राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : खाली दौड़ रहीं पैसेंजर ट्रेनें
18-Feb-2021 5:36 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : खाली दौड़ रहीं पैसेंजर ट्रेनें

खाली दौड़ रहीं पैसेंजर ट्रेनें

लम्बे समय से बंद लोकल ट्रेनों को रेलवे ने आखिरकार शुरू किया. पर इनमें भीड़ नहीं है। बोगियां खाली दौड़ रही हैं। 13 फरवरी को जब ट्रेनें शुरू की गई तो रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर के बीच केवल 25-30 सवारी मिलीं। रेलवे ने एक दर्जन पैसेंजर और मेमू ट्रेनों को फिर से शुरू कर दिया है। इन्हें स्पेशल ट्रेनों के नाम पर चलाया जा रहा है। रायपुर-बिलासपुर के बीच चलने वाली ट्रेनों में सीटें कुल 3000 है लेकिन यात्रियों की संख्या अधिकतम 250 तक ही पहुंच पाई है। यानि 10 फीसदी सीटें भी नहीं भर पा रही है।

लोग इसके कई कारण बता रहे हैं। एक वजह तो ये है कि कई छोटे स्टेशनों पर ट्रेनें नहीं रोकी जा रही हैं, दूसरे किराया, स्पेशल के नाम पर अधिक लिया जा रहा है। मासिक सीजन टिकट भी बंद है। रिश्तेदारी, शादी-ब्याह में लोगों ने ज्यादा आना-जाना बंद कर रखा है। इसके अलावा 11 महीने ट्रेन नहीं चलने के कारण लोगों ने वैकल्पिक साधनों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। इन सबके बीच बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि लोकल ट्रेनों में छोटे काम धंधे वाले ज्यादा चलते थे। इनमें बहुत से श्रमिक वर्ग के भी होते हैं जिनके रोजगार पर कोरोना की मार पड़ी है।

पूजा स्पेशल ट्रेनों को जब शुरू किया गया तो रेलवे ने कोरबा से रायपुर, हसदेव एक्सप्रेस को स्पेशल ट्रेन बनाकर चलाया था लेकिन सवारियां नहीं मिलने के कारण उसे बंद करना पड़ा। अब यही आशंका लोकल ट्रेनों को लेकर भी देखी जा रही है।

भाजयुमो का उलझता विवाद

भारतीय जनता युवा मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी में बने रहने के लिये अब पदाधिकारियों तथा कार्यकारिणी के सदस्यों को अपनी मार्कशीट दिखानी पड़ेगी। मोर्चा की नियुक्तियों को लेकर राजधानी रायपुर ही नहीं दूसरे जिलों के कई वरिष्ठ नेता नाराज हो गये हैं। उनकी सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया गया। शायद संतुलन बनाकर पदाधिकारी नियुक्त किये जाते तो यह विवाद खड़ा ही नहीं होता।

पहले भी तय उम्र सीमा को उपेक्षित करके नियुक्तियां होती आई हैं। बताया तो यह जा रहा है कि यदि कड़ाई से उम्र सीमा के नियम का पालन किया गया तो 50 फीसदी पदाधिकारियों को बाहर करना पड़ेगा। इसके बाद असंतोष बढ़ेगा या थमेगा, अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन अनुशासन को लेकर पहचाने जाने वाली भाजपा में ऐसा देखने को कम ही मिला है।

बस्तर में ग्रामीणों की नाराजगी

बस्तर के सुदूर नारायणपुर इलाके के बडग़ांव में करीब दो दर्जन गांवों के सैकड़ों ग्रामीण पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ धरने पर बैठ गये हैं। इनका आरोप है कि पुलिस ने जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया वे माओवादी नहीं हैं। ग्रामीण पुलिस पर मारपीट का आरोप भी लगा रहे हैं। गिरफ्तारी 9 फरवरी को हुई थी।

बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं वे निर्दोष ग्रामीणों को माओवादी बताकर पकड़ लेती है या फिर एनकाउन्टर कर दिया जाता है। पिछली सरकार के कार्यकाल में ऐसी घटनाएं हुई हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इनके खिलाफ आवाज भी उठाई । इस मामले में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। ग्रामीण भी सही हो सकते हैं और पुलिस भी।

ग्रामीणों के बीच नक्सलियों को पहचान पाना एक बारीक सा काम है। कई बार वे नक्सली गतिविधियों में अपनी मर्जी से नहीं बल्कि दबाव में जुड़ते हैं। इसका तोड़ यही है कि सुरक्षा बल और ग्रामीणों में एक दूसरे के प्रति ज्यादा से ज्यादा भरोसा जगे। हाल ही में वैलेन्टाइन डे के दिन नक्सली जोड़ों का विवाह कराया गया। उसके पहले भूमकाल दिवस पर ग्रामीणों के साथ पुलिस ने समारोह आयोजित किया। कुछ जगहों में पुलिस शिक्षा और स्वास्थ्य के लिये भी काम कर रही है। सुरक्षा बलों को शायद और प्रयास करते रहने की जरूरत है।

सरस्वती पूजा का पहला अक्षर...

हिन्दुस्तान में धर्म और संस्कृति इतने मिले-जुले हैं कि सरस्वती पूजा के दिन घरों में छोटे बच्चों से स्लेट-पट्टी पर पहली बार कुछ लिखवाकर उनकी पढ़ाई-लिखाई का सिलसिला शुरू किया जाता है। अभी एक सज्जन सरस्वती पूजा के पहले की शाम को बाजार में स्लेट-पट्टी ढूंढते रहे। कुछ देर हो गई थी इसलिए दुकानें बंद होने लगी थीं। अपने बचपन को याद करके वे लकड़ी की फ्रेम और काले पत्थर वाली स्लेट ढूंढते रहे, तो पता लगा कि अब उसका चलन बंद हो गया है, और अब प्लास्टिक की फ्रेम में टीन की चादर पर स्लेट-पट्टी आने लगी है। एक दुकानदार ने जब स्लेट-पट्टी और उसकी पेंसिल की मांग सुनी, तो पूछा- कल सरस्वती पूजा है क्या?

शहरों में जिन हिस्सों में बच्चों के कार्यक्रमों के लिए कपड़े किराए पर मिलते हैं वहां जन्माष्टमी जैसे त्यौहारों पर ट्रैफिक जाम हो जाता है क्योंकि मां-बाप बच्चों को राधा-कृष्ण बनाने के लिए इन दुकानों पर भीड़ लगा लेते हैं। सरस्वती पूजा पर वैसी भीड़ तो नहीं लगती, लेकिन स्कूल-कॉलेज में यह पूजा फिर भी हो ही जाती है, यह अलग बात है कि इस बरस स्कूल-कॉलेज ठंडे पड़े हुए हैं।

देवियों की भूमि पर देव!

अभी भाजपा का पूरे देश में राम मंदिर चंदा अभियान चल रहा है। मुहल्लों में लाउडस्पीकर लेकर रोज सुबह लोग निकलते थे और एक रूपये से लेकर एक करोड़ रूपये तक दान देने की अपील करते थे। इसी बीच बंगाल के चुनाव को लेकर वहां भाजपा अतिसक्रिय हुई तो राजनीति के कुछ विश्लेषकों ने लिखा कि बंगाल राम की पूजा करने वाला प्रदेश नहीं है, वह देवी की पूजा करने वाला है। और याद भी करें तो बंगाल में जन्माष्टमी, रामनवमीं, या गणेशोत्सव सुनाई नहीं पड़ता है। दूसरी तरफ सरस्वती पूजा, लक्ष्मी और काली पूजा, दुर्गा पूजा की खबरों से बंगाल का मीडिया भरे रहता है, और ये प्रतीक वहां के इश्तहारों में भी रहते हैं। अब बंगाल इतना देवीपूजक क्यों है इसे जानने-समझने के लिए वहां की संस्कृति पर कुछ गंभीर लेख पढऩे पड़ेंगे, लेकिन वहां महिलाओं का इतना सम्मान तो है कि बाग-बगीचे में किसी पुरूष साथी के साथ बैठने पर भी उसका कोई अपमान बंगाल में नहीं होता। सोचकर देखें कि वहां देवियों की ही पूजा क्यों है?

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