राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बात निकलेगी तो फिर दूर तलक..
18-Aug-2021 5:53 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : बात निकलेगी तो फिर दूर तलक..

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक..

लोगों को उनके अधिकारों की जानकारी देना तो आसान रहता है लेकिन जब लोग उन अधिकारों का इस्तेमाल करने पर उतारू हो जाते हैं तो फिर अधिकार देने वालों को भी कुछ परेशानी होने लगती है। अब अभी छत्तीसगढ़ में पाठ्य पुस्तक निगम ने भारत के संविधान की बुनियादी जानकारी देते हुए किताबें छापी हैं और उन्हें प्रदेश के छात्र-छात्राओं को दिया जा रहा है। इनमें मुख्यमंत्री, राज्यपाल, शिक्षा मंत्री के साथ-साथ पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी का भी एक संदेश छपा। संदेश क्योंकि आमतौर पर किसी के लेटर पैड पर टाइप करके उसे ही छाप दिया जाता है, तो इस नाते शैलेश नितिन त्रिवेदी का मोबाइल नंबर भी लाखों बच्चों तक पहुंच गया। उनमें से कुछ लोगों ने तो उस मोबाइल पर फोन करके अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन दुर्ग जिले के उतई के एक चाय वाले ने फोन करके शैलेश नितिन त्रिवेदी से पूछा कि क्या पानी भारतीय नागरिक का बुनियादी अधिकार है? हां में जवाब मिलने पर उस आदमी ने कहा कि वह एक चाय ठेला चलाता है, उसे पहले नल कनेक्शन मिला हुआ था लेकिन क्योंकि वह चाय ठेला भी चलाता है इसलिए कनेक्शन घरेलू बतलाकर उसे काट दिया गया। तो अब बतलाया जाए कि पानी पाना उसका बुनियादी अधिकार है या नहीं? शैलेश नितिन त्रिवेदी ने उसे सलाह दी कि वे अपने स्थानीय विधायक से अपनी दिक्कत बताएं। लेकिन वह चायवाला पीछे लग गया कि संविधान की किताब तो आपने छाप कर बच्चों को भेजी है इसलिए आप ही बताएं कि पानी का बुनियादी अधिकार उसे क्यों नहीं दिया जा रहा है?

संविधान की जानकारी दे देना आसान है इस जानकारी का इस्तेमाल करने पर लोग आमादा हो जाएं तो सत्ता पर बैठे लोगों को दिक्कत होने लगेगी।

साथ रहते हुए भी भनक नहीं

कांग्रेस में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव ने पार्टी छोड़ दी है, और तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा बन गईं। एक दिन पहले ही वो राहुल गांधी से मिली थीं। उनके साथ संसदीय सचिव विकास उपाध्याय भी थे। विकास, असम प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिव हैं।

सुष्मिता ने विकास को भी भनक नहीं लगने दी, और राहुल से मुलाकात से पहले कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए सुझाव देती रहीं। और जब पार्टी छोडऩे की खबर आई, तो कांग्रेस नेताओं को झटका लगा। पार्टी हाईकमान द्वारा सुष्मिता के पार्टी छोडऩे के मामले पर विकास से पूछताछ की भी खबर है। कांग्रेस के कुछ और बड़े नेताओं के भी पार्टी छोडऩे का हल्ला है।

सुष्मिता के बाद यूपी के बड़े नेता, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरपीएन सिंह के भी पार्टी छोडऩे की चर्चा है। कहा जा रहा है कि आरपीएन सिंह भी पिछले कुछ दिनों से पार्टी दफ्तर नहीं जा रहे हैं। खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ के ही नेता राजेश तिवारी, यूपी कांग्रेस के प्रभारी सचिव हैं। मगर विकास की तरह राजेश तिवारी को भी झटका लग जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 

कर्ज से उबरने के लिए

आरडीए ने कर्ज से उबरने के लिए दो बड़ी योजना प्रस्तावित की है। इसमें रेलवे स्टेशन के समीप मार्कफेड की नूतन राइस मिल की खाली 11 एकड़ जमीन पर आवासीय कॉलोनी बनाने की योजना है। इसी तरह आकाशवाणी के समीप काली मंदिर के पीछे सरकारी जमीन पर सी-मार्ट बनाने का प्रस्ताव है। ये योजनाएं अभी कागज पर ही है, लेकिन इसका विरोध शुरू हो गया है।

समता कॉलोनी, और आसपास के लोग नूतन राइस मिल की खाली जमीन पर कॉलोनी बनाने के बजाए ऑक्सीजोन बनाने पर जोर दे रहे हैं। वजह यह है कि रेल्वे स्टेशन के नजदीक होने के कारण वहां भीड़ भाड़ काफी रहता है, और कॉलोनी बनने से प्रदूषण बढ़ेगा। यही हाल, काली मंदिर के पीछे सरकारी जमीन पर सी-मार्ट जैसा व्यावसायिक परिसर बनाने से भी कुछ इसी तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती है। लिहाजा, इस योजना के विरोध स्वरूप जन आंदोलन की तैयारी है। ऐसे हाल में आरडीए की योजना मूर्त रूप लेना कठिन होगा।

जब गणेश शंकर पूर्व सांसद प्रदीप के पहुंचने की खबर से लौटे

छत्तीसगढ़ के पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी  जीएस मिश्रा की भाजपा का दामन थामने की इन दिनों राज्य की सियासी गलियारे में जमकर चर्चा हो रही है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पहले कार्यकाल में राजनांदगांव कलेक्टर रहे जीएस मिश्रा की नई राजनीतिक भूमिका की बात जब चल रही हो तो उनके नांदगांव कलेक्टरी करते पूर्व सांसद प्रदीप गांधी से बढ़ी तल्खी को अब चटकारे लेकर छेड़ा जा रहा है।

बताते हैं कि भले ही पूर्व सांसद गांधी खुद को रमन का हनुमान बताते थे, लेकिन प्रशासनिक रूप से उनकी जीएस मिश्रा के सामने दाल नहीं गल रही थी। उनके बीच इस कदर दूरी बढ़ी कि जब पूर्व महापौर विजय पांडे के अगुवाई में होने वाले शहर के मशहूर राष्ट्रीय दशहरा उत्सव समिति के रावण दहन कार्यक्रम में मौजूद जीएस मिश्रा प्रदीप गांधी के आने की खबर मात्र से ही कुर्सी छोडक़र चले गए। दोनों के मध्य आपसी तनातनी हमेशा बनी रही। अब जीएस मिश्रा की बात हो रही है तो एक दूसरा सकारात्मक पहलू यह भी है कि बतौर जिलाधीश डोंगरगढ़ दर्शनार्थियों के पदयात्रा को सुनियोजित और व्यवस्थित रूप देकर उन्हें काफी वाहवाही बटोरी। मिश्रा की दखल से नौ दिन की पदयात्रा पर निकलने वाले श्रद्धालुओं को रास्तों में रेस्टोरेंट और होटल जैसी आरामदायक सुविधाएं मिली। जिससे यात्रियों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ी और मां बम्लेश्वरी की भव्यता भी काफी विस्तृत हुई।

महुआ फ्रांस और ब्रिटेन पहुंच गई

महुआ छत्तीसगढ़ ही नहीं अन्य राज्यों में भी आदिवासी समाज के रहन-सहन, जीवन-यापन का अभिन्न हिस्सा है। उनकी संस्कृति से भी जुड़ा है। गांवों में उपलब्ध संसाधनों के जरिये ही महुआ से शराब बना ली जाती है जो दो चार दिनों तक ही पीने लायक होती है। शराब पश्चिम के जिन देशों में  चाय, कॉफी या वेलकम ड्रिंक के रूप में प्रचलित है वहां महुआ की खूबियों पर वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं। ऐसे में पहली बार समुद्री रास्ते से कटघोरा से महुआ की खेप फ्रांस और ब्रिटेन भेजी गई है। वैसे तो यह जानकारी केन्द्र सरकार की एपीडा (कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण) ने ट्विटर पर अपनी उपलब्धि के तौर पर दी है पर जैसी जानकारी हमने जुटाई पता चला कि एक वर्ष से कटघोरा के एक युवा व्यापारी निखिल धनौंदिया अपने संपर्कों के जरिये ही सरकार के बिना किसी सहयोग से आगे बढ़े।

निखिल बताते हैं कि यह उनका एक स्टार्टअप है जिसकी एपीडा ने सराहना की। जिन देशों ने मंगाया है वो संभवत: ज्यादा टिकाऊ और बेहतर शराब बनायेंगे। सिरप और सॉफ्ट पेय में इसका इस्तेमाल हो सकता है। 11 अगस्त को पहली खेप जब भेजी गई तो एपीडा के अध्यक्ष डॉ. एम अंगमुथु ने हरी झंडी दिखाकर उसे रवाना भी किया। एकत्रित महुआ फूल को चार-पांच दिन तक धूप में सुखाकर 10 प्रतिशत नमी की स्थिति में आने तक निर्जलित (डिहाईड्रेटेड) किया जाता है फिर एक खास तरह के बैग में पैक कर दिया जाता है। ये फूल कोरबा, कटघोरा, सरगुजा, पसान, पाली, छुरी आदि के जंगलों से एकत्र किये गये थे। निखिल कहते हैं कि एपीडा का स्टार्ट अप को प्रोत्साहित करना तो अच्छा है पर किसी भी स्टार्टअप के लिये बड़ी फंडिंग, फाइनेंस की भी जरूरत पड़ती है। उन्होंने खुद तो अपने संसाधनों से एक शुरुआत कर ली है पर अनेक दूसरे युवा भी कुछ अलग हटकर काम करना चाहते हैं, उन्हें वित्तीय समर्थन मिलना चाहिये।

 

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