राजपथ - जनपथ
कुछ खुश, कुछ नाखुश
काफी उहापोह के बाद भाजयुमो की कार्यकारिणी तो घोषित हो गई, लेकिन कई ऐसे नाम हैं, जो कि तय मापदण्ड में खरे नहीं उतरते हैं। उन्हें भी जगह मिल गई। पार्टी ने 35 वर्ष से अधिक उम्र वालों को कार्यकारिणी में जगह नहीं देने का फैसला लिया था। बावजूद इसके कई ऐसे लोग जगह पा गए, जिनकी उम्र 40 के आसपास है।
ये अलग बात है कि पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष के सख्त निर्देश के बाद नेता पुत्रों को कार्यकारिणी में जगह नहीं मिल पाई। जबकि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल, रामसेवक पैकरा के बेटे लवकेश पैकरा, रामविचार नेताम की बेटी सहित कई अन्य कतार में थे।
सुनते हैं कि अध्यक्ष अमित साहू अपने करीबी 15 लोगों को कार्यकारिणी में जगह दिलाने में कामयाब रहे। पूर्व सांसद अभिषेक सिंह की भी खूब चली है। कई ऐसे युवा नेता हैं, जिन्हें कार्यकारिणी में जगह नहीं मिल पाई है, वे सभी अभिषेक को कोस रहे हैं। नाराज युवा नेता दबे स्वर में कह रहे हैं कि अभिषेक की दखलंदाजी की वजह से उन्हें जगह नहीं मिल पाई है। भले ही यह सच न हो, लेकिन युवा मोर्चा की कार्यकारिणी को लेकर विवाद बरकरार है।
पूरा प्रशासनिक अमला परेशान
कांकेर बस स्टैण्ड में अवैध कब्जा हटाना स्थानीय प्रशासन को भारी पड़ रहा है। कुछ ऐसे निर्माण को भी हटा दिया गया, जिन्हें पट्टा मिला हुआ था। विधानसभा में सवाल लगा, तो जवाब सही नहीं आया। प्रश्नकर्ता विधायक ननकीराम कंवर ने विधानसभा की प्रश्न संदर्भ समिति में गलत जवाब देने की शिकायत की। समिति ने जांच शुरू की, तो हडक़ंप मच गया। कलेक्टर ने नजूल अफसर और तहसीलदार से स्पष्टीकरण मांगा है। बात यही खत्म नहीं हो रही है। विधानसभा के बजट सत्र में इस मामले को लेकर अलग-अलग आधा दर्जन सवाल लगे हैं। हाल यह है कि पूरा प्रशासनिक अमला परेशान है।
ट्रायल के लिये को-वैक्सीन, हरगिज नहीं
कोविड महामारी ने फार्मा कम्पनियों को भारी मुनाफा दिया । पीपीई किट, बेड, इक्विपमेंट्स, वेंटिलेटर, सैनेटाइजर, क्लोरोक्वीन दवा, आदि की अचानक मांग बढ़ी और पूरे देश में इसकी आपूर्ति की होड़ लगी। लाखों पैकेट दवायें निर्यात भी हुईं। कुछ की गुणवत्ता और कीमत पर सवाल भी उठते रहे लेकिन महामारी के खौफ ने इस पर ज्यादा बहस के लिये जगह नहीं दी। वैक्सीन के ईजाद और इसके उत्पादन को लेकर यही बात है। पहले दूसरे देशों से वैक्सीन मांगने की बात थी पर बाद में देसी उत्पाद ही बाजार में पहले आ गये। बाबा रामदेव ने कोरोलिन का दावा सबसे पहले किया पर उसे आईसीएमआर ने मानने से मना कर दिया। इसके बाद मान्यता प्राप्त वैक्सीन का उत्पादन तो बढ़ा पर कोरोना का डर भागने लगा।
जो परिस्थितियां बन रही हैं उससे लगता है कि वैक्सीन निर्माताओं की उम्मीद के अनुरूप मांग आ नहीं रही है। छत्तीसगढ़ में फ्रंटलाइन वारियर्स, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का पंजीयन किया गया पर ऐसा नहीं हुआ कि वे वैक्सीन लगवाने के लिये टूट पड़े, बल्कि इससे बचते भी रहे। आज प्रदेश में कोविशील्ड का पहला चरण पूरा करने का आखिरी दिन है, पर अब भी लाखों की संख्या में वैक्सीन बच गये हैं। पखवाड़े भर पहले एक दूसरी दवा, को-वैक्सीन की खेप केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भेज दी। को-वैक्सीन लगाने के लिये जो तैयार होंगे एक फार्म भी उन्हें भरना होगा, जिसमें सहमत होना है कि वे इसे ट्रायल बेस पर ही लगवा रहे हैं। ऐसा करने में खतरा तो है। ट्रायल के लिये आम लोगों को जबरदस्ती तैयार करना तो ठीक नहीं। फिलहाल, छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे इस्तेमाल में लाने से मना कर दिया है। को-वैक्सीन स्टेट लेवल के स्टोर रूम में ही रखे हुए हैं। सरकारी खरीदी और घोषणा के चलते ये मुफ्त में लगने हैं। आने वाले दिनों में वैक्सीन की कीमत तय करने की योजना थी, पर जब मुफ्त की वैक्सीन ही नहीं खप पा रही हो तो..?
राम के नाम पर ऑनलाइन दे बाबा...
भगवान के नाम पर भीख, चंदा, चढ़ावा, दक्षिणा मांगना सबसे आसान काम है। ट्रेन, बस-स्टाप और घर के दरवाजे तक भी पारम्परिक भिक्षावृत्ति करने वालों के मुंह से जब निकलता है, राम के नाम पर दे दे बाबा.. तो सुनकर लोग पिघल जाते हैं। कोई तरस खाकर, कोई श्रद्धा-विश्वास की वजह से तो कोई-कोई पीछा छुड़ाने के लिये इन पर मेहरबानी करता आया है।
राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिये जो ‘निधि’ देशभर से एकत्र हो रही है वह इन दिनों चर्चा में है। शायद ही कोई सहयोग देने से मना कर रहा हो। इसे ऑनलाइन जमा करने की सुविधा भी है। इसके लिये अधिकारिक पोर्टल और एप भी तैयार किये गये हैं। ऑनलाइन ठगी के इन दिनों के कितने कारनामे हो रहे हैं, हम सब वाकिफ हैं ही। अब राजधानी की साइबर सेल की जानकारी में यह बात आई है कि लोगों के फोन व सोशल मीडिया पेज पर, फर्जी लिंक भेजे जा रहे हैं। लोग इसके जरिये पैसा जमा कर भी रहे हैं। लोगों को पता नहीं है कि उन्होंने फर्जी लिंक में पैसे दे डाले। इसलिये कितनी ठगी इस तरह हो चुकी है, यह पता नहीं चला है। फर्जी लिंक में पैसा जमा करने वालों को पता नहीं, पुण्य मिलेगा या नहीं, पर ठगों के एकाउन्ट में तो लक्ष्मी आती जा रही है। ऐसी ठगी के सामने बिलासपुर की एक महिला द्वारा चंदे के लिये रसीद छपवाना तो मामूली सा अपराध लगता है।
एक साल में नक्सल का खात्मा!
बस्तर से नक्सलवाद खत्म करने के लिये हर सरकारें संकल्प लेती रही हैं। महीनों कोई वारदात नहीं होती तो कहा जाता है कि अब वे बिखर गये हैं। जन प्रतिनिधि श्रेय भी लेते हैं। पर अचानक फिर कोई बड़ा हमला कर नक्सली अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते हैं। दंतेवाड़ा नक्सल प्रभावित संवेदनशील इलाका है। यहां से एक साल के भीतर नक्सल खत्म करने का दावा किया गया है। दावा किसी नेता ने नहीं पुलिस कप्तान ने किया है। वीर गुंडाधूर और बस्तर के पहले आंदोलन की याद में यहां कल भूमकाल दिवस मनाया गया। इसी में यह दावा किया गया। एक बात एसपी ने और कही- पुलिस और नक्सलियों में से जो जनता का विश्वास जीतेगा, जीत उसी की होगी। वास्तव में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि नक्सली आदिवासियों का विश्वास जीतने में क्यों सफल होते रहे हैं। यह भी जुड़ा हुआ प्रश्न ही है कि भरोसा सहज सहमति की वजह से है या भय के कारण। यही सवाल जनता और पुलिस के बीच के विश्वास जीतने के मामले में उठाया जा सकता है। चूंकि यह पुलिस का बयान है, राजनीतिक नहीं। इसलिये एक साल बाद क्या कोई बदलाव आता है, देखना जरूरी हो जायेगा।