राजपथ - जनपथ
हर आईपीएस की मुराद
राजधानी रायपुर का पुलिस कप्तान बनने की मुराद हर आईपीएस की दिली ख्वाहिश होती है। छत्तीसगढ़ की राजधानी की कप्तानी पारी खेलने को प्रशासनिक नजरिए से बेहद जरूरी मानते हैं। पिछले दिनों हुए फेरबदल में 2008 बैच के प्रशांत अग्रवाल की मानो लॉटरी निकल गई। प्रशांत अगले साल जनवरी में डीआईजी पदोन्नत हो जाएंगे। सुनते हैं कि प्रशांत की दुर्ग पोस्टिंग के दौरान भी सरकार ने रायपुर में उनकी तैनाती को लेकर विचार किया था। रायपुर के एसएसपी अजय यादव को उसी दौरान पीएचक्यू भेजे जाने पर सरकार ने विचार किया था। दुर्ग में करीब सवा माह के कार्यकाल के बीच ही प्रशांत को रायपुर पदस्थ कर दिया। सर्विस में प्रशांत ने बीजापुर जैसे घोर नक्सल क्षेत्र में कार्य करने से पहले कोंडागांव से एसपी की शुरुआत की थी। यह संयोग ही है प्रशांत कोंडागांव में दो माह ही पदस्थ रहे। राजधानी रायपुर की तैनाती को प्रशांत के शांत व्यवहार के अनुकूल माना जा रहा है। विवादों से दूर रहते हुए प्रशांत ने बिलासपुर में आराम से दो साल गुजारे अब वे राजधानी में दिग्गज राजनेताओं से लेकर आला अफसरों के बीच काम कर रहे हैं।
रूपानी जैसे नेता नहीं यहां...
एक बात भाजपा में बढिय़ा है। छह महीने के भीतर चार सीएम कुर्सी से उतार दिये गये। न तो विधायकों की सलाह ली गई न ही परेड कराई। कांग्रेस की बात अलग है। पंजाब में कितनी हलचल हो रही है, राजस्थान में किस तरह सचिन पायलट जन्मदिन मना रहे हैं। मध्यप्रदेश में तो सरकार ही गिर गई पर कमलनाथ नहीं हटाये गये। अब अपने छत्तीसगढ़ की बात करें तो स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव उस वादे को पूरा होते देखना चाहते हैं जो उनके मुताबिक हाईकमान ने सन् 2018 में भूपेश बघेल की ताजपोशी के समय कर रखा था। रुपानी के साथ कितने विधायक थे यह कोई नहीं गिनेगा। मगर छत्तीसगढ़ के मामले में कांग्रेस विधायकों की परेड कर डाली गई। क्या रूपानी ने ऐसा दबाव हाईकमान के सामने डालने का साहस जुटाया? अब कह सकते हैं कि कांग्रेस में ज्यादा आजादी है।
धान की जगह बांस का प्रयोग
छत्तीसगढ़ में पैदावार की इतनी सारी विविधता है कि किसानों की आमदनी बढ़ सकती है। सरकार ने इसी साल उन किसानों को अनुदान देने का फैसला किया है जो धान की जगह दूसरी फसल लगायेंगे। इसकी वजह से करीब 3 हजार हेक्टेयर में धान का रकबा कम हो पाया है। सरकार अपने वादे को निभाने के लिये सारा धान ऊंचे दाम पर खरीद तो लेती है पर वह उपार्जन केंद्रों में सड़ जाते हैं। इसे हाथियों को खिलाया जा रहा है, बहुत कम दामों पर करोड़ों रुपये के नुकसान पर नीलाम किया जा रहा है। ऐसे में सरगुजा में एक ठीक काम हो रहा है। वहां कलेक्टर ने जिले के सभी 184 गौठानों में बांस रोपने का काम दे दिया है। लोग अपने खेतों में भी उगा सकते हैं। खर्च कुछ भी नहीं क्योंकि पौधे वन विभाग से मिल रहे हैं। बस पौधों की देखभाल करने की जिम्मेदारी उन सदस्यों की होगी जो इसे लगा रहे हैं। वक्त आ गया है कि धान से बाहर निकलकर खेती की जाये। कलेक्टर की यह पहल कारगर होगी या नहीं आने वाले दिनों में मालूम होगा।
हमारी समस्या में हाथी शामिल है?
हाथियों की आवाजाही को लेकर राज्य सरकार सतर्क नहीं है, ऐसा लगता है। घरों को उजाडऩे, फसलों को नुकसान पुहंचाने के अलावा वे बेकसूर ग्रामीणों भी बे मौत मारे जाने के लिये भी जिम्मेदार हैं। महासमुंद, गरियाबंद, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, धरमजयगढ़ हर तरफ लोग इनके डर से भागे-भागे फिर रहे हैं। तपकरा रेंज में 31 हाथियों का दल एक साथ घूम रहा है। एक साथ इतने हाथी? मालूम यह हुआ है कि दो दल एक साथ मिल गये हैं। एक दल में 22 दूसरे में नौ। कभी नहीं सुना गया कि राजधानी में बैठे वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस समस्या पर कोई बयान दिया और उस क्षेत्र का दौरा किया। हाथियों के लिये जशपुर के बादलखोल और कोरबा के लेमरू में रिजर्व एरिया बनाने की बातें कब से रुकी पड़ी है, धरातल पर नहीं आई।