राजपथ - जनपथ
तीज त्यौहार के बीच पंडो महिलाओं की खबर..
बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर ब्लॉक में पंडो आदिवासियों की खून की कमी से मौत होने की बात सामने आ चुकी है। अब यहां की महिलाओं की सेहत कैसी है यह बात भी जान लीजिये। स्वास्थ विभाग ने इस ब्लॉक के उसी बरवाही पंचायत में एक कैंप लगाया जहां तीन पंडो आदिवासियों की खून की कमी से मौत हुई है। यहां 27 महिलाओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा की जांच की गई। केवल एक ऐसी महिला मिली, जिनका हीमोग्लोबिन का स्तर 11 ग्राम था, जिसे न्यूनतम के करीब कहा सकता है। शेष सभी महिलाओं के शरीर में हीमोग्लोबिन बेहद कम।
जब हम शहरों में जोर शोर से महिलाओं पर केन्द्रित तीज त्यौहार मना रहे हों तो ऐसी खबरों को जगह कहां मिले। दूरस्थ वनांचलों में कुपोषण है, विटामिन नहीं, पौष्टिक भोजन नहीं। गर्भवतियों को आंगनबाड़ी में गर्म भोजन मिल रहा है या नहीं इसे पता करने की फुर्सत किसे है? फिलहाल स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें विटामिन की कुछ गोलियां बांटी हैं और हरी सब्जियां खाने की सलाह देकर टीम वापस आ गई है।
पदोन्नति के लिये दौड़ लगाने से तौबा
पुलिस मुख्यालय के आदेश पर इन दिनों कई जिलों में प्रधान आरक्षकों को एएसआई पद पर पदोन्नत करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। प्रमोशन पाना हर किसी का सपना होता है। फिर पुलिस विभाग में तो किसी सिपाही को दो तीन प्रमोशन मिल जाए तो वह उसे बड़ी बात समझता है। पर यहां बात अटपटी लग सकती है कि बहुत से प्रधान आरक्षकों ने अपने विभाग में लिखकर दे दिया कि उन्हें प्रमोशन नहीं चाहिए। अफसरों ने इसकी वजह तलाश की तो पता चला कि ज्यादातर कर्मचारी उम्रदराज हो चुके हैं और रिटायर होने में साल 2 साल का वक्त ही बचा है। ऐसे में उनकी क्षमता इतनी नहीं है कि वे 800 मीटर की दौड़ लगा सकें, गोला फेंक सकें। इस उम्र में फिटनेस टेस्ट के लिये बाध्य करना उन्हें ठीक नहीं लग रहा। हालांकि इस बार दौडऩे के अवधि में थोड़ी छूट दी गई है। 800 मीटर की दौड़ 30 साल से कम उम्र वालों को 6 मिनट में, 45 साल से कम उम्र वालों को 7 मिनट में और 45 वर्ष से अधिक उम्र वालों को 8 मिनट में पूरा करना है, पर यह भी उनको रास नहीं आ रहा है। अभी इस दौड़ से छूट केवल उन पुलिस वालों को है जिन्होंने नक्सली इलाके में काम किया या घायल हुए हैं। कुछ साल पहले एक कमेटी पीएचक्यू में बनी थी जिसमें कुछ अन्य श्रेणियों को भी दौड़ और गोला फेंक से छूट देने पर विचार किया जाना था लेकिन पता चला है कि उस कमेटी ने अब तक कोई रिपोर्ट ही नहीं दी है।
कार्यकर्ताओं की खरी-खरी बात
राहुल गांधी के दौरे की तैयारी का जायजा लेने कल अम्बिकापुर पहुंचे जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया को कार्यकर्ताओं की भारी नाराजगी का सामना करना पड़ा। कार्यकर्ताओं ने खुलकर कहा कि अधिकारी उनका काम नहीं करते हैं। किसी एक की सिफारिश लेकर जाते हैं तो वे बहाना बनाते हैं कि दूसरे ने मना कर रखा है। मंत्री अमरजीत भगत ने भी माना कि हमारे बीच मतभेद का फायदा अधिकारी उठाते हैं और काम नहीं करने का बहाना ढूंढते हैं। कार्यकर्ता इस बात पर खासे नाराज थे कि 14-15 साल सरकार नहीं थी तब तो हमारे काम हुए नहीं, हमने किसी को काम के लिये कहा भी नहीं। मगर अब तो होना चाहिये। ट्रांसफर, पोस्टिंग के दो चार काम भी नहीं होते हैं। हम किसी को कोई काम दिलाना चाहते हैं तो वह भी नहीं हो पा रहा। डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा कि आधा से ज्यादा वक्त तो महामारी में निकल गया। अब थोड़ा संभले हैं। अब होगा काम, धीरज बनाये रखें। भगत ने भी अफसोस जताया कि राशन दुकानों को वे पूरी तरह नहीं बदल पाये क्योंकि वे सरकार बनने के 6 माह बाद मंत्री बनाये गये, तब तक सब सेट हो चुका था।
सच है कार्यकर्ताओं को सत्ता का लाभ ठीक उसी तरह नहीं मिल पा रहा है जिस तरह 2018 के चुनाव के पहले भाजपा के कार्यकर्ताओं को नहीं मिल पा रहा था। अब जब कांग्रेस सरकार का आधे से ज्यादा कार्यकाल बीत चुका है, बेचैनी तो स्वाभाविक है। कार्यकर्ताओं ने भी बिना घुमाये फिराये, ट्रांसफर, पोस्टिंग, ठेका, राशन दुकान की साफ-साफ बात करके बता दिया कि उनकी पीड़ा क्या है?