राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मेरा जूता है जापानी...
18-Mar-2021 5:35 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मेरा जूता है जापानी...

मेरा जूता है जापानी...

छत्तीसगढ़ में अभी भारत-जापान के संबंधों पर काम करने वाले एक संगठन का दाखिला हुआ। कुछ हफ्ते या महीने पहले इसके लोगों का सरकार के साथ बातचीत का सिलसिला चला, जो अब किसी किनारे तक पहुंचा है। अभी आर्थिक एवं सांख्यिकी मंत्री अमरजीत भगत ने मंत्रालय में एक बैठक लेकर कलेक्टरों को जिम्मेदारी दी है कि कौशल विकास योजना के तहत छत्तीसगढ़ के युवाओं को जापानी भाषा सिखाई जाए।

अब कौशल विकास के तहत जो कुछ सिखाया जाता है उसके साथ एक शर्त यह भी जुड़ गई है कि उसके एक बड़े हिस्से को रोजगार दिलवाना होगा, और उसके सुबूत दाखिल करने होंगे, तभी उसे कौशल सिखाना माना जाएगा। अब सवाल यह है कि जो छत्तीसगढ़ी लोग सौ-पचास घंटे के किसी पाठ्यक्रम से जापानी भाषा का कामचलाऊ इस्तेमाल सीख भी लेंगे, उन्हें रोजगार कहां मिलेगा? छत्तीसगढ़ में सरकार के लाखों कर्मचारियों-अधिकारियों के अमले में जापानी के जानकार के लिए तो एक भी पद नहीं है, और न ही छत्तीसगढ़ से जापान जाकर काम करने की कोई संभावना अभी तक दिखी है, न ही जापानी लोग छत्तीसगढ़ बड़ी संख्या में आते हैं। ऐसे में दिल्ली में बसे किसी एक संगठन की दिलचस्पी को अगर यह राज्य जिला कलेक्टरों के मार्फत कौशल विकास कार्यक्रम पर थोप रहा है, तो उससे हासिल क्या होगा? कलेक्टरों के अधिकार इतने रहते हैं कि राज्य शासन के कहे हुए वे कौशल विकास के तहत या उसके बिना भी मंगल ग्रह की भाषा भी अपने जिलों में सिखा सकते हैं, जापानी का क्या है! अब दिक्कत यह है कि कौशल विकास की बड़ी सीमित सीमाओं के तहत एक ऐसी भाषा सिखाने का फैसला लिया गया है जिसके अभ्यास का भी कोई मौका इन लोगों को नहीं मिलेगा, और जब जापानियों को हिन्दी में काम करना होगा, तो वे सौ-पचास घंटे सीखे हुए लोगों के बजाय पांच बरस पढ़ाई करने वाले अनुवादकों से काम लेंगे। सरकार का यह फैसला आपाधापी में लिया गया दिखता है, और सरकार के कुछ लोगों ने हो सकता है कि जापान जाने की गुंजाइश इस संगठन के रास्ते देख ली होगी।

अगर सचमुच ही कोई भाषा सिखाकर छत्तीसगढ़ के लोगों को भाषा के हुनर से काम दिलवाना है तो सबसे आसान अंग्रेजी भाषा है जिसकी संभावनाएं हिन्दुस्तान के अधिकतर प्रदेशों में हैं, और दुनिया के सबसे अधिक देशों में भी हैं। इस अखबार में कई बरस से इस बात की वकालत की जा रही है कि गांव-कस्बों के सरकारी स्कूल-कॉलेज के ढांचों में खाली वक्त में दिलचस्पी रखने वाले तमाम लोगों को अंग्रेजी सिखानी चाहिए ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके।

हवाईअड्डे की स्क्रीन पर छत्तीसगढ़ी

जब हमारा अलग राज्य बना तो छत्तीसगढ़ी भाषा को भी आगे ले जाने के लिये कोशिश की गई। छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लम्बे समय से हो रही है। राज्य बनने के बाद इसके लिये आंदोलन भी हुए। इस सूची में 28 भाषायें शामिल हैं, जिनमें से अनेक छत्तीसगढ़ी से कम बोली जाती हैं। राज्य बनने के बाद भी सन् 2003 के आसपास बोडो, डोंगरी, मैथिली, संथाली आदि को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का प्रदेश में गठन किया गया। सरकारी दफ्तरों में हिन्दी या अंग्रेजी की जगह छत्तीसगढ़ी को प्रयोग में लाने के लिये शब्दकोश तैयार किया गया। छत्तीसगढ़ी में दिये गये आवेदन को स्वीकार करने का विधानसभा से पारित शासकीय आदेश है। पर व्यवहार में यह राज्य की अधिकारिक भाषा नहीं बन पाई है। हां, लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी बोली, परम्पराओं से जुड़े सवाल आने लगे है। प्रारंभिक कक्षाओं में छत्तीसगढ़ी के कोर्स भी रखे गये हैं।

इस बीच मोबाइल फोन के संदेश, रेलवे स्टेशन की उद्घोषणा छत्तीसगढ़ी को शामिल हो चुकी है। अब स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर में छत्तीसगढ़ी को महत्व मिला है। फ्लाइट्स की आने, जाने की सूचना अब हिन्दी और अंग्रेजी के साथ छत्तीसगढ़ी में दी जा रही है। कसडोल की विधायक शकुन्तला साहू ने इसे पहली बार देखा, तो आज इसकी तस्वीर ट्विटर पर डाली। और लिखा- ‘हमर रायपुर एयरपोर्ट मं जहाज आये-जाये के जानकारी छत्तीसगढ़ी भाषा मा मिलत हे!’ जाहिर है प्राय: इस पोस्ट का स्वागत ही किया गया है। पर एक यूजर ने यह टिप्पणी भी की- ‘भाषा नहीं, मैडमजी भाखा।’

आपत्ति तो जायज है। छत्तीसगढ़ी के जानकार बताते हैं कि छत्तीसगढ़ी में श, ष जैसे अक्षर नहीं हैं। लगता यही है कि जो जन्म से छत्तीसगढ़ी बोल रहे हों, उनके लिये भी इसे लिखना, पढऩा सहज नहीं है।

मंत्री के सामने बेलगाम अफसर

स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह इस बार नहीं चूके। सरगुजा जिले के प्रतापपुर के आदिवासी बालक आश्रम केवरा का उद्घाटन उनको अंधेरे में रखकर करा लिया गया। 50 बिस्तरों वाले इस आश्रम के लिये 1.62 करोड़ रुपये मंजूर किये गये थे। बिल्डिंग का लोकार्पण करने पहुंचे तो उनका सामना एक वृद्धा रामबाई पंडो से हुआ, जिसने बताया कि आश्रम के लिये उनकी बाड़ी की जगह को ले लिया गया है। जमीन उसने इस शर्त पर दिया कि उसे तीन कमरों का एक पक्का मकान बनाकर पीडब्ल्यूडी वाले और ठेकेदार देंगे। लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया। वह बेघर हो गई है। उसे प्रधानमंत्री आवास भी नहीं मिला है। मंत्री ने अधिकारियों को वादाखिलाफी के लिये फटकारा और निर्देश किया कि जब तक उसके लिये मकान नहीं बना देंगे तब तक वह इसी आश्रम में रहेगी। इसके बाद मंत्री का ध्यान बिल्डिंग की ओर गया। उन्होंने पाया कि बिल्डिंग में तो अभी काफी काम बाकी है। उनके हाथों आधे-अधूरे भवन का ही उद्घाटन करा लिया गया है। नाराज मंत्री ने पानी नहीं पिया, स्वागत सत्कार के लिये भी नहीं रुके और वापस हो गये।

याद होगा, बीते 27 जनवरी को मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह बलरामपुर जिले में महिला बाल विकास विभाग ने सामूहिक विवाह कराया था। वहां वर-वधू को घटिया घरेलू जरूरत के सामान बांटे गये। खुद पंचायत प्रतिनिधियों ने इसकी शिकायत वहीं पर मंत्री से की, पर उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया था। लेकिन, इस बार तेवर कुछ कड़े दिखे। अब बाद में मालूम होगा कि पंडो आदिवासी वृद्धा के लिये पीडब्ल्यूडी ने मकान बनाना शुरू किया या नहीं और छात्रावास में उसे रहने दिया जा रहा है या नहीं।

‘भारत-दर्शन’ पर ग्रहण

बीते साल जब कोविड-19 का प्रकोप बढ़ा तो लोगों का पूरा ग्रीष्मकालीन अवकाश घरों के भीतर कैद में बीता। लॉकडाउन के चलते महीनों, ट्रेन, बसें नहीं चली। पर्यटन को तो लोग भूल ही गये। अक्टूबर माह में जब कोरोना संक्रमण की रफ्तार कुछ कम हुई तो रेलवे की सहयोगी आईआरसीटीसी ने ‘भारत दर्शन’ पर्यटन ट्रेन की घोषणा की। कोरोना का भय और आर्थिक संकट के बीच बहुत कम लोगों ने इस ट्रेन में सफर करने में रुचि दिखाई। तब आईआरसीटीसी ने तय किया कि 50 प्रतिशत सीटें भी भर जाती हैं तो वह यह यात्रा निकालेगी। जानकारी के मुताबिक 300 सीटों की बुकिंग हो भी गई थी। इनमें 150 से ज्यादा छत्तीसगढ़ से थे। कुछ ही सीटें और भरती तो आईआरसीटीसी का लक्ष्य हासिल हो जाता। पर, ऐन मौके पर संक्रमण फिर बढऩे लगा है। पता चला है कि वैष्णो देवी, अयोध्या आदि के लिये प्रस्तावित इस ट्रेन के 90 यात्रियों ने टिकट रद्द करा लिये हैं। इनमें से ज्यादातर नागपुर के हैं, जहां इस समय लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में 31 मार्च को निर्धारित सफर शुरू हो पायेगा या नहीं इस पर शंका है। आईआरसीटीसी ने मुख्यालय से पत्र व्यवहार शुरू किया है और पूछा है कि क्या करें? कम यात्रियों में तो ट्रेन चलाना घाटे का सौदा होगा। वैसे भी कोरोना के बाद हुए नुकसान के चलते यात्री ट्रेनों, प्लेटफॉर्म टिकटों के दाम में बेतहाशा वृद्धि की गई है, फिर घाटे की ट्रेन क्यों चलाई जाये? फैसला अभी नहीं हुआ है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news