राजपथ - जनपथ
कोरोना के पीछे क्या है?
छत्तीसगढ़ में कोरोना के विस्फोट पर लोगों की अलग-अलग अटकलें लग रही हैं। इन अटकलों का तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि अपनी सोच से लेना-देना है। जिसे जिस तबके पर निशाना लगाना है, वे उसी तबके को कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा दे रहे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में हुए क्रिकेट मैच की वजह से कोरोना बुरी तरह फैला है और तीन दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी भी रायपुर से कोरोना लेकर लौटे। दूसरी तरफ बहुत से लोगों का यह मानना है कि लोगों ने सरकारी सलाह के खिलाफ जाकर जमकर होली खेली, और उसी का नतीजा है कि होली खेलने वालों में बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं।
अब क्रिकेट का कोई धर्म है नहीं, लेकिन जिस धर्म के व्यवहार के वक्त प्रदूषण न फैलाने की सलाह दी जाती है, उसे बुरी लग जाती है, जिसे जुलूस निकालने से मना किया जाता है, उसकी धार्मिक भावनाएं लहूलुहान हो जाती है। जब होली पर भीड़ न लगाने की सलाह दी गई थी, तब भी लोगों ने इसे हिन्दू धर्म को ही सलाह देने की बात कही थी। जो भी हो क्रिकेट के भगवान की भीड़ हो, या होली की धार्मिक भीड़ हो, कोरोना को भीड़ पसंद आ रही है। यह अलग बात है कि बंगाल के चुनाव में देश की सबसे बड़ी भीड़ लग रही है, और शायद वहां कोई भी पार्टी कोरोना की जांच नहीं चाहती है।
अस्पतालों की लूट पर नजर क्यों नहीं?
कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैल रहा है उसने लोगों के होशो-हवास उड़ा दिये हैं। अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन यूनिट व वेंटिलेटर के लिये मारामारी तब मची हुई है, जब कोई विशेषज्ञ यह नहीं कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा है कि यह संक्रमण का अधिकतम है। कितने हजार या लाख लोग चपेट में आयेंगे और कितनी जिंदगियां यह वायरस लीलने वाला है, यह कोई नहीं जानता। यह तय है कि कुछ दिन यही रफ्तार बनी रही तो संख्या इतनी बढ़ सकती है कि इलाज के निजी और सरकारी सभी प्रबंध फेल हो जायेंगे। इधर लगातार खबरें आ रही है कि मरीजों को सिफारिश के आधार पर अथवा उनकी आर्थिक क्षमता को तौलकर भर्ती और इलाज का फैसला निजी अस्पताल कर रहे हैं। एकाएक प्रतिदिन के बिस्तर और दवाओं का बिल 10-10 गुना बढ़ा दिया गया है। रेमडेसिवर इंजेक्शन, जिसकी सांसों का लेवल बढ़ाने में बड़ी भूमिका है की जमाखोरी और कालाबाजारी शुरू हो गई है। इसे भी पांच गुना अधिक दाम पर बेचा जा रहा है। इस बारे में सरकार की ओर से निजी अस्पतालों, दवा विक्रेताओं को कोई चेतावनी नहीं दी गई है, न ही उन पर निगरानी स्थानीय प्रशासन कर रहा है। हालात खराब तो हो ही चुके हैं इसे बदतर होने से बचाने के लिये एक एक्शन प्लान तो तुरंत बनना ही चाहिये।
रेलवे की तैयारियों पर पानी फिरा
अप्रैल माह में 10 अप्रैल से रेलवे करीब एक दर्जन पैसेंजर और आधा दर्जन एक्सप्रेस स्पेशल ट्रेन शुरू करने की घोषणा करीब 15 दिन पहले कर चुकी थी। यह घोषणा तब की गई थी जब कोरोना के इतने मामले बढऩे का अनुमान नहीं था। हजारों यात्रियों ने इन ट्रेनों के लिये टिकट कटा रखी है लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते अब वे अपनी यात्रा का प्लान कैंसिल कर रहे हैं। रेलवे ने भी ज्यादातर ट्रेनों में, खासकर जो एक राज्य से दूसरे राज्य जाती है में चलने वाले यात्रियों के लिये आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट को अनिवार्य कर दिया है। बहुत से यात्री इस झंझट से भी बचने के लिये यात्रा के प्रति उदासीन हुए हैं। कोरोना की रफ्तार नहीं थमी तो हो सकता है कि ट्रेनें खाली गुजरें और संचालन रोकना पड़े। वैसे भी घोषणा में लिखा गया है कि ये ट्रेनें अगले आदेश तक ही चलेंगीं। यानि कभी भी बंद की जा सकेंगीं।
मजदूर फिर घर वापस लौट रहे
कोरोना का प्रकोप कम होने के बाद दूसरे राज्यों में काम के लिये जाने वाले मजदूर बड़ी संख्या में एक बार फिर घर वापस लौटने के लिये अपना बोरिया-बिस्तर समेट रहे हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, एमपी, कर्नाटक जैसे राज्यों में कमाने-खाने के लिये गये प्रवासी मजदूरों ने पिछली बार लॉकडाउन के बाद जिस त्रासदी को भोगा था, उसे याद कर वे अब भी कांप रहे हैं। वे नहीं चाहते कि वैसी स्थिति दुबारा पैदा हो। हालांकि जिन ठेकेदारों ने उन्हें बुलाया है वे आश्वस्त कर रहे हैं कि इस बार हम उनकी हिफाजत की तैयारी रखकर चल रहे हैं, पर मजदूर जानते हैं कि फैक्ट्रियां और निर्माण कार्य लम्बे समय तक बंद होंगे तो उन्हें आखिर कितने दिन मदद मिल सकेगी। इन मजदूरों में छत्तीसगढ़ के भी हैं। रेलवे ने तो मजदूरों के लिये बिहार के लिये स्पेशल ट्रेन तक चलाने का निर्णय लिया है। हो सकता है कि लॉकडाउन की पहले से चेतावनी के चलते पिछली बार की तरह घर तक पहुंचने में मजदूरों को बीते साल की तरह परेशानी न हो लेकिन घर पहुंचने पर पेट पालने की समस्या से तो छुटकारा नहीं मिल पायेगा।