंदेश्वरी ने उन्हें फोन कर इसके लिए शाबासी भी दी।
अजय को मिल रही तारीफ के बाद नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने पुरंदेश्वरी को यह बताने से नहीं चूके कि उन्होंने भी सीएम को फोन कर कांग्रेसजनों की प्रतिक्रिया पर आपत्ति जताई थी। कौशिकजी ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा था इसलिए उनके प्रयासों का किसी को पता नहीं चला। ऐसे में पुरंदेश्वरी उन्हें शाबासी देतीं भी तो कैसे?
मुखिया के तेवर
प्रदेश कांग्रेस के मुखिया सीधे-सरल माने जाते हैं। मगर कई बार अपने तेवर दिखा भी देते हैं। हुआ यूं कि डेढ़ माह पहले वो राहुल गांधी से मिले थे। पहला मौका था जब उनकी राहुल से वन-टू-वन मुलाकात हुई थी। चर्चा है कि राहुल से बातचीत में वे कह गए थे कि बस्तर के विधायक नाखुश हैं। फिर क्या था राहुल ने पीएल पुनिया से रिपोर्ट मांग ली।
पुनिया महीनाभर पहले रायपुर आए, तो बस्तर के विधायकों से साथ अलग से चर्चा की। मुखिया की मौजूदगी में सारी बातचीत हुई, लेकिन किसी ने भी सरकार से कोई नाराजगी की बात नहीं कही। उल्टे विधायकों ने सरकार की जमकर तारीफ की। पुनिया सवालिया अंदाज में मुखिया की तरफ देखते रहे। मगर मुखियाजी को कुछ बोलते नहीं बना, लेकिन मुखिया के तेवर की पार्टी हल्कों में जमकर चर्चा है।
पाबंदी हटी पर मंदी नहीं...
लॉकडाउन के बाद बाजार खुल तो गये पर बहुत से व्यवसाय अपने पुरानी रौ पर नहीं लौट पाये हैं। लोगों ने लॉकडाउन के दौरान पाबंदियों की वजह से कई रास्ते चुने जो उस वक्त तो नहीं भा रहे थे पर अब लग रहा कि यही सही है। शादी ब्याह और दूसरे जलसों की ही बात करें तो अब मेहमानों को बुलाने, बैंड बाजे, पटाखों, धमाल की पूरी छूट दी जा चुकी है। पर देख रहे हैं कि भव्य आयोजनों से लोगों ने किनारा कर लिया है। बहुत बड़ा मंडप, बहुत से मेहमान, ढेर सारे बाराती की जगह 100-50 मेहमानों के बीच मंदिर या छोटे हॉल में फेरे की रस्म पूरी करना लोगों को भाने लगा है। टेंट, बैंड बाजा, केटरर, बग्घी वाले, टैक्सी वाले अपने पुराने दिन लौटने का इंतजार कर रहे हैं। आने वाले दिनों में लगातार त्यौहार हैं और उसके बाद शादियों की तारीख। शायद लोग हिम्मत जुटा पायें और जिनका रोजगार संकट में है उन्हें राहत मिले।
नया कल्चर सेल्फ स्टडी का...सीजीपीएससी टॉपर नरनिधि नंदेहा ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का अनुभव साझा करते हुए बताया है कि उन्होंने सेल्फ स्टडी के तरीके को चुना। इसका मतलब यह है कि खुद से पढ़ाई करना। यह काम घर पर ही रहकर की जा सकती है पर इस परीक्षा में सफल अनेक लोगों ने लाइब्रेरी की तरफ रुख किया। खुद नंदेहा ने भी एक लाइब्रेरी को चुना था। पढ़ाई घर पर नहीं करने की वजह यह है कि यहां तरह-तरह के व्यवधान हो सकते हैं। कभी कोई दरवाजा खटखटा कर पूछ ले कि चाय पीनी है क्या, तब भी मन भटक जाता है। लाइब्रेरी में सिर्फ पढ़ाई। लॉकडाउन उठाये जाने के बाद भी कई कोचिंग सेंटर्स में छात्र-युवा ज्वाइन करने के बजाय लाइब्रेरी जा रहे हैं। इनकी फीस कोचिंग इंस्टीट्यूट के मुकाबले नाम-मात्र की है। यह भी एक बदलाव है जो कोरोना काल के बाद देखने को मिल रहा है।
एक पुराना पम्फलेट...
ग्वालियर स्टेट के जमाने तक स्टेशन पर रेल के देरी से आने की सूचना पर्चे छपवाकर जनता को देने का काम म्युनिसिपल कमेटी के जि़म्मे था। और अब? आज़ादी के बाद से हमारी ट्रेनें वक्त से चलने लगी हैं, इसलिये ये सिलसिला बंद कर दिया गया है। (सोशल मीडिया से)